यहोवा के मार्गों के बारे में सीखना
यहोवा के मार्गों के बारे में सीखना
“मुझे अपने मार्ग समझा दे, कि मैं तुझे जान सकूं।”—निर्गमन 33:13, NHT.
1, 2. (क) एक मिस्री को इब्री आदमी के साथ बुरा सलूक करते देखकर मूसा ने जो किया, उसके पीछे वजह क्या थी? (ख) यहोवा की सेवा के लायक ठहरने के लिए, मूसा को क्या सीखने की ज़रूरत थी?
मूसा फिरौन के परिवार में पला-बढ़ा था और उसे मिस्र के शाही घराने के हिसाब से सबसे ऊँची तालीम दी गयी थी। फिर भी मूसा जानता था कि वह मिस्री नहीं है। उसके माता-पिता इब्री थे। चालीस साल की उम्र में एक बार वह अपने जाति-भाइयों यानी इस्राएलियों का हाल-चाल देखने गया। जब उसने देखा कि एक मिस्री आदमी एक इब्री को मार रहा है तो उससे रहा नहीं गया। उसने उस मिस्री को मार डाला। मूसा ने यहोवा के लोगों का साथ देने का फैसला किया और सोचा कि परमेश्वर उसे अपने भाइयों को छुड़ाने के लिए इस्तेमाल कर रहा है। (प्रेरितों 7:21-25; इब्रानियों 11:24, 25) मगर जब मिस्र के शाही घराने को इस घटना के बारे में पता चला तो उन्होंने मूसा के इस काम को बगावत समझा। इसलिए मूसा को अपनी जान बचाने के लिए वहाँ से भागना पड़ा। (निर्गमन 2:11-15) अगर मूसा चाहता कि परमेश्वर अपने लोगों को छुड़ाने के लिए उसे इस्तेमाल करे तो उसे यहोवा के मार्गों से अच्छी तरह वाकिफ होना था। क्या मूसा सीखने के लिए तैयार होता?—भजन 25:9.
2 अगले 40 सालों तक, मूसा एक पराए देश में रहा और उसने चरवाही का काम किया। इस दौरान मूसा इस बात को लेकर कड़वाहट से नहीं भर गया कि उसके अपने ही इब्री भाइयों ने उसकी मदद को ठुकरा दिया। इसके बजाय, परमेश्वर ने उस पर जो भी गुज़रने दी, उसने नम्रता से उसे कबूल किया। यूँ ही साल गुज़रते गए मगर यहोवा ने ऐसा कुछ ज़ाहिर नहीं किया कि वह मूसा को अपने काम के लिए इस्तेमाल करेगा। फिर भी मूसा ने यहोवा के हाथों खुद को ढलने दिया। उसने बाद में लिखा: “मूसा तो पृथ्वी भर के रहने वाले सब मनुष्यों से बहुत अधिक नम्र स्वभाव का था।” (गिनती 12:3) यह लिखकर वह अपना ढिंढोरा नहीं पीट रहा था, क्योंकि उसने यह बात परमेश्वर की आत्मा से प्रेरित होकर लिखी थी। यहोवा ने मूसा को लाजवाब तरीकों से इस्तेमाल किया। अगर हम भी नम्रता को ढूंढ़ें तो यहोवा हमें भी आशीष देगा।—सपन्याह 2:3.
उसे एक ज़िम्मेदारी दी गयी
3, 4. (क) यहोवा ने मूसा को क्या काम सौंपा? (ख) मूसा को अपनी ज़िम्मेदारी निभाने के लिए क्या मदद दी गयी?
3 एक दिन सीनै के इलाके में होरेब पर्वत के पास, यहोवा के भेजे एक स्वर्गदूत ने मूसा से बात की। मूसा को यह बताया गया: “मैं ने अपनी प्रजा के लोग जो मिस्र में हैं उनके दुःख को निश्चय देखा है, और उनकी जो चिल्लाहट परिश्रम करानेवालों के कारण होती है उसको भी मैं ने सुना है, और उनकी पीड़ा पर मैं ने चित्त लगाया है; इसलिये अब मैं उतर आया हूं कि उन्हें मिस्रियों के वश से छुड़ाऊं, और उस देश से निकालकर एक अच्छे और बड़े देश में जिस में दूध और मधु की धारा बहती है, . . . पहुंचाऊं।” (निर्गमन 3:2, 7, 8) इसी सिलसिले में यहोवा, मूसा को कुछ काम सौंपने जा रहा था, मगर उसे यह काम यहोवा के बताए तरीके से करना था।
4 यहोवा के स्वर्गदूत ने आगे कहा: “इसलिये आ, मैं तुझे फ़िरौन के पास भेजता हूं कि तू मेरी इस्राएली प्रजा को मिस्र से निकाल ले आए।” मूसा इस ज़िम्मेदारी को हाथ में लेने से झिझका क्योंकि उसने खुद को नाकाबिल महसूस किया। और वाकई यह ऐसा काम था जिसे वह अपने बलबूते नहीं कर सकता था। मगर यहोवा ने यह कहकर उसे हिम्मत दिलायी: “निश्चय मैं तेरे संग रहूंगा।” (निर्गमन 3:10-12) यहोवा ने मूसा को कुछ ऐसे चमत्कार करने की शक्ति दी जिनसे साबित होता कि वह सचमुच परमेश्वर का भेजा हुआ था। मूसा का भाई हारून भी उसकी तरफ से बोलने के लिए उसके साथ-साथ जाता। और यहोवा उन दोनों को सिखाता कि उन्हें क्या कहना और क्या करना है। (निर्गमन 4:1-17) क्या मूसा वफादारी से यह ज़िम्मेदारी निभाता?
5. इस्राएलियों का रवैया मूसा के लिए मुश्किलें क्यों खड़ी करता था?
5 इस्राएली पुरनियों ने शुरू-शुरू में तो मूसा और हारून पर यकीन किया। (निर्गमन 4:29-31) मगर कुछ ही समय बाद, “इस्राएलियों के सरदारों” ने मूसा और उसके भाई पर यह इलज़ाम लगाया कि उन्हीं की वजह से वे फिरौन और उसके सेवकों के सामने ‘घृणित ठहरे’ हैं। (निर्गमन 5:19-21; 6:9) फिर जब इस्राएली मिस्र से रवाना हुए तो मिस्री अपने रथों पर सवार होकर उनका पीछा करने लगे। दुश्मनों को देख इस्राएलियों का खून सूख गया क्योंकि पीछे यह सेना थी और आगे लाल सागर था। बीच में वे बुरी तरह से फँस गए थे। अब इस मुसीबत के लिए उन्होंने मूसा को कसूरवार ठहराया। अगर आप मूसा की जगह होते तो क्या करते? हालाँकि इस्राएलियों के पास कोई नाव नहीं थी, फिर भी यहोवा के कहने पर उसने लोगों को बताया कि वे अपने सामान लेकर आगे के लिए निकल पड़ें। तब परमेश्वर ने लाल सागर के पानी को दो हिस्सों में बाँटकर बीच में से रास्ता निकाला। और इस्राएलियों ने सूखी ज़मीन पर चलकर सागर पार किया।—निर्गमन 14:1-22.
छुटकारे से भी ज़रूरी मामला
6. यहोवा ने मूसा को ज़िम्मेदारी सौंपते वक्त किस बात की अहमियत समझायी?
6 जब यहोवा ने मूसा को ज़िम्मेदारी सौंपी, तो यहोवा ने अपने नाम की अहमियत पर ज़ोर दिया। उस नाम के लिए और उस नाम को धारण करनेवाले के लिए मन में आदर होना बहुत ज़रूरी था। जब मूसा ने यहोवा से उसके नाम के बारे पूछा तो यहोवा ने उससे कहा: “मैं जो हूं सो हूं।” इसके अलावा, मूसा को इस्राएलियों से यह कहना था: “तुम्हारे पितरों का परमेश्वर, अर्थात् इब्राहीम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर, और याक़ूब का परमेश्वर, यहोवा, उसी ने मुझ को तुम्हारे पास भेजा है।” यहोवा ने यह भी कहा: “देख, सदा तक मेरा नाम यही रहेगा, और पीढ़ी पीढ़ी में मेरा स्मरण इसी से हुआ करेगा।” (निर्गमन 3:13-15) आज भी दुनिया में रहनेवाले परमेश्वर के सेवक उसे यहोवा नाम से ही जानते हैं।—यशायाह 12:4, 5; 43:10-12.
7. फिरौन के घमंड के बावजूद, परमेश्वर ने मूसा को क्या करने के लिए उकसाया?
7 जब मूसा और हारून फिरौन के सामने हाज़िर हुए, तो उन्होंने यहोवा के नाम से ही अपना पैगाम दिया। मगर फिरौन ने अकड़कर कहा: “यहोवा कौन है, कि मैं उसका वचन मानकर इस्राएलियों को जाने दूं? मैं यहोवा को नहीं जानता, और मैं इस्राएलियों को नहीं जाने दूंगा।” (निर्गमन 5:1, 2) फिरौन बड़ा ही पत्थरदिल और मक्कार साबित हुआ, फिर भी यहोवा ने मूसा को उकसाया कि वह बार-बार उसके पास जाकर पैगाम देता रहे। (निर्गमन 7:14-16, 20-23; 8:1, 2, 20) मूसा देख सकता था कि फिरौन उसके पैगाम सुन-सुनकर तंग आ चुका है। तो क्या उसके पास दोबारा जाने का कोई फायदा होता? एक तरफ, इस्राएली छुटकारे के लिए तरस रहे थे। और दूसरी तरफ, फिरौन उन्हें न छोड़ने की ज़िद पर अड़ा हुआ था। अगर आप मूसा की जगह होते तो क्या करते?
8. यहोवा ने फिरौन के मामले को जिस तरह निपटाया, उससे क्या फायदा हुआ, और उन घटनाओं का हम पर कैसा असर पड़ना चाहिए?
8 मूसा ने फिरौन को एक और पैगाम सुनाते हुए कहा: “इब्रियों का परमेश्वर यहोवा इस प्रकार कहता है, कि मेरी प्रजा के लोगों को जाने दे, कि वे मेरी उपासना करें।” परमेश्वर ने यह भी कहा: “मैं ने तो अभी हाथ बढ़ाकर तुझे और तेरी प्रजा को मरी से मारा होता, और तू पृथ्वी पर से सत्यानाश हो गया होता; परन्तु सचमुच मैं ने इसी कारण तुझे बनाए रखा है, कि तुझे अपना सामर्थ्य दिखाऊं, और अपना नाम सारी पृथ्वी पर प्रसिद्ध करूं।” (निर्गमन 9:13-16) यहोवा उस पत्थरदिल फिरौन को सज़ा देकर इस तरीके से अपनी शक्ति दिखाना चाहता था कि उन सभी को सबक मिलता जो उसे ललकारते हैं। यह शैतान के लिए भी एक चेतावनी होती जिसे बाद में यीशु मसीह ने “संसार का सरदार” कहा। (यूहन्ना 14:30; रोमियों 9:17-24) जैसे पहले भविष्यवाणी की गयी थी, जब यहोवा ने अपनी महान शक्ति दिखायी तो सारी दुनिया में उसका नाम रोशन हुआ। उसके धीरज धरने से इस्राएलियों की और मिली-जुली हुई एक भीड़ की जान बची जो यहोवा की उपासना करने के लिए इस्राएलियों के साथ हो ली थी। (निर्गमन 9:20, 21; 12:37, 38) तब से आज तक यहोवा के नाम का ऐलान करने की वजह से और भी लाखों लोगों ने सच्ची उपासना करना शुरू किया है।
हठीले लोगों से सलूक
9. मूसा के अपने ही लोगों ने किस तरह यहोवा का अपमान किया?
9 इब्री लोग परमेश्वर का नाम जानते थे। और मूसा ने भी उनसे बात करते वक्त इस नाम का इस्तेमाल किया था, मगर उन्होंने इस नाम को धारण करनेवाले का हमेशा आदर नहीं किया। यहोवा ने चमत्कार करके इस्राएलियों को मिस्र से छुटकारा दिलाया था। लेकिन इसके कुछ ही समय बाद जब उन्हें फौरन पीने का पानी नहीं मिला तो क्या हुआ? वे मूसा के खिलाफ कुड़कुड़ाने लगे। इसके बाद उन्होंने खाने के बारे में शिकायत की। मूसा ने उन्हें खबरदार किया कि उनका यह कुड़कुड़ाना सिर्फ उसके और हारून के खिलाफ नहीं बल्कि यहोवा के खिलाफ था। (निर्गमन 15:22-24; 16:2-12) सीनै पर्वत के पास यहोवा ने इस्राएलियों को व्यवस्था दी और इसके साथ-साथ कुछ हैरतअँगेज़ घटनाएँ दिखायी थीं। मगर फिर भी लोगों ने परमेश्वर की आज्ञा के खिलाफ जाकर सोने का एक बछड़ा बनाकर उसे पूजना शुरू किया और कहा कि वे “यहोवा के लिये पर्ब्ब” मना रहे हैं।—निर्गमन 32:1-9.
10. निर्गमन 33:13 में दर्ज़ मूसा की गुज़ारिश में आज मसीही ओवरसियरों को खास दिलचस्पी क्यों है?
10 मूसा को उस जाति के साथ कैसा व्यवहार करना था जिसे खुद यहोवा ने हठीले लोग कहा? उसने यहोवा से यह मिन्नत की: “यदि तेरी कृपा-दृष्टि मुझ पर है, तो मुझे अपने मार्ग समझा दे, कि मैं तुझे जान सकूं, जिस से कि मैं तेरी कृपा-दृष्टि प्राप्त करूँ।” (निर्गमन 33:13, NHT) आज यहोवा के साक्षियों की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी मसीही ओवरसियरों को सौंपी गयी है। ये ओवरसियर ऐसे लोगों के झुंड की चरवाही कर रहे हैं जो इस्राएलियों से कहीं ज़्यादा नम्र हैं। फिर भी वे मूसा की तरह यह प्रार्थना करते हैं: “हे यहोवा अपने मार्ग मुझ को दिखला; अपना पथ मुझे बता दे।” (भजन 25:4) यहोवा के मार्गों के बारे में ज्ञान रखना ओवरसियरों को इस काबिल बनाएगा कि वे अलग-अलग समस्याओं का सामना ऐसे तरीकों से कर पाएँ जो परमेश्वर के वचन में दी हिदायतों के मुताबिक हों और जिनसे यहोवा के गुण जाहिर हों।
यहोवा अपने लोगों से क्या चाहता है?
11. यहोवा ने मूसा को क्या-क्या हिदायतें दीं, और हम उनमें क्यों दिलचस्पी रखते हैं?
11 सीनै पर्वत के पास ज़बानी तौर पर बताया गया था कि यहोवा अपने लोगों से क्या चाहता है। फिर बाद में सीनै पर्वत पर मूसा को दो पटियाएँ दी गयीं जिन पर दस आज्ञाएँ लिखी थीं। इन आज्ञाओं को लिए जब वह पर्वत से नीचे उतर रहा था तो उसने देखा कि इस्राएली बछड़े की मूरत को पूज रहे थे। तब वह इतना भड़क उठा कि उसने दोनों पटियाओं को पटक दिया जिससे वे चूर-चूर हो गयीं। यहोवा ने मूसा को पत्थर की तख्तियाँ गढ़ने के लिए कहा और उन पर यहोवा ने दोबारा दस आज्ञाएँ लिखकर दीं। (निर्गमन 32:19; 34:1) ये वही आज्ञाएँ थीं जो मूसा को पहली बार दी गयी थीं। मूसा को इन आज्ञाओं के मुताबिक काम करना था। परमेश्वर ने उसके दिमाग में यह बात भी अच्छी तरह बिठायी थी कि वह कैसी शख्सियत रखता है। इस तरह उसने मूसा को दिखाया कि यहोवा के एक प्रतिनिधि के नाते उसे कैसा व्यवहार करना चाहिए। हालाँकि आज मसीही, मूसा की व्यवस्था के अधीन नहीं हैं, मगर यहोवा ने मूसा को जो नियम बताए उनमें ऐसे कई बुनियादी उसूल छिपे हैं जो बदले नहीं हैं और जिन्हें आज भी यहोवा के सभी उपासकों को मानना चाहिए। (रोमियों 6:14; 13:8-10) आइए इनमें से कुछ उसूलों पर ध्यान दें।
12. यहोवा ने सिर्फ अपनी भक्ति करने की जो माँग की, उसका इस्राएलियों की ज़िंदगी पर कैसा असर पड़ता?
12 सिर्फ यहोवा की भक्ति करना। इस्राएलियों ने खुद अपने कानों से यहोवा का यह ऐलान सुना कि उसे छोड़ किसी और को भक्ति न दी जाए। (निर्गमन 20:2-5) उन्होंने इस बात के बेहिसाब सबूत देखे थे कि यहोवा ही सच्चा परमेश्वर है। (व्यवस्थाविवरण 4:33-35) यहोवा ने साफ-साफ बता दिया था कि दूसरी जातियाँ चाहे जो भी करें, मगर उसे यह हरगिज़ बरदाश्त नहीं होगा कि उसके लोग किसी भी तरह की मूर्तिपूजा या प्रेतात्मवाद के काम करें। उन्हें बस खानापूर्ति के लिए उसकी भक्ति नहीं करनी थी। उन सभी को अपने सारे मन, सारे जीव और अपनी सारी शक्ति से यहोवा को प्यार करना था। (व्यवस्थाविवरण 6:5, 6) इसका मतलब यह था कि उन्हें अपनी बातचीत और अपने चालचलन से, जी हाँ ज़िंदगी के हर पहलू से यहोवा के लिए प्यार और भक्ति दिखानी थी। (लैव्यव्यवस्था 20:27; 24:15, 16; 26:1) यीशु मसीह ने भी साफ बताया था कि यहोवा एकनिष्ठ भक्ति की माँग करनेवाला परमेश्वर है।—मरकुस 12:28-30; लूका 4:8.
13. परमेश्वर की आज्ञाओं को सख्ती से मानना इस्राएलियों का फर्ज़ क्यों था, और किस बात को हमें उसकी आज्ञा मानने के लिए उकसाना चाहिए? (सभोपदेशक 12:13)
13 यहोवा की आज्ञाओं को सख्ती से मानना। इस्राएलियों को याद दिलाए जाने की ज़रूरत थी कि उन्होंने यहोवा के साथ वाचा बाँधते वक्त शपथ खायी थी कि वे उसकी हर आज्ञा को मानेंगे। उन्हें ज़ाती मामलों में काफी छूट दी गयी थी, मगर जिन मामलों में यहोवा ने आज्ञाएँ दी थीं, उन्हें सख्ती से मानना ज़रूरी था। ऐसा करके वे यहोवा के लिए अपना प्यार दिखा सकते थे। साथ ही, उन्हें और उनकी संतान को फायदा होता क्योंकि यहोवा की सारी माँगें उनकी भलाई के लिए थीं।—निर्गमन 19:5-8; व्यवस्थाविवरण 5:27-33; 11:22, 23.
14. परमेश्वर ने इस्राएलियों को आध्यात्मिक कामों को पहली जगह देने की अहमियत कैसे समझायी?
14 आध्यात्मिक बातों को पहली जगह देना। इस्राएल जाति को खाने-पहनने की ज़रूरतों के पीछे इतनी भाग-दौड़ नहीं करनी थी कि आध्यात्मिक कामों के लिए उनके पास समय और ताकत न बचे। उन्हें रोज़मर्रा के कामों में ही नहीं डूब जाना था। यहोवा ने हफ्ते में एक दिन को अलग रखकर उसे पवित्र ठहराया और उन्हें बताया कि यह समय सिर्फ सच्ची उपासना से जुड़े कामों में लगाना चाहिए। (निर्गमन 35:1-3; गिनती 15:32-36) इसके अलावा, हर साल पवित्र सभाओं के लिए भी समय अलग रखा गया था। (लैव्यव्यवस्था 23:4-44) ऐसे वक्त पर उन्हें यहोवा के शक्तिशाली कामों के बारे में चर्चा करने, उसके मार्गों के बारे में चितौनियाँ पाने और उसके सभी भले कामों के लिए कदरदानी दिखाने के मौके मिलते थे। इस तरह जब लोग यहोवा के लिए अपनी भक्ति दिखाते तो उनके दिल में परमेश्वर के लिए भय और प्यार बढ़ता और उन्हें उसके मार्गों पर चलने में मदद मिलती। (व्यवस्थाविवरण 10:12, 13) आज भी जब यहोवा के सेवक इन नियमों में छिपे उसूलों को मानते हैं, तो उन्हें फायदा होता है।—इब्रानियों 10:24, 25.
यहोवा के गुणों को समझना और उनकी कदर करना
15. (क) यहोवा के गुणों की समझ और उनके लिए कदर होने से मूसा को क्या फायदा होता? (ख) यहोवा के हरेक गुण के बारे में गहराई से सोचने में कौन-से सवाल हमारी मदद कर सकते हैं?
15 यहोवा के गुणों की समझ और उनके लिए कदर होने पर मूसा को लोगों के साथ सही तरह से व्यवहार करने में भी मदद मिलती। निर्गमन 34:5-7 कहता है कि परमेश्वर ने मूसा के सामने से होते हुए ऐलान किया: “यहोवा, यहोवा, ईश्वर दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवन्त, और अति करुणामय और सत्य, हज़ारों पीढ़ियों तक निरन्तर करुणा करनेवाला, अधर्म और अपराध और पाप का क्षमा करनेवाला है, परन्तु दोषी को वह किसी प्रकार निर्दोष न ठहराएगा, वह पितरों के अधर्म का दण्ड उनके बेटों वरन पोतों और परपोतों को भी देनेवाला है।” इन शब्दों पर थोड़ी देर के लिए मनन कीजिए। खुद से पूछिए: ‘इनमें से हरेक गुण का मतलब क्या है? यहोवा ने यह गुण कैसे दिखाया? मसीही ओवरसियर यह गुण कैसे दिखा सकते हैं? हममें से हरेक पर इस गुण का कैसा असर होना चाहिए?’ आइए इनमें से चंद गुणों पर ध्यान दें।
16. परमेश्वर की दया के बारे में हम अपनी समझ कैसे बढ़ा सकते हैं, और ऐसा करना क्यों ज़रूरी है?
16 यहोवा ‘दयालु और अनुग्रहकारी ईश्वर’ है। अगर आपके पास खोजबीन की किताबें इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स् हैं, तो क्यों न उनमें पढ़कर देखें कि “दया” (Mercy) शीर्षक के तहत क्या लिखा है? या आप वॉच टावर पब्लिकेशन्स इंडैक्स या वॉचटावर लाइब्रेरी (सीडी-रॉम) का इस्तेमाल करके इस विषय पर खोजबीन कर सकते हैं। * किसी कॅनकॉर्डन्स की मदद से दया के बारे में बतानेवाली आयतें ढूँढ़िए। आप पाएँगे कि यहोवा ने दयालु होने की वजह से कभी-कभी गुनहगारों की सज़ा कम की। इतना ही नहीं, उसकी दया में कोमल करुणा भी शामिल है। यह गुण परमेश्वर को उकसाता है कि वह अपने लोगों को तकलीफ से राहत दिलाने के लिए कुछ कदम उठाए। इसका एक सबूत यह है कि जब इस्राएली वादा किए देश को जा रहे थे तो सफर के दौरान परमेश्वर ने उनकी आध्यात्मिक और शारीरिक ज़रूरतें पूरी कीं। (व्यवस्थाविवरण 1:30-33; 8:4) जब उन्होंने गलतियाँ कीं तो यहोवा ने दया दिखाकर उन्हें माफ किया। जी हाँ, पुराने ज़माने में यहोवा अपने लोगों के साथ दया से पेश आया था। तो आज उसके सेवकों को एक-दूसरे पर और भी कितनी करुणा दिखानी चाहिए!—मत्ती 9:13; 18:21-35.
17. यहोवा के अनुग्रह के बारे में समझ पाने से हम सच्ची उपासना को कैसे बढ़ावा दे सकते हैं?
17 यहोवा दयालु होने के साथ-साथ अनुग्रहकारी भी है। इस बारे में मनन करने के लिए सोचिए कि ‘अनुग्रह’ का मतलब क्या है। इसके बाद, उन आयतों को पढ़िए जिनमें यहोवा को अनुग्रहकारी बताया गया है। बाइबल दिखाती है कि यहोवा अनुग्रहकारी होने की वजह से अपनी प्रजा में से उन लोगों के लिए खास परवाह और प्यार दिखाता है जो तकलीफ में हैं। (निर्गमन 22:26, 27) लगभग हर मुल्क में परदेशियों और दूसरे लोगों को भी अकसर तंगहाली या दूसरी तकलीफें झेलनी पड़ती हैं। यहोवा ने अपने लोगों को सिखाया कि वे ऐसे ज़रूरतमंदों के साथ कोई पक्षपात न करें और उन पर दया करें और उसने उनसे कहा कि वे यह न भूलें कि एक वक्त में वे भी मिस्र में परदेशी हुआ करते थे। (व्यवस्थाविवरण 24:17-22) आज हम परमेश्वर के लोगों के बारे में क्या? एक-दूसरे पर अनुग्रह करने की वजह से हमारे बीच एकता है और इस वजह से दूसरे लोग यहोवा की उपासना की तरफ खिंचे चले आते हैं।—प्रेरितों 10:34, 35; प्रकाशितवाक्य 7:9, 10.
18. यहोवा ने इस्राएलियों को दूसरी जातियों के साथ व्यवहार करते वक्त जिन बातों से दूर रहने के लिए कहा, उससे हम क्या सीखते हैं?
18 लेकिन दूसरी जातियों के लोगों पर दया दिखाने का यह मतलब नहीं था कि इस्राएली यहोवा और उसके नैतिक स्तरों को दरकिनार कर दें। इसलिए, उन्हें सिखाया गया था कि वे आस-पास की जातियों के तौर-तरीके न अपनाएँ, उनके जैसे धार्मिक रस्मो-रिवाज़ न मनाएँ और बदचलन न बनें। (निर्गमन 34:11-16; व्यवस्थाविवरण 7:1-4) यह बात आज हम पर भी लागू होती है। हमें पवित्र लोग होना चाहिए, ठीक जैसे हमारा परमेश्वर यहोवा पवित्र है।—1 पतरस 1:15, 16.
19. पाप के बारे में यहोवा का नज़रिया समझने से उसके लोगों की कैसे हिफाज़त हो सकती है?
19 यहोवा चाहता था कि मूसा उसके मार्गों को ठीक-ठीक समझे। इसलिए उसने मूसा को साफ बताया कि हालाँकि वह पाप को कभी मंज़ूर नहीं करता मगर वह क्रोध करने में धीमा है। वह अपने लोगों को काफी समय देता है ताकि वे उसकी माँगों के बारे में सीखें और उनके मुताबिक चलें। जब एक इंसान अपने पाप पर पश्चाताप करता है, तो यहोवा उसे माफ करता है। मगर जो लोग गंभीर पाप करते हैं, उन्हें वह सज़ा से नहीं बचाता। यहोवा ने मूसा को आगाह किया था कि इस्राएली जिस तरह के काम करेंगे उससे आनेवाली पीढ़ियों पर या तो अच्छा या फिर बुरा असर पड़ सकता है। अगर यहोवा के लोगों को उसके मार्गों के बारे में समझ होगी और वे उनकी कदर करेंगे, तो वे ऐसी मुसीबतों के लिए उसे दोषी नहीं ठहराएँगे जो वे खुद अपने ऊपर लाते हैं, ना ही वे यह मान बैठेंगे कि परमेश्वर कार्यवाही करने में देर कर रहा है।
20. अपने मसीही भाई-बहनों के साथ और प्रचार में लोगों के साथ सही तरह से पेश आने में क्या बात हमारी मदद कर सकती है? (भजन 86:11)
20 अगर आप यहोवा और उसके मार्गों के बारे में अपना ज्ञान बढ़ाना चाहते हैं, तो आप बाइबल में जो पढ़ते हैं, उस पर खोजबीन और मनन करते रहिए। यहोवा की शख्सियत के अलग-अलग दिलचस्प पहलुओं की ध्यान से जाँच कीजिए। प्रार्थना करके सोचिए कि आप परमेश्वर के जैसे गुण कैसे दिखा सकते हैं और उसके मकसद के मुताबिक जीने के लिए अपने अंदर कैसे बदलाव कर सकते हैं। तब आपको खतरों से बचने, और मसीही भाई-बहनों के साथ सही तरह से पेश आने में मदद मिलेगी। साथ ही, आप दूसरों को भी हमारे महान परमेश्वर के बारे में जानने और उससे प्यार करने में मदद दे सकेंगे।
[फुटनोट]
^ ये सभी यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किए हैं।
आपने क्या सीखा?
• मूसा के लिए नम्र होना क्यों ज़रूरी था, और यह हमारे लिए क्यों ज़रूरी है?
• फिरौन को बार-बार यहोवा का पैगाम सुनाने का क्या अच्छा नतीजा निकला?
• मूसा को कौन-से बेहतरीन उसूल सिखाए गए जिन्हें आज हमें भी मानना चाहिए?
• हम यहोवा के गुणों के बारे में अपनी समझ कैसे बढ़ा सकते हैं?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 21 पर तसवीर]
मूसा ने यहोवा के सारे पैगाम फिरौन को सुनाए
[पेज 23 पर तसवीर]
यहोवा ने मूसा को अपनी माँगों के बारे में बताया
[पेज 24, 25 पर तसवीर]
यहोवा के गुणों पर मनन कीजिए