कामों से नहीं, बल्कि परमेश्वर के अनुग्रह से उद्धार पानेवाले
कामों से नहीं, बल्कि परमेश्वर के अनुग्रह से उद्धार पानेवाले
“विश्वास के द्वारा . . . तुम्हारा उद्धार हुआ है, . . . न कर्मों के कारण, ऐसा न हो कि कोई घमण्ड करे।”—इफिसियों 2:8, 9.
1. अपनी कामयाबियों के बारे में बात करने के मामले में मसीही, दुनिया के बाकी लोगों से कैसे और क्यों अलग हैं?
आज की दुनिया में लोग सीना तानकर अपनी कामयाबियों का ढिंढोरा पीटते हैं और डींगें मारते हैं। मगर मसीही ऐसा नहीं करते। वे अपनी कामयाबियों का ढिंढोरा नहीं पीटते, चाहे ये कामयाबियाँ उन्होंने परमेश्वर की सेवा में ही क्यों न हासिल की हों। यहोवा के सभी लोग मिलकर जो काम करते हैं, उससे वे सभी बहुत खुश होते हैं, मगर इसमें उनका कितना हाथ है इस बारे में वे सबको बताते नहीं फिरते। वे एक बात जानते हैं, यहोवा की सेवा में यह मायने नहीं रखता कि हम कितने बड़े-बड़े काम करते हैं, मगर यह ज़रूर मायने रखता है कि हम नेक इरादे से ये सारे काम करते हैं या नहीं। आनेवाली नयी दुनिया में जिस किसी को हमेशा की ज़िंदगी का तोहफा दिया जाएगा, वह परमेश्वर की सेवा में उसके कामों को देखकर नहीं दिया जाएगा। इसके बजाय, यह जीवन उसे अपने विश्वास की वजह से और उस पर परमेश्वर के अनुग्रह की वजह से हासिल होगा।—लूका 17:10; यूहन्ना 3:16.
2, 3. पौलुस ने किस चीज़ का घमंड किया, और क्यों?
2 प्रेरित पौलुस इस सच्चाई को बहुत अच्छी तरह जानता था। उसने तीन बार परमेश्वर से प्रार्थना की कि उसके ‘शरीर में एक कांटे’ की तरह चुभनेवाली समस्या को वह दूर करे। जवाब में यहोवा ने उससे कहा: “मेरा अनुग्रह तेरे लिये बहुत है; क्योंकि मेरी सामर्थ निर्बलता में सिद्ध होती है।” यहोवा के इस फैसले को पौलुस ने नम्रता से स्वीकार किया और कहा: “इसलिये मैं बड़े आनन्द से अपनी निर्बलताओं पर घमण्ड करूंगा, कि मसीह की सामर्थ मुझ पर छाया करती रहे।” पौलुस जैसी नम्रता हमारे अंदर भी होनी चाहिए।—2 कुरिन्थियों 12:7-9.
3 पौलुस ने परमेश्वर की सेवा में बहुत बड़े-बड़े काम किए थे। फिर भी, वह जानता था कि ये काम उसने अपने बलबूते और काबिलीयत से नहीं किए हैं। अपनी मर्यादा में रहकर उसने कहा: “मुझ पर जो सब पवित्र लोगों में से छोटे से भी छोटा हूं, यह अनुग्रह हुआ, कि मैं अन्यजातियों को मसीह के अगम्य धन का सुसमाचार सुनाऊं।” (इफिसियों 3:8) पौलुस को घमंड छू भी न गया था, न ही वह खुद को दूसरों से ज़्यादा धर्मी समझता था। “परमेश्वर अभिमानियों से विरोध करता है, पर दीनों पर अनुग्रह करता है।” (याकूब 4:6; 1 पतरस 5:5) क्या हम पौलुस की मिसाल पर चलते हैं, और भाइयों में जो छोटे-से-छोटे पद पर है खुद को उससे भी छोटा मानते हैं?
“दूसरों को अपने से उत्तम समझो”
4. कभी-कभी दूसरों को अपने से उत्तम समझना क्यों मुश्किल लग सकता है?
4 प्रेरित पौलुस ने मसीहियों को सलाह दी: “ईर्ष्या और बेकार के अहंकार से कुछ मत करो। बल्कि नम्र बनो तथा दूसरों को अपने से उत्तम समझो।” (फिलिप्पियों 2:3, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) इस सलाह पर चलना मुश्किल लग सकता है, खासकर अगर हम ज़िम्मेदारी के पद पर हों। नम्र होना इसलिए भी मुश्किल हो सकता है, क्योंकि दुनिया में हर तरफ लोग एक-दूसरे से आगे निकलना चाहते हैं और दुनिया के इस चलन का कुछ हद तक हम पर भी असर हुआ है। जब हम बच्चे थे, तब शायद हमें यही सिखाया गया हो कि दूसरे बच्चों से हमें आगे निकलना है, चाहे वे हमारे भाई-बहन हों या स्कूल में हमारी क्लास के दूसरे बच्चे। हमसे बार-बार यही कहा जाता था कि स्कूल का सबसे अच्छा खिलाड़ी बनने या पढ़ाई में अव्वल आने के लिए हम जी-जान लगा दें। यह सच है कि हर अच्छे काम में हमें अपनी तरफ से पूरी-पूरी मेहनत करनी चाहिए। मगर मसीही, अपना नाम करने के लिए ऐसी मेहनत नहीं करते। वे हर काम मन लगाकर करते हैं, जिससे खुद उन्हें पूरा-पूरा फायदा हो और अगर हो सके तो वे दूसरों को भी फायदा पहुँचा सकें। लेकिन हमेशा इस कोशिश में रहना कि कुछ ऐसा कर दिखाऊँ कि लोग मेरी तारीफ करें और मैं सबसे आगे रहूँ, बहुत खतरनाक साबित हो सकता है। वह कैसे?
5. दूसरों से होड़ लगाने की भावना पर अगर काबू न किया जाए तो इसका क्या अंजाम हो सकता है?
5 अगर एक इंसान दूसरों से आगे निकलने की या खुद को दूसरों से अच्छा समझने की भावनाओं पर काबू नहीं रखता, तो हो सकता है कि वह दूसरों को ज़लील करने लगे और हेकड़ी दिखाने लगे। वह शायद दूसरों की काबिलीयत और उनकी खास ज़िम्मेदारियाँ देखकर जल उठे। नीतिवचन 28:22 कहता है: “लोभी [“ईर्ष्या रखनेवाला,” NW] जन धन प्राप्त करने में उतावली करता है, और नहीं जानता कि वह घटी में पड़ेगा।” वह शायद ऐसे ओहदे को पाने की गुस्ताखी भी करे जिसका वह हकदार नहीं है। अपने कामों को सही ठहराने के लिए, वह शायद दूसरों के खिलाफ बुड़बुड़ाने लगे या उनमें नुक्स निकालने लगे। ये ऐसे काम हैं जिनसे मसीहियों का कोई वास्ता नहीं होना चाहिए। (याकूब 3:14-16) ऐसा इंसान बहुत बड़े फंदे में फँस सकता है। वह इतना खुदगर्ज़ हो सकता है कि अपने सिवा किसी और के बारे में सोचता ही नहीं।
6. बाइबल, होड़ लगाने की भावना के खिलाफ कैसे खबरदार करती है?
6 इसलिए बाइबल मसीहियों से गुज़ारिश करती है: “हम बेजा घमण्ड न करें, न एक दूसरे को चिढ़ाएँ, न एक दूसरे से जलें।” (गलतियों 5:26, हिन्दुस्तानी बाइबिल) प्रेरित यूहन्ना ने एक संगी मसीही के बारे में बताया जो ऐसी गलत भावनाओं का शिकार हो गया था। यूहन्ना ने लिखा: “मैं ने मण्डली को कुछ लिखा था; पर दियुत्रिफेस जो उन में बड़ा बनना चाहता है, हमें ग्रहण नहीं करता। सो जब मैं आऊंगा, तो उसके कामों की जो वह कर रहा है सुधि दिलाऊंगा, कि वह हमारे विषय में बुरी बुरी बातें बकता है।” एक मसीही की अगर ऐसी हालत हो जाए, तो यह कितने दुःख की बात होगी!—3 यूहन्ना 9, 10.
7. आज नौकरी और कारोबार में जो सबसे आगे निकलने की भावना है, उससे एक मसीही कैसे दूर रहेगा?
7 बेशक, हम यह तो उम्मीद नहीं कर सकते कि एक मसीही ऐसा कोई भी काम नहीं करेगा जिसमें, कुछ हद तक ही सही दूसरों से होड़ लगाने की ज़रूरत पड़ सकती है। मिसाल के लिए, वह अपनी रोज़ी-रोटी के लिए जो काम करता है उसमें उसे शायद दूसरे लोगों या व्यापारियों से होड़ लगानी पड़े, क्योंकि वह भी उनके जैसा सामान बेचता है या उनके जैसी सेवाएँ देता है। लेकिन कारोबार के मामलों में भी एक मसीही, दूसरों के लिए प्यार, इज़्ज़त और लिहाज़ की भावना दिखाएगा। वह ऐसे काम हरगिज़ नहीं करेगा जो गैर-कानूनी हैं और मसीही उसूलों के हिसाब से ठीक नहीं हैं। न ही वह ऐसा इंसान होने का नाम कमाना चाहेगा जो किसी भी कीमत पर अपने कारोबार को आगे बढ़ाना चाहता है, फिर इसके लिए उसे चाहे दूसरों का नुकसान क्यों न करना पड़े। एक मसीही के लिए, हर काम में सबसे आगे निकलना और पहले नंबर पर होना ही ज़िंदगी में सबसे बड़ी बात नहीं है। ज़रा सोचिए, अगर परमेश्वर चाहता है कि हम अपने कारोबार वगैरह में ऐसी भावना न दिखाएँ, तो फिर परमेश्वर की सेवा करते वक्त ऐसी भावनाओं पर काबू पाना और कितना ज़रूरी हो जाता है!
“किसी दूसरे के साथ तुलना किये बिना”
8, 9. (क) मसीही प्राचीनों को क्यों एक-दूसरे से होड़ लगाने की कोई वजह नहीं है? (ख) पहला पतरस 4:10 क्यों परमेश्वर के सभी सेवकों पर लागू होता है?
8 मसीही जब परमेश्वर की उपासना करते हैं तो उनका कैसा रवैया होना चाहिए, यह ईश्वर-प्रेरणा से लिखे इन शब्दों से पता चलता है: “अपने कर्म का मूल्यांकन हर किसी को स्वयं करते रहना चाहिये। ऐसा करने पर ही उसे अपने आप पर, किसी दूसरे के साथ तुलना किये बिना, गर्व करने का अवसर मिलेगा।” (गलतियों 6:4, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) कलीसिया के प्राचीन जानते हैं कि वे एक-दूसरे से आगे निकलने की कोशिश नहीं कर रहे, इसलिए वे सभी मिलकर एक-दूसरे को सहयोग देते हैं और एकता से साथ-साथ काम करते हैं। उन्हें यह देखकर खुशी होती है कि हर प्राचीन के काम से कैसे पूरी कलीसिया का भला होता है। इस तरह वे होड़ की भावना को अपने बीच फूट नहीं डालने देते और इससे वे कलीसिया के बाकी लोगों के लिए एक बढ़िया मिसाल कायम करते हैं।
9 उम्र, तजुरबे या अपनी काबिलीयत की वजह से कुछ प्राचीन शायद दूसरों से ज़्यादा अच्छी तरह अपनी ज़िम्मेदारी निभाते हों, या हो सकता है कि उन्हें गहरी समझ का वरदान मिला हो। इसलिए यहोवा के संगठन में प्राचीन अलग-अलग ज़िम्मेदारियाँ निभाते हैं। दूसरों से अपनी तुलना करने के बजाय वे इस सलाह को ध्यान में रखते हैं: “जिस को जो बरदान मिला है, वह उसे परमेश्वर के नाना प्रकार के अनुग्रह के भले भण्डारियों की नाईं एक दूसरे की सेवा में लगाए।” (1 पतरस 4:10) असल में, यह आयत यहोवा के सभी सेवकों पर लागू होती है, क्योंकि कुछ हद तक हम सभी को सही ज्ञान का वरदान मिला है और हम सभी को मसीही प्रचार का काम करने की आशीष भी मिली है।
10. हमारी पवित्र सेवा को यहोवा सिर्फ किस सूरत में कबूल करेगा?
10 अगर हम अपनी पवित्र सेवा से यहोवा को खुश करना चाहते हैं, तो यह तभी मुमकिन होगा जब हम प्यार की खातिर और अपनी भक्ति ज़ाहिर करने के लिए यह सेवा करें, न कि अपना नाम करने के लिए। इसलिए, ज़रूरी है कि हम सच्ची उपासना को बढ़ाने के लिए जो भी काम करें उसके बारे में सही नज़रिया रखें। यह सच है कि कोई भी इंसान दूसरे के इरादों को सही-सही नहीं जान सकता, मगर यहोवा ‘मन को जांचता’ है। (नीतिवचन 24:12; 1 शमूएल 16:7) इसलिए अच्छा होगा कि हम समय-समय पर खुद से यह पूछें, ‘यहोवा की सेवा में मैं जो काम करता हूँ, वह किस इरादे से करता हूँ?’—भजन 24:3, 4; मत्ती 5:8.
हमारे काम का सही नज़रिया
11. प्रचार में हमारे काम के सिलसिले में किन सवालों पर चर्चा करना सही होगा?
11 अगर यहोवा को खुश करने के लिए सही इरादा ही सबसे ज़्यादा अहमियत रखता है, तो फिर परमेश्वर की सेवा में अपने कामों पर हमें किस हद तक ध्यान देना चाहिए? हम नेक इरादे से सेवा कर रहे हैं, तो फिर क्या यह ज़रूरी है कि हम क्या करते हैं और कितना करते हैं इसका रिकॉर्ड रखा जाए? ये सवाल पूछना सही है, क्योंकि हम अपने विश्वास के कामों पर आँकड़ों को हावी नहीं होने देना चाहते या फिर अपनी मसीही सेवा में हमारी सबसे बड़ी चिंता यह नहीं होती कि हम एक अच्छी रिपोर्ट दें।
12, 13. (क) हमारे प्रचार काम का रिकॉर्ड रखने की कुछ वजह क्या हैं? (ख) हमारे प्रचार काम की दुनिया-भर की रिपोर्ट देखकर हम क्यों खुशी से बाग-बाग हो जाते हैं?
12 गौर कीजिए, यहोवा की इच्छा पूरी करने के लिए संगठित किताब क्या कहती है: “यीशु मसीह के शुरू के चेलों ने यह जानने में गहरी दिलचस्पी दिखायी है कि प्रचार काम में कितनी तरक्की हो रही है। (मरकुस 6:30) बाइबल में प्रेरितों की किताब हमें बताती है कि पिन्तेकुस्त के दिन जब चेलों पर पवित्र आत्मा उंडेली गयी तब करीब 120 लोग मौजूद थे। उसके बाद जल्द ही उनकी गिनती बढ़कर 3,000 और फिर 5,000 हो गयी। . . . (प्रेरितों 1:15; 2:5-11, 41, 47; 4:4; 6:7) इस बढ़ोतरी की खबरें सुनकर चेलों का हौसला कितना बुलंद हुआ होगा!” इस वजह से, यहोवा के साक्षी आज दुनिया-भर में होनेवाले काम की ठीक-ठीक रिपोर्ट तैयार करने की कोशिश करते हैं। यह काम वही है जिससे यीशु के ये शब्द पूरे होते हैं: “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।” (मत्ती 24:14) दुनिया-भर में यह काम किस हद तक किया जा रहा है, इसकी एक सही-सही तसवीर ऐसी रिपोर्टों से मिलती है। इनसे पता चलता है कि कहाँ मदद की ज़रूरत है और प्रचार के काम को आगे बढ़ाने के लिए किस तरह के और कितने साहित्य की ज़रूरत है।
13 इसलिए, प्रचार की रिपोर्ट देने से हम राज्य का सुसमाचार प्रचार करने की ज़िम्मेदारी ज़्यादा अच्छी तरह पूरी कर पाते हैं। इसके अलावा, जब हम सुनते हैं कि दुनिया के दूसरे हिस्सों में हमारे भाई प्रचार के काम में क्या-क्या कर रहे हैं, तो क्या हमारा हौसला बुलंद नहीं होता? सारी दुनिया में हो रही तरक्की और बढ़ोतरी की खबरें सुनकर हम खुशी से बाग-बाग हो जाते हैं, परमेश्वर की सेवा में और ज़्यादा करने का हममें जोश भर आता है और हमारा भरोसा बढ़ता है कि यहोवा हमारे काम पर आशीष दे रहा है। और यह जानकर कितना चैन मिलता है कि दुनिया-भर की रिपोर्ट में हमारी अपनी रिपोर्ट भी शामिल है! पूरी दुनिया के कुल आँकड़ों के मुकाबले हमारी रिपोर्ट चाहे बहुत कम हो, मगर यहोवा हमारी सेवा को अनदेखा नहीं करता। (मरकुस 12:42, 43) यह बात कभी मत भूलिए, आपकी रिपोर्ट के बिना दुनिया-भर की रिपोर्ट अधूरी होगी!
14. प्रचार और सिखाने के अलावा, हमारी उपासना में और क्या शामिल है?
14 यह सच है कि यहोवा का हर समर्पित साक्षी अपनी ज़िम्मेदारी को पूरा करने के लिए जो कुछ करता है, वह सब उसकी रिपोर्ट में नहीं लिखा जाता। जैसे हर दिन निजी बाइबल अध्ययन करना, मसीही सभाओं में हाज़िर होना और उनमें हिस्सा लेना, कलीसिया की ज़िम्मेदारियाँ निभाना, अपने मसीही भाई-बहनों को जब ज़रूरत पड़े तब उनकी मदद करना, दुनिया-भर के राज्य के काम के लिए दान देना, वगैरह-वगैरह। यह सच है कि हमारे प्रचार की रिपोर्ट ज़रूरी है, क्योंकि इससे हमें प्रचार में अपना जोश कायम रखने और ढीले न पड़ने में मदद मिलती है। मगर, हमें यह भी याद रखना चाहिए कि प्रचार की रिपोर्ट की अपनी एक जगह है। प्रचार की अच्छी रिपोर्ट को हम एक पासपोर्ट या लाइसंस मानने की गलती नहीं करेंगे, जिससे मानो यह तय हो जाता है कि हमें हमेशा की ज़िंदगी ज़रूर मिलेगी।
“भले भले कामों में सरगर्म”
15. सिर्फ कामों से हमारा उद्धार नहीं हो सकता, फिर भी ये काम करना क्यों ज़रूरी है?
15 यह बात बिलकुल साफ है कि हम परमेश्वर की सेवा में अपने कामों से उद्धार नहीं पा सकते, फिर भी सेवा के ये काम करना ज़रूरी है। इसलिए मसीहियों को “ऐसी जाति” कहा गया है जो “भले भले कामों में सरगर्म” है और इसी वजह से उन्हें बढ़ावा दिया गया है कि “प्रेम, और भले कामों में उस्काने के लिये एक दूसरे की चिन्ता किया करें।” (तीतुस 2:14; इब्रानियों 10:24) बाइबल के एक और लेखक, याकूब ने इस बात को साफ और आसान शब्दों में कहा: “जैसे देह आत्मा बिना मरी हुई है वैसा ही विश्वास भी कर्म बिना मरा हुआ है।”—याकूब 2:26.
16. कामों से ज़्यादा ज़रूरी क्या है, मगर हमें किस बात से सावधान रहना चाहिए?
16 भले काम करना ज़रूरी है, मगर ये काम किस इरादे से किए गए हैं, यह उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है। इसलिए, अच्छा होगा अगर हम वक्त-वक्त पर यह जाँचते रहें कि हम किस इरादे से परमेश्वर की सेवा कर रहे हैं। लेकिन, हम इंसान हैं और कोई इंसान दूसरे के दिल में क्या है, उसके इरादे क्या हैं यह ठीक-ठीक नहीं जान सकता। इसलिए हमें सावधान रहना चाहिए कि किसी का न्याय न करें। हमसे पूछा गया है: “तू कौन है जो दूसरे के सेवक पर दोष लगाता है?” इसका जवाब साफ है: “उसका स्थिर रहना या गिर जाना उसके स्वामी ही से सम्बन्ध रखता है।” (रोमियों 14:4) हम सबका स्वामी, यहोवा और उसका ठहराया हुआ न्यायी, यीशु मसीह हमारा न्याय करेंगे। और न्याय करते वक्त वे सिर्फ यह नहीं देखेंगे कि हमने कितना काम किया बल्कि यह भी कि हमने यह काम किस इरादे से किया, क्या हमने सेवा के हर मौके का फायदा उठाया, क्या हमें परमेश्वर से सच्चा प्यार है और क्या हम उसी को समर्पित हैं। सिर्फ यहोवा और मसीह यीशु ही यह ठीक-ठीक तय कर सकते हैं कि क्या हमने वही किया जिसकी सलाह मसीहियों को दी गयी थी। यह सलाह प्रेरित पौलुस ने इन शब्दों में लिखी: “पूरा प्रयत्न करो कि परमेश्वर की सराहना के योग्य बन सको; ऐसे कार्यकर्ता बनो जिसे लज्जित होने की आवश्यकता नही और जो सत्य के वचन को उपयुक्त रीति से प्रस्तुत करता है।”—2 तीमुथियुस 2:15, नयी हिन्दी बाइबिल; 2 पतरस 1:10; 3:14.
17. जब हम अपनी तरफ से पूरा प्रयत्न करने में लगे हैं, तब क्यों हमें याकूब 3:17 को मन में रखना चाहिए?
17 यहोवा हमसे उतने की ही उम्मीद करता है जितना हम कर सकते हैं। याकूब 3:17 के मुताबिक “जो ज्ञान ऊपर से आता है” वह “कोमल” होता है। क्या यह समझदारी की बात नहीं होगी कि हम इस मामले में यहोवा जैसे बनें? अगर हम ऐसे बन पाए, तो यह सही मायने में एक कामयाबी होगी। इसलिए, हमें खुद से और अपने भाइयों से ऐसे काम करने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए जिन्हें पूरा करना अव्वल तो बहुत मुश्किल है और नामुमकिन भी है।
18. जब हम सेवा के कामों और यहोवा के अनुग्रह के बारे में सही नज़रिया रखेंगे, तो हम आगे के लिए क्या उम्मीद कर सकते हैं?
18 परमेश्वर की सेवा में किए जानेवाले काम और यहोवा का अनुग्रह, इनके बारे में अगर हम सही नज़रिया बनाए रखें, तो हम अपनी खुशी बरकरार रख सकेंगे जो यहोवा के सच्चे सेवकों की खास निशानी है। (यशायाह 65:13, 14) यहोवा अपने सब सेवकों पर आशीषें बरसा रहा है। यह हम सभी के लिए खुशियाँ मनाने की वजह है, फिर चाहे हम खुद यहोवा की सेवा में कितना भी क्यों न कर रहे हों। ‘प्रार्थना, बिनती और धन्यवाद के साथ’ हम यहोवा से मदद माँग सकते हैं कि हम जी-जान लगाकर अपना पूरा प्रयत्न करें। फिर, इसमें कोई शक नहीं होगा कि “परमेश्वर की शान्ति, जो समझ से बिलकुल परे है, [हमारे] हृदय और [हमारे] विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी।” (फिलिप्पियों 4:4-7) जी हाँ, हमारा इस बात से हौसला बढ़ता है और हमें सुकून मिलता है कि हमें सिर्फ कामों से नहीं बल्कि यहोवा के अनुग्रह से उद्धार मिलेगा!
क्या आप समझा सकते हैं कि मसीही क्यों
• अपनी कामयाबियों की डींगें नहीं मारते?
• होड़ की भावना नहीं रखते?
• प्रचार में मसीही सेवा की रिपोर्ट देते हैं?
• संगी मसीहियों का न्याय नहीं करते?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 15 पर तसवीर]
“मेरा अनुग्रह तेरे लिये बहुत है”
[पेज 16, 17 पर तसवीरें]
प्राचीनों को यह देखकर खुशी होती है कि हर प्राचीन के काम से कैसे पूरी कलीसिया का भला होता है
[पेज 18, 19 पर तसवीरें]
आपकी रिपोर्ट के बिना दुनिया-भर की रिपोर्ट अधूरी होगी