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अध्ययन लेख 45

गीत 138 पके बालों की खूबसूरती

वफादार लोग जो कह गए, उससे सीखिए

वफादार लोग जो कह गए, उससे सीखिए

“क्या बुद्धि, बड़े-बूढ़ों में नहीं पायी जाती? क्या समझ उनमें नहीं होती जिन्होंने लंबी उम्र देखी है?”अय्यू. 12:12.

क्या सीखेंगे?

यहोवा की आज्ञा मानने से आज हमें ढेरों आशीषें मिलती हैं और आगे चलकर हमेशा की ज़िंदगी भी मिलेगी।

1. हमें बुज़ुर्ग भाई-बहनों से क्यों सलाह लेनी चाहिए?

 हम सबको सलाह की ज़रूरत होती है, खासकर ज़रूरी फैसले लेने के लिए। मंडली के प्राचीन और दूसरे तजुरबेकार मसीही हमें बढ़िया सलाह दे सकते हैं। हो सकता है, ये भाई-बहन बुज़ुर्ग हों। ऐसे में हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि उनकी सलाह हमारे कोई काम नहीं आएगी। यहोवा चाहता है कि हम इन वफादार भाई-बहनों से सीखें। इनके पास बहुत तजुरबा, समझ और बुद्धि होती है जिससे हमें बहुत फायदा हो सकता है।—अय्यू. 12:12.

2. इस लेख में हम क्या जानेंगे?

2 पुराने ज़माने में यहोवा ने अपने बुज़ुर्ग सेवकों के ज़रिए लोगों का हौसला बढ़ाया और उन्हें हिदायतें दीं, जैसे मूसा, दाविद और प्रेषित यूहन्‍ना के ज़रिए। ये वफादार सेवक अलग-अलग समय में जीए थे और उनके हालात भी एक-दूसरे से बहुत अलग थे। अपनी ज़िंदगी के आखिर में इन बुज़ुर्गों ने जवान लोगों को बहुत ही बढ़िया सलाह दी। उन्होंने एक खास बात पर ज़ोर दिया। उन्होंने बताया कि परमेश्‍वर की आज्ञा मानना बहुत ज़रूरी है। यहोवा परमेश्‍वर ने इन प्यारे बुज़ुर्गों की बातें हमारे लिए बाइबल में लिखवायी हैं। चाहे हम उम्र में छोटे हों या बड़े, उन बातों पर ध्यान देने से हमें मदद मिल सकती है। (रोमि. 15:4; 2 तीमु. 3:16) इस लेख में हम मूसा, दाविद और प्रेषित यूहन्‍ना की उन बातों पर ध्यान देंगे जो उन्होंने जाते-जाते कही थीं और जानेंगे कि उनसे हम क्या सीख सकते हैं।

‘वही तुम्हें लंबी ज़िंदगी दे सकता है’

3. मूसा ने यहोवा की सेवा में क्या-क्या किया?

3 मूसा ने अपनी पूरी ज़िंदगी यहोवा की सेवा में खूब मेहनत की। वह एक भविष्यवक्‍ता, न्यायी, सेनापति और इतिहासकार था। उसके पास बहुत तजुरबा था! उसने इसराएल राष्ट्र की अगुवाई की थी और परमेश्‍वर के लोगों को मिस्र की गुलामी से आज़ाद करवाया था। उसने अपनी आँखों से यहोवा के कई चमत्कार देखे थे। यहोवा ने उससे बाइबल की पहली पाँच किताबें, भजन 90 और शायद भजन 91 भी लिखवाया था। ऐसा मालूम होता है कि अय्यूब की किताब भी मूसा ने ही लिखी थी।

4. मूसा ने किनका हौसला बढ़ाया और क्यों?

4 अपनी मौत से कुछ समय पहले जब मूसा 120 साल का था, तो उसने सभी इसराएलियों को इकट्ठा किया। उसने उन्हें वे सारे लाजवाब काम याद दिलाए जो यहोवा ने उनके लिए किए थे। जो इसराएली उसकी बातें सुन रहे थे, उनमें से कुछ लोगों ने बचपन में यहोवा के चमत्कार देखे थे और यह भी देखा था कि उसने किस तरह मिस्री लोगों को सज़ा दी थी। (निर्ग. 7:3, 4) उनकी आँखों के सामने यहोवा ने लाल सागर को दो हिस्सों में बाँट दिया था और उन्होंने पैदल उसे पार किया था। फिर यहोवा ने उसी सागर में फिरौन की सेना को डुबा दिया था। (निर्ग. 14:29-31) यही नहीं, वीराने में 40 साल तक यहोवा ने उनकी हिफाज़त की थी और उनका खयाल रखा था। (व्यव. 8:3, 4) अब वे जल्द ही वादा किए गए देश में जानेवाले थे। इसलिए अपनी मौत से पहले मूसा उनका हौसला बढ़ाना चाहता था। आइए देखें कि उसने उनसे क्या कहा। a

5. अपनी मौत से पहले मूसा ने इसराएलियों को किस बात का यकीन दिलाया? (व्यवस्थाविवरण 30:19, 20)

5 मूसा ने क्या कहा? (व्यवस्थाविवरण 30:19, 20 पढ़िए।) मूसा ने इसराएलियों को याद दिलाया कि उन्हें एक शानदार भविष्य मिलनेवाला है। यहोवा उन्हें वादा किया गया देश देनेवाला है जहाँ वे बरसों तक जी सकते हैं। उसने बताया कि वह देश बहुत खूबसूरत होगा और वहाँ की ज़मीन बहुत उपजाऊ होगी। उसने उनसे कहा, “वह तुम्हें वहाँ बड़े-बड़े खूबसूरत शहर देगा जिन्हें तुमने नहीं बनाया और ऐसे घर देगा जो हर तरह की बढ़िया चीज़ों से भरे होंगे जिनके लिए तुमने कोई मेहनत नहीं की, ज़मीन में खुदे हुए हौद देगा जिन्हें तुमने नहीं खोदा, अंगूरों के बाग और जैतून के पेड़ देगा जिन्हें तुमने नहीं लगाया।”—व्यव. 6:10, 11.

6. यहोवा ने इसराएलियों को दूसरे राष्ट्रों के हाथों में क्यों कर दिया?

6 मूसा ने इसराएलियों को खबरदार भी किया। उसने उनसे कहा कि अगर वे उस फलते-फूलते देश में हमेशा रहना चाहते हैं, तो उन्हें यहोवा की आज्ञा माननी होगी। मूसा ने उनसे बिनती की कि वे यहोवा की बात मानें और ‘उससे लिपटे रहें’ और इस तरह ‘ज़िंदगी चुनें।’ लेकिन अफसोस की बात है कि उन्होंने यहोवा की बात नहीं मानी। इसी वजह से यहोवा ने उन्हें अश्‍शूरियों और आगे चलकर बैबिलोन के लोगों के हाथों में कर दिया जो उन्हें बंदी बनाकर ले गए।—2 राजा 17:6-8, 13, 14; 2 इति. 36:15-17, 20.

7. मूसा ने जो कहा, उससे हम क्या सीखते हैं? (तसवीर भी देखें।)

7 हम इससे क्या सीखते हैं? आज्ञा मानने से जान बच सकती है। इसराएली वादा किए गए देश में जाने ही वाले थे, उसी तरह हम भी बहुत जल्द नयी दुनिया में जानेवाले हैं। हम यहोवा के वादों को पूरा होते देखेंगे, धरती को फिरदौस में बदलते देखेंगे। (यशा. 35:1; लूका 23:43) उस वक्‍त शैतान और दुष्ट स्वर्गदूत नहीं रहेंगे। (प्रका. 20:2, 3) ऐसा कोई धर्म नहीं होगा जो परमेश्‍वर के बारे में झूठ सिखाता हो। (प्रका. 17:16) ऐसी कोई सरकार नहीं होगी जो लोगों पर अत्याचार करती हो। (प्रका. 19:19, 20) नयी दुनिया में दुष्ट लोगों के लिए कोई जगह नहीं होगी। (भज. 37:10, 11) हर कोई यहोवा की आज्ञा मानेगा। लोगों के बीच शांति और एकता होगी। सब एक-दूसरे से प्यार करेंगे और एक-दूसरे पर भरोसा रखेंगे। (यशा. 11:9) सच में, नयी दुनिया बहुत गज़ब की होगी! और कमाल की बात तो यह है कि अगर हम यहोवा की आज्ञा मानेंगे, तो हम फिरदौस में सिर्फ कुछ साल नहीं, बल्कि हमेशा-हमेशा तक जी पाएँगे।—भज. 37:29; यूह. 3:16.

अगर हम यहोवा की आज्ञा मानें, तो हम फिरदौस में सिर्फ कुछ साल नहीं, बल्कि हमेशा-हमेशा तक जी पाएँगे (पैराग्राफ 7)


8. परमेश्‍वर ने हमेशा की ज़िंदगी का जो वादा किया है, उस बारे में सोचने से एक भाई को कैसे मदद मिली? (यहूदा 20, 21)

8 परमेश्‍वर ने हमेशा की ज़िंदगी का जो वादा किया है, अगर हम उस बारे में सोचते रहें, तो हम हर मुश्‍किल में उससे लिपटे रहेंगे। (यहूदा 20, 21 पढ़िए।) यही नहीं, हम अपनी कमज़ोरियों से भी लड़ पाएँगे। आइए देखें कि इस वादे के बारे में सोचने से एक मिशनरी भाई को कैसे मदद मिली। ये भाई कई सालों से अफ्रीका में सेवा कर रहे हैं और उन्हें अपनी एक कमज़ोरी से लंबे समय तक लड़ना पड़ा। वे बताते हैं, “मैं जानता था कि मैं नयी दुनिया में हमेशा के लिए तभी जी पाऊँगा, जब मैं यहोवा की आज्ञा मानूँगा। इसलिए मैंने सोच लिया कि मैं अपनी कमज़ोरी से लड़ता रहूँगा। मैंने इस बारे में यहोवा से गिड़गिड़ाकर प्रार्थना भी की। उसकी मदद से मैं अपनी कमज़ोरी पर काबू कर पाया हूँ।”

“तू कामयाब होगा”

9. दाविद ने अपनी ज़िंदगी में किन मुश्‍किलों का सामना किया?

9 दाविद एक अच्छा राजा था और यहोवा का वफादार था। वह एक संगीतकार, कवि, योद्धा और भविष्यवक्‍ता भी था। उसकी ज़िंदगी में कई उतार-चढ़ाव आए। काफी समय तक वह राजा शाऊल से अपनी जान बचाने के लिए यहाँ-वहाँ छिपता फिरा। फिर उसके राजा बनने के बाद उसके बेटे अबशालोम ने उसकी राजगद्दी हथियानी चाही और उसे मार डालने की कोशिश की। तब एक बार फिर उसे अपनी जान बचाकर भागना पड़ा। दाविद के सामने कई मुश्‍किलें आयीं और उसने कुछ बड़ी गलतियाँ भी कीं। लेकिन वह आखिरी साँस तक यहोवा का वफादार बना रहा। तभी यहोवा ने बाइबल में उसके बारे में लिखवाया कि “वह एक ऐसा इंसान है जो मेरे दिल को भाता है।” तो फिर परमेश्‍वर के इस वफादार सेवक की बातों पर ध्यान देना तो बनता ही है!—प्रेषि. 13:22; 1 राजा 15:5.

10. दाविद ने अपने बेटे सुलैमान को क्यों सलाह दी?

10 ध्यान दीजिए कि दाविद ने अपने बेटे सुलैमान को क्या सलाह दी, जो उसके बाद राजा बननेवाला था। यहोवा ने सुलैमान को इसलिए राजा चुना था ताकि वह सच्ची उपासना को बढ़ावा दे और उसकी महिमा के लिए एक मंदिर बनाए। (1 इति. 22:5) पर सुलैमान के आगे कई मुश्‍किलें आतीं, इसलिए दाविद ने उसे कुछ बढ़िया सलाह दी। आइए देखें कि उसने उससे क्या कहा।

11. दाविद ने सुलैमान को क्या सलाह दी और जब सुलैमान ने उसे माना तो क्या हुआ? (1 राजा 2:2, 3) (तसवीर भी देखें।)

11 दाविद ने क्या कहा? (1 राजा 2:2, 3 पढ़िए।) दाविद ने अपने बेटे सुलैमान से कहा कि अगर वह यहोवा की आज्ञा मानेगा, तो अपने हर काम में कामयाब होगा। और सुलैमान ने कई सालों तक यहोवा की बात मानी और वह बहुत कामयाब रहा। (1 इति. 29:23-25) उसने यहोवा के लिए एक आलीशान मंदिर बनाया और बाइबल की कुछ किताबें लिखीं। उसकी कुछ बातें बाइबल की दूसरी किताबों में भी दर्ज़ हैं। वह अपनी बुद्धि और दौलत के लिए मशहूर था। (1 राजा 4:34) लेकिन जैसा दाविद ने कहा था, सुलैमान तब तक कामयाब रहता, जब तक वह यहोवा की बात मानता। दुख की बात है कि आगे चलकर सुलैमान झूठे देवी-देवताओं को पूजने लगा, इसलिए यहोवा ने उस पर से अपनी आशीष हटा ली। नतीजा, उसने यहोवा से मिली बुद्धि खो दी और वह लोगों का अच्छी तरह न्याय नहीं कर पाया।—1 राजा 11:9, 10; 12:4.

दाविद ने जाते-जाते सुलैमान से जो कहा, उससे हम सीखते हैं कि यहोवा की बात मानने से हमें बुद्धि मिलेगी और हम अच्छे फैसले ले पाएँगे (पैराग्राफ 11-12) b


12. दाविद ने जो कहा, उससे हम क्या सीखते हैं?

12 हम इससे क्या सीखते हैं? आज्ञा मानने से कामयाबी मिलती है। (भज. 1:1-3) यह सच है कि यहोवा ने हमें सुलैमान की तरह दौलत और शोहरत देने का वादा नहीं किया है। लेकिन अगर हम उसकी आज्ञा मानेंगे, तो वह हमें बुद्धि ज़रूर देगा जिससे हम अच्छे फैसले ले पाएँगे। (नीति. 2:6, 7; याकू. 1:5) जैसे उसके सिद्धांत मानने से हम नौकरी, पढ़ाई, मनोरंजन और पैसे के मामले में अच्छे फैसले ले पाएँगे। यहोवा से मिलनेवाली बुद्धि से आज और हमेशा तक हमारी हिफाज़त होगी। (नीति. 2:10, 11) इतना ही नहीं, हम अच्छे दोस्त बना पाएँगे और यहोवा की सलाह मानने से हमारा परिवार भी खुश रहेगा।

13. ज़िंदगी में कामयाब होने के लिए बहन कारमन ने क्या किया?

13 मोज़ांबीक में रहनेवाली बहन कारमन को लगता था कि कामयाब होने के लिए उसे खूब पढ़ना होगा। वह आर्किटेक्ट बनना चाहती थी जो इमारतों के नक्शे बनाते हैं। इसलिए स्कूल खत्म करने के बाद वह यूनिवर्सिटी जाने लगी। वह कहती है, “मैं जो सीख रही थी, वह मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। लेकिन इसमें मेरा सारा समय चला जाता था और मैं थक जाती थी। मैं सुबह 7:30 बजे से शाम के 6 बजे तक यूनिवर्सिटी में रहती थी। मेरे लिए सभाओं में जाना मुश्‍किल हो गया और इस वजह से परमेश्‍वर के साथ मेरा रिश्‍ता कमज़ोर पड़ने लगा। मुझे लगने लगा कि मैं दो मालिकों की सेवा कर रही हूँ।” (मत्ती 6:24) कारमन ने इस बारे में प्रार्थना की और हमारे प्रकाशनों में खोजबीन की। वह कहती है, “प्राचीनों ने और मम्मी ने मुझे बढ़िया सलाह दी। फिर मैंने यूनिवर्सिटी छोड़कर पूरे समय की सेवा करने का फैसला किया। मुझे अपने फैसले पर कोई अफसोस नहीं है। यह मेरी ज़िंदगी का सबसे बढ़िया फैसला है।”

14. मूसा और दाविद दोनों ने कौन-सी बात पर ज़ोर दिया?

14 मूसा और दाविद यहोवा से बहुत प्यार करते थे। वे जानते थे कि यहोवा की आज्ञा मानना बहुत ज़रूरी है, इसलिए अपनी मौत से पहले उन्होंने लोगों को बढ़ावा दिया कि वे भी यहोवा से लिपटे रहें। उन्होंने यह भी कहा कि जो यहोवा के वफादार नहीं रहते, यहोवा उनसे दोस्ती तोड़ लेता है और उन्हें आशीषें नहीं देता। उनकी यह सलाह हमारे लिए भी बहुत काम की है। मूसा और दाविद के ज़माने के सदियों बाद यहोवा के एक और बुज़ुर्ग सेवक ने बताया कि परमेश्‍वर का वफादार रहना कितना ज़रूरी है। आइए उस पर ध्यान दें।

“इससे ज़्यादा किस बात से खुशी मिल सकती है”

15. प्रेषित यूहन्‍ना ने अपनी ज़िंदगी में क्या-क्या देखा था?

15 प्रेषित यूहन्‍ना यीशु का बहुत अच्छा दोस्त था। वह प्रचार में हमेशा यीशु के साथ रहता था। (मत्ती 10:2; यूह. 19:26) उसने यीशु को कई चमत्कार करते देखा और मुश्‍किल घड़ी में भी उसने यीशु का साथ दिया। जब यीशु काठ पर आखिरी साँसें ले रहा था, तब वह उसके पास ही था। फिर जब यीशु को ज़िंदा किया गया, तब भी वह उससे मिला। उसने पहली सदी में मसीही मंडली को बढ़ते हुए देखा और वह दौर भी देखा जब ‘पूरी दुनिया में प्रचार किया जा चुका था।’—कुलु. 1:23.

16. यूहन्‍ना की चिट्ठियों से किन्हें फायदा हुआ है?

16 अपनी लंबी ज़िंदगी के आखिर में यूहन्‍ना को परमेश्‍वर की प्रेरणा से कुछ किताबें लिखने का मौका मिला। उसने प्रकाशितवाक्य की किताब में वे हैरतअंगेज़ बातें लिखीं जो ‘यीशु मसीह ने उस पर प्रकट की’ थीं। (प्रका. 1:1) उसने अपने नाम की खुशखबरी की किताब भी लिखी। इसके अलावा, उसने तीन और चिट्ठियाँ लिखीं। उसने अपनी तीसरी चिट्ठी गयुस नाम के एक वफादार मसीही को लिखी, जिससे वह बेटे की तरह प्यार करता था। (3 यूह. 1) गयुस के अलावा ऐसे और भी कई मसीही होंगे जिनसे प्रेषित यूहन्‍ना अपने बच्चों की तरह प्यार करता था। परमेश्‍वर के इस वफादार सेवक ने जो बातें लिखीं, उनसे यीशु के चेलों को तब से लेकर आज तक बहुत फायदा हुआ है। आइए उसकी बातों पर ध्यान दें।

17. 3 यूहन्‍ना 4 के मुताबिक सबसे ज़्यादा खुशी किस बात से मिलती है?

17 यूहन्‍ना ने क्या लिखा? (3 यूहन्‍ना 4 पढ़िए।) यूहन्‍ना ने लिखा कि परमेश्‍वर की आज्ञा मानने से खुशी मिलती है। जब यूहन्‍ना ने तीसरी चिट्ठी लिखी, तब कुछ लोग मंडली में झूठी शिक्षाएँ फैलाने लगे थे और फूट डालने लगे थे। पर बाकी मसीही ‘सच्चाई की राह पर चलते रहे’ और यहोवा की “आज्ञाओं” को मानते रहे। (2 यूह. 4, 6) इन वफादार मसीहियों को देखकर यूहन्‍ना को बहुत खुशी हुई और उससे भी बढ़कर यहोवा का दिल खुश हुआ।—नीति. 27:11.

18. यूहन्‍ना ने जो कहा, उससे हम क्या सीखते हैं?

18 हम इससे क्या सीखते हैं? वफादार रहने से खुशी मिलती है। (1 यूह. 5:3) हमें इस बात की खुशी होती है कि हमने यहोवा का दिल खुश किया है। और यहोवा को यह देखकर खुशी होती है कि हम बुराई से दूर रहते हैं और उसके स्तर मानते हैं। (नीति. 23:15) स्वर्गदूत भी हमें देखकर खुशियाँ मनाते हैं। (लूका 15:10) यही नहीं, जब हमारे भाई-बहन लुभाए जाने पर और मुश्‍किलों में भी यहोवा के वफादार रहते हैं, तो उन्हें देखकर भी हमें खुशी मिलती है। (2 थिस्स. 1:4) और जब इस दुनिया का नाश हो जाएगा, तो हमें यह जानकर बहुत तसल्ली मिलेगी कि हम शैतान की दुनिया में भी यहोवा के वफादार रहे।

19. दूसरों को सच्चाई सिखाने के बारे में बहन रेचल को कैसा लगता है? (तसवीर भी देखें।)

19 जब हम दूसरों को यहोवा के बारे में सिखाते हैं, तब भी हमें बहुत खुशी मिलती है। डोमिनिकन गणराज्य में रहनेवाली बहन रेचल का मानना है कि यहोवा के बारे में दूसरों को सिखाना एक बहुत बड़ा सम्मान है। अपने बाइबल विद्यार्थियों के बारे में बहन कहती हैं, “जब मैं देखती हूँ कि यहोवा के लिए उनका प्यार बढ़ रहा है, वे उस पर भरोसा करने लगे हैं और उसे खुश करने के लिए अपनी ज़िंदगी में बदलाव कर रहे हैं, तो मैं बता नहीं सकती कि मुझे कितनी खुशी होती है। यह तो है कि उन्हें सिखाने में बहुत मेहनत लगती है और त्याग करने पड़ते हैं, लेकिन इससे जो खुशी मिलती है, वह कहीं बढ़कर है।”

जब हम दूसरों को सिखाते हैं कि वे यहोवा से प्यार करें और उसकी आज्ञा मानें, तो हमें बहुत खुशी मिलती है (पैराग्राफ 19)


बड़े-बुज़ुर्ग जो कह गए, उससे फायदा पाइए

20. मूसा, दाविद, यूहन्‍ना और हममें कौन-सी बातें एक-जैसी हैं?

20 मूसा, दाविद और यूहन्‍ना जिस दौर में और जिन हालात में जीए थे, वे हमसे बहुत अलग थे। लेकिन उनमें और हममें कुछ बातें एक-जैसी हैं। उनकी तरह हम भी सच्चे परमेश्‍वर की सेवा करते हैं। हम भी यहोवा से प्रार्थना करते हैं, उस पर भरोसा रखते हैं और मदद के लिए उस पर निर्भर रहते हैं। उन वफादार बुज़ुर्गों की तरह हमें भी पूरा यकीन है कि अगर हम यहोवा की बात मानें, तो वह हमें ढेरों आशीषें देगा।

21. अगर हम मूसा, दाविद और यूहन्‍ना की सलाह मानें, तो हमें क्या आशीषें मिलेंगी?

21 तो आइए हम मूसा, दाविद और यूहन्‍ना की उन बातों को याद रखें जो उन्होंने जाते-जाते कही थीं और हर हाल में यहोवा की आज्ञा मानें। अगर हम ऐसा करेंगे, तो हम अपने हर काम में कामयाब होंगे। तब यहोवा हमें “लंबी ज़िंदगी” देगा। जी हाँ, हम हमेशा-हमेशा तक जीएँगे। (व्यव. 30:20) इतना ही नहीं, हमें इस बात की भी खुशी होगी कि हमने अपने प्यारे परमेश्‍वर यहोवा का दिल खुश किया है, उस परमेश्‍वर का जो अपना हर वादा पूरा करता है और वह भी इस तरह कि हम सोच भी नहीं सकते।—इफि. 3:20.

गीत 129 हम धीरज धरेंगे

a जिन इसराएलियों ने लाल सागर पर यहोवा का चमत्कार देखा था, उनमें से ज़्यादातर वादा किए गए देश में नहीं जा सके। (गिन. 14:22, 23) यहोवा ने कहा था कि जितनों की उम्र 20 साल या उससे ज़्यादा है और जिनके नाम लिखे गए हैं, वे सब वीराने में ही मर जाएँगे। (गिन. 14:29) लेकिन 20 साल से कम उम्रवालों ने यहोशू, कालेब और लेवी गोत्र के कई लोगों के साथ मिलकर यरदन नदी पार की और वादा किए गए देश, यानी कनान देश गए।—व्यव. 1:24-40.

b तसवीर के बारे में: बायीं तरफ: अपनी मौत से पहले दाविद अपने बेटे सुलैमान को सलाह दे रहा है। दायीं तरफ: पायनियर सेवा स्कूल के विद्यार्थी परमेश्‍वर से मिलनेवाली शिक्षा से फायदा पा रहे हैं।