निर्गमन किताब की झलकियाँ
यहोवा का वचन जीवित है
निर्गमन किताब की झलकियाँ
निर्गमन की किताब, ऐसे लोगों के छुटकारे की सच्ची कहानी बताती है जिनसे “कठोरता के साथ सेवकाई करवाई” गयी थी। (निर्गमन 1:13) इसमें एक नयी जाति के उभरने का रोमांचक ब्यौरा भी दिया गया है। हैरतअंगेज़ चमत्कार, बेहतरीन कायदे-कानून और तंबू के निर्माण काम जैसे दूसरे कई विषयों पर भी इसमें दिलचस्प जानकारी दी गयी है। यही इस किताब का सार है।
निर्गमन की किताब को इब्रानी भविष्यवक्ता, मूसा ने लिखा था। इसमें 145 से ज़्यादा सालों तक इस्राएलियों के साथ हुई घटनाएँ लिखी हैं, यानी सा.यु.पू. 1657 में यूसुफ की मौत से लेकर सा.यु.पू. 1512 तक, जब तंबू बनाने का काम पूरा हुआ। लेकिन यह ब्यौरा सिर्फ ऐतिहासिक रिकॉर्ड नहीं है, बल्कि परमेश्वर के वचन का हिस्सा है, जिसमें इंसानों के लिए उसका संदेश दिया गया है। इसलिए यह वृत्तांत ‘जीवित और प्रबल’ है। (इब्रानियों 4:12) इसे मद्देनज़र रखते हुए कहा जा सकता है कि निर्गमन की किताब हमारे लिए गहरा अर्थ रखती है।
‘परमेश्वर ने उनका कराहना सुना’
मिस्र में, याकूब के वंशजों की आबादी इतनी तेज़ी से बढ़ने लगी कि शाही हुक्म पर उन्हें दास बनाकर सताया जाने लगा। फिरौन ने तो यह भी हुक्म दिया कि पैदा होनेवाले सभी इस्राएली लड़कों को मार डाला जाए। मगर तीन महीने का एक शिशु, जिसका नाम मूसा था, इस वारदात से बचा लिया गया और बाद में फिरौन की बेटी ने उसे गोद ले लिया। हालाँकि मूसा की परवरिश शाही घराने में हुई थी, मगर जब वह 40 वर्ष का हुआ तो उसने अपनी जाति के लोगों का पक्ष लेकर एक मिस्री आदमी को जान से मार डाला। (प्रेरितों 7:23, 24) इस वजह से उसे मजबूरन, मिस्र छोड़कर मिद्यान भागना पड़ा। वहाँ उसने शादी की और वह चरवाही का काम करने लगा। एक बार जब चमत्कार से झाड़ियाँ आग से धधकने लगी तो वहाँ यहोवा ने मूसा को यह ज़िम्मेदारी दी कि वह मिस्र लौटकर इस्राएलियों को बँधुआई से छुड़ा लाए। उसके भाई हारून को उसकी तरफ से बात करने के लिए नियुक्त किया गया।
बाइबल सवालों के जवाब पाना:
3:1—यित्रो किस तरह का याजक था? कुलपिताओं के ज़माने में, परिवार का मुखिया अपने परिवार के लिए याजक का काम करता था। सबूतों से ज़ाहिर होता है कि यित्रो किसी मिद्यानी गोत्र का कुलपिता था। मिद्यानी, इब्राहीम की पत्नी कतूरा की संतान थे, इसलिए शायद वे भी यहोवा की उपासना के बारे में जानते थे।—उत्पत्ति 25:1, 2.
4:11—इसका मतलब क्या है कि यहोवा ‘गूंगे, बहिरे वा अन्धे को बनाता है’? हालाँकि यहोवा ने एकाध मौकों पर लोगों को अँधा या बहिरा बना दिया था, मगर वह हरेक की अपंगता के लिए ज़िम्मेदार नहीं है। (उत्पत्ति 19:11; लूका 1:20-22, 62-64) अपंगता, विरासत में मिले पाप का अंजाम है। (अय्यूब 14:4; रोमियों 5:12) लेकिन यहोवा ने अपंगता को रहने की इजाज़त दी है। इसी मायने में यहोवा ने कहा कि वह ‘गूंगे, बहिरे वा अन्धे को बनाता है।’
4:16—हारून के लिए मूसा कैसे ‘परमेश्वर ठहरने’ वाला था? मूसा, परमेश्वर का प्रतिनिधि था। इस अर्थ में वह हारून के लिए “परमेश्वर” ठहरा, जिसने मूसा की तरफ से बात की थी।
हमारे लिए सबक:
1:7, 14. जब मिस्र में यहोवा के लोगों को बुरी तरह सताया गया तो उसने उनकी मदद की। आज भी वह अपने साक्षियों की मदद करता है, ऐसे वक्त पर भी जब उन पर अत्याचार किए जाते हैं।
1:17-21. यहोवा हमारे “हित के लिये” हमें याद रखता है।—नहेमायाह 13:31.
3:7-10. जब लोग यहोवा से मदद के लिए पुकारते हैं तो वह उनकी सुनता है
3:14. यहोवा अपने उद्देश्यों को हर हाल में पूरा करता है। इसलिए हम पूरा यकीन रख सकते हैं कि बाइबल से हमने जो भी आशा पायी है, वह उसे ज़रूर पूरा करेगा।
4:10, 13. मूसा को अपनी बोलने की काबिलीयत पर बिलकुल भरोसा नहीं था, इसलिए जब परमेश्वर ने उसकी मदद करने का वादा किया, तब भी उसने गिड़गिड़ाकर बिनती की कि वह फिरौन से बात करने के लिए किसी और को भेजे। फिर भी, यहोवा ने मूसा का ही इस्तेमाल किया, और उसे अपनी ज़िम्मेदारी निभाने के लिए ज़रूरी बुद्धि और शक्ति दी। आइए हम अपनी खामियों के बारे में सोचकर परेशान होने के बजाय, यहोवा पर भरोसा रखें कि वह हमारी मदद करेगा और प्रचार करने और सिखाने की अपनी ज़िम्मेदारी को वफादारी से निभाएँ।—मत्ती 24:14; 28:19, 20.
हैरतअंगेज़ चमत्कारों के ज़रिए छुटकारा
मूसा और हारून, फिरौन के सामने हाज़िर हुए और उन्होंने उससे कहा कि वह इस्राएलियों को मिस्र से जाने की इजाज़त दे, ताकि वे वीराने में यहोवा के लिए पर्व मना सकें। मगर उस मिस्री शासक ने साफ इनकार कर दिया। तब यहोवा, मूसा के ज़रिए एक-के-बाद एक ज़बरदस्त विपत्तियाँ लाया। दसवीं विपत्ति के बाद ही, फिरौन ने इस्राएलियों को जाने दिया। लेकिन कुछ ही समय बाद, फिरौन अपनी फौज के साथ बेतहाशा इस्राएलियों का पीछा करने लगा। मगर यहोवा ने अपने लोगों के लिए लाल सागर से एक रास्ता बनाकर उन्हें छुटकारा दिलाया। और जब पीछा करनेवाले मिस्री उस रास्ते पर आए तो सागर फिर से एक हो गया और वे उसमें डूब मरे।
बाइबल सवालों के जवाब पाना:
6:3—किस अर्थ में परमेश्वर का नाम इब्राहीम, इसहाक और याकूब पर प्रकट नहीं किया गया था? इन कुलपिताओं ने परमेश्वर के नाम का इस्तेमाल किया था और यहोवा ने उनसे कुछ वादे भी किए थे। लेकिन उन्होंने यह नहीं जाना या अनुभव नहीं किया था कि यहोवा ने कैसे इन वादों को पूरा किया है।—उत्पत्ति 12:1, 2; 15:7, 13-16; 26:24; 28:10-15.
7:1—मूसा कैसे “फ़िरौन के लिये परमेश्वर” ठहराया गया? मूसा को परमेश्वर से शक्ति और फिरौन पर अधिकार मिला था। इसलिए उसे इस राजा से डरने की ज़रूरत नहीं थी।
7:22—मिस्र के जादूगरों को ऐसा पानी कहाँ से मिला जो खून में नहीं बदला गया था? उन्होंने उस पानी का इस्तेमाल किया होगा जो इस विपत्ति के आने से पहले नील नदी से निकाला गया था। या हो सकता है, उन्होंने नील नदी के पास नमीवाले इलाके में कुँआ खोदकर पानी निकाला होगा।—निर्गमन 7:24.
8:26, 27—मूसा ने क्यों कहा कि इस्राएलियों के बलिदान “मिस्रियों के लिए घृणित” (NHT) होंगे? मिस्र में कई जानवरों को पूजा जाता था, इसलिए उन्हें जानवरों की बलि से सख्त नफरत थी। जब मूसा ने यहोवा की उपासना करने के लिए इस्राएलियों को छोड़ने की इजाज़त माँगी, तो बलिदानों का ज़िक्र करने से उसे अपना निवेदन जायज़ ठहराने का ठोस कारण मिला।
12:29—किन लोगों को पहिलौठों में गिना गया? पहिलौठों में सिर्फ बेटों को गिना गया। (गिनती 3:40-51) फिरौन खुद पहिलौठा था, मगर वह घात नहीं किया गया क्योंकि उसका अपना एक घराना था। दसवीं विपत्ति में, परिवार का मुखिया नहीं बल्कि हर परिवार का पहिलौठा बेटा मार डाला गया।
12:40—इस्राएली, मिस्र में कितने समय तक रहे? इस आयत में बताए गए 430 साल में वह समय शामिल है जो इस्राएल की संतान ने “मिस्र और कनान” में बिताए थे। (ईज़ी-टू-रीड वर्शन, फुटनोट) पचहत्तर साल के इब्राहीम ने सा.यु.पू. 1943 में कनान जाते वक्त फरात नदी पार की थी। (उत्पत्ति 12:4) उस समय से लेकर 130 बरस के याकूब के मिस्र में कदम रखने तक 215 साल बीते। (उत्पत्ति 21:5; 25:26; 47:9) इस हिसाब से उसके बाद, इस्राएलियों ने उतने ही साल यानी 215 साल मिस्र में बिताए।
15:8—लाल सागर के पानी के “जम” जाने का जो ज़िक्र है, क्या इसका यह मतलब है कि वह पानी बर्फ बन गया था? जिस इब्रानी शब्द का अनुवाद “जम गया” किया गया है, उसका मतलब है सिकुड़ना या गाढ़ा होना। अय्यूब 10:10 में भी, दूध के दही में बदलने के बारे में इसी शब्द का इस्तेमाल किया गया है। लेकिन निर्गमन 15:8 में बताया गया पानी सचमुच में नहीं जम गया था या बर्फ नहीं बन गया था। इसके अलावा, निर्गमन 14:21 में जिस “प्रचण्ड पुरवाई” की बात की गयी है, अगर वह इतनी ठंडी होती कि पानी जमकर बर्फ बन जाता, तो उस आयत में ज़रूर यह लिखा होता कि वह हवाएँ बेहद ठंडी थीं। दरअसल लाल सागर का पानी बिना किसी सहारे के यूँ ही खड़ा रह गया था, इसलिए देखनेवालों को ऐसा लगा मानो पानी जम गया है या गाढ़ा हो गया है।
हमारे लिए सबक:
7:14–12:30. दस विपत्तियाँ, अचानक आयीं दुर्घटनाएँ नहीं थीं। उनके होने की भविष्यवाणी पहले से की गयी थी और ठीक जैसे बताया गया वैसा ही हुआ। दस विपत्तियों के ज़रिए इस बात का क्या ही ज़बरदस्त सबूत मिला कि सिरजनहार को पानी, सूरज की रोशनी, कीड़े-मकोड़ों, जानवरों और इंसानों, सब पर अधिकार है! उन विपत्तियों से यह भी ज़ाहिर हुआ कि परमेश्वर चुन-चुनकर अपने दुश्मनों का नाश कर सकता है, साथ ही अपने उपासकों की रक्षा कर सकता है।
11:2; 12:36. यहोवा अपने लोगों को आशीष देता है। इस मौके पर यहोवा शायद यह निश्चित कर रहा था कि अब इस्राएलियों को मिस्र में उनकी गुलामी की मज़दूरी दी जाए। जब उन्होंने मिस्र देश में कदम रखा तब वे आज़ाद थे, युद्ध में बनाए गए बंदी नहीं कि उन्हें गुलाम बनाकर रखा जाए।
14:30. हम यकीन रख सकते हैं कि आनेवाले “भारी क्लेश” में यहोवा अपने उपासकों को ज़रूर छुटकारा दिलाएगा।—मत्ती 24:20-22; प्रकाशितवाक्य 7:9, 14.
यहोवा ऐसी जाति को संगठित करता है जिसका राजा खुद वही है
मिस्र से छुटकारा पाने के तीसरे महीने में, इस्राएलियों ने सीनै पर्वत के नीचे डेरा डाला। वहाँ उन्हें दस आज्ञाएँ और दूसरे कायदे-कानून दिए गए, यहोवा ने उनके साथ एक वाचा बाँधी और वे परमेश्वर के निर्देशन पर चलनेवाली जाति बने। मूसा 40 दिन तक पहाड़ पर रहा और इस दौरान उसे सच्ची उपासना और यहोवा के तंबू के निर्माण के बारे में हिदायतें दी गयीं। तंबू ऐसा मंदिर था जिसे इस्राएली जहाँ चाहे वहाँ ले जा सकते थे। लेकिन मूसा के आने तक, इस्राएली सोने का एक बछड़ा बनाकर उसे पूजने लगे। पहाड़ से उतरते वक्त वह नज़ारा देखकर मूसा का खून खौल उठा और उसने परमेश्वर से मिली पत्थर की दोनों तख्तियाँ ज़मीन पर पटक दीं, जिससे वे चूर-चूर हो गयीं। गुनाहगारों को सज़ा मिलने के बाद, मूसा फिर से पहाड़ पर गया और उसे नयी तख्तियाँ दी गयीं। इस
बार मूसा के वापस लौटने के बाद, तंबू बनाने का काम शुरू हुआ। इस्राएल की आज़ादी के पहले साल के खत्म होते-होते, यह शानदार तंबू बनकर तैयार हो गया और उसकी सजावट पूरी हो गयी। तब यहोवा ने उसे अपनी महिमा से भर दिया।बाइबल सवालों के जवाब पाना:
20:5—इसका मतलब क्या है कि यहोवा “पितरों का दण्ड” बाद की पीढ़ियों को देता है? एक सयाने इंसान का न्याय खुद उसके चालचलन और रवैए के मुताबिक किया जाता है। लेकिन जब पूरी-की-पूरी इस्राएल जाति मूर्तिपूजा करने लगी, तो आनेवाली कई पीढ़ियों को इस पाप के बुरे अंजाम भुगतने पड़े। यहाँ तक कि इसका असर वफादार लोगों पर भी पड़ा, क्योंकि जब पूरी जाति झूठे धर्म में डूबी हुई थी तो ऐसे माहौल में उन्हें अपनी खराई बनाए रखने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा। इस मायने में इस्राएल जाति के पाप की वजह से उन्हें भी बुरे अंजाम सहने पड़े।
23:19; 34:16—यह नियम क्यों दिया गया था कि बकरी के बच्चे को उसकी माँ के दूध में नहीं पकाना चाहिए? कहा जाता है कि (बकरी या किसी और जानवर के) बच्चे को उसकी माँ के दूध में पकाना, अन्यजातियों में एक आम रिवाज़ था। वे मानते थे कि ऐसा करने से पानी बरसेगा। इतना ही नहीं, माँ का दूध बच्चे के पोषण के लिए है, इसलिए उसी दूध में बच्चे को पकाना बड़ी बेरहमी है। इस नियम ने परमेश्वर के लोगों के दिल में यह बात बिठायी कि उन्हें करुणा दिखानी चाहिए।
23:20-23—यहाँ बताया गया दूत कौन था, और किस मायने में यहोवा का नाम “उस में” रहता था? धरती पर आने से पहले शायद यीशु ने ही उस दूत के तौर पर काम किया था। इस्राएलियों को वादा किए गए देश तक पहुँचाने के लिए उसका इस्तेमाल किया गया। (1 कुरिन्थियों 10:1-4) अपने पिता के नाम की पैरवी करने और उसे पवित्र करने में यीशु सबसे ज़्यादा जोशीला था। इसी मायने में यहोवा का नाम “उस में” रहता था।
32:1-8, 25-35—सोने का बछड़ा बनाने के जुर्म में हारून को सज़ा क्यों नहीं दी गयी? हारून, मूर्तिपूजा से पूरे दिल से सहमत नहीं था। ज़ाहिर होता है कि बाद में उसने भी यहोवा के पक्ष में होने का फैसला किया, और मूसा के खिलाफ बगावत करनेवालों का नाश करने में लेवियों का साथ दिया। दोषी लोगों के घात किए जाने के बाद, मूसा ने इस्राएलियों को ध्यान दिलाया कि उन्होंने गंभीर पाप किया था। इससे पता चलता है कि परमेश्वर ने हारून के अलावा और भी कुछ लोगों पर दया की थी।
33:11, 20—परमेश्वर ने मूसा से “आम्हने-साम्हने” कैसे बात की? ये शब्द करीबी दोस्तों की आपसी बातचीत को दर्शाते हैं। मूसा ने परमेश्वर के एक प्रतिनिधि से बात की और उसकी ज़बान से यहोवा का उपदेश सुना था। मगर उसने सचमुच यहोवा को नहीं देखा था, क्योंकि ‘मनुष्य परमेश्वर का दर्शन करके जीवित नहीं रह सकता।’ दरअसल, यहोवा ने कभी-भी सीधे-सीधे मूसा से बात नहीं की थी। गलतियों 3:19 कहता है कि व्यवस्था “स्वर्गदूतों के द्वारा एक मध्यस्थ के हाथ ठहराई गई।”
हमारे लिए सबक:
15:25; 16:12. यहोवा अपने लोगों की अच्छी देखभाल करता है।
18:21. मसीही कलीसिया में ज़िम्मेदारी का पद सँभालने के लिए ऐसे पुरुषों को चुनना चाहिए जो गुणी या काबिल हों, परमेश्वर का भय मानते हों, भरोसेमंद और निस्वार्थ हों।
20:1–23:33. यहोवा के कानून सबसे उम्दा हैं। जब इस्राएलियों ने उसके नियमों को माना, तो वे उसकी उपासना तरतीब से कर पाए और उन्हें खुशी मिली। आज भी यहोवा ने एक संगठन ठहराया है जिसे वह अपने निर्देशन पर चलाता है। इस संगठन के कहे मुताबिक काम करने से हम खुश और महफूज़ रहते हैं।
यह किताब हमारे लिए सचमुच फायदेमंद है
निर्गमन की किताब यहोवा के बारे में क्या ज़ाहिर करती है? यह दिखाती है कि यहोवा हमारी अच्छी देखभाल करता और हर हाल में अपने उद्देश्यों को पूरा करता है, साथ ही उसके जैसा छुटकारा दिलानेवाला और कोई नहीं है। वह अपने लोगों को संगठित करके उन्हें अपने निर्देशन पर चलानेवाला परमेश्वर है।
परमेश्वर की सेवा स्कूल की तैयारी करते वक्त जब आप हफ्ते की बाइबल पढ़ाई करेंगे, तो निर्गमन की किताब से सीखनेवाले मुद्दे ज़रूर आपके दिल को छू जाएँगे। “बाइबल सवालों के जवाब पाना” इस भाग में दी गयी जानकारी पर विचार करने से आप बाइबल की कुछेक आयतों की गहरी समझ हासिल कर सकेंगे। “हमारे लिए सबक,” इसके तहत बताए गए मुद्दों से आप जान सकेंगे कि हफ्ते की बाइबल पढ़ाई से आप किस तरह फायदा उठा सकते हैं।
[पेज 24 पर तसवीर]
यहोवा ने मूसा नाम के नम्र पुरुष को यह ज़िम्मेदारी सौंपी कि वह इस्राएलियों को गुलामी से छुड़ाए
[पेज 25 पर तसवीर]
दस विपत्तियों से साबित हुआ कि सिरजनहार को पानी, सूरज की रोशनी, कीड़े-मकोड़ों, जानवरों और इंसानों पर अधिकार है
[पेज 26, 27 पर तसवीर]
मूसा के ज़रिए, यहोवा ने इस्राएलियों को ऐसी जाति के तौर पर संगठित किया जो उसके निर्देशन पर चलती