गीत ४
“यहोवा माझा मेंढपाळ”
१. य-हो-वा मेंढ-पा-ळ मा-झा,
को-णा-ची भी-ती म-ला?
सां-भा-ळी जो त्या-च्या में-ढ-रां,
सो-डे-ल का तो म-ला?
नि-वां-त पा-ण्या-शी ने-ई,
जि-वा दे-ई ता-ज-वा,
चा-ल-वी तो नी-ती-च्या वा-टे-ने,
दि-शा दे-ई पा-व-लां.
नी-ती-च्या वा-टे-ने चा-ल-वी,
दि-शा दे-ई पा-व-लां.
२. ज-री का-ळो-ख्या द-री-तून,
मी चा-ल-लो ए-क-टा,
अ-से या-हा मा-झ्या सं-ग-ती,
का भ्या-वे मी सं-क-टा?
ना-ही हो-णा-र मी व्या-कू-ळ,
तो भा-ग-वि-तो त-हान,
वा-ह-तो ओ-सं-डु-नी ह-र्षा-ने,
तृ-प्ती-ने मा-झा प्या-ला!
वा-ही ओ-सं-डु-नी ह-र्षा-ने,
तृ-प्ती-ने मा-झा प्या-ला!
३. सु-जा-ण मेंढ-पा-ळ मा-झा,
वा-त्स-ल्य त्या-चे अ-पार.
सां-गेन आ-नं-दा-ने मी स-र्वां,
य-हो-वा कि-ती उ-दार.
चा-लेन आ-ज-न्म ने-मा-ने,
स-त्या-च्या वा-टे-व-री.
रा-हा-वी य-हो-वा-ची सा-व-ली,
मा-झ्या जी-व-ना-व-री.
रा-हो य-हो-वा-ची सा-व-ली,
मा-झ्या जी-व-ना-व-री.
(स्तो. २८:९; ८०:१ ही वचनंसुद्धा पाहा.)