व्यवस्थाविवरण 9:1-29
9 हे इसराएल सुन, आज तू यरदन पार करके+ उस देश में जानेवाला है और वहाँ से ऐसी जातियों को हटानेवाला है जो तुझसे ज़्यादा बड़ी और ताकतवर हैं,+ जिनके शहर बहुत बड़े-बड़े हैं और जिनकी शहरपनाह आसमान छूती है,+
2 जहाँ के अनाकी लोग+ लंबे-चौड़े और ताकतवर हैं और उनके बारे में तू जानता है और तूने यह सुना है, ‘कौन अनाकियों से टक्कर ले सकता है?’
3 इसलिए आज तू यह जान ले कि तेरे आगे-आगे तेरा परमेश्वर यहोवा उस पार जाएगा।+ तेरा परमेश्वर भस्म करनेवाली आग है+ और वह उन्हें नाश कर देगा। वह उन्हें तेरी आँखों के सामने हरा देगा और तू उन्हें देखते-ही-देखते खदेड़कर* नाश कर देगा, ठीक जैसे यहोवा ने तुझसे वादा किया है।+
4 जब तुम्हारा परमेश्वर यहोवा उन जातियों को तुम्हारे सामने से खदेड़ देगा तो उसके बाद तुम अपने दिल में यह मत कहना, ‘हम नेक लोग हैं इसीलिए यहोवा हमें इस देश में ले आया कि हम इसे अपने अधिकार में कर लें।’+ असल बात यह है कि यहोवा उन जातियों को तुम्हारे सामने से इसलिए भगा रहा है क्योंकि वे बहुत दुष्ट हैं।+
5 तुम जो उनके देश पर कब्ज़ा करने जा रहे हो, इसकी वजह यह नहीं कि तुम बड़े नेक हो या मन के सीधे-सच्चे हो। तुम्हारा परमेश्वर यहोवा उन्हें तुम्हारे सामने से इसलिए भगा रहा है क्योंकि वे बहुत दुष्ट हैं+ और यहोवा ने शपथ खाकर तुम्हारे पुरखों को, अब्राहम,+ इसहाक+ और याकूब+ को जो वचन दिया था उसे वह पूरा कर रहा है।
6 इसलिए जान लो कि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हें इस बढ़िया देश का जो अधिकारी बना रहा है, उसकी वजह यह नहीं कि तुम नेक हो। तुम तो दरअसल बहुत ढीठ किस्म के लोग हो।+
7 यह बात हमेशा याद रखना और कभी मत भूलना कि तुमने वीराने में अपने परमेश्वर यहोवा को कैसे गुस्सा दिलाया था।+ जिस दिन तुमने मिस्र छोड़ा था, उस दिन से लेकर यहाँ इस जगह पहुँचने तक तुमने न जाने कितनी बार यहोवा से बगावत की।+
8 तुमने होरेब में भी यहोवा को गुस्सा दिलाया जिस वजह से यहोवा का क्रोध ऐसा भड़क उठा कि वह तुम्हें नाश करनेवाला था।+
9 उस वक्त मैं पत्थर की पटियाएँ लेने पहाड़ पर गया हुआ था।+ यहोवा ने तुम्हारे साथ जो करार किया था उस करार की पटियाएँ+ लेने मैं गया था और 40 दिन और 40 रात वहीं पहाड़ पर रहा।+ इतने दिन तक न मैंने खाना खाया न पानी पीया।
10 फिर यहोवा ने मुझे पत्थर की वे दोनों पटियाएँ दीं। उन पटियाओं पर यहोवा ने अपने हाथ से वे सारी आज्ञाएँ लिखीं जो उसने तुम्हारी पूरी मंडली को पहाड़ पर आग में से बात करते वक्त दी थीं।+
11 फिर 40 दिन और 40 रात के आखिर में यहोवा ने मुझे करार की दोनों पटियाएँ दीं।
12 इसके बाद यहोवा ने मुझसे कहा, ‘अब तू उठ और जल्दी से नीचे जा क्योंकि तेरे लोगों ने, जिन्हें तू मिस्र से निकाल लाया है, दुष्ट काम किया है।+ कितनी जल्दी वे उस राह से फिर गए हैं जिस पर चलने की आज्ञा मैंने दी थी। उन्होंने पूजा के लिए धातु की एक मूरत* बनायी है।’+
13 फिर यहोवा ने मुझसे कहा, ‘मैं देख सकता हूँ कि ये लोग कितने ढीठ हैं!+
14 इसलिए अब मुझे मत रोक, मैं इनका नाश कर दूँगा और धरती से* इनका नाम मिटा दूँगा। और मैं तुझसे एक ऐसा राष्ट्र बनाऊँगा जो इनसे ज़्यादा ताकतवर और गिनती में बड़ा होगा।’+
15 तब मैं अपने हाथ में करार की दोनों पटियाएँ लिए पहाड़ से नीचे उतर आया।+ पहाड़ आग से जल रहा था।+
16 जब मैं तुम्हारे पास आया तो मैंने देखा कि तुमने धातु से बछड़े की एक मूरत बना ली है।* अपने परमेश्वर यहोवा के खिलाफ तुमने कितना बड़ा पाप किया था! कितनी जल्दी तुम उस रास्ते से फिर गए जिस पर चलने की आज्ञा यहोवा ने तुम्हें दी थी।+
17 तब मैंने तुम्हारी आँखों के सामने दोनों पटियाएँ नीचे पटक दीं और वे चूर-चूर हो गयीं।+
18 फिर मैं पहले की तरह यहोवा के सामने मुँह के बल ज़मीन पर गिरा और 40 दिन, 40 रात ऐसा करता रहा। मैंने न खाना खाया, न पानी पीया+ क्योंकि तुमने यहोवा की नज़र में बुरे काम करके पाप किया था और उसे क्रोध दिलाया था।
19 यहोवा का क्रोध देखकर मैं डर गया था क्योंकि वह तुम पर इतना भड़का हुआ था+ कि तुम सबको नाश करनेवाला था। मगर यहोवा ने इस बार भी मेरी फरियाद सुनी।+
20 यहोवा हारून से इतना गुस्सा हुआ कि वह उसे मार डालनेवाला था,+ मगर तब मैंने उसके लिए भी मिन्नतें कीं।
21 फिर मैंने तुम्हारे उस पाप को, उस बछड़े+ को आग में जला दिया। मैंने उसे ऐसा चूर-चूर कर दिया कि वह महीन धूल की तरह हो गया और मैंने वह धूल पहाड़ से नीचे बहनेवाली पानी की धारा में फेंक दी।+
22 इसके बाद तुमने तबेरा,+ मस्सा+ और किबरोत-हत्तावा+ में भी यहोवा का क्रोध भड़काया।
23 फिर जब यहोवा ने कादेश-बरने+ में तुम्हें आदेश दिया, ‘जाओ, उस देश को अपने अधिकार में कर लो जो मैं तुम्हें ज़रूर दूँगा!’ तो तुमने अपने परमेश्वर यहोवा की बात नहीं मानी और उससे एक बार फिर बगावत की।+ तुमने उस पर विश्वास नहीं किया+ और उसकी आज्ञा नहीं मानी।
24 जब से मैं तुम्हें जानता हूँ तब से तुम बार-बार यहोवा से बगावत करते आए हो।
25 जब यहोवा ने कह दिया कि वह तुम सबको नाश कर देगा, तो मैं 40 दिन और 40 रात यहोवा के सामने मुँह के बल ज़मीन पर गिरकर+
26 यहोवा से फरियाद करता रहा, ‘हे सारे जहान के मालिक यहोवा, तू अपने लोगों को नाश मत कर। वे तेरी अपनी जागीर* हैं+ जिन्हें तूने अपनी ताकत* से और अपने शक्तिशाली हाथ से मिस्र से बाहर निकाला है।+
27 अपने सेवकों को, अब्राहम, इसहाक और याकूब को याद कर।+ और इन लोगों की ढिठाई, इनकी दुष्टता और इनके पाप की तरफ ध्यान मत दे।+
28 वरना तू हमें जिस देश से निकालकर लाया है वहाँ के लोग कहेंगे, “यहोवा उन्हें उस देश में ले जाने में नाकाम हो गया जिसके बारे में उसने वादा किया था। वह तो उनसे नफरत करता था इसलिए उसने उन्हें वीराने में ले जाकर मार डाला।”+
29 ये तेरे लोग हैं, तेरी अपनी जागीर* हैं+ जिन्हें तू अपना हाथ बढ़ाकर अपनी महाशक्ति से बाहर निकाल लाया है।’+
कई फुटनोट
^ या “बेदखल करके।”
^ या “ढली हुई मूरत।”
^ शा., “आकाश के नीचे से।”
^ या “अपने लिए एक बछड़ा ढालकर बना लिया है।”
^ या “विरासत।”
^ या “महानता।”
^ या “विरासत।”