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हमारा बिखरा परिवार फिर एक हो गया

हमारा बिखरा परिवार फिर एक हो गया

हमारा बिखरा परिवार फिर एक हो गया

लाह्स और यूडिट वॆस्टरगार की ज़ुबानी

डैनमार्क के शांत शहर में एक ऐसा घर है जिसमें एक खुशहाल परिवार रहता है। उस घर के सामने बहुत-ही सुंदर बगीचा है। और घर के अंदर आराम से रहने के लिए सब सहूलियतें मौजूद हैं। घर की दीवार पर हँसते हुए हट्टे-कट्टे तीन बच्चों की एक बड़ी तस्वीर लटकी हुई है।

आज उस परिवार में पति-पत्नी का जोड़ा रह रहा है। पति का नाम लाह्स है और वह यहोवा के साक्षियों की कलीसिया में एक प्राचीन है। उसकी पत्नी का नाम यूडिट है और वह एक पायनियर (फुल-टाइम सेवक) है। हालाँकि आज ये दोनों एक सुखी जीवन जी रहे हैं। मगर हालात हमेशा ऐसे नहीं थे। एक वक्‍त ऐसा भी था कि लाह्स और यूडिट एक-दूसरे से नफरत करने लगे थे। और अंजाम यह हुआ कि दोनों में तलाक हो गया। बच्चों को अपने पापा से जुदा होना पड़ा। खुशियों से भरा परिवार बिखर गया।

यह परिवार दोबारा एक कैसे हुआ? फले-फूले परिवार में लाह्स और यूडिट ने कहाँ गलती की? उन्होंने अपनी गलती कैसे सुधारी? इन सवालों के जवाब देने में लाह्स और यूडिट को कोई एतराज़ नहीं है। उन्हें लगता है कि उनके साथ जो हुआ वह जानकर दूसरों की मदद हो सकती है। लाह्स और यूडिट अपनी कहानी खुद सुनाते हैं, आइए उनकी सुनते हैं।

एक अच्छी शुरूआत

लाह्स: यूडिट से मेरी शादी अप्रैल 1973 में हुई थी। हम दोनों बहुत खुश थे, मानो सारी दुनिया की खुशियाँ हमारी झोली में डाल दी गईं थीं। हमें लगता ज़िंदगी यूँ ही हँसते-हँसते गुज़र जाएगी। अब तक न तो हमने कभी बाइबल पढ़ी थी और न ही यहोवा के साक्षियों से मिले थे। फिर भी हमारा विश्‍वास था कि दुनिया ज़रूर सुख का बसेरा बन सकती है। इसलिए हम राजनीतिक कामों में जुट गए। फिर हमारे तीन हट्टे-कट्टे बेटे पैदा हुए जिससे हमारी खुशियों में चार-चाँद लग गए। हमने अपने बेटों का नाम मार्टिन, टॉमस और योनास रखा।

यूडिट: मैं एक सरकारी दफ्तर में अफसर थी। और राजनीति के अलावा मज़दूर यूनियन के कामों में हिस्सा लेती थी। धीरे-धीरे मैं तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ती गई और मुझे ऊँचे पद मिलते गए।

लाह्स: जहाँ तक मेरी नौकरी का सवाल है, मैं एक बहुत बड़ी लेबर यूनियन पार्टी के लिए काम करता था, और वहाँ मुझे बहुत ऊँचा पद दिया गया था। हम दोनों कामयाबी की बुलंदियों को छू रहे थे।

रिश्‍तों में दरार

लाह्स: मैं और यूडिट एक ही राजनीतिक दल के लिए काम करते थे मगर हमारे काम अलग-अलग थे। हम अपने-अपने कामों में इतने मसरूफ रहने लगे कि एक-साथ बैठकर थोड़ा वक्‍त बिताना भी नामुमकिन हो गया। यहाँ तक कि अपने बेटों के लिए भी हमारे पास वक्‍त नहीं था। इसलिए हम उनकी देखभाल करने के लिए या तो किसी को घर पर छोड़कर जाते या बच्चों को क्रेश छोड़ आते। वक्‍त न होने की वज़ह से हमारा पारिवारिक जीवन उलट-पुलट हो गया था। जब हम दोनों घर पर होते तो अकसर हमारे बीच झगड़ा होता। रोज़-रोज़ की चिक-चिक से तंग आकर मैंने शराब पीना शुरू कर दिया।

यूडिट: इन सबके बावजूद भी हम एक-दूसरे से प्यार करते थे लेकिन हमारा प्यार बढ़ने के बजाय धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा था। हमारे बीच की दरार बढ़ती गई और अंजाम हमारे मासूम बच्चों को भुगतना पड़ा।

लाह्स: परिवार की खुशी बनाए रखने के लिए मैंने क्या नहीं किया। अपनी नौकरी छोड़ दी। यहाँ तक कि 1985 में, उस शहर को छोड़कर हम दूसरी जगह जा बसे। यहाँ आकर धीरे-धीरे हालात सुधरने लगे थे, मगर थोड़े समय बाद हम फिर अपने-अपने कामों में मसरूफ हो गए। आखिरकार, फरवरी 1989 में शादी के 16 साल बाद हमारा तलाक हो गया। हमारा परिवार टूट गया।

यूडिट: बिखरा परिवार और बच्चों की बुरी हालत देखकर मेरे दिल पर छुरियाँ चल रही थीं। हम एक-दूसरे से इतनी नफरत करने लगे थे कि तीनों बच्चों की परवरिश अकेले करना चाहते थे। अंत में फैसला अदालत में हुआ और तीनों बेटों की ज़िम्मेदारी मुझे सौंप दी गई।

लाह्स: तलाक से पहले, परिवार की सुख-शांति के लिए मैंने यूडिट के साथ एक बार परमेश्‍वर से प्रार्थना भी की थी। तब परमेश्‍वर के बारे में हमें बहुत कम मालूम था। हम ये भी नहीं जानते थे कि प्रार्थना के साथ-साथ हमें खुद को बदलने की ज़रूरत है। वरना तलाक की नौबत ही नहीं आती।

यूडिट: उस प्रार्थना का जवाब हमें एकदम से नहीं मिला इसलिए हमने सोचा कि परमेश्‍वर ने हमारी प्रार्थना नहीं सुनी। कुछ समय बाद असलियत हमारे सामने आ गई और हमें विश्‍वास हो गया कि परमेश्‍वर प्रार्थनाओं को सुनता है। और इसके लिए हम उसके शुक्रगुज़ार हैं।

अचानक लाह्स में तबदीली

लाह्स: तलाक के बाद मैं अकेला रहने लगा था। फिर कुछ ऐसा घटा कि मेरी ज़िंदगी ही बदल गई। एक दिन यहोवा के साक्षी मेरे घर आए। वे पहले भी बहुत बार हमारे घर आए थे। मगर हर बार मैं उन्हें भगा देता था। इस बार मैंने उनसे बात की और वे मुझे दो पत्रिकाएँ देकर चले गए। जब मैंने उन पत्रिकाओं को पढ़ा तो मुझे मालूम चला कि यहोवा के साक्षी परमेश्‍वर और उसके बेटे यीशु मसीह को मानते हैं। अब मुझे खुद पर बहुत हैरानी हो रही थी क्योंकि मुझे ये तक नहीं मालूम था कि साक्षी दरअसल क्रिस्चन (मसीही) हैं।

उसी दौरान मेरी मुलाकात एक औरत से हुई और हम दोनों एक-साथ रहने लगे। इत्तफाक से वह यहोवा की एक साक्षी रह चुकी थी। जब मैंने उससे कुछ सवाल पूछे तो उसने बाइबल खोल-खोलकर मेरे सवालों के जवाब दिखाए। जैसे कि परमेश्‍वर का नाम यहोवा है। और “यहोवा के साक्षी” “परमेश्‍वर के साक्षी” हैं।

फिर उस औरत ने मुझसे यहोवा के साक्षियों के सम्मेलन में होनेवाली पब्लिक टॉक को सुनने के लिए कहा। उस सम्मेलन में मैंने जो कुछ देखा उससे मेरे अंदर सच्चाई जानने की आग और ज़्यादा भड़क उठी। उसके बाद मैं किंगडम हॉल गया और वहाँ बाइबल स्टडी का समय तय हो गया। इस बात को समझने में मुझे ज़रा-भी देर नहीं लगी कि मैं गलत ज़िंदगी जी रहा था, फिर मैंने उस औरत को भी छोड़ दिया और अपने शहर लौटकर अकेला रहने लगा। अब मुझे थोड़ी झिझक हो रही थी। मगर इसके बावजूद मैं दोबारा यहोवा के साक्षियों से जाकर मिला और बाइबल स्टडी शुरू कर दी।

मेरे मन में कुछ शक बाकी थे। जैसे, परमेश्‍वर के सच्चे सेवक क्या सिर्फ यहोवा के साक्षी ही हैं? क्या बचपन से जो कुछ मुझे सिखाया गया था वह सब गलत था? इन सवालों का जवाब पाने के लिए मैं एक ऐडवेंटिस्ट चर्च के पादरी के पास गया क्योंकि मेरी परवरिश सैवेन्थ-डे ऐडवेंटिस्ट धर्म में हुई थी। पादरी मुझे बाइबल सिखाने के लिए तैयार हो गया। इस तरह मैं हर सोमवार यहोवा के साक्षियों से और हर बुधवार पादरी से बाइबल स्टडी करने लगा। मुझे इन दोनों धर्मों से खासकर चार बातें साफ-साफ जाननी थी। पहली, तीन परमेश्‍वर से मिलकर एक परमेश्‍वर बनने की शिक्षा। दूसरी कलीसिया कैसी होनी चाहिए। तीसरी यीशु का दोबारा आना। चौथी लोगों का दोबारा ज़िंदा होना। कुछ महीनों में मेरे सारे शक दूर हो गए। मैंने पाया कि सिर्फ उन चार बातों में ही नहीं बल्कि दूसरी बातों में भी सिर्फ यहोवा के साक्षियों की शिक्षाएँ पूरी तरह बाइबल पर आधारित हैं। इसका नतीजा यह हुआ कि मैं खुशी-खुशी कलीसिया के सब कामों में भाग लेने लगा और जल्द ही अपना जीवन यहोवा परमेश्‍वर को समर्पित कर दिया। मई 1990 में मेरा बपतिस्मा हो गया।

यूडिट का क्या हुआ?

यूडिट: तलाक के बाद मैं दोबारा चर्च जाने लगी थी। जब मैंने सुना कि लाह्स एक यहोवा का साक्षी बन गया है तो मुझे बहुत गुस्सा आया। मैंने सोचा आखिर उसे अपना धर्म बदलने की क्या ज़रूरत थी। मैं कभी-कभी अपने सबसे छोटे बेटे योनास को जो अब दस साल का हो गया था अपने पापा से मिलने के लिए भेज देती थी। मगर इस बार मैंने लाह्स से साफ-साफ कह दिया कि योनास को अपने साथ साक्षियों की मीटिंग में हरगिज़ लेकर न जाए। इसके लिए लाह्स ने अदालत से इज़ाज़त माँगी मगर फैसला मेरे पक्ष में हुआ और इस बार भी जीत मेरी हुई।

इस दौरान मेरी दोस्ती एक आदमी से हो गई। साथ-ही मैं राजनीति और समाज-सेवा के कामों में पहले से भी ज़्यादा भाग लेने लगी थी। इसलिए हमारे बिखरे परिवार के दोबारा एक होने की बात बिलकुल नामुमकिन थी।

यहोवा के साक्षियों के खिलाफ सबूत इकट्ठे करने के लिए मैं चर्च के पादरी के पास गई। पादरी ने मुझसे साफ लफ्ज़ो में कह दिया कि वह साक्षियों के बारे में कुछ भी नहीं जानता, और न ही उसके पास साक्षियों की कोई पत्रिका या साहित्य है। उसने बस इतना ही कहा कि मेरी भलाई इसी में है कि मैं साक्षियों से दूर रहूँ। मगर पादरी की बातों का मुझ पर कोई असर नहीं पड़ा। फिर एक दिन ऐसा आया जिसके बारे में मैंने सपने में भी नहीं सोचा था, मुझे मजबूरन साक्षियों से बात करनी पड़ी।

मेरा भाई स्वीडन में रहता था और वह यहोवा का साक्षी बन गया था। उसने अपनी शादी के लिए मुझे किंगडम हॉल बुलाया था। शादी में मुझे साक्षियों को करीब से देखने और जानने का मौका मिला। इससे साक्षियों के बारे में मेरा नज़रिया ही बदल गया। मैं हमेशा सोचती थी कि वे बहुत ही नीरस लोग होंगे। लेकिन मेरा सोचना बिलकुल गलत साबित हुआ। मैं यह देखकर हैरान थी कि वे दयालु भी हैं और हँसते-हँसाते भी हैं।

उधर लाह्स बिलकुल बदल चुका था। वह एक ज़िम्मेदार आदमी बन गया था। बड़े प्यार और इज़्ज़त से बात करने लगा था, पहले की तरह ज़्यादा शराब नहीं पीता था, और बच्चों के साथ समय बिताता था। वह ऐसा आदमी बन गया था जिसे हर कोई प्यार करना चाहेगा। मेरी नज़र में एक अच्छे पति को जैसा होना चाहिए वो सब गुण उसमें मौजूद थे। मुझे खुद पर गुस्सा आता कि मैं अब क्यों उसकी पत्नी नहीं हूँ, मुझे यह चिंता खाए जा रही थी कि शायद एक दिन उसे कोई दूसरी औरत मिल जाएगी जिससे वह शादी कर लेगा!

तब मैंने एक चाल चली। मैंने योनास को लाह्स के पास रहने के लिए भेज दिया, और उसके बाद मैं इस बहाने से लाह्स के पास पहुँच गई कि मेरी दो बहनें अपने भानजे से मिलना चाहती हैं। अंत में एक पार्क में मिलना तय हुआ। मेरी बहनें योनास के साथ खेलने लगी फिर मैं और लाह्स, एक बैंच पर जाकर बैठ गए।

मैंने जैसे ही हमारे भविष्य के बारे में बात करने के लिए मुँह खोला, उसने फौरन अपनी जेब में से एक किताब निकाली और मेरे हाथों में दे दी। उस किताब का नाम था मेकिंग यॉर फैम्ली लाइफ हैप्पी। * उसने कहा कि मैं उन अध्यायों को पढ़ूँ जिनमें परिवार में पति-पत्नी की ज़िम्मेदारियों के बारे में बताया गया है। उसने ज़ोर देते हुए यह भी कहा कि मैं उस किताब में दी गई बाइबल की आयतों को भी पढ़ूँ।

जब हम दोनों खड़े हुए तो मैंने लाह्स का हाथ पकड़ना चाहा लेकिन उसने प्यार से इंकार कर दिया। मुझे इतना गुस्सा आया कि क्या बताऊँ। मगर बाद में मुझे ये एहसास हुआ कि लाह्स ने सही किया है। आखिर इसमें मेरी ही भलाई थी। दरअसल लाह्स मेरे साथ कोई भी नया रिश्‍ता जोड़ने से पहले, अपने धर्म के बारे में मेरी राय जानना चाहता था।

इन सब बातों की वज़ह से मैं अब साक्षियों के बारे में और ज़्यादा जानना चाहती थी। अगले ही दिन मैं जाकर एक यहोवा की साक्षी से मिली। वह और उसका पति मेरे घर आकर मुझे उनके धर्म के बारे में बताने के लिए तैयार हो गए। मेरे ढेर सारे सवालों के जवाब उन्होंने बाइबल से दिखाए। मैंने देखा कि जो कुछ यहोवा के साक्षी सिखाते हैं वह सब बाइबल से है। एक-के-बाद-एक विषय पर बातचीत करने के बाद मुझे कबूल करना पड़ा कि साक्षी ही सच्चाई सिखाते हैं।

मैंने इवैनजलिकल लूथरॆन चर्च से नाता तोड़ दिया और राजनीति के कामों से भी इस्तीफा दे दिया। लेकिन मेरे लिए सबसे मुश्‍किल काम था सिग्रॆट छोड़ना, लेकिन मैं उसे छोड़ने में कामयाब रही। अगस्त 1990 में मैंने बाइबल स्टडी करना शुरू कर दिया और अप्रैल 1991 में मैं बपतिस्मा लेकर एक यहोवा की साक्षी बन गई।

हमारी दूसरी शादी

यूडिट: बेशक हम अलग हो गए थे मगर बाइबल स्टडी करने और बाइबल की अच्छी शिक्षाओं पर चलने से हम अपने आप को बदल सके। आज हम दोनों यहोवा के साक्षी बन चुके हैं। अब भी हम एक-दूसरे से प्यार करते हैं लेकिन पहले से कहीं ज़्यादा। हम दोनों दोबारा शादी करने के लिए आज़ाद थे। और हमने यही किया। इस बार हमारी शादी यहोवा के साक्षियों के किंगडम हॉल में हुई।

लाह्स: आखिर जो नामुमकिन था वो मुमकिन हो गया। हमारा परिवार दोबारा एक हो गया! हमारी खुशी का ठिकाना नहीं, बयान करना चाहते हैं पर होता नहीं।

यूडिट: अपनी ज़िंदगी में वह सुनहरा दिन मैं कभी नहीं भूला पाऊँगी। उस दिन हम खुशी से इतने झूम रहे थे मानो सातवें आसमान में उड़ रहे हों। हमारे तीनों बेटे, नए-पुराने दोस्त और रिश्‍तेदार सभी हमारी खुशी में शरीक हुए। हमारे वो मेहमान जो हमारी पहली शादी से जानते थे, हमें दोबारा एक होता देखकर बहुत खुश हो गए और यहोवा के साक्षियों के बीच हँसी-खुशी देखकर दंग रह गए।

हमारे प्यारे बेटे

लाह्स: हमारे बपतिस्मा लेने के बाद हमारे दो बेटों ने भी अपनी ज़िंदगी यहोवा को समर्पित कर दी जिससे हमें बहुत खुशी हुई।

यूडिट: छोटी उम्र से ही योनास को लाह्स ने बाइबल सिखानी शुरू कर दी थी, और तभी से योनास को सच्चाई से बेहद प्यार हो गया था। योनास सिर्फ दस साल का था जब वह अपने पापा के साथ रहना चाहता था। उसने कहा “पापा बाइबल के मुताबिक चलते हैं।” चौदह साल में ही योनास ने बपतिस्मा ले लिया था। अब वह अपनी पढ़ाई पूरी कर चुका है और आज रेग्यूलर पायनियरिंग कर रहा है।

लाह्स: हमारे सबसे बड़े बेटे मार्टिन ने जब हमें शादी के बंधन में दोबारा बंधते हुए देखा तो उसने हमारे धर्म के बारे में गंभीरता से सोचा। वह अपने पैरों पर खड़ा हो चुका था इसलिए दूसरे शहर में जाकर बस गया। दो साल पहले मार्टिन ने यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल स्टडी शुरू कर दी थी। और पाँच महीने बाद ही उसने बपतिस्मा ले लिया था। आज मार्टिन 27 साल का है। एक मसीही के तौर पर आगे वह बहुत कुछ करना चाहता है और वही करने में लगा हुआ है।

हमारा दूसरा बेटा, टॉमस सच्चाई में नहीं है। फिर भी उसके साथ हमारा बहुत अच्छा रिश्‍ता है और हम उसे बेहद प्यार करते हैं। हमें एक होता हुआ देख उसे बहुत खुशी हुई। सभी यही कहते हैं कि लाह्स और यूडिट का मिलन इसलिए मुमकिन हुआ क्योंकि उन्होंने बाइबल के नियमों के मुताबिक जीना शुरू किया। यह कितनी आशीष की बात है कि हम एक छत के नीचे, अपने तीन बेटों के साथ इकट्ठा हो पाते हैं।

हमारी आज की ज़िंदगी

लाह्स: हम अपनी बड़ाई नहीं कर रहे, मगर यह सच है कि हमने बहुत कुछ सीखा है। हमने यह जाना कि एक सुखी वैवाहिक जीवन के लिए पति-पत्नी में प्यार और आदर होना बहुत ज़रूरी है। आज हमारे विवाह की बुनियाद पहले जैसी नहीं है। आज मैं और यूडिट सर्वोच्च अधिकारी यहोवा परमेश्‍वर को मानते हैं। और उसी के नियमों के मुताबिक जीते हैं। यूडिट और मुझे अब महसूस होता है कि हम वाकई शादी के बंधन में बंधे हुए हैं। और अब हमें कोई जुदा नहीं कर सकेगा।

यूडिट: सुखी परिवार के लिए परमेश्‍वर यहोवा ने इंसान को जो नियम दिए हैं वही सबसे बेहतरीन हैं। हमें लगता है कि इन नियमों पर चलनेवालों में हम एक जीता-जागता उदाहरण हैं।

[फुटनोट]

^ यह किताब सन्‌ 1978 में वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रॆक्ट सोसाइटी ने प्रकाशित की थी। अब यह किताब दोबारा नहीं छापी जाती।

[पेज 22 पर तसवीर]

सन्‌ 1973 में पहली शादी के वक्‍त लाह्स और यूडिट

[पेज 23 पर तसवीर]

तीन भाइयों ने अपना सुखी परिवार खोकर फिर पा लिया

[पेज 25 पर तसवीर]

बाइबल के नियमों पर चलने से, लाह्स और यूडिट फिर एक हो गए