पवित्र शास्त्र क्या कहता है?
क्रूस
बहुत-से लोग सोचते हैं कि क्रूस ईसाई धर्म की निशानी है। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि इसे न तो पहनना चाहिए और न ही घर में या चर्च में लगाना या रखना चाहिए।
क्या यीशु की मौत क्रूस पर हुई थी?
लोग क्या कहते हैं?
रोम के लोगों ने यीशु को एक क्रूस पर लटकाया था, जो लकड़ी के दो टुकड़ों से बना हुआ था।
पवित्र शास्त्र क्या कहता है?
यीशु को “एक पेड़ पर लटका कर” मार डाला गया था। (प्रेषितों 5:30, हिंदी ईज़ी-टू-रीड वर्शन) यीशु की मौत जिस चीज़ पर हुई, उसके लिए बाइबल के लेखकों ने दो यूनानी शब्द इस्तेमाल किए। एक है, स्टौरोस और दूसरा, क्ज़ीलॉन। इन दोनों ही शब्दों का मतलब है, लकड़ी का एक टुकड़ा, न कि दो। क्रूसीफिक्सियॉन इन ऐन्टीक्विटी नाम की किताब में लिखा है कि यूनानी शब्द स्टौरोस का ‘आम तौर पर मतलब होता है, एक खंभा। इस शब्द के लिए “क्रूस” शब्द का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।’ प्रेषितों 5:30 में क्ज़ीलॉन शब्द इस्तेमाल हुआ है, जिसका मतलब है, ‘एक सीधी नोकदार बल्ली या काठ। इस पर रोम के लोग उस व्यक्ति को कीलों से ठोकते थे, जिसे मौत की सज़ा सुनायी जाती थी।’ *
जिस तरीके से यीशु को मारा गया, वह तरीका पुराने ज़माने के इसराएलियों को दिए एक कानून से मेल खाता है। वह कानून था, “अगर किसी आदमी ने ऐसा पाप किया है जिसकी सज़ा मौत है और तुम उसे मार डालने के बाद काठ पर लटका देते हो, तो . . . हर वह इंसान जो काठ पर लटकाया जाता है वह परमेश्वर की तरफ से शापित ठहरता है।” (व्यवस्थाविवरण 21:22, 23) इस कानून का ज़िक्र करते हुए यीशु के एक शिष्य पौलुस ने लिखा कि यीशु “खुद हमारी जगह शापित बना क्योंकि लिखा है, ‘हर वह इंसान जो काठ [क्ज़ीलॉन] पर लटकाया जाता है वह शापित है।’” (गलातियों 3:13) पौलुस की बात से पता चलता है कि यीशु की मौत काठ पर हुई थी यानी लकड़ी के एक टुकड़े पर।
“उन्होंने उसे ही एक पेड़ पर लटका कर मार डाला।”—प्रेषितों 10:39, हिंदी ईज़ी-टू-रीड वर्शन।
क्या यीशु के शिष्य उपासना करने के लिए या मसीही धर्म की निशानी के तौर पर क्रूस इस्तेमाल करते थे?
पवित्र शास्त्र क्या कहता है?
बाइबल में ऐसा कहीं नहीं लिखा है कि पहली सदी में यीशु के शिष्यों ने धर्म की निशानी के तौर पर क्रूस का इस्तेमाल किया। लेकिन उस ज़माने में इसका इस्तेमाल रोम के लोग अपने देवताओं की निशानी के तौर पर करते थे। यीशु की मौत के करीब 300 साल बाद रोमी सम्राट कॉन्स्टेंटाइन ने क्रूस को अपनी सेना में प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल किया। इसके बाद क्रूस ईसाई चर्च की निशानी बन गया।
उस ज़माने में लोग अपने देवी-देवताओं की पूजा के सिलसिले में क्रूस का इस्तेमाल करते थे, तो क्या यीशु के शिष्यों ने सच्चे परमेश्वर की उपासना के लिए इसका इस्तेमाल किया होगा? नहीं। वे अच्छी तरह जानते थे कि परमेश्वर ने कभी नहीं चाहा कि उसके उपासक “किसी का प्रतीक” बनाएँ। साथ ही उन्हें आज्ञा दी गयी थी कि वे ‘मूर्तिपूजा से दूर भागें।’ (व्यवस्थाविवरण 4:15-19, हिंदी ईज़ी-टू-रीड वर्शन; 1 कुरिंथियों 10:14) दूसरी बात “परमेश्वर अदृश्य है,” उसे कोई इंसान देख नहीं सकता। इस वजह से पहली सदी के मसीही परमेश्वर की उपासना के लिए किसी चीज़ या निशानी का इस्तेमाल नहीं करते थे। इसके बजाय वे “पवित्र शक्ति” से यानी परमेश्वर की अदृश्य शक्ति के मार्गदर्शन में और “सच्चाई से” यानी बाइबल की शिक्षाओं के मुताबिक उसकी उपासना करते थे।—यूहन्ना 4:24.
“सच्चे उपासक पिता की उपासना पवित्र शक्ति और सच्चाई से करेंगे।”—यूहन्ना 4:23.
मसीहियों को यीशु मसीह का आदर कैसे करना चाहिए?
लोग क्या कहते हैं?
‘जिस चीज़ ने हमारे उद्धार में एक अहम भूमिका निभायी, उसके लिए हमारे दिल में खास आदर और श्रद्धा तो होनी ही चाहिए। जो किसी शख्स की मूरत या निशानी के लिए अपने दिल में श्रद्धा रखता है, वह उस शख्स के लिए भी श्रद्धा रखेगा, जिसकी वह मूरत या निशानी है।’—न्यू कैथोलिक इनसाइक्लोपीडिया।
पवित्र शास्त्र क्या कहता है?
मसीही प्रभु यीशु के बहुत एहसानमंद हैं क्योंकि उसकी कुरबानी की वजह से उन्हें पापों की माफी मिलती है, वे परमेश्वर से बेझिझक प्रार्थना कर सकते हैं और भविष्य में उन्हें हमेशा की ज़िंदगी मिल सकती है। (यूहन्ना 3:16; इब्रानियों 10:19-22) मसीही कैसे दिखा सकते हैं कि वे इस कुरबानी के लिए एहसानमंद हैं? उनसे यह नहीं कहा गया कि इसके लिए वे यीशु की मूरत बनाकर उसे पूजें या सिर्फ यह कहें कि उन्हें यीशु पर विश्वास है। बाइबल कहती है, “विश्वास कामों के बिना मरा हुआ है।” (याकूब 2:17) इसका मतलब है कि मसीहियों को अपने कामों से ज़ाहिर करना चाहिए कि उन्हें यीशु पर विश्वास है। वे यह कैसे कर सकते हैं?
बाइबल में लिखा है, ‘मसीह का प्यार हमें मजबूर करता है क्योंकि हमने यह निचोड़ निकाला है: एक आदमी सबके लिए मरा। जो जीते हैं वे अब से खुद के लिए न जीएँ, बल्कि उसके लिए जीएँ जो उनके लिए मरा और ज़िंदा किया गया।’ (2 कुरिंथियों 5:14, 15) यीशु का प्यार बेमिसाल है और यही प्यार मसीहियों को मजबूर करता है कि वे उसके नक्शे-कदम पर चलने के लिए अपनी ज़िंदगी में बदलाव करें। ऐसा करके वे यीशु का आदर करते हैं और इस तरह आदर करना किसी प्रतीक या निशानी के इस्तेमाल से कहीं बेहतर है!
“मेरे पिता की मरज़ी यह है कि जो कोई बेटे को स्वीकार करता है और उस पर विश्वास करता है, उसे हमेशा की ज़िंदगी मिले।”—यूहन्ना 6:40.
^ पैरा. 8 ई. डब्ल्यू. बुलिंगर की लिखी किताब ए क्रिटिकल लेक्सीकन एण्ड कॉनकॉर्डन्स टू दी इंग्लिश एण्ड ग्रीक न्यू टेस्टामेन्ट, ग्यारहवाँ संस्करण, पेज 818-819.