यूहन्ना के मुताबिक खुशखबरी 7:1-52
7 इसके बाद यीशु गलील का ही दौरा करता रहा। वह यहूदिया नहीं जाना चाहता था क्योंकि यहूदी उसे मार डालने की ताक में थे।+
2 यहूदियों का डेरों* का त्योहार+ पास था।
3 इसलिए यीशु के भाइयों+ ने उससे कहा, “यहाँ से निकलकर यहूदिया जा ताकि तू जो काम करता है उन्हें तेरे सभी चेले देखें।
4 इसलिए कि कोई भी इंसान जो चाहता है कि सब लोग उसे जानें, वह छिपकर काम नहीं करता। अगर तू ये काम करता है, तो खुद को दुनिया के सामने ज़ाहिर कर।”
5 दरअसल उसके भाई उस पर विश्वास नहीं करते थे।+
6 इसलिए यीशु ने उनसे कहा, “मेरा वक्त अब तक नहीं आया है,+ मगर तुम्हारे लिए तो हर वक्त सही है।
7 दुनिया के पास तुमसे नफरत करने की कोई वजह नहीं है, मगर यह मुझसे नफरत करती है क्योंकि मैं यह गवाही देता हूँ कि इसके काम दुष्ट हैं।+
8 तुम त्योहार के लिए जाओ। मैं इस त्योहार के लिए अभी नहीं जा रहा, क्योंकि मेरा वक्त अभी नहीं आया है।”+
9 उनसे यह कहने के बाद, वह गलील में ही रहा।
10 मगर जब उसके भाई त्योहार के लिए चले गए, तो उसके बाद वह खुद भी गया। लेकिन वह छिपकर गया ताकि लोग उसे न देखें।
11 इसलिए त्योहार के दौरान यहूदी यह कहते हुए उसे ढूँढ़ने लगे, “वह आदमी कहाँ है?”
12 लोगों के बीच उसके बारे में बहुत-सी दबी-दबी बातें हो रही थीं। कुछ कह रहे थे, “वह अच्छा आदमी है।” दूसरे कह रहे थे, “नहीं, वह आदमी अच्छा नहीं है। वह लोगों को गुमराह करता है।”+
13 मगर यहूदियों के डर से कोई भी सबके सामने उसके बारे में बात नहीं करता था।+
14 जब त्योहार के आधे दिन बीत चुके, तो यीशु मंदिर में गया और सिखाने लगा।
15 इसलिए यहूदी ताज्जुब करने लगे और कहने लगे, “इस आदमी को शास्त्र* का इतना ज्ञान कहाँ से मिला?+ इसने तो कभी धर्म गुरुओं के स्कूलों* में पढ़ाई भी नहीं की!”+
16 यीशु ने उन्हें जवाब दिया, “जो मैं सिखाता हूँ वह मेरी तरफ से नहीं बल्कि उसकी तरफ से है जिसने मुझे भेजा है।+
17 अगर कोई परमेश्वर की मरज़ी पूरी करना चाहता है, तो वह जान लेगा कि मैं जो सिखा रहा हूँ वह परमेश्वर की तरफ से है+ या मेरे अपने विचार हैं।
18 जो अपने विचार सिखाता है, वह अपनी बड़ाई चाहता है। मगर जो अपने भेजनेवाले की बड़ाई चाहता है+ वह सच्चा है और उसमें झूठ नहीं।
19 मूसा ने तुम्हें कानून दिया था न?+ लेकिन तुममें से कोई भी उस कानून को नहीं मानता। तुम मुझे क्यों मार डालना चाहते हो?”+
20 भीड़ ने उसे जवाब दिया, “तेरे अंदर दुष्ट स्वर्गदूत है। कौन तुझे मार डालना चाहता है?”
21 यीशु ने उनसे कहा, “मैंने बस एक काम किया और तुम सब ताज्जुब कर रहे हो।
22 इसलिए इस बात पर गौर करो, मूसा ने तुम्हें खतने की आज्ञा दी थी+ (वह आज्ञा मूसा के ज़माने से नहीं, बल्कि हमारे पुरखों के ज़माने से थी)+ और तुम सब्त के दिन भी आदमी का खतना करते हो।
23 अगर सब्त के दिन एक आदमी का खतना इसलिए किया जाता है कि मूसा का कानून न टूटे, तो तुम इस बात को लेकर मुझ पर आग-बबूला क्यों हो रहे हो कि मैंने सब्त के दिन एक आदमी को पूरी तरह तंदुरुस्त किया है?+
24 जो दिखता है सिर्फ उसके हिसाब से न्याय मत करो, बल्कि सच्चाई से न्याय करो।”+
25 तब यरूशलेम के कुछ लोग कहने लगे, “यह वही आदमी है न जिसे वे मार डालना चाहते हैं?+
26 फिर भी देखो! वह लोगों के सामने खुल्लम-खुल्ला बातें कर रहा है और वे उसे कुछ भी नहीं कहते। कहीं ऐसा तो नहीं कि धर्म-अधिकारियों को यकीन हो गया है कि यही मसीह है?
27 मगर हम तो जानते हैं कि यह आदमी कहाँ का है।+ लेकिन जब मसीह आएगा तो कोई नहीं जान पाएगा कि वह कहाँ का है।”
28 फिर जब यीशु मंदिर में सिखा रहा था तो उसने ऊँची आवाज़ में कहा, “तुम मुझे जानते हो और यह भी जानते हो कि मैं कहाँ का हूँ। मैं अपनी मरज़ी से नहीं आया,+ बल्कि जिसने मुझे भेजा है वह सचमुच वजूद में है और तुम उसे नहीं जानते।+
29 मैं उसे जानता हूँ+ क्योंकि मैं उसकी तरफ से आया हूँ और उसी ने मुझे भेजा है।”
30 तब वे उसे किसी तरह पकड़ने का मौका ढूँढ़ने लगे,+ मगर किसी ने भी उसे हाथ नहीं लगाया क्योंकि उसका वक्त अब तक नहीं आया था।+
31 फिर भी भीड़ में से बहुतों ने उस पर विश्वास किया+ और कहा, “जब मसीह आता तो बहुत-से चमत्कार करता, है कि नहीं? इस आदमी ने क्या कम चमत्कार किए हैं?”
32 फरीसियों ने सुना कि भीड़ उसके बारे में ये बातें बुदबुदा रही है। और प्रधान याजकों और फरीसियों ने यीशु को पकड़ने* के लिए पहरेदार भेजे।
33 तब यीशु ने कहा, “जिसने मुझे भेजा है उसके पास जाने से पहले मैं तुम्हारे साथ कुछ वक्त और रहूँगा।+
34 तुम मुझे ढूँढ़ोगे मगर नहीं पाओगे और जहाँ मैं रहूँगा वहाँ तुम नहीं आ सकते।”+
35 इसलिए यहूदी आपस में कहने लगे, “यह आदमी कहाँ जाना चाहता है कि हम उसे ढूँढ़ न सकें? यह उन यहूदियों के पास तो नहीं जाना चाहता जो यूनानियों के बीच तितर-बितर होकर रहते हैं? कहीं यह यूनानियों को तो नहीं सिखाना चाहता?
36 यह क्या बोल रहा है, ‘तुम मुझे ढूँढ़ोगे मगर नहीं पाओगे और जहाँ मैं रहूँगा वहाँ तुम नहीं आ सकते’?”
37 फिर त्योहार के आखिरी दिन जो सबसे खास दिन होता है,+ यीशु खड़ा हुआ और उसने ज़ोर से कहा, “अगर कोई प्यासा हो तो मेरे पास आए और पानी पीए।+
38 जो मुझ पर विश्वास करता है, ‘उसके दिल की गहराइयों से जीवन देनेवाले पानी की धाराएँ बहेंगी,’ जैसा शास्त्र में भी कहा गया है।”+
39 यह बात उसने पवित्र शक्ति के बारे में कही जो यीशु पर विश्वास करनेवालों को मिलनेवाली थी। उन्हें अब तक पवित्र शक्ति नहीं मिली थी+ क्योंकि यीशु ने अब तक महिमा नहीं पायी थी।+
40 जब भीड़ के कुछ लोगों ने ये बातें सुनीं, तो वे कहने लगे, “यह सचमुच वही भविष्यवक्ता है जो आनेवाला था।”+
41 दूसरे कह रहे थे, “यही मसीह है।”+ मगर कुछ लोग कह रहे थे, “मसीह तो गलील से नहीं आएगा, है कि नहीं?+
42 क्या शास्त्र यह नहीं कहता कि मसीह दाविद के वंश से+ और दाविद के गाँव बेतलेहेम+ से आएगा?”+
43 इसलिए यीशु की वजह से भीड़ में फूट पड़ गयी।
44 उनमें से कुछ उसे पकड़ना* चाहते थे, फिर भी किसी ने उसे छुआ तक नहीं।
45 पहरेदार, प्रधान याजकों और फरीसियों के पास खाली हाथ लौट आए। तब उन्होंने पहरेदारों से पूछा, “तुम उसे पकड़कर क्यों नहीं लाए?”
46 पहरेदारों ने कहा, “आज तक किसी भी इंसान ने उसकी तरह बात नहीं की।”+
47 तब फरीसियों ने उनसे कहा, “कहीं तुम भी तो गुमराह नहीं हो गए?
48 क्या धर्म-अधिकारियों और फरीसियों में से एक ने भी उस पर विश्वास किया है?+
49 मगर ये लोग जो कानून की रत्ती-भर भी समझ नहीं रखते, शापित लोग हैं।”
50 तब नीकुदेमुस ने, जो इन धर्म-अधिकारियों में से एक था और पहले यीशु के पास आया था, उनसे कहा,
51 “हमारा कानून तब तक एक आदमी को दोषी नहीं ठहराता जब तक कि पहले उसकी सुन न ले और यह न जान ले कि वह क्या कर रहा है। क्या ऐसा नहीं है?”+
52 उन्होंने नीकुदेमुस से कहा, “कहीं तू भी तो गलील का नहीं? शास्त्र में ढूँढ़ और देख कि कोई भी भविष्यवक्ता गलील से नहीं आएगा।”*
कई फुटनोट
^ या “छप्परों।”
^ यानी रब्बियों के स्कूलों।
^ शा., “लेखनों।”
^ या “गिरफ्तार करने।”
^ या “गिरफ्तार करना।”
^ कई पुरानी और जानी-मानी हस्तलिपियों में यूह 7:53 से 8:11 तक की आयतें नहीं पायी जातीं।