परमेश्वर का राज्य—पूरी पृथ्वी पर एक नयी सरकार
परमेश्वर का राज्य—पूरी पृथ्वी पर एक नयी सरकार
‘वह राज्य उन सब राज्यों को चूर चूर करेगा, और उनका अन्त कर डालेगा; और वह सदा स्थिर रहेगा।’—दानिय्येल 2:44.
1. बाइबल में क्या-क्या बताया गया है?
बाइबल हम इंसानों के लिए परमेश्वर का वचन है। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “जब हमारे द्वारा परमेश्वर के सुसमाचार का वचन तुम्हारे पास पहुंचा, तो तुम ने उसे मनुष्यों का नहीं, परन्तु परमेश्वर का वचन समझकर (और सचमुच यह ऐसा ही है) ग्रहण किया।” (1 थिस्सलुनीकियों 2:13) बाइबल हमें परमेश्वर के बारे में जानकारी देती है: उसकी शख्सियत कैसी है, वह भविष्य में क्या करेगा, और वह हम इंसानों से क्या चाहता है। परिवार को कैसे चलाना चाहिए और हमारा चालचलन कैसा होना चाहिए, इस बारे में भी यह बेहतरीन सलाह देती है। इसमें ऐसी भविष्यवाणियाँ दर्ज़ हैं जिनमें से कुछ तो पूरी हो चुकी हैं, कुछ पूरी हो रही हैं और कुछ भविष्य में पूरी होनेवाली हैं। जी हाँ, “हर एक पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिये लाभदायक है। ताकि परमेश्वर का जन सिद्ध बने, और हर एक भले काम के लिये तत्पर हो जाए।”—2 तीमुथियुस 3:16, 17.
2. यीशु ने अपनी सेवकाई के दौरान बाइबल के खास विषय पर कैसे ज़ोर दिया?
2 बाइबल में बतायी गयी सबसे खास बात यह है कि परमेश्वर के स्वर्ग के राज्य के द्वारा यहोवा यह साबित करेगा कि सिर्फ वही इस जहाँ का मालिक और महाराजा है और सिर्फ उसी के पास इस पृथ्वी पर राज करने का हक है। पूरी बाइबल इसी महत्त्वपूर्ण विषय पर लिखी गयी है। यीशु की सेवकाई का खास मुद्दा भी यही था: “मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है।” (मत्ती 4:17) हमें इस राज्य को कितनी अहमियत देनी चाहिए, इसके बारे में उसने कहा: “पहिले तुम उसके राज्य और धर्म की खोज करो।” (मत्ती 6:33) साथ ही, इस राज्य के बारे में उसने अपने चेलों को इस तरह प्रार्थना करना सिखाया: “तेरा राज्य आए; तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो।”—मत्ती 6:10.
स्वर्ग का राज्य —इंसानों के लिए एक नयी सरकार
3. हमारे लिए परमेश्वर का राज्य इतना ज़रूरी क्यों है?
3 लेकिन परमेश्वर का राज्य हमारे लिए इतना ज़रूरी क्यों है? क्योंकि यहोवा इस राज्य के द्वारा पृथ्वी पर हुकूमत करने का हक ज़ुल्मी इंसानों के हाथ से छीन लेगा और खुद इंसानों पर हमेशा-हमेशा के लिए शासन करेगा। इसके बारे में दानिय्येल 2:44 में भविष्यवाणी की गयी है: “उन राजाओं [यानी मनुष्य की सरकारों] के दिनों में स्वर्ग का परमेश्वर, एक ऐसा राज्य [या स्वर्ग में एक ऐसी सरकार] उदय करेगा जो अनन्तकाल तक न टूटेगा, और न वह किसी दूसरी जाति के हाथ में किया जाएगा। वरन वह उन सब राज्यों [या मनुष्य की सभी सरकारों] को चूर चूर करेगा, और उनका अन्त कर डालेगा; और वह सदा स्थिर रहेगा।” जी हाँ, परमेश्वर के उस राज्य में इंसान फिर कभी हुकूमत नहीं चलाएँगे।
4, 5. (क) यह क्यों कहा जा सकता है कि यीशु से बेहतर कोई और राजा नहीं हो सकता? (ख) यहोवा ने यीशु को कौन-सी ज़िम्मेदारी सौंपी है?
4 उस स्वर्ग के राज्य का राजा यीशु मसीह होगा और वह यहोवा के निर्देशनों के मुताबिक राज करेगा। यीशु से बेहतर कोई और राजा हो ही नहीं सकता! परमेश्वर ने सारी सृष्टि से पहले यीशु को बनाया था। स्वर्ग में वह परमेश्वर के साथ कुशल “कारीगर” के तौर पर काम करता था। (नीतिवचन 8:22-31) ‘वह तो अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप और सारी सृष्टि में पहिलौठा है, क्योंकि उसी के द्वारा सारी वस्तुओं की सृष्टि हुई, स्वर्ग की हो अथवा पृथ्वी की।’ (कुलुस्सियों 1:15, 16) और पृथ्वी पर आने के बाद यीशु हर समय सिर्फ परमेश्वर की ही मर्ज़ी के मुताबिक चला। उसने सबसे बड़ी परीक्षा भी सही, और मरते दम तक यहोवा का वफादार रहा।—यूहन्ना 4:34; 15:10.
5 और इसके लिए उसे इनाम भी मिला। परमेश्वर ने उसे दोबारा ज़िंदा किया, और स्वर्ग में बुलाकर उसे स्वर्ग के राज्य का राजा ठहराया। (प्रेरितों 2:32-36) परमेश्वर ने उसे एक शानदार ज़िम्मेदारी सौंपी है। वह जल्द ही इस दुनिया से बुराई को हमेशा-हमेशा के लिए हटा देगा और हज़ारों-लाखों स्वर्गदूतों की सेना के साथ इस पृथ्वी की सभी सरकारों का नाश करेगा। (नीतिवचन 2:21, 22; 2 थिस्सलुनीकियों 1:6-9; प्रकाशितवाक्य 19:11-21; 20:1-3) इसके बाद इस तमाम पृथ्वी पर सिर्फ एक ही सरकार होगी। वह स्वर्ग की सरकार होगी, जिसमें यीशु राजा होगा और यहोवा के निर्देशन में काम करेगा।—प्रकाशितवाक्य 11:15.
6. यीशु मसीह किस तरह राज करेगा?
6 इस नए राजा के बारे में बाइबल कहती है: “उसको ऐसी प्रभुता, महिमा और राज्य दिया गया, कि देश-देश और जाति-जाति के लोग और भिन्न-भिन्न भाषा बोलनेवाले सब उसके अधीन हों।” (दानिय्येल 7:14) यीशु, यहोवा की तरह प्रेम से हुकूमत करेगा और इसलिए उसके राज में हर कहीं शांति, सुख और खुशहाली होगी। (मत्ती 5:5; यूहन्ना 3:16; 1 यूहन्ना 4:7-10) ‘उसकी प्रभुता सर्वदा बढ़ती रहेगी, और उसकी शान्ति का अन्त न होगा। वह उसको न्याय और धर्म के द्वारा स्थिर किए और संभाले रहेगा।’ (यशायाह 9:7) जी हाँ, यीशु सचमुच इंसानों के लिए बहुत बड़ी आशीष साबित होगा, क्योंकि वह प्रेम से, न्याय से और धर्म से राज करेगा! उसके राज्य के बारे में 2 पतरस 3:13 में भविष्यवाणी की गयी है: “उस की प्रतिज्ञा के अनुसार हम एक नए आकाश [यानी स्वर्ग से राज करनेवाला परमेश्वर का राज्य] और नई पृथ्वी [यानी नयी प्रजा] की आस देखते हैं जिन में धार्मिकता बास करेगी।”
7. मत्ती 24:14 की बात आज कैसे पूरी हो रही है?
7 वाकई, इंसाफ-पसंद लोगों के लिए यीशु का राज्य सबसे बड़ी खुशखबरी है! इसीलिए इन “अन्तिम दिनों” में यह खुशखबरी दुनिया-भर में फैलायी जा रही है। यह इस दुष्ट दुनिया के अंत की एक निशानी भी है, क्योंकि यीशु ने कहा था: “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।” (2 तीमुथियुस 3:1-5; मत्ती 24:14) आज करीब साठ लाख यहोवा के साक्षी इसी राज्य का सुसमाचार दुनिया के 234 देशों में सुना रहे हैं, और इस काम में वे हर साल एक अरब से ज़्यादा घंटे बिताते हैं। और वे अपनी 90,000 से ज्यादा उपासना की जगहों को किंगडम हॉल, यानी राज्य-गृह कहते हैं, क्योंकि वहाँ लोगों को परमेश्वर के आनेवाले राज्य के बारे में तालीम दी जाती है।
यीशु के साथ राज करनेवाले
8, 9. (क) यीशु के साथ राज करनेवालों को परमेश्वर ने कहाँ से चुना है? (ख) हम यीशु और उसके 1,44,000 साथियों से क्या उम्मीद कर सकते हैं और क्यों?
8 परमेश्वर के उस राज्य में यीशु मसीह के साथ मिलकर और भी कुछ लोग राज करेंगे। इसके बारे में प्रकाशितवाक्य 14:1-4 में भविष्यवाणी की गयी है कि 1,44,000 लोगों को ‘पृथ्वी पर से मोल लिया जाएगा।’ ये ऐसे लोग हैं जिन्होंने बगैर किसी स्वार्थ या लालच के, दिल से यहोवा की और दूसरों की सेवा की है। उन्हें मरने के बाद स्वर्ग में जी उठाया जाएगा, जहाँ वे “परमेश्वर और मसीह के याजक होंगे, और उसके साथ हज़ार वर्ष तक राज्य करेंगे।” (प्रकाशितवाक्य 20:6) उनकी संख्या बड़ी भीड़ के मुकाबले बहुत कम है, क्योंकि “हर एक जाति, और कुल, और लोग और भाषा में से” निकली इस बड़ी भीड़ में इतने लोग हैं कि उन्हें “कोई गिन नहीं सकता।” वे भी ‘दिन रात परमेश्वर की सेवा करते हैं,” मगर उन्हें स्वर्ग का बुलावा नहीं दिया गया है। (प्रकाशितवाक्य 7:9, 15) ये लोग इस दुष्ट दुनिया के विनाश से बच निकलकर इसी पृथ्वी पर परमेश्वर के राज्य की प्रजा बनकर जीएँगे।—भजन 37:29; यूहन्ना 10:16.
9 स्वर्ग में यीशु के साथ राज करने के लिए परमेश्वर ने ऐसे वफादार इंसानों को चुना है जिन्होंने अपनी ज़िंदगी में हर तरह की मुसीबत झेली है। ऐसा कोई दुःख या समस्या नहीं है जिसका इनमें से किसी ने सामना न किया हो। इसलिए वे हमारी कमज़ोरियों और जज़्बातों को समझकर हम पर और भी अच्छी तरह राज कर सकेंगे। खुद यीशु ने भी ‘दुखों में आज्ञा माननी सीखी।’ (इब्रानियों 5:8) प्रेरित पौलुस ने उसके बारे में कहा: “हमारा ऐसा महायाजक नहीं, जो हमारी निर्बलताओं में हमारे साथ दुखी न हो सके; बरन वह सब बातों में हमारी नाईं परखा तो गया, तौभी निष्पाप निकला।” (इब्रानियों 4:15) यह जानकर हमें कितनी तसल्ली मिलती है कि परमेश्वर के राज्य में हम पर ऐसे राजा और याजक राज करेंगे जिन्हें हमसे प्यार होगा और जो हमारी दुःख-तकलीफों को समझ सकते हैं!
क्या यह राज्य परमेश्वर के उद्देश्य में पहले से ही शामिल था?
10. क्या शुरू से ही परमेश्वर का यह मकसद था कि वह स्वर्ग का राज्य स्थापित करे?
10 क्या शुरू से ही, यानी आदम और हव्वा को बनाने के समय से ही परमेश्वर का यह मकसद था कि वह ऐसा राज्य स्थापित करे जिसमें यीशु और उसके साथी राज करें? जी नहीं। क्योंकि उत्पत्ति की किताब के जिन अध्यायों में आदम-हव्वा की सृष्टि का ब्यौरा दिया गया है, वहाँ ऐसे किसी राज्य का ज़िक्र नहीं है। खुद यहोवा उनका राजा था, और जब तक वे यहोवा की आज्ञाओं को मानते तब तक उन्हें यहोवा को छोड़ किसी और राज्य की ज़रूरत नहीं होती। हालाँकि यहोवा आदम और हव्वा से बातचीत करने के लिए यीशु का इस्तेमाल करता था, मगर यीशु सिर्फ यहोवा की तरफ से बोलता था। इसीलिए इन अध्यायों में अकसर लिखा है: “परमेश्वर ने उन से कहा।”—उत्पत्ति 1:28, 29; यूहन्ना 1:1.
11. हम कैसे कह सकते हैं कि यहोवा ने जो कुछ बनाया था, सब कुछ बिलकुल ठीक था?
11 बाइबल कहती है: “तब परमेश्वर ने जो कुछ बनाया था, सब को देखा, तो क्या देखा, कि वह बहुत ही अच्छा है।” (उत्पत्ति 1:31) अदन के बगीचे में उसने जो कुछ बनाया था, उसमें कोई खोट नहीं था। आदम और हव्वा को एक सुंदर बगीचे में रखा गया था। उनके तन-मन में कोई दोष नहीं था। वे अपने सृजनहार के साथ बातचीत कर सकते थे और उनका सृजनहार उनसे। और अगर वे यहोवा के वफादार बने रहते तो उनके जो बच्चे पैदा होते, उनमें भी कोई दोष नहीं होता। इन सब की वजह से उन्हें स्वर्ग से राज करनेवाली एक अलग सरकार की ज़रूरत नहीं होती।
12, 13. परमेश्वर सभी सिद्ध इंसानों के साथ बातचीत कैसे कर सकता था?
12 लेकिन अगर उस वक्त धरती पर आबादी बढ़ जाती, तो परमेश्वर इतने सारे लोगों के साथ बातचीत कैसे कर सकता था, और कैसे याद रख सकता था कि किसने क्या प्रार्थना की है? इसे समझने के लिए आकाश के तारों की मिसाल लीजिए। इन सभी तारों को अलग-अलग ‘मंदाकिनियों’ में रखा गया है। किसी मंदाकिनी में करीब एक अरब तारें हैं, तो किसी में 10 खरब। वैज्ञानिकों का कहना है कि अब तक करीब एक खरब मंदाकिनियों का पता लगाया जा चुका है! फिर भी इनका बनानेवाला परमेश्वर कहता है: “अपनी आंखें ऊपर उठाकर देखो, किस ने इनको सिरजा? वह इन गणों को गिन गिनकर निकालता, उन सब को नाम ले लेकर बुलाता है? वह ऐसा सामर्थी और अत्यन्त बली है कि उन में से कोई बिना आए नहीं रहता।”—यशायाह 40:26.
13 अगर परमेश्वर इतने खरबों तारों और मंदाकिनियों की जानकारी रख सकता है, उन पर नज़र रख सकता है, तो उसके लिए थोड़े-से इंसानों के बारे में जानकारी रखना कोई बड़ी बात नहीं है। आज भी जब उसके लाखों सेवक हर रोज़ उससे प्रार्थना करते हैं, तो वह उन्हें फौरन सुन लेता है। इसलिए उसे सभी सिद्ध इंसानों की प्रार्थनाओं का हिसाब रखने के लिए स्वर्ग के राज्य की ज़रूरत नहीं होती। सचमुच यहोवा ने कितना बढ़िया इंतज़ाम कर रखा था—यहोवा ही हमारा राजा हो, हम सीधे उससे बात कर सकें, हम कभी नहीं मरें, बल्कि हमेशा-हमेशा के लिए इसी सुंदर पृथ्वी पर जीते रहें!
‘यह मनुष्य के वश में नहीं’
14. क्यों इंसान को हमेशा यहोवा की हुकूमत की ज़रूरत होती?
14 मगर सिद्ध इंसानों को भी हमेशा यहोवा की हुकूमत की ज़रूरत होती। क्यों? क्योंकि यहोवा ने इंसान को ऐसी काबिलीयत के साथ बिलकुल नहीं बनाया था कि वह उसकी हुकूमत को ठुकराकर, खुद अपने ऊपर सही तरीके से राज कर सके। इसीलिए भविष्यवक्ता यिर्मयाह कहता है: “हे यहोवा, मैं जान गया हूं, कि मनुष्य का मार्ग उसके वश में नहीं है, मनुष्य चलता तो है, परन्तु उसके डग उसके अधीन नहीं हैं। हे यहोवा, मेरी ताड़ना कर।” (यिर्मयाह 10:23, 24) अगर इंसान यह सोचते कि ‘हमें यहोवा की हुकूमत की ज़रूरत नहीं है, हम अपने ऊपर खुद हुकूमत कर सकते हैं,’ तो उनका सोचना गलत होता। परमेश्वर ने उन्हें ऐसी काबिलियत दी ही नहीं थी। अगर वे यहोवा की हुकूमत को ठुकराते, तो यकीनन इसका अंजाम बहुत बुरा होता क्योंकि इंसान युद्ध करते, उनमें स्वार्थ और नफरत पैदा होती और आखिर में वे मर जाते। ‘एक मनुष्य दूसरे मनुष्य पर अधिकारी होकर बस अपने ऊपर हानि ही लाता।’—सभोपदेशक 8:9.
15. हमारे पहले माता-पिता ने जो गलती की, उसका नतीजा क्या हुआ?
15 मगर अफसोस की बात है कि आदम और हव्वा ने बिना सोचे-समझे यहोवा की हुकूमत को ठुकरा दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि वे सिद्ध न रहे। वे उस मशीन की तरह बन गए जिसकी बिजली काट दी गयी हो और जो आहिस्ते-आहिस्ते धीमी होकर काम करना बंद कर देती है। उसी तरह पाप करने के बाद आदम और हव्वा असिद्ध होकर मर गए। वे एक खराब साँचे की तरह बन गए, और यही खोट उन्होंने अपनी संतानों को विरासत में दी। (रोमियों 5:12) “वह [यहोवा] चट्टान है! उसका काम सिद्ध है, उसके सब मार्ग तो न्यायपूर्ण हैं। . . . लोगों ने उसके प्रति भ्रष्ट आचरण किया है, ये अपने दोष के कारण उसकी सन्तान नहीं, पर ये भ्रष्ट और टेढ़ी पीढ़ी के लोग हैं।” (व्यवस्थाविवरण 32:4, 5, NHT) हालाँकि शैतान ने आदम और हव्वा को बहकाया था, लेकिन अगर वे चाहते तो उसकी बात मानने से इंकार कर सकते थे, क्योंकि उनका मन सिद्ध था।—उत्पत्ति 3:1-19; याकूब 4:7.
16. परमेश्वर की हुकूमत को ठुकराने का अंजाम क्या हुआ है?
16 इतिहास इसका गवाह है कि परमेश्वर की हुकूमत को ठुकराने का अंजाम कितना भारी साबित हुआ है। हज़ारों सालों से इंसान ने हर तरह की सरकार आज़माकर देख ली है, मगर बुराई और अत्याचार है कि दिन-पर-दिन बढ़ता जा रहा है और दुनिया की हालत ‘बिगड़ती’ जा रही है। (2 तीमुथियुस 3:13) 20वीं सदी इसका सबसे बढ़िया सबूत है। इस सदी में नफरत की इतनी भयंकर आँधी उठी, इतने ज़ुल्म ढाए गए, इतने सारे युद्ध हुए, इतनी गरीबी, भुखमरी और महँगाई फैली कि इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। हालाँकि इंसान ने विज्ञान में काफी तरक्की की है, मगर वह मौत को किसी तरह नहीं टाल पाया है। (सभोपदेशक 9:5, 10) इंसान अपनी मर्ज़ी से अपना मार्ग तैयार करने के चक्कर में शैतान और उसकी दुष्टात्माओं की चंगुल में बुरी तरह फँसता चला गया है। इसीलिए बाइबल में शैतान को “इस संसार के ईश्वर” कहा गया है।—2 कुरिन्थियों 4:4.
परमेश्वर द्वारा दी हुई आज़ादी
17. परमेश्वर द्वारा दी गयी आज़ादी का इंसान को कैसे इस्तेमाल करना था?
17 मगर यहोवा ने इंसान को अपने तरीके से जीने क्यों दिया? क्योंकि उसने इंसान को ऐसी काबिलीयत और आज़ादी दी थी कि वह अपने फैसले खुद अपनी मर्ज़ी से करे। प्रेरित पौलुस कहता है: “जहां कहीं प्रभु का आत्मा है वहां स्वतंत्रता है।” (2 कुरिन्थियों 3:17) कोई इंसान एक रोबोट की तरह, दूसरों के इशारों पर नहीं जीना चाहता। वह अपनी मर्ज़ी से जीना चाहता है। मगर यहोवा चाहता था कि उसने इंसान को जो आज़ादी और काबिलीयत दी है, वह उसकी ज़िम्मेदारी को समझते हुए उसका सही इस्तेमाल करे, और समझे कि परमेश्वर की हुकूमत के अधीन रहने में और उसकी इच्छा के मुताबिक जीने में ही अक्लमंदी है। (गलतियों 5:13) तो इसका मतलब यह है कि इंसान को हर मायने में पूरी तरह आज़ादी नहीं दी गयी थी, वरना इसका अंजाम बहुत ही भयानक होता। उन्हें अपनी आज़ादी का इस्तेमाल परमेश्वर के नियमों के दायरे के अंदर ही करना था, तभी उनका भला होता।
18. इंसान के अपनी मर्ज़ी के मुताबिक और अपने तरीके से जीने की वजह से क्या साबित हो गया?
18 मगर जब इंसान यहोवा की हुकूमत को छोड़ अपनी मर्ज़ी के मुताबिक और अपने तरीके से जीने लगा, तो इसके बहुत ही भयानक अंजाम हुए। इससे यह साबित हो गया कि इंसान यहोवा की हुकूमत के बगैर नहीं चल सकता। सिर्फ यहोवा की हुकूमत ही सही है। उसकी हुकूमत से ही इंसान को सुख और खुशहाली मिल सकती है। दूसरे शब्दों में कहें तो, हम तभी कामयाब और खुशहाल हो सकते हैं जब हम यहोवा के नियमों के दायरे में रहकर उसकी इच्छा पर चलें क्योंकि यहोवा ने हमारी रचना ही इस तरह की थी। “मैं ही तेरा परमेश्वर यहोवा हूं जो तुझे तेरे लाभ के लिये शिक्षा देता हूं, और जिस मार्ग से तुझे जाना है उसी मार्ग पर तुझे ले चलता हूं।” (यशायाह 48:17) अगर इंसान परमेश्वर के नियमों के मुताबिक चलकर अपनी आज़ादी का इस्तेमाल करता तो उसे बहुत-सी आशीषें मिलतीं, जैसे सुख-शांति का माहौल, सुंदर घर, लज़ीज़ खाना, और हाँ, इसी सुंदर पृथ्वी पर हमेशा-हमेशा की मज़ेदार और खुशहाल ज़िंदगी।
19. परमेश्वर ने कौन-सा इंतज़ाम किया ताकि इंसान उसके साथ फिर से रिश्ता कायम कर सके?
19 अपनी आज़ादी का गलत इस्तेमाल करने की वजह से इंसान परमेश्वर से दूर हो गए, असिद्ध हो गए, और मौत का शिकंजा उन पर कसता गया। अब उन्हें किसी ऐसे इंतज़ाम की ज़रूरत थी जिसके द्वारा वे इस कश्मकश से छूट सकें और यहोवा के साथ फिर से अच्छा रिश्ता कायम कर सकें, ताकि उसके बेटे-बेटी कहलाएँ। इसीलिए परमेश्वर यहोवा ने स्वर्ग के राज्य का इंतज़ाम किया और यीशु मसीह को हमारा उद्धारकर्ता ठहराया। (यूहन्ना 3:16) सो, इस इंतज़ाम के ज़रिए इंसान सच्चे दिल से पश्चाताप करके परमेश्वर के साथ दोबारा रिश्ता कायम कर पाते और तब यहोवा उन्हें अपने बेटे-बेटियों के तौर पर कबूल करता, ठीक जैसे यीशु के एक दृष्टांत में उड़ाऊ पुत्र के साथ हुआ था।—लूका 15:11-24; रोमियों 8:21; 2 कुरिन्थियों 6:18.
20. यीशु का राज्य इस पृथ्वी के बारे में परमेश्वर के उद्देश्य को कैसे पूरा करेगा?
20 बेशक, इस पृथ्वी के बारे में यहोवा की इच्छा पूरी होकर ही रहेगी। (यशायाह 14:24, 27; 55:11) यीशु के राज्य के द्वारा यहोवा यह साबित कर देगा कि सिर्फ यहोवा ही सारे जहाँ का शहनशाह और मालिक है और हुकूमत करने का हक सिर्फ उसी के पास है। यीशु का यह राज्य इस पृथ्वी से इंसानों और शैतान की हुकूमत का हमेशा के लिए सफाया कर देगा, और सिर्फ उसका राज्य ही हज़ार साल तक इस पृथ्वी पर राज करेगा। (रोमियों 16:20; प्रकाशितवाक्य 20:1-6) मगर उन हज़ार सालों के दौरान यह कैसे ज़ाहिर होगा कि यहोवा की हुकूमत ही सबसे बेहतरीन है? और हज़ार साल के बाद यीशु को और उसके 1,44,000 साथियों को कौन-सी ज़िम्मेदारियाँ सौंपी जाएगी? अगले लेख में इन सवालों पर चर्चा की जाएगी।
ज़रा याद कीजिए
• पूरी बाइबल किस खास विषय पर लिखी गयी है?
• स्वर्ग के राज्य में कौन-कौन राज करेंगे?
• यहोवा की हुकूमत से आज़ाद होकर राज करने से इंसान क्यों कभी कामयाब नहीं हो सकता?
• हमें अपनी आज़ादी या मर्ज़ी का इस्तेमाल कैसे करना चाहिए?
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 10 पर तसवीर]
स्वर्ग का राज्य यीशु की सेवकाई का खास मुद्दा था
[पेज 12 पर तसवीरें]
यहोवा के गवाह दुनिया-भर में खासकर इसी राज्य के बारे में सिखाते हैं
[पेज 14 पर तसवीरें]
इतिहास गवाह है कि यहोवा की हुकूमत को ठुकराने का अंजाम कितना बुरा होता है
[चित्रों का श्रेय]
डबल्यू डबल्यू आइ सैनिक: U.S. National Archives photo; कॉसंट्रेशन कैंप: Oświęcim Museum; बच्चा: UN PHOTO 186156/J. Isaac