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प्रेम से साहस बढ़ता है

प्रेम से साहस बढ़ता है

प्रेम से साहस बढ़ता है

“परमेश्‍वर ने हमें भय की नहीं पर सामर्थ, और प्रेम, और संयम की आत्मा दी है।”—2 तीमुथियुस 1:7.

1, 2. (क) प्यार एक इंसान को क्या करने के लिए उभार सकता है? (ख) यीशु की दिलेरी क्यों अनोखी थी?

 एक नया शादीशुदा जोड़ा, ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर बसे एक कसबे के पास, समुद्र की गहराई में तैर रहा था। वे दोनों पानी के ऊपर आने ही वाले थे कि अचानक एक बड़ी सफेद शार्क मछली, पत्नी पर हमला करने के लिए लपकी। तभी पति ने अपनी पत्नी को एक तरफ धकेल दिया और खुद शार्क का शिकार बन गया। वाकई उस पति ने क्या ही दिलेरी दिखायी! अपने पति के अंत्येष्टि समारोह में उस विधवा स्त्री ने कहा: “उन्होंने मेरी खातिर अपनी जान दे दी।”

2 सच, प्यार एक इंसान को बेमिसाल हिम्मत दिखाने के लिए उभार सकता है। यीशु मसीह ने खुद कहा था: “इस से बड़ा प्रेम किसी का नहीं, कि कोई अपने मित्रों के लिये अपना प्राण दे।” (यूहन्‍ना 15:13) यह बात कहने के करीब 24 घंटे बाद ही यीशु ने अपनी जान कुरबान की, मगर किसी एक इंसान के लिए नहीं बल्कि पूरी मानवजाति के लिए। (मत्ती 20:28) लेकिन उसकी यह दिलेरी अनोखी थी। वह क्यों? क्योंकि उसने अचानक बिना सोचे-समझे अपनी जान नहीं दी थी। इसके बजाय, वह पहले से जानता था कि उसका मज़ाक उड़ाया जाएगा, उसके साथ बुरा सलूक किया जाएगा, उसके बेकसूर होने पर भी उसे सज़ा दी जाएगी और आखिरकार, उसे यातना स्तंभ पर मार डाला जाएगा। यहाँ तक कि उसने अपने चेलों को भी इस बारे में बताकर पहले से तैयार किया था। उसने उनसे कहा: “देखो, हम यरूशलेम को जाते हैं, और मनुष्य का पुत्र महायाजकों और शास्त्रियों के हाथ पकड़वाया जाएगा, और वे उस को घात के योग्य ठहराएंगे, और अन्य जातियों के हाथ में सौंपेंगे। और वे उस को ठट्ठों में उड़ाएंगे, और उस पर थूकेंगे, और उसे कोड़े मारेंगे, और उसे घात करेंगे।”—मरकुस 10:33, 34.

3. यीशु को किन बातों ने अनोखी हिम्मत दिखाने के लिए उभारा?

3 यीशु को ऐसी अनोखी हिम्मत दिखाने के लिए किन बातों ने उभारा था? खासकर उसके विश्‍वास और परमेश्‍वर के भय ने। (इब्रानियों 5:7; 12:2) मगर इससे भी बढ़कर, यीशु को परमेश्‍वर और दूसरे इंसानों के लिए उसके प्यार ने ऐसी हिम्मत दिखाने के लिए उभारा। (1 यूहन्‍ना 3:16) अगर हम विश्‍वास और परमेश्‍वर के लिए भय पैदा करने के साथ-साथ प्यार का गुण पैदा करें, तो हम भी मसीह की तरह साहस दिखा पाएँगे। (इफिसियों 5:2) हम ऐसा प्यार कैसे पैदा कर सकते हैं? इसके लिए हमें सबसे पहले जानना होगा कि प्रेम का स्रोत कौन है।

“प्रेम परमेश्‍वर से है”

4. ऐसा क्यों कहा जा सकता है कि यहोवा, प्रेम का स्रोत है?

4 यहोवा, प्रेम का साक्षात्‌ रूप है और वही इसका स्रोत भी है। प्रेरित यहून्‍ना ने लिखा: “हे प्रियो, हम आपस में प्रेम रखें; क्योंकि प्रेम परमेश्‍वर से है: और जो कोई प्रेम करता है, वह परमेश्‍वर से जन्मा है; और परमेश्‍वर को जानता है। जो प्रेम नहीं रखता, वह परमेश्‍वर को नहीं जानता, क्योंकि परमेश्‍वर प्रेम है।” (1 यूहन्‍ना 4:7, 8) इसलिए एक इंसान परमेश्‍वर के जैसा प्यार तभी पैदा कर सकता है, जब वह यहोवा के करीब आएगा। ऐसा करने के लिए उसे सही ज्ञान लेना होगा और पूरे दिल से उसके मुताबिक काम करना होगा।—फिलिप्पियों 1:9; याकूब 4:8; 1 यूहन्‍ना 5:3.

5, 6. यीशु के शुरू के चेलों को मसीह जैसा प्यार पैदा करने में किस बात ने मदद दी?

5 यीशु ने जब आखिरी बार, अपने 11 वफादार चेलों के साथ मिलकर प्रार्थना की, तो उसमें उसने बताया कि परमेश्‍वर को जानने और प्रेम में बढ़ने के बीच एक नाता है। उसने कहा: “मैं ने तेरा नाम उन को बताया और बताता रहूंगा कि जो प्रेम तुझ को मुझ से था, वह उन में रहे और मैं उन में रहूं।” (यूहन्‍ना 17:26) यीशु ने अपने चेलों को वैसा ही प्यार पैदा करने में मदद दी, जो उसके और पिता के बीच में था। उसने अपनी बातों और कामों से दिखाया कि परमेश्‍वर के नाम का क्या मतलब है, यानी उसने परमेश्‍वर के शानदार गुणों को ज़ाहिर किया। इसलिए वह कह सका: “जिस ने मुझे देखा है उस ने पिता को देखा है।”—यूहन्‍ना 14:9, 10; 17:8.

6 मसीह जैसा प्यार भी परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा का एक फल है। (गलतियों 5:22) जब सा.यु. 33 में मसीहियों को वादा की गयी पवित्र आत्मा मिली, तो वे न सिर्फ उन बातों को याद कर सके जो यीशु ने उन्हें सिखायी थीं, बल्कि उन्हें शास्त्रों की और भी अच्छी समझ हासिल हुई। इससे परमेश्‍वर के लिए उनका प्यार और भी गहरा हुआ। (यूहन्‍ना 14:26; 15:26) नतीजा, उन्होंने बड़ी हिम्मत और जोश के साथ सुसमाचार का प्रचार किया, उस वक्‍त भी जब उनकी जान पर बन आयी थी।—प्रेरितों 5:28, 29.

साहस और प्रेम, कामों से ज़ाहिर होता है

7. पौलुस और बरनबास ने अपने मिशनरी दौरे में किन मुश्‍किलों का सामना किया था?

7 प्रेरित पौलुस ने लिखा: “परमेश्‍वर ने हमें भय की नहीं पर सामर्थ, और प्रेम, और संयम की आत्मा दी है।” (2 तीमुथियुस 1:7) पौलुस ने यह बात अपने तजुरबे से कही थी। गौर कीजिए कि जब उसने और बरनबास ने मिलकर कई मिशनरी दौरे किए, तो उनके साथ क्या-क्या हुआ। उन्होंने अन्ताकिया, इकुनियुम, लुस्त्रा, और दूसरे कई शहरों में प्रचार किया था। हर शहर में कुछ लोग विश्‍वासी बने, जबकि दूसरों ने उनका कड़ा विरोध किया। (प्रेरितों 13:2, 14, 45, 50; 14:1, 5) लुस्त्रा में तो गुस्से से पागल एक भीड़ ने पौलुस पर पत्थरवाह भी किया और उसे मरा समझकर छोड़ दिया। “पर जब चेले [पौलुस] की चारों ओर आ खड़े हुए, तो वह उठकर नगर में गया और दूसरे दिन बरनबास के साथ दिरबे को चला गया।”—प्रेरितों 14:6, 19, 20.

8. पौलुस और बरनबास के साहस से यह कैसे ज़ाहिर हुआ कि उन्हें लोगों के लिए गहरा प्यार था?

8 पौलुस की जान पर हमला होने के बाद, क्या वह और बरनबास डर गए? और क्या उन्होंने प्रचार करना बंद कर दिया? बिलकुल नहीं! इसके बजाय, वे दिरबे में ‘बहुत से चेले बनाने’ के बाद, वापस “लुस्त्रा, इकुनियुम और अन्ताकिया को लौट आए।” क्यों? ताकि वहाँ नए लोगों को विश्‍वास में मज़बूत बने रहने का हौसला दे सकें। पौलुस और बरनबास ने कहा: “हमें बड़े क्लेश उठाकर परमेश्‍वर के राज्य में प्रवेश करना होगा।” इससे साफ ज़ाहिर है कि मसीह की “भेड़ों” के लिए उनके सच्चे प्यार ने ही उन्हें इतनी हिम्मत दी थी। सभी नयी कलीसियाओं में प्राचीनों को ठहराने के बाद, पौलुस और बरनबास ने प्रार्थना की और “उन्हें प्रभु के हाथ सौंपा जिस पर उन्हों ने विश्‍वास किया था।”—प्रेरितों 14:21-23; यूहन्‍ना 21:15-17.

9. इफिसुस के प्राचीनों और पौलुस के बीच कैसा रिश्‍ता था?

9 पौलुस प्यार और परवाह करनेवाला इंसान था, साथ ही वह बड़ा हिम्मतवाला था, इसलिए शुरू के कई मसीहियों को उससे गहरा लगाव हो गया था। याद कीजिए कि इफिसुस से आए प्राचीनों के साथ पौलुस की हुई एक बैठक में क्या हुआ। पौलुस ने इफिसुस में तीन साल गुज़ारे थे और वहाँ कई मुश्‍किलों का सामना किया था। (प्रेरितों 20:17-31) पौलुस ने उन्हें परमेश्‍वर के उस झुंड की रखवाली करने का बढ़ावा देने के बाद, जो उन्हें सौंपी गयी थी, उनके साथ घुटने टेककर प्रार्थना की। फिर “वे सब बहुत रोए और पौलुस के गले में लिपट कर उसे चूमने लगे। वे विशेष करके इस बात का शोक करते थे, जो उस ने कही थी, कि तुम मेरा मुंह फिर न देखोगे।” सचमुच, इन भाइयों को पौलुस से कितना लगाव था! यही नहीं, जब जुदा होने का वक्‍त आया तो वहाँ के प्राचीन, पौलुस और उसके साथ सफर करनेवालों को छोड़ने के लिए तैयार ही नहीं थे। इसलिए उन्हें “बड़ी मुश्‍किल से” (हिन्दुस्तानी बाइबल) वहाँ से विदा होना पड़ा।—प्रेरितों 20:36-21:1.

10. हमारे ज़माने के यहोवा के साक्षियों ने कैसे पूरी हिम्मत के साथ एक-दूसरे के लिए प्यार दिखाया है?

10 आज भी सफरी अध्यक्षों, कलीसिया के प्राचीनों और दूसरे कई लोगों को यहोवा की भेड़ें बेहद प्यार करती हैं क्योंकि वे उनकी खातिर, बहुत हिम्मत दिखाते हैं। उदाहरण के लिए, ऐसे देशों के सफरी अध्यक्षों को लीजिए जहाँ गृह-युद्ध ने तबाही मचा रखी है या जहाँ प्रचार काम पर पाबंदी लगी हुई है। वे और उनकी पत्नी अपनी जान जोखिम में डालकर या जेल में डाले जाने का खतरा मोल लेकर कलीसियाओं का दौरा करते हैं। उसी तरह, कई साक्षियों को बेरहम शासकों और उनके हिमायतियों के हाथों ज़ुल्म सहने पड़े हैं, क्योंकि उन्होंने अपने दूसरे साक्षियों के साथ विश्‍वासघात करने या आध्यात्मिक भोजन कहाँ से मिलता है, यह बताने से इनकार किया है। दूसरे हज़ारों साक्षियों को सताया गया, बेरहमी से तड़पाया गया, यहाँ तक कि कइयों को मौत के घाट उतारा गया क्योंकि उन्होंने सुसमाचार का प्रचार करना बंद नहीं किया या अपने संगी भाई-बहनों के साथ मसीही सभाओं में इकट्ठा होना नहीं छोड़ा। (प्रेरितों 5:28, 29; इब्रानियों 10:24, 25) तो आइए हम इन जाँबाज़ भाई-बहनों के विश्‍वास और प्यार की मिसाल पर चलें!—1 थिस्सलुनीकियों 1:6.

अपने प्रेम को ठंडा होने मत दीजिए

11. शैतान किस तरह यहोवा के सेवकों के खिलाफ आध्यात्मिक युद्ध लड़ता है, और ऐसे में उन्हें क्या करने की ज़रूरत है?

11 जब शैतान को धरती पर फेंक दिया गया, तो उसने यहोवा के सेवकों पर अपना गुस्सा उतारने की ठान ली, क्योंकि वे “परमेश्‍वर की आज्ञाओं को मानते, और यीशु की गवाही” देते हैं। (प्रकाशितवाक्य 12:9, 17) ऐसा करने के लिए शैतान कई तरह की चालें चलता है, जिनमें से एक है ज़ुल्म। मगर अकसर इस चाल का उलटा असर होता है, क्योंकि इससे परमेश्‍वर के लोग, मसीही प्यार के बंधन में और भी मज़बूती से बँध जाते हैं और कइयों में गज़ब का जोश भर आता है। शैतान एक और चाल आज़माता है। वह लोगों को अपनी पापी इच्छाओं को पूरा करने के लिए लुभाता है। इस चाल का सामना करने के लिए एक अलग तरह के साहस की ज़रूरत होती है, क्योंकि इसमें एक इंसान को अंदर-ही-अंदर खुद से संघर्ष करना पड़ता है। यानी उसे अपने दिल में पनपनेवाली गलत इच्छाओं से लड़ना पड़ता है, जो “छल-कपट से भरा” और “सब से अधिक भ्रष्ट” होता है।—यिर्मयाह 17:9, नयी हिन्दी बाइबिल; याकूब 1:14, 15.

12. शैतान कैसे “संसार की आत्मा” का इस्तेमाल करके परमेश्‍वर के लिए हमारे प्यार को कमज़ोर करने की कोशिश करता है?

12 शैतान के हथियारों में एक और ज़बरदस्त हथियार है, “संसार की आत्मा।” यह आत्मा, प्रेरित करनेवाली शक्‍ति या ऐसा रुझान है जो पूरी मानवजाति को अपने वश में किए हुए है और परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा के खिलाफ काम करती है। (1 कुरिन्थियों 2:12) संसार की आत्मा “आंखों की अभिलाषा” को बढ़ावा देती है, यानी लोभी बनने और ऐशो-आराम की चीज़ें बटोरने के लिए उकसाती है। (1 यूहन्‍ना 2:16; 1 तीमुथियुस 6:9, 10) हालाँकि पैसा और सुख-सुविधा की चीज़ें अपने आप में गलत नहीं हैं, लेकिन अगर हम परमेश्‍वर से ज़्यादा इन चीज़ों से प्यार करने लगेंगे, तो जीत शैतान की होगी। संसार की आत्मा में इतनी ताकत या “अधिकार” है कि यह पापी इच्छाओं को भड़काती है, बड़ी चालाकी से और बिना रुके लगातार असर करती है और हवा की तरह हर जगह मौजूद रहती है। इसलिए संसार की आत्मा को अपना मन भ्रष्ट करने मत दीजिए!—इफिसियों 2:2, 3; नीतिवचन 4:23.

13. नैतिक शुद्धता बनाए रखने में हमारी हिम्मत की परख कैसे हो सकती है?

13 संसार की बुरी आत्मा से मुकाबला करने और उससे दूर रहने के लिए, हममें नैतिक शुद्धता बनाए रखने की हिम्मत होनी चाहिए। मिसाल के लिए, जब सिनेमा हॉल में कोई अश्‍लील सीन दिखाया जाता है तब वहाँ से फौरन उठकर बाहर जाने, या फिर ऐसे सीन जब कंप्यूटर या टी.वी. पर आते हैं, तब उन्हें बंद करने के लिए हिम्मत की ज़रूरत होती है। जब हमारे दोस्त हम पर गलत काम करने के लिए दबाव डालते हैं, तो उसे ठुकराने और उनकी बुरी सोहबत छोड़ने के लिए भी हिम्मत की ज़रूरत होती है। उसी तरह, जब स्कूल के दूसरे बच्चे, साथ काम करनेवाले, पड़ोसी या रिश्‍तेदार हमारा मज़ाक उड़ाते हैं, तो ऐसे में भी हमें परमेश्‍वर के कानूनों और सिद्धांतों को मानने के लिए साहस चाहिए होता है।—1 कुरिन्थियों 15:33; 1 यूहन्‍ना 5:19.

14. अगर संसार की आत्मा का हम पर असर हुआ है, तो हमें क्या करना चाहिए?

14 तो फिर यह कितना ज़रूरी है कि हम परमेश्‍वर के लिए और आध्यात्मिक भाई-बहनों के लिए अपने प्यार को मज़बूत करें! वक्‍त निकालकर खुद के लक्ष्यों और जीने के तरीके की जाँच कीजिए और देखिए कि कहीं संसार की आत्मा किसी तरह से आप पर असर तो नहीं कर रही है। अगर आप पाते हैं कि इस आत्मा ने आपके मन पर थोड़ा-सा भी असर किया है, तो यहोवा से ताकत के लिए प्रार्थना कीजिए ताकि आप उस असर को पूरी तरह मिटा सकें और उससे दूर रह सकें। यहोवा दिल से की गयी आपकी बिनतियों को कभी अनसुना नहीं करेगा। (भजन 51:17) और-तो-और, यहोवा की आत्मा, संसार की आत्मा से कहीं ज़्यादा शक्‍तिशाली है।—1 यूहन्‍ना 4:4.

आज़माइशों का हिम्मत से सामना करना

15, 16. मसीह जैसा प्यार कैसे हमें आज़माइशों का सामना करने में मदद दे सकता है? एक मिसाल दीजिए।

15 यहोवा के सेवकों को और भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे असिद्धता और बुढ़ापे की वजह से आनेवाली तकलीफें जिनमें बीमारियाँ, अपंगता, निराशा और दूसरी कई समस्याएँ शामिल हैं। (रोमियों 8:22) इन आज़माइशों का सामना करने में मसीह जैसा प्रेम हमारी मदद कर सकता है। ज़ाम्बिया की रहनेवाली नामाँगोल्वा की मिसाल लीजिए जिसकी परवरिश एक मसीही परिवार में हुई। दो साल की उम्र में वह अपाहिज हो गयी थी। वह कहती है: “मैं बार-बार यह सोचकर बेचैनी महसूस करती थी कि लोग मेरा रूप देखकर घबरा जाएँगे। मगर मेरे आध्यात्मिक भाइयों ने मुझे अपने हालात को अलग नज़रिए से देखने में मदद दी। इससे मैं अपनी भावनाओं पर काबू कर पायी और फिर बाद में मैंने बपतिस्मा लिया।”

16 हालाँकि नामाँगोल्वा पहिया-कुर्सी का इस्तेमाल करती है, मगर उसे अकसर रेतीली सड़कों पर अपने हाथों और घुटनों के बल चलना पड़ता है। इसके बावजूद, वह साल में कम-से-कम दो महीने सहयोगी पायनियर सेवा ज़रूर करती है। एक बार जब नामाँगोल्वा ने एक स्त्री को गवाही दी, तो वह स्त्री रो पड़ी। क्यों? क्योंकि उस स्त्री के दिल को हमारी बहन का विश्‍वास और उसकी हिम्मत भा गयी। नामाँगोल्वा को यहोवा से बेशुमार आशीषें मिली हैं। उसके पाँच बाइबल विद्यार्थियों ने बपतिस्मा लिया है और उनमें से एक आज कलीसिया का प्राचीन है। वह कहती है: “अकसर मेरे पैरों में बहुत दर्द उठता है, मगर मैं कभी हिम्मत नहीं हारती।” नामाँगोल्वा, दुनिया के उन कई साक्षियों में से एक है जो शरीर से तो कमज़ोर हैं, लेकिन आत्मा में बलवन्त हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्हें परमेश्‍वर और अपने पड़ोसियों से प्यार है। वाकई ये सभी भाई-बहन यहोवा की नज़रों में कितने मनभावने हैं!—हाग्गै 2:7.

17, 18. कई लोगों को बीमारी और दूसरी आज़माइशों का सामना करने में क्या बात मदद करती है? अपने इलाके की कुछ मिसालें बताइए।

17 गंभीर बीमारी से एक इंसान दुःखी हो सकता है, यहाँ तक कि वह मायूसी के सागर में डूब सकता है। एक कलीसिया का प्राचीन कहता है: “मेरे पुस्तक अध्ययन समूह में एक बहन, डायबिटीज़ की मरीज़ है और उसके गुर्दे ने काम करना बंद कर दिया है। दूसरी बहन को कैंसर है। दो और बहनों को गंभीर गठिया की बीमारी है और एक बहन को ल्यूपस (त्वचा रोग जिसमें ज़ख्म बनने लगते हैं) और फाइब्रोमायेलजीआ (पुट्ठों, स्नायु और माँसपेशियों में दर्द) बीमारियाँ हैं। कभी-कभी ये बहनें बहुत निराश हो जाती हैं, फिर भी वे सभाओं में बिना नागा आती हैं। सिर्फ जब उनकी तबियत कुछ ज़्यादा ही खराब रहती है या वे अस्पताल में भर्ती होती हैं, तभी वे सभाओं में नहीं आ पातीं। प्रचार काम में भी वे सभी बराबर हिस्सा लेती हैं। उन्हें देखकर मुझे पौलुस का ध्यान आता है, जिसने कहा था: ‘जब मैं निर्बल होता हूं, तभी बलवन्त होता हूं।’ उन बहनों के प्यार और उनकी हिम्मत की मैं दाद देता हूँ। शायद खराब सेहत की वजह से उन्हें और भी बेहतर समझ मिली है कि ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा अहमियत किस बात को दी जानी चाहिए।”—2 कुरिन्थियों 12:10.

18 अगर आप किसी बीमारी, कमज़ोरी या दूसरी समस्या से जूझ रहे हैं, तो मदद के लिए “निरन्तर प्रार्थना” कीजिए ताकि आप मायूसी का शिकार न बन जाएँ। (1 थिस्सलुनीकियों 5:14, 17) बेशक, आपकी ज़िंदगी में उतार-चढ़ाव आएँगे, मगर ऐसे में भी हौसला बढ़ानेवाली और आध्यात्मिक बातों पर मन लगाने की कोशिश कीजिए। आप खासकर राज्य की अनमोल आशा को हमेशा मन में रख सकते हैं। एक बहन कहती है: “मेरे मर्ज़ की दवा है, प्रचार काम।” जी हाँ, यह बहन सही नज़रिया रख पायी है क्योंकि वह दूसरों को सुसमाचार सुनाने में लगी रहती है।

प्यार, गुनहगारों को यहोवा के पास लौटने में मदद देता है

19, 20. (क) पाप करनेवालों को यहोवा के पास लौटने की हिम्मत जुटाने में क्या बात मदद कर सकती है? (ख) अगले लेख में किस विषय पर चर्चा की जाएगी?

19 आध्यात्मिक तौर पर कमज़ोर या पाप करनेवाले कई लोगों के लिए यहोवा के पास लौटना आसान नहीं होता। मगर ऐसे लोगों को हिम्मत मिल सकती है, बशर्ते वे सच्चे दिल से पश्‍चाताप करें और फिर से परमेश्‍वर के लिए अपना प्यार बढ़ाएँ। अमरीका में रहनेवाले मॉरयो * को ही लीजिए। वह, मसीही कलीसिया छोड़कर एक शराबी बन गया और ड्रग्स लेने लगा। बीस साल बाद, उसे जेल हो गयी। वह कहता है: “मैं अपने भविष्य के बारे में गहराई से सोचने लगा और फिर से बाइबल पढ़ने लगा। कुछ वक्‍त बाद, मैं यहोवा के गुणों की कदर करने लगा। खासकर मुझे उसकी दया का गुण बहुत अच्छा लगा। मैं अकसर प्रार्थना में यहोवा से दया की भीख माँगता था। जेल से रिहा होने के बाद, मैं अपने पुराने दोस्तों से दूर रहने लगा, मसीही सभाओं में हाज़िर होने लगा और आखिरकार, मुझे कलीसिया में बहाल किया गया। हालाँकि आज मुझे शरीर में अपने बुरे कामों के अंजाम भुगतने पड़ रहे हैं, मगर मुझे इस बात से तसल्ली मिलती है कि मेरे पास भविष्य की एक शानदार आशा है। मैं यहोवा की करुणा और माफी के लिए उसका जितना एहसान मानूँ उतना कम है।”—भजन 103:9-13; 130:3, 4; गलतियों 6:7, 8.

20 बेशक, जिन लोगों की हालत मॉरयो की तरह है, उन्हें यहोवा के पास लौटने के लिए कड़ी मेहनत करने की ज़रूरत है। जब वे बाइबल अध्ययन, प्रार्थना और मनन के ज़रिए अपने दिल में यहोवा के लिए दोबारा प्यार बढ़ाते हैं, तो इससे उन्हें हिम्मत और पक्का इरादा करने में मदद मिलती है। मॉरयो को राज्य की आशा से भी हिम्मत मिली थी। जी हाँ, प्रेम, विश्‍वास और परमेश्‍वर के भय के साथ-साथ, आशा का भी हमारी ज़िंदगी पर अच्छा असर हो सकता है। अगले लेख में हम इस अनमोल आध्यात्मिक तोहफे पर गौर करेंगे। (w06 10/1)

[फुटनोट]

^ नाम बदल दिया गया है।

क्या आप जवाब दे सकते हैं?

• प्रेम होने की वजह से यीशु कैसे लाजवाब हिम्मत दिखा सका?

• भाइयों के लिए प्यार होने की वजह से, पौलुस और बरनबास को कैसे अनोखी हिम्मत मिली?

• शैतान किन तरीकों से मसीही प्यार को खत्म करने की कोशिश करता है?

• यहोवा के लिए प्यार हमें किन आज़माइशों में धीरज धरने की हिम्मत दे सकता है?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 23 पर तसवीर]

लोगों से प्यार होने की वजह से पौलुस को अपनी सेवा में लगे रहने का साहस मिला

[पेज 25 पर तसवीर]

परमेश्‍वर के स्तरों के मुताबिक जीने के लिए साहस की ज़रूरत होती है

[पेज 25 पर तसवीर]

नामाँगोल्वा सुटूटू