क्या आप पूछते हैं, “यहोवा कहां है?”
क्या आप पूछते हैं, “यहोवा कहां है?”
“[वे] मुझ से दूर हट गए और . . . उन्हों ने इतना भी न कहा कि . . . यहोवा कहां है?”—यिर्मयाह 2:5, 6.
1. जब लोग पूछते हैं कि “परमेश्वर कहाँ है?” तब उनके मन में दरअसल कौन-सी कुछ बातें होती हैं?
“परमेश्वर कहाँ है?” यह सवाल बहुत-से लोगों ने पूछा है। कुछ लोगों ने यह सवाल इसलिए किया है क्योंकि वे सिर्फ यह बुनियादी सच्चाई जानना चाहते हैं कि परमेश्वर कहाँ रहता है? दूसरे लोगों ने यह सवाल तब पूछा जब उन्होंने कोई भारी तबाही होते देखी या फिर जब खुद उन पर कोई बड़ी आफत आयी और उन्हें यह समझ नहीं आ रहा था कि आखिर परमेश्वर ने उन पर यह मुसीबत क्यों आने दी? इसके अलावा, कई ऐसे भी हैं जो कुछ पूछने की ज़रूरत ही नहीं समझते क्योंकि वे परमेश्वर के अस्तित्त्व को नहीं मानते।—भजन 10:4.
2. परमेश्वर की खोज करने में कौन लोग कामयाब होते हैं?
2 बेशक ऐसे बहुत-से लोग हैं जो ढेरों सबूतों को मद्देनज़र रखते हुए यह मानते हैं कि एक परमेश्वर है। (भजन 19:1; 104:24) इनमें से कुछ बस इस बात से खुश होते हैं कि उनके पास कोई-न-कोई धर्म है। दूसरी तरफ, दुनिया में ऐसे लाखों लोग हैं जिन्हें सच्चाई से गहरा प्यार है, और इसी प्यार से प्रेरित होकर वे सच्चे परमेश्वर की खोज करते हैं। उनकी यह मेहनत बेकार नहीं जाती बल्कि वे कामयाब होते हैं, क्योंकि परमेश्वर “हम में से किसी से दूर नहीं” है।—प्रेरितों 17:26-28.
3. (क) परमेश्वर कहाँ वास करता है? (ख) “यहोवा कहां है?” बाइबल में पूछे गए इस सवाल के क्या मायने हैं?
3 जब एक व्यक्ति सचमुच यहोवा को ढूँढ़ लेता है, तब उसे एहसास होता है कि “परमेश्वर आत्मा है,” इसलिए इंसान उसे नहीं देख सकता। (यूहन्ना 4:24) यीशु ने सच्चे परमेश्वर का ज़िक्र करते हुए कहा, ‘मेरा पिता जो स्वर्ग में है।’ (तिरछे टाइप हमारे।) इसका मतलब क्या है? इसका मतलब यह है कि हमारा स्वर्गीय पिता जहाँ वास करता है, वह स्थान आध्यात्मिक मायने में बहुत श्रेष्ठ और ऊँचा है, उतना ही ऊँचा जितना धरती से आसमान। (मत्ती 12:50, NHT; यशायाह 63:15) हालाँकि हम अपनी आँखों से तो परमेश्वर को देख नहीं सकते, मगर उसने हमारे लिए यह संभव किया है कि हम उसे जान सकें और उसके उद्देश्यों के बारे में बहुत-कुछ सीख सकें। (निर्गमन 33:20; 34:6, 7) जो नेकदिल इंसान जीवन का उद्देश्य खोजते हैं, वह उनके सवालों के जवाब देता है। उसने हमें ऐसा ठोस आधार दिया है जिसकी मदद से हम ज़िंदगी के हर मामले में उसका नज़रिया जान सकते हैं और यह भी जान सकते हैं कि हमारी इच्छाएँ उसके उद्देश्य के मुताबिक है या नहीं। वह चाहता है कि हम ज़िंदगी से जुड़े मामलों में उसकी राय के बारे में छानबीन करें और उनके जवाब पाने के लिए कड़ी मेहनत करें। यहोवा ने अपने भविष्यवक्ता यिर्मयाह के ज़रिए प्राचीन इस्राएल के लोगों को ताड़ना दी थी, क्योंकि उन्होंने ऐसा नहीं किया था। वे परमेश्वर के नाम से तो वाकिफ थे, मगर उन्होंने यह नहीं पूछा कि “यहोवा कहां है?” (यिर्मयाह 2:6) उन्हें अपनी पड़ी थी, यहोवा के उद्देश्यों की नहीं। वे उससे मार्गदर्शन पाने की कोशिश नहीं कर रहे थे। आपके बारे में क्या, क्या आप हर छोटा-बड़ा फैसला करते वक्त पूछते हैं कि “यहोवा कहां है?”
वे लोग जिन्होंने परमेश्वर से पूछा
4. यहोवा की खोज करने के मामले में, हम दाऊद की मिसाल से क्या सीख सकते हैं?
4 यिशै के बेटे दाऊद ने लड़कपन से ही यहोवा पर मज़बूत विश्वास पैदा किया था। वह जानता था कि यहोवा एक “जीवित परमेश्वर” है। अपनी ज़िंदगी में उसने यहोवा की हिफाज़त को महसूस किया था। उसमें इतना विश्वास और “यहोवा के नाम” के लिए इतना प्यार था कि उसने पलिश्ती दानव समान गोलियत को मार गिराया जो हथियारों से पूरी तरह लैस था। (1 शमूएल 17:26, 34-51) लेकिन इस कामयाबी के बाद दाऊद खुद पर हद-से-ज़्यादा भरोसा नहीं करने लगा। वह यह नहीं सोचने लगा कि अब वह चाहे जो करे, यहोवा उसे ज़रूर कामयाबी देगा। इसके बजाय, सालों तक हर बार जब भी दाऊद ने कोई फैसला किया, उसने यहोवा से पूछा। (1 शमूएल 23:2; 30:8; 2 शमूएल 2:1; 5:19) उसने लगातार बिनती की: “हे यहोवा अपने मार्ग मुझ को दिखला; अपना पथ मुझे बता दे। मुझे अपने सत्य पर चला और शिक्षा दे, क्योंकि तू मेरा उद्धार करनेवाला परमेश्वर है; मैं दिन भर तेरी ही बाट जोहता रहता हूं।” (भजन 25:4, 5) दाऊद हमारे लिए क्या ही बढ़िया मिसाल है!
5, 6. यहोशापात ने अपने जीवन में अलग-अलग समय पर यहोवा की खोज कैसे की?
5 राजा यहोशापात, दाऊद के शाही वंश का पाँचवाँ राजा था। उसके दिनों में, तीन जातियों की सेनाओं ने मिलकर यहूदा देश पर चढ़ाई की। देश पर इतने बड़े संकट की घड़ी में, यहोशापात “यहोवा की खोज में लग गया।” (2 इतिहास 20:1-3) लेकिन यहोशापात पहली बार यहोवा की खोज नहीं कर रहा था। वह पहले ही बाल देवता की पूजा बंद करवा चुका था जिसमें उत्तर का धर्मत्यागी इस्राएल राज्य पूरी तरह डूबा हुआ था। इसके अलावा, यहोशापात ने यहोवा के मार्गों पर चलने का चुनाव किया था। (2 इतिहास 17:3, 4) तो अब इस खतरे की घड़ी में यहोशापात ने कैसे “यहोवा की खोज” की?
6 इस बुरे समय में यहोशापात ने, यरूशलेम में सब लोगों के सामने एक प्रार्थना की। प्रार्थना में उसने यहोवा की अपार शक्ति को याद किया। उसने यहोवा के इस उद्देश्य पर गहरायी से मनन भी किया कि उसने किस तरह दूसरी जातियों को निकालकर, इस्राएलियों को विरासत में एक देश दिया था। राजा ने कबूल किया कि उसे यहोवा की सहायता की ज़रूरत है। (2 इतिहास 20:6-12) क्या इस मौके पर यहोवा ने अपने आपको पाने दिया? बेशक। यहजीएल नाम के एक लेवी के ज़रिए यहोवा ने स्पष्ट निर्देश दिया और उसके अगले दिन उसने अपने लोगों को विजय दिलायी। (2 इतिहास 20:14-28) आप इस बात का पक्का यकीन कैसे कर सकते हैं कि जब आप निर्देशन के लिए यहोवा की खोज करेंगे, तब आप उसे पा लेंगे?
7. परमेश्वर किन लोगों की प्रार्थनाएँ सुनता है?
7 यहोवा किसी का पक्ष नहीं करता, बल्कि वह सभी देश के लोगों को यह न्यौता देता है कि वे प्रार्थना के ज़रिए उसे ढूँढ़ें। (भजन 65:2; प्रेरितों 10:34, 35) वह अच्छी तरह जानता है कि बिनती करनेवालों के दिल में क्या है। वह हमें यकीन दिलाता है कि वह धर्मियों की प्रार्थनाएँ ज़रूर सुनेगा। (नीतिवचन 15:29) वह ऐसे लोगों को मिल सका है जिन्होंने पहले उसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी थी, मगर अब वे नम्रता से उससे मार्गदर्शन माँगते हैं। (यशायाह 65:1) यहाँ तक कि वह ऐसे लोगों की प्रार्थना भी सुनता है जिन्होंने पहले उसके नियम तोड़ दिए थे, मगर अब दीन होकर उन्होंने पश्चाताप किया है। (भजन 32:5, 6; प्रेरितों 3:19) लेकिन जब एक इंसान दिल से परमेश्वर के अधीन नहीं रहता, तब उसका प्रार्थना करना बेकार होता है। (मरकुस 7:6, 7) आइए कुछ मिसालों पर गौर करें।
उन्होंने माँगा, मगर कुछ नहीं पाया
8. यहोवा ने राजा शाऊल की प्रार्थना सुनने से क्यों इनकार कर दिया?
8 जब भविष्यवक्ता शमूएल ने राजा शाऊल को बताया कि यहोवा ने उसे छोड़ दिया है, क्योंकि उसने यहोवा की आज्ञा नहीं मानी तो यह सुनकर शाऊल ने यहोवा को दंडवत् किया। (1 शमूएल 15:30, 31) मगर यह महज़ एक दिखावा था। असल में, वह यहोवा की आज्ञा मानने से ज़्यादा लोगों की नज़रों में इज़्ज़त पाना चाहता था। बाद में, जब पलिश्ती इस्राएल के साथ जंग कर रहे थे, तब शाऊल ने बस एक रस्म के तौर पर यहोवा से पूछताछ की। और जवाब ना मिलने पर वह सलाह के लिए एक भूतसिद्धि करनेवाली के पास चला गया, यह जानते हुए भी कि यहोवा ने ऐसे कामों को घृणित बताया है और उन्हें करने की सख्त मनाही की है। (व्यवस्थाविवरण 18:10-12; 1 शमूएल 28:6, 7) इन सारी बातों का निचोड़, 1 इतिहास 10:14 यूँ देता है कि शाऊल ने “यहोवा से न पूछा” था। लेकिन यह आयत ऐसा क्यों कहती है? क्योंकि शाऊल ने विश्वास के साथ प्रार्थना नहीं की थी। इसलिए उसका प्रार्थना करना, न करने के बराबर था।
9. जब सिदकिय्याह ने यहोवा से मार्गदर्शन माँगा, तो उसमें क्या खराबी थी?
9 इसी तरह, जब यहूदा राज्य के अंत का समय नज़दीक आ रहा था, तब शाऊल की तरह वहाँ के निवासियों ने बहुत-सी प्रार्थनाएँ कीं और यहोवा के भविष्यवक्ताओं से भी पूछा। लेकिन जहाँ वे यहोवा के भक्त होने का दावा कर रहे थे, वहीं दूसरी तरफ वे मूर्तिपूजा में भी उलझे हुए थे। (सपन्याह 1:4-6) कहने के लिए तो वे परमेश्वर की खोज कर रहे थे, मगर उनका दिल यहोवा की मरज़ी के मुताबिक काम करने के लिए तैयार नहीं था। राजा सिदकिय्याह ने यिर्मयाह से गुज़ारिश की कि वह उसकी तरफ से यहोवा से पूछे। लेकिन यहोवा ने तो पहले ही राजा को बता दिया था कि उसे क्या करने की ज़रूरत है। मगर विश्वास की कमी और लोगों के डर की वजह से राजा ने यहोवा का कहा नहीं माना था। इसलिए यहोवा ने भी इसके अलावा कोई और जवाब देने से इनकार कर दिया जो शायद राजा सुनना चाहता था।—यिर्मयाह 21:1-12; 38:14-19.
10. यहोवा से मार्गदर्शन माँगने का योहानान का तरीका क्यों गलत था, और उसकी गलती से हम क्या सीखते हैं?
10 यरूशलेम के नाश के बाद, बाबुल की सेना यहूदियों को बंधुआई में ले जा चुकी थी। योहानान, बचे हुए यहूदियों के एक छोटे-से समूह को मिस्र ले जाने की तैयारी कर रहा था। हालाँकि इन लोगों ने पहले से ही ये सारी योजनाएँ बना ली थीं, फिर भी जाने से पहले उन्होंने यिर्मयाह से कहा कि वह उनकी तरफ से प्रार्थना करे और यहोवा से मार्गदर्शन माँगे। लेकिन जब उन्हें वैसा जवाब नहीं मिला जैसा वे सुनना चाहते थे, तब उन्होंने बिलकुल वही किया जिसकी योजना उन्होंने बना रखी थी। (यिर्मयाह 41:16–43:7) क्या आप इन सभी घटनाओं से कुछ सबक सीख सकते हैं कि मार्गदर्शन पाने के लिए आपको किस तरह यहोवा की खोज करनी चाहिए ताकि वह आपको मिल सके?
‘हर समय जानने का जतन करते रहो’
11. हमें इफिसियों 5:10 पर अमल करने की क्यों ज़रूरत है?
11 सच्ची उपासना का मतलब सिर्फ समर्पण करके बपतिस्मा लेना नहीं है, ना ही इसका मतलब केवल कलीसिया की सभाओं में आना और प्रचार करना है। सच्ची उपासना में हमारी पूरी ज़िंदगी शामिल है। आए दिन हमारी ज़िंदगी में कई दबाव आते हैं जो हमें ईश्वरीय भक्ति की राह से भटका सकते हैं। इनमें से कुछ दबाव साफ पहचाने जा सकते हैं, लेकिन कुछ धूर्त्त किस्म के होते हैं। ऐसे दबाव आने पर हम क्या करेंगे? प्रेरित पौलुस ने इफिसियों के वफादार मसीहियों को लिखते वक्त, उन्हें यह सलाह दी: “हर समय यह जानने का जतन करते रहो कि परमेश्वर को क्या भाता है।” (इफिसियों 5:10, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) इस सलाह को मानने में क्यों अक्लमंदी है, यह हम बाइबल में दर्ज़ कई घटनाओं से देख सकते हैं।
12. यहोवा, दाऊद पर नाराज़ क्यों हुआ जब उसने वाचा के संदूक को यरूशलेम ले जाना चाहा?
12 जब वाचा का संदूक इस्राएल में वापस लाया गया, उसके बाद कई साल तक वह किर्यत्यारीम में रहा। तब राजा दाऊद ने संदूक को वहाँ से यरूशलेम ले जाना चाहा। उसने इस बारे में इस्राएलियों के प्रधानों से सलाह-मशविरा किया और कहा कि ‘यदि यह उन्हें अच्छा लगे और यहोवा की इच्छा हो,’ तो वह वाचा के संदूक को यरूशलेम ले जाएगा। मगर इस मामले में यहोवा की मरज़ी क्या है, यह जानने के लिए दाऊद ने सही तरह खोज नहीं की। अगर उसने ऐसा किया होता, तो वाचा के संदूक को कभी गाड़ी पर नहीं चढ़ाया जाता। इसके बजाय, लेवी वंश के कहाती उसे अपने कंधों पर उठाकर ले जाते, ठीक जिसकी परमेश्वर ने साफ-साफ हिदायत दी थी। यह सच 1 इतिहास 13:1-3; 15:11-13; गिनती 4:4-6, 15; 7:1-9.
है कि दाऊद हमेशा यहोवा की खोज करता था, मगर इस बार वह ठीक तरीके से यहोवा की खोज करने से चूक गया। इसका नतीजा भयंकर निकला। दाऊद ने बाद में अपनी भूल कबूल करते हुए कहा: “हमारा परमेश्वर यहोवा हम पर टूट पड़ा, क्योंकि हम उसकी खोज में नियम के अनुसार न लगे थे।”—13. वाचा के संदूक को ले जाने की कामयाबी में जो गीत गाया गया, उसके बोल में कौन-सी चितौनी शामिल थी?
13 आखिर में, जब ओबेदेदोम के घराने के लेवी संदूक को यरूशलेम ले गए, तब दाऊद का लिखा एक गीत गाया गया। उस गीत के बोल में यह गंभीर चितौनी भी शामिल थी: “यहोवा और उसकी सामर्थ की खोज करो; उसके दर्शन के लिए लगातार खोज करो। उसके किए हुए आश्चर्यकर्म, उसके चमत्कार और न्यायवचन स्मरण करो।”—1 इतिहास 16:11, 12.
14. सुलैमान की अच्छी मिसाल से और ज़िंदगी के बाद के सालों में उसने जो गलती की, उनसे हम क्या सीख सकते हैं?
14 अपनी मौत से पहले दाऊद ने अपने बेटे, सुलैमान को यह नसीहत दी: “यदि तू [यहोवा की] खोज में रहे, तो वह तुझ को मिलेगा।” (1 इतिहास 28:9) राजगद्दी पर बैठने के बाद, सुलैमान गिबोन गया जहाँ मिलापवाला तंबू था और वहाँ उसने यहोवा को बलिदान चढ़ाए। गिबोन में, यहोवा ने सुलैमान से कहा: “जो कुछ तू चाहे कि मैं तुझे दूं, वह मांग।” फिर सुलैमान की गुज़ारिश के मुताबिक, यहोवा ने उसे उदारता से इस्राएलियों का न्याय करने की बुद्धि और ज्ञान दिया। इसके अलावा, उसने सुलैमान को धन-संपत्ति और ऐश्वर्य भी दिया। (2 इतिहास 1:3-12) यहोवा ने दाऊद को मंदिर बनाने का जो नक्शा दिया था, उसी के हिसाब से सुलैमान ने एक आलीशान मंदिर बनाया। मगर जब खुद की शादी-शुदा ज़िंदगी की बात आयी, तो इसमें उसने यहोवा की खोज नहीं की। उसने ऐसी स्त्रियों से शादी की जो यहोवा की उपासक नहीं थीं। बुढ़ापे में, इन स्त्रियों ने उसका दिल यहोवा से दूर कर दिया। (1 राजा 11:1-10) इसलिए हम चाहे कितने ही मशहूर, बुद्धिमान या ज्ञानी क्यों न जान पड़ते हों, यह बेहद ज़रूरी है कि हम ‘हर समय यह जानने का जतन करते रहें कि परमेश्वर को क्या भाता है!’
15. जब जेरह नाम का कूशी यहूदा के खिलाफ लड़ने आया, तब आसा पूरे विश्वास के साथ यह प्रार्थना क्यों कर सका कि यहोवा, यहूदा को बचा ले?
15 परमेश्वर को क्या भाता है, यह जानने का जतन करते रहने की बात एक और वृत्तांत से पुख्ता होती है और वह है राजा सुलैमान के परपोते, आसा का वृत्तांत। आसा को राजा बने 11 साल हो चुके थे, तब जेरह नाम के एक कूशी ने दस लाख सैनिकों के साथ यहूदा पर हमला कर दिया। क्या यहोवा यहूदा को बचाता? पाँच सौ से भी ज़्यादा साल पहले यहोवा ने अपने लोगों को साफ बता दिया था कि अगर वे उसका कहना मानेंगे, तो इसका नतीजा क्या होगा और अगर नहीं, तो उन्हें क्या अंजाम भुगतने पड़ेंगे। (व्यवस्थाविवरण 28:1, 7, 15, 25) राजा आसा ने अपने शासन के शुरूआती सालों में पूरे यहूदा से उन वेदियों और लाठों को निकाल दिया था जो झूठी उपासना में इस्तेमाल की जाती थीं। उसने लोगों को “यहोवा की खोज” करने के लिए उकसाया था। उसने यह कदम तब नहीं उठाया जब उस पर मुसीबत आयी, बल्कि पहले ही उसने ऐसा किया था। इसलिए आसा, पूरे विश्वास के साथ यहोवा से प्रार्थना कर सका कि वह लोगों की तरफ से कार्यवाही करे। नतीजा? यहूदा के लोगों को एक बेजोड़ जीत हासिल हुई।—2 इतिहास 14:2-12.
16, 17. (क) हालाँकि आसा को जीत हासिल हुई, फिर भी यहोवा ने उसे क्या याद दिलाया? (ख) जब आसा ने मूर्खता का काम किया, तब उसे क्या मदद दी गयी, मगर उसने कैसा रवैया दिखाया? (ग) आसा के बर्ताव पर गौर करने से हम क्या सीख सकते हैं?
16 फिर भी, जीत हासिल करने के बाद जब आसा वापस लौटा, तो यहोवा ने अजर्याह को इस संदेश के साथ राजा के पास भेजा: “हे आसा, और हे सारे यहूदा और बिन्यामीन मेरी सुनो, जब तक तुम यहोवा के संग रहोगे तब तक वह तुम्हारे संग रहेगा; और यदि तुम उसकी खोज में लगे रहो, तब तो वह तुम से मिला करेगा, परन्तु यदि तुम उसको त्याग दोगे तो वह भी तुम को त्याग देगा।” (2 इतिहास 15:2) आसा ने नए जोश के साथ सच्ची उपासना को बढ़ावा देना शुरू किया। लेकिन 24 साल बाद, जब एक बार फिर युद्ध का खतरा मँडराने लगा, तब आसा ने यहोवा की खोज नहीं की। ना तो उसने परमेश्वर के वचन पर विचार किया, ना ही यह याद किया कि यहूदा पर कूशी सेना के हमले के जवाब में यहोवा ने उनकी खातिर क्या किया था। बड़ी मूर्खता का काम करते हुए, उसने अरामियों के साथ संधि कर ली।—2 इतिहास 16:1-6.
17 इस कारण यहोवा ने आसा को ताड़ना देने के लिए हनानी दर्शी को भेजा। यहोवा के नज़रिए के बारे में साफ-साफ समझने के बाद उसके पास अब भी सुधार करने का मौका था। मगर ऐसा करने के बजाय, वह आग-बबूला हो उठा और 2 इतिहास 16:7-10) कितने दुःख की बात है! हमारे बारे में क्या? क्या हम भी पहले तो परमेश्वर की खोज करते हैं, मगर जब हमें सलाह दी जाती है, तब मुँह फेर लेते हैं? जब प्यार और परवाह करनेवाला एक प्राचीन बाइबल से हमें सलाह देता है क्योंकि हम संसार में कुछ ज़्यादा ही उलझ रहे हैं, तो क्या हम इस मदद की कदर करते हैं, जो यह जानने के लिए दी जाती है कि “परमेश्वर को क्या भाता”?
हनानी को काठ में ठोंकवा दिया। (पूछना मत भूलिए
18. अय्यूब से एलीहू ने जो कहा, उससे हम कैसे क्या फायदा उठा सकते हैं?
18 दबाव में आकर परमेश्वर के ऐसे सेवक भी गलत कदम उठा सकते हैं जिन्होंने बरसों तक वफादारी से यहोवा की सेवा करने का रिकार्ड कायम किया है। जब अय्यूब एक बहुत ही घिनौनी बीमारी से पीड़ित हुआ और उसके सारे बच्चे मारे गए, उसकी सारी धन-संपत्ति लूट गयी और उसके अपने ही दोस्तों ने उस पर झूठा इलज़ाम लगाया, तो वह हद-से-ज़्यादा अपने बारे में सोचने लगा। एलीहू ने उसे याद दिलाया: “कोई यह नहीं कहता, कि मेरा सृजनेवाला ईश्वर कहां है”? (अय्यूब 35:10) जी हाँ, अय्यूब को चाहिए था कि वह अपना ध्यान यहोवा पर लगाए और गौर करे कि उसकी हालत के बारे में यहोवा क्या सोचता है। अय्यूब ने नम्रता के साथ इस चितौनी को स्वीकार किया और उसकी मिसाल पर चलकर हम भी ऐसा कर सकते हैं।
19. इस्राएल जाति के लोग अकसर क्या करने से चूक जाते थे?
19 इस्राएली अच्छी तरह जानते थे कि यहोवा ने उनकी जाति के साथ कैसा व्यवहार किया था। मगर उनकी ज़िंदगी में जब कोई खास हालात पैदा होते, तो वे अकसर ये सारी बातें भूल जाते थे। (यिर्मयाह 2:5, 6, 8) और फैसले की घड़ी में, यह पूछने के बजाय कि “यहोवा कहां है?” वे अपने सुख-विलास को पूरा करने का चुनाव करते थे।—यशायाह 5:11, 12.
पूछते रहिए कि “यहोवा कहां है?”
20, 21. (क) यहोवा से मार्गदर्शन माँगने में किन लोगों ने एलीशा जैसी आत्मा दिखायी है? (ख) हम उनके विश्वास की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं और इससे हमें क्या फायदा होगा?
20 जब एलिय्याह की जन सेवा पूरी हुई, तब उसका सेवक एलीशा वह चद्दर लेकर यरदन नदी के पास गया, जो एलिय्याह पर से गिरी थी। उसने पानी पर उसे मारा और पूछा: “एलिय्याह का परमेश्वर यहोवा कहां है?” (2 राजा 2:14) यहोवा ने जवाब में दिखाया कि उसकी आत्मा अब एलीशा पर है। इस घटना से हम क्या सीखते हैं?
21 हमारे समय में भी कुछ ऐसा हुआ है। कुछ अभिषिक्त मसीही जिन्होंने प्रचार काम में अगुवाई की थी, वे चल बसे। उसके बाद जिन लोगों पर दुनिया में हो रहे प्रचार काम की निगरानी सौंपी गयी थी, उन्होंने बाइबल की जाँच की और मार्गदर्शन के लिए यहोवा से प्रार्थना की। वे हमेशा पूछते रहे, “यहोवा कहां है?” इसका नतीजा यह हुआ कि यहोवा ने लगातार अपने लोगों की अगुवाई की और उनके कामों पर आशीष दी। क्या हम भी उनकी तरह विश्वास दिखाते हैं? (इब्रानियों 13:7) अगर हाँ, तो हम यहोवा के संगठन के करीब रहेंगे, उसके निर्देशों को मानेंगे और यीशु मसीह की निगरानी में आज संगठन जो काम कर रहा है, उसमें दिल से हिस्सा लेंगे।—जकर्याह 8:23.
आप क्या जवाब देंगे?
• हमें किस मंशा से यह सवाल पूछना चाहिए कि “यहोवा कहां है?”
• “यहोवा कहां है?” इस सवाल का जवाब आज हम कैसे पा सकते हैं?
• यहोवा से मार्गदर्शन पाने की कुछ प्रार्थनाओं का जवाब क्यों नहीं मिलता?
• बाइबल की कौन-सी मिसालें दिखाती हैं कि ‘हर समय यह जानने का जतन करते रहना’ ज़रूरी है कि “परमेश्वर को क्या भाता है”?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 9 पर तसवीर]
राजा यहोशापात ने यहोवा की खोज कैसे की?
[पेज 10 पर तसवीर]
शाऊल एक भूतसिद्धि करनेवालीके पास क्यों गया?
[पेज 12 पर तसवीर]
“यहोवा कहां है,” यह जानने के लिए प्रार्थना, अध्ययन और मनन कीजिए