अध्याय 83
दावत का न्यौता
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नम्रता की सीख
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दावत में न आने के बहाने
यीशु अभी-भी फरीसी के घर पर है। उसने कुछ देर पहले एक जलोदर के रोगी को चंगा किया था। यीशु देखता है कि दावत में आए मेहमान खास-खास जगह पर बैठने की कोशिश कर रहे हैं। वह उन्हें नम्र रहने के बारे में कुछ सलाह देता है:
“जब कोई तुझे शादी की दावत के लिए न्यौता दे, तो जाकर सबसे खास जगह पर मत बैठना। हो सकता है किसी और को भी न्यौता दिया गया हो जो तुझसे भी बड़ा है। तब जिस मेज़बान ने तुम दोनों को न्यौता दिया है वह आकर तुझसे कहेगा, ‘इस आदमी को यहाँ बैठने दे।’ और तुझे शर्मिंदा होकर वहाँ से उठना पड़ेगा और जाकर सबसे नीची जगह बैठना पड़ेगा।”—लूका 14:8, 9.
“जब तुझे न्यौता मिले, तो जाकर सबसे नीची जगह पर बैठना। जब मेज़बान आएगा तो तुझसे कहेगा, ‘मेरे दोस्त, वहाँ ऊपर जाकर बैठ।’ तब सब मेहमानों के सामने तेरी इज़्ज़त बढ़ेगी।” यीशु यह नहीं कह रहा है कि हमें सिर्फ अदब से पेश आने के लिए ऐसा करना है। वह असली कारण बताता है, “हर कोई जो खुद को बड़ा बनाता है उसे छोटा किया जाएगा और जो कोई खुद को छोटा बनाता है उसे बड़ा किया जाएगा।” (लूका 14:10, 11) यीशु लोगों को नम्र होने के लिए कह रहा है।
अब वह मेज़बान को यानी उस फरीसी को कुछ सलाह देता है जिसने दावत रखी है। दावत में किस तरह के लोगों को बुलाना सही रहेगा? परमेश्वर क्या चाहता है? “जब तू दोपहर या शाम का खाना करे, तो अपने दोस्तों, भाइयों, रिश्तेदारों या अमीर पड़ोसियों को मत बुलाना। हो सकता है कि बदले में वे भी तुझे कभी खाने पर बुलाएँ और बात बराबर हो जाए। मगर जब तू दावत दे, तो गरीबों, अपाहिजों, लँगड़ों और अंधों को न्यौता देना। तब तुझे खुशी मिलेगी क्योंकि तुझे बदले में देने के लिए उनके पास कुछ नहीं है।”—लूका 14:12-14.
यीशु यह नहीं कह रहा है कि दोस्तों, रिश्तेदारों और आस-पड़ोस के लोगों को खाने पर बुलाना गलत है। लेकिन वह कह रहा है कि हमें ऐसे लोगों को भी बुलाना चाहिए जो गरीब हैं और जो हाथ-पैर से लाचार हैं और जो देख नहीं सकते। तब परमेश्वर हमें आशीष देगा, क्योंकि ऐसे लोगों को कोई नहीं पूछता। वे सच में ज़रूरतमंद होते हैं। यीशु फरीसी से कहता है, “जब नेक जन दोबारा ज़िंदा किए जाएँगे, तब तुझे इसका इनाम मिलेगा।” वहाँ आया एक मेहमान यीशु की हाँ में हाँ मिलाकर कहता है, “सुखी है वह जो परमेश्वर के राज में भोजन करेगा।” (लूका 14:15) लेकिन कई लोग इस आशीष की कदर नहीं करते, जैसा कि यीशु एक मिसाल देकर बताता है:
‘एक आदमी ने शाम के खाने की आलीशान दावत रखी और बहुतों को न्यौता दिया। उसने अपने दास से कहा कि जिन्हें बुलाया गया है उनसे जाकर कह, “आ जाओ, सबकुछ तैयार है।” मगर वे सभी बहाने बनाने लगे। पहले ने कहा, “मैंने एक खेत खरीदा है, उसे देखने के लिए मेरा जाना ज़रूरी है। मुझे माफ कर।” दूसरे ने कहा, “मैंने पाँच जोड़ी बैल खरीदे हैं और मैं उनकी जाँच-परख करने जा रहा हूँ। मुझे माफ कर।” एक और ने कहा, “मेरी अभी-अभी शादी हुई है, मैं नहीं आ सकता।”’—लूका 14:16-20.
ये सच में बहाने हैं। जिन आदमियों ने खेत और बेल खरीदा उन्होंने खरीदने से पहले उन्हें जाँचा होगा। उन्हें फिर से जाँचने की कोई जल्दी नहीं है। तीसरा आदमी शादी की तैयारियाँ नहीं कर रहा है। उसकी शादी हो चुकी है। तो इन तीनों को इतना खास न्यौता ठुकराना नहीं चाहिए था। इसलिए जिसने दावत रखी है, उसे उन पर बहुत गुस्सा आता है। वह अपने दास से कहता है:
“फौरन चौराहों और शहर की गलियों में जा और गरीबों, अपाहिजों, अंधों और लँगड़ों को यहाँ ले आ।” दास ऐसा ही करता है। इसके बाद भी और मेहमानों के लिए जगह बचती है। इसलिए वह आदमी दास से कहता है, “सड़कों और तंग गलियों में जा और वहाँ के लोगों को आने के लिए मजबूर कर ताकि मेरा घर भर जाए। क्योंकि मैं तुमसे कहता हूँ, जिन लोगों को न्यौता दिया गया था उनमें से एक भी मेरी दावत नहीं चख सकेगा।”—लूका 14:21-24.
यहोवा ने यीशु के ज़रिए लोगों को स्वर्ग के राज में आने का न्यौता दिया है। सबसे पहले यहूदियों को न्यौता मिला, खासकर धर्म गुरुओं को। लेकिन उनमें से ज़्यादातर ने यीशु के संदेश पर यकीन नहीं किया। बहुत जल्द यह न्यौता उन लोगों को मिलनेवाला है जिन्हें यहूदियों में नीचा समझा जाता है। और उन लोगों को भी न्यौता मिलेगा जिन्होंने यहूदी धर्म अपनाया है। आखिरी और तीसरा न्यौता गैर-यहूदियों को दिया जाएगा जिनके बारे में यहूदी सोचते हैं कि वे परमेश्वर की आशीष पाने के लायक नहीं हैं।—यीशु वही बात कह रहा है जो अभी-अभी एक मेहमान ने कही थी, “सुखी है वह जो परमेश्वर के राज में भोजन करेगा।”