बाइबल पढ़ने का बढ़ावा देने में एक जाँबाज़ की कोशिश
बाइबल पढ़ने का बढ़ावा देने में एक जाँबाज़ की कोशिश
उसने अपनी ज़िंदगी के आखिरी पल, पूर्वी साइबेरिया के मैदानी और ठंडे इलाके में गुज़ारे। मरने से पहले उसके खिलाफ झूठी साज़िश रची गयी और उसे बदनाम किया गया। वह यूनान के उन लोगों में से एक था जिसने अपने देशवासियों की आध्यात्मिक उन्नति के लिए कड़ी मेहनत की थी। मगर आज बहुत कम लोग उसे जानते हैं। उसका नाम था सेराफिम। बाइबल पढ़ने का बढ़ावा देने की कोशिश में इस जाँबाज़ को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।
सेराफिम के ज़माने में यूनान, तुर्की साम्राज्य के अधीन था। धर्म के इतिहास का एक यूनानी प्रोफेसर, जॉर्ज मेटालीनॉस कहते हैं कि उस वक्त, यूनान में “अच्छे स्कूलों की कमी थी,” इसलिए “ज़्यादातर लोग कम पढ़े-लिखे थे।” यहाँ तक कि पादरियों को भी अच्छी तरह पढ़ना-लिखना नहीं आता था।
सेराफिम के ज़माने की यूनानी भाषा और उसकी अलग-अलग बोलियाँ, उस यूनानी भाषा (कीनी) से बहुत अलग थीं जिसमें बाइबल का मसीही यूनानी शास्त्र लिखा गया था। वक्त के गुज़रते, जिन लोगों ने स्कूल की शिक्षा हासिल नहीं की थी, उन्हें कीनी भाषा समझ में नहीं आयी। इन भाषाओं को लेकर आगे जो विवाद उठा, उसमें चर्च ने कीनी भाषा को इस्तेमाल करते रहने का फैसला किया भले इसे समझना आम लोगों के लिए नामुमकिन हो गया था।
इस माहौल में, सन् 1670 के आस-पास यूनान के लेज़वॉस द्वीप में एक लड़का पैदा हुआ। उसका नाम स्टेफनॉस ईओआनीस पोगोनाटोस था और वह एक नामी घराने से था। लेज़वॉस द्वीप में हर कहीं गरीबी और निरक्षरता फैली हुई थी। अच्छे स्कूल न होने की वजह से स्टेफनॉस ने एक मठ में जाकर थोड़ा बहुत पढ़ना-लिखना सीखा। उसे बहुत ही कम उम्र में ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च का पादरी बनाया गया और उसे सेराफिम नाम दिया गया।
शुरू से ही सेराफिम में सीखने की ललक थी। इसलिए अपना यह अरमान पूरा करने के लिए वह करीब सन् 1693 में कॉन्सटनटीनोपल (जो आज तुर्की का इस्तानबुल शहर है) गया। वक्त के गुज़रते, सेराफिम ने अपने ज्ञान और अपनी काबिलीयतों की वजह से यूनान के नामी-गिरामी लोगों की नज़र में इज़्ज़त पायी। जल्द ही, यूनान की आज़ादी के लिए लड़नेवाले एक खुफिया संगठन ने उसे एक दूत बनाकर रशिया के सम्राट, पीटर द ग्रेट के पास मॉस्को भेजा। इस सफर के दौरान उसने यूरोप के बहुत-से देशों का दौरा किया। उसने देखा कि कैसे वहाँ धर्म और लोगों की सोच में बदलाव आ रहा है। सन् 1698 में सेराफिम इंग्लैंड गया और वहाँ लंदन और ऑक्सफर्ड के शहरों में उसने बड़े-बड़े लोगों के साथ अपनी जान-पहचान बढ़ायी। उसकी मुलाकात, कैनटबरी के सबसे बड़े पादरी से भी हुई जो ऐंग्लिकन चर्च का मुखिया था। यह जान-पहचान जल्द ही सेराफिम के बहुत काम आनेवाली थी।
बाइबल तैयार करना
इंग्लैंड में रहते वक्त, सेराफिम इस नतीजे पर पहुँचा कि यूनानी लोगों को “नए नियम” (मसीही यूनानी शास्त्र) के एक ऐसे अनुवाद की सख्त ज़रूरत है जिसे वे आसानी से समझ सकें। सेराफिम, मेक्सिमस नाम के एक मठवासी की बाइबल (जो सा.यु. 1630 में तैयार की गयी थी) से ही एक नया अनुवाद तैयार करने में जुट गया। उसने इस बात का भी ध्यान रखा कि उसमें गलतियाँ न हों और उसकी भाषा समझने में आसान हो। उसने बड़े जोश और उमंग के साथ अपना काम शुरू किया, मगर बहुत जल्द उसके पैसे खत्म हो गए। लेकिन तभी कैनटबरी के बड़े पादरी ने उसे पैसे देने का वादा किया जिससे काम आगे बढ़ने की उम्मीद नज़र आयी। इस वादे से सेराफिम की हिम्मत बँधी और उसने छपाई के लिए
कागज़ खरीदा और एक छपाई करनेवाले से बाइबल छापने की बात भी चलायी।लेकिन उन पैसों से सिर्फ लूका की आधी किताब तक छपाई पूरी हो पायी। फिर इंग्लैंड की राजनीति में आए बदलाव की वजह से कैनटबरी के पादरी ने सेराफिम को पैसे देना बंद कर दिए। फिर भी सेराफिम ने हार नहीं मानी और वह कुछ रईसों से मदद माँगकर सन् 1703 में अपना अनुवाद छपवाने में कामयाब रहा। इसका कुछ खर्चा उठाने में ‘विदेशी भाषाओं/देशों में सुसमाचार का प्रचार करनेवाली संस्था’ ने भी मदद की।
मेक्सिमस की बाइबल के दो खंड थे, जिसमें मूल यूनानी पाठ भी शामिल था। यह बाइबल बहुत ही बड़ी और भारी-भरकम थी। मगर सेराफिम की बाइबल अलग थी। उसके अक्षर छोटे थे और उसमें सिर्फ उस ज़माने की यूनानी भाषा का अनुवाद दिया गया था। साथ ही, यह बाइबल पतली और किफायती थी।
आग में घी डालना
सेराफिम की बाइबल के बारे में विद्वान जॉर्ज मेटालीनॉस कहते हैं: “इसमें कोई शक नहीं कि सेराफिम के नए अनुवाद ने लोगों की अहम ज़रूरत पूरी की। मगर उसने इसी अनुवाद के ज़रिए पादरियों के एक दल की कड़ी निंदा की जो [बाइबल] अनुवाद के सख्त खिलाफ थे।” उसने अपनी प्रस्तावना में कहा कि यह अनुवाद ‘खासकर उन पादरियों और चर्च के प्राचीनों के लिए तैयार किया गया है जो यूनानी भाषा [कीनी] नहीं समझते हैं। इसलिए अब वे पवित्र आत्मा और मूल पाठ से तैयार किए गए इस अनुवाद की मदद से बाइबल को पढ़कर समझ पाएँगे और अपने चर्च के लोगों को भी बाइबल समझा पाएँगे।’ (19वीं सदी में आधुनिक यूनानी भाषा में बाइबल का अनुवाद, अँग्रेज़ी) इससे ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च के पादरियों का क्रोध भड़क उठा और उनमें बाइबल के अनुवाद को लेकर जो विवाद छिड़ा हुआ था, उसमें सेराफिम बुरी तरह उलझ गया।
इस विवाद में, एक तरफ कुछ लोगों का मानना था कि लोग नैतिक और आध्यात्मिक रूप से तरक्की तभी कर सकते हैं जब वे बाइबल को पढ़कर उसे समझेंगे। उन्हें यह भी लगता था कि पादरियों को खुद बाइबल के बारे में अपना ज्ञान बढ़ाने की ज़रूरत है। इसके अलावा, उनका मानना था कि बाइबल की सच्चाइयों को किसी भी भाषा में समझाया जा सकता है।—प्रकाशितवाक्य 7:9.
दूसरी तरफ, जो लोग बाइबल का अनुवाद करने के खिलाफ थे, उनका कहना था कि अगर बाइबल का अनुवाद किया जाए, तो उसमें मिलावट हो जाएगी। यही नहीं, लोग चर्च के अधिकार को दरकिनार कर देंगे यानी बाइबल को समझने और चर्च की शिक्षाओं को सीखने के लिए पादरियों के पास नहीं आएँगे। मगर यह तो सिर्फ एक बहाना था। असल में वे डरते थे कि कहीं प्रोटेस्टेंट लोग, बाइबल के अनुवाद के ज़रिए लोगों को ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च के खिलाफ भड़का न दें जिससे उनका दबदबा कम हो जाए। कई पादरियों का सोचना था कि ऐसे किसी भी चलन का विरोध करना उनका फर्ज़ है, जो शायद उनके हिसाब से प्रोटेस्टेंट धर्म का मकसद पूरा करता। उन्हें लगा कि बाइबल को आम बोलचाल की भाषा में तैयार करना ऐसा ही एक चलन है। इसलिए, प्रोटेस्टेंट और ग्रीक ऑर्थोडॉक्स धर्म के बीच खासकर बाइबल के अनुवाद को लेकर ज़ोरदार टक्कर हुई।
हालाँकि सेराफिम का ऑर्थोडॉक्स चर्च से अलग होने का कोई इरादा नहीं था, मगर उसने निडर होकर पादरियों में बाइबल के ज्ञान की कमी की और उनकी गलत धारणाओं की निंदा की। अपने “नए नियम” के अनुवाद की प्रस्तावना में उसने लिखा: “परमेश्वर का भय माननेवाले हर मसीही के लिए पवित्र बाइबल पढ़ना ज़रूरी है” ताकि वह “मसीह के नक्शेकदम पर चल सके और [उसकी] शिक्षाओं का पालन कर सके।” उसने ज़ोर देकर यह भी बताया कि लोगों को बाइबल का अध्ययन करने से रोकना, शैतान का मकसद पूरा करना है।
विरोध की आँधी चली
जब सेराफिम की बाइबल यूनान में बाँटी जाने लगी, तो इससे ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च का गुस्सा भड़क उठा। नयी बाइबल के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गयी। इसकी कई कॉपियाँ जला दी गयीं और चर्च में यह घोषणा की गयी कि अगर किसी ने उसकी बाइबल को रखने या पढ़ने की जुर्रत की तो उसे बहिष्कृत कर दिया जाएगा। प्रधान बिशप, ग्रेबियल तृतीय ने सेराफिम की बाइबल की बिक्री पर पाबंदी लगा दी और उसकी बाइबल को गैरज़रूरी और बेकार बताया।
इतना सबकुछ होने के बाद भी सेराफिम निराश नहीं हुआ, बल्कि उसने सावधानी बरतना बेहतर समझा। हालाँकि चर्च ने उसके अनुवाद पर पाबंदी लगा दी थी, मगर बहुत-से पादरियों और आम लोगों ने उसकी बाइबल को पसंद किया। सेराफिम अपनी बाइबल को जगह-जगह बाँटने में बहुत कामयाब
रहा। लेकिन इसका यह मतलब नहीं था कि सेराफिम और उसके ताकतवर दुश्मनों के बीच का संघर्ष खत्म हो गया था।सेराफिम की बरबादी की शुरूआत
बाइबल बाँटने के अलावा, सेराफिम ने क्रांतिकारी और राष्ट्रीय आंदोलनों में भी हिस्सा लिया। इसी सिलसिले में वह सन् 1704 की गर्मियों में वापस मॉस्को गया। वहाँ पर वह पीटर द ग्रेट का हमराज़ बन गया और कुछ समय के लिए उसने रशिया के रॉयल अकैदमी में प्रोफेसर की नौकरी भी की। मगर सन् 1705 में अपने अनुवाद की फिक्र उसे वापस कॉन्सटनटीनोपल खींच लायी।
उसी साल जब सेराफिम ने अपनी बाइबल को दोबारा छपवाया, तो उसने प्रस्तावना से वह वाक्य निकाल दिया जिससे पादरियों का पारा चढ़ गया था। इस बार उसने सिर्फ बाइबल पढ़ने का बढ़ावा दिया। इस संस्करण को बड़े पैमाने पर बाँटा गया और ऐसा मालूम होता है कि प्रधान बिशप के यहाँ से भी कुछ खास विरोध नहीं हुआ।
मगर सन् 1714 में आलिकसांदर एल्लाडीऑस नाम के एक यूनानी मुसाफिर और बाइबल के अनुवाद का विरोध करनेवाले ने सेराफिम को ऐसी चोट पहुँचायी जिससे उसकी ज़िंदगी बरबाद हो गयी। अपनी किताब, स्टाटुस प्रासन्स एकलास्या ग्रेका (यूनानी चर्च की मौजूदा हालत) में उसने अनुवादकों और बाइबल के अलग-अलग अनुवादों के खिलाफ बहुत ज़हर उगला। एल्लाडीऑस ने सेराफिम के बारे में एक पूरा अध्याय लिखा और उस पर चोर, धोखेबाज़, अनपढ़-गँवार और बदचलन होने का इलज़ाम लगाया। क्या उसके ये इलज़ाम सच थे? लेखक स्टीलीआनॉस बाइराटारीस, सेराफिम के बारे में कहते हैं कि ‘वह मेहनती था और उन पहले लोगों में से एक था जो नए खयालात के थे’ और उसे इसलिए सताया गया क्योंकि वह अपने ज़माने के लोगों से ज़्यादा ज्ञान और समझ रखता था। सेराफिम के बारे में कई जाने-माने विद्वानों की भी यही राय थी। फिर भी, एल्लाडीऑस की किताब सेराफिम की मौत का सबब बनी।
शक का शिकार होना
सन् 1731 में जब सेराफिम वापस रशिया आया, उस वक्त तक पीटर द ग्रेट मर चुका था। इसलिए उसे सरकार की तरफ से पहले जैसी हिफाज़त नहीं मिली। क्योंकि पीटर द ग्रेट के बाद, रानी आना इवानवना राज कर रही थी और वह नहीं चाहती थी कि उसके राज में किसी तरह की खलबली मचे। सन् 1732 के जनवरी में सेंट पीटर्सबर्ग शहर में यह अफवाह फैली कि एक यूनानी जासूस रशिया के साम्राज्य के खिलाफ साज़िश रच रहा है। शक सेराफिम पर किया गया। इसलिए उसे हिरासत में लिया गया और पूछताछ के लिए नियेस्की मठ भेजा गया। पूछताछ के दौरान, एल्लाडीऑस की वह किताब इस्तेमाल की गयी जिसमें उसने सेराफिम पर तरह-तरह के इलज़ाम लगाए थे। सेराफिम ने उन इलज़ामों को झूठा साबित करने के लिए तीन बार लिखित में अपनी सफाई पेश की। पूछताछ पाँच महीनों तक चलती रही मगर सेराफिम अधिकारियों का शक दूर नहीं कर पाया।
सेराफिम के खिलाफ कोई पक्का सबूत नहीं था, इसलिए वह मौत की सज़ा से बच गया। लेकिन एल्लाडीऑस के झूठे इलज़ामों की वजह से सरकार उसे रिहा करने को तैयार नहीं थी। इसलिए सेराफिम को उम्र-कैद की सज़ा सुनायी गयी और उसे साइबीरिया में देशनिकाला दिया गया। सेराफिम को जो फैसला पढ़कर सुनाया गया, उसमें यह लिखा था कि “यूनानी लेखक, एल्लाडीऑस की किताब” में दिए आरोपों की बिनाह पर ही उसे सज़ा दी जा रही है। जुलाई 1732 में सेराफिम को ज़ंजीरों से बाँधकर पूर्वी साइबीरिया लाया गया और उसे अखॉस्ट नाम के सबसे बदनाम जेल में डाला गया।
उसके तीन साल बाद, सेराफिम चल बसा। अपनी मौत के वक्त, वह बिलकुल अकेला था और लोग उसे भूल चुके थे। सेराफिम ने अपनी ज़िंदगी में कभी-कभी समझदारी से काम नहीं लिया और कई गलत फैसले किए। फिर भी, उसकी बाइबल को उन उम्दा बाइबलों में गिना जाता है जो आजकल की यूनानी भाषा में लिखी गयी हैं। * इनमें से एक है, बोलचाल की भाषा में तैयार की गयी न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन ऑफ द होली स्क्रिप्चर्स्। यह बाइबल सिर्फ यूनानी में ही नहीं बल्कि दूसरी कई भाषाओं में भी उपलब्ध है। हम यहोवा परमेश्वर का कितना एहसान मानते हैं कि उसने अपना वचन आज तक बरकरार रखा है ताकि हर कहीं लोग “सत्य को भली भांति पहचान लें।”—1 तीमुथियुस 2:3,4.
[फुटनोट]
^ नवंबर 15, 2002 की प्रहरीदुर्ग के पेज 26-9 में लेख, “आधुनिक यूनानी भाषा में बाइबल को तैयार करने का संघर्ष” देखिए।
[पेज 12 पर तसवीर]
पीटर द ग्रेट
[पेज 10 पर चित्र का श्रेय]
तसवीरें: Courtesy American Bible Society