अय्यूब 12:1-25
12 तब अय्यूब ने जवाब दिया,
2 “हाँ-हाँ, सारी बुद्धि तुम लोगों को ही मिली है!तुम मर गए तो इस दुनिया से बुद्धि ही मिट जाएगी!
3 लेकिन मुझमें भी समझ है,
मैं किसी भी तरह तुमसे कम नहीं।
जो बातें तुमने कहीं, वह कौन नहीं जानता?
4 मैं अपने साथियों के बीच मज़ाक बनकर रह गया हूँ,+मैं परमेश्वर से दुआ करता हूँ, चाहता हूँ कि वह मेरी सुने।+
यह ज़माना मुझ जैसे नेक और निर्दोष इंसान की खिल्ली उड़ाता है।
5 बेफिक्र इंसान सोचता है बरबादी उसे छू भी नहीं सकती,यह सिर्फ उन पर आती है जिनके कदम लड़खड़ा* जाते हैं।
6 लुटेरे अपने डेरों में चैन से रहते हैं,+जो परमेश्वर का क्रोध भड़काते हैं वे उतने ही महफूज़ हैं+जितने वे लोग, जो अपने देवता की मूरतें लिए फिरते हैं।
7 लेकिन ज़रा जानवरों से पूछो, वे तुमसे कहेंगे,आसमान के पंछियों से पूछो, वे तुम्हें बताएँगे,
8 धरती को ध्यान से देखो,* वह तुम्हें समझाएगी,समुंदर की मछलियाँ भी तुम्हें सिखाएँगी।
9 इनमें से ऐसा कौन है जो यह न जानता होकि यहोवा ने ही उसे अपने हाथों से रचा है?
10 हर किसी* की जान,हर इंसान के जीवन की साँस उसी के हाथ में है।+
11 जैसे जीभ से खाना चखा जाता है,वैसे ही क्या कानों से बातों को नहीं परखा जाता?+
12 क्या बुद्धि, बड़े-बूढ़ों में नहीं पायी जाती?+क्या समझ उनमें नहीं होती जिन्होंने लंबी उम्र देखी है?
13 परमेश्वर के पास बुद्धि और ताकत है,+उसमें समझ है+ और वह अपना मकसद ठहराता है।
14 वह जिसे ढा दे, उसे खड़ा नहीं किया जा सकता,+वह जिसे बंद कर दे, उसे कोई इंसान खोल नहीं सकता।
15 अगर वह पानी रोक दे, तो सूखा पड़ जाए+और अगर उसे छोड़ दे, तो धरती ही डूब जाए।+
16 उसमें शक्ति है और वह ऐसी बुद्धि देता है जो फायदेमंद होती है,+गुमराह करनेवाले और गुमराह होनेवाले, दोनों उसके हाथ में हैं।
17 वह सलाहकारों से उनका सबकुछ छीन लेता है*और बड़े-बड़े न्यायियों को मूर्ख बना देता है।+
18 वह उन बंधनों को खोल देता है, जिन्हें राजाओं ने बाँधा है+और उनकी कमर में कमरबंद कस देता है।
19 धर्म के अगुवों को नंगे पाँव चलाता है,+जो सत्ता जमाए बैठे हैं, उन्हें गद्दी से उतार देता है।+
20 वह भरोसेमंद सलाहकारों को चुप करा देता हैऔर बुज़ुर्गों* से उनकी समझदारी छीन लेता है।
21 वह रुतबेदार लोगों का अपमान करवाता है,+ताकतवरों को कमज़ोर बना देता है।*
22 वह गहरे राज़ पर से परदा उठाता है,+घोर अंधकार को रौशनी में लाकर खड़ा कर देता है।
23 वह राष्ट्रों को शक्तिशाली बनने देता है, फिर उन्हें मिटा देता है,वह उन्हें बढ़ने देता है, फिर उनके लोगों को बँधुआई में भेज देता है।
24 वह अगुवों से समझ रखनेवाला मन छीन लेता है,उन्हें वीरानों में भटकाता है जहाँ कोई रास्ता नहीं।+
25 घुप अँधेरे में वे टटोलते फिरते हैं,+वह उनका हाल लड़खड़ाते शराबियों जैसा बना देता है।+
कई फुटनोट
^ या “फिसल।”
^ या शायद, “धरती से बात करो।”
^ या “इंसान।”
^ शा., “को नंगे पाँव चलाता है।”
^ या “मुखियाओं।”
^ शा., “के कमरबंद ढीले कर देता है।”