यहोशू 24:1-33
24 इसके बाद, यहोशू ने इसराएल के सभी गोत्रों को शेकेम में इकट्ठा किया और उनके मुखियाओं, प्रधानों, न्यायियों और अधिकारियों को बुलाया।+ और वे आकर सच्चे परमेश्वर के सामने खड़े हुए।
2 यहोशू ने उन सबसे कहा, “इसराएल का परमेश्वर यहोवा कहता है, ‘बहुत अरसे पहले तुम्हारे बाप-दादा+ महानदी के उस पार* रहते थे+ और दूसरे देवताओं की उपासना करते थे।+ इनमें से एक तिरह था जो अब्राहम और नाहोर का पिता था।
3 फिर मैं तुम्हारे पुरखा अब्राहम+ को महानदी* के उस पार से ले आया और उसे पूरे कनान देश का दौरा करवाया। मैंने उसके वंश को बढ़ाया।+ मेरी आशीष से वह इसहाक का पिता बना।+
4 मैंने इसहाक को दो बेटे दिए, याकूब और एसाव।+ आगे चलकर मैंने एसाव को सेईर पहाड़ का इलाका दिया कि वह उसकी जागीर बन जाए।+ और याकूब और उसके बेटे मिस्र चले गए।+
5 फिर मैंने मूसा और हारून को भेजा+ और मिस्र पर तरह-तरह के कहर ढाए+ और तुम इसराएलियों को वहाँ से निकाल ले आया।
6 जब तुम्हारे बाप-दादा मिस्र से निकलकर+ लाल सागर के पास आए, तो मिस्री सेना अपने रथों और घुड़सवारों के साथ उनका पीछा करते हुए वहाँ आ गयी।+
7 तब वे मुझ यहोवा को ज़ोर-ज़ोर से पुकारने लगे।+ इसलिए मैंने उनके और मिस्रियों के बीच एक काला बादल ठहराया। फिर मैंने सागर का पानी मिस्रियों पर छोड़ दिया और उन्हें डुबा दिया।+ इसराएलियों ने खुद देखा था कि मैंने मिस्र में क्या-क्या किया।+ इसके बाद तुम कई सालों* तक वीराने में रहे।+
8 फिर मैं तुम्हें यरदन के उस पार* ले आया जहाँ एमोरी लोग रहते थे और उन्होंने तुमसे युद्ध किया।+ लेकिन मैंने उन्हें तुम्हारे हाथ कर दिया ताकि तुम उनके इलाके पर कब्ज़ा करके उसमें बस जाओ। मैंने उन्हें तुम्हारे सामने से मिटा डाला।+
9 इसके बाद, सिप्पोर का बेटा और मोआब का राजा बालाक, इसराएल से लड़ने के लिए तुम्हारे खिलाफ उठा। उसने बओर के बेटे बिलाम को बुलाया कि वह तुम्हें शाप दे।+
10 मगर मैंने बिलाम की नहीं सुनी।+ मैंने उसी के मुँह से तुम्हें बार-बार आशीर्वाद दिलवाया+ और तुम्हें उसके हाथ से छुड़ाया।+
11 फिर तुम यरदन पार करके यरीहो में आए।+ यरीहो के अगुवों,* एमोरियों, परिज्जियों, कनानियों, हित्तियों, गिरगाशियों, हिव्वियों और यबूसियों ने तुमसे युद्ध किया। मगर मैंने उन्हें तुम्हारे हवाले कर दिया।+
12 तुम्हारे वहाँ जाने से पहले ही मैंने उनका हौसला तोड़ दिया।* और जैसे तुमने एमोरियों के दोनों राजाओं को खदेड़ा था उसी तरह तुमने उन्हें भी खदेड़ डाला।+ मगर यह जीत तुम्हें अपनी तलवार और धनुष के दम पर नहीं मिली।+
13 इस तरह मैंने तुम्हें ऐसा देश दिया जिसके लिए तुमने कोई मेहनत नहीं की और न ही तुमने इसके शहर खड़े किए।+ तुम सिर्फ यहाँ आए और रहने लगे। और अंगूरों और जैतून के जो बाग तुमने नहीं लगाए, उनके फल खाने लगे।’+
14 इसलिए यहोवा से डरो, निर्दोष और विश्वासयोग्य बने रहकर* उसकी सेवा करो।+ उन देवताओं की मूरतों को निकाल फेंको जिनकी उपासना तुम्हारे बाप-दादा महानदी * के उस पार और मिस्र में करते थे।+ और यहोवा की उपासना करो।
15 लेकिन अगर तुम यहोवा की सेवा नहीं करना चाहते, तो आज चुन लो कि तुम किसकी सेवा करोगे।+ क्या उन देवताओं की जिन्हें तुम्हारे बाप-दादा महानदी * के उस पार पूजते थे?+ या एमोरियों के देवताओं की, जिनके इलाके में तुम रह रहे हो?+ मगर मैंने और मेरे घराने ने ठान लिया है कि हम यहोवा की सेवा करेंगे।”
16 इस पर लोगों ने कहा, “हम यहोवा को छोड़ दूसरे देवताओं की उपासना करने की सोच भी नहीं सकते।
17 हमारे परमेश्वर यहोवा ने ही हमें और हमारे बाप-दादा को गुलामी के घर, मिस्र देश से आज़ाद किया।+ उसने हमारी आँखों के सामने बड़े-बड़े चमत्कार किए।+ वह पूरे रास्ते हमारी हिफाज़त करता रहा और हम जिन-जिन लोगों के बीच से होकर गए, उनसे हमें बचाता रहा।+
18 इस देश में हमसे पहले जितने भी एमोरी और दूसरे लोग रहते थे, यहोवा ने उन सबको खदेड़ दिया। इसलिए हम भी यहोवा की सेवा करेंगे क्योंकि वही हमारा परमेश्वर है।”
19 तब यहोशू ने लोगों से कहा, “क्या तुम सचमुच यहोवा की सेवा कर पाओगे? वह एक पवित्र परमेश्वर है+ और माँग करता है कि सिर्फ उसी की भक्ति की जाए।+ वह तुम्हारे अपराधों* और पापों को माफ नहीं करेगा।+
20 अगर तुम यहोवा को छोड़ पराए देवताओं की उपासना करने लगो, तो वह तुम्हारे खिलाफ हो जाएगा और तुम्हें पूरी तरह मिटा डालेगा, फिर चाहे उसने तुम्हारे लिए भलाई क्यों न की हो।”+
21 लोगों ने यहोशू से कहा, “हम सिर्फ यहोवा की सेवा करेंगे।”+
22 तब यहोशू ने उनसे कहा, “तुम इस बात के गवाह हो कि तुमने खुद अपनी मरज़ी से यहोवा की सेवा करने का चुनाव किया है।”+ उन्होंने कहा, “हाँ, हम इस बात के गवाह हैं।”
23 “तो फिर पराए देवताओं की मूरतें निकाल फेंको और अपना मन इसराएल के परमेश्वर यहोवा की ओर लगाओ।”
24 तब लोगों ने यहोशू से कहा, “हम अपने परमेश्वर यहोवा की सेवा करेंगे और उसी की बात मानेंगे।”
25 उस दिन शेकेम में यहोशू ने लोगों के साथ एक करार किया और इस करार को मानने के लिए उन्हें कुछ नियम और न्याय-सिद्धांत दिए।
26 यहोशू ने ये बातें परमेश्वर के कानून की किताब+ में लिखीं। फिर उसने एक बड़ा पत्थर लिया+ और उसे यहोवा की पवित्र जगह के पास एक बड़े पेड़ के नीचे खड़ा किया।
27 यहोशू ने लोगों से कहा, “देखो, यह पत्थर गवाह है+ क्योंकि यहोवा ने इसी के सामने हमसे ये सारी बातें कही हैं। अगर तुम अपने परमेश्वर को ठुकरा दोगे, तो यह पत्थर तुम्हारे खिलाफ गवाह ठहरेगा।”
28 फिर यहोशू ने लोगों को विदा किया और वे अपने-अपने इलाके में लौट गए।+
29 इसके बाद यहोवा के सेवक, नून के बेटे यहोशू की मौत हो गयी। वह 110 साल का था।+
30 लोगों ने उसे तिमनत-सेरह में दफनाया। यह जगह एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश में गाश पहाड़ के उत्तर में थी और यहोशू को दिए इलाके में आती थी।+
31 इसराएली, यहोशू के जीते-जी यहोवा की उपासना करते रहे और उन मुखियाओं के दिनों में भी करते रहे, जो यहोशू के बाद ज़िंदा थे और जानते थे कि यहोवा ने इसराएलियों के लिए क्या-क्या काम किए हैं।+
32 इसराएली मिस्र से यूसुफ की जो हड्डियाँ लाए थे,+ वे उन्होंने शेकेम में ज़मीन के एक टुकड़े में दफना दीं। यह ज़मीन याकूब ने हमोर के बेटों (हमोर के एक बेटे का नाम शेकेम था) से चाँदी के 100 टुकड़ों में खरीदी थी।+ यह ज़मीन यूसुफ के बेटों की जागीर बन गयी।+
33 हारून के बेटे एलिआज़र की भी मौत हो गयी।+ और लोगों ने उसे ‘फिनेहास की पहाड़ी’ पर दफनाया, जो उसके बेटे फिनेहास+ को एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश में दी गयी थी।
कई फुटनोट
^ यानी फरात नदी के पूरब में।
^ यानी फरात नदी।
^ शा., “दिनों।”
^ यानी पूरब में।
^ या शायद, “ज़मींदारों।”
^ या शायद, “उनमें डर; आतंक फैला दिया।”
^ या “सच्चाई से।”
^ यानी फरात नदी।
^ यानी फरात नदी।
^ या “तुम्हारी बगावत।”