अध्याय 2
अपना ज़मीर साफ बनाए रखें—कैसे?
“अपना ज़मीर साफ बनाए रखो।”—1 पतरस 3:16.
1, 2. कम्पास एक ज़रूरी यंत्र क्यों है? हमारा ज़मीर किस मायने में कम्पास की तरह काम करता है?
एक नाविक विशाल महासागर में लहरों के बीच अपना जहाज़ आगे बढ़ा रहा है। एक पैदल यात्री सुनसान, वीरान इलाके में राह तलाशता हुआ आगे बढ़ रहा है। एक पायलट आसमान की ऊँचाइयों में हवाई-जहाज़ ले जा रहा है और नीचे दूर-दूर तक फैले बादलों के सिवा उसे कुछ दिखायी नहीं दे रहा। इन तीनों के पास दिशा दिखानेवाला कम्पास या कोई और आधुनिक यंत्र होना ज़रूरी है। आप समझ सकते हैं कि इसके बिना ये तीनों बड़ी मुसीबत में पड़ सकते हैं।
2 कम्पास दिखने में घड़ी जैसा होता है। इसमें चुंबक से बनी एक सुई होती है जो हमेशा उत्तर दिशा दिखाती है। अगर अच्छी तरह काम करनेवाला कम्पास एक सही नक्शे के साथ इस्तेमाल किया जाए, तो आप ऐसे हालात में नहीं पड़ेंगे जिनमें आपकी जान को खतरा हो। यहोवा ने हमें एक याकूब 1:17) इसके बिना हम ज़िंदगी के सफर में भटककर गलत राह पर चले जाएँगे। अगर हम ज़मीर का सही इस्तेमाल करें, तो हम सही राह ढूँढ़ सकते हैं और उस पर बने रह सकते हैं। तो आइए जानें कि ज़मीर क्या है और यह कैसे काम करता है। उसके बाद हम इन तीन बातों पर चर्चा करेंगे: (1) ज़मीर को प्रशिक्षण कैसे दें, (2) दूसरों के ज़मीर का ध्यान क्यों रखें और (3) साफ ज़मीर बनाए रखने से कैसी आशीषें मिलती हैं।
अनमोल तोहफा दिया है, जो कम्पास की तरह काम करता है। वह है, हमारा ज़मीर। (ज़मीर क्या है और यह कैसे काम करता है
3. जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “ज़मीर” किया गया है, उसका शाब्दिक मतलब क्या है? यह इंसान की किस अनोखी काबिलीयत का नाम है?
3 बाइबल में जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “ज़मीर” किया गया है उसका शाब्दिक मतलब है, “सह-ज्ञान” या “अपने साथ ज्ञान।” परमेश्वर ने सिर्फ इंसानों को ज़मीर दिया है। यह धरती पर किसी और जीव में नहीं है। यह ऐसी काबिलीयत है जिसकी मदद से हम जाँच सकते हैं कि सही-गलत की कसौटी पर हम कहाँ खड़े हैं। मानो हम खुद से अलग हटकर खुद को देख सकते हैं और जाँच सकते हैं कि हमारे काम सही हैं या नहीं। हमारा ज़मीर अंदर से आनेवाली एक गवाही है। यह मानो हमें कठघरे में लाकर खड़ा करता है और फैसला सुनाता है कि हमारे काम, हमारा रवैया और हमारे चुनाव सही थे या गलत। ज़मीर सही फैसले लेने में हमारी मदद कर सकता है और गलत फैसला करने से पहले हमें खबरदार कर सकता है। अगर हम इसकी बात मानकर सही चुनाव करें, तो यह हमें चैन देगा और अगर गलत फैसला करें तो बाद में बुरी तरह कचोटेगा।
4, 5. (क) हम कैसे कह सकते हैं कि आदम और हव्वा दोनों में ज़मीर था? परमेश्वर की आज्ञा तोड़ने का क्या नतीजा निकला? (ख) कौन-सी मिसालें दिखाती हैं कि आदम-हव्वा के बाद आए परमेश्वर के वफादार सेवकों ने अपने ज़मीर की आवाज़ सुनी?
4 इंसान के अंदर ज़मीर शुरूआत से ही है, यानी तब से जब परमेश्वर उत्पत्ति 3:7, 8) मगर अफसोस, तब तक बहुत देर हो चुकी थी और उनके ज़मीर के कचोटने का अब कोई फायदा न था। उन्होंने जानबूझकर परमेश्वर की आज्ञा तोड़ दी। इस तरह उन्होंने सबकुछ जानते हुए बगावत की राह चुनी और यहोवा के विरोधी बन गए। वे परिपूर्ण थे और उन्हें इस बात की पूरी समझ थी कि वे क्या कर रहे हैं। इसलिए उनका पलटना नामुमकिन था।
ने आदम और हव्वा को बनाया था। यह इस बात से पता चलता है कि जब उन्होंने पाप किया तो वे शर्मिंदा महसूस करने लगे। (5 मगर आदम-हव्वा के बाद ऐसे कई इंसान हुए हैं जिन्होंने परिपूर्ण न होते हुए भी अपने ज़मीर की बात मानी। मिसाल के लिए परमेश्वर का वफादार सेवक अय्यूब अपने बारे में यह कह सका: “मैं अपनी नेकी को थामे रहूँगा, उसे कभी नहीं छोड़ूँगा, जब तक मैं ज़िंदा हूँ मेरा मन मुझे नहीं धिक्कारेगा।” * (अय्यूब 27:6) अय्यूब हमेशा अपने ज़मीर की आवाज़ पर ध्यान देता था और हर काम और हर फैसला उसी के हिसाब से करता था। इसीलिए उसके दिल में सुकून था और वह कह सका कि उसका ज़मीर उसे धिक्कारता नहीं, जिससे वह शर्मिंदा या दोषी महसूस करे। दूसरी तरफ, गौर कीजिए कि दाविद के ज़मीर ने कैसे काम किया। एक बार जब उसने यहोवा के अभिषिक्त राजा शाऊल का अनादर किया, तो बाद में उसका “मन उसे कचोटने लगा।” (1 शमूएल 24:5) दाविद के ज़मीर ने उसे बुरी तरह कचोटा और इसका अच्छा नतीजा निकला। उसने सबक सीखा कि आइंदा वह कभी इस तरह अनादर न करे।
6. क्या बात दिखाती है कि ज़मीर सब इंसानों को मिला है?
6 क्या ज़मीर सिर्फ यहोवा के सेवकों के पास है? गौर कीजिए कि प्रेषित पौलुस ने ईश्वर-प्रेरणा से क्या लिखा, “राष्ट्रों के लोगों के पास भले ही परमेश्वर का कानून नहीं है, फिर भी जब वे अपने स्वभाव से उसे मानते हैं रोमियों 2:14, 15) जो लोग यहोवा के कानूनों से अनजान हैं, वे भी कई बार अपने अंदर की आवाज़ सुनकर ऐसे काम करते हैं जो परमेश्वर के सिद्धांतों के मुताबिक सही होते हैं।
तो कानून न होते हुए भी वे कानून के मुताबिक चलते हैं। वे दिखाते हैं कि कानून की बातें उनके दिलों में लिखी हुई हैं और उनके साथ-साथ उनका ज़मीर भी गवाही देता है और उनकी खुद की सोच उन्हें या तो कसूरवार ठहराती है या बेकसूर।” (7. कभी-कभी कुछ मामलों में हमारा ज़मीर गलत क्यों हो सकता है?
7 मगर कुछ मामलों में हमारा ज़मीर गलत भी हो सकता है। ऐसा क्यों? अगर एक कम्पास को चुंबक के पास रखा जाए, तो इसकी सुई उत्तर दिशा के बजाय किसी और दिशा में होगी। और अगर बिना नक्शे के इसे इस्तेमाल किया जाए, तो कम्पास किसी काम का नहीं होगा। इसी तरह, अगर हमारे ज़मीर पर दिल की स्वार्थी इच्छाएँ हावी हो जाएँ, तो इनका हमारे ज़मीर पर वैसा ही असर होगा, जैसा चुंबक का कम्पास पर होता है। हमारा ज़मीर इन बुरी इच्छाओं की वजह से हमें गलत राह दिखाएगा। और अगर हम परमेश्वर के वचन से, जो एक भरोसेमंद नक्शे जैसा है, मार्गदर्शन न लें तो हमारा ज़मीर किसी काम का नहीं होगा। हम ज़िंदगी के ज़रूरी मामलों में सही-गलत के बीच फर्क नहीं कर पाएँगे। वाकई, अगर हम चाहते हैं कि हमारा ज़मीर ठीक से काम करे, तो हमें यहोवा की पवित्र शक्ति की ज़रूरत है। पौलुस ने लिखा, “मेरा ज़मीर भी मेरे साथ पवित्र शक्ति में गवाही देता है।” (रोमियों 9:1) मगर हम यह कैसे पक्का कर सकते हैं कि हमारा ज़मीर यहोवा की पवित्र शक्ति के हिसाब से काम कर रहा है? इसके लिए अपने ज़मीर को प्रशिक्षण देना ज़रूरी है।
ज़मीर को प्रशिक्षण कैसे दें
8. (क) हमारे दिल का हमारे ज़मीर पर क्या असर हो सकता है? फैसले लेते वक्त हमें सबसे पहले क्या देखना चाहिए? (ख) एक मसीही के लिए यह महसूस करना क्यों काफी नहीं कि उसका ज़मीर साफ है? (फुटनोट देखिए।)
8 जब ज़मीर के हिसाब से कोई फैसला लेने की बात आती है, तो आप क्या करते हैं? कुछ लोग सिर्फ अपने दिल की बात सुनते हैं और उसी के यिर्मयाह 17:9) इसलिए कोई भी फैसला लेते वक्त सबसे अहम बात यह नहीं है कि हमारा दिल क्या चाहता है। इसके बजाय, यह बात अहमियत रखती है कि यहोवा क्या चाहता है। *
हिसाब से फैसला करते हैं। और कहते हैं कि “मेरे ज़मीर के हिसाब से यह फैसला गलत नहीं है।” लेकिन दिल की ज़बरदस्त इच्छाएँ ज़मीर को अपने हिसाब से बहका सकती हैं। बाइबल कहती है, “दिल सबसे बड़ा धोखेबाज़ है और यह उतावला होता है। इसे कौन जान सकता है?” (9. परमेश्वर का डर मानने का मतलब क्या है? इसका हमारे फैसलों पर क्या असर होना चाहिए?
9 अगर हमने अपने ज़मीर को प्रशिक्षण दिया है और उसके हिसाब से कोई फैसला किया है, तो यह दिखाएगा कि हम परमेश्वर का डर मानते हैं, न कि अपनी इच्छाएँ पूरी करना चाहते हैं। आइए इसकी एक मिसाल देखें। नहेमायाह परमेश्वर का एक वफादार सेवक था और यरूशलेम में राज्यपाल था। इस नाते वह अपने खर्च के लिए यरूशलेम के लोगों से पैसा और कर वसूलने का हकदार था। मगर उसने ऐसा नहीं किया। क्यों? वह परमेश्वर यहोवा के लोगों पर ज़ुल्म करके उसे नाराज़ करने की बात कभी सोच भी नहीं सकता था। उसने कहा, “मैंने ऐसा कुछ नहीं किया क्योंकि मैं परमेश्वर का डर मानता था।” (नहेमायाह 5:15) जी हाँ, परमेश्वर का डर मानना बेहद ज़रूरी है। इसका मतलब है कि हमारे मन में अपने पिता यहोवा का यह डर हो कि हम ऐसा कोई काम न करें जो उसे अच्छा न लगे। परमेश्वर के लिए ऐसी श्रद्धा और ऐसा डर हमें उभारेगा कि कोई भी फैसला करते वक्त हम उसके वचन, बाइबल से मार्गदर्शन लें।
10, 11. शराब के मामले में बाइबल के कौन-से सिद्धांत लागू होते हैं? इन सिद्धांतों पर चलने के लिए हम परमेश्वर से कैसे मदद माँग सकते हैं?
बाइबल यह नहीं कहती कि सीमित मात्रा में शराब पीना गलत है। यह दाख-मदिरा के तोहफे के लिए यहोवा की बड़ाई करती है। (भजन 104:14, 15) मगर यह हद-से-ज़्यादा शराब पीने और बेकाबू होकर रंगरलियाँ मनाने की कड़ी निंदा करती है। (लूका 21:34; रोमियों 13:13) और यह बताती है कि शराब पीकर धुत्त होना उतना ही गंभीर पाप है जितना कि नाजायज़ यौन-संबंध रखना। *—1 कुरिंथियों 6:9, 10.
10 मिसाल के लिए, शराब का मसला लीजिए। हममें से कइयों को अकसर पार्टियों में इस मसले का सामना करना पड़ता है। हमें शायद फैसला करना पड़े कि मैं पीऊँगा या नहीं। सबसे पहले हमें जानना होगा कि इस मामले में बाइबल के कौन-से सिद्धांत लागू होते हैं।11 एक मसीही जब ऐसे सिद्धांतों को लागू करता है तो वह अपने ज़मीर को प्रशिक्षण देता है। तब उसका ज़मीर उसे सही-गलत के बारे में आगाह करने के लिए तैयार रहेगा। इसलिए जब हमें फैसला करना हो कि हम पार्टी में शराब पीएँ या न पीएँ, तो हम खुद से पूछ सकते हैं: ‘यह किस किस्म की पार्टी है? क्या लोगों के बेकाबू होने और रंगरलियों में डूबने की गुंजाइश है? मेरा अपना झुकाव किस तरफ है? क्या मुझे शराब की तलब है? क्या मैं इसके बिना नहीं रह सकता? क्या मैं अपनी तकलीफें भुलाने के लिए शराब का सहारा लेता हूँ? क्या मैं खुद पर काबू रखता हूँ ताकि ज़्यादा न पी लूँ?’ बाइबल के सिद्धांतों पर और उनसे उठनेवाले सवालों पर सोचते वक्त, हमें यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिए कि सही फैसला करने में वह हमारी मदद करे। (भजन 139:23, 24 पढ़िए।) ऐसा करने से हम यहोवा से कहते हैं कि आप हमें पवित्र शक्ति देकर सही राह दिखाइए। साथ ही, हम अपने ज़मीर को परमेश्वर के सिद्धांतों के मुताबिक काम करना सिखाते हैं। लेकिन फैसले करते वक्त एक और बात पर भी ध्यान देना ज़रूरी है।
दूसरों के ज़मीर का ध्यान क्यों रखें?
12, 13. मसीहियों का ज़मीर अलग-अलग होने की कुछ वजह क्या हैं? अगर किसी की राय हमसे अलग है तो हमें क्या करना चाहिए?
12 एक मसीही का ज़मीर दूसरे के ज़मीर से कितना अलग हो सकता है, यह देखकर शायद हमें ताज्जुब हो। हो सकता है कि जो दस्तूर एक को अच्छा लगता है, दूसरे को उसी पर एतराज़ हो। लोगों के मिलकर पीने की ही बात लीजिए। शायद एक मसीही को शाम के वक्त चंद दोस्तों के साथ बैठकर थोड़ी शराब पीना अच्छा लगे, मगर यही बात दूसरे मसीही को परेशान कर दे। एक ही बात पर इस तरह की अलग-अलग राय क्यों होती है? जब हम फैसला करते हैं तो क्यों इस बात को ध्यान में रखना चाहिए?
13 लोगों की सोच अलग-अलग होती है और इसकी कई वजह हैं। जिस माहौल में उनकी परवरिश हुई है उसमें काफी फर्क हो सकता है। इसके अलावा, कुछ लोग अपनी कमज़ोरी के बारे में अच्छी तरह जानते हैं कि उन्होंने पहले शराब की लत छोड़ने के लिए कितना संघर्ष किया था, मगर कई बार नाकाम रहे। (1 राजा 8:38, 39) ऐसे लोगों के लिए शराब नाज़ुक मसला होता है। अगर ऐसा कोई भाई आपके घर आता है और आप उसके सामने शराब पेश करते हैं तो लाज़िमी है कि उसका ज़मीर उसे पीने से मना करे और वह इनकार कर दे। तब क्या आप बुरा मान जाएँगे? क्या आप पिलाने की ज़िद करेंगे? बिलकुल नहीं। शायद वह उस वक्त इनकार की वजह न बताना चाहे। और वजह चाहे आपको पता हो या न हो, उस भाई के लिए प्यार आपको उभारेगा कि आप उसकी भावनाओं को समझें।
14, 15. पहली सदी में किस मसले पर कुछ लोगों का ज़मीर दूसरों से बिलकुल अलग था? और पौलुस ने क्या सलाह दी?
14 प्रेषित पौलुस ने भी गौर किया था कि उसके वक्त के मसीही कई मामलों में अपने ज़मीर के मुताबिक एक-दूसरे से अलग राय रखते थे। कुछ मसीहियों को ऐसा गोश्त खाने से एतराज़ था जो पहले मूरतों के आगे चढ़ाया जाता था और फिर बाज़ार में बेचा जाता था। (1 कुरिंथियों 10:25) लेकिन पौलुस के ज़मीर को ऐसा गोश्त खाने से एतराज़ नहीं था। उसके लिए मूरतें कोई मायने नहीं रखती थीं। मूरतों के सामने जो चीज़ें चढ़ायी जाती थीं, वे मूरतों ने नहीं पैदा की थीं। बल्कि इनका बनानेवाला यहोवा था और ये सारी चीज़ें उसी की थीं। मगर पौलुस यह भी जानता था कि दूसरे उसके जैसी राय नहीं रखते। कुछ लोग मसीही बनने से पहले मूर्तिपूजा में लगे हुए थे। इसलिए अब मसीही बनने के बाद वे ऐसी हर चीज़ को बुरा मानते थे जिसका किसी तरह मूर्तिपूजा से नाता रहा हो। पौलुस ने इस मसले को कैसे हल किया?
15 पौलुस ने कहा, “लेकिन हम जो विश्वास में मज़बूत हैं, हमें चाहिए कि हम उनकी कमज़ोरियाँ सहें जो मज़बूत नहीं हैं, न कि खुद को खुश करने की सोचें। इसलिए कि मसीह ने भी खुद को खुश नहीं किया।” (रोमियों 15:1, 3) पौलुस ने मसीह की मिसाल देकर समझाया कि हमें खुद से ज़्यादा अपने भाइयों के ज़मीर के बारे में सोचना चाहिए। इसी मसले पर बात करते हुए पौलुस ने कहा कि अगर उसका गोश्त खाना किसी मसीही भाई या बहन के पाप में गिरने की वजह बनता है, तो वह गोश्त खाना ही छोड़ देगा। क्योंकि ऐसा भाई या बहन मसीह की अनमोल भेड़ों में से एक है, जिनके लिए मसीह ने अपनी जान दी है।—1 कुरिंथियों 8:13; 10:23, 24, 31-33 पढ़िए।
16. जिनका ज़मीर ज़्यादा सख्ती बरतनेवाला है, उन्हें क्यों दूसरों पर उँगली नहीं उठानी चाहिए?
16 दूसरी तरफ, जिन मसीहियों का ज़मीर सख्ती बरतनेवाला है, उन्हें दूसरों की नुक्ताचीनी नहीं करनी चाहिए। और ज़िद नहीं करनी चाहिए कि बाकी सभी उनके ज़मीर के मुताबिक सोचें। (रोमियों 14:10 पढ़िए।) हमारा ज़मीर हमारे कामों को जाँचने के लिए है। यह हमें दूसरों पर उँगली उठाने की छूट नहीं देता। याद कीजिए यीशु ने कहा था, “दोष लगाना बंद करो ताकि तुम पर भी दोष न लगाया जाए।” (मत्ती 7:1) इसलिए मंडली में सबको ध्यान रखना चाहिए कि वे ऐसे मामलों को बड़ा मुद्दा न बनाएँ जो ज़मीर पर छोड़े गए हैं। इसके बजाय, हमारी यही कोशिश होनी चाहिए कि हम आपस में प्यार और एकता को बढ़ावा दें और एक-दूसरे का हौसला बढ़ाएँ, न कि एक-दूसरे को गिराएँ।—रोमियों 14:19.
साफ ज़मीर बनाए रखने के फायदे
17. आज बहुतों के ज़मीर का क्या हाल है?
17 प्रेषित पतरस ने लिखा, “अपना ज़मीर साफ बनाए रखो।” (1 पतरस 3:16) यहोवा परमेश्वर की नज़र में एक साफ ज़मीर होना बहुत बड़ी आशीष है। आज ज़्यादातर लोगों का ज़मीर साफ नहीं है। पौलुस ने बताया कि कुछ लोगों का “ज़मीर सुन्न हो गया है मानो गरम लोहे से दागा गया हो।” (1 तीमुथियुस 4:2) अगर शरीर के किसी हिस्से को गरम लोहे से दागा जाता है तो वह जल जाता है। जले हुए हिस्से पर निशान रह जाता है और वह सुन्न पड़ जाता है। उसी तरह, कई लोगों का ज़मीर मर चुका है यानी ऐसा सुन्न पड़ गया है कि जब वे गलत काम करते हैं तो वह उन्हें चेतावनी नहीं देता, विरोध नहीं करता, न ही उन्हें शर्मिंदा महसूस कराता या कसूरवार ठहराकर तड़पाता है। आज बहुत-से लोग अंदर से आनेवाली इस आवाज़ को अनसुना करके खुश हैं।
18, 19. (क) कसूरवार होने के एहसास का कौन-सा अच्छा नतीजा निकल सकता है? (ख) जिन पापों से हम पश्चाताप कर चुके हैं, अगर उनके लिए हमारा ज़मीर हमें लगातार कोसता रहता है तो हम क्या कर सकते हैं?
18 सच तो यह है कि कसूरवार होने का एहसास दिलाकर हमारा ज़मीर हमें बताता है कि हमने गलत काम किया है। इस भावना की वजह से जब एक पापी दिल से पश्चाताप करता है तो उसे गंभीर-से-गंभीर पापों की भी माफी मिल सकती है। मिसाल के लिए, जब राजा दाविद ने गंभीर पाप किए तो वह इसलिए माफी पा सका क्योंकि उसने सच्चा पश्चाताप दिखाया था। उसे अपने बुरे कामों से घृणा हो गयी और उसने ठान लिया कि अब वह हर हाल में यहोवा के कानूनों को मानेगा। इस वजह से वह खुद अपने मामले में देख सका कि यहोवा “भला है और माफ करने को तत्पर रहता है।” (भजन 51:1-19; 86:5) लेकिन अगर पश्चाताप करने और माफी पाने के बाद भी कसूरवार होने का ज़बरदस्त एहसास और शर्मिंदगी की भावनाएँ रह-रहकर हमें सताती हैं, तो हम क्या कर सकते हैं?
19 कभी-कभी हमारा ज़मीर हद-से-ज़्यादा सख्ती बरतता है और माफी पाने के लंबे अरसे बाद भी हमें कोसता रहता है जबकि इतने वक्त के बाद ऐसी भावनाएँ कोई फायदा नहीं पहुँचातीं। ऐसे में हमें अपने दिल को यकीन दिलाना होगा कि यहोवा इंसान की तमाम भावनाओं से कहीं बड़ा है। जैसे हम यह कहकर दूसरों की हिम्मत बँधाते हैं कि यहोवा उनसे प्यार करता है और उनकी गलतियाँ माफ करता है, उसी तरह हमें खुद को भी यकीन दिलाना होगा कि यहोवा हमसे प्यार करता है और उसने हमें माफ किया है। (1 यूहन्ना 3:19, 20 पढ़िए।) जब हमें एहसास होता है कि हमारा ज़मीर शुद्ध किया गया है तो हमें मन का सुकून, चैन और ऐसी गहरी खुशी मिलती है जो इस दुनिया में मिलना मुश्किल है। ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने पहले गंभीर पाप किया था मगर आज उन्होंने माफी पायी है। उन्हें ऐसा चैन मिला है जिसका शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। आज उनका ज़मीर साफ है और वे यहोवा की सेवा में लगे हुए हैं।—1 कुरिंथियों 6:11.
20, 21. (क) यह किताब किस बात में आपकी मदद करने के लिए तैयार की गयी है? (ख) हम मसीहियों के पास कैसी आज़ादी है? फिर भी हमें इस आज़ादी का कैसे इस्तेमाल करना चाहिए?
20 यह किताब ऐसी खुशी पाने में आपकी मदद करेगी। इसकी मदद से आप शैतान की दुनिया के इन बचे हुए दिनों में, मुश्किलों का सामना करते हुए भी साफ ज़मीर बनाए रख सकते हैं। इस किताब में रोज़मर्रा ज़िंदगी में उठनेवाले सभी हालात पर चर्चा नहीं की गयी है कि उन हालात में आपको बाइबल के किस कानून या सिद्धांत को लागू करना है। साथ ही, आप यह उम्मीद न करें कि जो मामले ज़मीर पर छोड़े गए हैं, उनके बारे में सीधे-सीधे कुछ नियम दिए जाएँ। यह किताब इसलिए तैयार की गयी है कि आप अध्ययन कर सकें कि आप रोज़मर्रा ज़िंदगी में परमेश्वर के वचन को कैसे लागू कर सकते हैं। इस तरह आप अपने ज़मीर को प्रशिक्षण दे पाएँगे और यह सही तरह काम करेगा। “मसीह का कानून” मूसा के कानून जैसा नहीं है क्योंकि यह हमें लिखित नियमों के हिसाब से नहीं बल्कि अपने गलातियों 6:2) इस तरह यहोवा ने मसीहियों को काफी आज़ादी देकर उन पर भरोसा दिखाया है। पर साथ ही वह अपने वचन के ज़रिए हमें याद दिलाता है कि हम इस आज़ादी को ‘बुरे काम करने के लिए आड़ न बनाएँ।’ (1 पतरस 2:16) इसके बजाय, यह आज़ादी हमें यह दिखाने का बढ़िया मौका देती है कि हम यहोवा से कितना प्यार करते हैं।
ज़मीर के हिसाब से और बाइबल के सिद्धांतों के मुताबिक जीने का बढ़ावा देता है। (21 जब आपने पहली बार यहोवा को जाना, तब से आपने बाइबल के सिद्धांतों को अपनी ज़िंदगी में लागू करना सीखा है। यह सिलसिला जारी रखिए और परमेश्वर से प्रार्थना करते हुए गहराई से सोचिए कि आप बाइबल के सिद्धांतों को ज़िंदगी के हर पहलू में कैसे अमल में ला सकते हैं। फिर अपने फैसलों के मुताबिक काम कीजिए। इस तरह आपकी ‘सोचने-समझने की शक्ति इस्तेमाल’ होते-होते प्रशिक्षित होती जाएगी। (इब्रानियों 5:14) आपका ज़मीर, जिसे आपने बाइबल के हिसाब से प्रशिक्षण दिया है, हर दिन आपके लिए एक आशीष साबित होगा। जैसे कम्पास एक मुसाफिर को सही रास्ता दिखाता है, वैसे ही आपका ज़मीर आपको ऐसे फैसले करने में मदद देगा जिससे आपका पिता यहोवा खुश होगा। अगर आप ऐसा करते रहेंगे तो आप खुद को ज़रूर परमेश्वर के प्यार के लायक बनाए रखेंगे।
^ पैरा. 5 इब्रानी शास्त्र में “ज़मीर” के लिए कोई शब्द नहीं है। मगर ऐसी आयतों से साफ पता चलता है कि यहाँ ज़मीर की बात की जा रही है। “मन” शब्द आम तौर पर अंदर के इंसान के लिए इस्तेमाल किया गया है। ज़ाहिर है कि ऐसी आयतों में मन का मतलब अंदर का इंसान या ज़मीर है। मसीही यूनानी शास्त्र में जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “ज़मीर” किया गया है, वह शब्द करीब 30 बार आता है।
^ पैरा. 8 बाइबल दिखाती है कि हमारी अपनी नज़र में ज़मीर का साफ होना काफी नहीं। पौलुस की मिसाल पर गौर कीजिए जिसने कहा, “मुझे खुद में कोई बुराई नज़र नहीं आती। फिर भी इस बात से मैं नेक साबित नहीं होता। जो मेरी जाँच-पड़ताल करता है वह यहोवा है।” (1 कुरिंथियों 4:4) जैसे एक वक्त पर पौलुस मसीहियों पर ज़ुल्म ढाता था, वैसे ही आज भी कई लोग हैं जो मसीहियों पर ज़ुल्म ढाते हैं, फिर भी उनके हिसाब से उनका ज़मीर साफ है। उन्हें लगता है कि परमेश्वर उनके कामों से खुश है। इसलिए यह बात अहमियत रखती है कि हमारा ज़मीर न सिर्फ हमारी नज़र में बल्कि परमेश्वर की नज़र में भी शुद्ध हो।—प्रेषितों 23:1; 2 तीमुथियुस 1:3.
^ पैरा. 10 कई डॉक्टरों की यह बात गौर करने लायक है कि जिन्हें शराब की लत पड़ चुकी है, उनके लिए सीमित मात्रा में पीना मुमकिन नहीं है। उनके लिए सीमित का मतलब है, शराब बिलकुल न पीना।