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अध्ययन लेख 30

धर्म को न माननेवाले लोगों को सच्चाई सिखाइए

धर्म को न माननेवाले लोगों को सच्चाई सिखाइए

“मैं सब किस्म के लोगों के लिए सबकुछ बना ताकि मैं हर मुमकिन तरीके से कुछ लोगों का उद्धार करा सकूँ।”​—1 कुरिं. 9:22.

गीत 82 ‘तुम्हारी रौशनी चमके’

लेख की एक झलक *

1. पिछले कुछ सालों में क्या बदलाव देखा गया है?

हज़ारों साल से यह देखा गया है कि दुनिया के ज़्यादातर लोग किसी-न-किसी धर्म को मानते हैं। मगर पिछले कुछ सालों से हालात बदल रहे हैं। अब धर्म पर आस्था न रखनेवालों की गिनती बढ़ती जा रही है। दरअसल कुछ देशों में तो ज़्यादातर लोगों का कहना है कि वे किसी धर्म या ईश्‍वर को नहीं मानते। *​—मत्ती 24:12.

2. आजकल क्यों बहुत-से लोग किसी धर्म या ईश्‍वर को नहीं मानते?

2 ऐसा क्यों है कि धर्म में आस्था न रखनेवालों की गिनती बढ़ती जा रही है? शायद कुछ लोग मौज-मस्ती में डूबे रहते हैं या ज़िंदगी की चिंताओं में उलझे रहते हैं, जिस वजह से वे धर्म के बारे में सोच ही नहीं पाते। (लूका 8:14) कुछ लोग नास्तिक हो गए हैं। कई लोग ईश्‍वर को तो मानते हैं, लेकिन वे सोचते हैं, ‘धर्म का विज्ञान और तर्क के साथ कोई मेल नहीं है, आज के ज़माने में धर्म की बातों पर चलने का कोई फायदा नहीं है।’ शायद वे अपने दोस्तों और शिक्षकों से या फिर जानी-मानी हस्तियों से अकसर सुनते हों कि जीवन की शुरूआत विकासवाद से हुई है, मगर परमेश्‍वर पर विश्‍वास करने की ठोस वजह शायद ही उन्हें सुनने को मिलती हो। कई लोग ऐसे हैं, जो दौलत और ताकत के भूखे धर्म गुरुओं से नफरत करते हैं। कुछ देशों में सरकार ऐसे नियम बनाती है, जिस वजह से लोग खुलकर ईश्‍वर की उपासना नहीं कर पाते।

3. इस लेख में हम खास तौर से क्या सीखेंगे?

3 यीशु ने हमें आज्ञा दी है कि हम ‘सब राष्ट्रों के लोगों को उसका चेला बनना सिखाएँ।’ (मत्ती 28:19) जो लोग ईश्‍वर को नहीं मानते, उन्हें हम परमेश्‍वर से प्यार करना और मसीह के चेले बनना कैसे सिखा सकते हैं? हमें यह समझना चाहिए कि एक इंसान जहाँ पला-बढ़ा होता है, उसके आधार पर तय होता है कि हमारा संदेश सुनकर उसका रवैया कैसा होगा। उदाहरण के लिए, यूरोप के लोगों का रवैया, शायद उन लोगों के रवैए से अलग हो, जो एशिया के रहनेवाले हैं। ऐसा क्यों? वह इसलिए कि यूरोप के लोग बाइबल के बारे में थोड़ा-बहुत जानते हैं और यह भी जानते हैं कि कुछ लोगों का मानना है कि सबकुछ ईश्‍वर ने बनाया है। लेकिन एशिया के ज़्यादातर लोग बाइबल के बारे में न के बराबर जानते हैं और शायद वे किसी सृष्टिकर्ता पर विश्‍वास नहीं करते। इस लेख में हम खास तौर से सीखेंगे कि हम प्रचार में लोगों को बाइबल की सच्चाई पर यकीन कैसे दिला सकते हैं, फिर चाहे वे किसी भी देश के हों या उनकी परवरिश कैसे भी हुई हो।

सही सोच रखिए

4. हम सही नज़रिया क्यों रख सकते हैं?

4 सही नज़रिया रखिए।  हर साल ऐसे लोग भी यहोवा के साक्षी बनते हैं, जो पहले किसी धर्म को नहीं मानते थे। इनमें से कई लोग पहले से ही ऊँचे नैतिक स्तरों पर चल रहे थे और उन्हें धर्म में पाखंड या कपट से नफरत थी। वहीं कुछ लोग नैतिक स्तरों को नहीं मानते थे और कइयों को बुरी आदतें थीं, जो उन्हें छोड़नी थीं। हम यकीन रख सकते हैं कि यहोवा की मदद से हमें ऐसे लोग ज़रूर मिलेंगे, जो “हमेशा की ज़िंदगी पाने के लायक अच्छा मन रखते” हैं।​—प्रेषि. 13:48; 1 तीमु. 2:3, 4.

जो लोग बाइबल को नहीं मानते, उन्हें गवाही देते वक्‍त अपने तरीके में फेरबदल कीजिए (पैराग्राफ 5-6 देखें) *

5. अकसर लोग किस वजह से हमारा संदेश सुनते हैं?

5 प्यार और समझदारी से पेश आइए।  कई बार लोग हमारे संदेश में दिलचस्पी इसलिए नहीं लेते कि हम उन्हें क्या  बता रहे हैं, बल्कि इसलिए लेते हैं कि हम किस तरीके  से बता रहे हैं। जब हम लोगों से प्यार और समझदारी से बात करते हैं और उनमें सच्ची दिलचस्पी लेते हैं, तो उन्हें अच्छा लगता है। हमारी बात सुनने के लिए हम उनसे कोई ज़बरदस्ती नहीं करते। इसके बजाय हम यह समझने की कोशिश करते हैं कि धर्म के बारे में वे जो राय रखते हैं, वह क्यों रखते हैं। जैसे, कुछ लोग धर्म के बारे में अनजान लोगों से बात करना पसंद नहीं करते। दूसरे ऐसे हैं, जिन्हें लगता है कि किसी व्यक्‍ति से ईश्‍वर के बारे में उसकी राय पूछना गलत है। कुछ और लोग नहीं चाहते कि लोग उन्हें बाइबल पढ़ते देखें, खासकर यहोवा के साक्षियों के साथ। वजह चाहे जो भी हो, हमें लोगों की भावनाएँ समझनी चाहिए और फिर समझदारी से पेश आना चाहिए।​—2 तीमु. 2:24, फु.

6. (क) प्रेषित पौलुस लोगों के हिसाब से अपनी बातचीत करने का तरीका कैसे बदल देता था? (ख) हम उसकी मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

6 कई लोग “बाइबल,” “सृष्टि,” “परमेश्‍वर” या “धर्म” जैसे शब्द सुनकर बात करना पसंद नहीं करते। ऐसे में हम क्या कर सकते हैं? ज़रा प्रेषित पौलुस की मिसाल पर ध्यान दीजिए। जब वह यहूदियों से बात करता था, तो शास्त्र से तर्क करता था। लेकिन जब अरियुपगुस में उसने यूनानी दार्शनिकों से बात की, तो सीधे-सीधे बाइबल का ज़िक्र नहीं किया। (प्रेषि. 17:2, 3, 22-31) हम पौलुस की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं? हम बातचीत करने के अपने तरीके में फेरबदल कर सकते हैं। अगर हम ऐसे व्यक्‍ति से मिलते हैं, जो बाइबल को नहीं मानता, तो अच्छा होगा कि उससे बात करते समय सीधे-सीधे बाइबल का ज़िक्र न करें। अगर हमें एहसास होता है कि सामनेवाला नहीं चाहता कि लोग उसे बाइबल पढ़ते देखें, तो हम लोगों का ध्यान खींचे बिना उसे मोबाइल या टैबलेट से बाइबल की आयत दिखा सकते हैं।

7. जैसे 1 कुरिंथियों 9:20-23 में बताया गया है, पौलुस की मिसाल पर चलने के लिए शायद हमें क्या करना पड़े?

7 लोगों को समझिए और उनकी सुनिए।  हमें प्रचार में यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि लोग अपनी जो राय बताते हैं, उसकी वजह क्या है। (नीति. 20:5) पौलुस के उदाहरण पर एक बार फिर ध्यान दीजिए। वह यहूदियों के बीच पला-बढ़ा था। लेकिन जब उसे गैर-यहूदियों को प्रचार करना था, तो उसे अपना तरीका बदलना था। वह इसलिए कि गैर-यहूदी यहोवा और शास्त्र के बारे में कुछ नहीं जानते थे। हमें भी कुछ ऐसा करना पड़ सकता है। हमें अपने इलाके के लोगों को समझने और उनसे हमदर्दी रखने की कोशिश करनी चाहिए। इसके लिए शायद हमें कुछ खोजबीन करनी पड़े या अनुभवी भाई-बहनों से बात करनी पड़े।​—1 कुरिंथियों 9:20-23 पढ़िए।

8. बाइबल के बारे में बातचीत शुरू करने का एक तरीका क्या है?

8 हमारा लक्ष्य है, “योग्य” लोगों को ढूँढ़ना। (मत्ती 10:11) यह लक्ष्य पूरा करने के लिए ज़रूरी है कि हम जिस विषय पर बात करनेवाले हैं, उस बारे में लोगों की राय पूछें और फिर उनकी बात ध्यान से सुनें। इंग्लैंड में एक भाई अलग-अलग विषयों पर लोगों से उनकी राय पूछता है। जैसे, शादीशुदा ज़िंदगी को खुशहाल कैसे बनाएँ, बच्चों की परवरिश कैसे करें या जब हमारे साथ नाइंसाफी हो, तब क्या करें। उनकी बात सुनने के बाद वह कहता है, “ध्यान दीजिए कि करीब 2,000 साल पहले इस विषय पर क्या सलाह दी गयी है।” इस तरह शब्द “बाइबल” का ज़िक्र किए बिना ही वह अपने फोन में विषय के मुताबिक उन्हें एक आयत दिखाता है।

ऐसा क्या करें कि हमारा संदेश लोगों का दिल छू जाए?

9. जो लोग ईश्‍वर के बारे में बात करना पसंद नहीं करते, उनसे हम बातचीत कैसे शुरू कर सकते हैं?

9 जो लोग ईश्‍वर के बारे में बात करना पसंद नहीं करते, उनसे हम ऐसे विषयों पर बात कर सकते हैं, जिनमें उन्हें दिलचस्पी है। इस तरह हमारा संदेश उनके दिल को छू सकता है। उदाहरण के लिए, कई लोग प्रकृति की चीज़ें देखकर हैरान रह जाते हैं। उनसे हम कुछ इस तरह बात शुरू कर सकते हैं, “शायद आप जानते होंगे कि वैज्ञानिकों ने बहुत-से आविष्कार प्रकृति की चीज़ों को देखकर किए। जैसे, उन्होंने कानों का अध्ययन करके माइक्रोफोन का आविष्कार किया और आँखों का अध्ययन करके कैमरा बनाया। जब आप प्रकृति की चीज़ें देखते हैं, तो आपको क्या लगता है? क्या ये चीज़ें अपने आप वजूद में आ गयीं? या किसी ने इन्हें रचा है?” उनकी बात ध्यान से सुनने के बाद हम कह सकते हैं, “कानों और आँखों की जटिल बनावट क्या इस बात का सबूत नहीं कि इसके पीछे किसी रचनाकार का हाथ है? मैं एक प्राचीन कवि की बात पढ़कर हैरान रह गया। उसने कहा, ‘जिस परमेश्‍वर ने कान बनाया है, क्या वह सुन नहीं सकता? जिस परमेश्‍वर ने आँख रची, क्या वह देख नहीं सकता? . . . वही परमेश्‍वर लोगों को ज्ञान देता है!’ कई वैज्ञानिक भी इस बात से सहमत हैं कि प्रकृति की चीज़ों को बनानेवाला कोई-न-कोई है।” (भज. 94:9, 10) इसके बाद हम JW लाइब्रेरी  से एक वीडियो दिखा सकते हैं। (मीडिया > इंटरव्यू और अनुभव > ज़िंदगी की शुरूआत के बारे में वे क्या सोचते हैं में देखें।) या फिर हम उन्हें जीवन की शुरूआत, पाँच सवाल​—जवाब पाना ज़रूरी  या वॉज़ लाइफ क्रिएटेड?  ब्रोशर दे सकते हैं।

10. जो लोग ईश्‍वर के बारे में बात करना नहीं चाहते, उनसे हम क्या कह सकते हैं?

10 बहुत-से लोग चाहते हैं कि आनेवाला कल अच्छा हो। लेकिन कई लोगों को डर है कि यह धरती तबाह हो जाएगी या आगे चलकर रहने लायक नहीं रहेगी। नॉर्वे का एक सफरी निगरान कहता है कि जो लोग ईश्‍वर के बारे में बात करना नहीं चाहते, वे अकसर दुनिया के हालात के बारे में बात करना पसंद करते हैं। वह लोगों से नमस्ते वगैरह करने के बाद कहता है, “आपको क्या लगता है, क्या भविष्य में दुनिया के हालात बेहतर होंगे? अगर हाँ, तो कौन ऐसा कर सकता है: सरकार, वैज्ञानिक या कोई और?” उनकी बात ध्यान से सुनने के बाद वह एक ऐसी आयत पढ़ता है या मुँह-ज़बानी बताता है, जिसमें अच्छे भविष्य के बारे में बताया गया है। कई लोग जब बाइबल से यह सुनते हैं कि धरती सदा कायम रहेगी और नेक इंसान इस पर हमेशा जीएँगे, तो उन्हें अच्छा लगता है और वे इस बारे में और जानना चाहते हैं।​—भज. 37:29; सभो. 1:4.

11. (क) लोगों से बात करने के लिए हमें अलग-अलग तरीके क्यों आज़माने चाहिए? (ख) जैसे रोमियों 1:14-16 में बताया गया है, हम पौलुस की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

11 हमें प्रचार में लोगों से बात करने के लिए अलग-अलग तरीके आज़माने चाहिए। वह इसलिए कि हर इंसान अपने आप में अलग होता है। जिस विषय में एक व्यक्‍ति को दिलचस्पी हो, शायद उसी विषय पर दूसरा व्यक्‍ति बिलकुल बात करना न चाहे। जैसे, कुछ लोगों को ईश्‍वर या बाइबल के बारे में बात करने से कोई एतराज़ नहीं होता, वहीं कुछ लोगों को शुरू-शुरू में आम विषयों पर बात करना अच्छा लगता है। हमें चाहे जैसे भी लोग मिलें, ज़रूरी बात यह है कि हम हर किस्म के लोगों को खुशखबरी सुनाएँ। (रोमियों 1:14-16 पढ़िए।) इस दौरान हम यह भी याद रखते हैं कि जो लोग नेकी से प्यार करते हैं, उनके दिलों में सच्चाई का बीज बढ़ानेवाला यहोवा ही है।​—1 कुरिं. 3:6, 7.

एशिया के लोगों से सच्चाई के बारे में कैसे बात करें?

राज के कई प्रचारक उन लोगों में निजी दिलचस्पी लेते हैं जो गैर-ईसाई देशों से हैं। वे उन्हें बाइबल की सलाह पढ़कर सुनाते हैं जो रोज़मर्रा ज़िंदगी में काम आ सकती है (पैराग्राफ 12-13 देखें)

12. हम एशिया के उन लोगों से बातचीत कैसे शुरू कर सकते हैं, जिन्होंने सृष्टिकर्ता के बारे में कभी सोचा ही नहीं?

12 पूरी दुनिया में बहुत-से भाई-बहन प्रचार में ऐसे लोगों से मिलते हैं, जो एशिया के अलग-अलग देशों से हैं। कुछ देशों में तो सरकार ने धार्मिक कामों पर पाबंदियाँ लगा दी हैं। एशिया के कई देशों में लोगों ने कभी सृष्टिकर्ता के बारे में गहराई से सोचा ही नहीं। इस वजह से कुछ लोगों में बाइबल के बारे में जानने की जिज्ञासा होती है और वे तुरंत बाइबल अध्ययन करने के लिए तैयार हो जाते हैं। लेकिन कुछ लोग शुरू-शुरू में कोई नयी शिक्षा सीखने से कतराते हैं। ऐसे लोगों से हम बातचीत कैसे शुरू कर सकते हैं? कुछ अनुभवी प्रचारक लोगों में सच्ची दिलचस्पी लेते हैं, उनसे आम विषयों पर बात करते हैं और फिर उन्हें बताते हैं कि बाइबल का कोई सिद्धांत लागू करने से उनकी ज़िंदगी कैसे सँवर गयी है। इस तरह उन्हें बहुत अच्छे नतीजे मिले हैं।

13. बाइबल में लोगों की दिलचस्पी बढ़ाने के लिए हम क्या कर सकते हैं? (बाहर दी तसवीर देखें।)

13 जब हम लोगों को बाइबल से कोई सलाह पढ़कर सुनाते हैं, जो रोज़मर्रा ज़िंदगी में उनके काम आ सकती है, तो उनकी दिलचस्पी बढ़ जाती है। (सभो. 7:12) न्यू यॉर्क में एक बहन चीनी भाषा बोलनेवालों को गवाही देने के मौके ढूँढ़ती है। वह कहती है, “मैं लोगों में सच्ची दिलचस्पी लेने की कोशिश करती हूँ और उनकी बात ध्यान से सुनती हूँ। अगर मुझे पता चलता है कि वे हाल ही में यहाँ आए हैं, तो मैं उनसे पूछती हूँ, ‘आपको यहाँ कैसा लग रहा है? कोई काम वगैरह मिल गया है? क्या यहाँ के लोग आपके साथ ठीक से पेश आते हैं?’” इस तरह उस बहन को कई बार बाइबल से कुछ बताने का मौका मिला है। फिर वह बहन कहती है, “आपको क्या लगता है, लोगों के साथ अच्छे रिश्‍ते रखने के लिए सबसे ज़रूरी क्या है? गौर कीजिए कि बाइबल में इस बारे में क्या सलाह दी गयी है। यहाँ लिखा है, ‘झगड़ा शुरू होना बाँध को खोलने जैसा है, इससे पहले कि झगड़ा बढ़े वहाँ से निकल जा।’ क्या यह सलाह मानने से आपको नहीं लगता कि लोगों के साथ हमारा रिश्‍ता अच्छा रहेगा?” (नीति. 17:14) जब हम इस तरह बातचीत करेंगे, तो हम समझ पाएँगे कि कौन बाइबल के बारे में और जानना चाहते हैं।

14. पूर्वी देश में एक भाई उन लोगों की कैसे मदद करता है, जो ईश्‍वर को नहीं मानते?

14 जब लोग कहते हैं कि वे ईश्‍वर को नहीं मानते, तो हम क्या कर सकते हैं? पूर्वी देश में एक भाई काफी समय से इस तरह के लोगों को प्रचार करता आया है। वह बताता है, “जब यहाँ के लोग कहते हैं, ‘मैं ईश्‍वर को नहीं मानता,’ तो आम तौर पर उनका मतलब होता है कि वे उन देवी-देवताओं को नहीं मानते, जिन्हें ज़्यादातर लोग पूजते हैं। इस वजह से मैं उनसे सहमत हो जाता हूँ और कहता हूँ कि देवी-देवता तो इंसानों के बनाए हुए हैं और उनका सच में कोई अस्तित्व नहीं है। अकसर मैं उन्हें यिर्मयाह 16:20 पढ़कर सुनाता हूँ, जहाँ लिखा है, ‘क्या एक इंसान अपने लिए देवता बना सकता है? वह जिन्हें बनाता है वे सचमुच के देवता नहीं हैं।’ फिर मैं उनसे पूछता हूँ, ‘हम कैसे जान सकते हैं कि कौन ईश्‍वर असली है और कौन इंसानों के बनाए हुए हैं?’ मैं उनकी बात ध्यान से सुनता हूँ, उसके बाद यशायाह 41:23 पढ़ता हूँ जहाँ लिखा है, ‘बताओ कि भविष्य में क्या होनेवाला है कि हम जान जाएँ कि तुम ईश्‍वर हो।’ फिर मैं कोई उदाहरण देकर समझाता हूँ कि कैसे यहोवा ने पहले से बता दिया था कि भविष्य में क्या होनेवाला है।”

15. पूर्वी एशिया के एक भाई से हम क्या सीख सकते हैं?

15 पूर्वी एशिया में एक भाई वापसी भेंट करते वक्‍त एक और तरीका अपनाता है। वह बताता है, “मैं बाइबल से कोई बुद्धि-भरी सलाह पढ़कर सुनाता हूँ, कोई ऐसी भविष्यवाणी समझाता हूँ जो पूरी हुई और ऐसे नियम बताता हूँ, जिनसे पूरा विश्‍वमंडल चलता है। फिर मैं उन्हें समझाता हूँ कि ये सारी बातें किस तरह एक जीवित और बुद्धिमान सृष्टिकर्ता की तरफ इशारा करती हैं। जब इस बात से एक व्यक्‍ति सोचने लगता है कि कोई-न-कोई ईश्‍वर तो होगा, तब मैं उसे बाइबल से यहोवा के बारे में बताता हूँ।”

16. (क) इब्रानियों 11:6 के मुताबिक यह क्यों ज़रूरी है कि विद्यार्थी परमेश्‍वर और बाइबल पर अपना विश्‍वास बढ़ाएँ? (ख) हम उनकी मदद कैसे कर सकते हैं?

16 जब हम उन लोगों के साथ बाइबल अध्ययन करते हैं जो धर्म या ईश्‍वर को नहीं मानते, तो हमें लगातार उनका विश्‍वास बढ़ाना होगा कि परमेश्‍वर सचमुच में है। (इब्रानियों 11:6 पढ़िए।) हमें बाइबल पर भी उनका विश्‍वास बढ़ाना होगा। इसके लिए शायद हमें बार-बार उन्हें बाइबल की कुछ शिक्षाएँ समझानी पड़ें। हो सकता है, अध्ययन के दौरान हमें उन सबूतों की जाँच करनी पड़े कि बाइबल सचमुच परमेश्‍वर का वचन है। शायद हम थोड़ी देर के लिए इन बातों पर चर्चा करें: बाइबल में बतायी भविष्यवाणियाँ कैसे पूरी हुई हैं, विज्ञान और इतिहास के बारे में बाइबल किस तरह एकदम सही जानकारी देती है और बाइबल की सलाह कैसे रोज़मर्रा की ज़िंदगी में हमारे काम आ सकती है।

17. जब हम लोगों के लिए प्यार ज़ाहिर करते हैं, तो नतीजा क्या हो सकता है?

17 हमें सब लोगों के लिए प्यार ज़ाहिर करना चाहिए और मसीह का चेला बनने में उनकी मदद करनी चाहिए, फिर चाहे वे ईश्‍वर को मानते हों या नहीं। (1 कुरिं. 13:1) जब हम लोगों को सिखाते हैं, तो हम उन्हें एहसास दिलाना चाहते हैं कि यहोवा उनसे प्यार करता है और चाहता है कि वे भी उससे प्यार करें। नतीजा यह होता है कि जो लोग पहले ईश्‍वर में दिलचस्पी नहीं लेते थे, अब यहोवा से प्यार करने लगे हैं। हर साल ऐसे हज़ारों लोग बपतिस्मा लेकर यहोवा के सेवक बनते हैं। तो फिर आइए हम सही सोच रखें, हर किस्म के लोगों में सच्ची दिलचस्पी लें, उनकी बात ध्यान से सुनें और उन्हें समझने की कोशिश करें। आइए हम अपने उदाहरण से उन्हें मसीह का चेला बनना सिखाएँ।

गीत 76 कैसा लगता है?

^ पैरा. 5 आज दुनिया में पहले से कहीं ज़्यादा ऐसे लोग हैं, जो किसी धर्म को नहीं मानते। शायद हमें भी प्रचार में कुछ ऐसे लोग मिलते हों। इस लेख में बताया जाएगा कि हम उन्हें बाइबल की सच्चाई के बारे में कैसे बता सकते हैं और किस तरह बाइबल और परमेश्‍वर यहोवा पर उनका विश्‍वास बढ़ा सकते हैं।

^ पैरा. 1 सर्वे के मुताबिक उनमें से कुछ देश हैं: अज़रबाइजान, अल्बानिया, आयरलैंड, इज़राइल, ऑस्ट्रिया, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, चीन, चेक गणराज्य, जर्मनी, जापान, डेनमार्क, दक्षिण कोरिया, नीदरलैंड्‌स, नॉर्वे, फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम, वियतनाम, स्पेन, स्विट्‌ज़रलैंड, स्वीडन और हांगकांग।

^ पैरा. 53 तसवीर के बारे में: अस्पताल में एक भाई अपने सहकर्मी को गवाही दे रहा है। बाद में वह आदमी हमारी वेबसाइट jw.org® देख रहा है।