संग चल याह के हर पल
1. करना तो है
बहुत कुछ, है ख्वाइश ये।
मगर दो पल की भी फुरसत नहीं।
पर वक्त को खरीद, है अहम ये।
(कोरस)
देख वक्त की नज़ाकत।
ना कर इसे ज़ाया।
हर रोज़ वक्त तू निकाल याह के लिए।
संग चल याह के हर पल।
2. वक्त के साथ
रिश्ते होते हैं मज़बूत।
गर याह को वक्त दूँ, संग उसके चलूँ,
खुश होगा वो, फिर मुझ से।
तो फिर चल।
(कोरस)
देख वक्त की नज़ाकत।
ना कर इसे ज़ाया।
हर रोज़ वक्त तू निकाल याह के लिए।
संग चल याह के हर पल।
(खास पंक्तियाँ)
दो पल
की, ये ज़िंदगी नहीं।
दो पल
में, ये होगी और भी हसीं।
होगी ये दुन-या नयी।
हर पल।
हर पल।
चल हर पल।
(कोरस)
देख वक्त की नज़ाकत।
ना कर इसे ज़ाया।
हर रोज़ वक्त तू निकाल याह के लिए।
संग चल याह के हर पल।
हर पल।
हर पल।
हर पल।
हर पल।
हर पल।
हर पल।
हर पल।
हर पल।