थेम्स नदी—इंग्लैंड की अनोखी विरासत
थेम्स नदी—इंग्लैंड की अनोखी विरासत
ब्रिटेन में सजग होइए! लेखक द्वारा
थेम्स वह नदी है जिसे ब्रिटेन के लोग प्यार से ‘ओल्ड फादर थेम्स’ कहते हैं। यह नदी, दक्षिण-मध्य इंग्लैंड के कॉट्स्वोल्ड नाम की सुंदर पहाड़ियों से निकलनेवाली चार धाराओं के संगम से बनती है। जब यह बलखाती हुई 350 किलोमीटर पूरब की ओर बहती है, तो आगे दूसरी नदियाँ आकर इससे मिल जाती हैं और आखिरकार यह 29 किलोमीटर चौड़े मुहाने से होते हुए उत्तर सागर में जा मिलती है। इस छोटी-सी नदी ने ब्रिटेन का इतिहास रचने में जो अहम किरदार निभाया है, उसकी कहानी बड़ी रोमांचक है।
सामान्य युग पूर्व 55 के आस-पास, जूलियस सीज़र के कमान में, रोमी सेना ने पहली बार इंग्लैंड पर चढ़ायी की थी। जब वह अगले साल इंग्लैंड लौटा, तो एक नदी की वजह से उसके बढ़ते कदम थम गए, जिसका नाम उसने ‘टैमेसिस’ रखा—यही थेम्स नदी थी। मगर आखिरकार 90 साल बाद, रोमी सम्राट क्लौडियस ने इस देश पर अपना कब्ज़ा जमाया।
उस ज़माने में थेम्स नदी के दोनों किनारों पर दूर-दूर तक दलदली इलाके हुआ करते थे। पर नदी के मुहाने से करीब 50 किलोमीटर दूर, जहाँ समुद्र से उठनेवाला ज्वार वापस पलट जाता है, वहाँ रोमी सेना ने बाद में लकड़ी का एक पुल बनाया। यहाँ नदी के उत्तरी तट पर उन्होंने एक बंदरगाह का भी निर्माण किया जिसका नाम उन्होंने ‘लौन्डीनियुम’ रखा। *
अगली चार सदियों तक रोमी, यूरोप के बाकी देशों में अपना व्यापार बढ़ाते रहे और भूमध्य सागर के इलाकों से ऐशो-आराम की महँगी-महँगी चीज़ें लंदन मँगाते रहे। यहाँ तक कि उन्होंने लबानोन से लकड़ी भी मँगवायी। उन्होंने थेम्स को यातायात का ज़रिया बनाकर इंग्लैंड के अंदरूनी इलाकों से भी लंदन तक माल पहुँचाया। इस तरह देखते-ही-देखते लंदन शहर व्यापार का एक खास केंद्र बन गया, जिसकी बड़ी-बड़ी सड़कें चारों दिशाओं में सूरज की किरणों की तरह फैलती गयीं।
विलियम द कॉनकरर का दबदबा
रोमी साम्राज्य के पतन के बाद, सा.यु. 410 में रोमी सेना ब्रिटेन छोड़कर चली गयी। अब लंदन को नज़रअंदाज़ कर दिया गया और ज़ाहिर है कि थेम्स के आस-पास का व्यापार भी ठंडा पड़ गया। रोमियों के जाने के बाद, ब्रिटेन-सैक्सन राजाओं के घराने की हुकूमत शुरू हुई, जिनकी किंग्सटन नाम के उपनिवेश में ताजपोशी की गयी। किंग्सटन, लंदन से 12 किलोमीटर पश्चिम की ओर ऐसी जगह बसा था, जहाँ थेम्स नदी को पैदल पार किया जा सकता था। मगर 11वीं सदी में नॉरमेन्डी के विलियम द कॉनकरर ने इंग्लैंड पर धावा बोलकर अँग्रेज़ों को हरा
दिया। सन् 1066 में वेस्टमिन्सटर में उसकी ताजपोशी की गयी जिसके बाद उसने लंदन में रोमियों की बनायी पुरानी दीवारों के अंदर ‘टावर ऑफ लंडन’ नाम का पुल बनवाया, ताकि वहाँ के व्यापार समुदाय को अपनी मुट्ठी में रख सके और व्यापार को बढ़ा सके, साथ-ही-साथ वहाँ के बंदरगाह पर भी अपना कब्ज़ा जमाए रख सके। इस तरह लंदन में एक बार फिर व्यापार फलने-फूलने लगा, और यहाँ की आबादी बढ़कर 30,000 तक पहुँच गयी।विलियम द कॉनकरर ने लंदन से पश्चिम की ओर कुछ 35 किलोमीटर दूर, चूना पत्थर की एक खड़ी चट्टान पर एक किला भी बनवाया। यह जगह आज विन्डसर कहलाती है। एक ज़माने में यहाँ सैक्सन राजाओं का महल हुआ करता था, मगर अब यह किला नॉरमन राजनिवास बन गया। यहाँ से थेम्स नदी के आस-पास का मनमोहक नज़ारा देखने को मिलता है। आगे चलकर विन्डसर किले में काफी कुछ जोड़ा और बदलाव किया गया और यह आज भी ब्रिटेन में सैर-सपाटे की एक मशहूर जगह है।
सन् 1209 में 30 साल से चली आ रही एक निर्माण-योजना अपने मुकाम पर पहुँची—लंदन की थेम्स नदी पर पत्थर का एक पुल बनकर तैयार हुआ, जो पूरे यूरोप में अपने किस्म का पहला पुल था। इस अनोखे पुल पर दुकानें, घर और यहाँ तक कि एक गिरजा-घर भी बनाया गया था। इसकी रक्षा करने के लिए दो उठाऊ पुल और दक्षिण की ओर, साउथवार्क में एक मीनार बनायी गयी थी। ये उठाऊ पुल ज़रूरत पर इस तरह उठाए जा सकते थे कि कोई भी मुख्य पुल पर जा ना सके।
इंग्लैंड के राजा जॉन (1167-1216) ने सन् 1215 में, विन्डसर के पास, थेम्स के किनारे बसे रनीमीड में मशहूर ‘मैग्ना कार्टा’ (अधिकार-पत्र) पर अपनी मुहर लगायी थी। इस पर मुहर लगाकर उसे ना चाहते हुए भी, अँग्रेज़ों के नागरिक अधिकारों, साथ ही लंदन शहर के अधिकारों को सहमति देनी पड़ी, और वहाँ के बंदरगाह और व्यापारियों को कारोबार करने की आज़ादी भी देनी पड़ी।
थेम्स नदी लंदन को मालामाल करती है
आनेवाली सदियों के दौरान थेम्स नदी पर कारोबार बढ़ता गया। इस बढ़ते व्यापार की वजह से, बंदरगाह की सुविधाएँ भी बढ़ने लगीं। दो सौ साल पहले थेम्स नदी में सिर्फ 600 नावों के लिए लंगर डालने की जगह थीं। मगर कभी-कभी 1,775 नावें बंदरगाह पर अपना माल उतारने के लिए रुकी रहती थीं। नावों की इस भीड़ की वजह से चोरियों का दौर शुरू हो गया, जो कि एक बड़ी समस्या बन गयी। रात के वक्त चोर नावों को लूटने के लिए उन्हें बाँध रखनेवाली रस्सियाँ काट देते थे, और अपनी
छोटी-छोटी नावों से माल की तस्करी करके कमाई करते थे। इस समस्या से निपटने के लिए, यहाँ नदी पुलिस दल को तैनात किया गया जो दुनिया का ऐसा पहला पुलिस दल था। यह पुलिस आज भी यहाँ काम करती है।बंदरगाह में सहूलियतों की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए और भी कुछ कदम उठाने की ज़रूरत थी। इसलिए 19वीं सदी में, इंग्लैंड के संसद ने घिरे हुए नौघाट (डॉक) बनाने की एक योजना को मंज़ूरी दी जो दुनिया का सबसे विशाल नौघाट था। ये नौघाट नदी के किनारों की निचली ज़मीन पर बनाए गए थे। सबसे पहले बनकर तैयार होनेवाले नौघाट थे, सर्रे कमर्शियल डॉक और ईस्ट इंडिया डॉक जिन्हें सन् 1800 के शुरूआती सालों में बनाया गया था। इसके बाद, सन् 1855 में रॉयल विक्टोरिया डॉक और सन् 1880 में रॉयल ऐलबर्ट डॉक बनकर तैयार हुआ।
सन् 1840 में मार्क आइ. और उसके बेटे इज़मबार्ड के. ब्र्यूनेल ने, जो इंजीनियर थे, थेम्स नदी के नीचे एक सुरंग बनाकर दोनों किनारों को जोड़ दिया। यह दुनिया की पहली ऐसी सुरंग थी। यह सुरंग 459 मीटर लंबी है और यह आज भी ग्रेट लंदन के भूमिगत रेलमार्ग का एक हिस्सा है। सन् 1894 में ‘टावर ब्रिज’ नाम के उठाऊ पुल का निर्माण पूरा हुआ, जिसे देखने के लिए आज पर्यटक खिंचे चले आते हैं। इस उठाऊ पुल के दोनों हिस्से 76 मीटर की चौड़ाई तक खुलते हैं, ताकि उसकी दोनों मीनारों के बीच से बड़े-बड़े जहाज़ आ-जा सकें। अगर आप करीब 300 सीढ़ियाँ चढ़कर पुल के ऊपर जाएँ तो आप इससे लगे एक तंग रास्ते पर पहुँचेंगे जहाँ से आपको नदी के आस-पास का खूबसूरत नज़ारा दिखेगा।
बीसवीं सदी तक, लंदन का बंदरगाह बड़े-बड़े मालवाहक जहाज़ों की बढ़ती तादाद को सँभालने के काबिल हो गया था। सन् 1921 में जब यहाँ का आखिरी नौघाट बनकर तैयार हुआ, तब तक लंदन “दुनिया का सबसे विशाल और रईस बंदरगाह बन चुका था।” इस आखिरी नौघाट का नाम राजा जॉर्ज पंचम के नाम पर पड़ा।
नदी सबको अपनी ओर खींचती है—महल, शाही लोग और धूम-धमाका
एक तरफ जहाँ लंदन शहर तरक्की करता गया, वहीं दूसरी ओर उसकी सड़कों की हालत हमेशा की तरह खस्ता और ऊबड़-खाबड़ ही रही। जाड़े में तो सफर करना दुश्वार हो जाता था। ऐसे में यातायात का सबसे तेज़ और कारगर ज़रिया था, थेम्स नदी जो बरसों से बहुत ही व्यस्त जलमार्ग रही थी। नाविक, सवारियों को अपनी नावों में बुलाने के लिए, थेम्स नदी के किनारे सीढ़ियों पर भीड़ लगाकर “ओर्स! ओर्स!” कहकर शोर मचाते थे। या फिर फ्लीट या वेलब्रुक नाम की बलखाती धाराओं पर नाव लिए सवारियों को पुकारते थे। आज ये दोनों धाराएँ नज़र नहीं आतीं, क्योंकि ये लंदन की सड़कों के नीचे कबकी दफन हो चुकी हैं। अब वे सड़कें उन धाराओं के नामों से जानी जाती हैं।
एक वक्त ऐसा आया जब लंदन दिखने में बिलकुल वेनिस शहर जैसा लगता था, क्योंकि यहाँ के आलीशान महलों के सीढ़ीदार बरामदे सीधे नदी तक फैले हुए थे। थेम्स नदी के किनारे बसना, अब शाही लोगों के लिए शानो-शौकत की बात हो गयी थी, जैसा कि ग्रीनविच, वाइटहॉल और वेस्टमिन्सटर महलों को देखकर पता चलता है। इसी तरह, हैम्पटन कोर्ट भी इंग्लैंड के महाराजाओं और रानियों का घर रहा है, और नदी से थोड़ी दूरी पर बसा विन्डसर किला तो आज भी एक शाही रिहाइश है।
सन् 1717 में जब राजा जॉर्ज प्रथम और दूसरे शाही लोग थेम्स नदी पर नाव में पिकनिक के लिए आए, तो राजा को खुश करने के लिए एक संगीत बजाया गया, जिसे संगीतकार जॉर्ज फ्रीडरिक हैंडल ने खास इस मौके के लिए रचा था। उस संगीत का नाम था, “वॉटर म्यूज़िक” (पानी पर संगीत)। उस ज़माने का एक अखबार कहता है: राजा की शाही नाव के साथ “इतनी सारी नावें तैर रही थीं, मानो नदी में नावों का मेला लगा हो।” शाही नाव की पासवाली नाव में सवार 50 संगीतकार हैंडल का संगीत बजा रहे थे। उन्होंने वेस्टमिन्सटर से चेल्सी तक, आठ किलोमीटर का सफर तय करते हुए यह संगीत कुल मिलाकर तीन बार सुनाया।
एक नदी जो मन बहलाती है
जब तक सन् 1740 के दशक में वेस्टमिन्सटर पुल नहीं बना, तब तक थेम्स को पैदल पार करने का एकमात्र ज़रिया था,
लंदन ब्रिज, जिसकी बाद में मरम्मत की गयी और आखिरकार 1820 के दशक में उसे बिलकुल नया रूप दिया गया। पत्थर के बने पुराने लंदन ब्रिज के 19 मेहराबों को जिन खंभों पर टिकाया गया था, उनकी वजह से थेम्स नदी का बहाव अकसर बहुत धीमा हो जाता था। इसलिए लंडन ब्रिज के 600 साल के इतिहास के दौरान, यह नदी आठ से भी ज़्यादा बार जमकर बर्फ बन गयी थी। जब भी ऐसा होता, तो नदी के ऊपर बड़े-बड़े “बर्फीले मेले” लगाए जाते थे, जहाँ मन-बहलाव के लिए मनोरंजक कार्यक्रम रखे जाते थे। बड़े जानवर भूने जाते थे और शाही लोग वहाँ दावत का मज़ा लेते थे। ग्राहक ऐसी किताबों और खिलौनों पर टूट पड़ते थे, जिन पर लिखा होता था, “थेम्स पर खरीदा हुआ।” यहाँ तक कि खबरनामे और प्रभु की प्रार्थना की कॉपियाँ छापने के लिए, बर्फ की चादर पर छपाई मशीनें लगा दी जाती थीं!आज के ज़माने में, हर साल वसंत के मौसम में, यहाँ नावों की रेस रखी जाती है, जिसमें ऑक्सफर्ड और कैमब्रिज विश्वविद्यालयों के बीच जमकर मुकाबला होता है। पटनी से लेकर मोर्टलेक तक, थेम्स के किनारों पर भीड़-की-भीड़ जमा हो जाती है और जब हर नाव में बैठा आठ नाविकों का दल, 20 मिनट से कम समय के अंदर 7 किलोमीटर की दूरी तय करता है, तो भीड़ चिल्ला-चिल्लाकर उनका हौसला बढ़ाती है। पहली रेस सन् 1829 में हेनली नाम के शहर के पास रखी गयी थी। पर कुछ समय बाद, यह रेस वहाँ से थोड़ी दूर रखी जाने लगी और हेनली में रॉयल रेगाटा नाम की एक दूसरी रेस रखी जाने लगी, जो पूरे यूरोप में सबसे पुरानी और सबसे जानी-पहचानी नावों की रेस बन गयी है। करीब 1600 मीटर की इस रेस में दुनिया-भर के मशहूर नाविक (स्त्री-पुरुष दोनों) हिस्सा लेने के लिए आते हैं। गर्मियों की यह मशहूर रेगाटा रेस अब फैशनप्रिय लोगों के लिए एक खास आकर्षण बन गयी है।
ब्रिटेन की एक गाइड किताब कहती है कि “थेम्स नदी इंग्लैंड के जिन दूर-दराज़ इलाकों से गुज़रती है, वहाँ छोटी-छोटी पहाड़ियों, हरे-भरे पेड़ों, खुले मैदानों, सुंदर-सुंदर घरों और कसबों और छोटे-छोटे शहरों का मनमोहक नज़ारा देखने को मिलता है। . . . नदी के किनारे पर कई सड़कें हैं, पर कुछ जगह ऐसी हैं जहाँ सड़कें ज़्यादा दूर तक नदी के साथ-साथ नहीं चलतीं। ऐसी जगहों पर पैदल चलने के लिए रास्ते बनाए गए हैं। इसलिए गाड़ी पर जाने से भले ही कसबों के अंदर से होते हुए कोई नदी को निहार पाए, मगर खामोश बहती इस नदी की सुंदरता का असली मज़ा तभी लिया जा सकता है जब कोई नाव की सवारी करे या किनारे-किनारे पैदल चले।”
क्या आप घूमने के लिए इंग्लैंड जाने की सोच रहे हैं? तो थेम्स नदी के यहाँ टहलने और उसकी दिलचस्प कहानी जानने के लिए समय ज़रूर निकालिए। नदी जहाँ शांत इलाके में शुरू होती है, वहाँ से लेकर उसके मुहाने में होनेवाली हलचल तक देखने, करने और सीखने के लिए बहुत कुछ है! ‘ओल्ड फादर थेम्स’ से मिलकर तो देखिए, आपकी उम्मीद बेकार नहीं जाएगी! (g 2/06)
[फुटनोट]
^ पैरा. 5 लंदन नाम लातीनी शब्द ‘लौन्डीनियुम’ से निकला है। मगर ये दोनों शब्द शायद केल्टिक भाषा के इन दो शब्दों से लिए गए थे, लिन और डीन। इनको जोड़ने से यह मतलब निकलता है, “तालाब के पास बसा नगर [या गढ़]।”
[पेज 25 पर बक्स]
साहित्य में थेम्स का ज़िक्र
जेरोम के. जेरोम ने अपनी अँग्रेज़ी किताब एक नाव में तीन आदमी में थेम्स के आस-पास के शांत माहौल को बखूबी कागज़ पर उतारा है। यह किताब उन तीन दोस्तों की कहानी बताती है, जो अपने कुत्ते के साथ, किंग्सटन अपॉन थेम्स से ऑक्सफर्ड तक नाव में सैर करते हैं। यह किताब सन् 1889 में लिखी गयी थी, और इसका कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है। आज की तारीख तक यह किताब “हास्य रचनाओं की एक उम्दा मिसाल” मानी जाती है।
द विन्ड इन द विलोज़ एक और जानी-मानी कहानी है, जिसे बच्चे-बड़े दोनों बेहद पसंद करते हैं। इसे सन् 1908 में केनेथ ग्रेअम ने लिखकर पूरा किया था, जो थेम्स के किनारे पैन्ग्बर्न नाम के कसबे में रहता था। यह थेम्स नदी में या उसके तट पर रहनेवाले जानवरों के बारे में एक काल्पनिक कहानी है।
[पेज 25 पर बक्स]
राजा और थेम्स
राजा जेम्स प्रथम 17वीं सदी के शुरूआती दौर में इंग्लैंड का राजा था। एक बार उसने लंदन की नगरपालिका से 20,000 पाउँड की माँग की थी। जब नगर के लॉर्ड मेयर ने इनकार कर दिया, तो राजा ने गुस्से के मारे यह धमकी दी: “मैं तुम्हें और तुम्हारे शहर को हमेशा के लिए बरबाद करके रख दूँगा। मैं अपने दरबार और अपना संसद यहाँ से हटाकर विनचेस्टर या ऑक्सफर्ड ले जाऊँगा और वेस्टमिन्सटर को वीराना बना दूँगा, फिर सोचो तुम्हारी क्या हालत होगी!” इस पर मेयर ने जवाब दिया: “महाराज चाहे कुछ भी कर लें, मगर लंदन के व्यापारियों के पास उम्मीद का एक चिराग है जिसे कभी बुझाया नहीं जा सकता: महाराज थेम्स को अपने साथ नहीं ले जा सकेंगे।”
[चित्र का श्रेय]
From the book Ridpath’s History of the World (Vol. VI)
[पेज 22 पर नक्शा]
(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)
इंग्लैंड
लंदन
थेम्स नदी
[चित्र का श्रेय]
नक्शा: Mountain High Maps® Copyright © 1997 Digital Wisdom, Inc.
[पेज 22, 23 पर तसवीर]
लंदन के वेस्टमिन्सटर का बिग बेन और संसद के भवन
[पेज 23 पर तसवीर]
पत्थर का बना लंदन ब्रिज, सन् 1756
[चित्र का श्रेय]
अँग्रेज़ी किताब पुराना और नया लंदन से: A Narrative of Its History, Its People, and Its Places (Vol. II)
[पेज 24 पर तसवीर]
सन् 1803 की इस तसवीर में थेम्स नदी और बंदरगाह पर खड़े सैकड़ों जहाज़ दिखाए गए हैं
[चित्र का श्रेय]
Corporation of London, London Metropolitan Archive
[पेज 24, 25 पर तसवीरें]
सन् 1683 के बर्फीले मेले की एक तसवीर
[चित्र का श्रेय]
अँग्रेज़ी किताब पुराना और नया लंदन से: A Narrative of Its History, Its People, and Its Places (Vol. III)