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समय का पाबंद क्यों हों?

समय का पाबंद क्यों हों?

समय का पाबंद क्यों हों?

समय का पाबंद होना हमेशा आसान नहीं होता। हम समय पर पहुँचना चाहते हैं मगर सफर लंबा होता है, सड़क पर गाड़ियों की भरमार होती है या हमें बहुत-से काम निपटाने होते हैं जिस वजह से देर हो ही जाती है। फिर भी समय का पाबंद होना बहुत ज़रूरी है। उदाहरण के लिए अगर एक इंसान काम की जगह पर हमेशा समय पर पहुँचता है, तो लोग उस पर भरोसा करते हैं और उसे मेहनती समझते हैं। दूसरी तरफ अगर एक इंसान देर से पहुँचता है तो उससे दूसरों के काम पर तो असर पड़ता ही है साथ ही वह खुद भी अच्छा काम नहीं कर पाएगा। अगर एक विद्यार्थी देर से पहुँचता है तो उसकी कोई क्लास छूट सकती है और उसकी उन्‍नति में बाधा आ सकती है। एक इंसान के अस्पताल या दाँतों के डॉक्टर के पास देर से पहुँचने पर इसका असर उसके इलाज पर पड़ सकता है।

कुछ जगहों पर समय का पाबंद होना ज़रूरी नहीं समझा जाता। अगर हमारे यहाँ भी लोगों का यही रवैया है तो इसका असर हम पर भी हो सकता है। इसलिए ज़रूरी है कि हम समय पर पहुँचने की इच्छा बढ़ाएँ। इसकी अहमियत पर ध्यान देने से हम हर जगह समय पर पहुँचने की कोशिश करेंगे। आइए गौर करें कि हमें क्यों समय का पाबंद होना चाहिए? अगर समय पर पहुँचना हमें मुश्‍किल लगता है तो हम क्या कर सकते हैं? समय पर पहुँचने से हम किन फायदों की उम्मीद कर सकते हैं?

यहोवा समय का पाबंद

हमारे समय का पाबंद होने का सबसे बड़ा कारण है कि हम उस परमेश्‍वर की मिसाल पर चलना चाहते हैं जिसकी हम उपासना करते हैं। (इफि. 5:1) समय का पाबंद होने के मामले में यहोवा एक बेहतरीन उदाहरण पेश करता है। वह अपने मकसद को अपने नियत समय पर पूरा करता है। वह कभी देर नहीं करता। उदाहरण के लिए जब यहोवा ने नूह के समय की दुष्ट दुनिया को जलप्रलय से नाश करने की ठानी, तो उसने नूह से कहा: “तू गोपेर वृक्ष की लकड़ी का एक जहाज़ बना ले।” जब प्रलय का समय नज़दीक आया तो यहोवा ने नूह से जहाज़ के अंदर जाने को कहा और बताया: “सात दिन और बीतने पर मैं पृथ्वी पर चालीस दिन और चालीस रात तक जल बरसाता रहूंगा; और जितनी वस्तुएं मैं ने बनाईं हैं सब को भूमि के ऊपर से मिटा दूंगा।” और “सात दिन के उपरान्त” बिलकुल सही वक्‍त पर “प्रलय का जल पृथ्वी पर आने लगा।” (उत्प. 6:14; 7:4, 10) सोचिए अगर नूह और उसका परिवार सही समय पर जहाज़ के अंदर नहीं जाता तो उनका क्या होता? उन्हें अपने परमेश्‍वर की तरह ही समय का पाबंद होना ज़रूरी था।

जलप्रलय के करीब 450 साल बाद यहोवा ने कुलपिता अब्राहम से कहा कि उसे एक बेटा होगा जिसके ज़रिए वादा किया गया वंश आएगा। (उत्प. 17:15-17) परमेश्‍वर ने कहा कि “अगले वर्ष के इसी नियुक्‍त समय में” इसहाक पैदा होगा। क्या ऐसा हुआ? बाइबल हमें बताती है: “सारा को इब्राहीम से गर्भवती होकर उसके बुढ़ापे में उसी नियुक्‍त समय पर जो परमेश्‍वर ने उस से ठहराया था एक पुत्र उत्पन्‍न हुआ।”—उत्प. 17:21; 21:2.

बाइबल में ऐसे कई उदाहरण हैं जो दिखाते हैं कि यहोवा समय का पाबंद है। (यिर्म. 25:11-13; दानि. 4:20-25; 9:25) बाइबल हमसे कहती है कि हम यहोवा के आनेवाले न्याय के दिन का इंतज़ार करते रहें। इंसानी नज़रिए से लग सकता है कि उसमें “विलम्ब” हो रहा है, लेकिन हमें यकीन है कि “उस में देर न होगी।”—हब. 2:3.

उपासना में समय का पाबंद होना ज़रूरी

सभी इसराएली पुरुषों को ‘यहोवा के पर्ब्बों’ के लिए तय की गयी जगह और नियत समय पर इकट्ठा होना था। (लैव्य. 23:2, 4) परमेश्‍वर ने यह भी तय किया था कि किस वक्‍त पर कौन-सा बलिदान चढ़ाना है। (निर्ग. 29:38, 39; लैव्य. 23:37, 38) इससे साफ पता चलता है कि उपासना के मामले में परमेश्‍वर चाहता है कि उसके सेवक समय के पाबंद हों।

पहली सदी में जब प्रेषित पौलुस ने कुरिंथ के लोगों को ताकीद दी कि मसीही सभाएँ कैसे चलायी जानी चाहिए तो उसने उनसे कहा: “सब बातें कायदे से और अच्छे इंतज़ाम के मुताबिक हों।” (1 कुरिं. 14:40) इसका मतलब है मसीही सभाएँ नियुक्‍त समय पर शुरू की जानी थीं। इस मामले में आज भी यहोवा का नज़रिया नहीं बदला है। (मला. 3:6) तो फिर हम मसीही सभाओं में समय पर पहुँचने के लिए क्या कर सकते हैं?

समय का पाबंद होने की चुनौतियाँ

कुछ लोगों ने पाया है कि पहले से योजना बनाना काफी मददगार होता है। (नीति. 21:5) मान लीजिए, आपको कहीं एक तय समय पर पहुँचना है तो क्या आप घर से निकलने में इतनी देर लगाते हैं कि उस जगह किसी तरह दौड़ते-भागते पहुँचें? क्या यह बुद्धिमानी नहीं होगी कि थोड़ा और जल्दी निकलें ताकि रास्ते में अगर “संयोग” से कुछ अनहोनी हो जाए, तब भी समय पर पहुँच सकें? (सभो. 9:11) होसे नाम का एक जवान आदमी जो समय का बड़ा पाबंद है, कहता है: “एक बात जो किसी को समय पर पहुँचने में मदद कर सकती है वह है, पहले से इस बात का अंदाज़ा लगाना कि फलाँ जगह पहुँचने में कितना वक्‍त लगेगा।” *

नौकरी करनेवालों को शायद सभाओं में समय पर पहुँचने के लिए कुछ और इंतज़ाम करने पड़ें ताकि वे काम की जगह से जल्दी निकल सकें। इथियोपिया में रहनेवाले एक साक्षी को शिफ्ट ड्यूटी करनी पड़ती थी यानी उसके काम का समय बदलता रहता था। उसने अनुमान लगाया कि जब उसकी शिफ्ट बदलेगी तो उसे सभाओं में पहुँचने में 45 मिनट की देर हो सकती। इसलिए उसने अपने साथ काम करनेवाले से कहा कि मैं अपनी सभाओं में समय पर पहुँचना चाहता हूँ तो क्या आप उस दिन थोड़ा जल्दी आ सकते हैं। बदले में यह साक्षी उसके लिए और सात घंटे काम करने के लिए राज़ी हो गया।

अगर हमारे बच्चे छोटे हैं तो सभाओं में समय पर पहुँचना और भी मुश्‍किल हो जाता है। बच्चों को तैयार करने की ज़िम्मेदारी अकसर माँ पर आती है लेकिन घर के दूसरे सदस्य भी इसमें मदद कर सकते हैं और उन्हें ऐसा करना भी चाहिए। मेक्सिको में रहनेवाली एक माँ एस्परॉन्ज़ा ने अकेले ही आठ बच्चों की परवरिश की है। अब उसके बच्चों की उम्र 5 से 23 साल के बीच है। एस्परॉन्ज़ा बताती है कि उसका परिवार कैसे सही समय पर सभाओं में पहुँच पाता है: “मेरी बड़ी बेटी छोटे बच्चों को तैयार होने में मदद करती है। उस वक्‍त मैं घर के दूसरे काम निपटा लेती हूँ और तैयार होकर सभाओं के लिए सही समय पर निकल पाती हूँ।” इस परिवार ने यह तय किया है कि वे किस समय पर घर से सभाओं के लिए निकलेंगे और इसमें पूरा परिवार एक-दूसरे का साथ देता है।

उपासना में समय का पाबंद होने के फायदे पाना

जब हम उन आशीषों के बारे में सोचते हैं जो मसीही सभाओं में समय पर पहुँचने से मिलती हैं, तो समय का पाबंद होने की हमारी इच्छा और हमारा इरादा और मज़बूत हो जाता है। सैंड्रा नाम की एक जवान स्त्री ने सभाओं में जल्दी पहुँचने की आदत डाली। उसका कहना है: “जल्दी पहुँचने की एक बात मुझे अच्छी लगती है कि मैं भाई-बहनों से मिल पाती हूँ, उनसे बात कर पाती हूँ और इससे उन्हें अच्छी तरह जानने का मौका मिलता है।” राज-घर में जल्दी पहुँचने से हम भाई-बहनों के अनुभव सुन पाते हैं कि उन्होंने कैसे वफादारी से सेवा करते हुए धीरज रखा। हम अपनी हौसला बढ़ानेवाली बातों से अपने भाई-बहनों पर अच्छा असर डाल सकते हैं और उन्हें ‘प्यार करने और बढ़िया कामों के लिए उकसा सकते हैं।’—इब्रा. 10:24, 25.

मसीही सभाएँ गीत और प्रार्थना से शुरू होती हैं, जो कि हमारी उपासना का अहम हिस्सा हैं। (भज. 149:1) हमारे गीतों से यहोवा की महिमा होती है और हमें उन गुणों की याद दिलाते हैं जो हमें अपने अंदर बढ़ाने चाहिए, साथ ही हमें प्रचार में खुशी-खुशी हिस्सा लेने के लिए उकसाते हैं। लेकिन सभाओं की शुरूआत में जो प्रार्थना की जाती है उसके बारे में क्या कहा जा सकता है? पुराने ज़माने में यहोवा ने मंदिर को अपनी ‘प्रार्थना का भवन’ कहा। (यशा. 56:7) आज हम अपनी सभाओं में परमेश्‍वर से प्रार्थना करने के लिए जमा होते हैं। शुरूआती प्रार्थना में न सिर्फ यहोवा के निर्देशन और पवित्र शक्‍ति के लिए बिनती की जाती है, बल्कि इससे सभाओं में पेश की जानेवाली जानकारी लेने के लिए हमारा दिलो-दिमाग भी तैयार किया जाता है। हमें ठान लेना चाहिए कि हम अपनी सभाओं में शुरूआती गीत और प्रार्थना से पहले पहुँचेंगे।

तेईस साल की हेलेन बताती है कि वह क्यों सभाओं में जल्दी पहुँचती है: “मेरे हिसाब से यह एक तरीका है जिससे मैं यहोवा के लिए अपना प्यार दिखा सकती हूँ क्योंकि सभाओं में पेश की जानेवाली जानकारी उसी की तरफ से मिलती है, जिसमें गीत और शुरूआती प्रार्थना भी शामिल हैं।” क्या हमें भी ऐसा ही रवैया नहीं रखना चाहिए? जी हाँ, बिलकुल। इसलिए आइए हम हर काम में समय का पाबंद होने की आदत डालें, खास तौर से ऐसे कामों में जो सच्चे परमेश्‍वर की उपासना से जुड़े होते हैं।

[फुटनोट]

^ नाम बदल दिए गए हैं।

[पेज 26 पर तसवीर]

पहले से अच्छी तैयारी कीजिए

[पेज 26 पर तसवीर]

“संयोग” से कुछ अनहोनी हो सकती है इसलिए थोड़ा वक्‍त रखिए

[पेज 26 पर तसवीरें]

सभाओं में जल्दी पहुँचने के फायदे पाइए