अध्याय 6
“स्तिफनुस पर परमेश्वर की बड़ी कृपा थी और वह उसकी शक्ति से भरपूर था”
महासभा के सामने स्तिफनुस जिस तरह निडर होकर गवाही देता है, उससे हम बहुत कुछ सीखते हैं
प्रेषितों 6:8–8:3 पर आधारित
1-3. (क) स्तिफनुस को किसके सामने खड़ा किया जाता है? ऐसे में वह क्या करता है? (ख) हम किन सवालों के जवाब जानेंगे?
स्तिफनुस देश की सबसे बड़ी अदालत, महासभा के सामने खड़ा है। यह अदालत एक आलीशान हॉल में रखी जाती है, जो शायद यरूशलेम के मंदिर के पास था। अदालत के 71 न्यायी आधा घेरा बनाए बैठे हैं और इनके पास बहुत ताकत है। इनमें से ज़्यादातर न्यायी यीशु के इस चेले को नीची नज़रों से देखते हैं। और-तो-और, यह अदालत महायाजक कैफा ने बिठायी है। कुछ महीनों पहले जब इस अदालत ने यीशु को मौत की सज़ा सुनायी थी, तब कैफा ही उसका सभापति था। क्या इन दुश्मनों के बीच खड़ा स्तिफनुस डर के मारे काँपने लगता है?
2 स्तिफनुस का चेहरा देखने लायक है। महासभा के न्यायियों को उसका चेहरा “एक स्वर्गदूत के चेहरे जैसा” लग रहा है। (प्रेषि. 6:15) पुराने ज़माने में स्वर्गदूत लोगों तक यहोवा का संदेश पहुँचाते थे इसलिए उनमें डर नहीं होता और वे एकदम शांत होते थे। इस वक्त स्तिफनुस भी ऐसा ही महसूस कर रहा है। यहाँ तक कि उसके दुश्मन भी साफ देख सकते हैं कि उसके चेहरे पर कितना सुकून है। मगर स्तिफनुस इतना शांत कैसे है?
3 जब हम इस सवाल का जवाब जानेंगे तो हमें बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। पर हम कुछ और सवालों के जवाब भी जानेंगे। ऐसा क्या हुआ कि स्तिफनुस को महासभा के सामने लाया गया? अदालत में आने से पहले भी उसने कैसे अपने विश्वास की पैरवी की थी? हम किन-किन मामलों में स्तिफनुस के जैसे बन सकते हैं?
‘वे जनता को भड़काते हैं’ (प्रेषि. 6:8-15)
4, 5. (क) स्तिफनुस किस तरह मंडली के लिए आशीष साबित हुआ? (ख) इस बात का क्या मतलब है कि स्तिफनुस पर “परमेश्वर की बड़ी कृपा थी और वह उसकी शक्ति से भरपूर था?”
4 जैसा हमने पिछले अध्याय में देखा, स्तिफनुस नयी मसीही मंडली के लिए एक बड़ी आशीष साबित हुआ। वह उन सात नम्र भाइयों में से था, जिन्हें प्रेषितों ने एक खास काम दिया था। एक और बात पर ध्यान दीजिए। परमेश्वर ने स्तिफनुस को ऐसे वरदान दिए थे जो सिर्फ कुछ प्रेषितों को ही मिले थे। प्रेषितों 6:8 में लिखा है कि स्तिफनुस “बड़े-बड़े आश्चर्य के काम और चमत्कार करता था।” फिर भी वह नम्र रहा। आयत यह भी बताती है कि उस पर “परमेश्वर की बड़ी कृपा थी और वह उसकी शक्ति से भरपूर था।” इसका क्या मतलब है?
5 “परमेश्वर की बड़ी कृपा” के लिए जो यूनानी शब्द इस्तेमाल हुआ है, उसका मतलब ‘दया या करुणा से भरा हुआ’ भी हो सकता है। इससे ज़ाहिर होता है कि स्तिफनुस कोमल और नरम स्वभाव का था। उसका यह व्यवहार सबका दिल जीत लेता था। उसकी बातों से लोगों को यकीन हो जाता था कि वह जो भी सिखा रहा है, सच्चे दिल से सिखा रहा है और उसे मानने में ही फायदा है। आयत यह भी बताती है कि वह परमेश्वर की शक्ति से भरपूर था। यानी पवित्र शक्ति उस पर काम करती थी और वह उसके निर्देशन में चलता था। इतनी सारी काबिलीयतें होते हुए भी स्तिफनुस घमंड से नहीं फूला। उसने हमेशा यहोवा की तारीफ की और लोगों को सिखाते वक्त उनके साथ प्यार से पेश आया। इन्हीं खूबियों की वजह से विरोधी, स्तिफनुस को अपने रास्ते का काँटा समझते हैं!
6-8. (क) स्तिफनुस के विरोधी उस पर कौन-से दो इलज़ाम लगाते हैं? वे ऐसा क्यों करते हैं? (ख) आज मसीहियों को स्तिफनुस की मिसाल पर क्यों ध्यान देना चाहिए?
6 स्तिफनुस को महासभा में क्यों लाया जाता है? दरअसल कुछ आदमी स्तिफनुस के खिलाफ खड़े होते हैं और उससे बहस करने लगते हैं। मगर वह ‘बड़ी बुद्धिमानी से और पवित्र शक्ति की मदद से उन्हें जवाब देता है, इसलिए वे उसके सामने टिक नहीं पाते।’ a इस पर वे चिढ़ जाते हैं और ‘चोरी-छिपे कुछ आदमियों को फुसलाते हैं’ कि वे स्तिफनुस पर झूठा इलज़ाम लगाएँ। वे ‘जनता को और मुखियाओं और शास्त्रियों को भी भड़काते हैं’ और स्तिफनुस को ज़बरदस्ती महासभा के सामने लाया जाता है। (प्रेषि. 6:9-12) विरोधी स्तिफनुस पर दो इलज़ाम लगाते हैं: वह परमेश्वर की निंदा कर रहा है और मूसा का अपमान कर रहा है। वह कैसे?
7 विरोधियों का कहना है कि स्तिफनुस ने यरूशलेम के “पवित्र मंदिर” के बारे में उलटी-सीधी बातें कहकर परमेश्वर की निंदा की है। (प्रेषि. 6:13) वे यह भी कहते हैं कि स्तिफनुस ने मूसा के सिखाए रीति-रिवाज़ बदल दिए हैं और इस तरह मूसा और मूसा के कानून का अपमान किया है। ये बहुत ही गंभीर आरोप थे क्योंकि उन यहूदियों के लिए मंदिर, मूसा का कानून और उनकी परंपराएँ ही सबकुछ थीं। इसलिए उन्हें लग रहा था कि स्तिफनुस उनके लिए बहुत बड़ा खतरा है और उसे हर हाल में मौत की सज़ा मिलनी चाहिए!
8 आज भी लोग धर्म के नाम पर इसी तरह की चालें चलते हैं और परमेश्वर के लोगों को सताते हैं। अकसर वे अधिकारियों को हमारे खिलाफ भड़काते हैं। जब हम पर झूठे इलज़ाम लगाए जाते हैं तो हमें क्या करना चाहिए? स्तिफनुस की मिसाल पर ध्यान देने से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं।
प्रेषि. 7:1-53)
स्तिफनुस “महिमा से भरपूर परमेश्वर” के बारे में निडर होकर गवाही देता है (9, 10. बाइबल में नुक्स निकालनेवाले लोग क्या कहते हैं? और हम क्या याद रखेंगे और क्यों?
9 जैसा कि हमने इस अध्याय की शुरूआत में देखा, जब दुश्मन स्तिफनुस पर इलज़ाम लगाते हैं तो वह शांत रहता है। उसके चेहरे पर ऐसा सुकून झलकता है मानो कोई स्वर्गदूत का चेहरा हो। फिर महायाजक कैफा स्तिफनुस से पूछता है, “क्या ये बातें सच हैं?” (प्रेषि. 7:1) अब स्तिफनुस के बोलने की बारी है। और वह बहुत दमदार तरीके से बात करता है!
10 बाइबल में नुक्स निकालनेवाले लोग कहते हैं कि स्तिफनुस ने महासभा के सामने इतनी देर तक बात की, पर एक बार भी अपने इलज़ामों को गलत साबित नहीं किया। लेकिन सच तो यह है कि उसने बहुत अच्छी तरह अपनी सफाई पेश की। उससे हम सीखते हैं कि हम भी कैसे खुशखबरी की ‘पैरवी कर’ सकते हैं। (1 पत. 3:15) अभी हमने देखा कि स्तिफनुस पर दो बड़े इलज़ाम लगे थे। एक, उसने मंदिर के खिलाफ बोलकर परमेश्वर की निंदा की। दो, उसने कानून के खिलाफ बोलकर मूसा का अपमान किया। अगर हम इन दो इलज़ामों को याद रखेंगे तो हम समझ पाएँगे कि स्तिफनुस ने कितने अच्छे तरीके से इन इलज़ामों को झूठा साबित किया। वह इसराएल के इतिहास के तीन अलग-अलग दौर का ज़िक्र करता है और कुछ खास मुद्दों पर ज़ोर देता है। आइए एक-एक दौर पर नज़र डालें।
11, 12. (क) स्तिफनुस अब्राहम की मिसाल क्यों देता है? (ख) स्तिफनुस यूसुफ का ज़िक्र क्यों करता है?
11 कुलपिताओं का दौर। (प्रेषि. 7:1-16 ) स्तिफनुस सबसे पहले अब्राहम की बात करता है, जिसके विश्वास की वजह से यहूदी उसकी बहुत इज़्ज़त करते थे। इस तरह स्तिफनुस एक ऐसे विषय से अपनी बात शुरू करता है जिससे उसके विरोधी भी सहमत होते। वह बताता है कि “महिमा से भरपूर परमेश्वर” यहोवा ने सबसे पहले मेसोपोटामिया में अब्राहम को दर्शन दिया था। (प्रेषि. 7:2) दरअसल अब्राहम वादा किए गए देश में एक परदेसी था। उस समय ना तो मंदिर था ना ही मूसा का कानून, फिर भी अब्राहम यहोवा का वफादार सेवक था। तो फिर आज कोई यह कैसे कह सकता है कि परमेश्वर के वफादार रहने के लिए मंदिर और मूसा के कानून का होना ज़रूरी है?
12 इसके बाद, स्तिफनुस अब्राहम के वंशज यूसुफ का ज़िक्र करता है क्योंकि महासभा के लोग यूसुफ को भी बहुत मानते हैं। वह बताता है कि यूसुफ के अपने भाइयों यानी इसराएल गोत्रों के कुलपिताओं ने उसे सताया और गुलामी में बेच दिया जबकि वह एक नेक इंसान था। लेकिन यहोवा ने उसी के ज़रिए इसराएल को अकाल से बचाया। स्तिफनुस देख सकता है कि यूसुफ और यीशु के बीच काफी समानताएँ हैं। लेकिन वह इस बारे में कुछ नहीं बताता क्योंकि वह जानता है कि ऐसा करने से विरोधियों का पारा चढ़ जाएगा और वे उसकी पूरी बात नहीं सुनेंगे।
13. मूसा का अपमान करने के इलज़ाम को स्तिफनुस कैसे झूठा साबित करता है? वह किस अहम मुद्दे की तरफ लोगों का ध्यान खींचता है?
13 मूसा का दौर। (प्रेषि. 7:17-43 ) अब स्तिफनुस मूसा की बात करता है। वह ऐसा इसलिए करता है क्योंकि महासभा के बहुत-से सदस्य सदूकी हैं, जो मूसा की किताबों को छोड़ बाइबल की किसी भी किताब को नहीं मानते। याद रखिए कि स्तिफनुस पर मूसा का अपमान करने का इलज़ाम लगा है। वह अपनी बातों से दिखाता है कि मूसा और परमेश्वर के कानून के लिए उसके दिल में गहरा आदर है। इस तरह वह इस इलज़ाम को झूठा साबित करता है। (प्रेषि. 7:38) वह यह भी बताता है कि जब मूसा 40 साल का था, तो उसे उन्हीं लोगों ने ठुकरा दिया जिन्हें वह छुड़ाने की कोशिश कर रहा था। इसके करीब 40 साल बाद उन्होंने कई बार मूसा से बगावत की। b यह सब बताकर स्तिफनुस उनका ध्यान एक अहम मुद्दे की तरफ खींचता है। वह यह कि परमेश्वर के लोगों ने बार-बार उन अगुवों को ठुकराया जिन्हें यहोवा ने चुना था।
14. मूसा की मिसाल देकर स्तिफनुस कौन-सा मुद्दा समझाता है?
14 फिर स्तिफनुस बताता है कि मूसा ने भविष्यवाणी की थी कि परमेश्वर उसके जैसा एक भविष्यवक्ता खड़ा करेगा। वह कौन होता और लोग उसके साथ कैसे पेश आते? इन सवालों के जवाब स्तिफनुस आखिर में देता है। मगर अब वह एक और खास मुद्दा बताता है: जब परमेश्वर ने कँटीली झाड़ी के पास मूसा से बात की तो उसने उस ज़मीन को पवित्र ठहराया। इससे मूसा ने सीखा कि परमेश्वर किसी भी ज़मीन को पवित्र बना सकता है। तो क्या यह कहना सही होगा कि यहोवा की उपासना सिर्फ किसी खास भवन में की जानी चाहिए, जैसे यरूशलेम के मंदिर में? आइए जानें कि स्तिफनुस ने क्या कहा।
15, 16. (क) स्तिफनुस पवित्र डेरे के बारे में क्यों बात करता है? (ख) सुलैमान के मंदिर के बारे में बताकर स्तिफनुस कौन-सी अहम सच्चाई बताता है?
15 पवित्र डेरा और मंदिर। (प्रेषि. 7:44-50 ) स्तिफनुस महासभा से कहता है कि यरूशलेम के मंदिर से पहले परमेश्वर ने मूसा को पवित्र डेरा बनाने के लिए कहा था। पवित्र डेरा दरअसल उपासना का तंबू था जिसे जगह-जगह ले जाया जा सकता था। मूसा ने इसी डेरे में परमेश्वर की उपासना की थी। तो क्या कोई कह सकता है कि पवित्र डेरा किसी भी मायने में मंदिर से कम था?
16 जब सुलैमान ने मंदिर बनवाया तो उसने अपनी प्रार्थना में एक अहम सच्चाई बतायी। उसी का हवाला देकर स्तिफनुस बताता है कि “परम-प्रधान परमेश्वर हाथ के बनाए भवनों में नहीं रहता।” (प्रेषि. 7:48; 2 इति. 6:18) यहोवा चाहे तो अपना मकसद पूरा करने के लिए मंदिर का इस्तेमाल कर सकता है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि मंदिर के बिना उसका मकसद पूरा नहीं होगा। इसलिए उसके सेवकों को यह नहीं सोचना चाहिए कि अगर उसकी उपासना करनी है, तो कोई भवन होना ज़रूरी है। स्तिफनुस अपनी दलील के आखिर में यशायाह की किताब का ज़िक्र करता है जहाँ यहोवा कहता है, “स्वर्ग मेरी राजगद्दी है और पृथ्वी मेरे पाँवों की चौकी। तो फिर तुम मेरे लिए कैसा भवन बनाओगे? मेरे रहने के लिए कहाँ जगह बनाओगे? क्या मेरे ही हाथों ने इन सब चीज़ों को नहीं रचा?”—प्रेषि. 7:49, 50; यशा. 66:1, 2.
17. (क) स्तिफनुस की दलीलों से कैसे पता चलता है कि उसके विरोधियों की सोच गलत थी? (ख) स्तिफनुस की बातों से कैसे ज़ाहिर होता है कि उस पर लगे इलज़ाम झूठे हैं?
17 अब तक स्तिफनुस ने जो दलीलें दीं, उनसे साफ पता चलता है कि उसके विरोधियों की सोच गलत थी। उसने समझाया कि यहोवा ना तो हालात ना ही परंपराओं से बँधा है। वह अपने मकसद को अंजाम देने के लिए कोई भी फेरबदल कर सकता है, कोई भी रास्ता निकाल सकता है। स्तिफनुस के सुननेवालों को मंदिर से और अपनी परंपराओं से बहुत प्यार था। उस प्यार में वे इतने अंधे हो गए थे कि भूल गए कि परमेश्वर ने उन्हें वह मंदिर और मूसा का कानून क्यों दिया था। एक तरह से स्तिफनुस उन लोगों से पूछ रहा था कि अगर वे मंदिर और कानून का आदर करना चाहते हैं, तो यहोवा की आज्ञा मानने से अच्छा तरीका और क्या हो सकता है? स्तिफनुस की बातों से साफ ज़ाहिर होता है कि उस पर लगे इलज़ाम झूठे हैं क्योंकि वह सही मायनों में यहोवा की आज्ञा मान रहा है।
18. स्तिफनुस की मिसाल से हम क्या सीखते हैं?
18 हम स्तिफनुस से क्या सीख सकते हैं? स्तिफनुस शास्त्र से अच्छी तरह वाकिफ था। हमें भी बाइबल का गहरा अध्ययन करना चाहिए, तभी हम “सच्चाई के वचन को सही तरह से इस्तेमाल” कर पाएँगे। (2 तीमु. 2:15) हम यह भी सीखते हैं कि हमें सोच-समझकर और नरमी से लोगों से बात करनी चाहिए। स्तिफनुस के सुननेवाले उसके कट्टर दुश्मन थे। फिर भी जहाँ तक मुमकिन था उसने ऐसे विषयों पर बात की, जिनसे वे सहमत होते और जो उनके दिल के करीब थे। यही नहीं, उसने आदर के साथ उन अधिकारियों से बात की और उन्हें ‘पिता समान बुज़ुर्ग’ कहा। (प्रेषि. 7:2) हमें भी प्रचार करते वक्त “कोमल स्वभाव और गहरे आदर के साथ” लोगों से बात करनी चाहिए।—1 पत. 3:15.
19. स्तिफनुस कैसे बेधड़क होकर महासभा को यहोवा के न्याय का संदेश सुनाता है?
19 हालाँकि हम लोगों के साथ नरमी से पेश आते हैं, मगर उन्हें नाराज़ करने के डर से हम बाइबल की सच्चाइयाँ बताने से पीछे नहीं हटते। और ना ही उन्हें खुश करने के लिए हम यहोवा के न्याय के संदेश में फेरबदल करते हैं। इस मामले में भी स्तिफनुस एक अच्छी मिसाल है। उसने महासभा के सामने कई सबूत पेश किए लेकिन उसने देखा कि उसकी बातों का उन पत्थरदिल न्यायियों पर कोई असर नहीं हो रहा। इसलिए पवित्र शक्ति से उभारे जाकर वह उनसे साफ-साफ कहता है कि वे बिलकुल अपने पुरखों की तरह हैं जिन्होंने यूसुफ, मूसा और दूसरे भविष्यवक्ताओं को ठुकरा दिया था। (प्रेषि. 7:51-53) यही नहीं, उन्होंने मसीहा को मार डाला, जिसके आने के बारे में मूसा और बाकी सभी भविष्यवक्ताओं ने बताया था। जी हाँ, स्तिफनुस उनके मुँह पर कहता है कि उन्होंने मूसा का कानून तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी!
“हे प्रभु यीशु, मैं अपनी जान तेरे हवाले करता हूँ” (प्रेषि. 7:54–8:3)
20, 21. स्तिफनुस की बातें सुनकर महासभा क्या करती है? यहोवा स्तिफनुस की हिम्मत बढ़ाने के लिए क्या करता है?
20 न्यायी स्तिफनुस की बात को झुठला नहीं सकते इसलिए वे उस पर भड़क उठते हैं। वे चीखने-चिल्लाने लगते हैं और गुस्से के मारे दाँत पीसने लगते हैं। स्तिफनुस समझ जाता है कि अब उस पर कोई रहम नहीं किया जाएगा, ठीक जैसे उसके मालिक यीशु पर रहम नहीं किया गया था।
21 स्तिफनुस के साथ जो होनेवाला है, उसे सहने के लिए उसे हिम्मत की ज़रूरत होगी। इसलिए यहोवा उसे एक दर्शन दिखाता है। दर्शन में स्तिफनुस परमेश्वर की महिमा देखता है और यीशु को यहोवा के दाएँ हाथ खड़े देखता है! जैसे ही वह न्यायियों को बताता है कि उसने दर्शन में क्या देखा, वे अपने कान बंद कर लेते हैं। मगर क्यों? क्योंकि कुछ समय पहले, इसी अदालत के सामने यीशु ने कहा था कि मैं मसीहा हूँ और जल्द ही मैं अपने पिता के पास जाकर उसके दाएँ हाथ बैठूँगा। (मर. 14:62) इस दर्शन से साबित हो गया कि यीशु ने सच कहा था और महासभा ने ही मसीहा को मरवा डाला था! उसी वक्त सभी मिलकर स्तिफनुस पर झपट पड़ते हैं और बाहर ले जाकर उसे पत्थरों से मारने लगते हैं। c
22, 23. स्तिफनुस अपनी आखिरी घड़ी में अपने प्रभु की तरह क्या करता है? आज मसीही भी स्तिफनुस की तरह क्या भरोसा रखते हैं?
22 स्तिफनुस अपनी आखिरी घड़ी में अपने प्रभु यीशु की तरह शांत रहता है, यहोवा पर भरोसा रखता है और अपने कातिलों को माफ कर देता है। वह कहता है, “हे प्रभु यीशु, मैं अपनी जान तेरे हवाले करता हूँ।” (प्रेषि. 7:59) शायद स्तिफनुस यह बात इसलिए कहता है क्योंकि वह अब भी दर्शन में यीशु को यहोवा के पास खड़े देख रहा है। उसे यीशु के इन शब्दों को भी याद करके हिम्मत मिली होगी, “मरे हुओं को ज़िंदा करनेवाला और उन्हें जीवन देनेवाला मैं ही हूँ।” (यूह. 11:25) आखिर में वह ज़ोर से पुकारता है, “यहोवा, यह पाप इनके सिर मत लगाना।” यह कहकर वह मौत की नींद सो जाता है।—प्रेषि. 7:60.
23 स्तिफनुस, यीशु का ऐसा पहला चेला था जो शहीद हुआ। (बक्स देखें, “ ‘शहीद’ और ‘गवाह।’”) अफसोस, तब से लेकर आज तक और भी कई चेलों के साथ ऐसा हुआ है। धर्म और राजनीति के नाम पर कट्टरपंथियों और दूसरे विरोधियों ने यहोवा के कुछ वफादार सेवकों को मार डाला है। फिर भी, हम स्तिफनुस की तरह यहोवा पर भरोसा रखते हैं। आज यीशु राजा बनकर राज कर रहा है और उसके पिता ने उसे बहुत अधिकार दिया है। इसलिए हमें पूरा यकीन है कि यीशु के जो वफादार चेले मौत की नींद सो रहे हैं, उन्हें वह ज़रूर ज़िंदा करेगा।—यूह. 5:28, 29.
24. जब स्तिफनुस को पत्थरों से मारा जा रहा था, तो शाऊल क्या कर रहा था? स्तिफनुस की मौत का क्या असर हुआ?
24 जब स्तिफनुस को मारा जा रहा था, तो शाऊल नाम का नौजवान यह सब देख रहा था। उसने स्तिफनुस के कत्ल में साथ दिया, यहाँ तक कि उन लोगों के कपड़ों की रखवाली भी की जो स्तिफनुस को मार रहे थे। इसके तुरंत बाद, शाऊल मसीहियों को बहुत सताने लगा। क्या स्तिफनुस के साथ जो हुआ, उससे दूसरे मसीही डर गए? बिलकुल नहीं! उलटा उसकी मौत का ज़बरदस्त असर हुआ। दूसरे मसीहियों को हिम्मत मिली कि वे मरते दम तक यहोवा के वफादार बने रहें। इतना ही नहीं, कुछ समय बाद खुद शाऊल भी मसीही बन गया और बाद में पौलुस के नाम से जाना गया। शाऊल को बहुत पछतावा हुआ कि उसने स्तिफनुस के कत्ल में साथ दिया। (प्रेषि. 22:20) उसने कहा, “मैं परमेश्वर की निंदा करनेवाला और ज़ुल्म ढानेवाला और गुस्ताख था।” (1 तीमु. 1:13) पौलुस स्तिफनुस और उसके दमदार भाषण को कभी नहीं भूला होगा। हम ऐसा क्यों कह सकते हैं? क्योंकि पौलुस ने भी अपने कुछ भाषणों और खतों में वही मुद्दे समझाए जो स्तिफनुस ने अपने भाषण में बताए थे। (प्रेषि. 7:48; 17:24; इब्रा. 9:24) समय के गुज़रते, पौलुस ने स्तिफनुस की तरह अपने अंदर विश्वास और हिम्मत का गुण बढ़ाया। हमारे बारे में क्या? क्या हम भी स्तिफनुस के जैसे बनेंगे जिस पर “परमेश्वर की बड़ी कृपा थी और [जो] उसकी शक्ति से भरपूर था”?
a इनमें से कुछ आदमी “आज़ाद लोगों के सभा-घर” से थे। ये शायद वे यहूदी थे जो पहले रोमियों के गुलाम थे मगर बाद में उन्हें आज़ाद कर दिया गया था। या शायद वे ऐसे लोग थे जो पहले गुलाम थे मगर आज़ाद होने के बाद उन्होंने यहूदी धर्म अपना लिया था। इनमें से कुछ लोग किलिकिया के इलाके से थे जहाँ से तरसुस का रहनेवाला शाऊल भी था। ब्यौरा यह नहीं बताता कि शाऊल भी किलिकिया के उन विरोधियों में शामिल था या नहीं, जो स्तिफनुस के सामने टिक नहीं पाए।
b स्तिफनुस ने मूसा के बारे में ऐसी जानकारी दी, जो बाइबल में और कहीं नहीं मिलती। जैसे, मूसा ने मिस्र में कौन-सी शिक्षा हासिल की थी, जब वह पहली बार मिस्र से भागा तो उसकी उम्र क्या थी और वह कितने समय तक मिद्यान देश में रहा था।
c यह पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि रोमी सरकार ने महासभा को मौत की सज़ा सुनाने का अधिकार दिया था या नहीं। (यूह. 18:31) लेकिन ऐसा मालूम होता है कि स्तिफनुस को मार डालने का हुक्म महासभा ने नहीं दिया था बल्कि भीड़ ने गुस्से में आकर उसे मार डाला था।