1 कुरिंथियों 11:1-34
11 मेरी मिसाल पर चलो, ठीक जैसे मैं मसीह की मिसाल पर चलता हूँ।
2 अब मैं तुम्हारी तारीफ करता हूँ क्योंकि तुम सब बातों में मुझे ध्यान में रखते हो और जैसी हिदायतें मैंने तुम्हें सौंपी थीं, उन्हें तुम उसी तरह मज़बूती से थामे रहते हो।
3 मगर मैं चाहता हूँ कि तुम जान लो कि हर पुरुष का सिर मसीह है और स्त्री का सिर पुरुष है और मसीह का सिर परमेश्वर है।
4 हर पुरुष जो अपना सिर ढककर प्रार्थना या भविष्यवाणी करता है, वह अपने सिर का अपमान करता है।
5 मगर हर स्त्री जो बिना सिर ढके प्रार्थना या भविष्यवाणी करती है, वह अपने सिर का अपमान करती है, क्योंकि यह ऐसा ही होगा मानो वह एक ऐसी स्त्री है जिसका सिर मुंडाया गया हो।
6 इसलिए कि अगर एक स्त्री अपना सिर नहीं ढकती, तो वह अपने बाल भी कटवा ले। लेकिन अगर एक स्त्री के लिए बाल कटवाना या सिर मुंडाना शर्मनाक बात है, तो उसे अपना सिर ढकना चाहिए।
7 एक पुरुष को अपना सिर नहीं ढकना चाहिए, क्योंकि वह परमेश्वर की छवि और उसकी महिमा है। लेकिन स्त्री, पुरुष की महिमा है।
8 इसलिए कि पुरुष स्त्री से नहीं निकला, बल्कि स्त्री पुरुष से निकली है।
9 साथ ही, पुरुष को स्त्री की खातिर नहीं, बल्कि स्त्री को पुरुष की खातिर बनाया गया था।
10 इसलिए स्वर्गदूतों की वजह से एक स्त्री को चाहिए कि वह अपने सिर पर अधीनता की निशानी रखे।
11 फिर भी, प्रभु के इंतज़ाम में न स्त्री पुरुष के बिना है न पुरुष स्त्री के बिना।
12 इसलिए कि जैसे स्त्री पुरुष से निकली है, वैसे ही पुरुष स्त्री के ज़रिए आया है, लेकिन सबकुछ परमेश्वर से निकला है।
13 तुम खुद ही फैसला करो: क्या यह सही है कि एक स्त्री बिना सिर ढके परमेश्वर से प्रार्थना करे?
14 क्या स्वाभाविक तौर पर तुमने यह बात नहीं सीखी कि अगर एक पुरुष के बाल लंबे हों, तो यह उसके लिए अपमान की बात है।
15 लेकिन अगर एक स्त्री के बाल लंबे हों, तो ये उसकी शोभा हैं? क्योंकि उसे ओढ़नी के बजाय उसके बाल दिए गए हैं।
16 लेकिन, अगर कोई आदमी किसी और दस्तूर को मानने के लिए बहस करे, तो वह जान ले कि हमारे बीच और परमेश्वर की मंडलियों के बीच कोई और दस्तूर नहीं।
17 मगर ये हिदायतें देते वक्त, मैं तुम्हारी तारीफ नहीं करता क्योंकि जब तुम इकट्ठा होते हो, तो भला होने से ज़्यादा बुरा होता है।
18 सबसे पहले तो मेरे सुनने में आया है कि जब तुम मंडली में इकट्ठा होते हो, तो तुम्हारे बीच फूट होती है और कुछ हद तक मैं इस बात पर यकीन भी करता हूँ।
19 तुम्हारे बीच गुट भी ज़रूर होंगे और इससे तुम्हारे बीच वे लोग भी ज़ाहिर हो जाएँगे जिन पर परमेश्वर की मंज़ूरी है।
20 इसलिए, जब तुम एक जगह इकट्ठा होते हो, तो प्रभु के संध्या-भोज के मौके पर खाना मुमकिन नहीं होता।
21 क्योंकि जब इसे खाने का वक्त आता है, तो तुममें से कुछ पहले ही अपना खाना खा चुके होते हैं, इस तरह कोई भूखा होता है तो कोई पीकर धुत्त हो चुका होता है।
22 क्या खाने-पीने के लिए तुम्हारे घर नहीं हैं? या क्या तुम परमेश्वर की मंडली का तिरस्कार करते हो और जिनके पास कुछ नहीं उन्हें शर्मिंदा करते हो? मैं तुम से क्या कहूँ? क्या मैं तुम्हारी तारीफ करूँ? इस बात में मैं तुम्हारी तारीफ नहीं करता।
23 जो बात मैंने प्रभु से पायी है, वही तुम्हें सिखायी थी कि जिस रात प्रभु यीशु पकड़वाया जानेवाला था, उसने एक रोटी ली
24 और प्रार्थना में धन्यवाद देने के बाद, उसने यह तोड़ी और कहा: “यह मेरे शरीर का प्रतीक है जो तुम्हारी खातिर दिया जाना है। मेरी याद में ऐसा ही किया करना।”
25 उसने प्याला लेकर भी ऐसा ही किया और शाम का खाना खाने के बाद उसने कहा: “यह प्याला उस नए करार का प्रतीक है जो मेरे लहू के आधार पर बाँधा गया है। हर बार जब तुम इसे पीते हो तो मेरी याद में ऐसा ही किया करो।”
26 हर बार जब तुम यह रोटी खाते हो और यह प्याला पीते हो, तो जब तक प्रभु नहीं आता, तुम उसकी मौत का ऐलान करते हो।
27 इसलिए हर कोई जो अयोग्य दशा में रोटी खाता या प्रभु के प्याले में से पीता है, वह प्रभु के शरीर और लहू के मामले में दोषी ठहरेगा।
28 एक आदमी पहले अपनी जाँच करे कि वह इस लायक है या नहीं और फिर वह रोटी में से खाए और प्याले में से पीए।
29 इसलिए कि जो खाता और पीता है, अगर वह प्रभु के शरीर को समझे बिना खाता और पीता है तो खुद पर सज़ा लाता है।
30 इसीलिए तुम्हारे बीच बहुत-से कमज़ोर और बीमार हैं और कई मौत की नींद सो रहे हैं।
31 लेकिन अगर हम खुद की जाँच करें कि हम असल में क्या हैं, तो हम दोषी नहीं ठहरेंगे।
32 लेकिन, जब हम दोषी ठहरते हैं, तो यहोवा से अनुशासन पाते हैं, ताकि हम दुनिया के साथ सज़ा न पाएँ।
33 इसलिए, मेरे भाइयो, जब तुम इसे खाने के लिए इकट्ठा होते हो, तो एक-दूसरे का इंतज़ार किया करो।
34 अगर कोई भूखा है, तो वह घर पर खाए, ताकि तुम्हारा इकट्ठा होना सज़ा का कारण न बने। बाकी बातें जब मैं वहाँ आऊँगा तब आकर सुधारूँगा।