“यदि परमेश्वर हमारी ओर है, तो हमारा विरोधी कौन हो सकता है?”
“यदि परमेश्वर हमारी ओर है, तो हमारा विरोधी कौन हो सकता है?”
“सो हम इन बातों के विषय में क्या कहें? यदि परमेश्वर हमारी ओर है, तो हमारा विरोधी कौन हो सकता है?”—रोमियों 8:31.
1. इस्राएलियों के साथ किन लोगों ने मिस्र छोड़ा था और उन्होंने ऐसा क्यों किया?
इस्राएली 215 सालों तक मिस्र में रहे थे और इनमें से ज़्यादातर साल उन्होंने गुलामी की थी। और जब वे वहाँ से आज़ाद होकर निकले, तो ‘उनके साथ मिली जुली एक भीड़ भी गई।’ (निर्गमन 12:38) इस भीड़ के लोग गैर-इस्राएली थे जिन्होंने दस भयानक विपत्तियों का अनुभव किया था। इन दस विपत्तियों की वजह से मिस्र तबाह हो गया और उसके झूठे देवता हँसी का पात्र बन गए थे। उन्हीं विपत्तियों के दौरान, खासकर चौथी विपत्ति से इन गैर-इस्राएलियों ने देखा कि यहोवा अपने लोगों को बचाने की शक्ति रखता है। (निर्गमन 8:23,24) हालाँकि उन्हें यहोवा के मकसद के बारे में इतनी जानकारी नहीं थी, मगर फिर भी वे एक बात तो अच्छी तरह जानते थे: मिस्र के देवता मिस्रियों को बचाने में नाकाम हो गए थे, जबकि यहोवा ने साबित कर दिखाया कि वह शक्तिशाली है और इस्राएलियों की ओर है।
2. राहाब ने उन दो इस्राएली जासूसों की मदद क्यों की और इस्राएलियों के परमेश्वर यहोवा पर उसका भरोसा रखना क्यों सही था?
2 मिस्र छोड़ने के चालीस साल बाद, जब इस्राएली वादा किए हुए देश में कदम रखने ही वाले थे, तब मूसा के उत्तराधिकारी, यहोशू ने उस देश की जासूसी करने के लिए दो आदमी भेजे। जब ये आदमी यरीहो शहर पहुँचे तो उनकी मुलाकात वहाँ की एक स्त्री राहाब से हुई। राहाब ने सुना था कि इस्राएलियों के मिस्र छोड़ने के बाद 40 सालों के दौरान, यहोवा ने कैसे-कैसे चमत्कार करके इस्राएलियों की रक्षा की थी। इसलिए वह जानती थी कि परमेश्वर की आशीष उसे तभी मिल सकती है जब वह उसके लोगों का साथ देगी। उसका यह फैसला वाकई अक्लमंदी का फैसला था। इसलिए बाद में जब इस्राएलियों ने उस शहर पर कब्ज़ा किया तो उसकी और उसके घराने की जान बख्श दी गई। यहोवा ने जिस हैरतअंगेज़ तरीके से उनकी जान बचाई थी, वह अपने आप में एक पक्का सबूत था कि परमेश्वर उनके साथ था। इस तरह राहाब ने इस्राएलियों के परमेश्वर, यहोवा पर भरोसा रखकर बिलकुल सही काम किया था।—यहोशू 2:1,9-13; 6:15-17,25.
3. (क) यरीहो के दोबारा बसाए गए शहर के पास यीशु ने कौन-सा चमत्कार किया था और तब यहूदी धर्म-गुरुओं ने कैसी प्रतिक्रिया दिखाई? (ख) कुछ यहूदियों ने और बाद में बहुत सारे गैर-यहूदियों ने कौन-सी बात समझ ली?
3 इस घटना के पंद्रह शताब्दियों बाद, यीशु मसीह ने यरीहो के दोबारा बसाए गए शहर के पास एक अंधे आदमी को चंगा किया, जो भीख माँग रहा था। (मरकुस 10:46-52; लूका 18:35-43) इस आदमी ने यीशु से बिनती की कि वह उस पर दया करे और इस तरह अपना यह विश्वास ज़ाहिर किया कि परमेश्वर, यीशु के साथ है। मगर दूसरी ओर, ज़्यादातर यहूदी धर्म-गुरू और उनके अनुयायी यह मानने के लिए तैयार नहीं थे कि यीशु द्वारा किए गए चमत्कार इस बात के सबूत हैं कि वह परमेश्वर का काम कर रहा है। इसके बजाय, वे यीशु की नुक्ताचीनी करते थे। (मरकुस 2:15,16; 3:1-6; लूका 7:31-35) यहाँ तक कि जब उन्हें यह सच्चाई बताई गई कि उन्होंने जिस यीशु को मार डाला है, उसका पुनरुत्थान हो चुका है, तब भी वे यह मानने को तैयार नहीं थे कि यह परमेश्वर का कार्य है। बल्कि वे यीशु के शिष्यों को सताने में हमेशा आगे रहे और इस तरह उन्होंने “यीशु के सुसमाचार की बातें सुनाने” के काम को रोकने की कोशिश की। लेकिन कुछ यहूदियों, और बाद में बहुत सारे गैर-यहूदियों ने इन घटनाओं पर ध्यान से सोचा और सही नतीजे पर पहुँचे। उन्हें यह बिलकुल साफ पता चला कि परमेश्वर ने खुद को धर्मी समझनेवाले यहूदी अगुवों को ठुकरा दिया है और अब वह यीशु मसीह के नम्र शिष्यों के साथ है।—प्रेरितों 11:19-21.
आज परमेश्वर किन लोगों के साथ है?
4, 5. (क) कुछ लोग कैसी बातों के आधार पर धर्म चुनते हैं? (ख) सच्चे धर्म की पहचान करते समय किस ज़रूरी सवाल पर ध्यान देना चाहिए?
4 सच्चे धर्म के संबंध में एक पादरी ने हाल ही में टीवी पर एक इंटरव्यू में कहा: “मैं तो बस यही कहूँगा कि जिस धर्म को मानने पर एक स्त्री या पुरुष अच्छा इंसान बन सकता है, वही धर्म सच्चा है।” माना कि सच्चे धर्म पर चलनेवाले ज़रूर नेक इंसान बनते हैं। लेकिन अगर एक धर्म को मानने पर लोग अच्छे इंसान बनते हैं, तो क्या इसी बात को लेकर यह दावा किया जा सकता है कि परमेश्वर उसके पक्ष में है? क्या सिर्फ यही एक कसौटी है जिसके आधार पर यह परखा जा सकता है कि फलाना धर्म सही है या नहीं?
5 हर इंसान इस बात की कदर करता है कि उसे अपने फैसले खुद करने की आज़ादी है। साथ ही वह अपनी पसंद से कोई भी धर्म चुन सकता है। लेकिन अगर एक व्यक्ति के पास खुद फैसले करने की आज़ादी है तो इसका मतलब यह नहीं कि वह ज़रूर सही फैसला करेगा। मिसाल के लिए, कुछ लोग सिर्फ यह देखकर एक धर्म को अपनाते हैं कि उसमें सदस्यों की संख्या कितनी है या उस धर्म के पास कितना धन है, उसके रस्मो-रिवाज़ कितनी धूम-धाम से मनाए जाते हैं या फिर उसी धर्म को मानते हैं जिसे उनके परिवार के सदस्य या रिश्तेदार मानते हैं। लेकिन सच तो यह है कि इनमें से कोई भी बात वह कसौटी नहीं है जिस पर रखकर एक धर्म को परखा जाए कि वह सही है या नहीं। इस मामले में सबसे ज़रूरी सवाल यह है: कौन-सा धर्म अपने लोगों को परमेश्वर की इच्छा पूरी करने के लिए आग्रह करता और इस बात का ज़बरदस्त सबूत देता है कि परमेश्वर उसके साथ है, ताकि उसके माननेवाले पूरे विश्वास के साथ कह सकें: “परमेश्वर हमारी ओर है”?
6. यीशु के किन शब्दों से हमें सच्चे और झूठे धर्म के बीच फर्क करने में मदद मिलती है?
6 सच्ची और झूठी उपासना के बीच फर्क करने के लिए यीशु ने यह नियम दिया: “झूठे भविष्यद्वक्ताओं से सावधान रहो, जो भेड़ों के भेष में तुम्हारे पास आते हैं, परन्तु अन्तर में फाड़नेवाले भेड़िए हैं। उन के फलों से तुम उन्हें पहचान लोगे।” (तिरछे टाइप हमारे।) (मत्ती 7:15,16; मलाकी 3:18) आइए हम सच्चे धर्म के कुछ “फलों” या उसकी पहचान करानेवाले कुछ चिन्हों पर एक नज़र डालें ताकि हम यह सही-सही तय कर सकें कि आज परमेश्वर किनके साथ है।
परमेश्वर जिन लोगों के साथ है, उन्हें पहचानने के चिन्ह
7. केवल बाइबल पर आधारित शिक्षाएँ देने का मतलब क्या है?
7 उनकी शिक्षाएँ बाइबल के आधार पर होती हैं। यीशु ने कहा था: “मेरा उपदेश मेरा नहीं, परन्तु मेरे भेजनेवाले का है। यदि कोई उस की इच्छा पर चलना चाहे, तो वह इस उपदेश के विषय में जान जाएगा कि वह परमेश्वर की ओर से है, या मैं अपनी ओर से कहता हूं।” उसने यह भी कहा था: “जो परमेश्वर से होता है, वह परमेश्वर की बातें सुनता है।” (यूहन्ना 7:16,17; 8:47) तो ज़ाहिर है कि जो धर्म चाहता है कि परमेश्वर उसके साथ हो, उसे सिर्फ ऐसी बातें सिखानी चाहिए जिन्हें परमेश्वर ने अपने वचन में प्रकट किया है और इंसान की बुद्धि या परंपरा पर आधारित शिक्षाओं को ठुकरा देना चाहिए।—यशायाह 29:13; मत्ती 15:3-9; कुलुस्सियों 2:8.
8. उपासना में परमेश्वर का नाम इस्तेमाल करना क्यों ज़रूरी है?
8 वे परमेश्वर के नाम, यहोवा का इस्तेमाल करते और उसकी घोषणा करते हैं। यशायाह ने भविष्यवाणी की थी: “उस दिन तुम कहोगे, यहोवा की स्तुति करो, उस से प्रार्थना करो; सब जातियों में उसके बड़े कामों का प्रचार करो, और कहो कि उसका नाम महान है। यहोवा का भजन गाओ, क्योंकि उस ने प्रतापमय काम किए हैं; इसे सारी पृथ्वी पर प्रगट करो।” (यशायाह 12:4,5) इसके अलावा, यीशु ने अपने शिष्यों को प्रार्थना करना सिखाया था: “हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए।” (मत्ती 6:9) इसलिए मसीहियों को, फिर चाहे वे यहूदी हों या गैर-यहूदी, ‘परमेश्वर के नाम के लोगों’ के तौर पर सेवा करनी थी। (प्रेरितों 15:14) बेशक, परमेश्वर ऐसे लोगों की मदद करने में खुश है जो ‘उसके नाम के लोग’ होने में गर्व महसूस करते हैं।
9. (क) सच्चे धर्म को माननेवाले क्यों खुश रहते हैं? (ख) यशायाह किस तरह सच्चे और झूठे धर्म के बीच फर्क बताता है?
9 वे यहोवा की तरह खुश रहते हैं। यहोवा परमेश्वर “सुसमाचार” का देनेवाला है इसलिए वह “परमधन्य [आनन्दित] परमेश्वर” है। (1 तीमुथियुस 1:11) तो क्या ऐसा हो सकता है कि उसके उपासक उदास रहें या हमेशा निराशा में डूबे रहें? संसार में तकलीफें होने और खुद अपनी ज़िंदगी में कई मुश्किलें झेलने के बावजूद सच्चे मसीही अपनी खुशी बरकरार रखते हैं क्योंकि वे नियमित रूप से भरपूर आध्यात्मिक भोजन लेते हैं। सच्चे और झूठे धर्म के लोगों के बीच फर्क बताते हुए यशायाह कहता है: “इस कारण प्रभु यहोवा यों कहता है, देखो, मेरे दास तो खाएंगे, पर तुम भूखे रहोगे; मेरे दास पीएंगे, पर तुम प्यासे रहोगे; मेरे दास आनन्द करेंगे, पर तुम लज्जित होगे; देखो, मेरे दास हर्ष के मारे जयजयकार करेंगे, परन्तु तुम शोक से चिल्लाओगे और खेद के मारे हाय हाय, करोगे।”—यशायाह 65:13,14.
10. किस तरह सच्चे धर्म के लोग गलती करके सबक सीखने से बचते हैं?
10 उनका आचरण और उनके फैसले बाइबल पर आधारित होते हैं। नीतिवचन का लेखक हमें सलाह देता है: “तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।” (नीतिवचन 3:5,6) परमेश्वर उन लोगों की सहायता करता है जो निर्देशन पाने के लिए उसकी ओर ताकते हैं। वे परमेश्वर की बुद्धि ठुकरानेवाले इंसानों की शिक्षाओं पर भरोसा नहीं रखते, जिन शिक्षाओं का आपस में ही कोई ताल-मेल नहीं होता। एक इंसान परमेश्वर के वचन के मुताबिक जीने की जितनी ज़्यादा इच्छा रखता है, उतना ज़्यादा वह गलतियाँ करके सबक सीखने से बच सकता है।—भजन 119:33; 1 कुरिन्थियों 1:19-21.
11. (क) सच्चे धर्म के सदस्य, पादरी वर्ग और आम जनता के वर्ग में क्यों विभाजित नहीं हो सकते? (ख) परमेश्वर के लोगों की अगुवाई करनेवालों को झुंड के लिए कैसा आदर्श रखना चाहिए?
11 वे पहली सदी की कलीसिया के आदर्श पर चलते हुए संगठित रहते हैं। यीशु ने यह सिद्धांत दिया था: “तुम रब्बी न कहलाना; क्योंकि तुम्हारा एक ही गुरु है: और तुम सब भाई हो। और पृथ्वी पर किसी को अपना पिता न कहना, क्योंकि तुम्हारा एक ही पिता है, जो स्वर्ग में है। और स्वामी भी न कहलाना, क्योंकि तुम्हारा एक ही स्वामी है, अर्थात् मसीह। जो तुम में बड़ा हो, वह तुम्हारा सेवक बने।” (मत्ती 23:8-11) जिस कलीसिया में सभी एक-दूसरे के भाई हों, वहाँ घमंडी पादरियों का कोई वर्ग नहीं होता जो बड़ी-बड़ी उपाधियाँ हासिल करके लोगों से सम्मान पाते और खुद को आम लोगों से ऊँचा उठाते हैं। (अय्यूब 32:21,22) परमेश्वर के झुंड की रखवाली करनेवालों को बताया गया है कि वे रखवाली का काम ‘दबाव से नहीं, परन्तु परमेश्वर की इच्छा के अनुसार आनन्द से, और नीच-कमाई के लिये नहीं, पर मन लगाकर करें और जो लोग उन्हें सौंपे गए हैं, उन पर अधिकार न जताएँ, बरन झुंड के लिये आदर्श बन जाएँ।’ (1 पतरस ) इसलिए सच्चे मसीही चरवाहे दूसरों के विश्वास पर प्रभुता नहीं जताते। परमेश्वर की सेवा में दूसरों के सहकर्मी होने की वजह से उनकी बस यही कोशिश रहती है कि वे दूसरों के लिए अच्छी मिसाल कायम करें।— 5:2,32 कुरिन्थियों 1:24.
12. जो लोग परमेश्वर का समर्थन पाना चाहते हैं, उनसे परमेश्वर मानव सरकारों के प्रति कौन-सा सही नज़रिया रखने की माँग करता है?
12 वे मानव सरकारों के अधीन रहते हैं मगर फिर भी वे निष्पक्ष रहते हैं। जो व्यक्ति “प्रधान अधिकारियों के आधीन” नहीं रहता, वह परमेश्वर से मदद पाने की कोई उम्मीद भी नहीं कर सकता। क्यों? क्योंकि “जो अधिकार हैं, वे परमेश्वर के ठहराए हुए हैं। इस से जो कोई अधिकार का विरोध करता है, वह परमेश्वर की विधि का साम्हना करता है।” (रोमियों 13:1,2) मगर यीशु जानता था कि कभी-कभी हमें यह फैसला करना पड़ सकता है कि हमें किसकी आज्ञा माननी चाहिए। इसलिए उसने कहा: “जो कैसर का है वह कैसर को, और जो परमेश्वर का है परमेश्वर को दो।” (मरकुस 12:17) जो लोग चाहते हैं कि परमेश्वर उनके साथ हो, उन्हें ‘पहिले परमेश्वर के राज्य और धर्म की खोज’ करते रहना चाहिए। साथ ही उन्हें अपने देश के ऐसे कानूनों का भी पालन करना चाहिए जिनके मानने पर परमेश्वर के उच्च नियमों का उल्लंघन नहीं होता। (मत्ती 6:33; प्रेरितों 5:29) यीशु ने निष्पक्ष होने पर ज़ोर देते हुए अपने शिष्यों के बारे में कहा: “जैसे मैं संसार का नहीं, वैसे ही वे भी संसार के नहीं।” उसने बाद में कहा: “मेरा राज्य इस जगत का नहीं।”—यूहन्ना 17:16; 18:36.
13. परमेश्वर के लोगों की पहचान करने में प्रेम की क्या भूमिका है?
13 वे बिना किसी भेद-भाव के “सब के साथ भलाई” करते हैं। (गलतियों 6:10) जिन लोगों में मसीही प्रेम होता है, वे ज़रा भी भेद-भाव नहीं रखते। वे सभी लोगों से एक जैसा व्यवहार करते हैं, फिर चाहे वे किसी भी रंग के हों, गरीब हों या अमीर, पढ़े-लिखे हों या अनपढ़ या किसी भी राष्ट्र या भाषा के क्यों न हों। वे सभी के साथ और खासकर उनके जैसा विश्वास रखनेवालों के साथ भलाई करते हैं, जिससे यह पहचाना जा सकता है कि परमेश्वर किन लोगों के साथ है। यीशु ने कहा था: “यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।”—यूहन्ना 13:35; प्रेरितों 10:34,35.
14. क्या यह ज़रूरी है कि जिन लोगों को परमेश्वर स्वीकार करता है, उन्हें पूरा संसार भी स्वीकार करे? समझाइए।
14 वे परमेश्वर की इच्छा पूरी करने के लिए अत्याचार सहने को भी तैयार रहते हैं। यीशु ने अपने शिष्यों को यह चेतावनी दी थी: “यदि उन्हों ने मुझे सताया, तो तुम्हें भी सताएंगे; यदि उन्हों ने मेरी बात मानी, तो तुम्हारी भी मानेंगे।” (यूहन्ना 15:20; मत्ती 5:11,12; 2 तीमुथियुस 3:12) जिन लोगों के साथ परमेश्वर है, उन्हें शुरू से ही संसार ने पसंद नहीं किया है। उनमें से एक नूह था, जिसने अपने विश्वास के द्वारा संसार को दोषी ठहराया था। (इब्रानियों 11:7) इसलिए आज जिन लोगों के साथ परमेश्वर है, वे संसार के ज़ुल्मों से बचने के लिए परमेश्वर के वचन के संदेश को हल्का करके नहीं बताते, ना ही परमेश्वर के उसूलों से समझौता करते हैं। वे जानते हैं कि जब तक वे वफादारी से यहोवा की सेवा करेंगे, तब तक लोग ‘उनके बारे में ज़रूर अचम्भा करेंगे और बुरा भला कहेंगे।’—1 पतरस 2:12; 3:16; 4:4.
सबूतों पर विचार करने का समय
15, 16. (क) किन सवालों से हमें उस धार्मिक समूह को पहचानने में मदद मिलेगी जिसके साथ परमेश्वर है? (ख) आज लाखों लोग किस नतीजे पर पहुँचे हैं और क्यों?
15 अपने आप से यह पूछिए: ‘कौन-सा धार्मिक समूह परमेश्वर के वचन का नज़दीकी से पालन करने के लिए जाना जाता है, हालाँकि उसकी शिक्षाएँ ज़्यादातर लोगों की धारणाओं से अलग हैं? कौन परमेश्वर के नाम की अहमियत पर ज़ोर देते हैं, यहाँ तक कि उसी नाम से खुद की पहचान भी कराते हैं? कौन पूरे विश्वास के साथ यह बताते हैं कि सिर्फ परमेश्वर का राज्य ही इंसान की सारी समस्याओं का हल करेगा? कौन बाइबल के स्तरों के मुताबिक अपना आचरण बनाए रखते हैं, इसके बावजूद कि उनके ऐसा करने को दकियानूसी कहा जाता है? कौन-सा समूह इस बात के लिए जाना जाता है कि उसके सभी सदस्य प्रचारक हैं और उनके बीच कोई पादरी-वर्ग नहीं है जिसे तनख्वाह दी जाती हो? किन लोगों की तारीफ में यह कहा जाता है कि हालाँकि वे राजनीति में कोई हिस्सा नहीं लेते, मगर फिर भी वे देश के कानूनों का पालन करनेवाले नागरिक हैं? कौन परमेश्वर और उसके उद्देश्यों के बारे में दूसरों को सिखाने में अपना समय और पैसा खुशी से लगा देते हैं? और वे कौन हैं जो इतने तारीफ के काबिल होने के बावजूद, उन्हें बहुत नीचा समझा जाता है, उनका मज़ाक उड़ाया जाता और उन पर ज़ुल्म ढाया जाता है?’
16 संसार भर में लाखों लोगों ने यहोवा के साक्षियों के बारे में सच्चाई पर गंभीरता से विचार किया है। वे साक्षियों की शिक्षाओं और उनके आचरण को, साथ ही उनके धर्म से हुए अच्छे अंजामों को ध्यान में रखकर इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि यहोवा के साक्षी ही सच्चे धर्म का पालन करते हैं। (यशायाह 48:17) जैसा कि जकर्याह 8:23 में भविष्यवाणी की गई है, आज लाखों लोग कह रहे हैं: “हम तुम्हारे संग चलेंगे, क्योंकि हम ने सुना है कि परमेश्वर तुम्हारे साथ है।”
17. यह बढ़ा-चढ़ाकर कही गई बात क्यों नहीं है कि सिर्फ यहोवा के साक्षियों का धर्म ही सच्चा है?
17 क्या यहोवा के साक्षी अपने बारे में यह बढ़ा-चढ़ाकर बात करते हैं कि परमेश्वर सिर्फ उन्हीं के साथ है? नहीं। दरअसल, वे अपने बारे में बस वही दावा कर रहे हैं जैसा इस्राएलियों ने मिस्रियों के विश्वास के बावजूद यह दावा किया था कि परमेश्वर उनके साथ है। या यहोवा के साक्षियों का दावा वही है जो पहली सदी के मसीहियों का था कि परमेश्वर उनके साथ है, न कि यहूदी धर्म के लोगों के साथ। और सबूत दिखाते हैं कि यहोवा के साक्षियों का दावा सच है। आज 235 देशों में यहोवा के साक्षी वही काम कर रहे हैं जिसके बारे में यीशु ने भविष्यवाणी की थी कि अंत के समय में उसके सच्चे शिष्य वह काम करेंगे: “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।”—मत्ती 24:14.
18, 19. (क) हालाँकि यहोवा के साक्षियों का विरोध किया जा रहा है मगर फिर भी उन्हें अपना प्रचार काम रोकने की ज़रूरत क्यों नहीं है? (ख) भजन 41:11 किस तरह इस सच्चाई का सबूत देता है कि परमेश्वर साक्षियों के साथ है?
18 यहोवा के साक्षी अपना यह काम करना कभी नहीं छोड़ेंगे, फिर चाहे उन पर कितने ही ज़ुल्म क्यों न किए जाएँ या उनके काम को रोकने की कितनी भी कोशिश क्यों न की जाए। यहोवा का काम ज़रूर पूरा होना चाहिए और यह होकर ही रहेगा। पिछली सदी के दौरान लोगों ने साक्षियों को परमेश्वर का काम करने से रोकने की जो भी कोशिश की थी, वह आखिर में नाकाम ही हुई क्योंकि यहोवा ने यह वादा किया है: “जितने हथियार तेरी हानि के लिये बनाए जाएं, उन में से कोई सफल न होगा, और, जितने लोग मुद्दई होकर तुझ पर नालिश करें उन सभों से तू जीत जाएगा। यहोवा के दासों का यही भाग होगा, और वे मेरे ही कारण धर्मी ठहरेंगे।”—यशायाह 54:17.
19 यहोवा के साक्षी अब पहले से कहीं ज़्यादा मज़बूत हैं और ज़्यादा काम कर रहे हैं और ये सब वे पूरे संसार में उनका विरोध किए जाने के बावजूद कर रहे हैं। यह इस बात का एक सबूत है कि यहोवा उनके काम से खुश है। राजा दाऊद ने कहा था: “मेरा शत्रु जो मुझ पर जयवन्त नहीं हो पाता, इस से मैं ने जान लिया है कि तू मुझ से प्रसन्न है।” (भजन 41:11; 56:9,11) यहोवा के दुश्मन उसके लोगों पर जीत पाकर अपनी जयजयकार करने में कभी-भी कामयाब नहीं हो सकते क्योंकि उनका अगुवा, यीशु मसीह अपनी अंतिम जीत पाने की ओर तेज़ी से आगे बढ़ रहा है!
क्या आप जवाब दे सकते हैं?
• प्राचीन समय के कुछ उदाहरण बताइए कि किस तरह परमेश्वर अपने लोगों के साथ था।
• सच्चे धर्म को पहचानने के कुछ चिन्ह कौन-से हैं?
• आपको किस बात ने यकीन दिलाया कि परमेश्वर, यहोवा के साक्षियों के साथ है?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 13 पर तसवीर]
जो लोग चाहते हैं कि परमेश्वर उनके साथ हो, उन्हें सिर्फ उसके वचन के आधार पर ही शिक्षा देनी चाहिए
[पेज 15 पर तसवीर]
मसीही प्राचीन झुंड के लिए आदर्श होते हैं