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हम प्रभु का संध्या भोज क्यों मनाते हैं

हम प्रभु का संध्या भोज क्यों मनाते हैं

“मेरी याद में ऐसा ही किया करना।”—1 कुरिं. 11:24.

1, 2. ईसवी सन्‌ 33 के निसान 14 की शाम को यीशु ने क्या किया? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

ईसवी सन्‌ 33 के निसान 14 की शाम है। यरूशलेम शहर पूर्णिमा के चाँद की मंद, हलकी रोशनी में नहा रहा है। यीशु की मौत को अब बस कुछ ही घंटे बचे हैं। वह और उसके चेले फसह का त्योहार मना चुके हैं। यह त्योहार इस बात की याद में मनाया जाता था कि कैसे 1,500 साल पहले यहोवा ने इसराएलियों को मिस्र से छुटकारा दिलाया था। अब यीशु अपने 11 वफादार प्रेषितों के साथ एक नए इंतज़ाम की शुरूआत करता है। वह उनके साथ एक खास भोज करता है, जिसे आगे चलकर उसकी मौत की याद में हर साल एक स्मारक के तौर पर मनाया जाएगा। *मत्ती 26:1, 2.

2 यीशु बिन-खमीर की एक रोटी लेता है और प्रार्थना में धन्यवाद देने के बाद उसे अपने प्रेषितों को यह कहते हुए देता है: “लो, खाओ।” फिर वह दाख-मदिरा का एक प्याला लेता है और एक बार फिर प्रार्थना में धन्यवाद देकर, प्रेषितों को वह प्याला देते हुए कहता है: “तुम सब इसमें से पीओ।” (मत्ती 26:26, 27) इसके बाद यीशु के पास उस यादगार रात को उनके साथ बाँटने के लिए और कोई खाने की चीज़ नहीं, मगर ढेर सारी बातें ज़रूर हैं।

3. इस लेख में किन सवालों पर चर्चा की जाएगी?

3 इस तरह यीशु ने अपनी मौत के स्मारक के इंतज़ाम की शुरूआत की और वह चाहता था कि उसके चेले हर साल उसकी याद में यह समारोह मनाएँ। इस समारोह को ‘प्रभु का संध्या-भोज’ भी कहा जाता है। (1 कुरिं. 11:20) इस समारोह के बारे में शायद कुछ लोग पूछें: हमें मसीह की मौत का स्मारक क्यों मनाना चाहिए? स्मारक में इस्तेमाल की जानेवाली रोटी और दाख-मदिरा का क्या मतलब है? हम स्मारक की तैयारी कैसे कर सकते हैं? स्मारक में किन्हें रोटी और दाख-मदिरा को खाने-पीने में हिस्सा लेना चाहिए? और मसीहियों को परमेश्वर से जो आशा मिली है, उसके लिए वे अपनी कदरदानी कैसे दिखाते हैं?

हम मसीह की मौत का स्मारक क्यों मनाते हैं

4. यीशु ने अपनी जान कुरबान करके हमारे लिए क्या रास्ता खोल दिया?

4 आदम की संतान होने की वजह से हमें पाप और मौत विरासत में मिली है और सभी इंसान इनकी गिरफ्त में हैं। (रोमि. 5:12) इस धरती पर ऐसा कोई इंसान नहीं, जो खुद को या दूसरों को इस गिरफ्त से आज़ाद कराने के लिए परमेश्वर को फिरौती दे सके। क्यों? क्योंकि सिर्फ सिद्ध व्यक्‍ति ही यह फिरौती दे सकता है, जबकि हम सभी असिद्ध हैं। (भज. 49:6-9) मगर यीशु इस धरती पर अकेला ऐसा व्यक्‍ति था, जो सिद्ध था और जो हमें इस गिरफ्त से छुड़ा सकता था। और वाकई उसने ऐसा किया। उसने हमारे लिए अपना सिद्ध जीवन कुरबान करके परमेश्वर को फिरौती का दाम चुकाया और हमें पाप और मौत की गिरफ्त से छुड़ाकर हमेशा की ज़िंदगी पाने का रास्ता खोल दिया।—रोमि. 6:23; 1 कुरिं. 15:21, 22.

5. (क) हम कैसे जानते हैं कि यहोवा और यीशु हमसे प्यार करते हैं? (ख) हमें स्मारक में क्यों हाज़िर होना चाहिए?

5 फिरौती का इंतज़ाम इस बात का सबूत है कि यहोवा परमेश्वर इंसानों से बहुत प्यार करता है। (यूह. 3:16) और हमारे लिए अपनी जान देकर यीशु ने साबित किया कि वह भी हमसे कितना प्यार करता है। और क्यों न हो, आखिर धरती पर आने से पहले, यीशु “मनुष्य जाति से प्रसन्न” जो था! (नीति. 8:30, 31, हिंदी—कॉमन लैंग्वेज) यहोवा और यीशु ने हमारे लिए जो किया है, उसकी हम दिल से कदर करते हैं! यही कदरदानी हमें उभारती है कि हम स्मारक में हाज़िर होकर यीशु की इस आज्ञा को मानें: “मेरी याद में ऐसा ही किया करना।”—1 कुरिं. 11:23-25.

स्मारक के प्रतीकों का क्या मतलब है

6. स्मारक में इस्तेमाल की जानेवाली रोटी और दाख-मदिरा के बारे में बाइबल क्या बताती है?

6 स्मारक के इंतज़ाम की शुरूआत करते वक्‍त यीशु ने चमत्कार करके रोटी को अपने शरीर में और दाख-मदिरा को अपने लहू में नहीं बदला। इसके बजाय, उसने रोटी के बारे में कहा: “यह मेरे शरीर का प्रतीक है।” और दाख-मदिरा के बारे में उसने कहा: “यह ‘करार के मेरे लहू’ का प्रतीक है जिसे बहुतों की खातिर बहाया जाना है।” (मर. 14:22-24) तो यह बात साफ है कि रोटी और दाख-मदिरा सिर्फ प्रतीक या निशानियाँ हैं।

7. बिन-खमीर की रोटी किसे दर्शाती है?

7 ईसवी सन्‌ 33 की उस यादगार शाम को यीशु ने फसह के भोज की बची हुई बिन-खमीर की रोटी का इस्तेमाल किया था। (निर्ग. 12:8) बाइबल में कभी-कभी शब्द खमीर का इस्तेमाल पाप को दर्शाने के लिए किया गया है। (मत्ती 16:6, 11, 12; लूका 12:1) तो यीशु के ज़रिए इस्तेमाल की गयी बिन-खमीर की रोटी, उसके शरीर को दर्शाती है, जिसमें कोई पाप नहीं था। (इब्रा. 7:26) इसलिए स्मारक में बिन-खमीर की रोटी इस्तेमाल की जाती है।

8. दाख-मदिरा किसे दर्शाती है?

8 उस मौके पर यीशु ने जिस दाख-मदिरा का इस्तेमाल किया था, वह उसके लहू को दर्शाती थी। आज स्मारक में इस्तेमाल की जानेवाली दाख-मदिरा भी इसी बात की निशानी है। यरूशलेम के बाहर गुलगुता नाम की जगह पर यीशु ने हमारे “पापों की माफी के लिए” अपना लहू बहाया था। (मत्ती 26:28; 27:33) अगर हमारे दिल में उस अनमोल तोहफे के लिए कदरदानी होगी, तो हम हर साल स्मारक के खास मौके के लिए निजी तौर पर तैयारी करेंगे। हम यह कैसे कर सकते हैं?

तैयारी करने के कुछ तरीके

9. (क) स्मारक की बाइबल पढ़ाई करना क्यों ज़रूरी है? (ख) आप फिरौती के इंतज़ाम के बारे में कैसा महसूस करते हैं?

9 तैयारी करने का एक तरीका है, रोज़ाना बाइबल वचनों पर ध्यान दीजिए पुस्तिका में जो स्मारक की बाइबल पढ़ाई दी जाती है, उसे पढ़ना। पढ़ने के बाद हम इस बात पर मनन कर सकते हैं कि यीशु ने अपनी मौत से पहले क्या-क्या किया था। इस तरह हम अपने दिल को स्मारक के लिए तैयार कर पाएँगे। * एक बहन ने लिखा, “हमें स्मारक का बेसब्री से इंतज़ार होता है। हर साल यह दिन हमारे लिए और भी खास बन जाता है। मुझे वह दिन आज भी याद है, जब . . . मैं शमशान में खड़ी अपने प्यारे पापा को देख रही थी। उस वक्‍त वाकई मैं फिरौती के इंतज़ाम के लिए दिल से शुक्रगुज़ार थी। . . . हाँ, मुझे इस बारे में सारी आयतें मुँह-ज़बानी याद थीं। मैं दूसरों को भी ये आयतें अच्छी तरह समझा सकती थी! लेकिन मेरे दिल में इस इंतज़ाम के लिए कदरदानी तब जाकर बढ़ी, जब उस दिन मौत की कड़वी सच्चाई से मेरा आमना-सामना हुआ। उस वक्‍त जब मैंने सोचा कि फिरौती का इंतज़ाम हमारे लिए क्या-क्या आशीषें लाएगा, तो मेरा दिल खुशी से उछला।” वाकई, स्मारक की तैयारी करते वक्‍त इस बात पर मनन करने से हमें बहुत फायदा होगा कि कैसे यीशु का फिरौती बलिदान हमें पाप और मौत की गिरफ्त से आज़ाद करेगा।

स्मारक के लिए अपने दिल को तैयार करने का एक तरीका है, दिए गए औज़ारों का इस्तेमाल करना (पैराग्राफ 9 देखिए)

10. स्मारक की तैयारी करने का एक और तरीका क्या है?

10 स्मारक की तैयारी करने का एक और तरीका है, प्रचार में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने की योजना बनाना। मिसाल के लिए, आप स्मारक के महीनों में सहयोगी पायनियर सेवा कर सकते हैं, ताकि आप ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को स्मारक में हाज़िर होने का न्यौता दे सकें। जब हम दूसरों को परमेश्वर, उसके बेटे और हमेशा की ज़िंदगी की आशा के बारे में बताते हैं, तो हमें इस बात की खुशी होती है कि हमने वही किया, जो परमेश्वर हमसे चाहता है।—भज. 148:12, 13.

11. कुरिंथ के कुछ मसीही किस तरह अयोग्य दशा में प्रतीकों को खा-पी रहे थे?

11 स्मारक की तैयारी करते वक्‍त उस बात पर मनन कीजिए, जो प्रेषित पौलुस ने कुरिंथ की मंडली को लिखी थी। (1 कुरिंथियों 11:27-34 पढ़िए।) पौलुस ने कहा कि अगर कोई व्यक्‍ति स्मारक के प्रतीकों को खाने-पीने में हिस्सा लेने के लायक नहीं है, लेकिन फिर भी वह उन्हें लेता है, तो वह “प्रभु [यीशु मसीह] के शरीर और लहू के मामले में दोषी ठहरेगा।” अभिषिक्‍त जन को चाहिए कि वह “पहले अपनी जाँच करे कि वह इस लायक है या नहीं” और फिर प्रतीकों को खाने-पीने में हिस्सा ले। जब कोई जाँच किए बगैर ही प्रतीकों को “खाता और पीता है तो खुद पर सज़ा लाता है।” पौलुस के ज़माने में कुरिंथ के ज़्यादातर मसीहियों का चालचलन ठीक नहीं था। उनके “बीच बहुत-से कमज़ोर और बीमार” थे और कई आध्यात्मिक “मौत की नींद सो रहे” थे। शायद, उनमें से कुछ तो स्मारक से पहले या स्मारक के दौरान इतना खा-पी लेते थे कि स्मारक मनाते वक्‍त वे न तो मानसिक तौर पर, न ही आध्यात्मिक तौर पर होश में होते थे। इसलिए जब ऐसी अयोग्य दशा में वे स्मारक के प्रतीकों को खाने-पीने में हिस्सा लेते थे, तो परमेश्वर उन्हें मंज़ूर नहीं करता था।

12. (क) पौलुस ने स्मारक की तुलना किस बात से की? (ख) उसने प्रतीकों में हिस्सा लेनेवालों को क्या चेतावनी दी? (ग) प्रतीकों में हिस्सा लेनेवाले व्यक्‍ति ने अगर कोई गंभीर पाप किया है, तो उसे क्या करना चाहिए?

12 स्मारक की तुलना भोज से करते हुए, पौलुस ने प्रतीकों को खाने-पीने में हिस्सा लेनेवालों को खबरदार किया: “तुम ऐसा नहीं कर सकते कि यहोवा के प्याले से पीओ और दुष्ट स्वर्गदूतों के प्याले से भी पीओ। तुम ऐसा नहीं कर सकते कि ‘यहोवा की मेज़’ से खाओ और दुष्ट स्वर्गदूतों की मेज़ से भी खाओ।” (1 कुरिं. 10:16-21) अगर स्मारक के प्रतीकों में हिस्सा लेनेवाले व्यक्‍ति ने कोई गंभीर पाप किया है, तो उसे प्राचीनों से मदद लेनी चाहिए। (याकूब 5:14-16 पढ़िए।) अगर उसके कामों से यह साबित होता है कि उसने सच्चे दिल से पश्‍चाताप किया है, तो स्मारक के प्रतीकों में हिस्सा लेकर वह यीशु के चढ़ाए बलिदान का अनादर नहीं कर रहा होगा।—लूका 3:8.

13. परमेश्वर से मिली अपनी आशा के बारे में प्रार्थना करना क्यों अच्छा होगा?

13 स्मारक की तैयारी करते वक्‍त अच्छा होगा अगर हम परमेश्वर से मिली अपनी आशा के बारे में गंभीरता से मनन और प्रार्थना करें। अगर हमारे पास इस बात के साफ सबूत नहीं हैं कि हम अभिषिक्‍त हैं और फिर भी अगर हम स्मारक के प्रतीकों में हिस्सा लें, तो हम यीशु के बलिदान का अनादर कर रहे होंगे। और यहोवा का कोई भी समर्पित सेवक और यीशु का कोई भी वफादार चेला ऐसा हरगिज़ नहीं करना चाहेगा। तो फिर सवाल उठता है कि हम कैसे पता लगा सकते हैं कि हम स्मारक के प्रतीकों को खाने-पीने में हिस्सा ले सकते हैं या नहीं?

प्रतीकों को खाने-पीने में किन्हें हिस्सा लेना चाहिए?

14. क्योंकि अभिषिक्‍त जन नए करार में शामिल हैं, इसलिए वे स्मारक में क्या करते हैं?

14 जो स्मारक के प्रतीकों को खाने-पीने में हिस्सा लेते हैं, उन्हें पूरा यकीन होता है कि वे नए करार में शामिल हैं। यीशु ने दाख-मदिरा के बारे में कहा था: “यह प्याला उस नए करार का प्रतीक है जो मेरे लहू के आधार पर बाँधा गया है।” (1 कुरिं. 11:25) यिर्मयाह नबी के ज़रिए यहोवा ने भविष्यवाणी की थी कि वह अपने लोगों के साथ एक नया करार करेगा, जो इसराएलियों के साथ किए कानून के करार की जगह लेगा। (यिर्मयाह 31:31-34 पढ़िए।) परमेश्वर ने अभिषिक्‍त मसीहियों के साथ यह नया करार किया। (गला. 6:15, 16) यीशु के फिरौती बलिदान ने इस नए करार को जायज़ ठहराया और उसके बहाए लहू के आधार पर यह करार लागू होना शुरू हुआ। (लूका 22:20) यीशु इस नए करार का बिचवई है और जो वफादार अभिषिक्‍त जन नए करार में शामिल हैं, वे यीशु के साथ स्वर्ग में राज करेंगे।—इब्रा. 8:6; 9:15.

15. (क) राज के करार में कौन शामिल हैं? (ख) अगर वे वफादार बने रहते हैं, तो उन्हें भविष्य में क्या सम्मान मिलेगा?

15 स्मारक के प्रतीकों को खाने-पीने में हिस्सा लेनेवालों को इस बात का भी पूरा यकीन होता है कि वे राज के करार में भी शामिल हैं। (लूका 12:32 पढ़िए।) यह करार यीशु और उसके वफादार अभिषिक्‍त चेलों के बीच किया गया था, जिन्होंने ‘उसके जैसी दुःख-तकलीफें सही’ थीं। (फिलि. 3:10) आज के वफादार अभिषिक्‍त मसीही भी इस करार में शामिल हैं। वे मसीह के साथ स्वर्ग में राजा बनकर हमेशा-हमेशा तक राज करेंगे। (प्रका. 22:5) इसलिए वे प्रभु के संध्या भोज में प्रतीकों को खाने-पीने में हिस्सा लेने के योग्य हैं।

16. चंद शब्दों में रोमियों 8:15-17 का मतलब समझाइए।

16 स्मारक के प्रतीकों को खाने-पीने में सिर्फ उन्हें हिस्सा लेना चाहिए, जिन्हें पवित्र शक्‍ति गवाही देती है कि वे परमेश्वर के बच्चे हैं। (रोमियों 8:15-17 पढ़िए।) गौर कीजिए कि पौलुस ने कहा कि अभिषिक्‍त जन यहोवा को “अब्बा” कहकर पुकारते हैं। “अब्बा” अरामी भाषा का शब्द है, जिसका मतलब है “हे पिता!” इस शब्द में “पापा” शब्द से झलकनेवाला अपनापन और “पिता” शब्द से झलकनेवाला गहरा आदर दोनों शामिल हैं। यह शब्द यहोवा और अभिषिक्‍त मसीहियों के बीच के खास रिश्ते को ज़ाहिर करता है। जब ‘पवित्र शक्‍ति उनका मार्गदर्शन करती है ताकि वे बेटों के नाते गोद लिए जाएँ,’ तब वे परमेश्वर के अभिषिक्‍त बच्चे बन जाते हैं। वे यहोवा के इतने करीब महसूस करते हैं कि वे उसे “अब्बा, हे पिता!” पुकारते हैं। परमेश्वर की पवित्र शक्‍ति उनके अंदर के एहसास के साथ मिलकर गवाही देती है, जिससे उनके मन में शक की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती कि वे यहोवा के अभिषिक्‍त बेटे हैं। ऐसा नहीं है कि धरती पर रहने का उनका मन नहीं है और इसलिए वे प्रतीकों को खाने-पीने में हिस्सा लेते हैं। नहीं, बल्कि वे जानते हैं कि “पवित्र परमेश्वर” यहोवा ने अपनी पवित्र शक्‍ति के ज़रिए उनका “अभिषेक” किया है। (1 यूह. 2:20) उन्हें पूरा यकीन है कि अगर वे आखिरी दम तक वफादार रहे, तो वे यीशु के साथ स्वर्ग में राजाओं के तौर पर ज़रूर राज करेंगे। आज यीशु के नक्शे-कदम पर चलनेवाले 1,44,000 चेलों में से सिर्फ कुछ ही जन धरती पर ज़िंदा बचे हैं।—प्रका. 14:1.

परमेश्वर से मिली आशा की कदर कीजिए

17. (क) अभिषिक्‍त जनों को क्या आशा है? (ख) उन्हें कैसे पता चलता है कि वे अभिषिक्‍त हैं?

17 अगर आप एक अभिषिक्‍त मसीही हैं, तो बेशक स्वर्ग में जीने की आशा आपकी निजी प्रार्थनाओं का एक अहम हिस्सा है। और बाइबल की कई आयतें आपके लिए खास मायने रखती हैं। मिसाल के लिए, जब आप बाइबल में यीशु और उसकी “दुल्हन” की स्वर्ग में होनेवाली शादी के बारे में पढ़ते हैं, तो आप अपने मन में कहते हैं “यह बात मेरे बारे में कही गयी है” और आपको उस वक्‍त का इंतज़ार है, जब आप यीशु की “दुल्हन” बनेंगे। (यूह. 3:27-29; 2 कुरिं. 11:2; प्रका. 21:2, 9-14) या जब आप बाइबल में पढ़ते हैं कि परमेश्वर अपने अभिषिक्‍त बेटों से बहुत प्यार करता है, तो आप मन में सोचते हैं “मतलब मुझसे।” और जब यहोवा अपने वचन के ज़रिए अभिषिक्‍त मसीहियों को कुछ हिदायतें देता है, तो आप मन में कहते हैं “यहोवा मुझसे ऐसा करने के लिए कह रहा है” और पवित्र शक्‍ति आपको बढ़ावा देती है कि आप उन हिदायतों को मानें। इस तरह, परमेश्वर की पवित्र शक्‍ति आपके अंदर के एहसास के साथ मिलकर इस बात की गवाही देती है कि आपको स्वर्ग में जीने की आशा है।

18. (क) ‘दूसरी भेड़ों’ को क्या आशा है? (ख) आप अपनी इस आशा के बारे में कैसा महसूस करते हैं?

18 अगर आप ‘दूसरी भेड़ों’ की “बड़ी भीड़” का हिस्सा हैं, तो परमेश्वर ने आपको धरती पर जीने की शानदार आशा दी है। (प्रका. 7:9; यूह. 10:16) आप इसी धरती पर फिरदौस में हमेशा की ज़िंदगी जीने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं। जब आप बाइबल में दिए फिरदौस के वादों पर मनन करते हैं, तो आपको बहुत खुशी होती है। आप उस वक्‍त की राह देख रहे हैं, जब चारों तरफ शांति-भरा माहौल होगा और आप अपने परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर ज़िंदगी का पूरा-पूरा मज़ा ले सकेंगे। आपको उस वक्‍त का इंतज़ार है जब इंसान भुखमरी, गरीबी, दुख-तकलीफों, बीमारियों और मौत के चंगुल से पूरी तरह आज़ाद हो जाएगा। (भज. 37:10, 11, 29; 67:6; 72:7, 16; यशा. 33:24) इतना ही नहीं, आप अपने उन अज़ीज़ों से मिलने के लिए भी तरस रहे हैं, जिन्हें आपने खो दिया है। (यूह. 5:28, 29) फिरदौस में मिलनेवाली इन सभी आशीषों के लिए क्या आप यहोवा के एहसानमंद नहीं हैं? हालाँकि आप प्रतीकों को खाने-पीने में हिस्सा नहीं लेते, लेकिन फिर भी स्मारक में हाज़िर होकर आप यीशु मसीह के फिरौती बलिदान के लिए कदरदानी ज़ाहिर करते हैं।

क्या आप वहाँ होंगे?

19, 20. (क) अपनी आशा को पूरा होते देखने के लिए आपको क्या करना होगा? (ख) आप प्रभु के संध्या भोज में क्यों हाज़िर होंगे?

19 आपकी आशा चाहे स्वर्ग में जीने की हो या धरती पर, आप अपनी इस आशा को तभी पूरा होते देख पाएँगे अगर आप यहोवा परमेश्वर, यीशु मसीह और फिरौती बलिदान पर विश्वास करेंगे। स्मारक में हाज़िर होने से आपको अपनी आशा पर और यीशु के फिरौती बलिदान की अहमियत पर मनन करने का मौका मिलेगा। इसलिए ठान लीजिए कि आप शुक्रवार, 3 अप्रैल, 2015 को सूरज ढलने के बाद मनाए जानेवाले स्मारक में हाज़िर होंगे। उस दिन दुनिया-भर में लाखों लोग इसे मनाने के लिए राज-घरों में और दूसरी जगहों पर इकट्ठा होंगे।

20 अगर हम अच्छे मन और अच्छे इरादे के साथ स्मारक में हाज़िर होंगे, तो यीशु के फिरौती बलिदान के लिए हमारी कदरदानी बढ़ेगी। स्मारक का भाषण ध्यान से सुनने से आपको बढ़ावा मिलेगा कि आपने इस भाषण से यहोवा के प्यार और इंसानों के लिए उसके मकसद के बारे में जो कुछ सीखा है, उसे दूसरों के साथ बाँटें। ऐसा करके आप अपने पड़ोसियों को प्यार दिखा रहे होंगे। (मत्ती 22:34-40) इसलिए ठान लीजिए की आप प्रभु के संध्या भोज में ज़रूर हाज़िर होंगे।

^ पैरा. 1 इब्री कैलेंडर के मुताबिक, दिन सूरज ढलने पर शुरू होता था और अगले दिन सूरज ढलने पर खत्म होता था।

^ पैरा. 9 बुकलेट परमेश्वर के वचन का अध्ययन करने में एक मदद का भाग 16, “धरती पर यीशु की ज़िंदगी का आखिरी हफ्ता” देखिए।