कुरिंथियों के नाम दूसरी चिट्ठी 13:1-14
13 मैं तीसरी बार तुम्हारे पास आ रहा हूँ। “हर मामले की सच्चाई दो या तीन गवाहों के बयान* से साबित की जाए।”+
2 हालाँकि मैं अभी तुमसे बहुत दूर हूँ, लेकिन तुम यह समझ लो कि मैं तुम्हारे बीच दूसरी बार मौजूद हूँ। जिन लोगों ने पहले पाप किया था उन्हें और बाकी लोगों को मैं अभी से खबरदार कर रहा हूँ कि अगर मैं दोबारा तुम्हारे पास आया तो उन्हें ज़रूर सज़ा दूँगा,
3 क्योंकि तुम इस बात का सबूत चाहते हो कि मसीह मेरे ज़रिए बोलता है, जो तुम्हारे लिए कमज़ोर नहीं बल्कि ताकतवर है।
4 वाकई वह कमज़ोर हालत में काठ पर लटकाकर मार डाला गया, फिर भी वह परमेश्वर की ताकत से ज़िंदा है।+ यह भी सच है कि हम भी उसकी तरह कमज़ोर हैं, मगर हम उसके साथ जीएँगे+ और यह परमेश्वर की उसी ताकत से होगा जो तुम्हारे अंदर काम करती है।+
5 खुद को जाँचते रहो कि तुम विश्वास में हो या नहीं। तुम क्या हो, इसका सबूत देते रहो।+ या क्या तुम्हें यह एहसास नहीं कि यीशु मसीह तुम्हारे साथ एकता में है? अगर नहीं है तो इसका मतलब तुम ठुकराए गए हो।
6 जहाँ तक हमारी बात है, हम ठुकराए नहीं गए और मैं उम्मीद करता हूँ कि तुम यह बात जान जाओगे।
7 अब हम परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं कि तुम कुछ भी गलत न करो। यह मैं इसलिए नहीं कह रहा कि हम मंज़ूरी पानेवाले नज़र आएँ, बल्कि इसलिए कि तुम भले काम करते रहो, फिर चाहे हम ठुकराए हुए नज़र आएँ।
8 इसलिए कि हम सच्चाई के खिलाफ कुछ नहीं कर सकते, सिर्फ सच्चाई की खातिर ही कर सकते हैं।
9 जब भी हम कमज़ोर होते हैं और तुम ताकतवर होते हो तो हमें खुशी होती है। और हम प्रार्थना करते हैं कि तुम सुधार करते जाओ।
10 मैं तुमसे दूर होकर भी ये बातें तुम्हें इसलिए लिख रहा हूँ कि जब मैं तुम्हारे बीच रहूँ, तो मुझे प्रभु के दिए अधिकार का सख्ती से इस्तेमाल न करना पड़े।+ यह अधिकार उसने मुझे तुम्हें मज़बूत करने के लिए दिया है, न कि तुम्हें गिराने के लिए।
11 अब आखिर में भाइयो, मैं तुमसे कहता हूँ कि तुम खुशी मनाते रहो, सुधार करते रहो, दिलासा पाते रहो,+ एक जैसी सोच रखो+ और शांति से रहो।+ तब प्यार और शांति का परमेश्वर+ तुम्हारे साथ रहेगा।
12 पवित्र चुंबन से एक-दूसरे को नमस्कार करो।
13 सभी पवित्र जनों का तुम्हें नमस्कार।
14 प्रभु यीशु मसीह की महा-कृपा और परमेश्वर का प्यार और उसकी पवित्र शक्ति तुम सबके साथ रहे, जिससे तुम फायदा पा रहे हो।
कई फुटनोट
^ शा., “मुँह।”