अध्याय 22
‘बुद्धि जो ऊपर से आती है,’ क्या यह आपकी ज़िंदगी में काम कर रही है?
1-3. (क) एक बच्चे की असली माँ का पता लगाने में सुलैमान ने लाजवाब बुद्धि का सबूत कैसे दिया? (ख) यहोवा ने हमें क्या देने का वादा किया है और इससे कौन-से सवाल उठते हैं?
मामला बहुत पेचीदा था। दो औरतें एक बच्चे को लेकर झगड़ रही थीं। दोनों एक ही मकान में रहती थीं और कुछ ही दिनों के दरमियान उनके एक-एक बेटा पैदा हुआ था। उनमें से एक का बच्चा मर चुका था मगर अब दोनों दावा कर रही थीं कि जो ज़िंदा बचा है, वह उसका बेटा है। * जो कुछ हुआ था, उसका कोई चश्मदीद गवाह भी नहीं था। शायद निचली अदालत में उनके मामले की सुनवाई हो चुकी थी, लेकिन कोई हल नहीं निकल पाया था। आखिर में, यह मामला इस्राएल के राजा सुलैमान के सामने पेश किया गया। क्या वह सच्चाई का पता लगा पाता?
2 कुछ देर तक उन स्त्रियों की बहस सुनने के बाद, सुलैमान ने एक तलवार मँगवायी। फिर मानो पूरे यकीन के साथ उसने हुक्म दिया कि उस बच्चे के दो टुकड़े करके दोनों में आधा-आधा बाँट दिया जाए। यह सुनते ही बच्चे की असली माँ गिड़गिड़ाकर राजा से बिनती करने लगी कि वह बच्चा, जो उसके कलेजे का टुकड़ा था, दूसरी स्त्री को दे दिया जाए। लेकिन दूसरी औरत ज़िद करती रही कि बच्चे के दो टुकड़े कर दिए जाएँ। अब सुलैमान के सामने सच्चाई साफ थी। उसे पता था कि अपनी कोख से जन्मे बच्चे के लिए एक माँ ऐसा कभी नहीं कह सकती। माँ की ममता का ज्ञान होने से वह इस झगड़े को मिटा पाया। बच्चे की असली माँ ने क्या ही राहत महसूस की होगी, जब सुलैमान ने उसे बच्चा लौटाते हुए कहा: “उसकी माता वही है।”—1 राजा 3:16-27.
3 क्या यह लाजवाब बुद्धि का सबूत नहीं था? जब लोगों ने सुना कि सुलैमान ने कैसे इस मामले को सुलझाया, तो वे दंग रह गए “क्योंकि उन्हों ने यह देखा, कि 1 राजा 3:12, 28) मगर हमारे बारे में क्या? क्या हमें भी परमेश्वर से बुद्धि मिल सकती है? जी हाँ ज़रूर, क्योंकि सुलैमान ने परमेश्वर की प्रेरणा से लिखा था: “बुद्धि यहोवा ही देता है।” (नीतिवचन 2:6) यहोवा उन लोगों को बुद्धि—यानी ज्ञान, समझ और परख-शक्ति का अच्छा इस्तेमाल करने की काबिलीयत—देने का वादा करता है जो सच्चे दिल से इसे ढूँढ़ते हैं। हम ऊपर से आनेवाली बुद्धि कैसे हासिल कर सकते हैं? और अपनी ज़िंदगी में इसे कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं?
उसके मन में . . . परमेश्वर की बुद्धि है।” जी हाँ, सुलैमान को परमेश्वर से बुद्धि का वरदान मिला था। यहोवा ने उसे “बुद्धि और विवेक से भरा मन” दिया था। (‘बुद्धि प्राप्त कर’—कैसे?
4-7. बुद्धि हासिल करने की चार माँगें क्या हैं?
4 क्या हमें परमेश्वर की बुद्धि पाने के लिए बहुत ज़्यादा अक्लमंद या पढ़ा-लिखा होने की ज़रूरत है? जी नहीं। हमारी परवरिश कहाँ हुई या हमने कहाँ तक शिक्षा पायी है, यह देखे बगैर ही यहोवा हमें अपनी बुद्धि देने के लिए तैयार है। (1 कुरिन्थियों 1:26-29) मगर हमें पहल करनी होगी, क्योंकि बाइबल हमें उकसाती है कि ‘बुद्धि प्राप्त कर।’ (नीतिवचन 4:7) हम यह कैसे कर सकते हैं?
5 सबसे पहले ज़रूरी है कि हम परमेश्वर का भय मानें। नीतिवचन 9:10 कहता है: “यहोवा का भय मानना बुद्धि का आरम्भ है [‘सुबुद्धि को हासिल करने का पहिला कदम है,’ ईज़ी-टू-रीड वर्शन]।” परमेश्वर का भय सच्ची बुद्धि की बुनियाद है। क्यों? याद कीजिए कि बुद्धि का मतलब है, ज्ञान को सही तरह से इस्तेमाल करने की काबिलीयत। परमेश्वर का भय मानने का मतलब यह नहीं कि आप उसके सामने दहशत के मारे थर-थर काँपें, बल्कि यह है कि गहरे विस्मय, श्रद्धा और भरोसे के साथ उसके आगे शीश झुकाएँ। ऐसा भय फायदेमंद है और इसमें प्रेरणा जगाने की ज़बरदस्त शक्ति होती है। परमेश्वर की मरज़ी और उसके तौर-तरीकों के बारे में हम जो ज्ञान रखते हैं, यह भय हमें उस ज्ञान के मुताबिक अपनी ज़िंदगी में बदलाव लाने को प्रेरित करता है। इससे बढ़कर बुद्धिमानी का कोई और मार्ग नहीं, क्योंकि यहोवा के स्तर इन्हें माननेवालों को हमेशा सबसे ज़्यादा फायदा पहुँचाते हैं।
6 दूसरा, हमें नम्र और मर्यादाशील होना चाहिए। नम्रता और मर्यादा के बिना हममें परमेश्वर की बुद्धि हो ही नहीं सकती। (नीतिवचन 11:2) ऐसा क्यों? क्योंकि अगर हम नम्र और मर्यादाशील हैं, तो हम यह मानने के लिए तैयार रहेंगे कि हमारे पास हर सवाल का जवाब नहीं है, हमारी राय हमेशा सही नहीं होती और हमें यह जानने की ज़रूरत है कि यहोवा किसी मामले के बारे में क्या सोचता है। यहोवा “घमण्डियों का विरोध करता” है, मगर उसे ऐसे लोगों को बुद्धि देने में खुशी होती है जो दिल से नम्र हैं।—याकूब 4:6, NHT.
परमेश्वर की बुद्धि पाने के लिए, हमें मेहनत से इसकी खोज करनी होगी
7 तीसरी बेहद ज़रूरी बात है, परमेश्वर के लिखित वचन का अध्ययन। यहोवा की बुद्धि उसके वचन में पायी जाती है। इस बुद्धि को पाने के लिए, हमें मेहनत से इसकी खोज करनी होगी। (नीतिवचन 2:1-5) चौथी माँग है, प्रार्थना। अगर हम सच्चे दिल से परमेश्वर से बुद्धि माँगें, तो वह हमें उदारता से देगा। (याकूब 1:5) जब हम प्रार्थना करते हैं कि वह अपनी पवित्र आत्मा देकर हमारी मदद करे, तब हमारी प्रार्थनाओं को अनसुना नहीं किया जाएगा। और उसकी आत्मा की मदद से हम उसके वचन से ऐसी अनमोल बुद्धि पा सकेंगे, जिससे हम समस्याओं को सुलझा पाएँगे, खतरे से बच पाएँगे और बुद्धिमानी भरी फैसले कर पाएँगे।—लूका 11:13.
8. अगर हमने वाकई परमेश्वर की बुद्धि हासिल की है, तो यह कैसे ज़ाहिर होगी?
8 जैसा हमने अध्याय 17 में देखा था, यहोवा की बुद्धि व्यावहारिक है। इसलिए, अगर हमने वाकई परमेश्वर की बुद्धि हासिल की है, तो यह हमारे व्यवहार से ज़ाहिर होगी। शिष्य याकूब ने परमेश्वर की बुद्धि के फलों के बारे में बताते हुए लिखा: “जो ज्ञान [“बुद्धि,” NW] ऊपर से आता है वह पहिले तो पवित्र होता है फिर मिलनसार, कोमल और मृदुभाव [“आज्ञा मानने को तैयार,” NW] और दया, और अच्छे फलों से लदा हुआ और पक्षपात और कपट रहित होता है।” (याकूब 3:17) जब हम परमेश्वर की बुद्धि के इन पहलुओं में से एक-एक पर चर्चा करते हैं, तो हम खुद से पूछ सकते हैं: ‘क्या ऊपर से आनेवाली बुद्धि मेरी ज़िंदगी में काम कर रही है?’
“पवित्र . . . फिर मिलनसार”
9. पवित्र होने का क्या मतलब है, और यह क्यों सही है कि बुद्धि के गुणों में पवित्रता सबसे पहले नंबर पर आती है?
9 “पहिले तो पवित्र।” पवित्र होने का मतलब है सिर्फ बाहर से नहीं बल्कि अंदर से भी शुद्ध और निष्कलंक होना। बाइबल बताती है कि बुद्धि का हृदय के साथ नाता है, इसलिए स्वर्ग से आनेवाली बुद्धि ऐसे हृदय में दाखिल नहीं हो सकती जो बुरे विचारों, अभिलाषाओं और गंदे इरादों से भ्रष्ट हो चुका है। (नीतिवचन 2:10; मत्ती 15:19, 20) लेकिन, अगर हमारा हृदय पवित्र है यानी उतना पवित्र जितना असिद्ध इंसान बनाए रख सकता है, तो हम “बुराई को छोड़” देंगे और ‘भलाई करेंगे।’ (भजन 37:27; नीतिवचन 3:7) क्या यह सही नहीं कि बुद्धि के गुणों में पवित्रता सबसे पहले नंबर पर आती है? क्यों न हो, अगर हम अपने चालचलन और उपासना में पवित्र नहीं होंगे, तो हम ऊपर से आनेवाली बुद्धि के बाकी गुणों को भला सही मायनों में कैसे दिखा पाएँगे?
10, 11. (क) यह क्यों ज़रूरी है कि हम मिलनसार हों? (ख) अगर आपको महसूस होता है कि आपने किसी संगी मसीही का दिल दुखाया है, तो आप खुद को मेल-मिलाप करनेवाला कैसे साबित करेंगे? (फुटनोट भी देखिए।)
10 “फिर मिलनसार।” स्वर्ग से आनेवाली बुद्धि हमें मेल-मिलाप का पीछा करने या शांति रखने के लिए उकसाती है, और मेल या शांति परमेश्वर की आत्मा का एक फल है। (गलतियों 5:22) हम यत्न करते हैं कि यहोवा के लोगों को एक करनेवाले “मेल के बन्धन” को हम किसी भी हाल में न तोड़ें। (इफिसियों 4:3, NHT) और अगर शांति भंग हो जाए तो हमारी पूरी कोशिश रहती है कि इसे फिर से कायम करें। यह इतना ज़रूरी क्यों है? बाइबल कहती है: “मेल से रहो, और प्रेम और शान्ति का दाता परमेश्वर तुम्हारे साथ होगा।” (2 कुरिन्थियों 13:11) तो फिर, जब तक हम मेल-मिलाप या शांति से रहते हैं तब तक शांति का परमेश्वर हमारे साथ रहेगा। अपने मसीही भाई-बहनों के साथ हम कैसा सलूक करते हैं, इसका यहोवा के साथ हमारे रिश्ते पर सीधा असर पड़ता है। हम कैसे इस बात का सबूत दे सकते हैं कि हम मेल-मिलाप करनेवाले हैं? एक मिसाल लीजिए।
11 अगर आपको महसूस होता है कि आपने किसी संगी मसीही का दिल दुखाया है, तो आपको क्या करना चाहिए? यीशु ने कहा: “इसलिये यदि तू अपनी भेंट बेदी पर लाए, और वहां तू स्मरण करे, कि मेरे भाई के मन में मेरी ओर से कुछ विरोध है, तो अपनी भेंट वहीं बेदी के साम्हने छोड़ दे। और जाकर पहिले अपने भाई से मेल मिलाप कर; तब आकर अपनी भेंट चढ़ा।” (मत्ती 5:23, 24) अपने भाई के पास जाने की पहल करके आप इस सलाह पर अमल कर सकते हैं। आपका मकसद क्या होना चाहिए? उसके साथ “मेल मिलाप” करना। * इसके लिए शायद यह ज़रूरी हो कि उसकी भावनाओं से इनकार करने के बजाय यह स्वीकार करें कि आपने उसके दिल को ठेस पहुँचायी है। अगर आप उसके पास मेल-मिलाप करने या शांति बहाल करने के इरादे से जाते हैं और आखिर तक ऐसा ही रवैया बनाए रखते हैं, तो कोई भी गलतफहमी दूर की जा सकती है, ज़रूरत पड़ने पर माफी माँगी जा सकती है और माफ भी किया जा सकता है। जब आप आगे आकर मेल-मिलाप या शांति कायम करने की पहल करते हैं, तो आप दिखाते हैं कि आप परमेश्वर की बुद्धि के मुताबिक चल रहे हैं।
‘कोमल और आज्ञा मानने को तैयार’
12, 13. (क) याकूब 3:17 में, “कोमल” अनुवाद किए गए शब्द का क्या मतलब है? (ख) हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम कोमल हैं?
12 “कोमल।” कोमल होने का क्या मतलब है? विद्वानों के मुताबिक याकूब 3:17 में जिस मूल यूनानी शब्द का अनुवाद “कोमल” किया है, उसका अनुवाद करना बहुत मुश्किल है। अनुवादकों ने इसके लिए ये शब्द इस्तेमाल किए हैं, “मृदु,” “धैर्यवान्” और “दूसरे का लिहाज़ करनेवाला।” इस यूनानी शब्द का शाब्दिक अर्थ है, “दूसरों की मानना।” हम यह कैसे ज़ाहिर करेंगे कि ऊपर से आनेवाली बुद्धि का यह पहलू हमारे अंदर काम कर रहा है?
13 फिलिप्पियों 4:5 कहता है: “तुम्हारी कोमलता सब मनुष्यों पर प्रगट हो।” एक और अनुवाद कहता है: “कोमल होने का तुम्हारा नाम हो।” (द न्यू टेस्टामेंट इन मॉर्डन इंग्लिश, जे. बी. फिलिप्स् द्वारा) ध्यान दीजिए, सवाल यह नहीं कि हम खुद को किस नज़र से देखते हैं, बल्कि यह है कि दूसरे हमें किस नज़र से देखते हैं, और हमारा कैसा नाम है। एक कोमल इंसान, लकीर का फकीर नहीं होता ना ही वह हमेशा अपनी बात मनवाने पर अड़ा रहता है। इसके बजाय, वह दूसरों की बात सुनने के लिए तैयार रहता है और जहाँ मुनासिब हो उनकी मरज़ी मान लेता है। दूसरों के साथ पेश आते वक्त, वह रुखाई या कठोरता से काम नहीं लेता बल्कि मृदुलता से पेश आता है। यह गुण हालाँकि सभी मसीहियों के लिए ज़रूरी है, लेकिन खास तौर पर यह प्राचीनों के लिए बेहद ज़रूरी है। मृदुलता लोगों को अपनी तरफ खींचती है, इसलिए जब प्राचीन इस गुण को दिखाते हैं तो दूसरे उनके पास आने में झिझक महसूस नहीं करते। (1 थिस्सलुनीकियों 2:7, 8) हम सब अपने आप से पूछ सकते हैं, ‘क्या मैं दूसरों का लिहाज़ करनेवाला, उनकी माननेवाला और मृदु होने के लिए जाना जाता हूँ?’
14. हम कैसे दिखाएँगे कि हम “आज्ञा मानने को तैयार” हैं?
14 “आज्ञा मानने को तैयार।” जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “आज्ञा मानने को तैयार” किया गया है, वह शब्द मसीही यूनानी शास्त्र में और कहीं नहीं पाया जाता। एक विद्वान के मुताबिक, यह शब्द “अकसर फौजी अनुशासन के लिए इस्तेमाल होता है।” यह शब्द “आसानी से कायल होने” और “अधीनता दिखाने” का विचार देता है। जो इंसान ऊपर से आनेवाली बुद्धि के मुताबिक चलता है, वह शास्त्र में जो लिखा है उसे फौरन मान लेता है। वह ऐसा इंसान होने का नाम नहीं कमाता जो एक बार फैसला कर ले तो फिर हरगिज़ उसे बदलने को तैयार नहीं होता, फिर चाहे यह दिखाने के लिए उसे कितने ही सबूत क्यों न दिए जाएँ कि उसका फैसला गलत था। इसके बजाय, जब उसे शास्त्र से साफ-साफ दिखाया जाता है कि वह सरासर गलत काम कर रहा है या गलत नतीजे पर पहुँचा है, तो वह फौरन खुद को बदल लेता है। क्या दूसरे आपको ऐसा ही इंसान समझते हैं?
“दया, और अच्छे फलों से लदा हुआ”
15. दया क्या है, और यह सही क्यों है कि याकूब 3:17 में “दया” और “अच्छे फलों” का ज़िक्र साथ-साथ किया गया है?
15 “दया, और अच्छे फलों से लदा हुआ।” * ऊपर से आनेवाली बुद्धि का एक अहम हिस्सा है दया, क्योंकि कहा गया है कि ऐसी बुद्धि ‘दया से लदी हुई’ होती है। (तिरछे टाइप हमारे।) गौर कीजिए कि “दया” और “अच्छे फलों” का ज़िक्र साथ-साथ किया गया है। यह सही भी है, क्योंकि बाइबल में दया अकसर दूसरों के लिए ऐसी परवाह है जो कामों से ज़ाहिर होती है, ऐसी करुणा जिससे भलाई के ढेरों काम पैदा होते हैं। एक किताब दया की परिभाषा यूँ देती है, “किसी की बुरी हालत देखकर दुःखी होना और उसे ठीक करने के लिए कुछ करना।” इसलिए, हम कह सकते हैं कि परमेश्वर की बुद्धि, रूखी, निर्दयी और सिर्फ दिमागी नहीं है। इसके बजाय, इसमें प्यार होता है, यह दिल से निकलती है और दूसरों की भावनाओं को महसूस कर सकती है। हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम दया से लदे हुए हैं?
16, 17. (क) परमेश्वर के प्रेम के अलावा, और क्या हमें प्रचार काम में हिस्सा लेने को उकसाता है, और क्यों? (ख) हम किन तरीकों से दिखा सकते हैं कि हम दया से लदे हुए हैं?
16 बेशक इसका एक अहम तरीका है, दूसरों को परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाना। यह काम करने के लिए क्या बात हमें उकसाती है? सबसे बढ़कर, परमेश्वर के लिए प्रेम हमें उकसाता है। इसके अलावा, दूसरे इंसानों के लिए दया या करुणा भी हमें उकसाती है। (मत्ती 22:37-39) आज कई लोग ऐसे हैं जो “उन भेड़ों की नाईं जिनका कोई रखवाला न हो, ब्याकुल और भटके हुए से” हैं। (मत्ती 9:36) झूठे धर्म के चरवाहों ने उनकी ज़रा भी परवाह नहीं की और आध्यात्मिक मायने में उन्हें अंधा कर दिया है। इसकी वजह से, वे बुद्धिमानी भरी उन हिदायतों के बारे में नहीं जानते जो परमेश्वर के वचन में पायी जाती हैं, न ही वे उन आशीषों के बारे में जानते हैं जो परमेश्वर का राज्य इस धरती पर लाएगा। इस तरह, जब हम अपने आस-पास के लोगों की आध्यात्मिक ज़रूरतों के बारे में सोचेंगे, तो हमारे दिल में छिपी दया की भावना जाग उठेगी और हमें उकसाएगी कि यहोवा के प्यार भरे उद्देश्य के बारे में जो कुछ जानते हैं, उन्हें बताएँ।
लूका 10:29-37) क्या इस दृष्टांत से पता नहीं चलता कि दया दिखाने में, ज़रूरतमंदों की व्यावहारिक रूप से मदद करना भी शामिल है? बाइबल कहती है कि “हम सब के साथ भलाई करें; विशेष करके विश्वासी भाइयों के साथ।” (गलतियों 6:10) आइए देखें कि हम किन हालात में भलाई के ऐसे काम कर सकते हैं। शायद एक बुज़ुर्ग मसीही को ज़रूरत हो कि कोई उसे अपनी गाड़ी में मसीही सभाओं में लाया और ले जाया करे। कलीसिया में एक विधवा बहन को शायद अपने घर की मरम्मत के लिए मदद की ज़रूरत पड़े। (याकूब 1:27) एक निराश भाई या बहन के चेहरे पर मुसकान लाने के लिए शायद कोई “भली बात” कहने की ज़रूरत हो। (नीतिवचन 12:25) जब हम इन तरीकों से दया दिखाते हैं, तो हम यह सबूत देते हैं कि ऊपर से आनेवाली बुद्धि हमारी ज़िंदगी में काम कर रही है।
17 और किन तरीकों से हम दिखा सकते हैं कि हम दया से लदे हुए हैं? उस सामरी के बारे में यीशु के दृष्टांत को याद कीजिए, जिसने सड़क के किनारे एक मुसाफिर को पड़ा पाया था जिसे लूटा गया था और बुरी तरह मारा-पीटा गया था। करुणा से भरकर, उस सामरी ने “उस पर दया की,” और उसके घावों की मरहम-पट्टी करके उसकी देखभाल भी की। (“पक्षपात और कपट रहित”
18. अगर हम ऊपर से आनेवाली बुद्धि के मुताबिक चलते हैं, तो हम अपने दिलों से किस भावना को उखाड़ फेकेंगे और क्यों?
18 ‘पक्षपात रहित।’ परमेश्वर की बुद्धि की वजह से हम जाति-भेद और अपने देश पर घमंड करने से दूर रहते हैं। अगर हम इस बुद्धि के मुताबिक चलें, तो हम अपने दिलों से भेदभाव की भावना को उखाड़ फेकेंगे। (याकूब 2:9) लोगों के लिए हमारा प्यार इस बात से तय नहीं होता कि वे कितने पढ़े-लिखे हैं, कितने अमीर हैं या कलीसिया में उनकी क्या ज़िम्मेदारी है; न ही हम अपने संगी मसीहियों को नीची नज़र से देखते हैं, भले ही वे कितने गरीब या दीन-हीन क्यों न हों। अगर यहोवा ने उन्हें अपने प्यार के लायक समझा है, तो बेशक वे हमारे भी प्रेम के लायक हैं।
19, 20. (क) “कपटी” के लिए यूनानी शब्द का इस्तेमाल किसके लिए होता था? (ख) हम “भाईचारे की निष्कपट प्रीति” कैसे ज़ाहिर करते हैं, और यह क्यों ज़रूरी है?
19 “कपट रहित।” “कपटी” के लिए यूनानी शब्द “एक ऐसे कलाकार” के लिए इस्तेमाल होता है “जो किसी भूमिका को निभाता है।” प्राचीन काल में, यूनानी
और रोमी कलाकार अभिनय करते वक्त बड़े-बड़े मुखौटे लगाते थे। इसलिए, “कपटी” के लिए यूनानी शब्द एक ऐसे इंसान के लिए इस्तेमाल होने लगा, जो नाटक या दिखावा करता है। परमेश्वर की बुद्धि के इस पहलू का न सिर्फ मसीही भाई-बहनों के साथ हमारे व्यवहार पर बल्कि उनके बारे में हमारे नज़रिए या हमारी भावनाओं पर भी असर होना चाहिए।20 प्रेरित पतरस ने कहा कि ‘सत्य को मानने’ की वजह से, हमें “भाईचारे की निष्कपट प्रीति” दिखानी चाहिए। (1 पतरस 1:22) जी हाँ, भाइयों के लिए हमारा प्यार सिर्फ एक दिखावा नहीं होना चाहिए। हम दूसरों को धोखा देने के लिए मुखौटा नहीं पहनते, न ही कोई भूमिका अदा करते हैं। हमारा प्यार सच्चा और दिल से होना चाहिए। अगर ऐसा है, तो हम अपने मसीही भाई-बहनों का भरोसा जीत पाएँगे, क्योंकि उन्हें पता होगा कि हम जैसे बाहर से दिखते हैं वैसे ही अंदर भी हैं। इस ईमानदारी की वजह से, मसीहियों के बीच ऐसे रिश्ते कायम हो पाते हैं जिनमें खुलापन और सच्चाई होती है, साथ ही कलीसिया में एक-दूसरे पर भरोसा करने का माहौल पैदा होता है।
“खरी बुद्धि . . . की रक्षा कर”
21, 22. (क) सुलैमान बुद्धि की रक्षा करने में कैसे नाकाम रहा? (ख) हम बुद्धि की रक्षा कैसे कर सकते हैं, और ऐसा करने से हमें क्या फायदा होगा?
21 ईश्वरीय बुद्धि यहोवा की ओर से एक वरदान है, जिसकी हमें रक्षा करनी चाहिए। सुलैमान ने कहा: “हे मेरे पुत्र, . . . खरी बुद्धि और विवेक की रक्षा कर।” (नीतिवचन 3:21) अफसोस, सुलैमान ने खुद ऐसा नहीं किया। वह तब तक बुद्धिमान रहा जब तक उसका दिल परमेश्वर की आज्ञाएँ मानता रहा। मगर आखिर में, उसकी विदेशी पत्नियों ने, यहोवा की शुद्ध उपासना से उसका दिल फेर दिया। (1 राजा 11:1-8) सुलैमान का जो अंजाम हुआ वह हमारे लिए एक सबक है कि अगर ज्ञान का सही इस्तेमाल न किया जाए तो इसका कोई मोल नहीं।
22 हम खरी बुद्धि की रक्षा कैसे कर सकते हैं? हमें न सिर्फ बाइबल और “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के ज़रिए मिलनेवाले साहित्य पढ़ने चाहिए, बल्कि सीखी हुई बातों पर पूरी तरह अमल करने की भी कोशिश करनी चाहिए। (मत्ती 24:45) परमेश्वर की बुद्धि पर अमल करने के हमारे पास ढेरों कारण हैं। यह हमारी ज़िंदगी को आज बेहतर बनाती है। इसकी मदद से हम परमेश्वर की नयी दुनिया में ज़िंदगी को, जी हाँ “सत्य जीवन को वश में कर” पाते हैं। (1 तीमुथियुस 6:19) और सबसे बढ़कर, ऊपर से आनेवाली बुद्धि अपने अंदर पैदा करने से, हम सारी बुद्धि के दाता, यहोवा परमेश्वर के और करीब आ पाते हैं।
^ पैरा. 1 पहला राजा 3:16 के मुताबिक, ये दोनों स्त्रियाँ वेश्याएँ थीं। इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स् कहता है: “ये स्त्रियाँ इस मायने में वेश्याएँ नहीं थीं कि वे धंधा करती थीं, बल्कि शायद यहूदी या किसी और देश की ऐसी स्त्रियाँ थीं जिन्होंने व्यभिचार किया था।”—इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।
^ पैरा. 11 यूनानी पद जिसका अनुवाद “मेल मिलाप कर” किया गया है वह एक ऐसी क्रिया से आता है जिसका मतलब है, “‘बदलाव करना, अदल-बदल करना,’ और इस तरह ‘समझौता करना।’” तो फिर, आपका मकसद है, बदलाव लाना, हो सके तो जिसे आपने नाराज़ किया है उसके दिल से गिले-शिकवे या बुरी भावना दूर करना।—रोमियों 12:18.
^ पैरा. 15 एक और अनुवाद इन शब्दों को यूँ कहता है: “करुणा और भले कामों से भरपूर।”—आम लोगों की भाषा में अनुवाद, अँग्रेज़ी, चाल्र्स् बी. विलियम्स् द्वारा।