‘मेरे दिल की मुरादें’ पूरी हुईं
जीवन कहानी
‘मेरे दिल की मुरादें’ पूरी हुईं
डॉमीनीक मॉर्गू की ज़ुबानी
आखिरकार दिसंबर 1998 में, मैं अफ्रीका पहुँच ही गयी! बचपन का मेरा ख्वाब पूरा हो गया। जब भी मुझे अफ्रीका के बड़े और खुले मैदानों और मन मोहनेवाले जंगली जानवरों का खयाल आता, मेरे अंदर सिहरन-सी दौड़ जाती थी। अब मेरी यह हसरत पूरी हो गयी! इसी दौरान मेरा एक और सपना सच हुआ। मैं विदेश में सेवा करनेवाली एक पूरे समय की प्रचारक बन गयी। कई लोगों को शायद लगा होगा कि मेरे लिए यह सब नामुमकिन है। क्योंकि मेरी आँखों की रोशनी लगभग खत्म हो चुकी है और मैं जिस गाइड कुत्ते के सहारे अफ्रीकी गाँवों की रेतीली सड़कों पर चलती हूँ, उसे दरअसल यूरोप के शहरों की पक्की सड़कों पर चलने की ट्रेनिंग दी गयी है। चलिए मैं आपको बताती हूँ कि अफ्रीका में सेवा करना मेरे लिए कैसे मुमकिन हुआ और किस तरह यहोवा ने ‘मेरे दिल की मुरादें’ पूरी कीं।—भजन 37:4, किताब-ए-मुकद्दस।
मेरा जन्म जून 9, 1966 को दक्षिणी फ्रांस में हुआ था। हम सात बच्चे हैं—दो लड़के और पाँच लड़कियाँ और मैं सबसे छोटी हूँ। हमारे माता-पिता ने हमें बड़े लाड़-प्यार से पाला था। बस मेरी ज़िंदगी में सिर्फ एक गम है। अपनी नानी, माँ और एक बहन की तरह, मैं भी बचपन से एक ऐसी खानदानी बीमारी की शिकार हूँ जिससे आगे चलकर आँखों की रोशनी पूरी तरह चली जाती है।
जब मैं एक किशोर थी, तब मुझे जाति-भेद और कपट का सामना करना पड़ा, जिस वजह से मुझे समाज से नफरत होने लगी और मैं उसके खिलाफ बगावत करने लगी। इसी मुश्किल दौर में हम एरो नाम के इलाके में जा बसे। वहाँ हमारे साथ एक बढ़िया घटना घटी।
एक रविवार की सुबह, यहोवा की दो साक्षी हमारे घर आयीं। माँ उन्हें पहले से जानती थी, इसलिए उसने उन दोनों गलतियों 2:14.
को अंदर बुलाया। उनमें से एक स्त्री ने माँ से पूछा, आपको याद है, आपने वादा किया था कि एक दिन आप ज़रूर बाइबल अध्ययन शुरू करेंगी? माँ को यह बात याद आयी और उसने जवाब में कहा, “तो बताइए कब शुरू करें?” उन साक्षी बहनों ने हर रविवार की सुबह माँ से मिलने का समय तय किया। इस तरह माँ ने “सुसमाचार की सच्चाई” सीखनी शुरू कर दी।—गहरी समझ हासिल करना
माँ बाइबल से जो सीखती थी, उसे समझने और याद रखने के लिए बहुत मेहनत करती थी। वह बिलकुल भी देख नहीं पाती थी, इसलिए उसे हर बात ज़बानी याद करानी पड़ती थी। साक्षी बहनें, माँ को बड़े सब्र के साथ सिखाती थीं। मगर जहाँ तक मेरी बात थी, जब भी साक्षी घर आते मैं अपने कमरे में छिप जाती और उनके चले जाने के बाद ही बाहर निकलती थी। लेकिन एक दिन दोपहर को यहोवा की एक साक्षी, यूजीनी ने मुझसे मिलकर बात की। उसने बताया कि परमेश्वर का राज्य बहुत जल्द दुनिया से सारे कपट, नफरत और जाति-भेद को मिटा देगा। उसने कहा: “सिर्फ परमेश्वर हर समस्या का हल कर सकता है।” फिर उसने पूछा कि क्या मैं इस बारे में और ज़्यादा जानना चाहती हूँ? मैंने कहा, क्यों नहीं। और अगले ही दिन मैंने बाइबल अध्ययन करना शुरू कर दिया।
मैं जो सीख रही थी, वह सब मेरे लिए नयी बातें थीं। अब जाकर मुझे समझ आया कि परमेश्वर ने कुछ ही समय के लिए बुराइयों को इजाज़त दी है और वह भी वाजिब कारणों से। (उत्पत्ति 3:15; यूहन्ना 3:16; रोमियों 9:17) मैंने यह भी सीखा कि यहोवा ने हमें यूँ ही छोड़ नहीं दिया, बल्कि हमसे एक शानदार वादा किया है। वह है, एक खूबसूरत फिरदौस में हमेशा की ज़िंदगी का वादा। (भजन 37:29; 96:11, 12; यशायाह 35:1, 2; 45:18) उस फिरदौस में मेरी आँखों की रोशनी लौट आएगी जो अब धीरे-धीरे खत्म हो रही थी।—यशायाह 35:5.
पूरे समय की सेवा शुरू करना
दिसंबर 12, 1985 को मैंने पानी में बपतिस्मा लेकर यह ज़ाहिर किया कि मैंने अपना जीवन यहोवा को समर्पित किया है। मेरी बहन, मारी-क्लैर यह कदम पहले उठा चुकी थी। और मेरे बाद, मेरे भाई ज़ाँ-पियेर और मेरी प्यारी माँ ने भी बपतिस्मा लिया।
मैं जिस कलीसिया के साथ संगति करती थी, वहाँ कई भाई-बहन रेग्युलर पायनियर यानी पूरे समय के प्रचारक थे। प्रचार में उनकी खुशी और उनका जोश देखकर मेरे अंदर भी पूरे समय की सेवा करने की तमन्ना जाग उठी। मेरी बहन, मारी-क्लैर ने भी पूरे समय की सेवा शुरू की, इसके बावजूद कि उसे आँखों की बीमारी है और एक पैर में तकलीफ है जिसकी वजह से वह पैर की हड्डी को सहारा देनेवाला उपकरण पहनती है। आज तक मुझे यहोवा की सेवा करते रहने में उससे प्रेरणा मिलती है। कलीसिया में दूसरे पायनियरों को देखकर और खुद परिवार में अपनी बहन को पायनियर सेवा करते देखकर, मेरे अंदर पूरे समय की सेवा करने की इच्छा और भी ज़ोर पकड़ने लगी। इसलिए नवंबर 1990 को मैंने पायनियर बनकर बेज़ये शहर में अपनी सेवा शुरू की।—भजन 94:17-19.
निराशा की भावना से जूझना
प्रचार में दूसरे पायनियर मेरा बहुत ख्याल रखते थे। फिर भी, समय-समय पर निराशा की भावना मुझे आ घेरती थी, क्योंकि मैं सेवा में ज़्यादा करना चाहती थी मगर आँखों की कमज़ोरी मेरे लिए रुकावट बन गयी थी। लेकिन जब भी मैं मायूस होती, यहोवा मुझे थाम लेता था। मैंने वॉचटावर पब्लिकेशन्स् इंडैक्स में ऐसे पायनियरों की दास्तानों के लिए खोजबीन की जिनकी नज़र मेरी तरह कमज़ोर थी। मुझे इतने सारे अनुभव मिले कि क्या बताऊँ! इन आपबीतियों से मैंने बहुत-सी कारगर बातें सीखीं, साथ ही मेरा हौसला मज़बूत हुआ। मैंने सीखा कि मैं जितना कर पा रही हूँ, उसी से मुझे खुश होना चाहिए और अपनी हदों को समझना चाहिए।
अपने गुज़र-बसर के लिए, मैं दूसरे साक्षियों के साथ मिलकर शॉपिंग मॉलों में साफ-सफाई का काम करती थी। एक दिन मैंने देखा कि मेरे साथ काम करनेवाली बहनें फिर से उन्हीं जगहों को साफ कर रही थीं जो मैंने साफ की थी। मैं समझ गयी कि अपनी कमज़ोर नज़र की वजह से मैं कई जगहों पर गंदगी साफ नहीं कर पा रही थी। मैं वालेरी के पास गयी, जो एक पायनियर थी और हमारे साफ-सफाई के दल की इंचार्ज भी। मैंने उससे कहा कि सच-सच बताना, कहीं मैं दूसरों पर बोझ तो नहीं बन रही हूँ? उसने मुझे प्यार से समझाया और यह फैसला मुझ पर छोड़ दिया कि मैं यह काम कर पाऊँगी कि नहीं और अगर नहीं तो काम छोड़ने का भी फैसला मुझी को करना होगा। मार्च 1994 में, मैंने यह काम छोड़ दिया।
एक बार फिर मेरे अंदर यह भावना घर करने लगी कि मैं किसी काम की नहीं हूँ। मैंने मदद के लिए यहोवा से मिन्नत की और मुझे मालूम है कि उसने मेरी सुन ली। इस बार भी बाइबल और मसीही किताबों-पत्रिकाओं का अध्ययन करने से मुझे बहुत मदद मिली। हालाँकि मेरी नज़र और भी कमज़ोर होती जा रही थी, फिर भी यहोवा की सेवा करने की मेरी इच्छा दिनोंदिन और ज़ोर पकड़ती जा रही थी। ऐसे में मैं क्या करती?
पहले इंतज़ार, फिर झट-से एक फैसला
मैंने नीम शहर के ‘दृष्टिहीनों और दृष्टि-विकार से पीड़ित लोगों के लिए सुधार केंद्र’ में ट्रेनिंग हासिल करने की अर्ज़ी भरी। कुछ समय बाद, मेरी अर्ज़ी मंज़ूर हो गयी और मैं तीन महीने के लिए भरती हो गयी। वहाँ की ट्रेनिंग से मुझे बहुत फायदा हुआ। मैं अच्छी तरह समझ पायी कि मेरी नज़र किस हद तक खराब हो चुकी है और मैं खुद को अपने हालात के मुताबिक कैसे ढाल सकती हूँ। मैं और भी कई लोगों से मिली जिन्हें तरह-तरह की बीमारियों ने अपाहिज कर दिया था। इन सबसे मिलने के बाद, मुझे एहसास हुआ कि मेरे पास जो मसीही आशा है, वह कितनी अनमोल है। कम-से-कम मेरी ज़िंदगी में एक लक्ष्य तो है और मैं दूसरों की भलाई के लिए काम कर सकती हूँ। मैंने उस केंद्र में फ्रांसीसी ब्रेल भाषा भी सीखी।
जब मैं घर वापस आयी, तो मेरे घरवालों ने देखा कि दृष्टिहीनों के लिए केंद्र से मिली ट्रेनिंग से मुझे कितना फायदा हो रहा है। लेकिन, एक चीज़ मुझे अच्छी नहीं लगी, वह थी सफेद छड़ी जो मुझे सहारे के लिए दी गयी थी। मुझे यह हरगिज़ गवारा नहीं था कि मैं उस “छड़ी” का सहारा लेकर चलूँ। मैंने सोचा कि अच्छा होगा अगर मैं किसी और चीज़ को अपना सहारा बनाऊँ, जैसे एक गाइड कुत्ते को, जिसे इसके लिए खास ट्रेनिंग दी जाती है।
मैंने इस तरह के कुत्ते के लिए एक एजेन्सी में अर्ज़ी दी, मगर मुझे बताया गया कि बहुत-से लोगों ने ऐसी अर्ज़ियाँ भरी हैं, इसलिए मुझे काफी इंतज़ार करना होगा। इसके अलावा, एजेन्सीवाले किसी को भी कुत्ता यूँ ही नहीं दे देते बल्कि पहले, माँगनेवाले के बारे में जाँच-पड़ताल करते हैं। एक दिन मुझे नेत्रहीन लोगों का संघ चलाने में मदद करनेवाली एक स्त्री से खबर आयी। उसने बताया कि एक टेनिस क्लब, हमारे इलाके के किसी ऐसे इंसान को गाइड कुत्ता दान करने को तैयार है जो नेत्रहीन है या जिसकी देखने की शक्ति आधी जा चुकी है। उसने यह भी कहा कि उसे यह सूचना मिलते ही मेरा खयाल आया। क्या मैं इसे मंज़ूर करती? यह खबर मिलते ही मैं समझ गयी कि इसके पीछे यहोवा का ही हाथ है, इसलिए उस पेशकश को मैंने कबूल कर लिया। इसके बाद भी मुझे कुत्ते के लिए थोड़ा इंतज़ार करना पड़ा।
दिमाग में अभी-भी अफ्रीका घूम रहा था
इंतज़ार की घड़ियाँ काटते वक्त, मैंने किसी और बात पर अपना ध्यान लगाया। जैसे मैंने पहले बताया, बचपन से
अफ्रीका जाने का मेरा बड़ा अरमान था। मेरी आँखों की हालत बदतर होने पर भी, अफ्रीका देखने की ललक कम पड़ने के बजाय ज़ोर पकड़ने लगी। खासकर इसलिए क्योंकि मुझे पता चला कि अफ्रीका में बहुत-से लोगों को बाइबल सीखने और यहोवा की सेवा करने में दिलचस्पी है। कुछ समय पहले, मैंने बातों-बातों में वालेरी से कहा था कि मैं एक बार अफ्रीका घूमना चाहती हूँ। क्या वह मेरे साथ आएगी? उसने हाँ कहा और हम दोनों ने मिलकर अफ्रीकी महाद्वीप के उन देशों के शाखा दफ्तरों को खत लिखे जहाँ फ्रांसीसी भाषा बोली जाती है।एक दिन टोगो देश के शाखा दफ्तर से हमें जवाबी खत आया। खत देखकर मेरे अंदर सनसनी दौड़ गयी और मैंने वालेरी को खत फौरन पढ़कर सुनाने के लिए कहा। खत में हौसला बढ़ानेवाली बातें लिखी गयी थीं। इसे पढ़ने के बाद वालेरी ने कहा: “तो क्या कहती हो, चलें?” फिर चिट्ठी के ज़रिए शाखा दफ्तर के भाइयों से हमारी बात हुई और उन्होंने बताया कि हम टोगो की राजधानी लोमे में रहनेवाली पायनियर बहन, सैंड्रा से संपर्क करें। इसके बाद हमने जाने की तारीख तय की, दिसंबर 1, 1998.
अफ्रीका वाकई बिलकुल अलग जगह थी। फिर भी, यहाँ मुझे इतनी खुशी मिली कि मैं बयान नहीं कर सकती! लोमे पहुँचने के बाद, जैसे ही हमने हवाई-जहाज़ के बाहर कदम रखा, अफ्रीका की गर्म हवा ने हमें चारों तरफ से ऐसे घेर लिया मानो किसी ने हमें कंबल से लपेट दिया हो। हम सैंड्रा से मिले। यह हमारी पहली मुलाकात थी, फिर भी हम ऐसे घुल-मिल गए मानो पुराने दोस्त एक अरसे बाद मिल रहे हों। हमारे आने के कुछ ही समय पहले, सैंड्रा और उसकी साथवाली बहन क्रिस्टीन को खास पायनियर बनाया गया था। उन्हें अफ्रीका के एकदम अंदरूनी इलाके में टाबलीगबो नाम के एक छोटे-से कसबे में सेवा करने के लिए भेजा गया था। हमें उनके साथ मिलकर एक नयी जगह सेवा करने का बढ़िया मौका मिला। हम वहाँ करीब दो महीने रहे और उसके बाद अपने देश लौट आए। लेकिन जाते वक्त मेरा मन यही कह रहा था कि मैं अफ्रीका वापस आऊँगी।
टोगो में दोबारा आने की खुशी
फ्रांस पहुँचते ही मैं दूसरी बार टोगो जाने की तैयारी करने लगी। अपने परिवार की मदद से मैं इस बार टोगो में छः महीने रहने का इंतज़ाम कर पायी। सितंबर 1999 में, मैं फिर से टोगो जानेवाले हवाई-जहाज़ में चढ़ी। मगर इस दफा मैं अकेली थी। ज़रा सोचिए, मेरे परिवार को कितनी फिक्र हुई होगी जब उन्होंने मुझे अपनी खराब आँखों के बावजूद अकेली जाते देखा! लेकिन असल में फिक्र की कोई बात नहीं थी। मैंने अपने माता-पिता को यकीन दिलाया कि अफ्रीका में मेरे दोस्त जो अब मेरे परिवार जैसे थे, मुझे लेने के लिए लोमे आएँगे।
यह देखकर मैं फूली न समा रही थी कि मैं दोबारा उसी इलाके में आयी हूँ जहाँ बहुत-से लोग बाइबल में दिलचस्पी दिखाते हैं! सड़कों पर लोगों को बाइबल पढ़ते देखना बहुत ही आम बात है। टाबलीगबो में तो लोग बाइबल पर चर्चा करने के लिए खुद आपको बुलाते हैं। इतना ही नहीं, मुझे दो खास पायनियर बहनों के साथ, उनके छोटे-से घर में रहने का अनोखा मौका भी मिला! टाबलीगबो में रहते वक्त, मैंने एक नयी संस्कृति के बारे में जाना और हर मामले को एक अलग नज़रिए से देखना सीखा। एक बात जो मुझे सबसे ज़्यादा भा गयी, वह यह थी कि यहाँ के मसीही भाई-बहन अपनी ज़िंदगी में राज्य के कामों को पहली जगह देते हैं। मसलन, राज्य घर आने के लिए भाइयों को कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है, फिर भी वे एक भी सभा में आने से नहीं चूकते। इसके अलावा, उनके प्यार और उनकी मेहमाननवाज़ी से भी मैंने बहुत कुछ सीखा।
एक दिन प्रचार से लौटते वक्त, मैंने सैंड्रा को अपने दिल की बात बतायी कि फ्रांस वापस जाने का डर मुझे अंदर-ही-अंदर खाए जा रहा है। उस वक्त तक मेरी आँखें और भी कमज़ोर हो
गयी थीं। मैं फ्रांस के बेज़ये शहर में लोगों की भीड़-भाड़ और शोरगुल, बिल्डिंगों की सीढ़ियाँ चढ़ने, और ऐसी कई दूसरी बातों के बारे में सोचती, जो मुझ जैसे कमज़ोर नज़रवालों के लिए जीना मुश्किल कर देती हैं। मगर टाबलीगबो में मुझे कोई चिंता नहीं थी। हालाँकि यहाँ की सड़कें पक्की नहीं हैं, फिर भी यहाँ बहुत शांति है, कोई भीड़भड़क्का नहीं, ट्रैफिक नहीं। मैं तो टाबलीगबो में रहने की आदी हो गयी थी, अब फ्रांस लौटकर वहाँ जीऊँगी कैसे?दो दिन बाद, मेरी माँ ने मुझे फोन करके बताया कि कुत्तों को ट्रेनिंग देनेवाला स्कूल एक गाइड कुत्ते को मेरे हवाले करने का इंतज़ार कर रहा है। यह एक जवान खोजी कुत्ता है जो लैब्रेडोर नस्ल का है और इसका नाम ओसेआन है। वह अब मेरी “आँखें” बनने के लिए तैयार है। एक बार फिर मेरी ज़रूरतें पूरी की गयीं और मेरी सारी चिंताएँ उड़न छू हो गयीं। टाबलीगबो में छः महीने खुशी-खुशी सेवा करने के बाद, मैं ओसेआन से मिलने वापस फ्रांस के लिए रवाना हुई।
कई महीनों की ट्रेनिंग के बाद, ओसेआन को मेरे हवाले किया गया। शुरू-शुरू में एक कुत्ते के सहारे जीना आसान नहीं था। हमें एक-दूसरे को अच्छी तरह जानना-समझना था। धीरे-धीरे मुझे एहसास हुआ कि मुझे ओसेआन की कितनी ज़रूरत है। दरअसल, अब वह मेरा ही एक हिस्सा है। बेज़ये में जब मैं अपने कुत्ते के साथ घर-घर के प्रचार के लिए जाती, तो लोग कैसा रवैया दिखाते थे? ज़्यादातर लोग मेरे साथ अदब से पेश आते और मुझे लिहाज़ दिखाते थे। ओसेआन तो हमारे पूरे मुहल्ले के लोगों की चहेती बन गयी। आम तौर पर जब लोग किसी अपाहिज इंसान से मिलते हैं, तो उन्हें समझ नहीं आता कि वे कैसे पेश आएँ। लेकिन अपने साथ कुत्ता रखने की वजह से मुझे अपनी आँखों की कमज़ोरी के बारे में बात करने में आसानी होती है। और लोग भी इत्मीनान से मेरी बात सुनते हैं। दरअसल, ओसेआन की वजह से ही मैं लोगों से बातचीत शुरू कर पाती हूँ।
ओसेआन के संग अफ्रीका में
मैं अभी-भी अफ्रीका को नहीं भूली थी। मैं तीसरी बार अफ्रीका जाने की तैयारी करने लगी। और इस बार मेरा साथ दिया, ओसेआन ने। एक जवान जोड़ा, एनटनी और ऑरॉरो, साथ ही मेरी सहेली कारॉलीन भी साथ आए। वे सभी मेरी तरह पायनियर हैं। सितंबर 10, 2000 को हम सब लोमे पहुँचे।
शुरू-शुरू में, ज़्यादातर लोग ओसेआन से डरते थे। टोगो में ज़्यादातर कुत्ते छोटे होते हैं, इसलिए लोमे में बहुत कम लोगों ने ओसेआन जैसा बड़ा कुत्ता देखा है। जब वे उसके गले में लगा पट्टा देखते, तो सोचते कि वह बहुत ही खूँखार है, तभी उसे बाँधकर रखा गया है। और नयी जगह होने की वजह से ओसेआन भी मुझे हर खतरे से बचाने के लिए हरदम चौकन्ना रहती थी। लेकिन कुछ ही समय के अंदर वह शांत हो गयी। जब मैं उसके गले में पट्टा डालती हूँ तो वह अपने काम में जुट जाती है। वह काबू में रहती है, अपनी ज़िम्मेदारी बखूबी निभाती है और हमेशा मेरी बगल में रहती है। लेकिन जब उसे आज़ाद छोड़ा जाता है, तो वह खेलती-कूदती है और कभी-कभी तो बहुत शरारत करती है। हम दोनों मिलकर बहुत मज़ा करते हैं।
टाबलीगबो में, हम सभी को सैंड्रा और क्रिस्टीन के साथ रहने का न्यौता मिला। वहाँ के भाई-बहनों को ओसेआन के आदी होने के लिए, हम उन्हें घर पर बुलाते और समझाते कि एक गाइड कुत्ता क्या काम करता है। यह भी कि मुझे इसकी ज़रूरत क्यों है और उसकी मौजूदगी में उन्हें कैसे पेश आना चाहिए। कलीसिया के प्राचीन भी इस बात पर राज़ी हुए कि ओसेआन को मेरे साथ राज्य घर आना चाहिए। टोगो में पहली बार सभा में किसी को अपने साथ कुत्ता लाने की इजाज़त दी गयी थी, इसलिए कलीसिया में घोषणा करके समझाया गया कि ऐसा क्यों किया जा रहा था। जहाँ तक प्रचार की बात है, तो मैं ओसेआन को सिर्फ तभी अपने साथ ले जाती जब मैं वापसी भेंट या बाइबल अध्ययन के लिए जाती थी। वजह यह थी कि वापसी भेंट या बाइबल अध्ययन में लोग मुझे पहले से जानते थे और उन्हें यह समझाना आसान था कि मैं अपने साथ एक कुत्ता क्यों लायी हूँ।
आज भी इस इलाके में प्रचार करने में मुझे बहुत खुशी मिलती है। यहाँ लोग बड़े कोमल स्वभाव के हैं और दूसरों के लिए परवाह दिखाते हैं। वे हमेशा मेरा लिहाज़ करते हैं, मुझे बैठने के लिए कुर्सी देते हैं जिसके लिए मैं हमेशा उनकी एहसानमंद रही हूँ। अक्टूबर 2001 में, मैं चौथी दफा टोगो आयी और इस बार मेरे साथ थी, मेरी माँ। तीन हफ्ते रहने के बाद, वह इत्मीनान से और खुशी-खुशी फ्रांस लौट गयी क्योंकि उसने देखा कि मैं यहाँ बिलकुल सही-सलामत हूँ।
मैं यहोवा की बहुत-बहुत शुक्रगुज़ार हूँ कि उसने मुझे टोगो में सेवा करने का मौका दिया। आज तक मैं यहोवा की सेवा जी-जान लगाकर कर रही हूँ, इसलिए मुझे पूरा विश्वास है कि आगे भी वह ‘मेरे दिल की मुरादें पूरी’ करता रहेगा। *
[फुटनोट]
^ बहन मॉर्गू फ्रांस वापस चली गयी है और अक्टूबर 6, 2003 से फरवरी 6, 2004 तक पाँचवीं बार उसने टोगो का दौरा किया। मगर अफसोस, इलाज में उठी कुछ समस्याओं की वजह से, इस पुरानी दुनिया में शायद टोगो का यह उसका आखिरी सफर था। फिर भी, यहोवा की सेवा करते रहना उसकी सबसे बड़ी दिली तमन्ना है।
[पेज 10 पर तसवीरें]
अफ्रीका के बड़े-बड़े मैदानों और जंगली जानवरों का खयाल आते ही मेरे अंदर सिहरन दौड़ जाती थी
[पेज 10 पर तसवीर]
ओसेआन मेरे साथ वापसी भेंट के लिए जाती थी
[पेज 11 पर तसवीर]
प्राचीनों ने माना कि मुझे सभाओं में अपने साथ ओसेआन को लाना चाहिए