यहोवा के अनुशासन के मुताबिक ढलने के लिए तैयार रहिए
“तू सम्मति देता हुआ, मेरी अगुवाई करेगा, और तब मेरी महिमा करके मुझ को अपने पास रखेगा।”—भज. 73:24.
1, 2. (क) यहोवा के साथ एक करीबी रिश्ता बनाए रखने के लिए क्या बातें ज़रूरी हैं? (ख) लोगों ने यहोवा से मिलनेवाले अनुशासन की तरफ जो रवैया दिखाया, उसकी जाँच करने से हमें कैसे फायदा हो सकता है?
“परमेश्वर के समीप रहना, यही मेरे लिये भला है; मैं ने प्रभु यहोवा को अपना शरणस्थान माना है।” (भज. 73:28) इन शब्दों से भजन के रचयिता ने यहोवा पर अपना भरोसा ज़ाहिर किया। वह इस नतीजे पर कैसे पहुँचा? शुरू-शुरू में जब उसने दुष्ट लोगों को फलते-फूलते देखा, तो वह उनसे कुढ़ने लगा। उसने दुखी होकर कहा: “मैं ने अपने हृदय को व्यर्थ शुद्ध किया और अपने हाथों को निर्दोषता में धोया है।” (भज. 73:2, 3, 13, 21) लेकिन जब वह “ईश्वर के पवित्रस्थान” में आया, तो उसने अपने आपको ऐसे माहौल में पाया, जहाँ उसे अपनी सोच सुधारने और परमेश्वर के साथ अपना करीबी रिश्ता कायम रखने में मदद मिली। (भज. 73:16-18) इस अनुभव से परमेश्वर का भय माननेवाले इस भजनहार ने एक ज़रूरी सबक सीखा। वह यह कि यहोवा के साथ एक करीबी रिश्ता बनाए रखने के लिए उसके लोगों के बीच रहना, उसकी सलाह कबूल करना और उसे लागू करना बेहद ज़रूरी है।—भज. 73:24.
2 हम भी सच्चे और जीवित परमेश्वर के साथ एक करीबी रिश्ता बनाए रखना चाहते हैं। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए यह ज़रूरी है कि हम परमेश्वर की सलाह और अनुशासन कबूल करें। यह एक तरीका है जिससे यहोवा हमें ढालता है ताकि हम ऐसे इंसान बन सकें, जिससे वह खुश हो। पुराने ज़माने में, परमेश्वर ने कई लोगों और राष्ट्रों को मौका दिया कि वे उसका अनुशासन कबूल करें और इस तरह उसने उन पर दया दिखायी। अनुशासन की तरफ उन्होंने जो रवैया दिखाया वह शास्त्र में “हमारी हिदायत के लिए,” साथ ही ‘हमारी चेतावनी के लिए लिखा गया था, जिन पर दुनिया की व्यवस्थाओं का आखिरी वक्त आ पहुँचा है।’ (रोमि. 15:4; 1 कुरिं. 10:11) इन वाकयों की नज़दीकी से जाँच करने से हम यहोवा की शख्सियत को बेहतर तरीके से समझ पाएँगे और जान पाएँगे कि खुद को उसके मुताबिक ढालने से हमें कैसे फायदा हो सकता है।
कुम्हार अपना अधिकार कैसे इस्तेमाल करता है
3. यशायाह 64:8 और यिर्मयाह 18:1-6 में यहोवा के अधिकार को समझाने के लिए क्या उदाहरण दिया गया है? (पेज 24 पर दी तसवीर देखिए।)
3 राष्ट्रों और हर इंसान पर यहोवा का जो अधिकार है, उसे एक उदाहरण के ज़रिए समझाते हुए यशायाह 64:8 कहता है: “हे यहोवा, तू हमारा पिता है; देख, हम तो मिट्टी हैं, और तू हमारा कुम्हार है; हम सब के सब तेरे हाथ के काम हैं।” कुम्हार को यह पूरा अधिकार होता है कि वह मिट्टी को जैसा चाहे वैसा ढालकर किसी भी बर्तन का रूप दे सकता है। मिट्टी कुम्हार को नहीं बता सकती कि उसे क्या रूप दिया जाए। इंसान और परमेश्वर के मामले में भी कुछ ऐसा ही है। इंसान को कोई हक नहीं कि वह परमेश्वर को बताए कि उसे किस तरह ढाला जाए, ठीक जैसे मिट्टी कुम्हार को नहीं बता सकती कि उसे किस बर्तन का रूप दिया जाए।—यिर्मयाह 18:1-6 पढ़िए।
4. क्या परमेश्वर ज़बरदस्ती लोगों या राष्ट्रों को ढालता है? समझाइए।
4 जैसे कुम्हार मिट्टी को ढालता है वैसे ही यहोवा ने पुराने ज़माने की इसराएल जाति को ढाला। पर यहोवा इंसानी कुम्हार की तरह नहीं है। एक कुम्हार मिट्टी के लोंदे से जैसा चाहे, वैसा बर्तन बना सकता है। पर क्या यहोवा लोगों या राष्ट्रों को अपनी मरज़ी के मुताबिक ढालता है और कुछ को अच्छा और दूसरों को बुरा बनाता है? बाइबल साफ बताती है कि ऐसा नहीं है। यहोवा ने इंसानों को एक बहुत-ही कीमती तोहफा दिया है और वह है अपना चुनाव खुद करने की आज़ादी। हालाँकि वह सारे जहान का महाराजा और मालिक है, लेकिन वह लोगों को ज़बरदस्ती नहीं ढालता। उसने इंसानों को खुद यह चुनाव करने का अधिकार दिया है कि वे अपने बनानेवाले, यहोवा के हाथों ढलना चाहेंगे या नहीं।—यिर्मयाह 18:7-10 पढ़िए।
5. जब इंसान यहोवा के हाथों ढलने से इनकार कर देते हैं, तब यहोवा कुम्हार के नाते अपनी भूमिका कैसे निभाता है?
5 लेकिन अगर एक इंसान ढीठ होकर महान कुम्हार यहोवा के हाथों ढलने से इनकार कर दे, तब क्या? तब यहोवा कुम्हार के नाते अपना अधिकार कैसे इस्तेमाल करता है? ज़रा सोचिए, अगर मिट्टी को किसी खास किस्म का रूप न दिया जा सके, तब कुम्हार उसका क्या करता है? या तो वह उससे कोई दूसरा बर्तन बनाता है या फिर उसे फेंक देता है। ज़्यादातर मामलों में जब मिट्टी इस्तेमाल के लायक नहीं होती, तो गलती कुम्हार की होती है। लेकिन यहोवा के साथ ऐसा कभी नहीं होता। (व्यव. 32:4) जब एक इंसान यहोवा के हाथों खुद को ढलने नहीं देता, तो इसमें गलती यहोवा की नहीं, हमेशा उस इंसान की होती है। मगर ऐसे में भी यहोवा कुम्हार के नाते अपनी भूमिका निभाता है। वह कैसे? उसके ढाले जाने पर लोग जिस तरह का रवैया दिखाते हैं, उसी के मुताबिक यहोवा उनके साथ पेश आता है। जब लोग यहोवा की आज्ञा मानते हैं, तो वह उन्हें अपनी सेवा में इस्तेमाल करता है। उदाहरण के लिए, अभिषिक्त मसीही ‘दया के बर्तन’ हैं, जो “आदर के काम के लिए” ढाले जाते हैं। वहीं दूसरी तरफ, जो ढीठ होकर परमेश्वर का विरोध करते हैं, वे ‘क्रोध के बर्तन’ बन जाते हैं “जो नाश होने के लायक हैं।”—रोमि. 9:19-23.
6, 7. जब यहोवा ने राजा शाऊल और राजा दाविद को सलाह दी, तो उन्होंने कैसे अलग-अलग रवैया दिखाया?
6 एक तरीका जिससे यहोवा लोगों को ढालता है, वह है सलाह या अनुशासन देकर। मिसाल के लिए, गौर कीजिए कि यहोवा ने इसराएल के पहले दो राजा, शाऊल और दाविद को किस तरह ढाला। जब राजा दाविद ने बतशेबा के साथ व्यभिचार किया, तो उसके कामों का असर उस पर और दूसरों पर भी हुआ। हालाँकि दाविद एक राजा था, फिर भी यहोवा उसे कड़ा अनुशासन देने से पीछे नहीं हटा। परमेश्वर ने अपने नबी नातान को दाविद के पास भेजा कि वह उसे ताड़ना दे। (2 शमू. 12:1-12) इस पर दाविद ने कैसा रवैया दिखाया? उसका दिल छलनी हो गया और उसने पश्चाताप किया। और इसलिए परमेश्वर ने उस पर दया की।—2 शमूएल 12:13 पढ़िए।
7 इसके बिलकुल उलट, राजा शाऊल ने सलाह कबूल नहीं की। यहोवा ने शमूएल नबी के ज़रिए शाऊल को आज्ञा दी थी कि वह सभी अमालेकियों और उनके मवेशियों को मार डाले। लेकिन शाऊल ने परमेश्वर की यह आज्ञा नहीं मानी। उसने राजा अगाग की जान बख्श दी और अच्छे-अच्छे मवेशियों को बचाकर रखा। क्यों? इसकी एक वजह थी कि वह खुद महिमा पाना चाहता था। (1 शमू. 15:1-3, 7-9, 12) जब शाऊल को सलाह दी गयी, तो उसे वह सलाह माननी चाहिए थी और महान कुम्हार के हाथों ढलने के लिए तैयार होना चाहिए था। लेकिन शाऊल बदलने को तैयार नहीं था। उसने खुद को सही ठहराने की कोशिश की। उसने सफाई पेश करते हुए कहा कि उसने जो किया वह गलत नहीं था, क्योंकि वह उन मवेशियों को यहोवा के लिए बलिदान के रूप में चढ़ानेवाला था। इस तरह, उसने शमूएल की सलाह नकार दी। यहोवा ने शाऊल को राजा के तौर पर ठुकरा दिया और शाऊल फिर कभी सच्चे परमेश्वर के साथ अच्छा रिश्ता नहीं बना पाया।—1 शमूएल 15:13-15, 20-23 पढ़िए।
परमेश्वर भेदभाव नहीं करता
8. यहोवा के ज़रिए ढाले जाने पर इसराएलियों ने जैसा रवैया दिखाया, उससे हम क्या सबक सीख सकते हैं?
8 यहोवा न सिर्फ हर इंसान को बल्कि राष्ट्रों को भी मौका देता है कि वे उसके हाथों ढाले जाएँ। ईसा पूर्व 1513 में, जब इसराएली मिस्र की गुलामी से आज़ाद हुए, तब परमेश्वर ने उनके साथ एक करार किया और इस तरह उनके बीच एक खास रिश्ता कायम हुआ। इसराएल परमेश्वर की चुनी हुई जाति थी और उन्हें महान कुम्हार यहोवा के हाथों की मिट्टी बनने का सम्मान मिला था। लेकिन वे वही करते रहे जो यहोवा की नज़रों में बुरा था, यहाँ तक कि वे आस-पास के देशों के ईश्वरों की उपासना भी करने लगे थे। उन्हें उनकी गलती का एहसास करवाने के लिए यहोवा बार-बार अपने नबियों को उनके पास भेजता रहा, पर इसराएलियों ने उनकी एक न सुनी। (यिर्म. 35:12-15) उनके इस ढीठ रवैए की वजह से यहोवा ने उन्हें कड़ा अनुशासन दिया। वे नाश होने लायक बर्तनों के समान हो गए। इसराएल के उत्तर के दस-गोत्रवाले राज्य पर अश्शूरियों ने कब्ज़ा कर लिया और दक्षिण के दो-गोत्रवाले राज्य पर बैबिलोन ने। इससे हमें क्या ही ज़बरदस्त सबक मिलता है! जब यहोवा हमें ढालता है, तो हमें तभी फायदा होगा जब हम उसके मुताबिक ढलने को तैयार होंगे।
9, 10. जब यहोवा ने नीनवे के लोगों को चेतावनी दी, तो उन्होंने कैसा रवैया दिखाया?
9 यहोवा ने अश्शूर की राजधानी, नीनवे में रहनेवाले लोगों को भी एक मौका दिया कि वे उसकी चेतावनी पर ध्यान दें। यहोवा ने योना से कहा: “उठकर उस बड़े नगर नीनवे को जा, और उसके विरुद्ध प्रचार कर; क्योंकि उसकी बुराई मेरी दृष्टि में बढ़ गई है।” नीनवे शहर के लोग इतने बुरे थे, कि उनका नाश होना वाजिब था।—योना 1:1, 2; 3:1-4.
10 लेकिन जब योना ने उन्हें विनाश का पैगाम सुनाया, तो उन्होंने “परमेश्वर का विश्वास किया।” (अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन) और अपना पश्चाताप दिखाने के लिए उन्होंने उपवास किया और टाट का बना कपड़ा ओढ़ा। यहाँ तक कि उनके राजा ने भी “सिंहासन पर से उठ, अपना राजकीय ओढ़ना उतारकर टाट ओढ़ लिया, और राख पर बैठ गया।” जब यहोवा ने नीनवे के लोगों को ढाला, तो उन्होंने सही रवैया दिखाया और पश्चाताप किया। नतीजा, यहोवा ने उस शहर को नाश नहीं किया।—योना 3:5-10.
11. यहोवा जिस तरह इसराएल और नीनवे के साथ पेश आया, उससे हम उसके बारे में क्या सीखते हैं?
11 इसराएल यहोवा की चुनी हुई जाति थी, लेकिन फिर भी जब उन्होंने सही रवैया नहीं दिखाया, तो यहोवा ने उन्हें अनुशासन से नहीं बख्शा। वहीं दूसरी तरफ, यहोवा और नीनवे के लोगों के बीच कोई करार नहीं था। फिर भी, जब यहोवा ने उन्हें न्यायदंड सुनाया, तो उन्होंने सही रवैया दिखाया और अच्छी मिट्टी साबित हुए, इसलिए यहोवा ने उन पर दया की। ये दो उदाहरण कितनी अच्छी तरह दिखाते हैं कि हमारा परमेश्वर यहोवा “किसी का पक्ष नहीं करता।” लोग यहोवा के अनुशासन की तरफ जैसा रवैया दिखाते हैं, यहोवा उसके मुताबिक उनका न्याय करता है।—व्यव. 10:17.
यहोवा अपने फैसले बदलने के लिए तैयार रहता है
12, 13. (क) जब लोग यहोवा के ज़रिए ढाले जाने पर सही रवैया दिखाते हैं, तो यहोवा अपना फैसला क्यों बदलता है? (ख) शाऊल और नीनवे के लोगों के मामले में यहोवा कैसे पछताया?
12 यहोवा के ढाले जाने पर लोग जिस तरह पेश आते हैं, उसके मुताबिक यहोवा भी अपने फैसले बदलने के लिए तैयार रहता है। मिसाल के लिए, बाइबल कहती है कि यहोवा, ‘शाऊल को राजा बना के पछताया।’ (1 शमू. 15:11) और जब नीनवे के लोगों ने पश्चाताप किया और अपने बुरे कामों से फिर गए, तो बाइबल कहती है: “परमेश्वर ने अपनी इच्छा बदल दी [या “पछताया,” एन.डब्ल्यू.], और उनकी जो हानि करने की ठानी थी, उसको न किया।”—योना 3:10.
13 इब्रानी भाषा के जिस शब्द का अनुवाद “पछताया” किया गया है, उसका मतलब है किसी बारे में अपना नज़रिया या इरादा बदलना। शाऊल के मामले में यहोवा ने इस मायने में अपना नज़रिया बदला कि पहले उसने उसे राजा चुना था, पर बाद में उसे ठुकरा दिया। इस बदलाव की वजह यह नहीं थी कि यहोवा ने शाऊल को चुनकर गलती कर दी थी, बल्कि यह थी कि शाऊल ने विश्वास नहीं दिखाया था और यहोवा की आज्ञा नहीं मानी थी। और जब नीनवे के लोगों ने पश्चाताप किया, तो यहोवा इस मायने में पछताया कि उसने उनके बारे में अपना इरादा बदल दिया और उनका नाश नहीं किया। यह जानकर हमें कितना दिलासा मिलता है कि यहोवा लोगों पर दया दिखाता है और जब गलती करनेवाले अपने व्यवहार में बदलाव लाते हैं, तो यहोवा भी अपना फैसला बदलने के लिए तैयार रहता है!
आइए हम यहोवा के अनुशासन को कभी न ठुकराएँ
14. (क) आज यहोवा हमें कैसे ढालता है? (ख) यहोवा के ज़रिए ढाले जाने पर हमें कैसा रवैया दिखाना चाहिए?
14 यहोवा आज हमें खास तौर से अपने वचन बाइबल और अपने संगठन के ज़रिए ढालता है। (2 तीमु. 3:16, 17) इन इंतज़ामों के ज़रिए हमें जो भी सलाह या अनुशासन मिलता है, क्या हमें उसे कबूल नहीं करना चाहिए? हमें बपतिस्मा लिए चाहे कितने ही साल क्यों न हो गए हों या हमें मंडली में चाहे कितनी ही ज़िम्मेदारियाँ मिली हों, फिर भी हमें यहोवा की सलाह कबूल करते रहनी चाहिए। इस तरह हमें ऐसे बर्तनों के रूप में ढलने के लिए तैयार रहना चाहिए, जो आदर के लायक हों।
15, 16. (क) अनुशासन मिलने पर अगर कोई मंडली में ज़िम्मेदारियाँ खो बैठता है, तो उसके मन में कैसी भावनाएँ उठ सकती हैं? मिसाल देकर समझाइए। (ख) अनुशासन मिलने पर अपनी भावनाओं से जूझने में क्या बात हमारी मदद कर सकती है?
15 यहोवा हमें किस तरह अनुशासन देता है? कभी हमें हिदायतें देकर, तो कभी हमारी सोच सुधारने के लिए हमें सलाह देकर। लेकिन कभी-कभी गलत काम करने पर हमें कड़े अनुशासन की भी ज़रूरत पड़ती है। नतीजा, हम शायद मंडली में मिली ज़िम्मेदारियाँ खो बैठें। डेनिस * की मिसाल पर गौर कीजिए, जो पहले एक प्राचीन था। बिज़नेस के मामलों में गलत फैसले लेने की वजह से उसे अकेले में ताड़ना दी गयी। जब मंडली में घोषणा की गयी कि डेनिस अब एक प्राचीन नहीं रहा, तो उस रात उसे कैसा महसूस हुआ? वह कहता है: “मुझे लगा जैसे मैं ज़िंदगी से हार गया हूँ। पिछले 30 सालों में मुझे कई ज़िम्मेदारियाँ मिली थीं। मैं एक पायनियर था, मैंने बेथेल में सेवा की थी, सहायक सेवक के तौर पर नियुक्त किया गया था, और उसके बाद प्राचीन बनने का सम्मान भी मिला था। और हाल ही में, मैंने एक ज़िला अधिवेशन में अपना पहला भाषण भी दिया। अचानक सब कुछ मुझसे छिन गया। मैं शर्मसार हो गया और मुझे लगा जैसे संगठन में अब मेरी कोई ज़रूरत नहीं है।”
16 डेनिस को अपने जीने का तरीका बदलने की ज़रूरत थी। अपनी भावनाओं से जूझने में उसे किस बात ने मदद दी? वह बताता है कि उसने ठान लिया था कि वह बाइबल का अध्ययन करना, नियमित तौर पर प्रचार में जाना और सभाओं में जाना नहीं छोड़ेगा। उसने यह भी कहा, “मसीही भाई-बहनों और हमारे साहित्यों से मिला हौसला भी मेरे लिए उतना ही ज़रूरी था। और 15 अगस्त, 2009 की प्रहरीदुर्ग के लेख, ‘क्या आप पहले सेवा करते थे? क्या आप दोबारा सेवा करना चाहेंगे?’ मानो मेरी प्रार्थनाओं का जवाब था और यहोवा से मिले एक खत की तरह था। उसमें दी जो सलाह मुझे सबसे ज़्यादा छू गयी, वह थी, ‘जब आपके पास मंडली की कोई ज़िम्मेदारी नहीं, तब आप क्या कर सकते हैं? आप परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते को मज़बूत करने पर ध्यान दे सकते हैं।’” डेनिस को अनुशासन से कैसे फायदा हुआ है? कुछ साल बाद वह कहता है: “यहोवा ने एक बार फिर मुझे सहायक सेवक के तौर पर अपनी सेवा करने का मौका देकर मुझे आशीष दी है।”
17. बहिष्कार के इंतज़ाम से पाप करनेवाले को पश्चाताप करने में कैसे मदद मिलती है? उदाहरण देकर समझाइए।
17 बहिष्कार का इंतज़ाम भी यहोवा की तरफ से मिलनेवाला एक तरह का अनुशासन है। इससे मंडली की बुरे असर से हिफाज़त होती है और पाप करनेवाले को भी पश्चाताप करने में मदद मिल सकती है। (1 कुरिं. 5:6, 7, 11) रॉबर्ट की मिसाल पर गौर कीजिए, जो 16 साल तक बहिष्कृत रहा। उस दौरान उसके माता-पिता और भाइयों ने बाइबल में दी इस हिदायत को सख्ती और वफादारी से माना कि बहिष्कार किए गए इंसान के साथ कोई मेल-जोल नहीं रखना चाहिए, यहाँ तक कि उसे नमस्कार तक नहीं करना चाहिए। रॉबर्ट को मंडली में बहाल हुए अब कुछ साल हो चुके हैं और वह आध्यात्मिक तौर पर अच्छी तरक्की भी कर रहा है। जब उससे पूछा गया कि इतने लंबे समय बाद किस बात ने उसे यहोवा और उसके लोगों के पास लौट आने के लिए उकसाया, तो उसने कहा कि उसका परिवार जिस तरह यहोवा के स्तरों पर डटा रहा, उसका उस पर गहरा असर हुआ। वह कहता है, “अगर मेरे परिवार ने मेरे साथ ज़रा भी मेल-जोल रखा होता, जैसे सिर्फ मेरा हाल जानने के लिए मुझसे बात की होती, तो मेरे लिए इतना ही काफी होता। तब मेरे अंदर भाई-बहनों के साथ संगति करने की इच्छा ज़ोर नहीं पकड़ती और शायद मैं परमेश्वर के पास कभी न लौटता।”
18. हमें महान कुम्हार यहोवा के हाथों में किस तरह की मिट्टी साबित होना चाहिए?
18 हो सकता है हमें इस तरह के अनुशासन की ज़रूरत न हो। फिर भी सवाल उठता है कि हम महान कुम्हार के हाथों में किस तरह की मिट्टी साबित होंगे? जब हमें अनुशासन दिया जाता है, तो हम किस तरह का रवैया दिखाएँगे? दाविद की तरह या शाऊल की तरह? महान कुम्हार, यहोवा हमारा पिता है। कभी मत भूलिए कि “यहोवा जिस से प्रेम रखता है उसको डांटता है, जैसे कि बाप उस बेटे को जिसे वह अधिक चाहता है।” इसलिए “यहोवा की शिक्षा से मुंह न मोड़ना, और जब वह तुझे डांटे, तब तू बुरा न मानना।”—नीति. 3:11, 12.
^ नाम बदल दिए गए हैं।