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गुज़री बातों पर मत पछताइए, खुशी से यहोवा की सेवा कीजिए

गुज़री बातों पर मत पछताइए, खुशी से यहोवा की सेवा कीजिए

“जो बातें पीछे रह गयी हैं, उन्हें भूलकर मैं खुद को खींचता हुआ आगे की बातों की तरफ बढ़ता जा रहा हूँ।”—फिलि. 3:13.

1-3. (क) पछतावा करने का क्या मतलब है? इसका हम पर क्या असर हो सकता है? (ख) हम बिना खेद महसूस किए परमेश्‍वर की सेवा करने के बारे में पौलुस से क्या सीख सकते हैं?

 “काश मैंने ऐसा किया होता!” कवि जे. जी. विट्टियर के मुताबिक ये इंसान के सबसे दर्दभरे लफ्ज़ हैं जो वह ज़ुबाँ से कहता है या कागज़ पर लिखता है। ये शब्द दिखाते हैं कि हम कई बार अपनी गलतियों के बारे में कितना पछताते हैं और सोचते हैं कि काश हमें एक और मौका मिल जाता तो हम दोबारा वह गलती न करते। पछतावा करने का मतलब है, यह सोचकर गहरा दुख या दर्द महसूस करना कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था या मुझे ऐसा करना चाहिए था। पछताने का यह भी मतलब हो सकता है, अपनी कोई गलती याद करके रोना। हम सबने कभी-न-कभी ज़िंदगी में ऐसे काम किए हैं जिनके बारे में हम अभी पछताते हैं और सोचते हैं कि काश हम दोबारा उस वक्‍त में जा सकते और कोई और फैसला करते। आपको किन बातों पर पछतावा होता है?

2 कुछ लोगों ने ज़िंदगी में बड़ी-बड़ी गलतियाँ की हैं या फिर गंभीर पाप किए हैं। दूसरे ऐसे हैं जिन्होंने कोई बड़ा पाप तो नहीं किया मगर वे यह सोचकर परेशान हो जाते हैं कि उन्होंने गुज़रे वक्‍त में जो फैसले लिए, वे सही थे या नहीं। इनमें से कुछ लोगों ने अपने अतीत को भुलाकर आगे की सुध लेना सीख लिया है। मगर दूसरों को गुज़रे वक्‍त की कड़वीं यादें रह-रहकर सताती हैं और उनका मन बार-बार उन्हें कोसता है कि ‘काश मैंने ऐसा किया होता!’ या ‘काश मैंने ऐसा न किया होता!’ (भज. 51:3) आप इनमें से किन लोगों की तरह हैं? क्या आप चाहते हैं कि आप बीती यादों से पीछा छुड़ाकर कम-से-कम आज से परमेश्‍वर की सेवा अच्छी तरह करें? क्या ऐसा करने के लिए हमारे पास कोई मिसाल है जिससे हम सीख सकें? बेशक है। और वह मिसाल है प्रेषित पौलुस।

3 पौलुस ने अपनी ज़िंदगी में बड़ी-बड़ी गलतियाँ की थीं मगर उसने सही फैसले भी किए थे। उसे अपनी गलतियों पर गहरा अफसोस होता था फिर भी उसने वफादारी से परमेश्‍वर की सेवा करके एक कामयाब ज़िंदगी जीना सीखा। आइए देखें कि हम पौलुस से क्या सीख सकते हैं ताकि उसकी तरह हम भी अपनी गलतियों पर बहुत ज़्यादा खेद महसूस किए बिना परमेश्‍वर की सेवा कर सकें।

पौलुस की दर्दनाक यादें

4. प्रेषित पौलुस ने ज़िंदगी में कैसे बुरे काम किए थे?

4 जब पौलुस जवान था, तब वह एक फरीसी था। एक फरीसी के नाते उसने ऐसे काम किए थे जिनके बारे में बाद में उसे बहुत पछतावा हुआ। जैसे, उसने मसीह के चेलों को बुरी तरह सताने की एक मुहिम छेड़ दी थी। बाइबल बताती है कि स्तिफनुस की शहादत के फौरन बाद “शाऊल [जो बाद में पौलुस कहलाया] बड़ी बेरहमी से मंडली पर ज़ुल्म करने लगा। वह घर-घर घुसकर स्त्री-पुरुष, सभी को घसीटकर निकालता और उन्हें कैदखाने में डलवा देता था।” (प्रेषि. 8:3) जिस यूनानी शब्द का अनुवाद ‘बेरहमी से ज़ुल्म करना’ किया गया है, उसके बारे में एलबर्ट बार्न्‌स नाम के विद्वान कहते हैं, ‘यह शब्द दिखाता है कि शाऊल गुस्से से भड़का हुआ था और उस पर ज़ुल्म ढाने की धुन सवार हो गयी थी, इसलिए वह एक खूँखार जंगली जानवर की तरह मंडली पर टूट पड़ा।’ एक यहूदी भक्‍त होने के नाते शाऊल का मानना था कि मसीहियत को जड़ से उखाड़ फेंकना उसकी ज़िम्मेदारी है जो परमेश्‍वर ने उसे सौंपी है। इसलिए वह मसीहियों का नामो-निशान मिटाने के लिए उन्हें तड़पा-तड़पाकर मारने लगा। उस पर ‘चेलों को, चाहे स्त्री हो या पुरुष, धमकाने और मार डालने का जुनून सवार था।’—प्रेषि. 9:1, 2; 22:4. *

5. समझाइए कि शाऊल मसीह के चेलों को सताना छोड़कर मसीह का प्रचारक कैसे बन गया।

5 शाऊल ने ठान लिया था कि वह दमिश्‍क जाकर वहाँ यीशु के चेलों को उनके घरों से ज़बरदस्ती बाहर निकालेगा और उन्हें यरूशलेम ले आएगा, ताकि महासभा उन्हें कड़ी-से-कड़ी सज़ा दे। लेकिन वह नाकाम हो गया क्योंकि वह जो करने जा रहा था वह मसीही मंडली के मुखिया यीशु की मरज़ी के खिलाफ था। (इफि. 5:23) जब शाऊल दमिश्‍क जा रहा था तो रास्ते में यीशु ने उसे रोका और उस पर चमत्कार से ऐसी तेज़ रौशनी चमकी कि वह अंधा हो गया। फिर यीशु ने उससे कहा कि वह दमिश्‍क जाए और आगे की हिदायतों के लिए वहाँ इंतज़ार करे। इसके बाद जो हुआ वह हम सब जानते हैं।—प्रेषि. 9:3-22.

6, 7. क्या दिखाता है कि पौलुस को अपनी गलतियों का पूरा-पूरा एहसास था?

6 जैसे ही पौलुस मसीही बना उसकी ज़िंदगी के उसूल बदल गए। मसीही धर्म का यह कट्टर दुश्‍मन अब उसका जोशीला हिमायती बन गया। फिर भी उसने बाद में अपने बारे में यह लिखा: “बेशक, तुमने सुना होगा कि जब मैं पहले यहूदी धर्म मानता था तो मेरा बर्ताव कैसा था। मैं परमेश्‍वर की मंडली पर हद-से-ज़्यादा ज़ुल्म ढाता रहा और उसे तबाह करता रहा।” (गला. 1:13) बाद में उसने कुरिंथियों, फिलिप्पियों और तीमुथियुस के नाम खत में भी बताया कि उसने ज़िंदगी में कैसे बुरे काम किए थे। (1 कुरिंथियों 15:9 पढ़िए; फिलि. 3:6; 1 तीमु. 1:13) पौलुस अपने बारे में ये बातें लिखने में गर्व नहीं महसूस कर रहा था, न ही वह कभी ऐसे पेश आता था मानो उसने कभी वे काम किए ही न हों। उसे अच्छी तरह एहसास था कि उसने कितनी बड़ी-बड़ी गलतियाँ की थीं।—प्रेषि. 26:9-11.

7 बाइबल के विद्वान फ्रेडरिक डब्ल्यू. फर्रार बताते हैं कि शाऊल ने मसीहियों पर “वहशियाना ज़ुल्म ढाया था।” फर्रार ने कहा कि जब हम इस बारे में गहराई से सोचते हैं कि पौलुस ने मसीहियों को कितना तड़पाया था, तो “हम समझ पाते हैं कि उसका मन दोष की भावना से कितना दब गया होगा और उसके कट्टर दुश्‍मन उस पर कैसे ताने कसते होंगे।” जब पौलुस मंडलियों का दौरा करता तो कुछ भाई जो उससे पहली बार मिलते थे वे शायद कहते, ‘तो आप ही हैं वह पौलुस जो हमें सताया करते थे!’—प्रेषि. 9:21.

8. पौलुस ने यहोवा और यीशु की दया और प्यार के बारे में कैसा महसूस किया? इससे हमें क्या सीख मिलती है?

8 लेकिन पौलुस यह भी जानता था कि सिर्फ परमेश्‍वर की महा-कृपा से ही वह सेवा कर पा रहा था। उसने अपनी चौदह चिट्ठियों में परमेश्‍वर की दिखायी इस दया का करीब 90 बार ज़िक्र किया। (1 कुरिंथियों 15:10 पढ़िए।) बाइबल के किसी और लेखक ने इसका ज़िक्र इतनी ज़्यादा बार नहीं किया है। पौलुस परमेश्‍वर का बहुत कदरदान था क्योंकि परमेश्‍वर ने उस पर बड़ी दया की थी। अपनी कदरदानी ज़ाहिर करने के लिए पौलुस ने जी-जान से सेवा की, यहाँ तक कि सभी प्रेषितों से “ज़्यादा मेहनत की।” वह नहीं चाहता था कि उस पर जो महा-कृपा की गयी थी वह बेकार जाए। पौलुस की मिसाल से साफ पता चलता है कि अगर हम अपने पाप कबूल करें और अपने तौर-तरीके बदलें तो यहोवा हमारे गंभीर पापों को भी यीशु के फिरौती बलिदान के आधार पर माफ कर देगा। इस बात से ऐसा हर इंसान तसल्ली पा सकता है जो खुद को माफी के लायक नहीं समझता, जो सोचता है कि मैंने इतने गंभीर पाप किए हैं कि मसीह का बलिदान भी मेरे पापों को नहीं धो सकता! (1 तीमुथियुस 1:15, 16 पढ़िए।) हालाँकि पौलुस ने मसीह पर बहुत ज़ुल्म ढाए थे, फिर भी वह कह सका कि ‘परमेश्‍वर के बेटे ने मुझसे प्यार किया और खुद को मेरे लिए दे दिया।’ (गला. 2:20; प्रेषि. 9:5) जी हाँ, पौलुस ने सीखा कि अब से वह अपनी ज़िंदगी में कैसे सुधार कर सकता है और कैसे परमेश्‍वर की सेवा में अपना भरसक कर सकता है ताकि उसकी गलतियों का पलड़ा और भारी न हो और आगे उसे पहले से ज़्यादा पछतावा न हो। क्या आपने भी ऐसा करना सीखा है?

पौलुस ने सीखा कि कैसे वह अपनी दर्दनाक यादों से पीछा छुड़ाकर यहोवा की सेवा कर सकता है

क्या आपको किसी बात का पछतावा है?

9, 10. (क) यहोवा के कुछ सेवकों को क्यों पछतावा महसूस होता है? (ख) बीती गलतियों के बारे में दिन-रात चिंता करना क्यों नुकसानदायक होता है?

9 क्या आपने ज़िंदगी में ऐसे काम किए हैं जिनका आज भी आपको मलाल होता है? क्या आपने अपना कीमती समय और दमखम गलत कामों में बरबाद किया है? क्या आपने कभी कोई ऐसा काम किया है जिससे दूसरों को नुकसान पहुँचा हो? इस तरह की गलतियों से शायद आपको बहुत पछतावा महसूस होता होगा। वजह चाहे जो हो, सवाल यह है कि आप ऐसी भावनाओं पर काबू कैसे पा सकते हैं।

10 ज़्यादातर लोग अपनी गलतियों के बारे में सोचकर बहुत चिंता करते हैं। दिन-रात चिंता करने से हम अपने मन को पीड़ित करते हैं और खुद पर ज़ुल्म करते हैं। ऐसा करके हम अपना नुकसान करते हैं। क्या ऐसी कोई भी समस्या है जो चिंता करने से दूर हो सकती है? बेशक नहीं! चिंता करना ऐसी साइकिल पर पैडल मारने जैसा है जो स्टैंड पर खड़ी है। चाहे आप घंटों पैडल मारें और अपनी पूरी ताकत लगा दें फिर भी आप आगे नहीं बढ़ेंगे। आप जहाँ थे वहीं रहेंगे। उसी तरह चिंता करते रहने से आपको कुछ हासिल नहीं होगा। इसके बजाय, अगर आप कुछ सही कदम उठाएँगे तो आपको अच्छे नतीजे मिल सकते हैं। मसलन, अगर आपने किसी को चोट पहुँचायी है तो आप उससे माफी माँग सकते हैं और सुलह कर सकते हैं। और अब से आप एहतियात बरत सकते हैं ताकि आप फिर कभी वह गलती न दोहराएँ और दोबारा समस्या में न पड़ें। लेकिन कुछ हालात ऐसे होते हैं जिन पर हमारा कोई ज़ोर नहीं चलता, हमें बस उनका सामना करते हुए जीना है। हमारे हालात चाहे जो भी हों, एक बात तो तय है कि चिंता करने से कोई फायदा नहीं होता। उलटा इससे एक इंसान मन से इतना कमज़ोर और लाचार हो सकता है कि वह परमेश्‍वर की सेवा में अपना भरसक नहीं कर पाएगा। वाकई, चिंता करना नुकसान ही लाता है!

11. (क) हम यहोवा की दया और कृपा कैसे पा सकते हैं? (ख) मन की शांति पाने के लिए हमें परमेश्‍वर का बताया कौन-सा सिद्धांत मानना होगा?

11 कुछ लोग अपनी गलतियों के बारे में सोच-सोचकर इतना मायूस हो जाते हैं कि उन्हें लगता है परमेश्‍वर की नज़रों में उनकी कोई कीमत नहीं है। वे शायद सोचें कि मैं परमेश्‍वर की दया पाने के लायक नहीं हूँ क्योंकि मैं सही राह से इतनी दूर चला गया हूँ या सही राह पर चलने से इतनी बार चूक गया हूँ। लेकिन सच्चाई यह है कि उन्होंने गुज़रे वक्‍त में चाहे जो भी किया हो अब वे पश्‍चाताप कर सकते हैं, खुद में बदलाव ला सकते हैं और परमेश्‍वर से माफी माँग सकते हैं। (प्रेषि. 3:19) यहोवा उन पर ज़रूर दया और कृपा करेगा, जैसे उसने कई लोगों पर की है। जो नम्र और निष्कपट होते हैं और दिल से पश्‍चाताप करते हैं उन पर यहोवा दया करता है। परमेश्‍वर ने अय्यूब पर भी दया की थी, जिसने कहा था, “मैं धूलि और राख में पश्‍चात्ताप करता हूं।” (अय्यू. 42:6) अपने मन से बोझ हटाकर मन की शांति पाने के लिए हमें परमेश्‍वर का दिया यह सिद्धांत मानना होगा: “जो अपने अपराध छिपा रखता है, उसका कार्य सुफल नहीं होता, परन्तु जो उनको मान लेता और छोड़ भी देता है, उस पर दया की जायेगी।” (नीति. 28:13; याकू. 5:14-16) हम परमेश्‍वर के सामने अपने पाप कबूल कर सकते हैं, उससे माफी की बिनती कर सकते हैं और अपनी गलती सुधारने के लिए ज़रूरी कदम उठा सकते हैं। (2 कुरिं. 7:10, 11) अगर हम ऐसा करते हैं तो हम यहोवा की दया पा सकेंगे जो ‘पूरी रीति से क्षमा’ करनेवाला परमेश्‍वर है।—यशा. 55:7.

12. (क) दाविद की मिसाल देकर समझाइए कि अपने ज़मीर से दोष की भावना दूर करने का सबसे बेहतर तरीका क्या है? (ख) इसका मतलब क्या है कि यहोवा पछताया? इस जानकारी से हमें क्या फायदा होता है? (बक्स देखिए।)

12 प्रार्थना ज़रूर हमारी मदद कर सकती है क्योंकि परमेश्‍वर हमारी प्रार्थना का जवाब देता है। जब दाविद पर दोष की भावना हावी हो गयी, तो उसने पूरे विश्‍वास के साथ यहोवा से प्रार्थना की और अपने दिल का सारा हाल उसे बताया। उसकी यह प्रार्थना भजन की किताब में बहुत ही खूबसूरत शब्दों में दर्ज़ की गयी है। (भजन 32:1-5 पढ़िए।) प्रार्थना में दाविद ने माना कि पाप करने के बाद उसका ज़मीर उसे कचोटता रहा, मगर वह अपने ज़मीर की आवाज़ दबाने की कोशिश कर रहा था और मन का यह बोझ ढोते-ढोते वह पस्त हो गया। ज़ाहिर है जब तक उसने अपना पाप कबूल नहीं किया, तब तक उसके तन और मन पर इसका बुरा असर हुआ और वह हताश हो गया। दाविद को परमेश्‍वर से माफी और मन के बोझ से राहत कब मिली? तभी जब उसने परमेश्‍वर के सामने अपना पाप कबूल किया। यहोवा ने दाविद की प्रार्थनाएँ सुनीं और उसका दिल मज़बूत किया ताकि वह ज़िंदगी से हार न माने और दोबारा सही काम करने में लग जाए। उसी तरह अगर आप भी बीती गलतियों की वजह से मायूस हैं तो सच्चे दिल से प्रार्थना करके यहोवा से माफी माँगिए। आप पूरा यकीन रख सकते हैं कि यहोवा ज़रूर आपकी मिन्‍नत पर ध्यान देगा। अपने अंदर सुधार लाने के लिए आपसे जो कुछ हो सकता है वह कीजिए और भरोसा रखिए कि यहोवा ने आपको माफ कर दिया है, ठीक जैसे उसने अपने वचन में वादा किया है।—भज. 86:5.

आगे जो करना है उसकी सोचिए

13, 14. (क) आज हमें अपना ध्यान किस बात पर लगाना चाहिए? (ख) हमें खुद से कौन-से सवाल पूछने चाहिए?

13 कहते हैं कि इंसान अपने अतीत से ज़िंदगी की सीख हासिल करता है मगर वह ज़िंदगी सही मायनों में तभी जीता है जब वह आनेवाले कल को सुनहरा बनाने के लिए आज उस सीख पर अमल करता है। इसलिए अपने गुज़रे कल की कड़वी यादों में डूबकर मायूस होने के बजाय हमें अपना ध्यान अपनी मौजूदा ज़िंदगी पर और भविष्य पर लगाना चाहिए। हमें खुद से पूछना है कि आज मैं अपनी ज़िंदगी कैसे बिता रहा हूँ? क्या मैं वही कर रहा हूँ जो सही है या फिर उसे नहीं कर रहा हूँ? आज से सालों बाद क्या मैं यह सोचकर पछताऊँगा कि काश मैंने फलाँ काम किया होता या फिर काश मैंने फलाँ काम न किया होता? क्या मैं वफादारी से परमेश्‍वर की सेवा कर रहा हूँ ताकि भविष्य में मुझे आज को याद करके कोई खेद न हो?

14 आज जब महा-संकट का समय तेज़ी से करीब आ रहा है तो अपनी पिछली गलतियों के बारे में सोचकर दुखी होने के बजाय अच्छा होगा कि हम खुद से ऐसे सवाल पूछें, ‘क्या मैं परमेश्‍वर की सेवा में उतना कर रहा हूँ जितना मैं कर सकता हूँ? क्या मैं एक पायनियर बन सकता हूँ? मैंने आध्यात्मिक तरक्की करने में किस बात को आड़े आने दिया है जिस वजह से मैं एक सहायक सेवक नहीं बन पाया हूँ? क्या मैं नयी शख्सियत के गुण बढ़ाने के लिए वाकई मेहनत कर रहा हूँ? क्या मैं ऐसा इंसान बनने की कोशिश कर रहा हूँ जिसे परमेश्‍वर अपनी नयी दुनिया में ले जाना चाहेगा?’ जो आपने नहीं किया, उसके बारे में बस यूँ ही चिंता करने के बजाय, आज जो आप कर रहे हैं उस बारे में सोचिए और ठान लीजिए कि अब से आप यहोवा की सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। ऐसा करना ज़रूरी है वरना हम आगे भी गलत फैसले करते रहेंगे जिससे हमारी गलतियों का पलड़ा और भी भारी हो जाएगा और हमें पहले से कहीं ज़्यादा पछतावा होगा।—2 तीमु. 2:15.

अपनी पवित्र सेवा के बारे में कभी मत पछताइए

15, 16. (क) ज़िंदगी में परमेश्‍वर की सेवा को पहली जगह देने के लिए बहुत-से भाई-बहनों ने कैसे त्याग किए हैं? (ख) हमने जो भी त्याग किए हैं उन पर हमें पछतावा क्यों महसूस नहीं करना चाहिए?

15 क्या आपने पूरे समय यहोवा की सेवा करने के लिए बहुत-से त्याग किए थे? हो सकता है आपने एक सादगी भरा जीवन जीने और राज के कामों में ज़्यादा समय देने के लिए एक बढ़िया करियर या फलता-फूलता बिज़नेस छोड़ दिया था। या हो सकता है आपने बेथेल सेवा, अंतर्राष्ट्रीय निर्माण काम, सर्किट काम या मिशनरी सेवा करने के लिए अविवाहित रहने या फिर शादी के बाद बच्चे न करने का फैसला किया था। अगर आप यह फैसला नहीं करते तो शायद पूरे समय की सेवा करना आपके लिए मुमकिन न होता। अब जब आपकी उम्र ढल रही है तो क्या आपको अपने फैसले पर पछतावा महसूस करना चाहिए? क्या आपको ऐसा सोचना चाहिए कि मैंने बेकार ही वे फैसले किए थे या मुझे कुछ समय बाद पूरे समय की सेवा शुरू करनी थी? आपको ऐसा कभी नहीं सोचना चाहिए!

16 आपने ये सारे त्याग इसलिए किए थे क्योंकि आप यहोवा से बहुत प्यार करते हैं और आप उन लोगों की मदद करना चाहते थे जो उसकी सेवा करने की इच्छा रखते हैं। आज आपको यह नहीं सोचना चाहिए कि अगर उस वक्‍त मैंने ये त्याग नहीं किए होते तो ज़्यादा अच्छा होता। इसके बजाय आपको खुश होना चाहिए कि आपने बिलकुल सही फैसला किया था और आपने यहोवा की सेवा में अपना सबकुछ लगा दिया। आपने जो त्याग की ज़िंदगी बितायी है उसे यहोवा कभी नहीं भूलेगा। आनेवाली नयी दुनिया में जब आपको असल ज़िंदगी मिलेगी तो यहोवा आपको इनाम में ऐसी आशीषें देगा जिसकी आप अभी कल्पना भी नहीं कर सकते!—भज. 145:16; 1 तीमु. 6:19.

ऐसी सेवा कीजिए कि बाद में आपको पछतावा न हो

17, 18. (क) किस सिद्धांत पर चलने से पौलुस अच्छी तरह सेवा कर सका? (ख) आपने अपने गुज़रे कल, आज और आनेवाले कल के बारे में क्या ठाना है?

17 पौलुस ने एक सिद्धांत पर चलना सीखा जिस वजह से वह अच्छी तरह सेवा कर पाया ताकि उसे बाद में और ज़्यादा पछताना न पड़े। हिंदी ईज़ी-टू-रीड वर्शन अनुवाद के मुताबिक, पौलुस ने वह सिद्धांत इन शब्दों में बताया, ‘मैं अपनी बीती को बिसार कर, जो मेरे सामने है, उस लक्ष्य तक पहुँचने के लिये संघर्ष करता रहता हूँ। मैं उस लक्ष्य के लिये निरन्तर यत्न करता रहता हूँ।’ (फिलिप्पियों 3:13, 14 पढ़िए।) पौलुस उन बुरे कामों के बारे में दिन-रात सोचता नहीं रहा जो उसने यहूदी धर्म को मानते वक्‍त किए थे। उसने अपनी पूरी ताकत वफादारी से परमेश्‍वर की सेवा करने में लगा दी, ताकि वह भविष्य में हमेशा की ज़िंदगी का इनाम पाने के योग्य ठहरे।

18 पौलुस जिस सिद्धांत पर चला, उस पर हम कैसे चल सकते हैं? हमें गुज़रे कल की गलतियों के बारे में सोचकर बहुत ज़्यादा परेशान नहीं होना चाहिए, उन गलतियों के बारे में चिंता नहीं करनी चाहिए जिन्हें मिटाना अब हमारे हाथ में नहीं है। इसके बजाय, हमारे लिए आगे जो रखा है उसे हासिल करने में सारी ताकत लगा देनी चाहिए। माना कि हम अपनी गलतियों को पूरी तरह भुला नहीं सकते, फिर भी हमें उनके बारे में हर वक्‍त सोचकर खुद को कोसना नहीं चाहिए। कल जो हुआ उसके बारे में सोचकर परेशान होने के बजाय, आइए हम आज यहोवा की सेवा में अपनी पूरी ताकत लगा दें ताकि हमारा आनेवाला कल सुनहरा हो!

^ इस वाकये में बार-बार ज़िक्र किया गया है कि स्त्रियाँ भी शाऊल के ज़ुल्म की शिकार हुईं। यह दिखाता है कि आज की तरह पहली सदी में भी स्त्रियों का मसीहियत को फैलाने में बड़ा योगदान रहा है।—भज. 68:11.