अध्ययन लेख 37
यहोवा के अधीन क्यों और कैसे रहें?
‘क्या हमें पिता के और भी ज़्यादा अधीन नहीं रहना चाहिए?’—इब्रा. 12:9.
गीत 9 यहोवा हमारा राजा है!
लेख की एक झलक *
1. हमें यहोवा के अधीन क्यों रहना चाहिए?
यहोवा हमारा सृष्टिकर्ता है। उसी ने सबकुछ बनाया है और उसे यह तय करने का अधिकार है कि उसकी सृष्टि के लिए क्या सही है, क्या गलत। इस वजह से हमें उसके अधीन रहना * चाहिए। (प्रका. 4:11) उसके अधीन रहने की एक और ज़बरदस्त वजह यह है कि उसकी हुकूमत करने का तरीका सबसे अच्छा है। इंसान के इतिहास में कई शासकों ने लोगों पर हुकूमत की है, मगर यहोवा उन सबसे बढ़कर है। उसके जैसा प्यार करनेवाला, दयालु, करुणा से भरपूर और बुद्धिमान राजा और कोई नहीं!—निर्ग. 34:6; रोमि. 16:27; 1 यूह. 4:8.
2. इब्रानियों 12:9-11 में यहोवा के अधीन रहने की कौन-सी वजह बतायी गयी हैं?
2 यहोवा यह नहीं चाहता कि हम उसकी आज्ञा सिर्फ इसलिए मानें कि हम उसे नाराज़ नहीं करना चाहते, बल्कि इसलिए कि हम उसे अपना पिता मानते हैं और उससे प्यार करते हैं। पौलुस ने इब्रानी मसीहियों को लिखे खत में समझाया कि हमें ‘पिता के और भी ज़्यादा अधीन’ रहना चाहिए, क्योंकि वह “हमारे फायदे के लिए” हमें सिखाता है।—इब्रानियों 12:9-11 पढ़िए।
3. (क) हम कैसे दिखाते हैं कि हम यहोवा के अधीन हैं? (ख) इस लेख में हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?
3 जब हम सब बातों में यहोवा की आज्ञा मानते हैं और अपनी समझ का सहारा नहीं लेते, तो हम दिखाते हैं कि हम यहोवा के अधीन हैं। (नीति. 3:5) उसके अधीन रहना हमारे लिए तब और आसान हो जाता है, जब हम उसके बढ़िया गुणों के बारे में सीखते हैं। वह इसलिए कि यहोवा जो भी करता है, उसमें उसके ये गुण साफ झलकते हैं। (भज. 145:9) जितना ज़्यादा हम यहोवा को जानेंगे, उतना ही हम उससे प्यार करेंगे। जहाँ प्यार होता है, वहाँ नियमों की लंबी-चौड़ी सूची की ज़रूरत नहीं होती। हमें अच्छी तरह पता होगा कि यहोवा को किन बातों से प्यार है और किन बातों से नफरत और हम वैसा ही नज़रिया रखेंगे। (भज. 97:10) लेकिन कभी-कभी हमारे लिए यहोवा की आज्ञा मानना शायद आसान न हो। ऐसा क्यों होता है? राज्यपाल नहेमायाह, राजा दाविद और यीशु की माँ मरियम की मिसाल से मंडली के प्राचीन, पिता और माँएँ क्या सीख सकते हैं? इस लेख में हम इन सवालों पर चर्चा करेंगे।
यहोवा के अधीन रहना क्यों मुश्किल हो सकता है?
4-5. रोमियों 7:21-23 के मुताबिक यहोवा के अधीन रहना मुश्किल क्यों होता है?
4 यहोवा के अधीन रहना आसान नहीं होता। इसकी एक वजह यह है कि हम सबको विरासत में पाप मिला है और हम अपरिपूर्ण हैं, तभी कई बार हमें यहोवा की बात मानना मुश्किल लगता है। जब आदम और हव्वा ने मना किया गया फल खाकर यहोवा की आज्ञा तोड़ी, तो उन्होंने खुद तय कर लिया कि उनके लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा। (उत्प. 3:22) उनकी तरह आज ज़्यादातर लोग यहोवा का अधिकार नहीं मानते और सही-गलत का फैसला खुद करते हैं।
5 यहोवा की सेवा करनेवालों के लिए भी कभी-कभार उसकी आज्ञा मानना मुश्किल होता है। प्रेषित पौलुस के साथ कुछ ऐसा ही हुआ था। (रोमियों 7:21-23 पढ़िए।) पौलुस की तरह हम वही करना चाहते हैं, जो यहोवा की नज़र में सही है। मगर हमारा झुकाव हमेशा आज्ञा न मानने की तरफ होता है और इससे हमें लगातार लड़ना होगा।
6-7. यहोवा के अधीन रहना और किस वजह से मुश्किल हो सकता है? एक उदाहरण दीजिए।
6 हम जिस माहौल में पले-बढ़े हैं, उसकी वजह से भी शायद यहोवा के अधीन रहना हमारे लिए मुश्किल हो। हो सकता है, हमारे रिश्तेदार और आस-पास के लोगों की सोच यहोवा की मरज़ी से मेल न खाए। उनकी सोच न अपनाने के लिए हमें काफी संघर्ष करना पड़ सकता है। ऐसी ही एक सोच पर ध्यान दीजिए।
7 कुछ जगहों पर जवान लोगों से उम्मीद की जाती है कि वे खूब पैसा कमाएँ। हेलन * के घरवाले भी उससे यही उम्मीद लगाए बैठे थे। उसने अपने देश के एक जाने-माने कॉलेज में पढ़ाई की। हेलन का परिवार बार-बार उससे कोई ऐसी नौकरी करने के लिए कहने लगा, जिससे उसे खूब दौलत और शोहरत मिले। हेलन भी यही चाहती थी। लेकिन जब उसने यहोवा के बारे में सीखा और उसके दिल में उसके लिए प्यार बढ़ा, तो उसने अपना लक्ष्य बदल दिया। यह उसके लिए आसान नहीं था। वह बताती है, “आज भी मेरे सामने ऐसे मौके आते हैं, जब मैं बहुत सारा पैसा कमा सकती हूँ। लेकिन मैं अच्छी तरह जानती हूँ कि इससे मैं तन-मन से यहोवा की सेवा नहीं कर पाऊँगी। मेरी परवरिश जिस माहौल में हुई थी, उस वजह से मेरे लिए अब भी ये मौके छोड़ना मुश्किल होता है। मैं गिड़गिड़ाकर यहोवा से बिनती करती हूँ कि वह मुझे ऐसी कोई भी नौकरी ठुकराने की हिम्मत दे, जो मुझे उसकी सेवा करने से रोक सकती है।”—मत्ती 6:24.
8. इस लेख में अब हम किस बात पर चर्चा करेंगे?
8 अब तक हमने देखा कि यहोवा के अधीन रहने में हमारी ही भलाई है। लेकिन यहोवा के अधीन रहने से हम अपने साथ-साथ दूसरों का भी भला कर सकते हैं। यह बात खासकर वे लोग ध्यान में रख सकते हैं जिन्हें यहोवा ने कुछ अधिकार दिए हैं, जैसे मंडली के प्राचीन और परिवार में माता-पिता। आइए बाइबल में कुछ लोगों के उदाहरण पर ध्यान दें और सीखें कि कैसे हम अपने अधिकार का सही इस्तेमाल करके यहोवा का दिल खुश कर सकते हैं।
प्राचीनो, आप नहेमायाह से क्या सीख सकते हैं?
9. नहेमायाह ने किन मुश्किलों का सामना किया?
9 यहोवा ने प्राचीनों को बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी दी है कि वे उसके लोगों की देखभाल करें। (1 पत. 5:2) इस मामले में प्राचीन, नहेमायाह के उदाहरण से बहुत कुछ सीख सकते हैं। नहेमायाह यहूदा का राज्यपाल था और उसके पास काफी अधिकार था। (नहे. 1:11; 2:7, 8; 5:14) ज़रा सोचिए कि उसे किस तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ा होगा। उसे पता चला कि यहूदी कुछ ऐसे काम कर रहे थे, जिनसे यहोवा का मंदिर दूषित हो गया था। वे कानून के मुताबिक लेवियों को दान भी नहीं दे रहे थे। यही नहीं, वे सब्त से जुड़े नियम भी नहीं मान रहे थे और कुछ आदमियों ने तो दूसरे देशों की औरतों से शादी कर ली थी। इन मुश्किलों से निपटने के लिए अब राज्यपाल नहेमायाह को ही कुछ करना होगा।—नहे. 13:4-30.
10. नहेमायाह ने किस तरह मुश्किलों का सामना किया?
10 नहेमायाह ने अपने अधिकार का गलत इस्तेमाल नहीं किया। उसने परमेश्वर के लोगों पर अपने कायदे-कानून नहीं थोपे बल्कि मदद के लिए यहोवा से प्रार्थना की और लोगों को उसके कानून सिखाए। (नहे. 1:4-10; 13:1-3) इसके अलावा, उसने अपने भाइयों के साथ मिलकर काम किया और यरूशलेम की शहरपनाह दोबारा बनायी।—नहे. 4:15.
11. पहला थिस्सलुनीकियों 2:7, 8 के मुताबिक प्राचीनों को भाई-बहनों से किस तरह व्यवहार करना चाहिए?
11 प्राचीनों को शायद वैसी मुश्किलों का सामना न करना पड़े, जैसी नहेमायाह को करनी पड़ी थी। लेकिन वे कई मामलों में नहेमायाह की मिसाल पर चलते हैं। जैसे, वे उसकी तरह अपने भाई-बहनों की खातिर कड़ी मेहनत करते हैं। उन्हें जो अधिकार दिया गया है, उस वजह से वे खुद को दूसरों से बेहतर नहीं समझते। वे मंडली में भाई-बहनों के साथ प्यार से पेश आते हैं। (1 थिस्सलुनीकियों 2:7, 8 पढ़िए।) भाई-बहनों के लिए उनका गहरा प्यार और उनकी नम्रता उनकी बातों में साफ नज़र आती है। ऐंड्रू नाम का एक प्राचीन बताता है, “मैंने अकसर देखा है कि जब प्राचीन, भाई-बहनों के साथ प्यार से पेश आते हैं और उनसे अच्छी तरह बात करते हैं, तो यह उनके दिल को छू जाता है। फिर वे भी प्राचीनों का पूरा-पूरा साथ देते हैं।” लंबे समय से सेवा करनेवाले एक और प्राचीन टोनी का कहना है, “मैं हमेशा फिलिप्पियों 2:3 की सलाह ध्यान में रखता हूँ और कोशिश करता हूँ कि दूसरों को खुद से बेहतर समझूँ। ऐसा करने से मैं दूसरों पर रौब नहीं जमाता।”
12. प्राचीनों को नम्र क्यों होना चाहिए?
12 प्राचीनों को नम्र होना चाहिए, ठीक जैसे यहोवा नम्र है। यहोवा सारे जहान का मालिक है, फिर भी वह “नीचे झुकता है” और “दीन जन को धूल में से उठाता है।” (भज. 18:35; 113:6, 7) बाइबल में यह भी लिखा है कि यहोवा घमंडियों से नफरत करता है।—नीति. 16:5.
13. प्राचीनों को “अपनी ज़बान पर कसकर लगाम” क्यों लगानी चाहिए?
13 यहोवा के अधीन रहनेवाले प्राचीनों को “अपनी ज़बान पर कसकर लगाम” लगानी चाहिए। ऐसा करना तब और ज़रूरी हो जाता है, जब कोई मसीही उनके साथ आदर से पेश नहीं आता। (याकू. 1:26; गला. 5:14, 15) ऐंड्रू, जिसका पहले ज़िक्र किया गया था, कहता है, “कभी-कभी ऐसा हुआ है कि किसी भाई या बहन ने मुझसे आदर से बात नहीं की। मेरा भी मन किया कि मैं उससे वैसे ही बात करूँ। लेकिन बाइबल में दी वफादार आदमियों की मिसाल पर मनन करने से मुझे बहुत मदद मिली है। मैंने सीखा कि हर हाल में नम्र और दीन रहना कितना ज़रूरी है।” जब प्राचीन मंडली के भाई-बहनों से और दूसरे प्राचीनों से प्यार और आदर से बात करते हैं, तो दरअसल वे यहोवा के अधीन रहने का सबूत देते हैं।—कुलु. 4:6.
पिताओ, आप राजा दाविद से क्या सीख सकते हैं?
14. यहोवा ने पिताओं को क्या भूमिका दी है और वह उनसे क्या चाहता है?
14 यहोवा ने पिताओं को परिवार का मुखिया ठहराया है और वह चाहता है कि वे अपने बच्चों को सिखाएँ, उन्हें सही राह दिखाएँ और ज़रूरत पड़ने पर उन्हें सुधारें। (1 कुरिं. 11:3; इफि. 6:4) लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि एक पिता अपने अधिकार का जैसा चाहे इस्तेमाल कर सकता है। उसे यहोवा को लेखा देना होगा, क्योंकि उसी की बदौलत हर परिवार वजूद में आया है। (इफि. 3:14, 15) जब एक पिता अपने अधिकार का सही इस्तेमाल करता है, तो वह दिखाता है कि वह यहोवा के अधीन है। इस मामले में राजा दाविद एक अच्छी मिसाल है।
15. राजा दाविद पिताओं के लिए एक अच्छी मिसाल क्यों है?
15 यहोवा ने दाविद को परिवार का मुखिया तो ठहराया ही था, इसके साथ उसे पूरे इसराएल राष्ट्र का भी मुखिया ठहराया था। राजा होने के नाते दाविद के पास बहुत अधिकार था। कुछ मौकों पर उसने इस अधिकार का गलत इस्तेमाल किया और बड़ी-बड़ी गलतियाँ कीं। (2 शमू. 11:14, 15) लेकिन जब उसे सुधारा गया, तो उसने अपनी गलती मान ली। उसने यहोवा से प्रार्थना की और उसे अपने दिल की सारी बात बतायी। इसके अलावा दाविद ने यहोवा की सलाह पर चलने की पूरी कोशिश की। इस तरह वह यहोवा के अधीन रहा। (भज. 51:1-4) दाविद ने न सिर्फ आदमियों की बल्कि कुछ मौकों पर औरतों की भी सलाह कबूल की। वह ऐसा इसलिए कर पाया क्योंकि वह नम्र था। (1 शमू. 19:11, 12; 25:32, 33) दाविद ने अपनी गलतियों से सबक सीखा और अपना पूरा ध्यान यहोवा की सेवा पर लगाए रखा।
16. परिवार के मुखिया दाविद से क्या सीख सकते हैं?
16 पिताओ, आप राजा दाविद से ये बातें सीख सकते हैं: यहोवा से मिले अधिकार का गलत इस्तेमाल मत कीजिए। अपनी गलतियाँ कबूल कीजिए और जब कोई व्यव. 6:6-9) याद रखिए, आपकी बढ़िया मिसाल आपके परिवारवालों के लिए अनमोल तोहफा है, वे आपसे बहुत कुछ सीख सकते हैं।
आपको बाइबल से सलाह दे, तो उसे मानिए। अगर आप ऐसा करें, तो आपके परिवार के लोग देख पाएँगे कि आप नम्र हैं और आपका और भी आदर करेंगे। जब आप अपनी पत्नी और बच्चों के साथ प्रार्थना करते हैं, तो दिल खोलकर यहोवा से बात कीजिए। आपकी प्रार्थना से वे समझ पाएँगे कि आप यहोवा पर पूरी तरह निर्भर हैं। सबसे बढ़कर, यहोवा की सेवा पर अपना पूरा ध्यान लगाए रखिए। (माँओ, आप मरियम से क्या सीख सकती हैं?
17. यहोवा ने माँओं को क्या भूमिका दी है?
17 यहोवा ने परिवार में माँओं को अपने बच्चों पर कुछ अधिकार दिए हैं। (नीति. 6:20) एक माँ जिस तरह बात करती है, जैसा व्यवहार करती है, उसी हिसाब से उसके बच्चे ढलते हैं। उसका असर बच्चों की पूरी ज़िंदगी पर होता है। वाकई माँओं की बहुत अहम भूमिका होती है! (नीति. 22:6) ध्यान दीजिए कि माँएँ यीशु की माँ मरियम से क्या सीख सकती हैं।
18-19. माँएँ मरियम की मिसाल से क्या सीख सकती हैं?
18 मरियम को शास्त्र का अच्छा ज्ञान था। वह दिल से यहोवा का आदर करती थी और यहोवा के साथ उसकी गहरी दोस्ती थी। वह हर हाल में उसकी आज्ञा मानती थी, तब भी जब ऐसा करने से उसकी पूरी ज़िंदगी बदल जाती।—लूका 1:35-38, 46-55.
19 माँओ, आप मरियम की मिसाल पर कैसे चल सकती हैं? बाइबल का अध्ययन करके और यहोवा से प्रार्थना करके उसके साथ अपना रिश्ता मज़बूत कीजिए। इसके अलावा, अपनी ज़िंदगी में बदलाव करने के लिए तैयार रहिए और यहोवा को खुश कीजिए। उदाहरण के लिए, आप शायद ऐसे परिवार में पली-बढ़ी हों, जहाँ माता-पिता बात-बात पर गुस्सा करते थे और बच्चों से कठोरता से बात करते थे। इस वजह से आपको भी लगे कि बच्चों की परवरिश इसी तरह की जाती है। मगर फिर आपने यहोवा और उसके स्तरों के बारे में सीखा। इसके बाद भी शायद आपके लिए बच्चों के साथ सब्र रखना मुश्किल हो, खासकर तब जब आप बहुत थकी हुई हों और बच्चे आपकी बात न मान रहे हों। (इफि. 4:31) ऐसे मौकों पर यहोवा से प्रार्थना करना बहुत ज़रूरी है। लीडिया नाम की एक माँ बताती है, “कभी-कभी जब मेरा बेटा मेरी बात नहीं सुनता, तो मैं यहोवा से गिड़गिड़ाकर बिनती करती थी कि मैं उस पर भड़क न उठूँ। कई बार तो ऐसा हुआ कि मैंने बोलना शुरू किया, मगर फिर किसी तरह खुद को रोका और मन-ही-मन यहोवा से मदद माँगी। प्रार्थना करने से मैं शांत रह पाती हूँ।”—भज. 37:5.
20. (क) कुछ माँएँ किस मुश्किल का सामना करती हैं? (ख) वे इस मुश्किल को कैसे पार कर सकती हैं?
20 कुछ माँएँ एक और मुश्किल का सामना करती हैं। उन्हें अपने बच्चों से प्यार तो है, मगर वे उसे ज़ाहिर नहीं कर पातीं। (तीतु. 2:3, 4) इसकी वजह शायद यह हो कि बचपन में उनके माँ-बाप ने खुलकर उनके लिए प्यार नहीं जताया था। अगर आपके बारे में भी यह बात सच है, तो वही गलती मत दोहराइए, जो आपके माता-पिता से हुई थी। जो माँ यहोवा के अधीन रहकर उसकी मरज़ी पूरी करना चाहती है, उसे शायद यह सीखना पड़े कि वह कैसे अपने बच्चों के लिए प्यार ज़ाहिर कर सकती है। हो सकता है, उसे अपनी सोच, भावनाओं और अपने व्यवहार में फेरबदल करना पड़े। भले ही उसके लिए यह आसान न हो, लेकिन नामुमकिन भी नहीं है। ऐसा करने से वह और उसका परिवार खुश रहेगा।
हमेशा यहोवा के अधीन रहिए
21-22. यशायाह 65:13, 14 के मुताबिक यहोवा के अधीन रहने से किस तरह हमारा भला होगा?
21 राजा दाविद जानता था कि यहोवा के अधीन रहने में ही भलाई है। उसने लिखा, “यहोवा के आदेश नेक हैं, मन को आनंद से भर देते हैं, यहोवा की आज्ञा शुद्ध है, आँखों में चमक लाती है। वे तेरे सेवक को आगाह करते हैं, उन्हें मानने से बड़ा इनाम मिलता है।” (भज. 19:8, 11) आज हम यहोवा के अधीन रहनेवालों और उसकी सलाह ठुकरानेवालों के बीच फर्क साफ देख पाते हैं। जो उसके अधीन रहते हैं, वे ‘जयजयकार करते हैं क्योंकि उनका दिल खुश होता है।’—यशायाह 65:13, 14 पढ़िए।
22 तो फिर जैसा कि हमने सीखा, जब प्राचीन, पिता और माँएँ खुशी से यहोवा के अधीन रहते हैं, तो उनकी ज़िंदगी सँवर जाती है, उनका परिवार खुश रहता है और मंडली की एकता बनी रहती है। सबसे बढ़कर, वे यहोवा का दिल खुश करते हैं। (नीति. 27:11) भला इससे बड़ा इनाम और क्या हो सकता है!
गीत 123 परमेश्वर के संगठन का कानून दिल से मानें
^ पैरा. 5 इस लेख में चर्चा की जाएगी कि हमें यहोवा के अधीन क्यों रहना चाहिए। इसमें यह भी समझाया जाएगा कि यहोवा ने मंडली के प्राचीनों, पिताओं और माँओं को जो अधिकार दिया है, उसका वे सही इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं। हम यह भी देखेंगे कि वे राज्यपाल नहेमायाह, राजा दाविद और यीशु की माँ मरियम से क्या सीख सकते हैं।
^ पैरा. 1 इसका क्या मतलब है? अधीन रहने या अधीनता की बात से शायद कई लोगों के मन में एक क्रूर अधिकारी की तसवीर आए, जिसकी उन्हें हर हाल में आज्ञा माननी है। लेकिन परमेश्वर के लोग यहोवा के अधीन रहने को बुरी बात नहीं मानते बल्कि खुशी-खुशी उसकी आज्ञा मानते हैं।
^ पैरा. 7 इस लेख में कुछ नाम बदल दिए गए हैं।
^ पैरा. 62 तसवीर के बारे में: एक प्राचीन अपने बेटे के साथ मिलकर राज-घर की मरम्मत कर रहा है, ठीक जैसे नहेमायाह ने लोगों के साथ मिलकर यरूशलेम की शहरपनाह दोबारा बनायी थी।
^ पैरा. 64 तसवीर के बारे में: एक पिता अपने परिवार की तरफ से दिल खोलकर यहोवा से प्रार्थना कर रहा है।
^ पैरा. 66 तसवीर के बारे में: एक लड़के ने वीडियो गेम खेलने में घंटों बिता दिए और अपना होमवर्क और दूसरे ज़रूरी काम नहीं किए। उसकी माँ काम से थकी-हारी आयी है, फिर भी वह अपने बेटे पर न तो गुस्सा करती है, न ही कठोरता से बात करती है बल्कि प्यार से उसे समझाती है।