पंछी बेचारे इमारतों के मारे
पंछी बेचारे इमारतों के मारे
दिन का उजाला था, फिर भी कठफोड़वा काँच की बनी ऊँची इमारत को देख न सका और उससे ऐसे टकराया कि चकराकर सीधे ज़मीन पर आ गिरा। एक भले राहगीर ने उस बेहोश पंछी को देखा। वह इस उम्मीद से उसके पास गया कि शायद उसमें फिर से जान आ जाए। उसकी उम्मीद हकीकत में बदल गयी जब उसने देखा कि पंछी चहका, उठा और पंख फड़फड़ाते हुए उड़ गया। *
अफसोस कि इस तरह टकराने से सभी पंछी नहीं बचते। जो पंछी घरों से जा टकराते हैं, उनमें से आधों की मौत हो जाती है। ऑडूबोन संस्था के मुताबिक, अध्ययन दिखाते हैं कि सिर्फ अमरीका में हर साल करीब 10 करोड़ पंछी अलग-अलग तरह की इमारतों से टकराकर मर जाते हैं। कुछ खोजकर्ताओं का मानना है कि इनकी संख्या 1 अरब भी हो सकती है! लेकिन पंछी इमारतों से टकराते क्यों हैं? क्या कुछ ऐसा किया जा सकता है ताकि उड़ते वक्त पंछियों को कोई खतरा न हो?
हत्यारे—काँच और रौशनी
काँच पंछियों के लिए खतरा है। जब खिड़कियाँ साफ और चमकदार होती हैं तो काँच के उस पार पंछियों को सबकुछ साफ नज़र आता है, जैसे कि हरियाली और खुला आसमान। इस वहम में कि वह खुली जगह है वे अपनी पूरी रफ्तार से उड़ते हुए आते हैं और काँच से टकरा जाते हैं। यही नहीं, वे काँच के दूसरी तरफ गलियारे में या घरों में सजावटी पौधे देखते हैं और वे उन पर बैठना चाहते हैं।
परत चढ़े चमकदार काँच भी उनके दुश्मन बन सकते हैं।
क्योंकि उस पर आस-पास की हरियाली या आसमान की छाया इस तरह पड़ती है मानो वह असली हो। नतीजा फिर वही होता है, वे टकराकर गिर पड़ते हैं। पंछी उद्यानों और चिड़ियाघरों के अध्ययन की इमारतों और अथिति घरों के काँच से भी पंछी टकराकर मरते हैं। पक्षी-विज्ञान और जीव-विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. डेनियल क्लेम, जूनियर मानते हैं कि इंसानों की कई हरकतों की वजह से पंछी अपनी जान गँवा रहे हैं। माना कि उनकी मौत की सबसे बड़ी वजह उनके रहने की जगह तबाह करना है। मगर इसकी दूसरी सबसे बड़ी वजह है, उनका काँच से टकराना।कुछ पंछियों का टकराना तो लाज़िमी है। उदाहरण के लिए कुछ प्रवासी (मौसम के मुताबिक एक इलाके से दूसरे इलाके में जाकर रहनेवाली) गायक चिड़ियाँ रात में उड़ान भरती हैं और अपनी मंज़िल तक पहुँचने के लिए कुछ हद तक सितारों की मदद लेती हैं। मगर बड़ी-बड़ी इमारतों की चमकदार रौशनी उन्हें उलझन में डाल देती है। इससे वे दिशा भटककर इमारत के इर्द-गिर्द ही उड़ती रहती हैं और आखिरकार पस्त होकर ज़मीन पर आ गिरती हैं। दूसरा खतरा तब पैदा होता है जब रात को बारिश होती है या घने बादल घिर आते हैं। ऐसे में पंछी कम ऊँचाई पर उड़ते हैं और इससे ऊँची-ऊँची इमारतों से टकराने का खतरा बढ़ जाता है।
पंछियों की आबादी पर असर
एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रवास के मौसम में अमरीका के शिकागो शहर की सिर्फ एक इमारत से टकराकर करीब 1,480 पंछियों की मौत हो गयी। 14 सालों के दौरान यही इमारत करीब 20,700 पंछियों की हत्या का सबब बनी। इसमें कोई शक नहीं कि अगर इमारतों से टकराकर मरनेवाले सभी पंछियों की गिनती की जाए तो वह कहीं ज़्यादा होगी। कनाडा के टोरंटो शहर में ‘जानलेवा रौशनी से अवगत कार्यक्रम’ (अँग्रेज़ी) के डाइरेक्टर माइकल मसूर कहते हैं, मरनेवाले इन पंछियों में “कबूतर, समुद्री पक्षी” या हंस जाति के पक्षी नहीं, बल्कि ऐसी प्रजातियाँ हैं जो लुप्त होती जा रही हैं।
उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रेलिया में स्विफ्ट तोतों की गिनती करीब 2,000 रह गयी है और सिर्फ एक साल में काँच से टकराने की वजह से 30 तोतों की जान चली गयी। अमरीका में बेकमान वॉबलर नाम के बहुत-से पंछी जो संग्रहालय में अध्ययन के लिए लाए गए, वे दरअसल फ्लॉरिडा के एक प्रकाश घर से टकराकर घायल हुए थे। अब इनकी जाति शायद खत्म हो चुकी है।
इमारतों से टकराकर अगर पंछी बच भी जाते हैं तो उनमें से कई घायल या कमज़ोर हो जाते हैं। यह बात प्रवासी पंछियों के लिए काफी खतरनाक हो सकती है। घायल हालत में वे इमारतों के बीच में आकर गिर जाते हैं, जहाँ खाना न मिलने की वजह से वे अपनी जान गँवा सकते हैं। या वे जानवरों का भोजन बन सकते हैं, क्योंकि ये जानवर सीख गए हैं कि उन्हें कहाँ से शिकार हाथ लग सकता है।
इमारतें ऐसी बनाएँ कि पंछी न टकराएँ
पंछी काँच से न टकराएँ इसके लिए ज़रूरी है कि वे काँच को देख सकें और समझें कि वह एक ठोस चीज़ है। इसके लिए कई लोगों ने कुछ हद तक अपने मनचाहे नज़ारों की तिलांजलि देकर अपनी खिड़कियों पर रंग-बिरंगी तसवीरें लगायी हैं तो कुछ ने स्टीकर चिपकाए हैं या फिर कोई और तरीका अपनाया है। क्लेम के मुताबिक तसवीरें लगाना ही काफी नहीं है बल्कि काँच पर कितनी जगह खाली होनी चाहिए यह बात भी मायने रखती है। तसवीरों के दाएँ-बाएँ पाँच सेंटीमीटर और ऊपर-नीचे सिर्फ दस सेंटीमीटर की जगह छोड़ें, जिससे पंछी वहाँ से उड़ने की कोशिश न करें।
रात को उड़नेवाले प्रवासी पंछियों की मदद के लिए क्या किया जा सकता है? पर्यावरण की शोध सलाहकार लेसली जे. एवन्ज़ ऑग्डन कहती हैं, “रात में बिजली बंद करने से . . . काफी हद तक पंछियों को इमारतों से टकराने से बचाया जा सकता है।” कुछ शहरों में, खासकर पंछियों के प्रवासी मौसम में आसमान छूती इमारतों की सजावटी बत्तियाँ रात को बंद कर दी जाती हैं या उनकी रौशनी कम कर दी जाती है। कुछ बड़ी-बड़ी इमारतों की खिड़कियों पर जाली लगा दी जाती है, ताकि पंछी आसमान की छाया के धोखे में न आएँ।
ऐसे कदम उठाने से पंछियों की मौत 80 प्रतिशत तक घटायी जा सकती है। इससे साल में लाखों पक्षियों की जान बच सकती है। मगर एक समस्या शायद कभी न हल हो पाए, वह है काँच और रौशनी से लोगों का प्यार। इसलिए पंछियों का भला चाहनेवाली ऑडूबोन जैसी संस्थाएँ आर्किटेक्ट (इमारत का नक्शा तैयार करनेवाले) और ठेकेदारों को बढ़ावा देती हैं कि वे जीव-जंतुओं की ज़रूरतों को ध्यान में रखकर इमारत बनाएँ। (g 2/09)
[फुटनोट]
^ घायल पंछियों की मदद करना खतरनाक हो सकता है, क्योंकि वे शायद आपके नेक इरादे समझ न पाएँ। इसके अलावा कुछ पंछियों में बीमारियाँ होती हैं जो आपको लग सकती हैं। इसलिए जब आप किसी घायल पंछी की मदद करना चाहते हैं, तो दस्ताने पहनिए और बाद में अपने हाथ अच्छी तरह धो लीजिए। अगर आपको अपनी सेहत और सुरक्षा की चिंता है तो घायल पंछी के पास मत जाइए। और अगर हालत नाज़ुक हो तो किसी पेशेवर की मदद लीजिए।
[पेज 30 पर बक्स]
सारे पंछी कहाँ गए?
अमरीका में इंसानों की वजह से हुई पंछियों की मौत के सालाना आँकड़े
◼ संचार मीनार से—4 करोड़
◼ कीटनाशक से—7.4 करोड़
◼ बिल्लियों से—36.5 करोड़
◼ काँच की खिड़कियों से—10 करोड़ से 1 अरब
◼ रहने की जगह तबाह करने से—सही आँकड़ों का पता नहीं, मगर अनुमान है कि इसकी वजह से सबसे ज़्यादा पंछियों की मौत होती है
[पेज 30 पर तसवीर]
अमरीका में हर साल करीब 10 करोड़ पंछी खिड़कियों से टकराकर मर जाते हैं
[चित्र का श्रेय]
© Reimar Gaertner/age fotostock