इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

क्या आप यहोवा को अपना भाग बना रहे हैं?

क्या आप यहोवा को अपना भाग बना रहे हैं?

क्या आप यहोवा को अपना भाग बना रहे हैं?

“तुम पहले उसके राज और उसके स्तरों के मुताबिक जो सही है उसकी खोज में लगे रहो और ये बाकी सारी चीज़ें भी तुम्हें दे दी जाएँगी।”—मत्ती 6:33.

1, 2. (क) गलातियों 6:16 में बताया ‘परमेश्‍वर का इसराएल’ किसे दर्शाता है? (ख) मत्ती 19:28 में बताए “इसराएल के बारह गोत्रों” का मतलब क्या है?

 जब आप बाइबल में शब्द इसराएल पढ़ते हैं तो आपके मन में क्या आता है? क्या आप इसहाक के बेटे याकूब के बारे में सोचते हैं जिसका नाम बदलकर इसराएल रख दिया गया था? या आपको प्राचीन इसराएल राष्ट्र यानी उसके वंशजों का खयाल आता है। और आध्यात्मिक इसराएल क्या है? जब इसराएल का ज़िक्र लाक्षणिक रूप में किया जाता है तो यह अकसर “परमेश्‍वर के इसराएल” यानी 1,44,000 जनों पर लागू होता है, जिन्हें स्वर्ग में राजा और याजक के तौर पर काम करने के लिए पवित्र शक्‍ति से अभिषिक्‍त किया गया है। (गला. 6:16; प्रका. 7:4; 21:12) लेकिन गौर कीजिए कि मत्ती 19:28 में इसराएल के 12 गोत्रों का ज़िक्र किया गया है। उसका क्या मतलब है?

2 यीशु ने कहा: “जब सबकुछ नया किया जाएगा और इंसान का बेटा अपनी महिमा की राजगद्दी पर बैठेगा, तब तुम भी जो मेरे पीछे हो लिए हो, बारह राजगद्दियों पर बैठकर इसराएल के बारह गोत्रों का न्याय करोगे।” यहाँ ‘इसराएल के बारह गोत्र’ उन्हें सूचित करते हैं जो धरती पर फिरदौस में हमेशा की ज़िंदगी जीएँगे और जिनका न्याय यीशु के अभिषिक्‍त चेले करेंगे। ये लोग उन सेवाओं का फायदा उठाएँगे जो 1,44,000 जन याजक के तौर पर करेंगे।

3, 4. वफादार अभिषिक्‍त जनों ने क्या बढ़िया मिसाल पेश की है?

3 पुराने ज़माने के याजकों और लेवियों की तरह आज अभिषिक्‍त जन भी अपनी सेवा को एक सम्मान समझते हैं। (गिन. 18:20) वे इस धरती पर कोई ज़मीन पाने की उम्मीद नहीं रखते। इसके बजाय वे स्वर्ग में यीशु मसीह के साथ राजा और याजक के तौर पर सेवा करने की आस लगाते हैं। जैसा कि प्रकाशितवाक्य 4:10, 11 से पता चलता है, अभिषिक्‍त जन स्वर्ग में इसी तरह यहोवा की सेवा करते रहेंगे।—यहे. 44:28.

4 धरती पर रहते हुए अभिषिक्‍त जन अपने जीने के तरीके से यह साबित करते हैं कि यहोवा उनका भाग है। वे परमेश्‍वर की सेवा को सबसे ज़्यादा अहमियत देते हैं। वे मसीह के फिरौती बलिदान में विश्‍वास रखते हैं और लगातार उसके नक्शे-कदम पर चलते हैं और इस तरह वे ‘अपने बुलावे और चुने जाने को पक्का करते हैं।’ (2 पत. 1:10) उनके हालात और योग्यताएँ अलग-अलग हैं, फिर भी वे अपनी कमज़ोरियों को बहाना बनाकर परमेश्‍वर की सेवा में बस थोड़ा-बहुत करके संतुष्ट नहीं होते। इसके बजाय वे परमेश्‍वर की सेवा को बहुत अहमियत देते हैं और अपनी काबिलीयत के हिसाब से अपना भरसक करते हैं। और वे उनके लिए बेहतरीन उदाहरण पेश करते हैं जिन्हें धरती पर जीने की आशा है।

5. सभी मसीही कैसे यहोवा को अपना भाग बना सकते हैं और ऐसा करना क्यों मुश्‍किल हो सकता है?

5 चाहे हमारी आशा स्वर्ग में जीने की हो या धरती पर हमें ‘खुद का इनकार करके अपनी यातना की सूली उठाए मसीह के पीछे चलते रहना चाहिए।’ (मत्ती 16:24) वे लाखों लोग जो इस धरती पर जीने की आस देख रहे हैं, परमेश्‍वर की उपासना करके और मसीह के पीछे चलकर यहोवा को अपना भाग बना रहे हैं। जब उन्हें एहसास होता है कि वे परमेश्‍वर की सेवा में और कर सकते हैं, तो वे उसकी थोड़ी-बहुत सेवा करके संतुष्ट नहीं होते। कई लोगों का दिल उन्हें उभारता है कि वे अपनी ज़िंदगी को सादा बनाएँ और पायनियर सेवा शुरू करें। दूसरे, साल में कुछ महीने सहयोगी पायनियर के तौर पर सेवा करते हैं। कुछ लोग अपने हालात की वजह से पायनियर सेवा नहीं कर पाते, मगर फिर भी वे प्रचार सेवा में अपना भरसक करते हैं। ऐसे लोग परमेश्‍वर का भय माननेवाली उस मरियम की तरह हैं जिसने सुगंधित तेल यीशु पर उँडेला था। यीशु ने कहा: “इसने तो मेरी खातिर एक बेहतरीन काम किया है। . . . वह जो कर सकती थी उसने किया है।” (मर. 14:6-8) इस शैतानी दुनिया में रहते वक्‍त, परमेश्‍वर की सेवा में उतना करना शायद हमारे लिए आसान न हो, जितना कि असल में हम कर सकते हैं। लेकिन फिर भी हम कड़ी मेहनत करते हैं और यहोवा पर अपना भरोसा बनाए रखते हैं। गौर कीजिए कि चार क्षेत्रों में हम ऐसा किस तरह करते हैं।

पहले परमेश्‍वर के राज की खोज कीजिए

6. (क) आम तौर पर लोग कैसे दिखाते हैं कि उनका भाग इसी जीवन में है? (ख) दाविद के जैसा नज़रिया रखना क्यों बेहतर है?

6 यीशु ने अपने चेलों को सिखाया कि पहले परमेश्‍वर के राज और उसके स्तरों के मुताबिक जो सही है उसकी खोज करो। दुनिया के लोग पहले अपनी इच्छाओं को पूरी करने पर ध्यान देते हैं, ठीक “संसारी मनुष्यों” की तरह “जिनका भाग इसी जीवन में [होता] है।” (भजन 17:1, 13-15 पढ़िए।) वे अपने सृष्टिकर्ता के लिए कोई कदर नहीं दिखाते बल्कि ऐशो-आराम की ज़िंदगी जीने, अपने परिवार की देखभाल करने और एक विरासत छोड़ जाने के लिए रात-दिन एक कर देते हैं। उनका भाग इसी ज़िंदगी तक सीमित होता है। दूसरी तरफ देखें तो दाविद यहोवा की नज़र में एक “अच्छा नाम” बनाना चाहता था और उसके बेटे ने भी सबको ऐसा करने का बढ़ावा दिया। (सभो. 7:1) आसाप की तरह दाविद ने भी देखा कि अपनी इच्छाओं को ज़िंदगी में पहली जगह देने से कहीं बेहतर है यहोवा का दोस्त बनना। उसे परमेश्‍वर के साथ चलने में खुशी मिली। हमारे ज़माने में भी कई मसीहियों ने नौकरी-पेशे से ज़्यादा आध्यात्मिक कामों को पहली जगह दी है।

7. राज को पहली जगह देने से एक भाई को क्या आशीषें मिलीं?

7 मध्य अफ्रीकन रिपब्लिक के एक शादीशुदा प्राचीन ज़ॉन-क्लॉड के अनुभव पर गौर कीजिए जिनके तीन बच्चे हैं। उस देश में काम मिलना बहुत ही मुश्‍किल है और ज़्यादातर लोग अपनी नौकरी को बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। एक दिन ज़ॉन-क्लॉड के उत्पाद मैनेजर ने उसे रात में काम करने के लिए कहा, जो उसे हफ्ते के सातों दिन शाम साढ़े छः बजे से शुरू करना था। भाई ने बताया कि उसे अपने परिवार की रोटी-कपड़े की ज़रूरत पूरी करने के साथ-साथ उनकी आध्यात्मिक ज़रूरतों का भी खयाल रखना है। उसने यह भी कहा कि मंडली में भी उस पर कई ज़िम्मेदारियाँ हैं। इस पर मैनेजर ने क्या जवाब दिया? उसने कहा: “खैर मनाओ कि तुम्हारे पास एक नौकरी है और इसे रखना चाहते हो तो अपनी पत्नी, बच्चों और बाकी चीज़ों को भूल जाओ। बस काम के बारे में सोचो, उसके अलावा कुछ नहीं। फैसला तुम्हारे हाथ में है: धर्म चुनो या काम।” अगर आप उस जगह होते तो क्या करते? ज़ॉन-क्लॉड को भरोसा था कि अगर उसकी नौकरी चली भी गयी तो यहोवा उसे सँभालेगा। वह यहोवा की सेवा में बहुत कुछ कर सकता है और परमेश्‍वर उसके परिवार की ज़रूरतें पूरी करने में उसकी मदद करेगा। यह सब सोचकर वह सभा में चला गया। उसके बाद वह काम पर जाने के लिए तैयार हुआ। लेकिन वह नहीं जानता था कि आज नौकरी उसके हाथ में रहेगी या नहीं। तभी उसे एक फोन आया कि मैनेजर को नौकरी से निकाल दिया गया है। और हमारे भाई की नौकरी सही-सलामत थी।

8, 9. यहोवा को अपना भाग बनाने में हम कैसे याजकों और लेवियों की मिसाल पर चल सकते हैं?

8 हमारे कुछ भाई-बहन भी शायद इसी हालात से गुज़रे हों। जब उनकी नौकरी खतरे में थी, तब उन्होंने सोचा होगा, ‘अगर मेरी नौकरी चली गयी तो मैं अपने परिवार का भरण-पोषण कैसे करूँगा?’ (1 तीमु. 5:8) आप चाहे ऐसे हालात से गुज़रे हों या नहीं, लेकिन अपने अनुभव से आपने देखा होगा कि अगर आप परमेश्‍वर को अपना भाग बनाएँगे और उसकी सेवा को अनमोल समझेंगे तो आप कभी निराश नहीं होंगे। यीशु भी यही भरोसा दिला रहा था जब उसने अपने चेलों से कहा, “तुम पहले उसके राज . . . की खोज में लगे रहो,” तब “बाकी सारी चीज़ें” यानी रोटी-कपड़े जैसी चीज़ें भी “तुम्हें दे दी जाएँगी।”—मत्ती 6:33.

9 ज़रा लेवियों के बारे में सोचिए जिन्हें विरासत में ज़मीन नहीं मिली थी। उन्होंने सच्ची उपासना को जिंदगी में पहली जगह दी थी इसलिए उन्हें अपने गुज़ारे के लिए यहोवा पर निर्भर रहना था। यहोवा ने उनसे कहा था: मैं “तेरा भाग” हूँ। (गिन. 18:20) हालाँकि हम लेवियों और याजकों की तरह परमेश्‍वर के असली मंदिर में सेवा नहीं करते लेकिन हम उनके जज़्बे की नकल कर सकते हैं जिन्हें यहोवा पर पूरा भरोसा था कि वह उनका खयाल रखेगा। जैसे-जैसे हम आखिरी दिनों के विनाश के नज़दीक पहुँच रहे हैं, हमें यहोवा पर और भी ज़्यादा भरोसा रखने की ज़रूरत है।—प्रका. 13:17.

पहले परमेश्‍वर के स्तरों के मुताबिक जो सही है उसकी खोज कीजिए

10, 11. कैसे कुछ लोगों ने नौकरी के मामले में यहोवा पर भरोसा रखा? एक उदाहरण दीजिए।

10 यीशु ने अपने चेलों से यह भी गुज़ारिश की कि “[परमेश्‍वर के] स्तरों के मुताबिक जो सही है उसकी खोज में लगे रहो।” (मत्ती 6:33) इसका मतलब है कि इंसानों के स्तरों से बढ़कर परमेश्‍वर के स्तरों को पहली जगह देना। (यशायाह 55:8, 9 पढ़िए।) आपको शायद याद होगा कि बीते समयों में बहुत-से लोग तंबाकू की फसल उगाते या उससे बनी चीज़ों को बेचते थे। कुछ युद्ध में लड़ने की तालीम देते या हथियार बनाने और बेचने का काम करते थे। लेकिन सच्चाई सीखने के बाद ज़्यादातर लोगों ने अपना काम बदलने का फैसला किया और वे बपतिस्मे के लिए काबिल हुए।—यशा. 2:4; 2 कुरिं. 7:1; गला. 5:14.

11 एंड्रू इसका अच्छा उदाहरण है। जब उसने और उसकी पत्नी ने यहोवा के बारे में सीखा तो उन्होंने उसकी सेवा करने का फैसला किया। एंड्रू को अपना काम बहुत पसंद था मगर उसने छोड़ दिया। क्यों? क्योंकि वह एक ऐसे संगठन में काम करता था जो युद्ध में शामिल था इसलिए उसने ठान लिया कि वह परमेश्‍वर के स्तरों के मुताबिक जो सही है उसी को पहली जगह देगा। जब एंड्रू ने अपनी नौकरी छोड़ी तब उसके दो बच्चे थे और उसकी कोई कमाई भी नहीं थी। उसके पास जो पैसा बचा था, उससे सिर्फ कुछ महीने ही कटते। इंसानी नज़रिए से देखा जाए तो लग सकता है कि उसके पास कोई ‘विरासत’ नहीं थी। परमेश्‍वर पर भरोसा रखते हुए उसने दूसरी नौकरी ढूँढ़नी शुरू कर दी। वह और उसका परिवार इस बात की गवाही दे सकता है कि यहोवा का हाथ छोटा नहीं है। (यशा. 59:1) सादगी भरी ज़िंदगी जीने से एंड्रू और उसकी पत्नी को पूरे समय की सेवा करने का सुनहरा मौका मिला। वह कहता है: “कई दौर ऐसे आए जब हम पैसे की तंगी, घर की चिंता, सेहत और ढलती उम्र के बारे में सोच-सोचकर परेशान हो जाते थे। लेकिन यहोवा ने हमेशा हमारा साथ दिया। . . . हम पूरे यकीन के साथ यह कह सकते हैं कि इंसानों के लिए परमेश्‍वर की सेवा करना ही सबसे उत्तम है और इससे मिलनेवाली आशीषें अनमोल हैं।” *सभो. 12:13.

12. परमेश्‍वर के स्तरों को पहली जगह देने के लिए किस गुण की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है? अपने इलाके का कोई उदाहरण बताइए।

12 यीशु ने अपने चेलों से कहा: “अगर तुम्हारे अंदर राई के दाने के बराबर भी विश्‍वास है, तो तुम इस पहाड़ से कहोगे, ‘यहाँ से हटकर वहाँ चला जा,’ और वह चला जाएगा, और तुम्हारे लिए कुछ भी नामुमकिन न होगा।” (मत्ती 17:20) क्या आप तब भी परमेश्‍वर के स्तरों को पहली जगह देंगे जब ऐसा करने से आपको मुश्‍किलों का सामना करना पड़ सकता है? अगर आपको इस बात पर भरोसा नहीं कि आप ऐसा कर सकते हैं तो अपनी मंडली के सदस्यों से बात कीजिए। बेशक उनके अनुभव सुनकर आपको आध्यात्मिक तौर पर ताज़गी मिलेगी।

यहोवा के आध्यात्मिक इंतज़ाम की कदर कीजिए

13. जब हम यहोवा की सेवा में कड़ी मेहनत करते हैं तो हम आध्यात्मिक तौर पर उससे क्या उम्मीद कर सकते हैं?

13 अगर आप यहोवा की सेवा को अनमोल समझते हैं तो आप पूरा भरोसा रख सकते हैं कि वह आपकी न सिर्फ शारीरिक बल्कि आध्यात्मिक ज़रूरतों का भी खयाल रखेगा। ज़रा दाविद के बारे में सोचिए। वह गुफा में रह रहा था, मगर उसे पूरा यकीन था कि यहोवा उसकी देखभाल करेगा। उसी तरह जब हमें सारे रास्ते बंद नज़र आते हैं तब हम भी यहोवा की मदद पर पूरा भरोसा रख सकते हैं। याद कीजिए आसाप “ईश्‍वर के पवित्रस्थान” में जाने के बाद ही अपनी परेशानियों की वजह समझ पाया। (भज. 73:17) उसी तरह आध्यात्मिक रूप से पोषित होने के लिए हमें भी परमेश्‍वर से मदद माँगने की ज़रूरत है। इस तरह हम यहोवा की सेवा के लिए कदर दिखा सकेंगे फिर चाहे हमारे हालात कैसे भी हों और हम यहोवा को अपना भाग बनाएँगे।

14, 15. जब बाइबल के किसी वचन पर और ज़्यादा रौशनी डाली जाती है तो हमें कैसा रवैया दिखाना चाहिए और क्यों?

14 आध्यात्मिक रौशनी देनेवाला यहोवा जब बाइबल में पाए जानेवाले “परमेश्‍वर के गहरे रहस्यों” पर रौशनी डालता है तो आप कैसा रवैया दिखाते हैं? (1 कुरिं. 2:10-13) इस बारे में प्रेषित पतरस ने बेहतरीन मिसाल रखी। यीशु ने अपने सुननेवालों से कहा: “जब तक तुम इंसान के बेटे का माँस न खाओ और उसका लहू न पीओ, तुममें जीवन नहीं।” इन शब्दों का असल मतलब न समझते हुए कई चेलों ने कहा: “यह बात कितनी घिनौनी है, भला कौन इसे सुन सकता है?” लेकिन पतरस ने कहा: “प्रभु, हम किसके पास जाएँ? हमेशा की ज़िंदगी की बातें तो तेरे ही पास हैं।”—यूह. 6:53, 60, 66, 68.

15 पतरस को यीशु का माँस खाने और लहू पीने की बात पूरी तरह समझ नहीं आयी थी। लेकिन उसने आध्यात्मिक रौशनी देनेवाले परमेश्‍वर पर पूरा भरोसा रखा। जब किसी मामले पर आध्यात्मिक रौशनी और तेज़ हो जाती है तो क्या आप उस आध्यात्मिक फेरबदल के कारणों को समझने की कोशिश करते हैं? (नीति. 4:18) पहली सदी के बिरीया के लोगों ने “मन की बड़ी उत्सुकता से वचन स्वीकार किया। वे हर दिन बड़े ध्यान से शास्त्र की जाँच करते रहे।” (प्रेषि. 17:11) उनकी मिसाल पर चलने से यहोवा की सेवा के लिए हमारी कदर बढ़ेगी और इस तरह हम यहोवा को अपना भाग बना पाएँगे।

शादी सिर्फ प्रभु में कीजिए

16. पहला कुरिंथियों 7:39 में बतायी आज्ञा के मुताबिक हम परमेश्‍वर को अपना भाग कैसे बना सकते हैं?

16 मसीही एक और तरीके से परमेश्‍वर के मकसदों को मन में रख सकते हैं और वह है बाइबल की इस सलाह को अपनाकर कि शादी “सिर्फ प्रभु में” कीजिए। (1 कुरिं. 7:39) कइयों ने परमेश्‍वर की इस आज्ञा को तोड़ने के बजाय अविवाहित रहना बेहतर समझा है। परमेश्‍वर ऐसे लोगों की परवाह करता है। जब दाविद ने खुद को अकेला महसूस किया और उसे कहीं से मदद की आस नज़र नहीं आयी, तब उसने क्या किया? उसने कहा: “जब मेरी आत्मा मेरे भीतर से व्याकुल हो रही थी,” तब मैंने “अपने शोक की बातें [परमेश्‍वर] से खोलकर” कहीं और मैंने “अपना संकट उसके आगे प्रगट” किया। (भज. 142:1-3) ऐसा ही कुछ भविष्यवक्‍ता यिर्मयाह ने भी महसूस किया होगा क्योंकि उसने अविवाहित रहकर कई दशकों तक वफादारी से परमेश्‍वर की सेवा की। *

17. कभी-कभी हावी होनेवाले अकेलेपन पर एक बहन ने कैसे काबू पाया?

17 अमरीका की एक बहन कहती है: “मैंने शादी ना करने की कसम नहीं खायी। अगर मुझे सही इंसान मिले तो मैं शादी करने के लिए तैयार हूँ। मेरी माँ साक्षी नहीं है। उन्हें जो भी लड़का दिखता वे उससे शादी करने के लिए मुझ पर दबाव डालतीं। मैंने उनसे पूछा अगर मेरी शादीशुदा ज़िंदगी बरबाद हो गयी तो क्या वे उसकी ज़िम्मेदारी लेने को तैयार हैं? जैसे-जैसे समय गुज़रा, उन्होंने देखा कि मेरे पास अच्छी नौकरी है, मैं अपनी देखभाल खुद कर सकती हूँ और मैं खुश हूँ। उन्होंने मुझ पर दबाव डालना बंद कर दिया।” यह बहन कभी-कभी अकेला महसूस करती है। लेकिन वह कहती है: “मैं यहोवा पर पूरा भरोसा रखती हूँ। उसने मुझे कभी नहीं छोड़ा।” किस बात ने उस बहन को यहोवा पर भरोसा रखने में मदद दी? वह कहती है “प्रार्थना करने से मुझे यह एहसास होता है कि परमेश्‍वर असल है और मैं अकेली नहीं हूँ। इस दुनिया का मालिक मेरी सुनता है तो फिर मैं क्यों खुश न रहूँ और खुद पर नाज़ न करूँ?” उसे पूरा भरोसा है कि “लेने से ज़्यादा खुशी देने में है।” इसलिए वह कहती है, “मैं दूसरों की मदद करने की कोशिश करती हूँ और बदले में उनसे कुछ नहीं चाहती। जब मैं सोचती हूँ कि मैं इस इंसान की मदद कैसे कर सकती हूँ, तो मुझे अंदरूनी खुशी मिलती है।” (प्रेषि. 20:35) जी हाँ, यहोवा उसका भाग है और वह खुशी-खुशी परमेश्‍वर की सेवा कर रही है।

18. यहोवा किस मायने में आपको अपना भाग बना सकता है?

18 चाहे आप कैसे भी हालात में हों आप परमेश्‍वर को अपना भाग बना सकते हैं। जब आप ऐसा करेंगे तो आप परमेश्‍वर के खुश लोगों में गिने जाएँगे। (2 कुरिं. 6:16, 17) इसका नतीजा यह होगा कि यहोवा आपको अपना भाग बनाएगा जैसा पुराने ज़माने में हुआ था। (व्यवस्थाविवरण 32:9, 10 पढ़िए।) परमेश्‍वर ने दूसरे राष्ट्रों में से इसराएल को अपना भाग बनाया था, उसी तरह वह आपको भी अपना भाग बना सकता है और प्यार से आपकी देखभाल कर सकता है।—भज. 17:8.

[फुटनोट]

^ आप उसके उदाहरण का अध्ययन यिर्मयाह के ज़रिए हमारे लिए परमेश्‍वर का वचन (अँग्रेज़ी) किताब के अध्याय 8 और प्रहरीदुर्ग 92 8/1 पेज 29 पैरा. 10 से कर सकते हैं।

आप कैसे जवाब देंगे?

आप इन तरीकों से यहोवा को अपना भाग कैसे बना सकते हैं:

• पहले परमेश्‍वर के राज और उसके स्तरों के मुताबिक जो सही है उसकी खोज करके?

• आध्यात्मिक भोजन के लिए कदर दिखाकर?

• सिर्फ प्रभु में ही शादी करने की आज्ञा को मानकर?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 13 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

जब हम यहोवा की सेवा को ज़िंदगी में पहली जगह देते हैं तब वह हमारा भाग बन जाता है

[पेज 15 पर तसवीर]

यिर्मयाह के उदाहरण से हिम्मत मिलती है