प्रार्थना कैसे करें?
कई धर्मों में इस बात पर बहुत ज़्यादा ध्यान दिया जाता है कि हम घुटने टेककर, खड़े होकर या बैठकर प्रार्थना करें या कोई खास शब्द कहें। लेकिन हमें प्रार्थना कैसे करनी चाहिए इस बारे में बाइबल और भी ज़रूरी बातें बताती है।
बाइबल में बताया गया है कि परमेश्वर के सेवकों ने अलग-अलग जगहों पर परमेश्वर से प्रार्थना की। कुछ लोगों ने मन में प्रार्थना की, तो कुछ लोगों ने ज़ोर से की। कुछ लोगों ने आसमान की ओर देखकर प्रार्थना की, तो कुछ लोगों ने सिर झुकाकर की। लेकिन उनमें से किसी ने भी किसी तसवीर के सामने प्रार्थना नहीं की, न ही उन्होंने प्रार्थना करते वक्त कोई माला जपी या फिर किसी किताब से पढ़कर प्रार्थना की। इसके बजाय उन्होंने ईश्वर को अपने दिल की बात बतायी, अपने शब्दों में प्रार्थना की। लेकिन सवाल उठता है, उनकी प्रार्थनाएँ किस वजह से सुनी गयीं?
जैसे पिछले लेख में बताया गया था, उन सभी ने परमेश्वर यहोवा से प्रार्थना की थी, इसीलिए उनकी प्रार्थनाएँ सुनी गयीं। बाइबल इसकी एक और वजह बताती है। पहला यूहन्ना 5:14 में लिखा है, “हमें परमेश्वर पर भरोसा है कि हम उसकी मरज़ी के मुताबिक चाहे जो भी माँगें वह हमारी सुनता है।” इससे पता चलता है कि हमें परमेश्वर की मरज़ी के मुताबिक प्रार्थना करनी चाहिए। लेकिन इसका क्या मतलब है?
परमेश्वर की मरज़ी के मुताबिक प्रार्थना करने के लिए हमें पहले जानना होगा कि उसकी मरज़ी क्या है। उसकी मरज़ी जानने के लिए हमें बाइबल पढ़नी होगी, उसका अध्ययन करना होगा। लेकिन यह ज़रूरी नहीं कि हमें बाइबल का बहुत ज़्यादा ज्ञान होना चाहिए। परमेश्वर बस इतना चाहता है कि हम उसकी मरज़ी जानें और उस मरज़ी के मुताबिक जीएँ। (मत्ती 7:21-23) फिर जब हम उससे प्रार्थना करेंगे, तो वह हमारी ज़रूर सुनेगा।
अगर हम परमेश्वर की मरज़ी के मुताबिक प्रार्थना करें, विश्वास रखें और यीशु के नाम से प्रार्थना करें तो परमेश्वर हमारी ज़रूर सुनेगा
यहोवा के बारे में और उसकी मरज़ी के बारे में जानने से उस पर हमारा विश्वास बढ़ेगा। यह बहुत ज़रूरी है। हमें परमेश्वर पर विश्वास होगा, तभी वह हमारी प्रार्थनाएँ सुनेगा। यीशु ने कहा था, “तुम विश्वास के साथ प्रार्थना में जो कुछ माँगोगे, वह तुम्हें मिल जाएगा।” (मत्ती 21:22) लेकिन विश्वास का मतलब यह नहीं है कि हम आँख बंद करके किसी भी बात पर भरोसा कर लें। पर इसका मतलब यह है कि हम किसी बात पर इसलिए भरोसा करें क्योंकि उसके होने के हमारे पास पक्के सबूत हैं, भले ही हम उसे देख नहीं सकते। (इब्रानियों 11:1) हम यहोवा को भी देख नहीं सकते। लेकिन बाइबल में इस बात के ढेरों सबूत हैं कि वह सच में है और उन लोगों की प्रार्थनाएँ सुनता है जो उस पर विश्वास रखते हैं। हम परमेश्वर से यह प्रार्थना भी कर सकते हैं कि वह हमारा विश्वास बढ़ाए और वह हमारी ज़रूर सुनेगा।—लूका 17:5; याकूब 1:17.
प्रार्थना करते वक्त हमें एक और बात का ध्यान रखना चाहिए। यीशु ने कहा था, “कोई भी पिता के पास नहीं आ सकता, सिवा उसके जो मेरे ज़रिए आता है।” (यूहन्ना 14:6) अगर हम चाहते हैं कि यहोवा हमारी प्रार्थनाएँ सुने, तो हमें यीशु के ज़रिए प्रार्थना करनी होगी। यीशु ने अपने चेलों से भी कहा था कि वे उसके नाम से प्रार्थना करें। (यूहन्ना 14:13; 15:16) इसका मतलब यह नहीं था कि उन्हें यीशु से प्रार्थना करनी थी। उन्हें यहोवा से ही प्रार्थना करनी थी। लेकिन उन्हें कहना था कि वे यीशु के नाम से प्रार्थना कर रहे हैं। उन्हें यह बात याद रखनी थी कि यीशु की वजह से ही वे अपने पिता से बात कर पा रहे हैं।
यीशु के शिष्यों ने एक बार उससे कहा, ‘प्रभु, तू हमें प्रार्थना करना सिखा।’ (लूका 11:1) वे यह नहीं पूछ रहे थे कि उन्हें किससे प्रार्थना करनी चाहिए या किस तरह प्रार्थना करनी चाहिए। वे यह जानना चाहते थे कि उन्हें प्रार्थना में क्या कहना चाहिए।