हमारे अगुवे मसीह पर भरोसा कीजिए
“तुम्हारा एक ही नेता या अगुवा है, मसीह।”—मत्ती 23:10.
गीत: 14, 30
1, 2. मूसा की मौत के बाद यहोशू को कौन-सा मुश्किल काम सौंपा गया?
यहोवा ने यहोशू से कहा, “मेरा सेवक मूसा मर चुका है। अब तू इसराएल के लोगों को लेकर यरदन के पार जा और उन्हें उस देश में ले जा जो मैं उन्हें देनेवाला हूँ।” (यहो. 1:1, 2) यहोशू करीब 40 साल से मूसा का सहायक था, लेकिन अब वह इसराएल का अगुवा बनने जा रहा था। यह उसके लिए कितना बड़ा बदलाव था!
2 इतने सालों से मूसा इसराएलियों की अगुवाई कर रहा था, लेकिन क्या अब लोग यहोशू को अपना अगुवा स्वीकार करेंगे? यह सोचकर भी उसे चिंता हो रही होगी। (व्यव. 34:8, 10-12) यहोशू 1:1, 2 के बारे में बाइबल पर टिप्पणी करनेवाली एक किताब बताती है, ‘जब भी किसी देश में एक नेता की जगह दूसरा नेता आता है, तो वह समय उस देश के लिए सबसे मुश्किल और खतरनाक होता है। यह बात पहले भी सच थी और आज भी सच है।’
3, 4. (क) परमेश्वर पर भरोसा रखने की वजह से यहोशू को कौन-सी आशीष मिली? (ख) हमारे मन में क्या सवाल उठ सकते हैं?
3 यहोशू का चिंता करना वाजिब था, फिर भी उसने यहोवा पर भरोसा रखा और फौरन उसकी हिदायतें मानीं। (यहो. 1:9-11) इस वजह से परमेश्वर ने उसे आशीष दी। यहोवा ने उसका और इसराएलियों का मार्गदर्शन करने के लिए एक स्वर्गदूत को भेजा। यह स्वर्गदूत कोई और नहीं बल्कि वचन था यानी परमेश्वर का पहलौठा बेटा।—निर्ग. 23:20-23; यूह. 1:1.
4 यहोवा ने इसराएलियों की मदद की, ताकि वे अपने नए अगुवे यहोशू को स्वीकार कर सकें और उसकी बात मान सकें। आज हमारे दिनों में भी बड़े-बड़े बदलाव हो रहे हैं। शायद हम सोचें, ‘जैसे-जैसे परमेश्वर का संगठन आगे बढ़ रहा है, क्या हम यीशु पर भरोसा कर सकते हैं, जिसे हमारा अगुवा ठहराया गया है? क्या उस पर भरोसा करने के हमारे पास ठोस कारण हैं?’ (मत्ती 23:10 पढ़िए।) यह जानने के लिए आइए देखें कि पुराने ज़माने में जब भी कुछ बदलाव हुए, तो यहोवा ने अपने लोगों की अगुवाई कैसे की।
इसराएलियों को कनान ले जानेवाला अगुवा
5. यरीहो के पास यहोशू के साथ कौन-सी अनोखी घटना घटी? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
5 जैसे ही इसराएलियों ने यरदन नदी पार की, यहोशू के साथ एक अनोखी घटना घटी। यरीहो शहर के पास वह एक आदमी से मिला, जो तलवार लिए खड़ा था। यहोशू ने उससे पूछा, “तू किसकी तरफ है, हमारी तरफ या दुश्मनों की?” उसने कहा, “मैं यहोवा की सेना का प्रधान हूँ।” उसकी बात सुनकर यहोशू हैरान रह गया। दरअसल वह आदमी एक स्वर्गदूत था, जो परमेश्वर के लोगों की तरफ से लड़ने के लिए तैयार था। (यहोशू 5:13-15 पढ़िए।) हालाँकि बाइबल की दूसरी आयतों में लिखा है कि यहोवा ने यहोशू से बात की, पर असल में उसने एक स्वर्गदूत के ज़रिए बात की थी। परमेश्वर ने बीते समय में भी कई बार ऐसा किया था।—निर्ग. 3:2-4; यहो. 4:1, 15; 5:2, 9; प्रेषि. 7:38; गला. 3:19.
6-8. (क) इंसानी नज़रिए से देखें तो स्वर्गदूत की कुछ हिदायतें अजीब क्यों लगी होंगी? (ख) हम कैसे जानते हैं कि ये हिदायतें एकदम सही थीं और ठीक समय पर दी गयी थीं? (फुटनोट भी देखिए।)
6 स्वर्गदूत ने यहोशू को बताया कि यरीहो को जीतने के लिए उसे क्या करना होगा। शुरू में कुछ हिदायतें सुनने पर अजीब लगी होंगी। उदाहरण के लिए, स्वर्गदूत ने यहोशू से कहा कि वह सभी सैनिकों का खतना करवाए। इसका मतलब होता कि वे कुछ दिनों तक लड़ नहीं पाएँगे। उन आदमियों का खतना कराने के लिए क्या यह वक्त सही था?—उत्प. 34:24, 25; यहो. 5:2, 8.
7 सैनिकों के मन में आया होगा, ‘अगर दुश्मनों ने हमारी छावनी पर हमला कर दिया, तो हम अपने परिवार की रक्षा कैसे करेंगे?’ लेकिन तभी कुछ ऐसा हुआ, जिसकी किसी ने उम्मीद भी नहीं की थी। इसराएलियों पर हमला करने के बजाय यरीहो के लोग उनसे डरने लगे। बाइबल बताती है, “इसराएलियों की वजह से यरीहो के फाटक कसकर बंद कर दिए गए। न तो कोई शहर से बाहर जा सकता था न ही अंदर आ सकता था।” (यहो. 6:1) यह खबर सुनकर परमेश्वर के मार्गदर्शन पर इसराएलियों का भरोसा और बढ़ गया होगा!
8 स्वर्गदूत ने यहोशू से यह भी कहा कि इसराएली यरीहो पर हमला न करें, बल्कि हर दिन एक बार शहर का चक्कर लगाएँ। उन्हें ऐसा छ: दिन करना था। फिर सातवें दिन उन्हें शहर के सात चक्कर लगाने थे। सैनिकों ने सोचा होगा, ‘यह तो वक्त की बरबादी है! ताकत भी ज़ाया होगी!’ लेकिन इसराएलियों का अगुवा यहोवा अच्छी तरह जानता था कि वह क्या कर रहा है। उसकी हिदायत मानने से इसराएलियों का विश्वास मज़बूत हुआ और उन्हें यरीहो के लोगों से लड़ना भी नहीं पड़ा।—यहो. 6:2-5; इब्रा. 11:30. *
9. परमेश्वर के संगठन से हमें जो भी हिदायत मिलती है, उसे मानना क्यों ज़रूरी है? उदाहरण दीजिए।
9 इस घटना से हम क्या सीखते हैं? कभी-कभी यहोवा का संगठन किसी नए तरीके से काम करता है और शायद हम इसकी वजह न समझ पाएँ। उदाहरण
के लिए, जब संगठन ने कहा कि हमें इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल निजी अध्ययन में, प्रचार सेवा या सभाओं में करना चाहिए, तब शायद हमें लगा हो कि पता नहीं, यह किस हद तक फायदेमंद होगा। लेकिन आज अगर हम इनका इस्तेमाल कर रहे हैं, तो हम देख सकते हैं कि यह कितना फायदेमंद है। जब हम इस तरह के बदलावों के फायदों पर ध्यान देते हैं, तो हमारा विश्वास मज़बूत होता है और हमारे बीच एकता बढ़ती है।शुरू के मसीहियों की अगुवाई यीशु ने कैसे की?
10. खतने के बारे में यरूशलेम में शासी निकाय की जो खास सभा हुई, उसके पीछे असल में किसका हाथ था?
10 जब एक खतनारहित गैर-यहूदी आदमी कुरनेलियुस मसीही बना था, तो उसके करीब 13 साल बाद भी कुछ यहूदी मसीही कह रहे थे कि खतना करवाना ज़रूरी है। (प्रेषि. 15:1, 2) इसी बात पर अंताकिया शहर के भाइयों में बहस हो रही थी। इस वजह से प्राचीनों ने पौलुस को यरूशलेम भेजने का इंतज़ाम किया, ताकि वह इस बारे में शासी निकाय से पूछे। लेकिन असल में पौलुस को वहाँ भेजने के पीछे किसका हाथ था? उसने बताया, “मैं वहाँ इसलिए गया क्योंकि मुझ पर प्रकट किया गया था कि मुझे वहाँ जाना है।” इससे साफ पता चलता है कि मसीह ने ही भाइयों को उभारा कि वे खतने का मसला शासी निकाय के पास ले जाएँ और वह इसे सुलझाए।—गला. 2:1-3.
11. (क) खतने के मामले में कुछ यहूदी मसीही अब भी क्या कर रहे थे? (ख) पौलुस ने नम्र होकर किस तरह यरूशलेम के प्राचीनों की हिदायतें मानी? (फुटनोट भी देखिए।)
11 मसीह ने शासी निकाय को यह साफ-साफ बताने के लिए निर्देश दिया कि गैर-यहूदी मसीहियों के लिए खतना कराना ज़रूरी नहीं है। (प्रेषि. 15:19, 20) लेकिन इस घटना के कई सालों बाद भी बहुत-से यहूदी मसीही अपने बेटों का खतना करा रहे थे। फिर यरूशलेम के प्राचीनों ने सुना कि पौलुस के बारे में यह अफवाह है कि वह मूसा के कानून का आदर नहीं करता। इस वजह से प्राचीनों ने पौलुस से कुछ ऐसा करने के लिए कहा, जिससे पता चलता कि वह कानून का आदर करता है। * (प्रेषि. 21:20-26) उन्होंने उसे चार आदमियों के साथ मंदिर जाने के लिए कहा, ताकि लोग देख सकें कि वह कानून का आदर करता है। पौलुस कह सकता था, ‘यह क्या बात हुई! खतने के बारे में समझ यहूदी मसीहियों को नहीं है। आप मुझसे ऐसा करने के लिए क्यों कह रहे हैं?’ लेकिन उसने ऐसा कुछ नहीं कहा, क्योंकि वह समझ गया था कि प्राचीन मसीहियों के बीच एकता चाहते हैं। उसने नम्रता से उनकी हिदायतें मानीं। मगर शायद हम सोचें कि यीशु ने इतने समय तक खतने का मसला क्यों रहने दिया, जबकि मूसा का कानून तो उसकी मौत के साथ ही रद्द हो गया था।—कुलु. 2:13, 14.
12. मसीह ने खतने का मसला पूरी तरह सुलझाने से पहले इतना वक्त क्यों गुज़रने दिया होगा?
12 नयी समझ के मुताबिक खुद को ढालने में वक्त लग सकता है। कुछ यहूदी मसीहियों को यह बात स्वीकार करने के लिए वक्त चाहिए था कि अब वे कानून के अधीन नहीं रहे। (यूह. 16:12) वे अब तक यही मानते आए थे कि खतना परमेश्वर के साथ उनके खास रिश्ते की निशानी है। (उत्प. 17:9-12) कुछ यहूदी मसीहियों को डर था कि खतना न करवाने पर यहूदी समाज के लोग उन पर ज़ुल्म ढा सकते हैं। (गला. 6:12) लेकिन वक्त के गुज़रते मसीह ने पौलुस की चिट्ठियों के ज़रिए इस मामले में और भी निर्देश दिए।—रोमि. 2:28, 29; गला. 3:23-25.
मसीह आज भी अपनी मंडली की अगुवाई कर रहा है
13. आज मसीह जिस तरह अगुवाई करता है, उसमें सहयोग देने में क्या बात हमारी मदद कर सकती है?
13 मसीह अब भी मंडली का अगुवा है। इस वजह से जब भी ऐसा होता है कि संगठन कुछ बदलाव करता है और वह हम समझ नहीं पाते, तो हमें सोचना चाहिए कि पुराने ज़माने में मसीह ने परमेश्वर के लोगों की अगुवाई किस तरह की। चाहे यहोशू के दिनों की बात करें या प्रेषितों के ज़माने की, मसीह ने हमेशा एकदम सही मार्गदर्शन दिया। इससे उनकी हिफाज़त हुई, उनका विश्वास मज़बूत हुआ और उनमें एकता रही।—इब्रा. 13:8.
14-16. “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” से मिलनेवाली हिदायतों से कैसे पता चलता है कि मसीह हमारा विश्वास मज़बूत करना चाहता है?
14 यीशु को हमारी परवाह है, यह हम इस बात से जान पाते हैं कि वह आज “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के ज़रिए हमें ठीक समय पर ऐसी हिदायतें देता है, जो हमें चाहिए। (मत्ती 24:45) मार्क, जिसके चार बच्चे हैं, कहता है, “शैतान मंडलियों को कमज़ोर करने के लिए परिवारों पर हमला कर रहा है। इस वजह से हर हफ्ते पारिवारिक उपासना करने का जो बढ़ावा दिया जा रहा है, उससे परिवार के सभी मुखियाओं को यह साफ संदेश मिलता है, अपने परिवार की हिफाज़त करो!”
15 जब हम देखते हैं कि मसीह किस तरह हमारी अगुवाई कर रहा है, तो हम समझ पाते हैं कि वह हमारा विश्वास मज़बूत करना चाहता है। पैट्रिक नाम का एक प्राचीन कहता है, “पहले-पहल कुछ लोगों को शनिवार-रविवार को प्रचार के लिए छोटे समूहों में मिलना अच्छा नहीं लगा।” वह कहता है कि लेकिन इस बदलाव से पता चलता है कि यीशु को मंडली के हरेक सदस्य की परवाह है। जैसे, जो भाई-बहन स्वभाव से शर्मीले हैं या जो प्रचार में ज़्यादा नहीं जाते थे, अब उन्हें लगता है कि उनकी ज़रूरत है और उनके जाने से काफी फायदा होता है। इससे उनका विश्वास मज़बूत हुआ है।
16 मसीह प्रचार काम पर पूरा ध्यान लगाने में भी हमारी मदद करता है, जो आज धरती पर हो रहा सबसे अहम काम है। (मरकुस 13:10 पढ़िए।) हाल ही में बने एक प्राचीन आंड्रे की यही कोशिश रहती है कि वह यहोवा के संगठन से मिलनेवाली हर नयी हिदायत माने। वह कहता है, “जब शाखा दफ्तर में सेवा करनेवाले कुछ भाई-बहनों को दूसरी जगह भेजा गया, तो इससे हमें एहसास हुआ कि वक्त बहुत कम रह गया है और हमें अपनी पूरी ताकत प्रचार करने में लगानी चाहिए।”
हम मसीह के मार्गदर्शन पर कैसे चल सकते हैं?
17, 18. बदलाव के मुताबिक खुद को ढालने से जो फायदे होते हैं, उन पर हमें ध्यान क्यों देना चाहिए?
17 हमारा राजा यीशु मसीह जिस तरह हमारा मार्गदर्शन करता है, उस पर चलने से हमें न सिर्फ आज फायदा होता है, बल्कि भविष्य में भी होगा। हाल ही में किए गए बदलाव के मुताबिक खुद को ढालने से
जो फायदे हुए हैं, उनके बारे में सोचिए। पारिवारिक उपासना के दौरान चर्चा कीजिए कि सभाओं में या प्रचार के मामले में हुए बदलाव की वजह से आपके परिवार को कैसे फायदा हुआ है।18 अगर हम यह याद रखें कि यहोवा के संगठन से मिलनेवाली हिदायतें मानने से कितने फायदे होते हैं, तो उन्हें मानना हमारे लिए आसान होगा और हमें खुशी मिलेगी। उदाहरण के लिए, अब हम पहले जितने प्रकाशन नहीं छापते, इसलिए हम पैसे बचाते हैं। इसके अलावा हम नयी टेकनॉलजी का इस्तेमाल करके ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों तक खुशखबरी पहुँचा पाते हैं। क्या हम निजी तौर पर मोबाइल या टैबलेट से किताबें-पत्रिकाएँ, वीडियो और ऑडियो रिकॉर्डिंग का और ज़्यादा इस्तेमाल कर सकते हैं? यह एक तरीका है, जिससे हम मसीह का साथ देते हैं। वह चाहता है कि हम संगठन के साधनों का अच्छी तरह इस्तेमाल करें।
19. हमें मसीह के मार्गदर्शन पर क्यों चलना चाहिए?
19 मसीह के मार्गदर्शन पर चलने से हम भाई-बहनों का विश्वास मज़बूत करने और उनके बीच एकता बढ़ाने में मदद दे रहे होते हैं। हाल ही में पूरी दुनिया के बेथेल-घरों से कई सदस्यों को दूसरी जगह भेजा गया। इस बारे में आंड्रे कहता है, ‘बेथेल में सेवा कर चुके भाई-बहनों ने इन बदलावों के मुताबिक जिस तरह खुद को ढाला है, उससे मसीह की अगुवाई पर मेरा भरोसा बढ़ा है और उन भाई-बहनों के लिए आदर भी। उन्हें सेवा की जो भी ज़िम्मेदारी मिलती है, उसे खुशी-खुशी निभाकर वे यहोवा के रथ के साथ कदम-से-कदम मिलाकर चलते हैं।’
अपने अगुवे पर भरोसा रखिए
20, 21. (क) हम अपने अगुवे मसीह यीशु पर भरोसा क्यों रख सकते हैं? (ख) अगले लेख में हम किस सवाल के बारे में चर्चा करेंगे?
20 जल्द ही हमारा अगुवा यीशु मसीह “अपनी जीत पूरी” करेगा और “विस्मयकारी काम करेगा।” (प्रका. 6:2; भज. 45:4) लेकिन उससे पहले वह आज हमें नयी दुनिया के लिए तैयार कर रहा है, जहाँ हम दोबारा ज़िंदा किए गए लोगों को सिखाएँगे और धरती को फिरदौस बनाने में मदद करेंगे।
21 अगर हम हर हाल में अपने अगुवे और राजा पर भरोसा करें, तो वह हमें नयी दुनिया में ले जाएगा। (भजन 46:1-3 पढ़िए।) आज बदलाव का सामना करना बहुत मुश्किल हो सकता है, खासकर ऐसे बदलाव का, जिससे अचानक हमारी ज़िंदगी में एक नया मोड़ आ जाए। ऐसा होने पर हम कैसे शांत रह सकते हैं और यहोवा पर मज़बूत विश्वास रख सकते हैं? इस सवाल के बारे में हम अगले लेख में चर्चा करेंगे।
^ पैरा. 8 खंडहरों की खोज करनेवालों ने यरीहो के खंडहरों में बहुत सारा अनाज पाया, जिसे लोगों ने बस कटाई करके इकट्ठा किया था, मगर खाया नहीं था। इससे पता चलता है कि बाइबल में दर्ज़ यरीहो की घटना सच्ची है। बाइबल में बताया गया है कि यरीहो की घेराबंदी बहुत कम दिनों के लिए हुई थी और इसराएलियों को वहाँ का अनाज खाने से मना किया गया था। वह समय फसल की कटाई का था और खेतों में भरपूर अनाज था, इसलिए इसराएलियों के लिए यरीहो को जीतने का वह बहुत अच्छा वक्त था।—यहो. 5:10-12.
^ पैरा. 11 15 मार्च, 2003 की प्रहरीदुर्ग के पेज 24 पर दिया बक्स देखिए, जिसका शीर्षक है, “पौलुस नम्रता से परीक्षा का सामना करता है।”