हमें दुखों से छुटकारा चाहिए!
हमें दुखों से छुटकारा चाहिए!
एक दिन कीयो के पिता की गायें चरते-चरते पास के मक्के के खेत में चली गयीं, इतनी-सी बात पर उसके पिता की हत्या कर दी गयी। यह कीयो के दुखों की बस शुरूआत थी। इसके बाद उसकी माँ और दो बहनों को कम्बोडिया के कमेर रूश सैनिकों ने मौत के घाट उतार दिया। फिर एक दिन कीयो का पैर एक बारूदी सुरंग पर पड़ा और वह बुरी तरह घायल हो गया। वह 16 दिनों तक जंगल में पड़ा रहा और जब तक मदद आयी तब तक उसका ज़ख्म इतना गहरा हो गया था कि उसका पैर काटना पड़ा। उस वक्त के बारे में वह कहता है: “मेरे अंदर जीने की इच्छा खत्म हो गयी थी।”
आपने गौर किया होगा कि दुख-तकलीफों से कोई भी अछूता नहीं रहा है फिर चाहे वह अमीर हो या गरीब। प्राकृतिक विपत्तियाँ, बीमारी, अपंगता, दिल दहला देनेवाले अपराध और दूसरे हादसे, किसी को भी, कभी-भी, कहीं-भी अपनी चपेट में ले सकते हैं। समाज-सेवी संगठन दिन-रात इस कोशिश में लगे हुए हैं कि इंसानों पर तकलीफें न आएँ या कम-से-कम उन्हें अपने दुखों से राहत दिलायी जाए। लेकिन क्या वे अपनी कोशिशों में कामयाब हुए हैं?
भुखमरी मिटाने की ही बात लीजिए। टोरोन्टो स्टार अखबार का कहना है कि प्राकृतिक विपत्तियों की मार से कई लोग बेघर हो गए हैं और उन्हें खाने के लाले पड़ गए। अखबार बताता है कि “समाज-सेवी संगठन भूख से तड़प रहे लोगों को खाना पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं, मगर बढ़ते खून-खराबे की वजह से वे ऐसा करने में नाकाम हो रहे हैं।”
इंसान के दुखों को कम करने के लिए राजनीति, समाज और चिकित्सा क्षेत्र के बड़े-बड़े दिग्गजों ने कोई कसर नहीं छोड़ी, फिर भी उनके हाथ निराशा ही लगी है। आर्थिक उन्नति के लिए कई कार्यक्रम तो चलाए गए, फिर भी गरीबी नहीं मिटी। नए-से-नए टीके और दवाइयाँ बनायी गयीं और ऑपरेशन के बेहतरीन तरीके ईजाद किए गए, लेकिन बीमारियाँ अब भी हैं। पुलिस और शांति-सेना बल तो मौजूद है, मगर दिल दहला देनेवाले अपराध थमने का नाम नहीं ले रहे बल्कि और भी बढ़ते जा रहे हैं।
आखिर, चारों तरफ इतनी दुख-तकलीफें क्यों हैं? इंसानों पर जो बीत रही है, क्या परमेश्वर को उसकी परवाह है? लाखों लोगों ने पाया है कि इन सवालों के जवाब बाइबल में दिए गए हैं और ये जवाब जानकर उन्हें दिलासा मिला है। आगे के लेखों में हम इन सवालों के जवाब देखेंगे। (g11-E 07)