यीशु की तरह हिम्मत और समझदारी दिखाइए
“हालाँकि तुमने मसीह को कभी नहीं देखा, फिर भी तुम उससे प्यार करते हो। हालाँकि तुम उसे अभी नहीं देखते फिर भी तुम उस पर विश्वास दिखाते हो।”—1 पत. 1:8.
1, 2. (क) हम हमेशा की ज़िंदगी कैसे पा सकते हैं? (ख) बिना ध्यान भटकाए अपना सफर पूरा करने में क्या बात हमारी मदद कर सकती है?
जब हम सच्चाई में आते हैं, तो एक तरह से हम एक नया सफर शुरू करते हैं। अगर हमें इस सफर पर बने रहना है और अपनी मंज़िल तक पहुँचना है, तो ज़रूरी है कि हम परमेश्वर के वफादार बने रहें। तभी हम हमेशा की ज़िंदगी पा सकेंगे, फिर चाहे वह स्वर्ग में हो या धरती पर। यीशु ने कहा था: “जो अंत तक धीरज धरता है, वही उद्धार पाएगा।” (मत्ती 24:13) जी हाँ, अगर हम हमेशा की ज़िंदगी पाना चाहते हैं, तो ज़रूरी है कि हम “अंत तक” परमेश्वर के वफादार बने रहें, फिर यह अंत चाहे हमारी मौजूदा ज़िंदगी का हो या इस दुष्ट दुनिया का। लेकिन इस राह पर हमारा ध्यान भटकानेवाली चीज़ों की कमी नहीं है, इसलिए ज़रूरी है कि हम अपना ध्यान ज़रा भी भटकने न दें। (1 यूह. 2:15-17) तो फिर हम अपने सफर पर पूरा-पूरा ध्यान कैसे लगाए रख सकते हैं?
2 बिना ध्यान भटकाए अपना सफर पूरा करने के मामले में यीशु ने हमारे लिए सबसे बेहतरीन मिसाल रखी। उसका यह सफर बाइबल में दर्ज़ किया गया है, जिसका अगर 1 पतरस 1:8, 9 पढ़िए।) याद कीजिए कि प्रेषित पतरस ने कहा था कि यीशु हमारे लिए एक आदर्श छोड़ गया, ताकि हम उसके नक्शे-कदम पर नज़दीकी से चल सकें। (1 पत. 2:21) अगर हम यीशु के नक्शे-कदम पर नज़दीकी से चलें, तो हमें अपने विश्वास का “इनाम” ज़रूर मिलेगा, और वह है हमारा उद्धार। * पिछले लेख में हमने सीखा था कि हम यीशु की तरह नम्रता और कोमलता कैसे दिखा सकते हैं। इस लेख में हम सीखेंगे कि हम यीशु की तरह हिम्मत और समझदारी कैसे दिखा सकते हैं।
हम अध्ययन करें, तो हम जान पाएँगे कि यीशु किस तरह का शख्स है। नतीजा, हम उससे प्यार करने और उस पर विश्वास दिखाने के लिए उभारे जाएँगे। (यीशु हिम्मत दिखाता है
3. (क) हिम्मत क्या है? (ख) हम हिम्मत कैसे पा सकते हैं?
3 हिम्मत एक तरह का आत्म-विश्वास है, जो हमें अंदर से मज़बूत कर सकता है और मुश्किलों के बावजूद डटे रहने में हमारी मदद कर सकता है। हिम्मत हमें सच्चाई के पक्ष में खड़े रहने में भी मदद देती है। इसके अलावा, हिम्मत हमें आज़माइशों के दौर में शांत बने रहने और परमेश्वर के वफादार बने रहने में भी मदद दे सकती है। हिम्मत का सीधा ताल्लुक डर, आशा और प्यार से है। वह कैसे? जब हमारे अंदर यह डर होगा कि हम अपने कामों से परमेश्वर को नाखुश न करें, तो हम इंसानों के डर को खुद पर हावी नहीं होने देंगे। (1 शमू. 11:7; नीति. 29:25) यहोवा पर आशा रखने से हमें मदद मिलेगी कि हम अपना ध्यान अपनी परीक्षाओं के बजाय भविष्य में मिलनेवाले इनाम पर लगाएँ। (भज. 27:14) और निस्वार्थ प्यार हमें उभारेगा कि हम सताए जाने पर भी हिम्मत दिखाते रहें। (यूह. 15:13) अगर हम परमेश्वर पर भरोसा रखें और उसके बेटे की मिसाल पर चलें, तो हमें हिम्मत मिलेगी।—भज. 28:7.
4. यीशु ने मंदिर में हिम्मत कैसे दिखायी? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
4 जब यीशु सिर्फ 12 साल का था, तब भी उसने हिम्मत दिखायी थी। गौर कीजिए कि एक बार जब वह ‘मंदिर में शिक्षकों के बीच बैठा था,’ तब क्या हुआ। (लूका 2:41-47 पढ़िए।) ये शिक्षक न सिर्फ मूसा के कानून से, बल्कि इंसानों की बनायी यहूदी परंपराओं से भी अच्छी तरह वाकिफ थे। इन परंपराओं ने आम लोगों के लिए कानून को मानना मुश्किल बना दिया था। लेकिन क्या यीशु खुद को इन बड़े-बड़े दिग्गजों से घिरा हुआ पाकर सहम गया था? हरगिज़ नहीं। बाइबल बताती है कि उल्टा वह उनसे “सवाल कर रहा था।” हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि यीशु ने उनसे बच्चों जैसे सवाल नहीं किए होंगे, बल्कि ऐसे-ऐसे सवाल किए होंगे, जिनसे वे सोचने पर मजबूर हो गए होंगे। और अगर उन शिक्षकों ने यीशु को फँसाने के लिए उससे कुछ पेचीदा सवाल भी पूछे हों, तो भी उनकी दाल नहीं गली। बाइबल कहती है कि जितने लोग उसकी बातें सुन रहे थे, जिनमें ये शिक्षक भी शामिल थे, “उसकी समझ और उसके जवाबों से रह-रहकर दंग हो रहे थे।” वाकई, हिम्मत के साथ सच्चाई का पक्ष लेने में यीशु ने क्या ही बढ़िया मिसाल रखी!
5. यीशु ने अपनी सेवा के दौरान किन अलग-अलग तरीकों से हिम्मत दिखायी?
5 यीशु ने अपनी सेवा के दौरान भी हिम्मत दिखायी थी। उसने ऐसा कई तरीकों से किया। उदाहरण के लिए, उसने हिम्मत के साथ कड़े शब्दों में धर्म-गुरुओं की झूठी शिक्षाओं का परदाफाश किया, जिनसे वे लोगों को बहका रहे थे। (मत्ती 23:13-36) साथ ही, उसने दुनिया के बुरे असर से खुद को भ्रष्ट नहीं होने दिया। (यूह. 16:33) वह विरोध के बावजूद प्रचार करने में लगा रहा। (यूह. 5:15-18; 7:14) और दो बार उसने हिम्मत दिखाते हुए सच्ची उपासना को दूषित करनेवाले व्यापारियों को बाहर खदेड़कर मंदिर को शुद्ध किया।—मत्ती 21:12, 13; यूह. 2:14-17.
6. धरती पर अपनी ज़िंदगी के आखिरी दिन यीशु ने कैसे हिम्मत दिखायी?
6 धरती पर अपनी ज़िंदगी के आखिरी दिन यीशु ने जिस तरह हिम्मत दिखायी, उस पर गौर करने से भी हमारा विश्वास मज़बूत होता है। यीशु जानता था कि यहूदा के धोखा देने के बाद उसके साथ क्या-क्या दर्दनाक घटनाएँ घटेंगी। फिर भी, फसह का भोज करते वक्त उसने यहूदा से कहा: “जो तू कर रहा है, उसे फौरन कर।” (यूह. 13:21-27) फिर गतसमनी के बाग में जब सैनिक उसे पकड़ने आए, तो यीशु ने बेधड़क होकर उनसे कहा कि तुम जिसे ढूँढ़ रहे हो, मैं वही हूँ। हालाँकि उसकी जान खतरे में थी, फिर भी उसने अपने चेलों की हिफाज़त की और सैनिकों से कहा: “इन्हें जाने दो।” (यूह. 18:1-8) इसके बाद, जब उसे महासभा में पेश किया गया, तो यीशु जानता था कि महायाजक उसे मौत के घाट उतारने के मौके की तलाश में है। फिर भी यीशु ने हिम्मत के साथ उनसे कहा कि वही मसीहा और परमेश्वर का बेटा है। (मर. 14:60-65) यीशु यातना की सूली पर अपनी मौत तक परमेश्वर का वफादार रहा। अपनी आखिरी साँस लेते हुए उसने ज़ोर से पुकारकर कहा: “पूरा हुआ!”—यूह. 19:28-30.
यीशु की हिम्मत की मिसाल पर चलिए
7. (क) जवानो, यहोवा का एक साक्षी कहलाने के बारे में आप कैसा महसूस करते हैं? (ख) आप कैसे दिखा सकते हैं कि आपमें हिम्मत है?
7 हम यीशु की तरह हिम्मत कैसे दिखा सकते हैं? स्कूल में। जवानो, आप तब हिम्मत दिखाते हैं जब आप अपने साथ पढ़नेवालों और दूसरों को बताते हैं कि आप यहोवा के साक्षी हैं, फिर भले ही वे आपका मज़ाक क्यों न उड़ाएँ। इस तरह, आप दिखाते हैं कि यहोवा के नाम से कहलाए जाना आप गर्व की बात समझते हैं। (भजन 86:12 पढ़िए।) कुछ लोग शायद आप पर विकासवाद की शिक्षा को मानने का दबाव डालें। लेकिन सृष्टि के बारे में बाइबल जो बताती है, उस पर यकीन करने की आपके पास ठोस वजह हैं। आप जीवन की शुरूआत ब्रोशर का इस्तेमाल करके उन लोगों को अपने विश्वास के बारे में बता सकते हैं, जो आपकी ‘आशा की वजह जानने की माँग करते हैं।’ (1 पत. 3:15) इससे आपको इस बात की संतुष्टि होगी कि आपने हिम्मत के साथ बाइबल की सच्चाई का पक्ष लिया है!
8. निडरता से प्रचार करने की हमारे पास क्या वजह हैं?
8 प्रचार में। सच्चे मसीही होने के नाते, हमें वचन सुनाने का अधिकार यहोवा से मिला है, इसलिए हमें निडरता से ऐसा करना चाहिए। (प्रेषि. 14:3) निडरता से प्रचार करने की हमारे पास क्या वजह हैं? हम जानते हैं कि जो हम प्रचार करते हैं, वह सच्चाई है, क्योंकि वह बाइबल पर आधारित है। (यूह. 17:17) हम यह भी जानते हैं कि “हम परमेश्वर के सहकर्मी हैं” और उसने हमारी मदद करने के लिए हमें अपनी पवित्र शक्ति दी है। (1 कुरिं. 3:9; प्रेषि. 4:31) इसके अलावा, यहोवा और लोगों के लिए प्यार हमें जोश के साथ लोगों को खुशखबरी सुनाने के लिए उभारता है। (मत्ती 22:37-39) जब हमारे पास हिम्मत से प्रचार करने की इतनी सारी वजह हैं, तो मजाल किसी की कि हमारा मुँह बंद करके दिखाए! हमने ठान लिया है कि हम लोगों को सच्चाई सिखाते रहेंगे और इस तरह उन धर्म-गुरुओं का परदाफाश करेंगे, जिन्होंने लोगों की आँखों पर पट्टी बाँध रखी है। (2 कुरिं. 4:4) चाहे लोग हमारा विरोध करें या हम पर ज़ुल्म ढाएँ, हम खुशखबरी का ऐलान करना हरगिज़ नहीं छोड़ेंगे!—1 थिस्स. 2:1, 2.
9. परीक्षाओं का सामना करते वक्त हम हिम्मत कैसे दिखा सकते हैं?
9 परीक्षाओं का सामना करते वक्त। जब हम परमेश्वर पर भरोसा रखते हैं, तो वह हमें मुश्किलों का सामना करने के लिए विश्वास और हिम्मत देता है। जब हमारे किसी अपने की मौत हो जाती है, तो हमें दुख तो ज़रूर होता है, लेकिन हम हिम्मत नहीं हारते। हम यकीन रखते हैं कि “हर तरह का दिलासा देनेवाला परमेश्वर” हमें ताकत देगा। (2 कुरिं. 1:3, 4; 1 थिस्स. 4:13) जब हमें कोई गंभीर बीमारी हो जाती है या हम ज़ख्मी हो जाते हैं, तो हमें शायद बहुत तकलीफ हो, लेकिन ऐसे में भी हम अपने विश्वास के साथ समझौता नहीं करते। हम ऐसा कोई इलाज नहीं करवाते, जो बाइबल के सिद्धांतों के मुताबिक नहीं है। (प्रेषि. 15:28, 29) जब हम बहुत निराश हो जाते हैं, तो हो सकता है ‘हमारा दिल हमें दोषी ठहराए,’ लेकिन तब भी हम हार नहीं मानते। हम यहोवा पर भरोसा रखते हैं, जो “टूटे मनवालों के समीप रहता है।” *—1 यूह. 3:19, 20; भज. 34:18.
यीशु समझदार है
10. (क) समझदारी क्या है? (ख) एक समझदार मसीही कैसे बात करता और पेश आता है?
10 समझदारी का मतलब है, सही-गलत के बीच फर्क करने और फिर सही फैसला लेने की काबिलीयत। (इब्रा. 5:14) इसे परख-शक्ति या सोचने-समझने की शक्ति भी कहा जाता है। एक समझदार मसीही ऐसे फैसले लेता है, जिससे परमेश्वर के साथ उसका रिश्ता मज़बूत हो। वह अपनी बातों और कामों से यहोवा को खुश करने की कोशिश करता है। ऐसा व्यक्ति अपनी बातों से दूसरों को ठेस नहीं पहुँचाता, बल्कि उन्हें लिहाज़ दिखाता है। (नीति. 11:12, 13) वह “क्रोध पर नियन्त्रण” रखता है। (नीति. 16:32, हिंदी ईज़ी-टू-रीड वर्शन) वह “सीधी चाल चलता है,” यानी अपनी पूरी ज़िंदगी सही फैसले लेता है। (नीति. 15:21) हम समझ कैसे हासिल कर सकते हैं? इसके लिए ज़रूरी है कि हम परमेश्वर के वचन का अध्ययन करें और सीखी बातों को लागू करें। (नीति. 2:1-5, 10, 11) इसके अलावा, समझदारी दिखाने के मामले में रखी यीशु की सबसे बेहतरीन मिसाल का भी हम अध्ययन कर सकते हैं और उस पर चल सकते हैं।
11. यीशु ने अपनी बातों में समझदारी कैसे दिखायी?
11 यीशु ने हमेशा अपनी बातों और कामों में समझदारी दिखायी। अपनी बातों में। खुशखबरी का प्रचार करते वक्त वह हमेशा अपनी बातों से लोगों का दिल जीत लेता था, जिससे उसके सुननेवाले ताज्जुब करते थे। (मत्ती 7:28; लूका 4:22) वह अकसर शास्त्र से पढ़कर या उसका हवाला देकर अपनी बात कहता था। किस वक्त कौन-सी आयत इस्तेमाल करनी है यह वह अच्छी तरह जानता था। (मत्ती 4:4, 7, 10; 12:1-5; लूका 4:16-21) वह आयतें सिर्फ पढ़ता नहीं था या उनका हवाला ही नहीं देता था, मगर उनका मतलब भी समझाता था, और वह भी इस तरह जिससे लोगों के दिल पर गहरा असर हो। मिसाल के लिए, अपने पुनरुत्थान के बाद, एक बार जब यीशु इम्माऊस जा रहे अपने दो चेलों से बात कर रहा था, तो उसने “सारे शास्त्र में जितनी भी बातें उसके बारे में लिखी थीं, उन सबका मतलब उन्हें खोलकर समझाया।” चेलों ने बाद में कहा: “जब वह . . . शास्त्र का मतलब हमें खोल-खोलकर समझा रहा था, तो क्या हमारे दिल की धड़कनें तेज़ नहीं हो गयी थीं?”—लूका 24:27, 32.
12, 13. कौन-सी मिसालें दिखाती हैं कि यीशु क्रोध पर नियन्त्रण रखनेवाला और दूसरों को लिहाज़ दिखानेवाला शख्स था?
12 अपनी भावनाओं और रवैए में। समझदारी के गुण ने यीशु को अपने “क्रोध पर नियन्त्रण” रखने में मदद दी। (नीति. 16:32, हिंदी ईज़ी-टू-रीड वर्शन) वह अपनी भावनाओं पर काबू रख पाता था और वह “कोमल-स्वभाव” का था। (मत्ती 11:29) अपने चेलों की खामियों के बावजूद, यीशु हमेशा उनके साथ सब्र से पेश आया। (मर. 14:34-38; लूका 22:24-27) और जब उसके साथ बुरा सुलूक किया गया, तब भी वह शांत रहा।—1 पत. 2:23.
13 समझदारी के गुण ने यीशु को लिहाज़ दिखाने में भी मदद दी। वह सिर्फ मूसा के कानून को ही नहीं, बल्कि उसके पीछे छिपे सिद्धांतों को भी बखूबी समझता था, और उसी के मुताबिक दूसरों के साथ पेश आता था। उदाहरण के लिए, ज़रा उस स्त्री के बारे में सोचिए जिसे “खून बहने की बीमारी थी।” (मरकुस 5:25-34 पढ़िए।) उस स्त्री ने भीड़ में घुसकर यीशु के कपड़े को छूआ और वह ठीक हो गयी। देखा जाए तो मूसा के कानून के मुताबिक वह अशुद्ध थी, इसलिए उसे किसी को भी छूना नहीं चाहिए था। (लैव्य. 15:25-27) लेकिन फिर भी यीशु ने उसे डाँटा नहीं, क्योंकि वह जानता था कि “मूसा के कानून की ज़्यादा अहमियत रखनेवाली बातों” में “दया और विश्वासयोग्य” होना भी शामिल है। (मत्ती 23:23) इसलिए उसने प्यार से उससे कहा: “बेटी, तेरे विश्वास ने तुझे ठीक किया है। तंदुरुस्त रह और यह दर्दनाक बीमारी तुझे फिर कभी न हो।” यह इस बात की क्या ही बेहतरीन मिसाल है कि कैसे समझदारी के गुण ने यीशु को दूसरों के लिए लिहाज़ दिखाने में मदद दी!
14. (क) यीशु ने क्या करने का चुनाव किया? (ख) वह प्रचार काम पर अपना पूरा ध्यान कैसे लगाए रख पाया?
14 अपने जीने के तरीके में। यीशु ने ज़िंदगी में सही चुनाव करके और उस पर बने रहकर भी समझदारी दिखायी। उसने खुशखबरी का प्रचार करने में खुद को पूरी तरह लगा दिया। (लूका 4:43) साथ ही, उसने अपनी ज़िंदगी में ऐसे फैसले लिए, जिनसे उसे अपने काम पर पूरा ध्यान लगाए रखने और उसे पूरा करने में मदद मिली। जैसे, उसने एक सादी ज़िंदगी जीने का चुनाव किया, ताकि वह अपना समय और अपनी ताकत प्रचार काम में लगा सके। (लूका 9:58) उसने अपने चेलों को तालीम देने की ज़रूरत महसूस की, ताकि उसकी मौत के बाद भी प्रचार काम जारी रह सके। (लूका 10:1-12; यूह. 14:12) और उसने अपने चेलों से वादा किया कि “दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्त तक” वह प्रचार काम में उनकी मदद करेगा।—मत्ती 28:19, 20.
यीशु की समझदारी की मिसाल पर चलिए
15. हम अपनी बातों में समझदारी कैसे दिखा सकते हैं?
15 हम यीशु की तरह समझदारी कैसे दिखा सकते हैं? अपनी बातों में। अपने भाई-बहनों से बात करते वक्त हम ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, जिनसे उनका हौसला बढ़े, न कि उन्हें ठेस पहुँचे। (इफि. 4:29) यही बात प्रचार काम पर भी लागू होती है। जब हम दूसरों को राज की खुशखबरी सुनाते हैं, तो हम समझदारी दिखाते हुए “सलोने” शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, ताकि घर-मालिक को ठेस न पहुँचे। (कुलु. 4:6) हम समझने की कोशिश करते हैं कि लोगों की ज़रूरतें क्या हैं या उन्हें किन बातों में दिलचस्पी है, और फिर उस हिसाब से अपने शब्दों का चुनाव करते हैं। हम हमेशा याद रखते हैं कि अगर हम सलोने शब्दों का इस्तेमाल करें, तो लोग हमारा संदेश सुनने के लिए अपने घर का ही नहीं, अपने दिल का दरवाज़ा भी खोलने के लिए राज़ी हो जाएँगे। इसके अलावा, जहाँ मुमकिन हो, हम दूसरों को अपने विश्वास के बारे में बताते वक्त बाइबल का इस्तेमाल करते हैं। इस तरह, हम दिखाते हैं कि हम जो भी बोल रहे हैं, वे हमारे नहीं, पर परमेश्वर के विचार हैं। हम जानते हैं कि परमेश्वर का वचन हमारी कही किसी भी बात से कहीं ज़्यादा ताकत रखता है।—इब्रा. 4:12.
16, 17. (क) हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम क्रोध करने में धीमे हैं और दूसरों का लिहाज़ करते हैं? (ख) हम प्रचार काम पर अपना पूरा ध्यान कैसे लगाए रख सकते हैं?
16 अपनी भावनाओं और रवैए में। समझदारी का गुण हमारी मदद करता है कि हम अपनी भावनाओं को काबू में रखें और ‘क्रोध करने में धीमे हों।’ (याकू. 1:19) जब लोग हमें ठेस पहुँचाते हैं, तो हम समझने की कोशिश करते हैं कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा या वे उस तरह क्यों पेश आए। इस तरह समझ से काम लेने से हमारा गुस्सा ठंडा हो सकता है और हमारे लिए उन्हें माफ करना आसान हो सकता है। (नीति. 19:11) समझदारी हमें दूसरों का लिहाज़ करने में भी मदद देती है। हम अपने भाई-बहनों से सिद्धता की उम्मीद नहीं करते। बल्कि हम याद रखते हैं कि हो सकता है वे कुछ ऐसी परेशानियों से गुज़र रहे हों, जिन्हें हम पूरी तरह नहीं समझ सकते। हम अपनी बात पर अड़े नहीं रहते, पर उनकी राय सुनने के लिए तैयार रहते हैं। और जब मुनासिब हो, तो उनकी राय को कबूल करते हैं।—फिलि. 4:5.
17 अपने जीने के तरीके में। हम जानते हैं कि यीशु के चेले होने के नाते, हमें खुशखबरी का प्रचार करने का जो सम्मान मिला है, उससे बढ़कर और कोई सम्मान नहीं। इसलिए हम ऐसे फैसले लेना चाहते हैं, जिनसे हमें प्रचार काम पर अपना पूरा ध्यान लगाए रखने में मदद मिले। हम यहोवा और उसकी उपासना को अपनी ज़िंदगी में सबसे पहली जगह देने का चुनाव करते हैं। हम एक सादगी-भरी ज़िंदगी जीते हैं, ताकि अंत आने से पहले हम अपना ज़्यादा-से-ज़्यादा समय और ताकत खुशखबरी का प्रचार करने में लगा सकें।—मत्ती 6:33; 24:14.
18. (क) हम हमेशा की ज़िंदगी के अपने सफर पर कैसे बने रह सकते हैं? (ख) और आपने क्या करते रहने की ठान ली है?
18 यीशु के कुछ खूबसूरत गुणों के बारे में सीखना क्या ही मज़ेदार रहा! सोचिए यीशु के दूसरे गुणों के बारे में अध्ययन करना और उन पर अमल करना कितना फायदेमंद साबित होगा! इसलिए आइए हम यीशु के नक्शे-कदम पर करीबी से चलते रहने की ठान लें। ऐसा करने से हम हमेशा की ज़िंदगी के अपने सफर पर बने रह पाएँगे और यहोवा के करीब आते जाएँगे।
^ पैरा. 2 पहला पतरस 1:8, 9 स्वर्ग जाने की आशा रखनेवाले मसीहियों के लिए लिखा गया था। लेकिन इन आयतों में दिया सिद्धांत उन मसीहियों पर भी लागू होता है, जिन्हें धरती पर हमेशा तक जीने की आशा है।
^ पैरा. 9 मुश्किलों के दौर में हिम्मत दिखानेवाले कुछ मसीहियों की मिसालों के लिए 1 दिसंबर, 2000 की प्रहरीदुर्ग के पेज 24-28; जुलाई-सितंबर, 2003 की सजग होइए! के पेज 20-23; और 22 जनवरी, 1995 की सजग होइए! (अँग्रेज़ी) के पेज 11-15 देखिए।