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जवानी में बुद्धिमानी से फैसले लीजिए

जवानी में बुद्धिमानी से फैसले लीजिए

“हे जवानों और कुमारियों . . . यहोवा के नाम की स्तुति करो।”—भज. 148:12, 13.

1. कई जवान मसीही कौन-से बढ़िया अनुभवों का लुत्फ उठा रहे हैं?

 आज हम एक बहुत ही रोमांचक दौर में जी रहे हैं। इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि सभी राष्ट्रों से लाखों लोग सच्ची उपासना की तरफ बढ़ रहे हैं। (प्रका. 7:9, 10) बहुत-से जवान दूसरों को जीवन देनेवाली बाइबल सच्चाइयों का ज्ञान लेने में मदद दे रहे हैं और वे इस काम में बढ़िया अनुभवों का लुत्फ उठा रहे हैं। (प्रका. 22:17) कुछ जवान बाइबल अध्ययन चला रहे हैं और इस तरह लोगों को एक बेहतर ज़िंदगी जीने में मदद दे रहे हैं। और कई जवान ऐसे भी हैं, जो नयी भाषाएँ सीख रहे हैं और दूसरी जगह जाकर खुशखबरी का प्रचार कर रहे हैं। (भज. 110:3; यशा. 52:7) सच्ची खुशी देनेवाले इस काम में हिस्सा लेने के लिए आप क्या कर सकते हैं?

2. तीमुथियुस का उदाहरण कैसे दिखाता है कि यहोवा जवान लोगों को ज़िम्मेदारियाँ देना चाहता है? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

2 जवानी में आप ऐसे फैसले ले सकते हैं जिनसे हो सकता है भविष्य में आपके आगे यहोवा की सेवा में मौके का एक बड़ा दरवाज़ा खुल जाए। उदाहरण के लिए, लुस्त्रा शहर के रहनेवाले तीमुथियुस पर गौर कीजिए जिसने कई अच्छे फैसले लिए। इसका नतीजा यह हुआ कि जब उसकी उम्र करीब 20 के आस-पास थी, तब तक वह मिशनरी के तौर पर सेवा करने के काबिल बन चुका था। (प्रेषि. 16:1-3) इसके कुछ ही महीनों बाद, थिस्सलुनीके की नयी मंडली के भाइयों पर बड़ी बेरहमी से ज़ुल्म ढाए जा रहे थे, जिस वजह से पौलुस को वहाँ से फौरन चले जाने के लिए कहा गया था। ऐसा लगता है उस वक्‍त पौलुस ने जवान तीमुथियुस को उस मंडली में जाने के लिए कहा, ताकि वह वहाँ जाकर भाइयों का हौसला बढ़ा सके। (प्रेषि. 17:5-15; 1 थिस्स. 3:1, 2, 6) क्या आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी पाकर तीमुथियुस को कैसा महसूस हुआ होगा?

आपका सबसे ज़रूरी फैसला

3. (क) आपकी ज़िंदगी का सबसे ज़रूरी फैसला क्या होगा? (ख) आपको यह फैसला कब लेना चाहिए?

3 ज़िंदगी से जुड़े बहुत-से ज़रूरी फैसले जवानी में ही किए जाते हैं। लेकिन इन सभी फैसलों में से एक सबसे ज़रूरी फैसला जो आपको लेना होगा, वह यह कि क्या आप यहोवा की सेवा करेंगे? यह फैसला लेने का सबसे अच्छा वक्‍त कौन-सा है? यहोवा कहता है: “अपनी जवानी के दिनों में अपने सृजनहार को स्मरण रख।” (सभो. 12:1) यहोवा को “स्मरण” या याद रखने का सिर्फ एक तरीका है, वह है दिलो-जान से उसकी सेवा करना। (व्यव. 10:12) इस फैसले से ज़्यादा ज़रूरी और कोई फैसला नहीं, क्योंकि आपके इस एक फैसले का आपकी पूरी ज़िंदगी पर ज़बरदस्त असर पड़ेगा।—भज. 71:5.

4. ऐसे कौन-से ज़रूरी फैसले हैं, जिनका असर परमेश्‍वर की सेवा से जुड़े आपके फैसले पर पड़ेगा?

4 बेशक, यहोवा की सेवा करने के फैसले के अलावा और बहुत-से फैसले हैं, जिनका आपकी ज़िंदगी पर असर पड़ता है। जैसे, आप शादी करेंगे या नहीं, आप किससे शादी करेंगे, या आप किस तरह की नौकरी चुनेंगे। ये सभी ज़रूरी फैसले हैं, लेकिन बुद्धिमानी इसी में होगी कि आप सबसे पहले यह फैसला लें कि क्या आप पूरे दिल से यहोवा की सेवा करना चाहेंगे। (व्यव. 30:19, 20) क्यों? क्योंकि ये सारे फैसले दरअसल एक-दूसरे से जुड़े हैं। शादी और नौकरी के बारे में लिए आपके फैसलों का असर इस बात पर भी पड़ेगा कि आप किस हद तक यहोवा की सेवा करेंगे। (लूका 14:16-20 से तुलना कीजिए।) वहीं दूसरी तरफ, परमेश्‍वर की सेवा करने के बारे में आप जो फैसला लेंगे, उसका असर शादी और नौकरी से जुड़े आपके फैसलों पर भी पड़ेगा। इसलिए पहले उन बातों के बारे में फैसला कीजिए, जो ज़्यादा अहमियत रखती हैं।—फिलि. 1:10.

जवानी में आप क्या फैसले लेंगे?

5, 6. उदाहरण देकर बताइए कि कैसे सही चुनाव करने से आगे चलकर यहोवा की सेवा में मौके का एक बड़ा दरवाज़ा खुल सकता है। (इस अंक में दिया लेख “बचपन में मैंने जो फैसला किया” भी देखिए।)

5 सबसे पहले यहोवा की सेवा करने का फैसला कीजिए। इसके बाद, सोचिए कि यहोवा आपसे क्या करने की उम्मीद करता है। और फिर फैसला कीजिए कि आप कैसे उसकी सेवा करेंगे। जापान का एक भाई कहता है: “जब मैं 14 साल का था, तब एक दिन मैं मंडली के एक प्राचीन के साथ प्रचार कर रहा था। भाई ने देखा कि प्रचार में मेरा दिल नहीं लग रहा है। उन्होंने मुझसे प्यार-से कहा: ‘अभी तुम घर जाओ, यूइचिरो। बैठकर ध्यान से सोचो कि यहोवा ने तुम्हारे लिए क्या कुछ किया है।’ मैंने वैसा ही किया। दरअसल, मैं कई दिनों तक इस बारे में सोचता रहा और प्रार्थना करता रहा। धीरे-धीरे मेरा रवैया बदलने लगा। जल्द ही, मैंने पाया कि मुझे यहोवा की सेवा में खुशी मिल रही है। मिशनरियों के बारे में पढ़ना मुझे बहुत अच्छा लगने लगा और मैं परमेश्‍वर की सेवा में और ज़्यादा करने के बारे में सोचने लगा।”

6 यूइचिरो ने यह भी कहा, “मैंने कुछ ऐसे फैसले लेने शुरू किए जिससे मैं आगे चलकर दूसरे देश जाकर यहोवा की सेवा कर सकूँ। जैसे, मैंने अँग्रेज़ी भाषा सीखने का फैसला किया। स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद, मैं अँग्रेज़ी पढ़ाने की पार्ट-टाइम नौकरी करने लगा, ताकि मैं पायनियर सेवा कर सकूँ। जब मैं 20 साल का था, तब मैंने मंगोलियन भाषा सीखनी शुरू की और मुझे मंगोलियन भाषा बोलनेवाले प्रचारकों के समूह से मिलने का मौका मिला। दो साल बाद, सन्‌ 2007 में मैं मंगोलिया देश घूमने गया। वहाँ कुछ पायनियरों के साथ प्रचार करते वक्‍त मैंने देखा कि वहाँ बहुत-से लोग सच्चाई के प्यासे हैं। तब मेरे मन में यह इच्छा जागी कि मैं इन लोगों की मदद करने के लिए मंगोलिया में आकर बस जाऊँ। इसकी योजना बनाने के लिए मैं वापस जापान चला गया। मैं अप्रैल 2008 से मंगोलिया में पायनियर सेवा कर रहा हूँ। यहाँ ज़िंदगी गुज़ारना इतना आसान नहीं है। मगर लोग खुशखबरी कबूल कर रहे हैं और मैं उन्हें यहोवा के करीब आने में मदद दे पा रहा हूँ। मुझे लगता है कि मैंने ज़िंदगी जीने का सबसे बढ़िया तरीका चुना है।”

7. (क) हरेक जवान को अपनी ज़िंदगी में क्या चुनाव करना होगा? (ख) मूसा ने हमारे लिए क्या मिसाल रखी?

7 हरेक जवान को चुनाव करना होगा कि वह यहोवा के साक्षी के नाते अपनी ज़िंदगी कैसे बिताएगा। (यहो. 24:15) हम आपको नहीं बता सकते कि आपको शादी करनी चाहिए या नहीं, किससे शादी करनी चाहिए या फिर किस तरह की नौकरी करनी चाहिए। क्या आप एक ऐसी नौकरी चुनेंगे जिसे पाने के लिए आपको बहुत लंबा कोर्स न करना पड़े? आपमें से कुछ जवान गाँवों-देहातों में रहते हैं, जबकि कुछ बड़े-बड़े शहरों में। दुनिया-भर में आप सभी जवानों की शख्सियत, काबिलीयत, अनुभव, दिलचस्पी और आध्यात्मिक लक्ष्य एक-दूसरे से अलग हैं। आपकी ज़िंदगियाँ भी शायद एक-दूसरे से उसी तरह अलग हैं, जैसे मूसा की ज़िंदगी, मिस्र में रहनेवाले दूसरे इब्री जवानों से अलग थी। जवान मूसा की परवरिश शाही खानदान में हुई थी, लेकिन दूसरे इब्री जवान दास थे। (निर्ग. 1:13, 14; प्रेषि. 7:21, 22) आपकी तरह, वे भी एक रोमांचक दौर में जी रहे थे। (निर्ग. 19:4-6) उनमें से हरेक को चुनाव करना था कि वह पूरे दिल से यहोवा की सेवा करेगा या नहीं? मूसा ने सही चुनाव किया।—इब्रानियों 11:24-27 पढ़िए।

8. नौजवानो, आपको अच्छे फैसले लेने में कहाँ से मदद मिल सकती है?

8 यहोवा आपको सलाह देता है, ताकि आप जवानी में सही फैसले ले सकें। वह यह कैसे करता है? बाइबल के सिद्धांतों के ज़रिए, जिन्हें आप अपनी ज़िंदगी में लागू कर सकते हैं, फिर चाहे आपके हालात कैसे भी हों। (भज. 32:8) अगर आप समझ नहीं पा रहे हैं कि इन सिद्धांतों को कैसे लागू करें, तो आप अपने माता-पिता या प्राचीनों की मदद ले सकते हैं। (नीति. 1:8, 9) आइए अब हम तीन बाइबल सिद्धांतों पर ध्यान दें, जो अच्छे फैसले लेने में आपकी मदद कर सकते हैं, जिससे आपका भविष्य सुनहरा होगा।

तीन बाइबल सिद्धांत जो आपकी मदद कर सकते हैं

9. (क) फैसले लेने की आज़ादी देकर यहोवा आपको गरिमा कैसे बख्शता है? (ख) पहले राज की खोज करने से आपको क्या मौके मिल सकते हैं?

9 पहले परमेश्‍वर के राज और उसके स्तरों के मुताबिक जो सही है उसकी खोज कीजिए। (मत्ती 6:19-21, 24-26, 31-34 पढ़िए।) आपको अपना समय कैसे इस्तेमाल करना चाहिए, यह तय करने की आज़ादी देकर यहोवा आपको गरिमा बख्शता है। वह यह नहीं कहता कि आपको हमेशा प्रचार ही करते रहना चाहिए। लेकिन यीशु ने पहले राज की खोज करने की अहमियत पर ज़रूर ज़ोर दिया। अगर आप पहले राज की खोज करेंगे, तो आपके आगे मौकों का एक बड़ा दरवाज़ा खुल जाएगा। जैसे, आपके पास यहोवा और अपने पड़ोसियों के लिए प्यार दिखाने के, साथ ही, हमेशा की ज़िंदगी की आशा के लिए अपनी कदरदानी दिखाने के कई मौके होंगे। शादी और नौकरी से जुड़े आपके फैसलों के बारे में क्या? क्या इन फैसलों से आप यह दिखा रहे होंगे कि आप परमेश्‍वर के राज और उसके स्तरों के मुताबिक जो सही है उसकी खोज करने से ज़्यादा, अपनी खाने-पहनने की ज़रूरतों के बारे में चिंता कर रहे हैं?

10. (क) यीशु को किस बात से खुशी मिलती थी? (ख) फैसले लेते वक्‍त क्या बात ध्यान में रखने से आपको खुशी मिल सकती है?

10 दूसरों की सेवा करने में खुशी पाइए। (प्रेषितों 20:20, 21, 24, 35 पढ़िए।) यह ज़िंदगी का एक बुनियादी सिद्धांत है जो यीशु ने हमें सिखाया। वह हमेशा खुश रहता था, क्योंकि वह अपनी मरज़ी पूरी करने के बजाय, हमेशा अपने पिता की मरज़ी पूरी करता था। जब नम्र लोग खुशखबरी कबूल करते थे, तो यह देखकर यीशु बहुत खुश होता था। (लूका 10:21; यूह. 4:34) शायद आपने भी उस खुशी का अनुभव किया होगा, जो दूसरों की मदद करने से मिलती है। इसलिए अपनी ज़िंदगी के अहम फैसले यीशु के सिखाए सिद्धांतों को ध्यान में रखकर लीजिए। अगर आप ऐसा करेंगे, तो आपको खुशी मिलेगी, साथ ही, यहोवा का दिल भी खुश होगा।—नीति. 27:11.

11. (क) बारूक को यहोवा की सेवा में खुशी क्यों नहीं मिल रही थी? (ख) यहोवा ने उसे क्या सलाह दी?

11 यहोवा की सेवा करने से ही हमें सबसे ज़्यादा खुशी मिल सकती है। (नीति. 16:20) लेकिन ऐसा लगता है कि यिर्मयाह का सहायक, बारूक यह बात भूल गया था। उसकी ज़िंदगी में एक वक्‍त ऐसा आया, जब उसे यहोवा की सेवा से खुशी नहीं मिल रही थी। इस पर यहोवा ने उससे कहा: “क्या तू अपने लिये बड़ाई खोज रहा है? उसे मत खोज; क्योंकि . . . मैं सारे मनुष्यों पर विपत्ति डालूंगा; परन्तु जहां कहीं तू जाएगा वहां मैं तेरा प्राण बचाकर तुझे जीवित रखूंगा।” (यिर्म. 45:3, 5) आपको क्या लगता है, बारूक को किस बात से ज़्यादा खुशी मिलती, अपनी मरज़ी पूरी करके पछताकर या यहोवा की मरज़ी पूरी करके यरूशलेम के नाश से बचकर?—याकू. 1:12.

12. रामीरो के किस चुनाव ने उसे खुश रहने में मदद दी?

12 रामीरो नाम के एक भाई को दूसरों की सेवा करने से खुशी मिली। वह बताता है: “मैं एक गरीब परिवार से हूँ, जो एंडीज़ पर्वतमाला में बसे एक गाँव में रहता है। इसलिए जब मेरे बड़े भाई ने यूनिवर्सिटी की पढ़ाई के लिए मेरा खर्च उठाने की पेशकश रखी, तो यह मेरे लिए आगे बढ़ने का अच्छा मौका था। लेकिन हाल ही में मैं बपतिस्मा लेकर यहोवा का साक्षी बना था और इसके बाद मुझे एक और न्यौता मिला था। एक पायनियर ने मुझे न्यौता दिया था कि मैं एक छोटे कसबे में जाकर उसके साथ प्रचार करूँ। मैं वहाँ गया, वहाँ मैंने बाल काटना सीखा और अपना गुज़ारा चलाने के लिए नाई की दुकान खोल ली। जब हमने लोगों के आगे बाइबल सिखाने की पेशकश रखी, तो कई लोगों ने इसे कबूल किया। कुछ समय बाद, मैं हाल ही में शुरू हुई एक मंडली के साथ जुड़ गया, जिसमें वहाँ बोली जानेवाली एक भाषा में सभाएँ चलायी जाती थीं। आज मुझे पूरे समय की सेवा करते हुए दस साल हो गए हैं। यहाँ दूसरों को उनकी मातृभाषा में सच्चाई सिखाने से मुझे जो खुशी मिल रही है, वह और किसी भी पेशे से नहीं मिल सकती।”

रामीरो अपनी जवानी से ही यहोवा की सेवा करने में खुशी पा रहा है (पैराग्राफ 12 देखिए)

13. जवानी का समय पूरे तन-मन से यहोवा की सेवा करने का सबसे बढ़िया समय क्यों है?

13 जवानी में यहोवा की सेवा करने में खुशी पाइए। (सभोपदेशक 12:1 पढ़िए।) आपको ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि पहले मैं एक अच्छी नौकरी ढूँढ़ लूँ, ताकि बाद में यहोवा की सेवा कर सकूँ। जवानी का समय तन-मन से यहोवा की सेवा शुरू करने का सबसे बढ़िया समय है। इस दौरान ज़्यादातर जवानों पर परिवार की ज़िम्मेदारी नहीं होती। साथ ही, अच्छी सेहत और जवानी के दमखम की वजह से वे चुनौती-भरी ज़िम्मेदारियाँ सँभालने के काबिल होते हैं। आप अपनी जवानी में यहोवा के लिए क्या करना चाहेंगे? शायद आपका लक्ष्य पायनियर सेवा करने का हो। या शायद आप दूसरी भाषा बोलनेवाले लोगों को प्रचार करना चाहते हों। या फिर आप अपनी मंडली में ही रहकर यहोवा की सेवा में और ज़्यादा करना चाहते हों। यहोवा की सेवा में आपका लक्ष्य चाहे जो भी हो, आपको अपना गुज़ारा चलाने की भी सोचनी होगी। ऐसे में खुद से पूछिए: ‘मैं कौन-सी नौकरी करूँ? और उसके लिए मुझे कितना लंबा कोर्स करना होगा?’

बाइबल सिद्धांतों की मदद से बुद्धि-भरे फैसले लें

14. नौकरी ढूँढ़ते वक्‍त आपको क्या सावधानी बरतनी चाहिए?

14 जिन तीन बाइबल सिद्धांतों पर हमने अभी गौर किया, वे एक सही नौकरी चुनने में आपकी मदद कर सकते हैं। हो सकता है आपके स्कूल के सलाहकार या नौकरी दिलानेवाली एजेंसियाँ, यहाँ तक कि आपके जान-पहचानवाले आपको बताएँ कि आपके इलाके में या जहाँ पर आप सेवा करने की सोच रहे हैं, वहाँ आपको किस तरह की नौकरियाँ मिल सकती हैं। इन लोगों से जानकारी लेना मददगार हो सकता है, लेकिन सावधान रहिए। जो लोग यहोवा से प्यार नहीं करते, वे शायद आपके दिल में इस दुनिया के लिए प्यार जगाने की कोशिश करें। (1 यूह. 2:15-17) जब आप देखते हैं कि यह दुनिया आपके सामने क्या-क्या पेश कर रही है, तो आपका दिल आसानी से आपको धोखा दे सकता है।—नीतिवचन 14:15 पढ़िए; यिर्म. 17:9.

15, 16. नौकरी चुनने के मामले में कौन आपको सही राह दिखा सकता है?

15 एक बार आप यह जान जाएँ कि आपके सामने क्या-क्या नौकरियाँ उपलब्ध हैं, आपको कारगर सलाह की ज़रूरत पड़ेगी। (नीति. 1:5) कौन आपको बाइबल सिद्धांतों के आधार पर यह तय करने में मदद दे सकता है कि कौन-सी नौकरी आपके लिए सबसे सही रहेगी? उन लोगों की सुनिए जो यहोवा से और आपसे प्यार करते हैं और जो आपसे और आपके हालात से अच्छी तरह वाकिफ हैं। वे ईमानदारी से इस बात को जाँचने में आपकी मदद कर सकते हैं कि आपमें क्या-क्या हुनर हैं और फलाँ नौकरी करने के पीछे आपके इरादे क्या हैं? हो सकता है वे जो कहें, उससे आपको अपने लक्ष्यों के बारे में एक बार और सोचने में मदद मिले। अगर आपके माता-पिता यहोवा से प्यार करते हैं, तो इस मामले में वे आपकी बहुत मदद कर सकते हैं। साथ ही, आपकी मंडली के प्राचीन आपको अच्छी सलाह दे सकते हैं। इनके अलावा, पायनियरों और सफरी निगरानों से भी बात कीजिए। उनसे पूछिए कि उन्होंने पूरे समय की सेवा करने का चुनाव क्यों किया? उन्होंने कैसे अपनी सेवा शुरू की और कैसे वे अपना गुज़ारा चलाते हैं? और उन्हें अपनी सेवा में क्या-क्या आशीषें मिली हैं?—नीति. 15:22.

16 जो लोग आपको करीबी से जानते हैं, वे आपको बुद्धि-भरी सलाह दे सकते हैं। मिसाल के लिए, मान लीजिए कि आप स्कूल छोड़कर पायनियर सेवा शुरू करना चाहते हैं, और ऐसा करने की वजह यह है कि आपको मेहनत करना ज़रा भी पसंद नहीं, जो स्कूल आपसे करने के लिए कहता है। जो व्यक्‍ति आपसे प्यार करता है, वह आपके इरादे भाँप सकता है और आपको यह एहसास दिला सकता है कि यहोवा की सेवा तन-मन से करने के लिए कड़ी मेहनत करना बहुत ज़रूरी है, और स्कूल आपको यह गुण बढ़ाने में मदद दे सकता है।—भज. 141:5; नीति. 6:6-10.

17. हमें किस तरह की नौकरी करने से दूर रहना चाहिए?

17 हर वह शख्स जो यहोवा की सेवा करता है, उसके सामने ऐसे हालात ज़रूर उठ खड़े होंगे, जिनकी वजह से उसका विश्‍वास कमज़ोर हो सकता है और वह यहोवा से दूर जा सकता है। (1 कुरिं. 15:33; कुलु. 2:8) लेकिन कुछ तरह की नौकरियाँ आपके विश्‍वास के लिए बाकी नौकरियों से ज़्यादा खतरनाक हो सकती हैं। क्या आपके इलाके में रहनेवाले कुछ लोगों का विश्‍वास कोई खास नौकरी करने की वजह से “तहस-नहस” हुआ है? (1 तीमु. 1:19) बुद्धिमानी इसी में होगी कि आप ऐसी नौकरी करने से दूर रहें, जो यहोवा के साथ आपके रिश्‍ते को खतरे में डाल सकती है।—नीति. 22:3.

एक जवान मसीही होने में खुशी पाइए

18, 19. अगर फिलहाल यहोवा की सेवा करने में आपका मन नहीं लग रहा, तो आप क्या कर सकते हैं?

18 अगर यहोवा की सेवा करने की आपकी दिली तमन्‍ना है, तो आपकी जवानी में आपके सामने जो भी मौके आते हैं, उनका पूरा-पूरा फायदा उठाइए। ऐसे फैसले लीजिए जिनसे आप आज के इस रोमांचक समय में यहोवा की सेवा खुशी से कर सकें।—भज. 148:12, 13.

19 लेकिन अगर आप पाते हैं कि फिलहाल यहोवा की सेवा करने में आपका मन नहीं लग रहा, तो आप क्या कर सकते हैं? हार मत मानिए, अपने विश्‍वास को मज़बूत करने की कोशिश करते रहिए। प्रेषित पौलुस ने समझाया कि यहोवा की आशीष पाने के लिए उसने क्या किया। उसने कहा: “अगर तुम्हारे मन का झुकाव किसी और तरफ होगा तो परमेश्‍वर तुम पर ज़ाहिर कर देगा कि मन का सही स्वभाव क्या है। और हमने जिस हद तक तरक्की की है, आओ हम इसी नियम पर कायदे से चलते रहें।” (फिलि. 3:15, 16) याद रखिए कि यहोवा आपसे प्यार करता है। उसकी सलाह हमेशा सबसे बढ़िया होती है। उसकी मदद कबूल करके अपनी जवानी में सबसे अच्छे फैसले लीजिए।