मुश्किल हालात में भी आप मर्यादा में रह सकते हैं
‘मर्यादा में रहकर अपने परमेश्वर के साथ चल।’—मीका 6:8.
गीत: 48, 1
1-3. यहूदा के एक भविष्यवक्ता ने क्या नहीं किया और इसका क्या अंजाम हुआ? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
इसराएल के राजा यारोबाम ने बेतेल में झूठी उपासना के लिए एक वेदी खड़ी की। यहोवा ने यहूदा से एक भविष्यवक्ता को भेजा ताकि वह यारोबाम को न्याय का संदेश सुनाए। उस नम्र भविष्यवक्ता ने यहोवा की आज्ञा मानी और संदेश सुनाया। राजा भविष्यवक्ता पर भड़क उठा, लेकिन यहोवा ने उसकी रक्षा की।—1 राजा 13:1-10.
2 यहोवा ने भविष्यवक्ता को आज्ञा दी थी कि वह इसराएल में न तो कुछ खाए, न ही कुछ पीए। और जिस रास्ते से वह आया था उस रास्ते से लौटने के बजाय दूसरे रास्ते से घर लौट जाए। लौटते वक्त उसे एक बूढ़ा आदमी मिला, जिसने उससे झूठ बोला कि उसे यहोवा की तरफ से एक संदेश मिला है। उस आदमी ने भविष्यवक्ता को अपने घर खाने-पीने के लिए बुलाया। यहोवा की आज्ञा तोड़कर भविष्यवक्ता उस बूढ़े आदमी के साथ चला गया। यहोवा इससे खुश नहीं हुआ। फिर जब भविष्यवक्ता घर लौट रहा था तो रास्ते में एक शेर ने उसे मार डाला।—1 राजा 13:11-24.
3 हम नहीं जानते कि भविष्यवक्ता ने क्यों यहोवा की बात मानने के बजाय उस बूढ़े आदमी की बात मानी। लेकिन हम इतना जानते हैं कि उसने ‘मर्यादा में रहकर परमेश्वर के साथ चलना’ छोड़ दिया। (मीका 6:8 पढ़िए।) बाइबल के मुताबिक यहोवा के साथ चलने का मतलब है उस पर भरोसा करना, उसके मार्गदर्शन पर निर्भर रहना और उसकी आज्ञा मानना। मर्यादा में रहनेवाला इंसान जानता है कि उसे हमेशा परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए। अगर वह भविष्यवक्ता अपनी मर्यादा में रहता, तो वह यहोवा से पूछ सकता था कि क्या उसकी दी हिदायतें बदल गयी हैं। कभी-कभी हमें भी मुश्किल फैसले करने पड़ते हैं और शायद हमें साफ-साफ समझ न आए कि यहोवा हमसे क्या चाहता है। लेकिन अगर हम मर्यादा में रहेंगे, तो हम यहोवा से मार्गदर्शन माँगेंगे ताकि हम कोई बड़ी गलती न कर बैठें।
4. इस लेख में हम क्या सीखेंगे?
4 पिछले लेख में हमने सीखा था कि मर्यादा में रहने का क्या मतलब है और मर्यादा में रहना आज हमारे लिए क्यों ज़रूरी है। लेकिन इस लेख में हम सीखेंगे कि हम कैसे और भी अच्छी तरह अपनी मर्यादा को पहचान सकते हैं? किन हालात में हमारी मर्यादा की परख हो सकती है या दूसरे शब्दों में कहें तो कौन-से हालात यह दिखाएँगे कि हम वाकई मर्यादा में रहते हैं या नहीं? आइए अब ऐसे तीन हालात पर चर्चा करें।—नीति. 11:2.
जब हमारे हालात बदल जाते हैं
5, 6. बरजिल्लै ने कैसे दिखाया कि वह अपनी मर्यादा जानता था?
5 जब हमारे हालात बदलते हैं या हमें मिली ज़िम्मेदारियाँ बदल जाती हैं तब हमारी मर्यादा की परख हो सकती है। बरजिल्लै की मिसाल लीजिए, जो राजा दाविद का वफादार दोस्त था। जब बरजिल्लै 80 साल का था तब दाविद ने उसे अपना दरबारी बनने का न्यौता दिया। हालाँकि यह एक बहुत बड़ा सम्मान था लेकिन बरजिल्लै ने कहा कि अच्छा होगा अगर यह ज़िम्मेदारी किमहाम को दी जाए। किमहाम शायद उसका बेटा था।—2 शमू. 19:31-37.
6 बरजिल्लै ने यह न्यौता क्यों कबूल नहीं किया? क्या इसलिए कि वह यह ज़िम्मेदारी नहीं लेना चाहता था या चैन की ज़िंदगी जीना चाहता था? जी नहीं। वह अपनी मर्यादा जानता था। उसे पता था कि उसके हालात बदल गए हैं और उसने कबूल किया कि वह यह ज़िम्मेदारी नहीं निभा पाएगा। (गलातियों 6:4, 5 पढ़िए।) बरजिल्लै की तरह, हमें भी अपनी हदें पहचाननी चाहिए। हमें अपना ध्यान इस बात पर लगाना चाहिए कि हम यहोवा को अपना सबसे अच्छा दें। और यही बात मायने रखती है न कि यह कि हमारे पास कोई खास ज़िम्मेदारी हो या दूसरों में हमारा नाम हो। इसलिए हम दूसरों से खुद की तुलना नहीं करते न ही इस बात पर ज़रूरत से ज़्यादा ध्यान देते हैं कि हम क्या चाहते हैं। (गला. 5:26) अगर हम मर्यादा में रहें तो हम अपने भाइयों के साथ मिलकर काम करेंगे ताकि यहोवा का आदर हो, साथ ही हम दूसरों की मदद करेंगे।—1 कुरिं. 10:31.
7, 8. मर्यादा किस तरह हमें खुद पर भरोसा करने से बचाएगी?
7 अगर हमें ज़्यादा ज़िम्मेदारी या अधिकार दिया जाए तब हमारे लिए मर्यादा में रहना मुश्किल हो सकता है। इस सिलसिले में हम नहेमायाह से कुछ सीख सकते हैं। जब नहेमायाह ने सुना कि यरूशलेम में लोगों को कई मुश्किलें झेलनी पड़ रही हैं तो उसने यहोवा से मदद की भीख माँगी। (नहे. 1:4, 11) यहोवा ने उसकी प्रार्थना सुनी। राजा अर्तक्षत्र ने उसे इलाके का राज्यपाल बनाया। हालाँकि नहेमायाह के पास बहुत दौलत और ताकत थी मगर उसने कभी खुद पर भरोसा नहीं किया। उसने हमेशा यहोवा से मार्गदर्शन लिया और वह लगातार उसका कानून पढ़ता रहा। (नहे. 8:1, 8, 9) नहेमायाह के पास बहुत अधिकार था लेकिन उसने कभी-भी इस अधिकार का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए और दूसरों पर ज़्यादती करने के लिए नहीं किया।—नहे. 5:14-19.
8 नहेमायाह की तरह अगर हमें और भी ज़िम्मेदारी मिलती है या हमारी ज़िम्मेदारी बदल जाती है तो हमें अपनी मर्यादा में रहना चाहिए। हमें सिर्फ अपनी काबिलीयतों या तजुरबे पर भरोसा नहीं करना चाहिए। एक इंसान कैसे खुद पर भरोसा करने लग सकता है? मिसाल के लिए, एक प्राचीन मंडली के किसी मामले को सँभालने से पहले शायद प्रार्थना न करे। या एक भाई नीतिवचन 3:5, 6 पढ़िए।) आज दुनिया में ज़्यादातर लोग स्वार्थी हैं और दूसरों से आगे बढ़ना चाहते हैं। लेकिन यहोवा के सेवक उनके जैसे नहीं हैं। हम ऐसा नहीं सोचते कि कोई खास ज़िम्मेदारी होने की वजह से हम अपने परिवार के सदस्यों से या मंडली के भाई-बहनों से बेहतर हैं। इसके बजाय, हम हमेशा याद रखते हैं कि परमेश्वर के इंतज़ाम में हमारी क्या भूमिका है और हम अपने भाई-बहनों के साथ मिलकर काम करते हैं।—1 तीमु. 3:15.
या बहन पहले कोई फैसला कर ले और उसके बाद यहोवा से उस फैसले पर आशीष माँगे। लेकिन मर्यादा में रहनेवाला इंसान खुद पर भरोसा नहीं रखता फिर चाहे वह कोई ऐसा काम कर रहा हो जो उसने पहले कई बार किया हो। वह याद रखता है कि उसकी काबिलीयतें यहोवा की तुलना में कुछ भी नहीं। (जब दूसरे हममें नुक्स निकालते हैं या हमारी तारीफ करते हैं
9, 10. जब दूसरे बेवजह हममें नुक्स निकालते हैं तो मर्यादा में रहना कैसे हमारी मदद कर सकता है?
9 जब कोई बेवजह हममें नुक्स निकालता है तो इससे हमें ठेस पहुँचती है। हन्ना के साथ ऐसा ही हुआ। उसका पति उससे बहुत प्यार करता था। लेकिन वह खुश नहीं थी क्योंकि वह बाँझ थी। और उसकी सौतन पनिन्ना हर समय उसे ताने मारती थी। एक दिन जब हन्ना बहुत उदास थी तो वह पवित्र डेरे में गयी और रो-रोकर प्रार्थना करने लगी। जब महायाजक एली ने उसे देखा तो उस पर इलज़ाम लगाया कि वह नशे में है। यह सुनकर हन्ना बहुत नाराज़ हो सकती थी। लेकिन मर्यादा में रहते हुए उसने एली को आदर के साथ जवाब दिया। बाद में, हन्ना ने एक ऐसी प्रार्थना की जिससे यहोवा पर उसका विश्वास और प्यार ज़ाहिर हुआ।—1 शमू. 1:5-7, 12-16; 2:1-10.
10 मर्यादा में रहने से हम ‘भलाई से बुराई को जीतते रह’ सकते हैं। (रोमि. 12:21) शैतान की इस दुनिया में कई बार हमारे साथ अन्याय होता है। हो सकता है यह देखकर हमें गुस्सा आए लेकिन हमें इस भावना से लड़ना चाहिए। (भज. 37:1) यह तब और भी मुश्किल हो सकता है जब मंडली में हमारे भाई-बहनों के साथ हमारी अनबन हो जाती है। अगर ऐसा होता है तो हमें यीशु की मिसाल पर चलना चाहिए। बाइबल कहती है, “जब उसकी बेइज़्ज़ती की गयी, तो बदले में उसने बेइज़्ज़ती नहीं की।” इसके बजाय, उसने “खुद को उस परमेश्वर के हाथ में सौंप दिया जो सच्चा न्याय करता है।” (1 पत. 2:23) यीशु नम्र था और वह जानता था कि यहोवा किसी भी अन्याय को दूर कर सकता है। (रोमि. 12:19) हम भी नम्र होना चाहते हैं और जब कोई ‘हमें चोट पहुँचाता है तो बदले में हम उसे चोट नहीं पहुँचाते।’—1 पत. 3:8, 9.
11, 12. (क) जब हमारी खूब तारीफ की जाती है तो हम कैसे मर्यादा में रह सकते हैं? (ख) हम अपने पहनावे और व्यवहार से कैसे दिखा सकते हैं कि हम मर्यादा में रहते हैं?
11 जब हमारी खूब तारीफ की जाती है, तब भी हमारी परख हो सकती है कि हम मर्यादा में रहते हैं या नहीं। एस्तेर की इसी तरह परख हुई। उसकी बहुत तारीफ की गयी क्योंकि वह फारस की खूबसूरत लड़कियों में से एक थी। पूरे एक साल तक बाकी लड़कियों की तरह उसका रंग-रूप निखारा गया। उसके आस-पास जितनी भी लड़कियाँ थीं उनका ध्यान सिर्फ सँजने-सँवरने पर था, वे किसी भी हाल में राजा का ध्यान अपनी तरफ खींचना चाहती थीं। लेकिन राजा ने एस्तेर को अपनी रानी चुना। क्या इन बातों ने एस्तेर को स्वार्थी बना दिया? नहीं। वह अपनी मर्यादा में रही और प्यार और आदर से पेश आयी।—एस्ते. 2:9, 12, 15, 17.
12 अगर हम मर्यादा में रहते हैं तो हम अपने पहनावे और व्यवहार से दिखाएँगे कि हम दूसरों का और खुद का आदर करते हैं। खुद के बारे में शेखी मारने या दूसरों की नज़रों में छाने के बजाय हमारी कोशिश रहेगी कि हम “शांत और कोमल स्वभाव” के हों। (1 पतरस 3:3, 4 पढ़िए; यिर्म. 9:23, 24) खुद के बारे में हमारा क्या नज़रिया है यह हमारी बोली से और कामों में नज़र आएगा। उदाहरण के लिए, हम शायद दूसरों पर यह जताएँ कि हमारे पास कोई अनोखी ज़िम्मेदारी है, हमारे पास ऐसी जानकारी है जो किसी और के पास नहीं है या ज़िम्मेदार भाइयों से हमारी अच्छी जान-पहचान है। यह भी हो सकता है कि हम किसी ऐसे काम के लिए खुद वाह-वाही लूटें जिसे पूरा करने में असल में दूसरों का भी हाथ था। ज़रा यीशु के बारे में सोचिए। वह इतना बुद्धिमान था कि वह लोगों की नज़रों में छा सकता था। मगर उसने कभी-भी अपनी तरफ से कुछ नहीं कहा बल्कि परमेश्वर के वचन का हवाला दिया। वह नहीं चाहता था कि लोग उसकी वाह-वाही करें। उसने हमेशा यही चाहा कि सिर्फ यहोवा की महिमा हो।—यूह. 8:28.
जब हम फैसले करते हैं
13, 14. मर्यादा में रहने से हम कैसे सही फैसले ले पाएँगे?
13 जब हम कोई फैसला करते हैं या दूसरे कोई ऐसा फैसला करते हैं जिसका हम पर असर होता है, तो हमें मर्यादा में रहना चाहिए। कैसरिया में रहते वक्त प्रेषित पौलुस यरूशलेम जाना चाहता था ताकि यहोवा का दिया काम पूरा कर सके। लेकिन भविष्यवक्ता अगबुस ने उससे कहा कि अगर वह यरूशलेम जाएगा तो उसे बंदी बना लिया जाएगा या शायद मार डाला जाएगा। भाइयों ने पौलुस से मिन्नतें कीं कि वह यरूशलेम न जाए। फिर भी पौलुस ने वहाँ जाने का फैसला किया। क्या पौलुस को खुद पर कुछ ज़्यादा ही भरोसा था? नहीं। पौलुस अपनी मर्यादा जानता था। उसने यहोवा पर भरोसा रखते हुए यह फैसला किया था। कैसरिया के भाइयों ने भी मर्यादा में रहते हुए पौलुस के फैसले का आदर किया और उसे जाने दिया।—प्रेषि. 21:10-14.
14 मर्यादा में रहने से हमें सही फैसले लेने में मदद मिलती है, तब भी जब हमें यह ठीक-ठीक नहीं पता होता कि हमारे फैसलों का क्या नतीजा होगा। उदाहरण के लिए, हम शायद पूरे समय की सेवा शुरू करने की सोच रहे हों। मगर हमारे मन में कुछ ऐसे सवाल उठें: पूरे समय की सेवा में अगर हम बीमार हो गए तो हमारा क्या होगा? अगर हमारे माँ-बाप बीमार हो गए या उन्हें हमारी ज़रूरत पड़ी तो हम क्या करेंगे? और जब हम बूढ़े हो जाएँगे तब हम क्या करेंगे? हम चाहे कितनी भी प्रार्थना करें या खोजबीन करें हमें इन सवालों के जवाब पूरी तरह नहीं मिलेंगे। (सभो. 8:16, 17) अगर हमें यहोवा पर भरोसा होगा तो हम यह मानेंगे कि हमारे पास सारे सवालों के जवाब नहीं हैं। इसलिए हम सब बातों की जाँच करेंगे, दूसरों से सलाह लेंगे और सबसे बढ़कर यहोवा से मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करेंगे। इसके बाद, यहोवा की पवित्र शक्ति जो भी राह दिखाएगी हम उस पर चलेंगे। (सभोपदेशक 11:4-6 पढ़िए।) तब यहोवा हमारे फैसलों पर आशीष देगा या हमारी योजनाओं में फेरबदल करने में हमारी मदद करेगा।—नीति. 16:3, 9.
हम मर्यादा में कैसे रह सकते हैं?
15. यहोवा के बारे में मनन करने से हम कैसे नम्र बने रह सकते हैं?
15 हम कैसे और भी अच्छी तरह अपनी मर्यादा को पहचान सकते हैं? आइए चार तरीकों पर गौर करें। पहला, हमें यहोवा के बारे में मनन करना चाहिए, हमें गहराई से सोचना चाहिए कि वह किस तरह का परमेश्वर है। तब हमें एहसास होगा कि हम उसके सामने कुछ भी नहीं और हम कितना कम जानते हैं। (यशा. 8:13) याद रखिए, हम किसी इंसान या स्वर्गदूत की नहीं बल्कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर की सेवा करते हैं। इस बात पर मनन करने से हम “परमेश्वर के शक्तिशाली हाथ के नीचे” खुद को नम्र कर पाएँगे।—1 पत. 5:6.
16. परमेश्वर के प्यार पर मनन करने से हम कैसे मर्यादा में रह सकते हैं?
16 दूसरा तरीका है, इस बात पर मनन करना कि यहोवा हमसे कितना प्यार करता है। पौलुस ने मंडली की तुलना इंसान के शरीर से की। यहोवा ने हमारा शरीर ऐसा बनाया है कि हर अंग बहुत ज़रूरी है और उसकी अपनी एक जगह है। (1 कुरिं. 12:23, 24) उसी तरह, हममें से हरेक जन यहोवा की नज़र में अनमोल है। वह हमारी तुलना दूसरों से नहीं करता और हमारे गलती करने पर भी उसका प्यार हमारे लिए कम नहीं होता। हमें यह जानकर सुकून मिलता है कि यहोवा हमसे बेहद प्यार करता है।
17. जब हम दूसरों में अच्छाइयाँ देखते हैं तो इसका हम पर क्या असर होगा?
17 तीसरा तरीका है, दूसरों में अच्छाइयाँ देखना ठीक जैसे यहोवा देखता है। हमें हमेशा दूसरों का ध्यान अपनी तरफ नहीं दिलाना चाहिए न ही हर मामले में अपनी बात मनवाने की कोशिश करनी चाहिए। इसके बजाय, हमें दूसरों से सलाह-मशविरा करना चाहिए और उनके सुझाव मानने के लिए तैयार रहना चाहिए। (नीति. 13:10) जब हमारे भाई-बहनों को खास ज़िम्मेदारियाँ मिलती हैं तो हम उनके लिए खुश होते हैं। और हम यहोवा का शुक्रिया अदा करते हैं कि वह हम सभी को उसकी सेवा करने का मौका देता है।—1 पत. 5:9.
18. ज़मीर को प्रशिक्षण देने से हम कैसे मर्यादा में रह पाते हैं?
18 चौथा तरीका है, अपने ज़मीर को बाइबल सिद्धांतों के आधार पर प्रशिक्षण देना। ये सिद्धांत हमें सिखाते हैं कि किसी मामले के बारे में यहोवा की क्या सोच है और वह कैसा महसूस करता है। जब हम यहोवा के नज़रिए से मामलों को देखते हैं तो हम ऐसे फैसले ले पाते हैं जिनसे वह खुश होता है। जैसे-जैसे हम अध्ययन करते हैं, प्रार्थना करते हैं और सीखी बातों को लागू करते हैं तो हमारा ज़मीर और अच्छी तरह काम करेगा। (1 तीमु. 1:5) हम दूसरों को अहमियत देना सीखेंगे। अगर हम यह सब करेंगे तो यहोवा वादा करता है कि वह ‘हमारा प्रशिक्षण खत्म करेगा’ और हमें मर्यादा में रहने में मदद देगा।—1 पत. 5:10.
19. क्या बात हमें उभारेगी कि हम हमेशा मर्यादा में रहें?
19 क्या आपको यहूदा का वह भविष्यवक्ता याद है जिसके बारे में हमने इस लेख की शुरूआत में पढ़ा था? उसने अपनी ज़िंदगी और यहोवा के साथ अपनी दोस्ती गँवा दी क्योंकि वह अपनी मर्यादा में नहीं रहा। लेकिन हम मर्यादा में रह सकते हैं तब भी जब ऐसा करना मुश्किल होता है। यहोवा के कई वफादार सेवकों के उदाहरण दिखाते हैं कि मुश्किल हालात में भी एक इंसान मर्यादा में रह सकता है। हम जितने लंबे समय से यहोवा की सेवा कर रहे हैं, उतना ज़्यादा हमें उस पर निर्भर रहना चाहिए। (नीति. 8:13) चाहे हमारे हालात कैसे भी हों, हम यहोवा के साथ चल सकते हैं। यह हमारे लिए सबसे बड़ा सम्मान है। इसलिए आइए हम हमेशा मर्यादा में रहने की और यहोवा के साथ चलते रहने की पूरी कोशिश करें।