अविवाहित हालात का पूरा-पूरा फायदा उठाइए
अविवाहित हालात का पूरा-पूरा फायदा उठाइए
“जो राज की खातिर अविवाहित रह सकता है, वह रहे।”—मत्ती 19:12.
1, 2. (क) यीशु, पौलुस और दूसरे कई लोगों ने कुँवारेपन को किस नज़र से देखा? (ख) कुछ लोग कुँवारेपन या अकेले रह जाने को क्यों एक तोहफा नहीं समझते?
इसमें दो राय नहीं कि मानवजाति के लिए शादी परमेश्वर की तरफ से एक बेशकीमती तोहफा है। (नीति. 19:14) लेकिन बहुत-से ऐसे मसीही भी संतोष और खुशी की ज़िंदगी बिता रहे हैं जिनके जीवन-साथी नहीं हैं। पिच्चानवें साल के एक अविवाहित भाई हेरल्ड का कहना है: “मुझे दूसरों के साथ मेल-जोल रखना और मेहमान-नवाज़ी दिखाना पसंद है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं अकेलेपन से घबराता हूँ। अकेले होकर भी मैं कभी अकेलापन महसूस नहीं करता। लगता है कि मुझे वाकई कुँवारेपन का तोहफा मिला है।”
2 यीशु और प्रेषित पौलुस दोनों ने कहा कि शादी की तरह कुँवारापन भी परमेश्वर की तरफ से मिला एक तोहफा है। (मत्ती 19:11, 12; 1 कुरिंथियों 7:7 पढ़िए।) लेकिन आज जो लोग कुँवारे हैं, उनमें से सभी अपनी मरज़ी से कुँवारे नहीं हैं। कभी-कभी उन्हें एक ऐसा जीवन-साथी नहीं मिल पाता जो उनके लिए सही हो। हो सकता है, शादी के कई सालों बाद तलाक या जीवन-साथी की मौत की वजह से वे अचानक खुद को अकेला पाएँ। तो फिर किस मायने में कुँवारापन या अकेले रह जाना एक तोहफा हो सकता है? और ऐसे मसीही कैसे अपने हालात का पूरा-पूरा फायदा उठा सकते हैं?
एक अनोखा तोहफा
3. कुँवारे मसीहियों को क्या फायदे होते हैं?
3 अकसर शादीशुदा इंसान के मुकाबले एक कुँवारे व्यक्ति के पास ज़्यादा वक्त और आज़ादी होती है। (1 कुरिं. 7:32-35) इस वजह से वह खासकर दूसरों को ज़्यादा प्यार दिखा पाता है, परमेश्वर की सेवा में ज़्यादा वक्त बिता पाता है और यहोवा के और करीब आ पाता है। कुँवारेपन के फायदों को देखते हुए बहुत-से मसीहियों ने कम-से-कम कुछ वक्त के लिए “अविवाहित” रहने का फैसला किया है। कुछ ऐसे भी हैं, जो शायद कुँवारे नहीं रहना चाहते थे लेकिन हालात की वजह से जब वे अकेले रह गए तो उन्होंने इस बारे में प्रार्थना की और इस नतीजे पर पहुँचे कि यहोवा की मदद से वे भी अविवाहित रहने का इरादा कर सकते हैं। इस तरह उन्होंने अपने हालात कबूल करके कुँवारे रहने की सोच ली।—1 कुरिं. 7:37, 38.
4. कुँवारे मसीहियों को परमेश्वर की सेवा में खुद को अधूरा क्यों नहीं समझना चाहिए?
4 कुँवारे मसीही जानते हैं कि यहोवा और उसका संगठन सिर्फ शादीशुदा लोगों की ही कदर नहीं करते बल्कि कुँवारे लोग भी उनकी नज़र में अनमोल हैं। परमेश्वर अपने हर सेवक से प्यार करता है। (मत्ती 10:29-31) कोई भी व्यक्ति या चीज़ हमें परमेश्वर के प्यार से अलग नहीं कर सकती। (रोमि. 8:38, 39) चाहे हम शादीशुदा हों या कुँवारे सभी दिलो-जान से परमेश्वर की सेवा कर सकते हैं।
5. कुँवारेपन का पूरा-पूरा फायदा उठाने के लिए क्या करने की ज़रूरत है?
5 जिस तरह संगीत और खेल-कूद के हुनर से फायदा पाने के लिए एक इंसान को मेहनत करनी पड़ती है। उसी तरह कुँवारेपन के तोहफे का पूरा फायदा उठाने के लिए मेहनत करने की ज़रूरत होती है। तो आज भी अविवाहित मसीही चाहे भाई हों या बहन, जवान हों या बुज़ुर्ग, अपनी मरज़ी से कुँवारे हों या हालात की वजह से, सभी अपने कुँवारेपन का पूरा-पूरा फायदा कैसे उठा सकते हैं? आइए पहली सदी की मसीही मंडली की कुछ बढ़िया मिसालों पर गौर करें और देखें कि हम उनसे क्या सीख सकते हैं।
जवानी में कुँवारे रहना
6, 7. (क) फिलिप्पुस की चार कुँवारी बेटियों को परमेश्वर की सेवा में क्या सुनहरा मौका मिला? (ख) तीमुथियुस ने अपने कुँवारेपन का किस तरह अच्छा इस्तेमाल किया?
6 प्रचारक फिलिप्पुस की चार कुँवारी बेटियाँ थीं जो अपने पिता की तरह प्रचार काम को बड़े जोश से किया करती थीं। (प्रेषि. 21:8, 9) भविष्यवाणी करना पवित्र शक्ति का एक वरदान है और इन लड़कियों ने इस वरदान का अच्छा इस्तेमाल किया, ठीक जैसे योएल 2:28, 29 में बताया गया था।
7 तीमुथियुस जवान था और उसने भी अपने कुँवारेपन का बेहतरीन तरीके से इस्तेमाल किया। बचपन से ही उसकी माँ यूनीके और नानी लोइस ने उसे “पवित्र शास्त्र के लेख” सिखाए। (2 तीमु. 1:5; 3:14, 15) शायद वे मसीही तब बने जब पौलुस ईसा पूर्व 47 में पहली बार उनके शहर लुस्त्रा आया। दो साल बाद, जब पौलुस ने वहाँ अपना दूसरा दौरा किया, तब तीमुथियुस शायद करीब 19-20 साल का रहा होगा। वह उम्र में छोटा था और सच्चाई में भी नया था, इसके बावजूद लुस्त्रा और इकुनियुम के मसीही प्राचीनों ने तीमुथियुस के बारे में अच्छी बातें कही थीं। (प्रेषि. 16:1, 2) इसलिए अपने मिशनरी दौरे पर पौलुस ने तीमुथियुस को भी साथ चलने को कहा। (1 तीमु. 1:18; 4:14) हम इस बारे में नहीं जानते कि तीमुथियुस ने आगे चलकर शादी की या नहीं, मगर यह सच है कि उसने खुशी-खुशी पौलुस का न्यौता कबूल किया और उसके बाद कई सालों तक उसने एक अविवाहित मिशनरी और निगरान के तौर पर सेवा की।—फिलि. 2:20-22.
8. किस बात ने यूहन्ना मरकुस को परमेश्वर की सेवा में ज़्यादा करने के लिए उभारा और उसे क्या आशीषें मिलीं?
8 जवानी में, यूहन्ना मरकुस ने भी अपने कुँवारेपन का अच्छा फायदा उठाया। वह और उसकी माँ मरियम, साथ ही बरनबास जो उसका भाई लगता था, सभी पहली सदी में यरूशलेम की मंडली के सदस्य थे। मरकुस शायद एक अमीर खानदान से था, क्योंकि उनका शहर में अपना घर था और एक नौकरानी भी थी। (प्रेषि. 12:12, 13) इसके बावजूद उसने ऐशो-अराम की ज़िंदगी नहीं जी और न ही वह खुदगर्ज़ था। उसने यह भी नहीं सोचा कि शादी करके घर बसा लेने में ही संतुष्टि है। प्रेषितों के साथ उसकी संगति ने ज़रूर उसमें मिशनरी सेवा का जज़्बा पैदा किया होगा। इसलिए वह पौलुस और बरनबास के साथ खुशी-खुशी एक सेवक के तौर पर उनके पहले मिशनरी दौरे पर गया। (प्रेषि. 13:5) बाद में, वह बरनबास के साथ गया और उसके कुछ समय बाद उसने पतरस के साथ भी बैबिलोन में सेवा की। (प्रेषि. 15:39; 1 पत. 5:13) हम नहीं जानते कि मरकुस कब तक कुँवारा रहा लेकिन उसने दूसरों और परमेश्वर की सेवा में ज़्यादा-से-ज़्यादा करने में अच्छा नाम कमाया।
9, 10. आज जवान अविवाहित मसीहियों के पास अपनी सेवा बढ़ाने के कौन-से मौके हैं? एक मिसाल दीजिए।
9 आज भी मंडली में बहुत-से जवान अपने कुँवारेपन का फायदा उठाकर खुशी-खुशी परमेश्वर की और ज़्यादा सेवा कर रहे हैं। मरकुस और तीमुथियुस की तरह वे इस बात को समझते हैं कि कुँवारे होने से वे “बिना ध्यान भटकाए लगातार प्रभु की सेवा” कर सकते हैं। (1 कुरिं. 7:35) और यह सच है। उनके सामने सेवा के कई मौके होते हैं, जैसे पायनियर सेवा करना, जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है वहाँ जाकर सेवा करना, नयी भाषा सीखना, राज-घर या शाखा दफ्तर निर्माण काम में मदद करना, मंडली सेवक प्रशिक्षण स्कूल में जाना या बेथेल में सेवा करना। अगर आप एक जवान हैं और आपकी शादी नहीं हुई है, तो क्या आप इन मौकों का पूरा-पूरा फायदा उठा रहे हैं?
10 मार्क नाम का एक भाई जब करीब 18-19 साल का था तब उसने पायनियर सेवा शुरू की। वह मंडली सेवक प्रशिक्षण स्कूल में हाज़िर हुआ और उसने अलग-अलग देशों में परमेश्वर के काम में बहुत-सी ज़िम्मेदारियाँ निभायीं। उसने पूरे-समय की सेवा में 25 साल गुज़ारे। उन दिनों को याद करते हुए वह कहता है: “मैंने कोशिश की कि मैं मंडली में हर किसी के साथ समय बिताऊँ जैसे उनके साथ सेवा में भाग लेकर, उनसे रखवाली भेंट करके और अपने घर खाने पर बुलाकर या भाई-बहनों को आध्यात्मिक रूप से मज़बूत करने के लिए छोटी-सी पार्टी रखकर। ऐसा करने से मुझे बहुत खुशी मिली है।” जैसा की मार्क की बातों से ज़ाहिर होता है, ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा खुशी दूसरों को देने से मिलती है और पूरी ज़िंदगी परमेश्वर की सेवा में लगा देने से आपको ऐसा करने के बहुत-से मौके मिलेंगे। (प्रेषि. 20:35) आपके शौक, हुनर या ज़िंदगी में आपका तजुरबा चाहे जो भी हो, प्रभु की सेवा में करने के लिए आप जवानों के पास बहुत कुछ है।—1 कुरिं. 15:58.
11. शादी में जल्दबाज़ी न करने के कुछ फायदे क्या हैं?
11 हालाँकि ज़्यादातर जवान आगे चलकर शादी करना चाहेंगे, मगर बेहतर होगा वे जल्दबाज़ी न करें। इस बारे में पौलुस जवानों को बढ़ावा देता है कि वे “जवानी की कच्ची उम्र” पार होने तक इंतज़ार करें जब लैंगिक इच्छाएँ बड़ी प्रबल होती हैं। (1 कुरिं. 7:36) खुद को समझने और सही जीवन-साथी का चुनाव करने के लिए जिस तजुरबे की ज़रूरत होती है, उसे हासिल करने में वक्त लगता है। शादी की शपथ लेना एक गंभीर बात है, जिसे जीवन भर निभाना होता है।—सभो. 5:2-5.
उम्र ढलने पर
12. (क) विधवा होने के बाद हन्ना ने किस तरह अपने नए हालात का सामना किया? (ख) उसे क्या सम्मान मिला?
12 हम लूका की किताब में हन्ना नाम की स्त्री के बारे में पढ़ते हैं जो शादी के सात साल बाद ही विधवा हो गयी थी। उसे अपने पति की मौत पर बहुत दुख हुआ होगा। हमें यह तो नहीं मालूम कि उनकी कोई औलाद थी या नहीं या उसने दोबारा शादी करने की सोची कि नहीं। पर बाइबल बताती है कि 84 साल की उम्र में भी हन्ना विधवा थी। हन्ना के बारे में हम बाइबल से जो पढ़ते हैं, उससे हम इस नतीजे पर पहुँच सकते हैं कि वह अपने बदले हालात का फायदा उठाकर यहोवा के और भी करीब आ गयी। वह “मंदिर से कभी गैर-हाज़िर नहीं रहती थी, बल्कि उपवास और मिन्नतों के साथ रात-दिन परमेश्वर की पवित्र सेवा में लगी रहती थी।” (लूका 2:36, 37) उसने अपनी ज़िंदगी में परमेश्वर को पहली जगह दी। इसके लिए उसे काफी संघर्ष करना पड़ा होगा और मज़बूत इरादे की ज़रूरत पड़ी होगी। लेकिन परमेश्वर ने उसे इसके लिए एक बहुत बड़ी आशीष दी। उसे नन्हे यीशु को देखने का सम्मान मिला और आनेवाले इस मसीहा के ज़रिए जो छुटकारा मिलता, उसके बारे में गवाही देने का मौका मिला।—लूका 2:38.
13. (क) किस बात से पता चलता है कि दोरकास मंडली के भाई-बहनों की खूब मदद किया करती थी? (ख) दूसरों को भलाई और कृपा दिखाने की वजह से दोरकास को क्या इनाम मिला?
13 दोरकास (या तबीता) नाम की एक स्त्री याफा शहर में रहती थी, जो यरूशलेम के उत्तर-पश्चिम में एक पुराना बंदरगाह था। जिस वक्त बाइबल में उसका ज़िक्र किया गया उस वक्त वह शायद कुँवारी ही थी क्योंकि उसके पति के बारे में कुछ नहीं कहा गया है। दोरकास “बहुत-से भले काम करती और दान दिया करती थी।” वह विधवाओं और दूसरों के लिए बहुत-से कपड़े बनाया करती थी, जिस वजह से सभी उसे बेहद पसंद करते थे। जब वह बीमार होकर अचानक मर गयी तो पूरी मंडली ने पतरस को बुलवाया और उससे बिनती की कि वह उनकी प्यारी बहन को दोबारा ज़िंदा कर दे। जब उसके दोबारा ज़िंदा होने की खबर पूरे याफा शहर में फैली तो कई लोग विश्वासी बन गए। (प्रेषि. 9:36-42) हो सकता है कि दोरकास ने इनमें से कुछ लोगों को बहुत कृपा दिखायी हो जिससे उन्हें मसीही बनने में मदद मिली होगी।
14. कुँवारे मसीहियों को क्या बात यहोवा के करीब आने में मदद करती है?
14 हन्ना और दोरकास की तरह ही आज बहुत-से मसीही उम्र ढलने पर खुद को अकेला पाते हैं। कइयों को शायद एक काबिल जीवन-साथी न मिला हो। दूसरे हैं जिनका तलाक हो गया है या वे अपने जीवन-साथी को मौत में खो चुके हैं। ऐसे भाई-बहन यहोवा पर और भी ज़्यादा निर्भर हो जाते हैं क्योंकि उनका जीवन-साथी नहीं होता जिससे वे अपने दिल की बात कह सकें। (नीति. 16:13) सिलविया नाम की एक बहन जो 38 सालों से बेथेल में सेवा कर रही है वह अपने कुँवारेपन को एक आशीष समझती है। वह कहती है, “कभी-कभी मैं हिम्मत हार जाती हूँ और सोचने लगती हूँ कि ‘मेरी हिम्मत कौन बढ़ाएगा?’” पर फिर वह कहती है: “मुझे पूरा भरोसा है कि मेरी ज़रूरतों के बारे में यहोवा मुझसे बेहतर जानता है और इसलिए मैं उसके और भी करीब महसूस करती हूँ। मैंने देखा है कि यहोवा किसी-न-किसी ज़रिए से मेरा हौसला बढ़ा ही देता है, वह भी ऐसे तरीके से जिसकी मुझे उम्मीद तक नहीं होती।” वाकई, जब भी हम यहोवा के करीब जाते हैं, वह हमेशा प्यार से हमारी मदद करता है।
15. अविवाहित लोग “अपना दिल और बड़ा” यानी ज़्यादा प्यार कैसे दिखा सकते हैं?
15 अविवाहित रहने से हमें “अपना दिल और बड़ा” करने यानी ज़्यादा-से-ज़्यादा प्यार दिखाने का खास मौका मिलता है। (2 कुरिंथियों 6:11-13) जोलीन नाम की एक अविवाहित बहन जो पिछले 34 साल से पूरे-समय की सेवा कर रही है, उसका कहना है: “मैं सिर्फ अपनी उम्र के लोगों से ही नहीं बल्कि हर उम्र के लोगों के साथ एक अच्छा रिश्ता बनाने की कोशिश करती हूँ। कुँवारे रहने से वाकई हमें यहोवा, अपने परिवार और भाई-बहनों के लिए, साथ ही अपने पड़ोसियों के लिए बहुत कुछ करने का मौका मिलता है। जैसे-जैसे मेरी उम्र ढल रही है, मैं इस बात से खुश हूँ कि मैं कुँवारी हूँ।” बेशक जब अविवाहित लोग बिना किसी स्वार्थ के बुज़ुर्ग या अपंग भाई-बहनों, जवानों, या मंडली के ऐसे माता-पिताओं की मदद करते हैं जो अकेले ही अपने बच्चों की परवरिश कर रहे हैं, तो उनकी इस मदद और प्यार की कदर की जाती है। वाकई, जब हम दूसरों को प्यार दिखाते हैं, तो हम भी अच्छा महसूस करते हैं। क्या आप भी “अपना दिल और बड़ा” कर सकते हैं यानी और ज़्यादा प्यार दिखा सकते हैं?
जीवन-भर अविवाहित
16. (क) यीशु ने शादी क्यों नहीं की? (ख) पौलुस ने अविवाहित रहने के हालात का कैसे बुद्धिमानी से इस्तेमाल किया?
16 यीशु ने शादी नहीं की; उसे जो काम सौंपा गया था, उसे उसकी तैयारी करनी थी और उसे पूरा करना था। उसने दूर-दूर तक सफर किया, सुबह से लेकर देर रात तक काम किया और आखिर में अपने जीवन का बलिदान दे दिया। अविवाहित रहकर उसने बहुत-से काम पूरे किए। उसी तरह, प्रेषित पौलुस ने भी हज़ारों मील सफर किया और अपनी सेवा में बहुत-सी मुश्किलों का सामना किया। (2 कुरिं. 11:23-27) हो सकता है कि एक वक्त पर वह शादीशुदा रहा हो, मगर प्रेषित चुने जाने के बाद उसने दोबारा शादी न करने का फैसला किया। (1 कुरिं. 7:7; 9:5) यीशु और पौलुस ने दूसरों को बढ़ावा दिया कि अगर मुमकिन हो तो परमेश्वर की सेवा की खातिर वे उन दोनों की मिसाल पर चलें। लेकिन उन्होंने मसीहियों से यह माँग नहीं की कि उन्हें कुँवारा रहना ही है।—1 तीमु. 4:1-3.
17. कई लोग कैसे यीशु और पौलुस की मिसाल पर चले और हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि यहोवा ऐसे त्याग करनेवालों की कदर करता है?
17 आज भी कइयों ने अविवाहित रहने का चुनाव किया है ताकि वे परमेश्वर की सेवा और अच्छी तरह से कर सकें। भाई हैरल्ड, जिनका शुरू में ज़िक्र किया गया, वे 56 साल से बेथेल में सेवा कर रहे हैं। उनका कहना है: “अपनी बेथेल सेवा के शुरूआती दस सालों में मैंने बहुत-से शादीशुदा जोड़ों को बीमारी या फिर बुज़ुर्ग माँ-बाप की देखभाल के लिए बेथेल छोड़ते हुए देखा। मेरे माता-पिता की मौत हो चुकी थी। मुझे बेथेल सेवा इतनी पसंद थी कि मैं शादी करके उसे दाँव पर नहीं लगाना चाहता था।” मार्गरेट नाम की एक बहन भी ऐसा ही महसूस करती है जो बहुत समय से पायनियर सेवा कर रही है। वह कहती है: “मेरी ज़िंदगी में ऐसे कई मौके आए जब मैं शादी कर सकती थी, मगर मैंने नहीं की। कुँवारे रहने की वजह से मुझे जो आज़ादी मिली उससे मैं परमेश्वर का काम और ज़्यादा कर सकी और इससे मुझे बहुत खुशी मिली है।” बेशक, यहोवा सच्ची उपासना के लिए इतने त्याग करनेवालों को कभी नहीं भूलता।—यशायाह 56:4, 5 पढ़िए।
अपने हालात का पूरा-पूरा फायदा उठाइए
18. मंडली में सभी लोग कैसे अविवाहित भाई-बहनों को सहारा और बढ़ावा दे सकते हैं?
18 हम ऐसे सभी अविवाहित मसीहियों की सच्चे दिल से तारीफ करते हैं, जो तन-मन से यहोवा की सेवा कर रहे हैं। हम उन्हें प्यार करते हैं और मंडली में उनके योगदान की भी कदर करते हैं। वे कभी अकेला महसूस नहीं करेंगे अगर हम उनके आध्यात्मिक ‘भाई-बहन और माँ और बच्चे’ बनकर उनका साथ देंगे।—मरकुस 10:28-30 पढ़िए।
19. आप अविवाहित रहने का कैसे पूरा-पूरा फायदा उठा सकते हैं?
19 चाहे आप अपनी मरज़ी से कुँवारे हों या हालात की वजह से, हमारी यही तमन्ना है कि बाइबल और आज के ज़माने की इन मिसालों से आपको यह भरोसा मिले कि आप परमेश्वर की सेवा में बहुत कुछ कर सकते हैं और खुश रह सकते हैं। कभी-कभी हमें कुछ तोहफों के मिलने की उम्मीद होती है, मगर कभी-कभी कुछ तोहफे खुद-ब-खुद हमारी झोली में आ जाते हैं। कुछ तोहफों से हमें तुरंत खुशी मिलती है, तो कुछ का मोल हमें बाद में समझ आता है। सच, बहुत कुछ हमारे रवैए पर निर्भर करता है। आप अविवाहित रहने का पूरा-पूरा फायदा कैसे उठा सकते हैं? यहोवा के करीब जाइए, परमेश्वर की और ज़्यादा सेवा कीजिए और दूसरों के लिए अपना प्यार बढ़ाइए। अगर हम कुँवारेपन को यहोवा की नज़रों से देखें और इस तोहफे का बुद्धिमानी से इस्तेमाल करें तो शादीशुदा ज़िंदगी की तरह, हमें अविवाहित रहने के भी बहुत-से फायदे मिल सकते हैं।
क्या आपको याद है?
• अविवाहित रहना किन मायनों में तोहफा हो सकता है?
• जवानी में कुँवारे रहने से क्या आशीषें मिल सकती हैं?
• अविवाहित मसीहियों को कैसे यहोवा के करीब आने और दूसरों के लिए अपना प्यार बढ़ाने के बढ़िया मौके मिलते हैं?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 18 पर तसवीरें]
क्या आप परमेश्वर की सेवा में मिलनेवाले मौकों का पूरा-पूरा फायदा उठा रहे हैं?