अध्याय 18
राज के कामों का खर्चा कैसे पूरा होता है
1, 2. (क) भाई रसल ने एक पादरी के सवाल का क्या जवाब दिया? (ख) इस अध्याय में हम क्या देखेंगे?
एक बार भाई चार्ल्स टी. रसल से रिफॉर्मड् चर्च के एक पादरी ने पूछा कि बाइबल विद्यार्थियों के कामों का खर्च कैसे पूरा किया जाता है।
भाई रसल ने कहा, “हम कभी किसी से चंदा नहीं माँगते।”
पादरी ने पूछा, “तो फिर पैसा कहाँ से आता है?”
भाई रसल ने कहा, “सीधी-सी बात है, मगर आपको शायद उस पर विश्वास करना कठिन लगे। जब लोग हमारी सभाओं में आते हैं तो उनके आगे दान की टोकरी नहीं लायी जाती। मगर वे देख सकते हैं कि कुछ तो खर्चा ज़रूर होता होगा। वे अपने आपसे कहते हैं, ‘इस स्थान पर सभा रखने में कुछ तो खर्चा होता होगा . . . मैं इसके लिए कैसे दान दे सकता हूँ?’”
यह सुनकर पादरी दंग रह गया।
भाई रसल ने कहा, “मैं जो कह रहा हूँ वह सच है। वे आकर मुझसे पूछते हैं, ‘मैं इस काम के लिए थोड़ा पैसा कैसे दान कर सकता हूँ?’ जब एक व्यक्ति की आर्थिक स्थिति अच्छी होती है और उसके पास पैसा होता है, तो वह उसे प्रभु की सेवा में लगाना चाहता है। लेकिन अगर उसके पास पैसे है ही नहीं तो हम उसे क्यों विवश करें?” *
2 भाई रसल वाकई “सच” कह रहे थे। शुरू से ही परमेश्वर के लोगों ने सच्ची उपासना को बढ़ावा देने के लिए अपनी इच्छा से दान दिया है। इस अध्याय में हम देखेंगे कि बाइबल के ज़माने में और हमारे ज़माने में भी उन्होंने कैसे दान दिया है। जब हम देखेंगे कि आज राज के कामों में होनेवाला खर्चा कैसे पूरा होता है तो हममें से हर कोई खुद से पूछ सकता है, ‘मैं कैसे राज के कामों में मदद दे सकता हूँ?’
‘हर कोई जो दिल से देना चाहता है वह दान दे’
3, 4. (क) यहोवा को किस बात का भरोसा था? (ख) इसराएलियों ने पवित्र डेरा बनाने के लिए कैसे मदद की?
3 यहोवा को अपने सच्चे उपासकों पर भरोसा है कि वे मौका मिलने पर खुशी-खुशी उसके काम के लिए दान देंगे और इस तरह अपनी भक्ति का सबूत देंगे। इसराएल के ज़माने की दो घटनाओं पर गौर कीजिए।
4 जब यहोवा ने इसराएलियों को मिस्र से आज़ाद कराया तो उसने उनसे उपासना के लिए एक पवित्र डेरा बनाने को कहा। यह डेरा जगह-जगह ले जाया निर्ग. 35:5) इस तरह लोगों को इस काम के लिए दान देने का मौका दिया गया। इसराएलियों ने, जो अब तक “बुरे-से-बुरे हालात में कड़ी मज़दूरी” कर रहे थे, कैसा रवैया दिखाया? (निर्ग. 1:14) उन्होंने दान में इतनी चीज़ें लाकर दीं कि उनका ढेर लग गया! यहाँ तक कि उन्होंने सोना, चाँदी और कई कीमती चीज़ें भी खुशी-खुशी दे दीं। इनमें से ज़्यादातर चीज़ें शायद उन्हें मिस्र में उनके मालिकों से मिली थीं। (निर्ग. 12:35, 36) इसराएलियों ने ज़रूरत से बढ़कर इतनी चीज़ें दीं कि उन्हें “और चीज़ें लाने से मना” करना पड़ा।—निर्ग. 36:4-7.
जा सकता था। पवित्र डेरा और उसका साजो-सामान बनाने के लिए बहुत सारी चीज़ों की ज़रूरत थी। यहोवा ने मूसा को हिदायत दी कि वह लोगों से कहे, “हर कोई जो दिल से देना चाहता है वह यहोवा के लिए दान में ये चीज़ें लाकर दे।” (5. जब दाविद ने इसराएलियों को दान देने का मौका दिया तो उन्होंने क्या किया?
5 इसके करीब 475 साल बाद दाविद ने एक मंदिर बनाने के लिए “अपने खुद के खज़ाने” से बहुत कुछ दान दिया। वह मंदिर धरती पर सच्ची उपासना का पहला स्थायी केंद्र होता। दाविद ने इसराएलियों को भी दान करने का मौका दिया। उसने उनसे कहा, “तुममें से कौन आगे बढ़कर अपनी इच्छा से यहोवा के लिए भेंट देना चाहेगा?” तब लोगों ने “पूरे दिल से और अपनी इच्छा से यहोवा को भेंट की।” (1 इति. 29:3-9) दाविद जानता था कि दान की वे सारी चीज़ें असल में किसकी दी हुई हैं। इसलिए उसने यहोवा से प्रार्थना में कहा, “सबकुछ तुझी से मिलता है और हमने तुझे जो भी दिया वह तेरा ही दिया हुआ है।”—1 इति. 29:14.
6. (क) परमेश्वर के राज के कामों में पैसे क्यों लगते हैं? (ख) इससे क्या सवाल उठते हैं?
6 न तो मूसा को, न ही दाविद को परमेश्वर के लोगों के साथ ज़ोर-ज़बरदस्ती करनी पड़ी। उन्होंने अपनी इच्छा से दान दिया। आज हमारे बारे में क्या कहा जा सकता है? हम अच्छी तरह जानते हैं कि परमेश्वर का राज जो काम कर रहा है उसमें पैसा लगता है। बाइबलें और दूसरे प्रकाशन छापने और बाँटने में, सभाओं के लिए इमारतें और शाखा दफ्तर बनाने और उनके रख-रखाव में और अचानक आनेवाली विपत्ति के समय भाई-बहनों को राहत पहुँचाने में काफी साधन लगते हैं। इसलिए कुछ अहम सवाल उठते हैं: इन सारे कामों के लिए पैसा कहाँ से आता है? क्या राजा के चेलों को दान करने के लिए बार-बार बोलना पड़ता है?
“यह पत्रिका सहायता के लिए मनुष्यों से कभी भीख नहीं माँगेगी”
7, 8. यहोवा के लोग किसी के आगे हाथ क्यों नहीं फैलाते?
7 भाई रसल और उनके साथियों ने ठान लिया था कि वे ईसाईजगत के चर्चों की तरह पैसा इकट्ठा करने की तरकीबें नहीं अपनाएँगे। प्रहरीदुर्ग के दूसरे अंक में इस शीर्षक पर एक लेख छपा था, “क्या आप चाहते हैं कि ‘सिय्योन का प्रहरीदुर्ग’ प्रकाशित होता रहे?” लेख में भाई ने कहा, “हमें विश्वास है कि ‘सिय्योन के प्रहरीदुर्ग’ के पीछे यहोवा का हाथ है। इसलिए यह पत्रिका सहायता के लिए मनुष्यों से कभी भीख नहीं माँगेगी, ना ही उनसे बिनती करेगी। परमेश्वर कहता है: ‘पर्वतों पर जितना सोना और चाँदी है, सब मेरा है।’ इसलिए हाग्गै 2:7-9) उस बात को कहे 130 से ज़्यादा साल हो गए हैं, मगर प्रहरीदुर्ग पत्रिका अब भी छापी जा रही है और उसे प्रकाशित करनेवाला संगठन तेज़ी से आगे बढ़ रहा है!
जिस दिन यहोवा दान का प्रबंध करने में असफल हो जाएगा, उस दिन हम समझ जाएँगे कि पत्रिका को बंद करने का समय आ गया है।” (8 यहोवा के लोग किसी के आगे हाथ नहीं फैलाते। वे सभाओं में दान के लिए थालियाँ नहीं फिराते, न ही दान माँगने के लिए लोगों के पास चिट्ठियाँ भेजते हैं। वे पैसे इकट्ठा करने के लिए न खेलों का इंतज़ाम करते हैं, न बाज़ार लगाते और न ही लॉटरी टिकट बेचते हैं। वे आज भी वही मानते हैं जो बरसों पहले प्रहरीदुर्ग में कहा गया था, “हम हमेशा से यही मानते आए हैं कि प्रभु के काम के लिए पैसे माँगना उचित नहीं है, जैसे चर्चों की रीत है . . . हमारा मानना है कि हमारे प्रभु के नाम से अलग-अलग तरीके अपनाकर जिस तरह पैसे माँगे जाते हैं, वह प्रभु को घिनौना लगता है। उसे यह बिलकुल स्वीकार नहीं है और वह न तो इस तरह से दान देनेवालों पर और न ही उस दान से होनेवाले काम पर आशीष देता है।” *
“हर कोई जैसा उसने अपने दिल में ठाना है वैसा ही करे”
9, 10. अपनी इच्छा से दान देने की एक वजह क्या है?
9 राज की प्रजा होने के नाते आज हमें दान देने के लिए मजबूर करने की ज़रूरत नहीं पड़ती। हम राज के कामों को आगे बढ़ाने के लिए खुशी-खुशी अपने पैसे और दूसरे साधन लगाते हैं। हम क्यों अपनी मरज़ी से यह सब करते हैं? इसकी तीन वजहों पर ध्यान दीजिए।
10 पहली वजह, हम अपनी इच्छा से दान इसलिए देते हैं क्योंकि हम यहोवा से प्यार करते हैं और वही करना चाहते हैं “जो उसकी नज़र में अच्छा है।” (1 यूह. 3:22) यहोवा वाकई ऐसे इंसान से खुश होता है जो दिल से दान देता है। गौर कीजिए कि प्रेषित पौलुस ने बताया कि मसीहियों को किस भावना से दान देना चाहिए। (2 कुरिंथियों 9:7 पढ़िए।) एक सच्चा मसीही न तो दान देने से झिझकता है और न ही उसे मजबूर करना पड़ता है। वह दान इसलिए देता है क्योंकि वह ‘दिल में ऐसा करने की ठान लेता है।’ * दूसरे शब्दों में कहें तो जब वह देखता है कि दान की ज़रूरत है तो सोचता है कि वह कैसे मदद कर सकता है, फिर वह दान देता है। ऐसा इंसान यहोवा को भाता है क्योंकि बाइबल कहती है कि “परमेश्वर खुशी-खुशी देनेवाले से प्यार करता है।”
11. हम यहोवा को सबसे बढ़िया तोहफा क्यों देना चाहते हैं?
11 दूसरी वजह, हम इसलिए दान देते हैं क्योंकि यहोवा से मिलनेवाली ढेरों आशीषों के लिए धन्यवाद देने का यह एक तरीका है। मूसा के कानून में दिए एक सिद्धांत पर ध्यान दीजिए जो एक इंसान को अपने दिल की जाँच करने के लिए उभारता है। (व्यवस्थाविवरण 16:16, 17 पढ़िए।) इसराएली आदमियों से कहा गया था कि जब वे साल में तीन बार त्योहार मनाने जाएँगे तो उनमें से हर कोई ‘यहोवा को उस हिसाब से भेंट दे जिस हिसाब से उसे आशीष मिली है।’ इसलिए त्योहार में जाने से पहले हर आदमी को गौर करना था कि उसे कितनी आशीषें मिली हैं और फिर तय करना था कि यहोवा के लिए सबसे अच्छी भेंट क्या हो सकती है। उसी तरह, आज जब हम गहराई से सोचते हैं कि यहोवा ने हमें कितनी सारी आशीषें दी हैं तो हमारा दिल हमें उभारता है कि हम अपनी तरफ से उसे सबसे बढ़िया तोहफा दें। हम दिल से जो तोहफा देते हैं, जिसमें पैसे का दान भी शामिल है, वह दिखाता है कि यहोवा से मिलनेवाली आशीषों के लिए हम कितने एहसानमंद हैं।—2 कुरिं. 8:12-15.
12, 13. (क) अपनी इच्छा से दान देकर हम कैसे राजा के लिए अपने प्यार का सबूत देते हैं? (ख) हर किसी को कितना दान देना चाहिए?
12 तीसरी वजह, हम अपनी इच्छा से इसलिए दान देते हैं क्योंकि हम अपने राजा यीशु मसीह से प्यार करते हैं। ध्यान दीजिए कि यीशु ने धरती पर अपनी आखिरी रात को अपने चेलों से क्या कहा था। (यूहन्ना 14:23 पढ़िए।) उसने कहा, “अगर कोई मुझसे प्यार करता है, तो वह मेरे वचन पर चलेगा।” यीशु के “वचन” में यह आज्ञा भी शामिल है कि पूरी धरती पर राज की खुशखबरी सुनायी जाए। (मत्ती 24:14; 28:19, 20) हम इस “वचन” पर चलने के लिए अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते हैं। हम राज के प्रचार काम को आगे बढ़ाने में अपना समय, अपनी ताकत और अपने साधन लगा देते हैं, क्योंकि हम अपने राजा मसीह से प्यार करते हैं।
मत्ती 19:23, 24; याकू. 2:5) फिर भी वे यह जानकर खुश हो सकते हैं कि वे दिल से जो थोड़ा-बहुत दान देते हैं, उसे यहोवा और उसका बेटा बहुत अनमोल समझते हैं।—मर. 12:41-44.
13 जी हाँ, राज की वफादार प्रजा होने के नाते हम चाहते हैं कि हम दान देकर पूरे दिल से राज का साथ दें। हममें से हर किसी को कितना दान देना चाहिए? यह हरेक का अपना फैसला है। हर कोई उतना दान करता है जितना उससे बन पड़ता है। हमारे बहुत-से भाई-बहनों के पास इतने पैसे नहीं हैं। (दान किस तरीके से दिया जाता है?
14. कई साल तक यहोवा के साक्षी किताबें-पत्रिकाएँ देते वक्त क्या करते थे?
14 कई साल तक यहोवा के साक्षी लोगों से कुछ रकम दान के तौर पर लेकर उन्हें प्रकाशन देते थे। दान के लिए बहुत कम रकम तय की जाती थी ताकि गरीब लोग भी हमारी किताबें-पत्रिकाएँ ले सकें। और अगर कोई बिलकुल दान नहीं दे सकता, मगर वह पढ़ना चाहता है तो प्रचारक उससे बिना दान लिए खुशी-खुशी उसे किताब दे देते थे। प्रचारकों की दिली इच्छा थी कि हमारी किताबें-पत्रिकाएँ अच्छे मन के लोगों को दी जाएँ जो उन्हें पढ़ेंगे और फायदा पाएँगे।
15, 16. (क) 1990 में शासी निकाय ने किताबें-पत्रिकाएँ देने के तरीके में क्या फेरबदल किया? (ख) दान किस तरीके से दिया जाता है? (यह बक्स भी देखें: “ दान का इस्तेमाल किस लिए किया जाता है?”)
15 सन् 1990 में शासी निकाय, लोगों को किताबें-पत्रिकाएँ देने के तरीके में फेरबदल करने लगा। उस साल से अमरीका में किताबों-पत्रिकाओं के लिए दान की रकम तय करना बंद कर दिया गया और यह पूरी तरह लोगों पर छोड़ दिया गया कि वे जितना चाहे उतना दान दे सकते हैं। इस इंतज़ाम के बारे में उस देश की सभी मंडलियों को भेजे गए एक खत में समझाया गया: “जब प्रचारकों और दिलचस्पी रखनेवालों को किताबें-पत्रिकाएँ दी जाएँगी तो उनसे बदले में किसी भी तरह दान के लिए कोई तय रकम नहीं माँगी जाएगी। . . . हमारे शिक्षा के काम में होनेवाला खर्च पूरा करने के लिए जो कोई अपनी मरज़ी से दान देना चाहता है वह दे सकता है, लेकिन अगर कोई दान न दे तो भी वह किताबें ले सकता है।” इस इंतज़ाम से यह बात साफ हो गयी कि हम जो काम करते हैं, वह एक धार्मिक सेवा है और यह हम अपनी इच्छा से करते हैं। इससे यह बात भी साफ हुई कि “हम परमेश्वर के वचन का सौदा करनेवाले नहीं” हैं। (2 कुरिं. 2:17) कुछ समय बाद दुनिया के सभी देशों में दान का यह इंतज़ाम लागू किया गया।
16 दान किस तरीके से दिया जाता है? यहोवा के साक्षियों के राज-घरों में दान-पेटियाँ होती हैं। लोग चाहे तो उसमें दान डाल सकते हैं या फिर साक्षियों के किसी कानूनी निगम को सीधे दान भेज सकते हैं। हर साल प्रहरीदुर्ग में एक लेख आता है जिसमें समझाया जाता है कि दान किन तरीकों से दिया जा सकता है।
पैसे का क्या किया जाता है?
17-19. समझाइए कि दान का इन कामों के लिए कैसे इस्तेमाल किया जाता है: (क) पूरी दुनिया में होनेवाला काम, (ख) पूरी दुनिया में राज-घर बनाने का काम और (ग) मंडलियों का खर्च।
17 पूरी दुनिया में होनेवाला काम: दान के पैसों का इस्तेमाल दुनिया-भर में हो रहे प्रचार काम का खर्च पूरा करने के लिए किया जाता है। इसमें पूरी दुनिया *
में बाँटने के लिए किताबें-पत्रिकाएँ प्रकाशित करना, शाखा दफ्तर बनाना, उनका रख-रखाव करना और संगठन के कई स्कूल चलाना शामिल है। इससे मिशनरियों, सफरी निगरानों और खास पायनियरों का खर्च भी पूरा किया जाता है। हमारे दान के पैसों से अचानक आनेवाली विपत्ति के समय भाई-बहनों के लिए राहत का इंतज़ाम भी किया जाता है।18 पूरी दुनिया में राज-घर बनाने का काम: दान के पैसे राज-घर बनाने और उनकी मरम्मत करने में इस्तेमाल किए जाते हैं। जितना ज़्यादा दान मिलता है उतनी ज़्यादा मंडलियों की मदद की जा सकती है। *
19 मंडलियों का खर्च: दान के पैसे राज-घरों के रख-रखाव के लिए और मंडली के दूसरे खर्च के लिए भी इस्तेमाल किए जाते हैं। अगर प्राचीन दुनिया-भर में होनेवाले काम को बढ़ावा देने के लिए कुछ दान देश के शाखा दफ्तर को भेजने की सोचते हैं तो वे मंडली के सामने इसका प्रस्ताव रखते हैं। अगर मंडली को मंज़ूर हो तो तय की गयी रकम शाखा दफ्तर को भेजी जाती है। मंडली का हिसाब-किताब रखनेवाला भाई हर महीने एक वित्तीय रिपोर्ट तैयार करता है जो मंडली को पढ़कर सुनायी जाती है।
20. आप कैसे अपनी “अनमोल चीज़ें” देकर यहोवा का सम्मान कर सकते हैं?
20 जब हम गौर करते हैं कि पूरी दुनिया में राज का प्रचार करने और चेला बनाने में कितना कुछ शामिल है, तो हमारा मन हमें उभारता है कि हम ‘अपनी अनमोल चीज़ें देकर यहोवा का सम्मान करें।’ (नीति. 3:9, 10) हमारी कुछ अनमोल चीज़ें हैं, हमारी शारीरिक और दिमागी काबिलीयतें और मसीही गुण। हम इन सबका राज के काम में पूरा-पूरा इस्तेमाल करना चाहते हैं। मगर याद रखिए कि हमारी अनमोल चीज़ों में पैसा और संपत्ति भी शामिल है। इसलिए आइए ठान लें कि हमसे जितना हो सके उतना हम देते रहेंगे। जब हम अपनी इच्छा से दान देते हैं तो हम यहोवा का सम्मान करते हैं और मसीहा के राज का साथ देते हैं।
^ पैरा. 1 पंद्रह जुलाई, 1915 की प्रहरीदुर्ग के पेज 218-219.
^ पैरा. 8 एक अगस्त, 1899 की प्रहरीदुर्ग का पेज 201.
^ पैरा. 10 एक विद्वान कहता है कि जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “ठाना” किया गया है, उसमें “पहले से ठान लेने का विचार शामिल है।” वह यह भी कहता है: “हालाँकि बिना किसी योजना के दान देने पर भी खुशी मिलती है, फिर भी दान देने के लिए पहले से योजना बनानी चाहिए।”—1 कुरिं. 16:2.
^ पैरा. 17 राहत सेवा के बारे में ज़्यादा जानने के लिए अध्याय 20 देखें।
^ पैरा. 18 राज-घर निर्माण काम के बारे में ज़्यादा जानने के लिए अध्याय 19 देखें।