आपकी खराई से यहोवा का दिल खुश होता है
आपकी खराई से यहोवा का दिल खुश होता है
“हे मेरे पुत्र, बुद्धिमान होकर मेरा मन आनन्दित कर, तब मैं अपने निन्दा करनेवाले को उत्तर दे सकूंगा।”—नीति. 27:11.
1, 2. (क) अय्यूब की किताब के मुताबिक शैतान ने क्या दावा किया? (ख) हम यह कैसे कह सकते हैं कि अय्यूब के ज़माने के बाद भी शैतान ने यहोवा को ताना मारना नहीं छोड़ा?
जब शैतान ने अय्यूब की खराई पर सवाल उठाया, तो यहोवा ने उसे अय्यूब की परीक्षा लेने की इजाज़त दी। नतीजा, अय्यूब को अपने सारे मवेशियों से हाथ धोना पड़ा, उसके बच्चे मर गए और वह एक घिनौनी बीमारी से पीड़ित हो गया। जब शैतान ने अय्यूब की खराई पर सवाल उठाया, तो उसके निशाने पर अकेला अय्यूब ही नहीं था। गौर कीजिए, उसने क्या दावा किया: “खाल के बदले खाल, परन्तु प्राण के बदले मनुष्य अपना सब कुछ दे देता है।” जी हाँ, शैतान ने जो मसला उठाया था, उसमें केवल अय्यूब ही नहीं बल्कि परमेश्वर के सारे वफादार जन शामिल हैं। और यह मसला अय्यूब की मौत के हज़ारों साल बाद, आज भी बना हुआ है।—अय्यू. 2:4.
2 अय्यूब की आज़माइशों के करीब 600 साल बाद यहोवा ने सुलैमान को यह लिखने के लिए प्रेरित किया: “हे मेरे पुत्र, बुद्धिमान होकर मेरा मन आनन्दित कर, तब मैं अपने निन्दा करनेवाले को उत्तर दे सकूंगा।” (नीति. 27:11) इससे साफ ज़ाहिर है कि सुलैमान के समय में भी शैतान, यहोवा पर ताना कस रहा था। और-तो-और, प्रेषित यूहन्ना को एक दर्शन दिया गया, जिसमें उसने देखा कि शैतान को स्वर्ग से खदेड़े जाने के बाद भी वह परमेश्वर के सेवकों पर दोष लगा रहा है। शैतान को सन् 1914 में परमेश्वर का राज स्थापित होने के कुछ समय बाद वहाँ से निकाल दिया गया था। जी हाँ, आज इन अंतिम दिनों के आखिरी दौर में भी शैतान, परमेश्वर के सेवकों की खराई पर सवाल उठा रहा है!—प्रका. 12:10.
3. अय्यूब की किताब हमें कौन-सी तीन अहम बातें सिखाती है?
3 अय्यूब की किताब से हम कई अहम बातें सीखते हैं। उनमें से तीन पर गौर कीजिए। पहली, अय्यूब पर जो आज़माइशें आयीं, उनसे पता चलता है कि इंसानों का असली दुश्मन और परमेश्वर के लोगों के खिलाफ विरोध भड़कानेवाला कौन है। वह दुश्मन कोई और नहीं, शैतान इब्लीस है। दूसरी, अगर परमेश्वर के साथ हमारा नज़दीकी रिश्ता है, तो चाहे हम पर कोई भी परीक्षा आए, हम अपनी खराई बनाए रखेंगे। तीसरी, आज़माइशों के समय परमेश्वर हमें धीरज धरने में मदद देता है, ठीक जैसे उसने अय्यूब की मदद की थी। आज यह मदद हमें यहोवा अपने वचन, अपने संगठन और अपनी पवित्र शक्ति के ज़रिए देता है।
असली दुश्मन कौन है, यह हमेशा याद रखिए
4. दुनिया के हालात के लिए कौन ज़िम्मेदार है?
4 कई लोग यह नहीं मानते कि शैतान सचमुच में है। इसलिए जब वे दुनिया के हालात देखते हैं, तो घबरा जाते हैं, मगर इसकी असली वजह नहीं समझ पाते कि यह सब शैतान का किया धरा है। यह सच है कि ज़्यादातर दुख-तकलीफों के लिए खुद इंसान ज़िम्मेदार हैं। हमारे पहले माता-पिता आदम और हव्वा ने अपने सिरजनहार से आज़ाद होने का चुनाव किया। और उनके बाद जितनी भी पीढ़ियाँ आयीं, उन्होंने गलत फैसले किए जिस वजह से दुनिया का यह हाल हो गया। मगर सबसे बड़ा दोषी शैतान है, क्योंकि उसी ने हव्वा को परमेश्वर के खिलाफ जाने के लिए बहकाया था। उसने दुनिया में एक ऐसी व्यवस्था खड़ी की है, जो पूरी तरह से उसकी मुट्ठी में है। और क्योंकि वह ‘इस दुनिया की व्यवस्था का ईश्वर’ है, इसलिए इंसानों में वही लक्षण नज़र आते हैं जो खुद उसमें हैं। जैसे घमंड, जलन, लालच, मक्कारी, विरोध या झगड़े की भावना और बगावत करना। (2 कुरि. 4:4; 1 तीमु. 2:14; 3:6; याकूब 3:14, 15 पढ़िए।) इन वजहों से राजनीति और धर्म के नाम पर कई दंगे-फसाद हुए हैं। साथ ही नफरत, भ्रष्टाचार और अशांति दीमक की तरह समाज को खोखला कर रहे हैं।
5. हमारे पास जो बेशकीमती ज्ञान है, उसे हम कैसे इस्तेमाल करना चाहेंगे?
5 हम यहोवा के सेवकों के पास कितना बेशकीमती ज्ञान है! हमें मालूम है कि दुनिया के दिन-ब-दिन बिगड़ते हालात के लिए कौन ज़िम्मेदार है। क्या यह जानने के बाद हमारा दिल हमसे नहीं कहता कि हम लोगों को प्रचार करें, ताकि वे भी जान सकें कि सारे फसाद की जड़ शैतान है? हमारे लिए यह कितनी खुशी की बात है कि हम सच्चे परमेश्वर यहोवा की तरफ हैं! और जब हम लोगों को बताते हैं कि परमेश्वर बहुत जल्द शैतान और हमारी दुख-तकलीफों को खत्म कर देगा, तो क्या हमें और भी खुशी नहीं मिलती?
6, 7. (क) परमेश्वर के लोगों पर ज़ुल्म ढाने के पीछे किसका हाथ है? (ख) हम एलीहू की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?
6 शैतान न सिर्फ दुनिया की ज़्यादातर मुसीबतों के लिए ज़िम्मेदार है, बल्कि परमेश्वर के लोगों के खिलाफ विरोध भड़कानेवाला भी वही है। उसने हमें परखने की ठान ली है। यीशु मसीह ने प्रेषित पतरस से कहा था: “शमौन, शमौन, देख! शैतान ने तुम लोगों को गेहूँ की तरह फटकने और छानने की माँग की है।” (लूका 22:31) उसी तरह यीशु के नक्शेकदम पर चलनेवाले हममें से हरेक पर शैतान आज़माइशें ज़रूर लाएगा। पतरस ने इब्लीस की तुलना “गरजते हुए शेर” से की जो “इस ताक में घूम रहा है कि किसे निगल जाए।” और पौलुस ने कहा: “जितने भी मसीह यीशु में परमेश्वर की भक्ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं उन सब पर इसी तरह ज़ुल्म ढाए जाएँगे।”—1 पत. 5:8; 2 तीमु. 3:12.
7 जब कोई संगी मसीही मुसीबत में पड़ता है, तो हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि उसे यहोवा की तरफ से सज़ा मिल रही है। जैसा कि हमने देखा, हमारा असली दुश्मन शैतान है। हमें उस भाई से किनारा नहीं करना चाहिए और इस तरह अय्यूब के झूठे साथियों की तरह नहीं बनना चाहिए। इसके बजाय हमें एलीहू की तरह बनना चाहिए, जिसने अपनी बातों से अय्यूब की हिम्मत बढ़ायी और उसका सच्चा दोस्त साबित हुआ। शैतान के खिलाफ लड़ने में हमें अपने भाई की मदद करनी चाहिए, क्योंकि शैतान हम सब का दुश्मन है। (नीति. 3:27; 1 थिस्स. 5:25) हमारा मकसद होना चाहिए कि हम हर हाल में अपने भाई को खराई बनाए रखने में मदद दें। इस तरह वह यहोवा का दिल खुश कर पाएगा।
8. शैतान, अय्यूब को यहोवा की महिमा करने से क्यों नहीं रोक पाया?
8 शैतान ने सबसे पहले अय्यूब के सारे मवेशी छीन लिए। ये मवेशी उसकी संपत्ति थे, क्योंकि शायद इनसे उसकी आमदनी होती थी। लेकिन अय्यूब इन्हें उपासना में भी इस्तेमाल करता था। अपने बच्चों को शुद्ध करने के बाद वह “बड़े तड़के उठता और अपने हर बच्चे की ओर से होमबलि अर्पित करता। वह सोचता, ‘हो सकता है, मेरे बच्चे अपनी जेवनार में परमेश्वर के विरुद्ध भूल से कोई पाप कर बैठे हों।’ अय्यूब . . . सदा ऐसा किया करता था।” (अय्यू. 1:4, 5, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) जी हाँ, अय्यूब नियमित तौर पर यहोवा को जानवरों की बलि चढ़ाता था। लेकिन जब अय्यूब पर आज़माइशों का दौर शुरू हुआ, तो उसके लिए बलि चढ़ाना मुमकिन नहीं था। क्योंकि “संपत्ति” के नाम पर अब उसके पास कुछ नहीं रह गया था, जिससे वह यहोवा की महिमा करता। (नीति. 3:9) लेकिन वह अपने होंठों से यहोवा की महिमा कर सकता था और उसने ऐसा किया भी।
यहोवा के साथ एक नज़दीकी रिश्ता बनाइए
9. हमारी ज़िंदगी की सबसे बड़ी दौलत क्या है?
9 चाहे हम अमीर हों या गरीब, जवान हों या बूढ़े, सेहतमंद हों या बीमार, हम यहोवा के साथ एक नज़दीकी रिश्ता बना सकते हैं। यहोवा के साथ एक मज़बूत रिश्ता होने से हम हर परीक्षा में अपनी खराई बनाए रख पाएँगे और उसका दिल खुश कर पाएँगे। कुछ लोगों को तो सच्चाई का बहुत कम ज्ञान था, लेकिन फिर भी वे हिम्मत के साथ यहोवा के पक्ष में खड़े रहे और अपनी खराई बनाए रखी।
10, 11. (क) जब हमारी एक बहन पर खराई की परीक्षा आयी, तो उसने क्या किया? (ख) इस बहन ने शैतान को क्या ज़बरदस्त जवाब दिया?
10 बहन वालेनटीना गारनोफस्काया की मिसाल लीजिए। वह रशिया के उन साक्षियों में से एक थी, जिसने अय्यूब की तरह कड़ी-से-कड़ी परीक्षाओं में भी अपनी खराई नहीं तोड़ी। सन् 1945 में जब वह करीब 20 साल की थी, तो एक भाई ने उसे गवाही दी। वह भाई दो बार और उसे बाइबल के बारे में बताने आया, लेकिन फिर उसकी मुलाकात उस भाई से नहीं हुई। मगर फिर भी, वालेनटीना ने अपने पड़ोसियों को प्रचार करना शुरू कर दिया। इस वजह से उसे गिरफ्तार कर लिया गया और आठ साल के लिए एक शिविर में भेज दिया गया। सन् 1953 में उसे रिहा किया गया। छूटते ही वह प्रचार काम में दोबारा लग गयी। उसे फिर से गिरफ्तार किया गया और इस बार उसे दस साल की सज़ा सुनायी गयी। इस दौरान उसे कई शिविरों में रखा गया। कुछ साल बाद उसे एक और शिविर में भेजा गया, जहाँ कुछ साक्षी बहनों के पास बाइबल की एक कॉपी थी। एक दिन एक बहन ने वालेनटीना को वह बाइबल दिखायी। बाइबल देखकर उसके अंदर एक सिहरन-सी दौड़ गयी! इससे पहले उसने बाइबल उस भाई के हाथ में देखी थी, जिसने उसे सन् 1945 में प्रचार किया था।
11 सन् 1967 में वालेनटीना को छोड़ दिया गया और तब जाकर वह यहोवा को अपने समर्पण की निशानी में बपतिस्मा ले पायी। अपनी आज़ादी का इस्तेमाल उसने जोश के साथ प्रचार करने में किया और ऐसा वह सन् 1969 तक कर पायी। उस साल, उसे दोबारा गिरफ्तार किया गया। इस बार उसे तीन साल की जेल हुई। मगर वालेनटीना ने प्रचार करना बंद नहीं किया। सन् 2001 में उसकी मौत हो गयी, लेकिन उससे पहले उसने 44 लोगों को सच्चाई सीखने में मदद दी। उसने अपनी ज़िंदगी के 21 साल जेल और शिविर में काटे। अपनी खराई बनाए रखने के लिए वह अपना सबकुछ त्याग करने के लिए तैयार थी, अपनी आज़ादी भी। अपनी ज़िंदगी के आखिर में वालेनटीना ने कहा: “मेरा अपना कोई घर नहीं था। मेरे पास इतना कम सामान था कि वह एक सूटकेस में आ जाता था। लेकिन मैं यहोवा की सेवा में बहुत खुश और संतुष्ट थी।” सच, वालेनटीना ने शैतान के इस दावे का क्या ही ज़बरदस्त जवाब दिया कि इंसान परीक्षाओं के वक्त परमेश्वर का वफादार नहीं रहेगा। (अय्यू. 1:9-11) हम इस बात का यकीन रख सकते हैं कि वालेनटीना ने यहोवा का दिल खुश किया। और यहोवा उस दिन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा है, जब वह वालेनटीना और बाकी सभी वफादार जनों को, जो मर गए हैं, दोबारा ज़िंदा करेगा।—अय्यू. 14:15.
12. यहोवा और हमारे रिश्ते में प्यार की क्या भूमिका है?
12 यहोवा के लिए हमारा प्यार ही हमारी मित्रता का आधार है। हम यहोवा के गुणों की दिलो-जान से कदर करते हैं और उसके मकसदों के मुताबिक जीने की हर मुमकिन कोशिश करते हैं। शैतान के दावे के उलट, हम खुशी-खुशी और बिना किसी शर्त के यहोवा के लिए प्यार दिखाते हैं। यह सच्चा प्यार आज़माइशों के दौरान खराई बनाए रखने का हमारा इरादा मज़बूत करता है। जहाँ तक यहोवा की बात है, वह “अपने भक्तों के मार्ग की रक्षा करता है।”—नीति. 2:8; भज. 97:10.
13. हम यहोवा के लिए जो करते हैं, उसे वह किस नज़र से देखता है?
13 प्यार हमें उकसाता है कि हम यहोवा के नाम की बड़ाई करें, फिर चाहे हम उसकी सेवा में ज़्यादा न कर पाएँ। उसकी नज़र में सिर्फ यह बात मायने नहीं रखती कि हम क्या करते हैं, बल्कि यह भी कि हम किस इरादे से उसकी सेवा कर रहे हैं। यहोवा हमारे अच्छे इरादों को देखता है और अगर हम उतना नहीं कर पाते जितना हम चाहते हैं, तो वह हमें दोषी नहीं ठहराता। अय्यूब पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा, उसे बहुत कुछ सहना पड़ा, मगर फिर भी उसने अपने दोष लगानेवालों से कहा कि वह यहोवा के मार्गों से प्यार करता है। (अय्यूब 10:12; 28:28 पढ़िए।) अय्यूब की किताब का आखिरी अध्याय बताता है कि एलीपज, बिलदद और सोपर पर यहोवा का क्रोध भड़क उठा, क्योंकि उन्होंने सच नहीं बोला था। उसी अध्याय में, यहोवा ने चार बार अय्यूब को “मेरा दास” कहा और उससे कहा कि वह अपने साथियों के लिए प्रार्थना करे, ताकि उन्हें अपने पापों की माफी मिल सके। इस तरह यहोवा ने दिखाया कि वह अय्यूब से खुश है। (अय्यू. 42:7-9) हमें भी ऐसे काम करने चाहिए जिनसे हमें यहोवा की मंज़ूरी मिले।
यहोवा अपने वफादार सेवकों की मदद करता है
14. यहोवा ने अय्यूब की सोच कैसे सुधारी?
14 हालाँकि अय्यूब असिद्ध था, फिर भी वह अपनी खराई पर बना रहा। हाँ, कभी-कभी दबाव में आकर वह मामले को सही नज़र से देखने से चूक गया। जैसे उसने यहोवा से कहा: ‘मैं तेरी दोहाई देता हूं, परन्तु तू नहीं सुनता; तू अपने बली हाथ से मुझे सताता है।’ इसके अलावा, अय्यूब खुद को सही साबित करने में बहुत ज़्यादा ध्यान दे रहा था। उसने कहा: “मैं दुष्ट नहीं हूं” और “मुझसे कोई उपद्रव नहीं हुआ है, और मेरी प्रार्थना पवित्र है।” (अय्यू. 10:7; 16:17; 30:20, 21) फिर भी यहोवा ने प्यार से उसकी मदद की और उससे कई सवाल पूछे, जिससे अय्यूब का ध्यान खुद पर से हट गया। उन सवालों ने उसे यह भी देखने में मदद दी कि परमेश्वर कितना महान है, जबकि इंसान उसके सामने कुछ भी नहीं। अय्यूब ने परमेश्वर की ताड़ना कबूल की और खुद को सुधारा।—अय्यूब 40:8; 42:2, 6 पढ़िए।
15, 16. आज यहोवा अपने सेवकों को कैसे मदद देता है?
15 आज भी यहोवा अपने सेवकों को प्यार से सलाह और मदद देता है। इतना ही नहीं, यहोवा ने हमारे लिए कुछ इंतज़ाम भी किए हैं, जिनसे हमें बेशुमार फायदे होते हैं। जैसे, उसके बेटे यीशु का छुड़ौती बलिदान जिसके ज़रिए हमें अपने पापों की माफी मिलती है। इस बलिदान के आधार पर हम असिद्ध होने के बावजूद परमेश्वर के साथ एक करीबी रिश्ता बना सकते हैं। (याकू. 4:8; 1 यूह. 2:1) इसके अलावा, जब हम परीक्षाओं के वक्त यहोवा को पुकारते हैं, तो वह हमें अपनी पवित्र शक्ति के ज़रिए मदद और हिम्मत देता है। यहोवा ने हमें पूरी बाइबल भी दी है। उसमें लिखी बातों को पढ़ने और मनन करने से हम विश्वास की परीक्षाओं के लिए खुद को तैयार कर पाते हैं। बाइबल का अध्ययन करने से हम परमेश्वर की हुकूमत और हमारी खराई पर उठाए सवाल को अच्छी तरह समझ पाएँगे।
16 इसके अलावा, पूरी धरती पर फैले भाईचारे का हिस्सा होने से भी हमें बहुत मदद मिलती है, जिसे यहोवा अपने ‘विश्वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाले दास’ के ज़रिए आध्यात्मिक भोजन देता है। (मत्ती 24:45-47) यहोवा के साक्षियों की लगभग 1 लाख मंडलियों में रखी सभाएँ हमें मार्गदर्शन देती हैं और विश्वास की परीक्षाओं का सामना करने की हिम्मत देती हैं। यह बात जर्मनी की एक जवान साक्षी, शीला के अनुभव से साफ ज़ाहिर होती है।
17. एक जवान साक्षी का अनुभव कैसे दिखाता है कि यहोवा का संगठन हमें जो निर्देश देता है, उसे मानने में ही बुद्धिमानी है?
17 एक दिन शीला की क्लास में थोड़ी देर के लिए कोई टीचर नहीं था। तब क्लास के बच्चों ने सोचा, क्यों न हम प्रश्न-फल की तख्ती का इस्तेमाल करके भविष्य जानने की कोशिश करें। इस पर शीला फौरन क्लास से बाहर निकल गयी। बाद में उसे पता चला कि प्रश्न-फल की तख्ती इस्तेमाल करते वक्त, कुछ बच्चों को दुष्ट दूतों की मौजूदगी का एहसास होने लगा और वे डर के मारे क्लास से भाग खड़े हुए। शीला को खुशी हुई कि उसने क्लास छोड़कर सही फैसला किया। किस बात ने उसे सही फैसला लेने में मदद दी? वह बताती है: “इस घटना से कुछ समय पहले हमें सभा में प्रश्न-फल की तख्ती के खतरों के बारे में बताया गया था। इसलिए मैं जानती थी कि मुझे क्या करना है। मैं यहोवा को खुश करना चाहती थी, जैसा कि नीतिवचन 27:11 में बताया गया है।” सचमुच, उस सभा में हाज़िर होने और कार्यक्रम को ध्यान से सुनने से शीला को कितना फायदा हुआ!
18. आपने क्या करने की ठानी है?
18 आइए हममें से हरेक यह ठान ले कि हम परमेश्वर के संगठन से मिली हिदायतों को तहेदिल से मानते रहेंगे। सभाओं में नियमित हाज़िर होने, बाइबल और उस पर आधारित साहित्यों का अध्ययन करने, प्रार्थना और प्रौढ़ मसीही भाई-बहनों की संगति करने से हमें वह मार्गदर्शन और मदद मिलेगी जिसकी हमें ज़रूरत है। यहोवा चाहता है कि हम अपनी खराई बनाए रखें और उसे पूरा यकीन है कि हम ऐसा ज़रूर करेंगे। यहोवा का नाम रौशन करने, अपनी खराई बनाए रखने और यहोवा का दिल खुश करने का हमें क्या ही बड़ा सम्मान मिला है!
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 8 पर तसवीर]
जो बेशकीमती ज्ञान आपको मिला है, क्या आपका दिल नहीं उकसाता कि आप उसे दूसरों के साथ बाँटें?
[पेज 9 पर तसवीर]
खराई बनाए रखने में हम अपने मसीही भाई-बहनों की मदद कर सकते हैं
[पेज 10 पर तसवीर]
अपनी खराई बनाए रखने के लिए वालेनटीना सबकुछ त्याग करने को तैयार थी