मरकुस 2:1-28
2 मगर कुछ दिन बाद, यीशु फिर कफरनहूम में आया और चारों तरफ खबर फैल गयी कि वह घर आ गया है।
2 इसलिए वहाँ लोगों की भीड़ लग गयी, और वह घर लोगों से खचाखच भर गया। यहाँ तक कि दरवाज़े में घुसने तक की जगह न रही। यीशु उन्हें परमेश्वर के वचन सुनाने लगा।
3 तब लोग एक लकवे के मारे हुए को वहाँ लाए, जिसे चार आदमी उठाए हुए थे।
4 मगर भीड़ की वजह से वे उसे अंदर यीशु के नज़दीक न ले जा सके। इसलिए जहाँ यीशु बैठा था, उन्होंने ठीक उसके ऊपर घर की छत को खोदा और खोल दिया और लकवे के मारे हुए को उसकी खाट समेत नीचे उतार दिया।
5 जब यीशु ने उनका विश्वास देखा, तो उसने लकवे के मारे आदमी से कहा: “बेटे, तेरे पाप माफ किए गए।”
6 वहाँ कुछ शास्त्री बैठे थे जो अपने दिलों में कहने लगे:
7 “यह आदमी ऐसे क्यों बोल रहा है? यह परमेश्वर की तौहीन कर रहा है। परमेश्वर के सिवा और कौन पापों को माफ कर सकता है?”
8 मगर यीशु ने फौरन अपने मन में जान लिया कि वे अपने दिलों में क्या सोच रहे हैं। इसलिए यीशु ने उनसे कहा: “तुम क्यों अपने दिलों में ये बातें सोच रहे हो?
9 इस लकवे के मारे से क्या कहना ज़्यादा आसान है, ‘तेरे पाप माफ किए गए,’ या यह कहना कि ‘उठ, और अपनी खाट उठा और चल-फिर’?
10 मगर इसलिए कि तुम जान लो कि इंसान के बेटे को इस धरती पर पाप माफ करने का अधिकार दिया गया है,” . . . यीशु ने लकवे के मारे हुए से कहा:
11 “मैं तुझसे कहता हूँ, खड़ा हो, अपनी खाट उठा और अपने घर जा।”
12 तब वह आदमी उठ बैठा और फौरन अपनी खाट उठाकर सबके देखते बाहर निकल गया। यह देखकर सभी दंग रह गए और यह कहकर परमेश्वर की बड़ाई करने लगे: “हमने पहले ऐसा कभी नहीं देखा।”
13 फिर यीशु निकलकर झील के किनारे गया और लोगों की सारी भीड़ उसके पास आती रही और वह उन्हें सिखाने लगा।
14 फिर चलते-चलते उसने हलफई के बेटे लेवी को कर-वसूली के दफ्तर में बैठे देखा और उससे कहा: “मेरा चेला बन जा और मेरे पीछे हो ले।” और वह उठकर उसके पीछे हो लिया।
15 बाद में वह लेवी के घर खाना खाने के लिए मेज़ से टेक लगाए था और बहुत-से कर-वसूलनेवाले* और दूसरे ऐसे पापी, यीशु और उसके चेलों के साथ खाने बैठे थे। ये लोग बड़ी तादाद में वहाँ जमा थे। उनमें से कई ऐसे थे जो यीशु के चेले बन गए थे।
16 मगर जब फरीसी-दल के कुछ शास्त्रियों ने देखा कि वह पापियों और कर-वसूलनेवालों के साथ खाना खा रहा है, तो वे उसके चेलों से कहने लगे: “यह कर-वसूलनेवालों और पापियों के साथ खाता है?”
17 यह सुनकर यीशु ने उनसे कहा: “जो भले-चंगे हैं, उन्हें वैद्य की ज़रूरत नहीं होती, मगर बीमारों को होती है। मैं धर्मियों को नहीं, बल्कि पापियों को बुलाने आया हूँ।”
18 यूहन्ना के चेले और फरीसी उपवास किया करते थे। इसलिए वे यीशु के पास आए और उससे पूछा: “क्या बात है कि यूहन्ना के चेले और फरीसियों के चेले उपवास रखते हैं, मगर तेरे चेले उपवास नहीं रखते?”
19 तब यीशु ने उनसे कहा: “जब तक दूल्हे के दोस्तों के साथ दूल्हा है, क्या वे उपवास रख सकते हैं? नहीं रख सकते। जब तक दूल्हा उनके साथ रहता है, तब तक वे उपवास नहीं रख सकते।
20 मगर वे दिन आएँगे जब दूल्हे को उनसे जुदा कर दिया जाएगा, तब उस दिन वे उपवास करेंगे।
21 कोई भी पुराने कपड़े पर नए कपड़े से पैवंद काटकर नहीं लगाता। अगर लगाए, तो नए पैवंद की पूरी ताकत पुराने कपड़े को खींच लेती है और चीरा पहले से ज़्यादा बड़ा हो जाता है।
22 न ही कोई पुरानी मश्कों में नयी दाख-मदिरा भरता है। अगर वह भरे तो मदिरा मश्कों को फाड़ देगी और मदिरा के साथ-साथ मश्कें भी नष्ट हो जाएँगी। मगर लोग नयी मदिरा, नयी मश्कों में भरते हैं।”
23 ऐसा हुआ कि यीशु सब्त के दिन खेतों से होकर जा रहा था और उसके चेले चलते-चलते अनाज की बालें तोड़ने लगे।
24 इस पर फरीसी उससे कहने लगे: “यह देख! ये सब्त के दिन ऐसा काम क्यों कर रहे हैं जो कानून के खिलाफ है?”
25 मगर यीशु ने कहा: “क्या तुमने कभी नहीं पढ़ा कि जब दाविद और उसके आदमी भूखे थे और उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं था, तब दाविद ने क्या किया?
26 क्या तुमने प्रधान याजक अबियातार के ब्यौरे में नहीं पढ़ा कि किस तरह दाविद परमेश्वर के भवन में गया और चढ़ावे की रोटियाँ खायीं और कुछ अपने साथियों को भी दीं, जबकि याजकों के सिवा किसी और का ये रोटियाँ खाना मूसा के कानून के खिलाफ था?”
27 यीशु ने आगे कहा: “सब्त का दिन इंसान के लिए बना है, न कि इंसान सब्त के दिन के लिए।
28 लेकिन, इंसान का बेटा सब्त के दिन का भी प्रभु है।”