प्रतिज्ञा का बच्चा
अध्याय ६
प्रतिज्ञा का बच्चा
नासरत लौटने के बदले, यूसुफ और मरियम बैतलहम में ही ठहरते हैं। और जब यीशु आठ दिन का होता है, वे उसका खतना करते हैं, जिस तरह मूसा को दिया हुआ परमेश्वर का नियम आज्ञा करती है। स्पष्टतया ऐसा दस्तूर है कि आठवें दिन बालक का नाम भी रखा जाए। अतः वे अपने बच्चे का नाम यीशु रखते हैं, जैसे स्वर्गदूत जिब्राईल ने पहले से उन्हें निर्दिष्ट किया था।
एक महीने से कुछ अधिक दिन बीत जाते हैं, और यीशु ४० दिन का है। अब उसके माता-पिता उसे कहाँ ले जाते हैं? यरूशलेम के मंदिर ले जाते हैं, जो उनके निवासस्थान से कुछ ही किलोमीटर दूर है। मूसा को दिए गए परमेश्वर के नियम के मुताबिक, पुत्र को जन्म देने के ४० दिन बाद, एक माँ के लिए ज़रूरी है कि शुद्धिकरण के लिए मंदिर में भेंट ले जाए।
मरियम ऐसा ही करती है। भेंट देने के लिए वह दो छोटी परिंदे लाती है। यह यूसुफ और मरियम की आर्थिक स्थिति प्रकट करती है। मूसा का नियम सूचित करता है कि एक भेड़ी का बच्चा, जो परिंदों से ज़्यादा मूल्यवान होता है, चढ़ावे में देना चाहिए। पर यदि एक माँ इसे देने में असमर्थ है, तो दो पंडुकी या दो कबूतर पर्याप्त होगा।
मंदिर में एक बूढ़ा यीशु को अपनी गोद में लेता है। उसका नाम शमौन है। परमेश्वर ने उसे यह बात प्रकट की है कि वह जब तक यहोवा के प्रतिज्ञात मसीहा, या ख्रीस्त, को नहीं देखेगा तब तक उसकी मृत्यु नहीं होगी। जब शमौन इस दिन मंदिर आता है, तब पवित्र आत्मा उसे यूसुफ और मरियम ने उठाया हुआ बच्चे की ओर निर्दिष्ट करता है।
जैसे शमौन यीशु को गोद में लेता है, वह यह कहते हुए परमेश्वर का धन्यवाद करता है: “हे परम प्रधान प्रभु, अब तू अपने दास को अपने वचन के अनुसार शांति से विदा करता है; क्योंकि मेरी आँखों ने तेरे उद्धार को देख लिया है, जिसे तू ने सब देशों के लोगों के सामने तैयार किया है, कि वह अन्य राष्ट्रों को प्रकाश देने के लिए ज्योति, और तेरे निज लोग इस्राएल की महिमा हो।”
जब यूसुफ और मरियम यह सुनते हैं तो वे चकित हो जाते हैं। फिर शमौन उन्हें आशिष देकर मरियम से कहता है कि उसका पुत्र “इस्राएल में बहुतों के गिरने, और उठने के लिए” है और दुःख, एक तेज़ तलवार की तरह, उसकी प्राण को छेदित करेगा।
इस अवसर पर हन्नाह नाम की एक ८४-वर्षीय भविष्यवकत्री वहाँ उपस्थित है। दरअसल, वह मंदिर से कभी ग़ायब नहीं होती। वह उसी घड़ी उनके निकट आकर परमेश्वर का धन्यवाद करने लगती है और सुननेवालों को यीशु के बारे में बताने लगती है।
मंदिर के इन घटनाओं से यूसुफ और मरियम कितने आनन्दित होते हैं! बेशक, यह सब उन्हें पुष्टि करता है कि यह बालक परमेश्वर का प्रतिज्ञा किया हुआ है। लूका २:२१-३८; लैव्यव्यवस्था १२:१-८.
▪ स्पष्टतया, एक इस्राएली बालक का नाम दस्तूर के अनुसार कब रखा जाता था?
▪ एक इस्राएली माँ से क्या माँग थी जब उसका पुत्र ४० दिनों का हो जाता था, और कैसे इस माँग की पूर्णता मरियम की आर्थिक स्थिति प्रकट करती है?
▪ इस अवसर पर कौन यीशु को पहचानते हैं, और कैसे उन्होंने इसे दिखाया?