मसीह का सैनिक होने के नाते मैंने धीरज धरा
जीवन कहानी
मसीह का सैनिक होने के नाते मैंने धीरज धरा
युरी कापतोला की ज़ुबानी
“अब मुझे यकीन हो गया है कि तुम्हारा विश्वास सच्चा है!” यह बात सुनकर मैं दंग रह गया, क्योंकि मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि सोवियत सेना का एक अफसर मुझसे ऐसा कहेगा। मगर इन शब्दों ने ऐन वक्त पर मेरा हौसला बढ़ाया था। मुझे लंबी कैद की सज़ा सुनायी जानेवाली थी और मैंने यहोवा से मदद के लिए गिड़गिड़ाकर बिनती की थी। मेरे सामने एक संघर्ष था जो बरसों तक चलता और जिसमें मुझे धीरज और पक्के इरादे की सख्त ज़रूरत पड़ती।
मेरा जन्म अक्टूबर 19, 1962 को हुआ था और मैं यूक्रेन के पश्चिमी भाग में पला-बढ़ा था। जिस साल मैं पैदा हुआ, उसी साल मेरे पिता की मुलाकात यहोवा के साक्षियों से हुई। मेरे पिता का नाम भी युरी था। कुछ ही समय बाद, पिताजी यहोवा के उपासक बन गए। वे हमारे कसबे के पहले साक्षी थे। साक्षी होने के नाते उनका काम ऐसे अधिकारियों की नज़र में आ गया जो यहोवा के साक्षियों का विरोध करते थे।
मगर, हमारे आस-पड़ोस के ज़्यादातर लोग मेरे माता-पिता की बहुत इज़्ज़त करते थे, क्योंकि उन्होंने गौर किया कि मेरे माता-पिता में कैसे मनभावने मसीही गुण थे और दूसरों के लिए वे कैसी सच्ची परवाह दिखाते थे। मेरी तीन बहनें भी हैं। बचपन से हमारे माता-पिता ने हर मौके का फायदा उठाकर हम चारों के दिल में परमेश्वर के लिए प्यार की भावना बिठायी। इसी तालीम की वजह से मैं अपने स्कूल में आनेवाली बहुत-सी मुश्किलों का सामना कर पाया। ऐसी ही एक मुश्किल तब खड़ी हुई जब मेरे स्कूल के हर विद्यार्थी को एक बैज पहनने के लिए कहा गया था जो दिखाता कि वे ‘लेनिन के अक्टूबर बालक’ नाम के युवा संघ के सदस्य हैं। लेकिन मसीही निष्पक्षता की वजह से मैंने यह बैज नहीं पहना और इसलिए सब से अलग नज़र आता था।—यूहन्ना 6:15; 17:16.
बाद में जब मैं तीसरी क्लास में था, तब सब विद्यार्थियों को कम्यूनिस्ट युवा संघ, ‘यंग पायनियर्स्’ में शरीक होना था। एक दिन इस संगठन में शामिल होने का समारोह रखा गया। हमारी पूरी क्लास को स्कूल के आँगन में ले जाया गया। मुझे डर था कि इनकार करने से मुझे सबके सामने डाँटा और ज़लील किया जाएगा। मेरे सिवा बाकी सभी बच्चे अपने घर से लाल स्कार्फ लेकर आए थे, जो ‘यंग पायनियर्स्’ की निशानी था। सभी विद्यार्थी स्कूल के प्रिंसिपल, टीचरों और स्कूल के बड़े बच्चों के सामने एक लंबी कतार बनाकर खड़े थे। जब बड़े बच्चों से कहा गया कि वे हमारे गले पर स्कार्फ बाँधें, तो मैंने अपना सिर नीचे कर लिया और मन-ही-मन कामना करने लगा कि कोई मुझे न देखे।
दूर-दराज़ के जेलों में
जब मैं 18 साल का हुआ, तो मुझे मसीही निष्पक्षता की वजह से तीन साल की कैद की सज़ा सुनायी गयी। (यशायाह 2:4) पहले साल मुझे यूक्रेन के विन्नित्स्काया ज़िले के त्रुडोवोये कसबे के जेल में भेजा गया। वहाँ मैं करीब 30 और यहोवा के साक्षियों से मिला। जेल के अधिकारी नहीं चाहते थे कि हम एक-दूसरे से मेल-जोल रखें, इसलिए उन्होंने हमें दो-दो करके अलग-अलग काम सौंपा।
अगस्त 1982 में, कैदियों के एक समूह को ट्रेन से उत्तरी यूराल पर्वतों के इलाके में भेजा गया। उन कैदियों में, मैं और इडूऑर्त नाम का एक साक्षी भाई भी था। यह सफर आठ दिन का था और बहुत ही मुश्किलों भरा था। एक तो हम सभी को डिब्बों में खचाखच ठूँस दिया गया था, ऊपर से अंदर बहुत गर्मी थी। आखिरकार, हम पर्मस्काया ज़िले के सॉल्यिकामस्क जेल पहुँचे। इडूऑर्त और मुझे दो अलग कैदखानों में डाला गया। दो हफ्ते बाद, मुझे और भी उत्तर की तरफ, क्रासनोविशर्सकी इलाके के व्योल्स कसबे ले जाया गया।
हमारी गाड़ी आधी रात को वहाँ पहुँची। चारों तरफ घुप अंधेरा था। ऐसे में, एक अफसर ने हमारे समूह को नाव पर सवार होकर नदी पार करने का हुक्म दिया। हमें न तो कोई नदी दिखायी दे रही थी, ना ही नाव! इसके बावजूद, हम अंधेरे में टटोलते हुए एक नाव तक पहुँचे। हम सभी बहुत डरे हुए थे, फिर भी हमने किसी तरह नदी पार कर ली। नदी के उस पार पहुँचने के बाद, हमें पास की एक पहाड़ी पर रोशनी नज़र आयी। हम उस रोशनी की तरफ चले, जहाँ कुछ तंबू लगे हुए थे। यहीं पर हमें रहना था। मैं 30 और कैदियों के साथ एक बड़े तंबू में रहता था। सर्दियों में हमारी बुरी हालत हो जाती थी, क्योंकि तापमान शून्य से 40 डिग्री फारनेहाइट नीचे तक गिर जाता था। और तंबू में हमें ठंड से कोई खास राहत नहीं मिलती थी। कैदियों का काम पेड़ काटना था, मगर मुझे कैदियों के लिए झोपड़ियाँ बनाने का काम दिया गया था।
हमारे दूर-दराज़ के कैंप तक पहुँचा आध्यात्मिक भोजन
इस पूरे कैंप में सिर्फ मैं ही एक साक्षी था; फिर भी यहोवा ने मुझे अकेला नहीं छोड़ा। एक दिन मेरी माँ ने मुझे एक पैकेट भेजा। वह अब भी पश्चिम यूक्रेन में रह रही थी। जब एक पहरेदार ने पैकेट खोला, तो जिस पहली चीज़ पर उसकी नज़र पड़ी, वह थी एक छोटी-सी बाइबल। वह पन्ने पलट-पलटकर देखने लगा। मैं फौरन सोचने लगा कि क्या कहूँ, जिससे कि वह इस अनमोल आध्यात्मिक खज़ाने को ज़ब्त न कर ले। उसने झट-से पूछा: “ये क्या है?” इससे पहले कि मैं जवाब देता, पास में खड़े एक इंस्पेक्टर ने कहा: “अरे भाई, वह कोई डिक्शनरी है।” मैं चुप रहा। (सभोपदेशक 3:7) इसके बाद, उस इंस्पेक्टर ने बाकी सामान की जाँच की और पूरे पैकेट के साथ-साथ वह बाइबल भी मुझे दे दी जो मेरे लिए बहुत कीमती थी। मैं इतना खुश था कि मैंने उसे थोड़ा मेवा भी दिया जो माँ ने पैकेट में भेजा था। पैकेट मिलते ही मैं समझ गया कि यहोवा मुझे भूला नहीं है। मेरी मदद करने के लिए उसने अपना हाथ खोल दिया और मेरी आध्यात्मिक ज़रूरतें पूरी कीं।—इब्रानियों 13:5.
बिना रुके प्रचार करना
कुछ महीनों बाद, मुझे एक मसीही भाई से चिट्ठी मिली जो करीब 400 किलोमीटर दूर एक जेल में कैद था। उसकी चिट्ठी पाकर मैं हैरान रह गया। उसने मुझे एक ऐसे आदमी को ढूँढ़ने को कहा जिसने बाइबल के बारे में जानने में दिलचस्पी दिखायी थी और अब वह शायद मेरे कैंप में था। चिट्ठी में इस तरह की बातें खुलकर लिखना अक्लमंदी नहीं थी, क्योंकि हमें चिट्ठी देने से पहले जेल के अधिकारी उसे पढ़ते थे। और यह तो होना ही था कि एक अफसर ने मुझे अपने दफ्तर में बुलाया और धमकी दी कि मैं अपना प्रचार काम बंद कर दूँ। फिर उसने मुझे एक दस्तावेज़ पर दस्तखत करने को कहा जिसमें लिखा था कि मैं अपने विश्वास प्रेरितों 4:20) इस पर अफसर समझ गया कि मैं उसकी धमकी से नहीं डरनेवाला, इसलिए उसने मुझे दूसरे कैंप में भेजने का फैसला किया। और यही हुआ।
के बारे में दूसरों को नहीं बताऊँगा। मैंने कहा, ‘मुझे समझ नहीं आता कि मैं इस दस्तावेज़ पर क्यों दस्तखत करूँ जबकि सब जानते हैं कि मैं यहोवा का एक साक्षी हूँ। जब दूसरे कैदी मुझसे पूछते हैं कि मैं किस जुर्म की सज़ा काट रहा हूँ, तो मैं उन्हें क्या जवाब दूँ?’ (मुझे 200 किलोमीटर दूर वाया कसबे भेजा गया। वहाँ के सुपरवाइज़र मेरी मसीही निष्पक्षता की इज़्ज़त करते थे, इसलिए उन्होंने मुझे ऐसा काम सौंपा जिसका सेना से कोई लेना-देना नहीं था। पहले उन्होंने मुझे कार्पेंटर का काम दिया, फिर इलैक्ट्रीशियन का काम। मगर ये काम करते वक्त भी मुझे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। एक बार मुझे अपना औज़ार लेकर कसबे के एक क्लब में जाने को कहा गया। जब मैं वहाँ पहुँचा तो मैंने देखा कि क्लब में सैनिक थे जो मुझे देखकर बहुत खुश हुए। सेना के कई प्रतीकों को बत्तियों से सजाया गया था, मगर ये बत्तियाँ ठीक से काम नहीं कर रही थीं। सैनिक दरअसल, साल में एक बार होनेवाले ‘रेड आर्मी डे’ के समारोह की तैयारी कर रहे थे, इसलिए वे चाहते थे कि मैं उन बत्तियों को ठीक कर दूँ। मन में प्रार्थना करने और काफी सोचने के बाद, मैंने उनसे कहा कि मैं इस तरह का काम नहीं कर सकता। मैंने औज़ार उनके हवाले कर दिए और वहाँ से निकल गया। डेप्यूटी डाइरेक्टर से मेरी शिकायत लगायी गयी। मगर हैरानी की बात है कि उसने शिकायतें सुनकर बस इतना जवाब दिया: “मैं उसकी इज़्ज़त करता हूँ। वह उसूलों का पक्का है।”
ऐसे आदमी ने हौसला बढ़ाया जिससे उम्मीद नहीं थी
तीन साल जेल की सज़ा काटने के बाद, जून 8, 1984 को मुझे रिहा किया गया। मैं यूक्रेन लौट गया और मुझे नागरिक सेना के पास जाकर अपना नाम दर्ज़ करवाना था कि मैं पहले कैद काट चुका हूँ। वहाँ के अफसरों ने मुझे बताया कि छः महीनों के अंदर मुझ पर फिर से मुकद्दमा चलाया जाएगा, इसलिए अच्छा होगा अगर मैं उस ज़िला को छोड़कर कहीं और चला जाऊँ। मैं यूक्रेन छोड़कर लैटविया गया और वहाँ मुझे एक नौकरी मिल गयी। कुछ समय तक मैं प्रचार करता रहा और साक्षियों के एक छोटे-से समूह के साथ संगति करता रहा। ये भाई-बहन, लैटविया की राजधानी रीगा में या उसके आस-पास रहते थे। एक ही साल गुज़रा था कि मुझे फिर से सेना में भर्ती होने का बुलावा आया। सेना में भर्ती होने के दफ्तर पहुँचने पर, मैंने वहाँ के अफसर को बताया कि पहले भी मैंने सेना में भर्ती होने से इनकार किया था। इस पर वह अफसर चिल्ला उठा: “क्या तुम्हें होश है कि तुम क्या कर रहे हो? चलो लेफ्टिनेंट कर्नल के पास, देखता हूँ तुम उनसे क्या कहते हो!”
वह अफसर मुझे दूसरी मंज़िल के एक कमरे में ले गया जहाँ लेफ्टिनेंट कर्नल एक लंबी टेबल के पीछे बैठा था। जब मैंने उसे समझाया कि मैं एक मसीही हूँ और निष्पक्षता की वजह से फौज में भर्ती नहीं हो सकता, तो उसने मेरी बात ध्यान से सुनी। फिर उसने कहा, ‘तुम्हारे पास अब भी वक्त है कि तुम एक बार फिर अपने फैसले के बारे में सोच लो। इसके बाद तुम्हें भर्ती करनेवाली कमेटी के सामने पेश किया जाएगा।’ लेफ्टिनेंट कर्नल के दफ्तर से निकलते वक्त, जो पहला अफसर मुझ पर बरस पड़ा था, उसने कहा: “अब मुझे यकीन हो गया है कि तुम्हारा विश्वास सच्चा है!” बाद में, जब मुझे सेना की एक कमेटी के सामने हाज़िर किया गया, तो मैंने उन्हें भी वही बात बतायी कि मसीही निष्पक्षता की वजह से मैं सेना में भर्ती नहीं हो सकता। इसके बाद उन्होंने मुझे कुछ समय के लिए जाने दिया।
उस दौरान मैं एक हॉस्टल में रह रहा था। एक शाम,
किसी ने मेरे दरवाज़े पर आहिस्ते से दस्तक दी। जब मैंने दरवाज़ा खोला तो सामने सूट-बूट पहना और हाथ में ब्रीफकेस लिया एक आदमी खड़ा था। उसने अपना परिचय देते हुए कहा: “मैं खुफिया पुलिस से हूँ। मैं जानता हूँ कि आप फिलहाल मुश्किलों का सामना कर रहे हैं और अदालत में आप पर मुकद्दमा चलनेवाला है।” मैंने कहा: “हाँ, ठीक कहा आपने।” फिर वह बोला: “हम आपकी मदद कर सकते हैं, मगर बदले में आपको हमारे लिए काम करना होगा।” मैंने कहा: “माफ कीजिए, मैं ऐसा नहीं कर सकता। मैं एक मसीही हूँ और अपने विश्वास से मुकरना मुझे कतई मंज़ूर नहीं।” इसके बाद, वह मुझे मनाने की और ज़्यादा कोशिश किए बिना वहाँ से चला गया।दोबारा जेल में, दोबारा प्रचार करना
अगस्त 26, 1986 को रीगा की राष्ट्रीय अदालत ने मुझे चार साल तक जेल में कड़ी मेहनत करने की सज़ा सुनायी। मुझे रीगा के सेंट्रल जेल ले जाया गया। मुझे एक बड़ी कोठरी में डाला गया जिसमें और 40 कैदी थे। मैंने हरेक कैदी को प्रचार करने की कोशिश की। कुछ ने दावा किया कि उन्हें परमेश्वर पर विश्वास है, तो कुछ ने मेरी बात हँसी में उड़ा दी। मैंने गौर किया कि कैदी अलग-अलग गुटों में बँट गए थे। दो हफ्ते बाद इन गुटों के सरगनाओं ने मुझसे कहा कि मुझे प्रचार करने की इजाज़त नहीं है, क्योंकि मैं उनके बनाए नियमों पर नहीं चल रहा था। मैंने समझाया कि मैं इसीलिए तो जेल में हूँ क्योंकि मैं अलग नियमों को मानता हूँ।
मैं पूरी एहतियात से प्रचार करता रहा। इस तरह मुझे कुछ कैदी मिले जिन्हें आध्यात्मिक बातों में दिलचस्पी थी। उनमें से चार के साथ मैं बाइबल अध्ययन कर पाया। चर्चा के दौरान, वे बाइबल की बुनियादी शिक्षाओं को अपनी नोटबुक में लिख लेते थे। इसके कुछ महीनों बाद, मुझे एक कड़ी सुरक्षावाले कैंप, वालमाइएरा भेजा गया। वहाँ मैंने इलैक्ट्रीशियन का काम किया। मैं एक और इलैक्ट्रीशियन के साथ बाइबल अध्ययन कर पाया और चार साल बाद वह यहोवा का एक साक्षी बन गया।
मार्च 24, 1988 को मुझे कड़ी सुरक्षावाले कैंप से पास के एक कैंप में भेजा गया जो एक बस्ती जैसा था। यह वाकई एक आशीष थी क्योंकि यहाँ मुझे प्रचार करने की ज़्यादा आज़ादी थी। मुझे अलग-अलग इमारतें बनाने की जगहों पर काम करने के लिए भेजा गया। इसका फायदा उठाकर मैं प्रचार करने के मौके ढूँढ़ता रहता था। अकसर मैं देर शाम तक प्रचार करने के बाद कैंप लौटता था, फिर भी किसी ने कभी मुझे रोका-टोका नहीं।
यहोवा ने मेरी मेहनत पर आशीष दी। कैंप जिस नगर में था, वहाँ सिर्फ एक ही बुज़ुर्ग बहन रहती थी, जबकि नगर के इलाके के आस-पास कई साक्षी रहते थे। उस बुज़ुर्ग बहन का नाम था, विलमा क्रूमिन्या। बहन क्रूमिन्या और मैंने मिलकर कई जवानों के साथ बाइबल अध्ययन शुरू किया। कभी-कभार रीगा के भाई-बहन सफर तय करके हमारे यहाँ आते थे ताकि हमारे साथ प्रचार कर सकें। यहाँ तक कि लेनिनग्राड (अब सेंट पीटर्सबर्ग) से भी कुछ पायनियर आते थे। यहोवा की मदद से हमने बहुत-से लोगों के साथ बाइबल अध्ययन शुरू किए। कुछ ही समय बाद मैं एक पायनियर बन गया और हर महीने प्रचार में 90 घंटे बिताने लगा।
अप्रैल 7, 1990 को वालमाइएरा की जनता की अदालत में मेरे मुकद्दमे की दोबारा सुनवाई हुई। जब मुकद्दमा शुरू हुआ तो मैंने वकील को पहचान लिया। यह वही नौजवान था जिसके साथ मैंने पहले बाइबल पर चर्चा की थी! उसने भी मुझे पहचान लिया और मुस्कराया, मगर कुछ कहा नहीं। आज भी मुझे जज की एक-एक बात याद है जो उसने मुझसे उस दिन कही थी: “युरी, तुम्हें चार साल की कैद की सज़ा देने का फैसला गैर-कानूनी था। तुम्हें मुजरिम करार नहीं दिया जाना चाहिए था।” अचानक, मैं आज़ाद हो गया था!
मसीह का सैनिक
जून 1990 को एक बार फिर मुझे सेना में भर्ती करनेवाले दफ्तर में जाकर अपना नाम दर्ज़ करवाना था, ताकि मुझे रीगा में रहने की इजाज़त मिल सके। मैं दोबारा उसी दफ्तर में गया और लंबी टेबल के पीछे बैठे उसी लेफ्टिनेंट कर्नल से मिला जिसको मैंने चार साल पहले बताया था कि मैं सेना में भर्ती नहीं हो सकता। इस बार लेफ्टिनेंट कर्नल उठे, मुझसे हाथ मिलाया और कहा: “यह वाकई बड़े शर्म की बात है कि आपको इतनी तकलीफों से गुज़रना पड़ा। आपके साथ जो कुछ हुआ, उसका मुझे दुःख है।”
मैंने कहा: “मैं मसीह का एक सैनिक हूँ और मुझे जो काम 2 तीमुथियुस 2:3, 4) कर्नल ने जवाब दिया: “कुछ ही समय पहले मैंने एक बाइबल खरीदी है और अब उसे पढ़ रहा हूँ।” मेरे पास आप पृथ्वी पर परादीस में सर्वदा जीवित रह सकते हैं किताब थी। * मैंने उसे वह अध्याय दिखाया जिसमें अंतिम दिनों के चिन्ह के बारे में चर्चा की गयी है और समझाया कि बाइबल की यह भविष्यवाणी आज कैसे हमारे समय में पूरी हो रही है। आखिर में जाने से पहले, कर्नल ने गहरी कदरदानी के साथ फिर से मुझसे हाथ मिलाया और मुझे अपने काम में कामयाब होने की शुभकामनाएँ दीं।
सौंपा गया है, उसे मुझे पूरा करना है। बाइबल की मदद से, आप भी उस वादे को पूरा होते देख सकते हैं जो मसीह ने अपने चेलों से किया था। वह वादा है, हमेशा-हमेशा के लिए एक खुशहाल ज़िंदगी जीना।” (इस समय तक लैटविया में आध्यात्मिक खेत, कटनी के लिए पक चुके थे। (यूहन्ना 4:35) सन् 1991 में, मैं कलीसिया के प्राचीन के नाते सेवा करने लगा। पूरे देश में सिर्फ एक ही कलीसिया थी और उसमें केवल दो प्राचीन थे! एक साल बाद, इस कलीसिया से दो कलीसियाएँ बनायी गयीं—एक लैटवियन भाषा बोलनेवाली और दूसरी रूसी भाषा बोलनेवाली कलीसिया। मुझे रूसी भाषा बोलनेवाली कलीसिया में सेवा करने का मौका मिला। हमारी कलीसिया में इतनी तेज़ी से बढ़ोतरी हो रही थी कि एक साल बाद इसे तीन अलग-अलग कलीसियाओं में बाँटना पड़ा! जब मैं उन दिनों को याद करता हूँ तो साफ देख सकता हूँ कि यहोवा ही है जो अपनी भेड़ों को अपने संगठन में ला रहा है।
सन् 1998 में, मुझे खास पायनियर ठहराया गया और रीगा से 40 किलोमीटर दूर दक्षिण-पूर्व में एक नगर, येलगावा में सेवा करने के लिए भेजा गया। उसी साल मुझे ‘कलीसिया सेवक प्रशिक्षण स्कूल’ में हाज़िर होने का न्यौता आया। मैं लैटविया का पहला भाई था जो इस स्कूल में हाज़िर हुआ था। यह स्कूल रूस के सेंट पीटर्सबर्ग शहर के बाहर, सोलन्येचनॉए इलाके में हुआ और रूसी भाषा में चलाया गया। स्कूल के दौरान मैंने सीखा कि अगर हम अपनी सेवा में कामयाब होना चाहते हैं तो यह ज़रूरी है कि हम लोगों के लिए गहरा लगाव पैदा करें। स्कूल में हमें जो भी सिखाया गया था वह बहुत ही बढ़िया था, लेकिन जो बात मुझे सबसे ज़्यादा अच्छी लगी और मेरे दिल को छू गयी, वह थी बेथेल परिवार और स्कूल के शिक्षकों का प्यार और परवाह।
मेरी ज़िंदगी में एक और खास दिन सन् 2001 में आया जब मैंने करीना से शादी की जो बहुत ही प्यारी मसीही स्त्री है। शादी के बाद, उसने भी पूरे समय की सेवा शुरू कर दी। हर दिन जब मैं अपनी पत्नी को प्रचार से खुशी-खुशी लौटते हुए देखता हूँ तो मेरा हौसला और भी बढ़ जाता है। इसमें कोई शक नहीं कि यहोवा की सेवा करने से बड़ी खुशी मिलती है। कम्यूनिस्ट सरकार की हुकूमत के दौरान मैंने जो ज़ुल्म सहे, उनसे मैंने यहोवा पर पूरा भरोसा रखना सीखा है। यहोवा के मित्र बने रहने और उसकी हुकूमत को बुलंद करने के लिए हम चाहे बड़ी-से-बड़ी कुरबानी क्यों न दें, वह फिर भी कम होगी। दूसरों को यहोवा के बारे में सिखाने के काम से वाकई मेरी ज़िंदगी को एक मकसद मिला है। ‘मसीह का एक उत्तम सैनिक’ बनकर यहोवा की सेवा करना मेरे लिए वाकई बड़े सम्मान की बात रही है!—2 तीमुथियुस 2:3, नयी हिन्दी बाइबिल।
[फुटनोट]
^ इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है, मगर अब नहीं छापी जाती।
[पेज 10 पर तसवीर]
मुझे चार साल के लिए कड़ी मेहनत करने की सज़ा दी गयी थी और मुझे रीगा सेंट्रल जेल भेजा गया था
[पेज 12 पर तसवीर]
करीना के साथ प्रचार करते हुए