परमेश्वर का वचन आपकी राहों को रोशन करे
परमेश्वर का वचन आपकी राहों को रोशन करे
“तेरा वचन . . . मेरे मार्ग के लिये उजियाला है।”—भजन 119:105.
1, 2. किन हालात में यहोवा का वचन हमारी राहों को रोशन कर सकता है?
यहोवा का वचन हमारी राहों को रोशन कर सकता है, बशर्ते हम उसे ऐसा करने दें। ऐसी आध्यात्मिक रोशनी से फायदा पाने के लिए हमें परमेश्वर के लिखित वचन का गहराई से अध्ययन करना होगा और उसकी सलाह पर चलना होगा। तभी हम भजनहार की तरह महसूस कर सकेंगे: “तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है।”—भजन 119:105.
2 अब आइए हम भजन 119:89-176 पर चर्चा करें। इन आयतों को 11 छंदों में बाँटा गया है, और इनमें जानकारी का भंडार है। यह जानकारी अनंत जीवन के मार्ग पर बने रहने में हमारी मदद कर सकती है।—मत्ती 7:13, 14.
परमेश्वर के वचन से लगाव क्यों रखें?
3. भजन 119:89, 90 कैसे दिखाता है कि हम परमेश्वर के वचन पर भरोसा रख सकते हैं?
3 अगर हमें यहोवा के वचन से लगाव होगा तो हम आध्यात्मिक मायने में स्थिर रहेंगे। (भजन 119:89-96) भजनहार ने गीत में यूँ गाया: “हे यहोवा, तेरा वचन, आकाश में सदा तक स्थिर रहता है। . . . तू ने पृथ्वी को स्थिर किया, इसलिये वह बनी है।” (भजन 119:89, 90) परमेश्वर के वचन यानी ‘आकाशमण्डल की विधियों’ से सूरज, चाँद और तारे अपनी-अपनी कक्षा में बिना चूके घूमते रहते हैं और धरती सदा के लिए स्थिर की गयी है। (अय्यूब 38:31-33; भजन 104:5) हम यहोवा के मुँह से निकलनेवाले हर वचन पर भरोसा रख सकते हैं; परमेश्वर अपने मकसद के बारे में जो भी कहता है, वह ज़रूर “सुफल” होगा।—यशायाह 55:8-11.
4. दुःख झेलनेवाले परमेश्वर के सेवकों को अगर उसके वचन से लगाव है, तो उन्हें क्या फायदा होता है?
4 अगर भजनहार परमेश्वर की ‘व्यवस्था से सुखी न होता, तो वह दुःख के समय नाश हो जाता।’ (भजन 119:92) उसे सतानेवाले कोई पराए नहीं, बल्कि उसकी अपनी ही जाति के इस्राएली थे जो उससे बैर रखते थे और इस तरह व्यवस्था का कानून तोड़ रहे थे। (लैव्यव्यवस्था 19:17) मगर इन ज़ुल्मों के बावजूद भजनहार ने हार नहीं मानी, क्योंकि उसे परमेश्वर की व्यवस्था से प्यार था जो उसे सँभाले हुए थी। प्रेरित पौलुस भी जब कुरिन्थुस में था तो उसे “झूठे भाइयों के बीच जोखिमों” से गुज़रना पड़ा। इनमें शायद ऐसे ‘बड़े से बड़े प्रेरित’ भी थे जिन्होंने पौलुस पर इलज़ाम लगाने की कोशिश की। (2 कुरिन्थियों 11:5, 12-14, 26) फिर भी, पौलुस की आध्यात्मिक मायने में हिफाज़त हुई क्योंकि उसे परमेश्वर के वचन से गहरा लगाव था। परमेश्वर के लिखित वचन से गहरा लगाव होने और उसकी सलाह पर चलने की वजह से हम अपने भाइयों से प्यार करते हैं। (1 यूहन्ना 3:15) यहाँ तक कि सारे संसार की नफरत भी हमें परमेश्वर की किसी हिदायत के खिलाफ काम नहीं करवा सकती। हम अपने भाई-बहनों के साथ प्यार और एकता में रहकर उसकी मरज़ी पूरी करते हैं और सदा तक यहोवा की सेवा खुशी-खुशी करने की आस रखते हैं।—भजन 119:93.
5. राजा आसा ने यहोवा की खोज कैसे की?
5 यहोवा को अपनी भक्ति ज़ाहिर करते हुए, हम शायद यह प्रार्थना करें: “मैं तेरा हूं, मुझे बचा, क्योंकि मैं तेरे उपदेशों का खोजी हूं।” (भजन 119:94, NHT) राजा आसा ने परमेश्वर की खोज की थी और उसने यहूदा देश से धर्मत्याग को जड़ से मिटा दिया। आसा के शासन के 15वें साल (सा.यु.पू. 963) में एक बड़ा सम्मेलन हुआ जिसमें यहूदा के निवासियों ने यह ‘वाचा बान्धी कि वे यहोवा की खोज करेंगे।’ फिर परमेश्वर “उनको मिला” और उसने “चारों ओर से उन्हें विश्राम दिया।” (2 इतिहास 15:10-15) जो मसीही कलीसिया से भटक चुके हैं, उन्हें यहूदा के निवासियों की मिसाल से बढ़ावा मिलना चाहिए कि नए जोश के साथ दोबारा परमेश्वर की खोज करें। परमेश्वर ऐसे लोगों को आशीष देगा और उन्हें महफूज़ रखेगा जो उसके सेवकों के साथ दोबारा संगति करना शुरू करते हैं।
6. क्या करने पर हम आध्यात्मिक खतरों से बचे रहेंगे?
6 यहोवा का वचन हमें ऐसी बुद्धि देता है जो हमें आध्यात्मिक खतरों से बचा सकती है। (भजन 119:97-104) परमेश्वर की आज्ञाएँ हमें अपने दुश्मनों से ज़्यादा बुद्धिमान बनाती हैं। उसकी चितौनियों को मानने से हमें अंदरूनी समझ मिलती है और ‘उसके उपदेशों को पकड़े रहने से हम पुरनियों से भी ज़्यादा समझदार बन जाते हैं।’ (भजन 119:98-100) अगर यहोवा के वचन हमारे “मुंह में मधु से भी मीठे” लगते हैं, तो हम “सब मिथ्या मार्गों” से नफरत करेंगे और उनसे दूर रहेंगे। (भजन 119:103, 104) तब हम आध्यात्मिक खतरों से बचे रहेंगे, क्योंकि इन अंतिम दिनों में हमारा सामना अभिमानी, कठोर और भक्तिहीन लोगों से होता है।—2 तीमुथियुस 3:1-5.
हमारे पांव के लिए दीपक
7, 8. भजन 119:105 के मुताबिक हमें क्या करने की ज़रूरत है?
7 परमेश्वर का वचन आध्यात्मिक रोशनी का ऐसा दीपक है जो कभी नहीं बुझता। (भजन 119:105-112) हम चाहे अभिषिक्त मसीही हों या उनके साथी “अन्य भेड़ें,” हम सब यही कहते हैं: “तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है।” (यूहन्ना 10:16, NW; भजन 119:105) परमेश्वर का वचन एक दीपक की तरह हमारी राह को रोशन करता है, ताकि हम आध्यात्मिक मायने में ठोकर खाकर गिर न जाएँ। (नीतिवचन 6:23) मगर हममें से हरेक को खुद यह ध्यान रखना होगा कि यहोवा का वचन हमारे पाँव के लिए दीपक ठहरे।
8 भजन 119 के रचयिता की तरह हमारा इरादा भी अटल होना चाहिए। उसने ठान लिया था कि वह परमेश्वर की आज्ञाओं से कभी नहीं भटकेगा। उसने कहा: “मैं ने शपथ खाई, और ठाना भी है, कि मैं तेरे [यहोवा के] धर्ममय नियमों के अनुसार चलूंगा।” (भजन 119:106) हमें नियमित तौर पर बाइबल का अध्ययन करने और मसीही सभाओं में हिस्सा लेने की अहमियत को कभी-भी कम नहीं समझना चाहिए।
9, 10. हम कैसे जानते हैं कि यहोवा के समर्पित सेवक भी ‘उसके उपदेशों के मार्ग से भटक’ सकते हैं, मगर हम ऐसी गलती करने से कैसे बच सकते हैं?
9 हालाँकि भजनहार कभी “[परमेश्वर के] उपदेशों के मार्ग से नहीं भटका,” फिर भी यहोवा के एक समर्पित सेवक के लिए ऐसी गलती करना मुमकिन है। (भजन 119:110) राजा सुलैमान को ही लीजिए। वह यहोवा को समर्पित जाति से था, और उसने अपनी हुकूमत की शुरूआत में परमेश्वर से मिली बुद्धि के मुताबिक काम किया। मगर आगे चलकर “उसको भी अन्यजाति स्त्रियों ने पाप में फंसाया” यानी झूठे देवी-देवताओं की उपासना करने के लिए बहका दिया।—नहेमायाह 13:26; 1 राजा 11:1-6.
10 ‘बहेलिया’ शैतान हमारे सामने कई जाल बिछाता है। (भजन 91:3) मसलन, हो सकता है कि एक इंसान जो पहले यहोवा का उपासक रहा हो, हमें बहकाने की कोशिश करे ताकि हम आध्यात्मिक उजियाले के मार्ग से भटककर धर्मत्याग की अंधेरी खाई में जा गिरें। थुआतीरा की कलीसिया में “इजेबेल” नाम की एक “स्त्री” थी। यह शायद स्त्रियों के एक ऐसे समूह को दर्शाती थी जो दूसरों को मूर्तिपूजा और व्यभिचार करने के लिए फुसला रही थीं। यीशु ने ऐसी बुराइयों को कतई बर्दाश्त नहीं किया, और ना ही हमें करना चाहिए। (प्रकाशितवाक्य 2:18-22; यहूदा 3, 4) इसलिए आइए हम यहोवा से मदद के लिए प्रार्थना करें ताकि हम उसके उपदेशों से न भटकें बल्कि परमेश्वर के वचन की रोशनी में चलते रहें।—भजन 119:111, 112.
परमेश्वर के वचन के ज़रिए सँभाले गए
11. भजन 119:119 के मुताबिक परमेश्वर दुष्टों को किस नज़र से देखता है?
11 अगर हम परमेश्वर के नियमों से कभी न भटकें, तो वह हमें सँभाले रहेगा। (भजन 119:113-120) हमें “दुचित्ते” लोग नहीं भाते, ठीक वैसे ही जैसे आज यीशु की मंज़ूरी ऐसे लोगों पर नहीं है जो मसीही होने का दावा तो करते हैं मगर सच्चाई में गुनगुने हैं। (भजन 119:113; प्रकाशितवाक्य 3:16) हम पूरे दिल से यहोवा की सेवा करते हैं, इसलिए वह ‘हमारी आड़ है’ और हमें सँभाले रहेगा। जितने लोग चतुराई के और झूठे काम करके “[यहोवा की] विधियों के मार्ग से भटक जाते हैं,” उन सभी को वह “तुच्छ जानता है।” (भजन 119:114, 117, 118; नीतिवचन 3:32) उसकी नज़रों में ऐसे दुष्ट लोग “धातु के मैल” यानी चाँदी और सोने जैसी बहुमूल्य धातुओं से निकाली जानेवाली अशुद्ध चीज़ के मुआफिक हैं। (भजन 119:119; नीतिवचन 17:3) इसलिए आइए हम हमेशा परमेश्वर की चितौनियों के लिए प्यार दिखाएँ, क्योंकि हम हरगिज़ उन दुष्टों में नहीं होना चाहेंगे जो धातु के मैल की तरह नाश के लिए तैयार हैं!
12. यहोवा का भय मानना क्यों ज़रूरी है?
12 भजनहार ने कहा: “[यहोवा के] भय से मेरा शरीर कांप उठता है।” (भजन 119:120) अगर हम चाहते हैं कि यहोवा हमें सँभाले रहे, तो हमारे अंदर सही किस्म का भय होना बेहद ज़रूरी है। इस तरह का भय तब ज़ाहिर होता है जब हम उन चीज़ों से दूर रहते हैं जिनसे उसे नफरत है। अय्यूब के दिल में परमेश्वर के लिए श्रद्धा और भय होने की वजह से वह पूरी ज़िंदगी धार्मिकता की राह पर चलता रहा। (अय्यूब 1:1; 23:15) परमेश्वर का भय हमें उस राह पर बने रहने में मदद देगा जो उसे मंज़ूर है, फिर चाहे उसमें कितनी ही मुश्किलें क्यों न आएँ। मगर ऐसे हालात में धीरज धरने के लिए हमें पूरे विश्वास के साथ गिड़गिड़ाकर यहोवा से लगातार प्रार्थना करनी होगी।—याकूब 5:15.
विश्वास के साथ प्रार्थना कीजिए
13-15. (क) हम यह विश्वास क्यों रख सकते हैं कि हमें अपनी प्रार्थनाओं का जवाब मिलेगा? (ख) अगर हम समझ नहीं पाते कि प्रार्थना में क्या कहें, तो ऐसे में क्या हो सकता है? (ग) उदाहरण देकर समझाइए कि भजन 119:121-128 उन ‘आहों’ से कैसे मेल खाता है जो “बयान से बाहर हैं”।
13 हम इस विश्वास के साथ प्रार्थना कर सकते हैं कि परमेश्वर हमारी खातिर ज़रूर कोई कदम उठाएगा। (भजन 119:121-128) भजनहार की तरह, हमें पूरा यकीन है कि हमारी प्रार्थनाओं का जवाब दिया जाएगा। क्यों? क्योंकि हम परमेश्वर की आज्ञाओं को “सोने से वरन कुन्दन से भी अधिक” अनमोल समझकर उनसे प्यार करते हैं। इसके अलावा, हम ‘परमेश्वर के सब उपदेशों को सब विषयों में ठीक जानते हैं।’—भजन 119:127, 128.
14 क्योंकि हम विश्वास के साथ यहोवा से प्रार्थना करते हैं और उसके उपदेशों पर ध्यान से चलते हैं, इसलिए वह हमारी सुनता है। (भजन 65:2) लेकिन ऐसे वक्त में हम क्या कर सकते हैं जब हम पर बड़ी-बड़ी मुसीबतें टूट पड़ती हैं कि हम समझ नहीं पाते कि यहोवा को अपनी तकलीफ कैसे बताएँ? ऐसे में “आत्मा आप ही ऐसी आहें भर भरकर जो बयान से बाहर हैं, हमारे लिये बिनती करता है।” (रोमियों 8:26, 27) ऐसे वक्त पर बाइबल में दर्ज़ प्रार्थनाओं को यहोवा हमारी निजी प्रार्थनाएँ समझकर कबूल करता है।
15 मुसीबत के वक्त हम जो “आहें” भरते हैं, बाइबल में दर्ज़ ढेरों प्रार्थनाएँ और विचार हमारी इन दर्द-भरी भावनाओं से मेल खाती हैं। मसलन, भजन 119:121-128 पर ध्यान दीजिए। इन आयतों में जो कहा गया है, वह शायद हमारे हालात पर सही बैठे। मसलन, अगर हमें डर है कि कोई हमारे साथ अंधेर या धोखा करेगा, तो हम परमेश्वर से मदद के लिए ठीक वैसी ही बिनती कर सकते हैं जैसी भजनहार ने की थी। (आयत 121-123) मान लीजिए कि हमें एक बहुत ही मुश्किल फैसला करना है, तब हम यह प्रार्थना कर सकते हैं कि यहोवा की आत्मा हमें उसकी चितौनियों को याद करने और उन्हें लागू करने में मदद दे। (आयत 124, 125) हालाँकि हम ‘सब मिथ्या मार्गों से बैर रखते’ हैं, फिर भी हमें परमेश्वर से मदद माँगनी चाहिए ताकि हम उसका नियम तोड़ने की आज़माइश में हार न मानें। (आयत 126-128) अगर हम रोज़ाना बाइबल पढ़ें, तो यहोवा से बिनती करते वक्त हमें ऐसी आयतें याद आएँगी जिनसे हमें मदद मिल सकती है।
यहोवा की चितौनियों से मदद
16, 17. (क) हमें परमेश्वर की चितौनियों की ज़रूरत क्यों है, और हमें उनके बारे में क्या नज़रिया रखना चाहिए? (ख) दूसरे शायद हमें किस नज़र से देखें, मगर क्या बात असल मायने रखती है?
16 अगर हम चाहते हैं कि परमेश्वर हमारी प्रार्थनाएँ सुने और हम पर अनुग्रह करे, तो हमें उसकी चितौनियों को मानना चाहिए। (भजन 119:129-136) हमें भूलने की आदत होती है, इसीलिए हमें यहोवा की अद्भुत चितौनियों की सख्त ज़रूरत है जो हमें उसकी तालीम और आज्ञाएँ याद दिलाती हैं। बेशक, हम आध्यात्मिक रोशनी के लिए भी एहसानमंद हैं जो हमें परमेश्वर के वचन की समझ पाने से मिलती है। (भजन 119:129, 130) जब दूसरे लोग यहोवा के नियमों के खिलाफ जाते हैं तब हम इतने दुखी हो जाते हैं कि ‘हमारी आंखों से जल की धारा बहती है।’ मगर हम यहोवा के कितने एहसानमंद हैं कि वह ऐसे वक्त में भी ‘हम पर अपने मुख का प्रकाश चमकाता’ है यानी हम पर अनुग्रह करता है।—भजन 119:135, 136; गिनती 6:25.
17 अगर हम परमेश्वर की धर्मी चितौनियों को मानें, तो बेशक उसका अनुग्रह हमेशा हम पर बना रहेगा। (भजन 119:137-144) यहोवा के सेवकों के नाते हम मानते हैं कि यह उसका हक है कि वह अपनी धर्मी चितौनियाँ हमें याद दिलाए और हमसे उम्मीद करे कि हम इन्हें आज्ञाएँ समझकर इनका पालन करें। (भजन 119:138) भजनहार, परमेश्वर की आज्ञाओं को मानता था, फिर भी उसने ऐसा क्यों कहा: “मैं छोटा और तुच्छ हूं”? (भजन 119:141) शायद वह बता रहा था कि दुश्मन उसे किस नज़र से देखते हैं। अगर हम धार्मिकता की राह पर अटल बने रहें तो दूसरे शायद हमें तुच्छ समझें। मगर यह बात ज़्यादा मायने रखती है कि यहोवा हम पर अनुग्रह करता है क्योंकि हम उसकी धर्मी चितौनियों के मुताबिक जीते हैं।
सुरक्षित और शांति से
18, 19. परमेश्वर की चितौनियों को मानने से क्या नतीजा निकलता है?
18 परमेश्वर की चितौनियों पर चलने की वजह से हम उसके करीब बने रहते हैं। (भजन 119:145-152) यहोवा की चितौनियों पर चलने से हम बेझिझक, पूरे दिल से उसकी दुहाई देते हैं और हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि वह हमारी सुनेगा। हम शायद “पौ फटने से पहिले” उठ जाएँ और यहोवा को मदद के लिए पुकारें। सुबह का वक्त प्रार्थना करने का क्या ही बढ़िया वक्त होता है! (भजन 119:145-147) परमेश्वर इसलिए भी हमारे करीब रहता है क्योंकि हम दुष्टता या लुचपन से दूर रहते हैं और यीशु की तरह परमेश्वर के वचन को सत्य मानते हैं। (भजन 119:150, 151; यूहन्ना 17:17) मुसीबतों से भरी इस दुनिया में, यहोवा के साथ हमारा रिश्ता ही हमें सँभाले रहता है और हरमगिदोन के महान युद्ध से भी यही रिश्ता हमें ज़िंदा बचाए रखेगा।—प्रकाशितवाक्य 7:9, 14; 16:13-16.
19 परमेश्वर के वचन के लिए गहरा सम्मान होने की वजह से हम सही मायनों में सुरक्षित रहते हैं। (भजन 119:153-160) हम दुष्टों से अलग हैं, क्योंकि हम ‘यहोवा की चितौनियों से नहीं हटते।’ हम परमेश्वर के नियमों से प्यार करते हैं, और इसलिए उसकी करुणा पाकर महफूज़ रहते हैं। (भजन 119:157-159) यहोवा की चितौनियाँ हमारी याददाश्त को उभारती हैं, इसलिए हमें ध्यान रहता है कि किस हालात में वह हमसे क्या करने की उम्मीद करता है। दूसरी तरफ परमेश्वर की आज्ञाएँ हमारे लिए हिदायतें हैं, और हम बेझिझक यह कबूल करते हैं कि हमारे सिरजनहार के पास हमें हिदायत देने का हक है। हम जानते हैं कि ‘परमेश्वर का सारा वचन सत्य है’ और उसकी मदद के बगैर हम अपने कदमों को सही राह नहीं दिखा सकते। इसलिए हम खुशी-खुशी परमेश्वर की हिदायतों को कबूल करते हैं।—भजन 119:160; यिर्मयाह 10:23.
20. हमें “बड़ी शान्ति” क्यों मिली है?
20 यहोवा की व्यवस्था के लिए प्यार होने की वजह से हमें बहुत शांति मिलती है। (भजन 119:161-168) हम पर चाहे कितने ही ज़ुल्म ढाए जाएँ, मगर वे हमसे “परमेश्वर की शान्ति” नहीं छीन सकते, जो बेजोड़ है। (फिलिप्पियों 4:6, 7) हम यहोवा के धर्ममय नियमों की इतनी कदर करते हैं कि हम “प्रतिदिन सात बार” यानी अकसर उनकी बड़ाई करते हैं। (भजन 119:161-164) भजनहार ने अपने गीत में कहा: “तेरी व्यवस्था से प्रीति रखनेवालों को बड़ी शान्ति होती है; और उनको कुछ ठोकर नहीं लगती।” (भजन 119:165) अगर हममें से हरेक जन यहोवा की व्यवस्था से प्रीति रखे और उस पर चले, तो हम किसी दूसरे व्यक्ति के काम या किसी और बात से आध्यात्मिक तौर पर ठोकर नहीं खाएँगे।
21. बाइबल की कौन-सी मिसालें दिखाती हैं कि जब कलीसिया में समस्याएँ उठती हैं, तो हमें ठोकर नहीं खानी चाहिए?
21 बाइबल में बताए कई लोगों ने किसी भी बात को हमेशा के लिए ठोकर का कारण नहीं बनने दिया। मसलन, गयुस नाम के एक मसीही पुरुष ने दियुत्रिफेस के बुरे चालचलन की वजह से ठोकर नहीं खायी, बल्कि वह ‘सत्य पर चलता रहा।’ (3 यूहन्ना 1-3, 9, 10) पौलुस ने यूओदिया और सुन्तुखे नाम की मसीही स्त्रियों को उकसाया कि वे “प्रभु में एक मन रहें।” शायद उनके बीच कुछ मतभेद पैदा हुआ था। ज़ाहिर है कि उन्हें आपसी समस्या सुलझाने में मदद दी गयी और वे वफादारी से यहोवा की सेवा करती रहीं। (फिलिप्पियों 4:2, 3) इसलिए कलीसिया में चाहे जैसी भी समस्या उठे हम कभी ठोकर न खाएँ। इसके बजाय, आइए हम अपना ध्यान यहोवा के उपदेशों पर लगाए रहें और याद रखें कि ‘हमारा सारा चालचलन उसके सम्मुख प्रगट है।’ (भजन 119:168; नीतिवचन 15:3) ऐसा करने से कोई भी चीज़ उस “बड़ी शान्ति” को हमसे नहीं छीन सकेगी जो हमें मिली है।
22. (क) अगर हम परमेश्वर की आज्ञा मानें तो हम किस सुअवसर का आनंद उठा सकते हैं? (ख) मसीही कलीसिया से जो भटक चुके हैं, उन्हें हमें किस नज़र से देखना चाहिए?
22 अगर हम हमेशा यहोवा की आज्ञा मानें, तो हमें लगातार उसकी स्तुति करने का सुअवसर मिलेगा। (भजन 119:169-176) परमेश्वर के नियमों के मुताबिक जीने से हम न सिर्फ आध्यात्मिक सुरक्षा का आनंद ले पाएँगे बल्कि हमारे ‘मुंह से लगातार यहोवा की स्तुति निकलती रहेगी।’ (भजन 119:169-171, 174) इन अंतिम दिनों में यह हमारे लिए सबसे बड़े सम्मान की बात है। भजनहार की यह तमन्ना थी कि वह सदा तक ज़िंदा रहे और यहोवा की स्तुति करता रहे मगर किसी ऐसी वजह से, जिसका बाइबल में ज़िक्र नहीं है, वह ‘खोई हुई भेड़ की नाईं भटकता रहा।’ (भजन 119:175, 176) उसी तरह मसीही कलीसिया से भटके हुए कुछ लोग शायद अब भी परमेश्वर से प्यार करते हों और उसकी स्तुति करना चाहते हों। इसलिए आइए हम ऐसे लोगों की मदद करने के लिए अपना भरसक करते रहें ताकि वे दोबारा आध्यात्मिक सुरक्षा पाएँ और यहोवा के लोगों के साथ मिलकर उसकी स्तुति करते रहने की खुशी महसूस करें।—इब्रानियों 13:15; 1 पतरस 5:6, 7.
हमारी राहों को हमेशा रोशन करनेवाला प्रकाश
23, 24. भजन 119 से आपको क्या फायदा हुआ?
23 भजन 119 से हमें कई फायदे हो सकते हैं। मसलन, यह हमें परमेश्वर पर पहले से ज़्यादा निर्भर रहना सिखा सकता है, क्योंकि यह दिखाता है कि सच्ची खुशी “यहोवा की व्यवस्था पर चल[ने]” से मिलती है। (भजन 119:1) भजनहार हमें याद दिलाता है कि परमेश्वर का “सारा वचन सत्य ही है।” (भजन 119:160) इससे परमेश्वर के पूरे लिखित वचन के लिए हमारी कदरदानी और बढ़नी चाहिए। भजन 119 पर मनन करने से हमारे अंदर यह ज़बरदस्त इच्छा पैदा होनी चाहिए कि हम शास्त्र का अध्ययन करने में कड़ी मेहनत करें। भजनहार ने बार-बार परमेश्वर से यह मिन्नत की: “मुझे अपनी विधियां सिखा!” (भजन 119:12, 68, 135) उसने यह बिनती भी की: “मुझे भली विवेक-शक्ति और ज्ञान दे, क्योंकि मैं ने तेरी आज्ञाओं का विश्वास किया है।” (भजन 119:66) हमें भी परमेश्वर से उसी तरह प्रार्थना करनी चाहिए।
24 यहोवा की तालीम हमारे लिए उसके साथ नज़दीकी रिश्ता कायम करना मुमकिन बनाती है। भजनहार ने बार-बार खुद को परमेश्वर का सेवक कहा। दरअसल उसने यहोवा से ये दिल छू लेनेवाले शब्द कहे: “मैं तेरा ही हूं।” (भजन 119:17, 65, 94, 122, 125; रोमियों 14:8) यहोवा के एक साक्षी के नाते उसकी सेवा और स्तुति करना कितने बड़े सम्मान की बात है! (भजन 119:7) क्या आप राज्य का ऐलान करते हुए खुशी-खुशी परमेश्वर की सेवा कर रहे हैं? अगर हाँ, तो आप पक्का यकीन रख सकते हैं कि यहोवा आपको लगातार सँभाले रहेगा और इस सम्मान भरे काम में आपको आशीष भी देगा, बशर्ते आप हमेशा उसके वचन पर भरोसा रखें और उसे आपकी राहों को रोशन करने दें।
आप क्या जवाब देंगे?
• हमें परमेश्वर के वचन से क्यों लगाव होना चाहिए?
• हमें परमेश्वर का वचन कैसे सँभाले रहता है?
• किन तरीकों से हम यहोवा की चितौनियों से मदद पाते हैं?
• यहोवा के लोग क्यों सुरक्षित और शांति से हैं?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 16 पर तसवीर]
परमेश्वर का वचन आध्यात्मिक रोशनी देता है
[पेज 17 पर तसवीर]
अगर हम यहोवा की चितौनियों से प्यार करें, तो वह हमें कभी-भी ‘धातु का मैल’ नहीं समझेगा
[पेज 18 पर तसवीरें]
अगर हम रोज़ाना बाइबल पढ़ें तो प्रार्थना करते वक्त हमें ऐसी आयतें आसानी से याद आएँगी जिनसे हमें मदद मिल सकती है