जब गाएँगे एक धुन में!
1. रो रही है ज़मीं
तबाही है हर कहीं,
जंग का मैदान
अब है जहान,
ना अमन है कहीं भी।
लोगों ने हैं बुनी
दलीले जो हैं झूठी;
यहोवा ही है जो देता हमें
उम्मीद नयी दुन्-या की।
(कोरस)
एकता होगी हर कहीं!
कायनात गूँजे
इबादत से तेरी;
जब एक धुन में गाएँ!
2. वादों पे हम याह के
हर हाल में यकीं करते;
जब दिल हो अपना कमज़ोर और बेहाल,
ताज़गी देता यहोवा।
रोम-रोम में खुश्-यों की
लहर-सी दौड़ उठे,
वो दिन दूर नहीं जब हो सुकूँ
फिरदौस में हर कहीं।
(कोरस)
एकता होगी हर कहीं!
कायनात गूँजे
इबादत से तेरी;
जब एक धुन में गाएँ!
(खास पंक्तियाँ)
याह का वो शहज़ादा
खुश्-याँ हमें देगा,
ना आँसू, ना ग़म,
ना मौत, ना मातम,
करेंगे हम सिजदा
बस यहोवा का ही!
(कोरस)
एकता होगी हर कहीं!
कायनात गूँजे
इबादत से तेरी;
एकता होगी हर कहीं!
कायनात गूँजे
इबादत से तेरी;
जब एक धुन में गाएँ:
“फतह याह की हुई!”